तिरुक्कुरल – कवि परिचय
तिरुवल्लुवर का जन्म तमिलनाडु की राजधानी मद्रास (चेन्नई) शहर के मैलापूर नामक स्थान में करीब 2000 वर्ष पहले हुआ था। नायनार, देवर, प्रथम कवि, दैव कवि आदि अन्य नामों से भी वे पुकारे जाते हैं। इनकी प्रसिद्ध कृति ‘तिरुक्कुरल’ है। मानवीय जीवन के लिए उपयोगी अनेक तत्व इस में विद्यमान है। इसके पठन पाठन एवं पालन से मानसिक अंधकार दूर होता है। इस ग्रंथ को सभी धर्मों के लोग मानते हैं। इसमें कुल ‘133’ अधिकारम्’ है और प्रत्येक ‘अधिकारम्’ में दस-दस ‘कुरल’ हैं। प्रत्येक ‘अधिकारम’ में जीवन के लिए उपयोगी एक नैतिक मूल्य दिए गए है। प्रस्तुत छः ‘कुरल’ तिरुवल्लुवर कृत तिरुक्कुरल के पाँच विभिन्न ‘अधिकारम्’ लिए गए हैं।
वृष्टि
- जल ही जग का प्राण है, जल बिना सब निःसार।
वृष्टि बिना संभव नहीं, जन-जन सदाचार॥
सद्गृहस्थ
- नियमों के अनुसार जो रहता नित्य गृहस्थ।
पूजा जाता लोक में, देव तुल्य स्वर्गस्थ॥
प्रेम
- मेरा मेरा कहते वे जिनमें नहीं स्नेह।
प्रेमी करते भेंट है, अस्ति चर्ममय देह॥
संतान
- देन पिता को पुत्र को, मुख-मुख निकले बोल।
किस तप का है सुफल यहै, पुत्र रत्न अनमोल॥
बुराई – त्याग
- लज्जित कर दो दुष्ट को, उसका कर उपकार।
सब कुछ जाओ भूल फिर, यही सुजन प्रतिकार॥
कृतज्ञता
- ठीक नहीं है भूलना, जीवन भर उपकार।
किंतु उचित है भूलना, उसी घड़ी अपकार॥
- वृष्टि (वर्षा)
कुरल –
जल ही जग का प्राण है, जल बिना सब निःसार।
वृष्टि बिना संभव नहीं, जन-जन सदाचार॥
संदर्भ – यह ‘कुरल’ महान संत कवि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित ‘तिरुक्कुरल’ ग्रंथ के ‘वृष्टि’ नामक ‘अधिकारम्’ (अध्याय) से लिया गया है।
प्रसंग – यहाँ कवि ने सृष्टि में जल (वर्षा) के महत्त्व को रेखांकित किया है और बताया है कि भौतिक जीवन के साथ-साथ नैतिक जीवन के लिए भी वर्षा क्यों आवश्यक है।
व्याख्या – तिरुवल्लुवर कहते हैं कि जल ही इस संसार का प्राण है; जल के बिना इस जगत् में सब कुछ व्यर्थ और सारहीन है। जिस प्रकार प्राणियों के जीवन के लिए वर्षा आवश्यक है, उसी प्रकार वर्षा के बिना मनुष्यों में सदाचार संभव नहीं है। उनका आशय है कि जब प्रकृति समृद्ध होती है और लोगों की मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी होती हैं, तभी उनमें धार्मिक अनुष्ठान और नैतिक आचरण करने की भावना आती है। जल केवल भौतिक जीवन का आधार नहीं है, बल्कि यह मानवीय नैतिकता का भी आधार है।
- सद्गृहस्थ (उत्तम गृहस्थ जीवन)
कुरल –
नियमों के अनुसार जो रहता नित्य गृहस्थ।
पूजा जाता लोक में, देव तुल्य स्वर्गस्थ॥
संदर्भ – यह ‘कुरल’ तिरुवल्लुवर कृत ‘तिरुक्कुरल’ के ‘सद्गृहस्थ’ नामक ‘अधिकारम्’ से संकलित है।
प्रसंग – इसमें कवि ने उस गृहस्थ के महत्त्व का वर्णन किया है जो अपने जीवन में धार्मिक और सामाजिक नियमों का पालन करता है।
व्याख्या – कवि बताते हैं कि वह गृहस्थ जो अपने धर्म, कर्तव्य और सामाजिक नियमों का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करता है, वह इस लोक में पूजनीय हो जाता है। ऐसे व्यक्ति का सम्मान और आदर देवता के समान किया जाता है और उसे जीवित रहते हुए ही स्वर्गवासी माना जाता है। यहाँ कवि यह प्रेरणा देते हैं कि गृहस्थ जीवन केवल भोग का नहीं, बल्कि नियम, त्याग और कर्तव्य-पालन का माध्यम है, जिससे मनुष्य परम पद प्राप्त करता है।
- प्रेम
कुरल –
मेरा मेरा कहते वे जिनमें नहीं स्नेह।
प्रेमी करते भेंट है, अस्ति चर्ममय देह॥
संदर्भ – यह ‘कुरल’ ‘तिरुक्कुरल’ के ‘प्रेम’ नामक ‘अधिकारम्’ से उद्धृत है।
प्रसंग – यहाँ प्रेम के सच्चे स्वरूप का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि स्वार्थहीन प्रेम मनुष्य को किस सीमा तक निस्वार्थ बना देता है।
व्याख्या – तिरुवल्लुवर स्पष्ट करते हैं कि वे लोग जो स्नेह और प्रेम से रहित होते हैं, वे ही हर वस्तु को ‘मेरा-मेरा’ कहकर उस पर स्वामित्व जताते हैं। लेकिन जो व्यक्ति वास्तव में प्रेमी होता है, वह अपनी संपत्ति की तो क्या बात, वह तो अपनी यह हड्डियों और चमड़ी से बनी देह भी दूसरों की भलाई के लिए भेंट कर देता है। अर्थात्, सच्चा प्रेम मनुष्य को अहंकार और ममत्व से मुक्त करके, सर्वस्व त्यागने की भावना से भर देता है।
- संतान
कुरल –
देन पिता को पुत्र को, मुख-मुख निकले बोल।
किस तप का है सुफल यहै, पुत्र रत्न अनमोल॥
संदर्भ – यह ‘कुरल’ ‘तिरुक्कुरल’ के ‘संतान’ नामक ‘अधिकारम्’ से लिया गया है।
प्रसंग – इसमें एक पिता के लिए सबसे बड़े सौभाग्य और संतान के प्रति उसके कर्तव्य को व्यक्त किया गया है।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि एक पिता को उसके पुत्र की सबसे बड़ी देन यह होती है, जब लोग उस पुत्र के गुणों को देखकर मुख-मुख से यह बोलते हैं कि यह पुत्र किसी अनमोल रत्न के समान है। लोग उसके गुणों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि ऐसे गुणी पुत्र को जन्म देने का सौभाग्य पिता को किस महान तपस्या के फल के रूप में प्राप्त हुआ है। यह कुरल बताता है कि पिता का कर्तव्य संतान को गुणवान बनाना है, और पिता के लिए सबसे बड़ा आनंद तब होता है जब लोग संतान की श्रेष्ठता के कारण पिता का सम्मान करते हैं।
- बुराई – त्याग
कुरल –
लज्जित कर दो दुष्ट को, उसका कर उपकार।
सब कुछ जाओ भूल फिर, यही सुजन प्रतिकार॥
संदर्भ – यह ‘कुरल’ ‘तिरुक्कुरल’ के ‘बुराई – त्याग’ नामक ‘अधिकारम्’ से संकलित है।
प्रसंग – इस कुरल में शत्रु के प्रति सज्जन व्यक्ति के उचित व्यवहार और प्रतिशोध के स्वरूप को समझाया गया है।
व्याख्या – तिरुवल्लुवर कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे साथ बुराई या शत्रुता का व्यवहार करे, तो उसे पराजित करने या उससे बदला लेने का सबसे उत्तम तरीका यह है कि तुम उसका उपकार करो। तुम्हारा यह उपकार उसे लज्जित कर देगा और वह अपने कर्मों पर शर्मिंदा होगा। इसके बाद, उस व्यक्ति द्वारा किए गए अपकार को सब कुछ भूल जाना ही एक सज्जन व्यक्ति का वास्तविक और श्रेष्ठ प्रतिशोध होता है। यानी, दुर्जनता का उत्तर दुर्जनता से नहीं, बल्कि प्रेम और उपकार से देना चाहिए।
- कृतज्ञता
कुरल –
ठीक नहीं है भूलना, जीवन भर उपकार।
किंतु उचित है भूलना, उसी घड़ी अपकार॥
संदर्भ – यह ‘कुरल’ ‘तिरुक्कुरल’ के ‘कृतज्ञता’ नामक ‘अधिकारम्’ से लिया गया है।
प्रसंग – इसमें मानव जीवन में कृतज्ञता अर्थात् उपकार को याद रखना और कृतघ्नता अर्थात् अपकार को भूल जाना के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि किसी व्यक्ति द्वारा किए गए उपकार को पूरे जीवन भर भी भूल जाना उचित नहीं है; अर्थात् हमें हमेशा उपकार को याद रखना चाहिए। इसके विपरीत, किसी व्यक्ति द्वारा किए गए अपकार को तो उसी क्षण भूल जाना ही उचित है। यह कुरल मनुष्य को सकारात्मक और क्षमाशील दृष्टिकोण अपनाने की शिक्षा देता है। हमें कृतज्ञ बनना चाहिए, उपकार को हृदय में रखना चाहिए, और किसी के अपकार को तुरंत क्षमा करके मन को वैर-भाव से मुक्त कर देना चाहिए।
कठिन शब्दार्थ
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ | தமிழ் (Tamil) | English |
वृष्टि | वर्षा, मेघों से जल बरसना | மழை (Mazhai) | Rain, rainfall |
निःसार | व्यर्थ, सारहीन, बेकार | பயனற்ற (Payanarra) | Worthless, futile |
सदाचार | उत्तम आचरण, धर्मपरायणता | நற்போக்கு (Naṟpōkku) | Virtue, moral conduct |
गृहस्थ | घर में रहने वाला, परिवारधारी | இல்வாழ்க்கை (Ilvāḻkkai) | Householder, family man |
स्वर्गस्थ | स्वर्ग में स्थित, स्वर्गवासी | விண்ணுலக வாழ்பவர் (Viṇṇulaka vāḻpavar) | Heavenly, one in paradise |
स्नेह | प्रेम, लगाव, ममता | பாசம் (Pāsam) | Affection, love |
अस्ति-चर्ममय | हड्डी और चमड़ी से बना | எலும்பு-தோல் உடல் (Elumpu-tōl uḍal) | Made of bone and skin |
अनमोल | जिसकी कीमत न हो, अमूल्य | விலையேற்பெற்ற (Vilaiyēṟpeṟṟa) | Priceless, invaluable |
दुष्ट | पापी, बुरा व्यक्ति | தீயோன் (Tīyōṉ) | Wicked, evil person |
उपकार | भलाई करना, सहायता | உதவி (Uthavi) | Favor, kindness |
सुजन | सज्जन, अच्छा व्यक्ति | நல்லவர் (Nallavar) | Gentleman, virtuous person |
प्रतिकार | बदला, प्रतिशोध | பழிவாங்கல் (Paḻivāṅkal) | Retaliation, revenge |
कृतज्ञता | उपकार को याद रखना | நன்றியுணர்வு (Naṉṟiyuṇarvu) | Gratitude, thankfulness |
कृतघ्नता | उपकार भूलना, अकृतज्ञता | நன்றியின்மை (Naṉṟiyinmai) | Ingratitude, ungratefulness |
अपकार | बुराई, हानि | தீங்கு (Tīṅku) | Harm, injury |
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लिखिए –
- जन-जन में सदाचार किस से प्राप्त होता है?
उत्तर – जन-जन में सदाचार वृष्टि (वर्षा) से प्राप्त होता है, क्योंकि वर्षा से आई समृद्धि मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करती है और धार्मिक/नैतिक आचरण को संभव बनाती है।
- वृष्टि महिमा का सार क्या है?
उत्तर – वृष्टि महिमा का सार यह है कि जल ही संसार का प्राण है, और वर्षा न केवल भौतिक जीवन का आधार है, बल्कि यह मानवीय सदाचार और नैतिकता को भी संभव बनाती है।
- जल का महत्त्व समझाइए?
उत्तर – जल का महत्त्व यह है कि यह जगत् का प्राण है; जल के बिना इस संसार में सब कुछ निःसार अर्थात् व्यर्थ है।
- नियम – पालन से गृहस्थ लोक में क्या प्राप्त करता है?
उत्तर – नियम-पालन से गृहस्थ लोक में सम्मान, आदर प्राप्त करता है और देव तुल्य स्वर्गस्थ माना जाता है।
- नियमानुसार रहनेवाले लोग कैसे पूजे जाते हैं?
उत्तर – नियमानुसार रहनेवाले लोग देवता के समान पूजे जाते हैं।
- सद्गृहस्थ का लक्षण क्या है?
उत्तर – सद्गृहस्थ का लक्षण यह है कि वह अपने धर्म, कर्तव्य और सामाजिक नियमों के अनुसार नित्य जीवन व्यतीत करता है।
- प्रेमी का भेंट कैसा होता है?
उत्तर – प्रेमी का भेंट अस्ति चर्ममय देह अर्थात् हड्डियों और चमड़ी से बना अपना शरीर भी होता है, यानी वह सर्वस्व त्यागने को तैयार रहता है।
- प्रेम की महिमा क्या हैं?
उत्तर – प्रेम की महिमा यह है कि यह मनुष्य को ममत्व (‘मेरा-मेरा’) और अहंकार से मुक्त करके उसे सर्वस्व भेंट करने की भावना से भर देता है।
- स्नेह का परिभाषा दीजिए।
उत्तर – स्नेह का अभाव ममत्व पैदा करता है, जबकि सच्चा स्नेह व्यक्ति को अपनी देह तक दूसरों की भलाई के लिए भेंट करने को प्रेरित करता है।
- अनमोल रत्न क्या है?
उत्तर – पिता के लिए गुणवान पुत्र या संतान ही अनमोल रत्न है।
- मुख-सुख का लक्षण क्या है?
उत्तर – मुख-सुख का लक्षण यह है कि लोग मुख-मुख से पुत्र के गुणों की प्रशंसा करें और पिता को उसके जन्म के लिए महान तप का सुफल मानें।
- संतान महिमा का सार लिखिए।
उत्तर – संतान महिमा का सार यह है कि संतान को गुणी और श्रेष्ठ होना चाहिए, ताकि उसके गुण के कारण लोग उसके पिता को सौभाग्यशाली मानें।
- अच्छाई प्राप्त करने से क्या होता है?
उत्तर – दुष्ट व्यक्ति को अच्छाई प्राप्त करने से लज्जा आती है और वह अपने कर्मों पर शर्मिंदा होता है।
14 बुराई का उपकार क्या है?
उत्तर – बुराई का उपकार यह है कि दुष्ट व्यक्ति के साथ भलाई की जाए अर्थात् उसका उपकार किया जाए।
- दुष्ट को लज्जित करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर – दुष्ट को लज्जित करने के लिए उसका उपकार करना चाहिए।
16 कृतज्ञता किसे कहते है?
उत्तर – कृतज्ञता उस भाव को कहते हैं जिसमें जीवन भर उपकार को याद रखा जाता है और अपकार अर्थात् बुराई को उसी क्षण भूल दिया जाता है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
वृष्टि कुरल में जल को क्या कहा गया है?
a) जग का भार
b) जग का प्राण
c) जग का सौंदर्य
d) जग का अंत
उत्तर – b) जग का प्राण
सद्गृहस्थ कुरल के अनुसार नियम पालन करने वाला गृहस्थ किसके तुल्य पूजा जाता है?
a) राजा
b) देव
c) ऋषि
d) पिता
उत्तर – b) देव
प्रेम कुरल में ‘मेरा-मेरा’ कहने वाले कौन होते हैं?
a) स्नेहपूर्ण व्यक्ति
b) स्नेह रहित व्यक्ति
c) धनी व्यक्ति
d) त्यागी व्यक्ति
उत्तर – b) स्नेह रहित व्यक्ति
संतान कुरल में पुत्र को क्या कहा गया है?
a) पिता का भार
b) अनमोल रत्न
c) तप का दंड
d) बोल का स्रोत
उत्तर – b) अनमोल रत्न
बुराई-त्याग कुरल में दुष्ट का उपकार करने से क्या होता है?
a) वह क्रोधित होता है
b) वह लज्जित होता है
c) वह धनी होता है
d) वह भाग जाता है
उत्तर – b) वह लज्जित होता है
कृतज्ञता कुरल में अपकार को कब भूलना उचित है?
a) जीवन भर
b) उसी घड़ी
c) कभी नहीं
d) एक वर्ष बाद
उत्तर – b) उसी घड़ी
वृष्टि कुरल में सदाचार किसके बिना संभव नहीं?
a) धन के
b) वृष्टि के
c) परिवार के
d) मित्र के
उत्तर – b) वृष्टि के
सद्गृहस्थ कुरल में गृहस्थ को कैसा सुख प्राप्त होता है?
a) धन का
b) स्वर्ग के समान
c) यश का
d) स्वास्थ्य का
उत्तर – b) स्वर्ग के समान
प्रेम कुरल में सच्चा प्रेमी क्या भेंट करता है?
a) धन
b) अपनी देह
c) वस्त्र
d) भोजन
उत्तर – b) अपनी देह
संतान कुरल में पिता को पुत्र से क्या देन मिलती है?
a) मुख-मुख निकले बोल
b) धन
c) घर
d) भोजन
उत्तर – a) मुख-मुख निकले बोल
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘वृष्टि’ अध्याय में तिरुवल्लुवर ने जल के महत्त्व के बारे में क्या कहा है?
उत्तर – ‘वृष्टि’ अध्याय में तिरुवल्लुवर ने कहा है कि जल ही संसार का प्राण है; जल के बिना जीवन और सदाचार दोनों असंभव हैं।
प्रश्न 2. कवि के अनुसार भौतिक जीवन के साथ-साथ नैतिक जीवन के लिए वर्षा क्यों आवश्यक है?
उत्तर – कवि के अनुसार जब वर्षा होती है और लोग समृद्ध होते हैं, तभी उनमें धर्मपालन और नैतिक आचरण की भावना उत्पन्न होती है।
प्रश्न 3. ‘सद्गृहस्थ’ अध्याय में किस व्यक्ति को देवतुल्य कहा गया है?
उत्तर – ‘सद्गृहस्थ’ अध्याय में उस गृहस्थ को देवतुल्य कहा गया है जो नियम, धर्म और कर्तव्यों का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करता है।
प्रश्न 4. तिरुवल्लुवर के अनुसार गृहस्थ जीवन का क्या महत्त्व है?
उत्तर – तिरुवल्लुवर के अनुसार गृहस्थ जीवन केवल भोग का नहीं, बल्कि नियम, त्याग और कर्तव्य पालन का माध्यम है जिससे मनुष्य उच्च स्थान प्राप्त करता है।
प्रश्न 5. ‘प्रेम’ अध्याय में कवि ने सच्चे प्रेम की क्या पहचान बताई है?
उत्तर – कवि ने बताया है कि सच्चा प्रेम वही है जिसमें व्यक्ति स्वार्थ छोड़कर अपनी देह तक दूसरों के लिए अर्पित करने को तैयार रहता है।
प्रश्न 6. ‘संतान’ अध्याय में पिता के लिए सबसे बड़ा सौभाग्य क्या बताया गया है?
उत्तर – ‘संतान’ अध्याय में पिता का सबसे बड़ा सौभाग्य यह बताया गया है कि लोग उसके पुत्र के गुणों की प्रशंसा करके उसे अनमोल रत्न कहें।
प्रश्न 7. ‘संतान’ अध्याय से हमें पिता का कौन-सा कर्तव्य ज्ञात होता है?
उत्तर – ‘संतान’ अध्याय से हमें ज्ञात होता है कि पिता का कर्तव्य अपनी संतान को गुणवान, सभ्य और सम्माननीय बनाना है।
प्रश्न 8. ‘बुराई – त्याग’ अध्याय में दुर्जनता का उत्तर कैसे देने की शिक्षा दी गई है?
उत्तर – इस अध्याय में बताया गया है कि दुर्जनता का उत्तर दुर्जनता से नहीं, बल्कि उपकार और क्षमा से देना चाहिए।
प्रश्न 9. तिरुवल्लुवर के अनुसार किसी के उपकार और अपकार के प्रति मनुष्य का व्यवहार कैसा होना चाहिए?
उत्तर – तिरुवल्लुवर के अनुसार मनुष्य को उपकार को जीवनभर याद रखना चाहिए और अपकार को उसी क्षण भूल जाना चाहिए।
प्रश्न 10. ‘कृतज्ञता’ अध्याय हमें कौन-सा नैतिक संदेश देता है?
उत्तर – ‘कृतज्ञता’ अध्याय हमें यह नैतिक संदेश देता है कि हमें हमेशा उपकार को स्मरण रखना चाहिए और क्षमाशील होकर अपकार को भूल जाना चाहिए।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- वृष्टि कुरल का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर – जल संसार का प्राण है। जल बिना सब व्यर्थ है। वर्षा बिना भौतिक जीवन असंभव है और नैतिक जीवन में सदाचार भी नहीं आता। समृद्धि से मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी होने पर ही धार्मिक अनुष्ठान व नैतिकता संभव होती है।
- सद्गृहस्थ कुरल में गृहस्थ को देवतुल्य क्यों कहा गया?
उत्तर – जो गृहस्थ नियम, कर्तव्य व सामाजिक धर्म का पालन करता है, वह लोक में पूजनीय हो जाता है। उसका सम्मान देवता जैसा होता है और जीते जी स्वर्ग सुख प्राप्त करता है। यह कर्तव्य-पालन से परम पद की प्रेरणा देता है।
- प्रेम कुरल में स्नेह रहित व्यक्ति की पहचान क्या है?
उत्तर – स्नेह रहित व्यक्ति हर वस्तु को ‘मेरा-मेरा’ कहकर स्वामित्व जताते हैं। प्रेमी अपनी देह तक भेंट कर देते हैं। सच्चा प्रेम अहंकार व ममत्व से मुक्त कर सर्वस्व त्याग की भावना भरता है।
- संतान कुरल में पिता का सबसे बड़ा सौभाग्य क्या है?
उत्तर – पुत्र के गुणों से लोग मुख-मुख प्रशंसा करें कि वह अनमोल रत्न है। पिता को किस तप के फल से ऐसा पुत्र मिला। पिता का कर्तव्य संतान को गुणवान बनाना है, जिससे उसका सम्मान हो।
- बुराई-त्याग कुरल में सज्जन का प्रतिशोध क्या है?
उत्तर – दुष्ट का उपकार कर उसे लज्जित करना और उसके अपकार को भूल जाना। दुर्जनता का उत्तर दुर्जनता से नहीं, प्रेम व भलाई से देना। यह सज्जन का श्रेष्ठ प्रतिकार है जो शत्रु को शर्मिंदा करता है।
- कृतज्ञता कुरल में उपकार और अपकार के प्रति क्या सलाह है?
उत्तर – उपकार को जीवन भर याद रखो, किंतु अपकार को उसी क्षण भूल जाओ। यह कृतज्ञता व क्षमाशीलता सिखाता है। सकारात्मक दृष्टि अपनाकर वैर-भाव से मुक्त होकर मन शांत रखें।
- वृष्टि कुरल में वर्षा को नैतिक जीवन से कैसे जोड़ा गया?
उत्तर – वर्षा से प्रकृति समृद्ध होती है, मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी होती हैं। तब ही मनुष्य में धार्मिक अनुष्ठान व सदाचार की भावना आती है। जल केवल भौतिक नहीं, नैतिकता का आधार भी है।
- सद्गृहस्थ कुरल से गृहस्थ जीवन की प्रेरणा क्या मिलती है?
उत्तर – गृहस्थ जीवन भोग नहीं, नियम, त्याग व कर्तव्य-पालन का माध्यम है। इससे मनुष्य लोक में पूजनीय होकर देवतुल्य सम्मान व स्वर्ग सुख प्राप्त करता है। यह परम पद का मार्ग है।
- प्रेम कुरल में सच्चा प्रेम क्या सिखाता है?
उत्तर – सच्चा प्रेम ‘मेरा’ के अहंकार से मुक्त कर देता है। प्रेमी अपनी हड्डी-चमड़ी की देह तक दूसरों की भलाई के लिए भेंट कर देते हैं। यह निस्वार्थ त्याग की भावना भरता है।
- संतान कुरल में पिता के कर्तव्य का वर्णन कैसे है?
उत्तर – पिता का कर्तव्य संतान को गुणवान बनाना है। जब लोग पुत्र को अनमोल रत्न कहकर पिता की तपस्या की प्रशंसा करें, तब पिता को सबसे बड़ा आनंद व सम्मान मिलता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- वृष्टि कुरल की व्याख्या करते हुए जल के भौतिक एवं नैतिक महत्त्व को समझाइए।
उत्तर – तिरुवल्लुवर कहते हैं कि जल जग का प्राण है; बिना जल के सब निःसार है। वर्षा बिना जीवन संभव नहीं। भौतिक रूप से वर्षा अन्न, जल प्रदान करती है। नैतिक रूप से समृद्धि से आवश्यकताएँ पूरी होने पर सदाचार, धर्म-पालन की भावना आती है। जल सृष्टि का आधार होने से नैतिकता भी उसी पर निर्भर है। यह प्रकृति व मानव दोनों के लिए आवश्यक है।
- सद्गृहस्थ कुरल से गृहस्थ जीवन के आदर्शों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – कवि कहते हैं कि नियमों से गृहस्थ जीवन बिताने वाला लोक में देवतुल्य पूज्य होता है और स्वर्ग सुख प्राप्त करता है। गृहस्थ केवल भोग नहीं, कर्तव्य, त्याग, धर्म-पालन का माध्यम है। सामाजिक नियमों का पालन से सम्मान मिलता है। यह प्रेरणा देता है कि गृहस्थाश्रम से परम पद प्राप्त किया जा सकता है, जो जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है।
- प्रेम कुरल में सच्चे प्रेम के स्वरूप की चर्चा कीजिए।
उत्तर – स्नेह रहित व्यक्ति ‘मेरा-मेरा’ कहकर स्वामित्व जताते हैं। सच्चा प्रेमी अपनी संपत्ति क्या, हड्डी-चमड़ी की देह तक भलाई के लिए भेंट कर देता है। प्रेम अहंकार, ममत्व से मुक्त कर निस्वार्थ त्याग सिखाता है। यह मनुष्य को सर्वस्व दान की सीमा तक ले जाता है, जहां स्वार्थ का लेश नहीं रहता। तिरुवल्लुवर प्रेम को त्याग का पर्याय बताते हैं।
- संतान कुरल के आधार पर पिता-संतान संबंध एवं पिता के कर्तव्य पर विचार कीजिए।
उत्तर – पिता को पुत्र की सबसे बड़ी देन मुख-मुख प्रशंसा है कि वह अनमोल रत्न है और पिता को किस तप के फल से मिला। पिता का कर्तव्य संतान को गुणवान, श्रेष्ठ बनाना है। इससे पिता का सम्मान बढ़ता है। यह बताता है कि संतान पिता की तपस्या का फल है और गुणों से पिता को अमरत्व प्रदान करती है।
- बुराई-त्याग एवं कृतज्ञता कुरल से सज्जन व्यवहार की शिक्षा पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – दुष्ट का उपकार कर लज्जित करना और अपकार भूल जाना सज्जन का प्रतिकार है। उपकार जीवन भर याद रखो, अपकार उसी क्षण भूलो। यह क्षमा, कृतज्ञता व प्रेम सिखाता है। दुर्जनता का उत्तर भलाई से देकर वैर-मुक्ति प्राप्त होती है। तिरुवल्लुवर सकारात्मक दृष्टि अपनाकर मन को शांत रखने की प्रेरणा देते हैं, जो समाज में सद्भाव बढ़ाता है।

