(जन्म: सन् 1886 ई. : निधन सन् 1964 ई.)
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झाँसी जिले के चिरगाँव में हुआ था। बाल्यावस्था से ही कविता में इनकी रुचि थी। इनकी प्रारंभिक रचनाएँ हिंदी की पत्रिका ‘सरस्वती’ में प्रकाशित हुई। महावीरप्रसाद द्विवेदी के प्रोत्साहन ने इनके कवि व्यक्तित्व का परिष्कार कर दिया। राम भक्ति में सराबोर पारिवारिक संस्कारों ने इन्हें राम- काव्य लिखने के लिए प्रोत्साहित किया और तत्कालीन राष्ट्रीय परिस्थितियों से प्रभावित होकर इनकी कविताओं में राष्ट्रीय चेतना और स्वदेश गौरव की गूंज सुनाई देने लगी। इसी कारण ये राष्ट्रकवि के संबोधन से प्रसिद्ध हुए।’भारत-भारती’, ‘साकेत’, ‘पंचवटी’, ‘यशोधरा’, ‘विष्णुप्रिया’ आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। हिंदी साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में अनुपम योगदान के कारण इन्हें 1954 में ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया गया तथा राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया।
प्रस्तुत काव्य ‘भारत-भारती से लिया गया है. जिसमें तीन खंड में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य चित्रित है। गुप्तजी ने भारत के अतीत का गौरवशाली चित्र प्रस्तुत किया है और इन्हीं विशेषताओं के आधार पर उसे विश्व के सिरमौर पद पर प्रतिष्ठापित किया है। इस काव्य में कवि ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति का गौरव गान किया है। इसके साथ-साथ आर्यों के महान जीवन आदर्शों का भी चित्रण किया है।
भारत- गौरव
भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला- स्थल कहाँ?
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल जहाँ।
सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है?
उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन? भारतवर्ष है॥
हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,
ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है?
भगवान की भवभूतियों का यह प्रथम भण्डार है?
विधि ने किया नर सृष्टि का पहले यही विस्तार है।
यह पुण्यभूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी आर्य हैं,
विद्या, कला-कौशल सबके जो प्रथम आचार्य हैं।
सन्तान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े,
पर चिह्न उनकी उच्चता के आज भी कुछ हैं खड़े।
वे आर्य ही थे जो कभी अपने लिए जीते न थे;
वे स्वार्थ रत हो मोह की मदिरा कभी पीते न थे।
संसार के उपकार हित जब जन्म लेते थे सभी,
निश्चेष्ट होकर किस तरह वे बैठ सकते थे कभी?
भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला- स्थल कहाँ?
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल जहाँ।
सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है?
उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन? भारतवर्ष है॥
व्याख्या – कवि मैथिलीशरण गुप्त प्रश्न के रूप में यह पूछते हैं कि धरती का सबसे गौरवशाली, प्राकृतिक रूप से पवित्र और सुंदर स्थल कौन-सा है? इसका उत्तर वे स्वयं ही देते हैं कि यह वही भूमि है जहाँ हिमालय पर्वत अपनी मनोहरता के साथ विस्तृत है और जहाँ पवित्र गंगा नदी प्रवाहित होती है। इसके बाद कवि पुनः एक प्रश्न करते हैं कि विश्व के अन्य सभी देशों की तुलना में किस देश की उन्नति सबसे अधिक है? इसका उत्तर वे यह कहते हुए देते हैं कि वही देश सबसे श्रेष्ठ है जो ऋषियों की भूमि है। अंत में वे स्पष्ट करते हैं कि यह देश भारतवर्ष है, जो न केवल प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी महान है।
भारत-भारती की इन पंक्तियों के माध्यम से भारत की महिमा का वर्णन किया गया है। भारत केवल एक भू-खंड नहीं, बल्कि एक पावन तपोभूमि है, जहाँ ऋषि-मुनियों ने ज्ञान और तपस्या के माध्यम से पूरी मानवता को मार्गदर्शन दिया है। हिमालय की ऊँचाइयाँ इसकी भव्यता को दर्शाती हैं और गंगा का पावन जल इसकी पवित्रता को प्रमाणित करता है। भारत न केवल प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी सर्वोच्च स्थान रखता है।
हाँ, वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है,
ऐसा पुरातन देश कोई विश्व में क्या और है?
भगवान की भवभूतियों का यह प्रथम भण्डार है?
विधि ने किया नर सृष्टि का पहले यही विस्तार है।
व्याख्या – कवि मैथिलीशरण गुप्त गर्वपूर्वक कहते हैं कि भारतवर्ष प्राचीन काल से ही संपूर्ण संसार में सर्वोपरि रहा है। यह देश केवल भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि अपने ज्ञान, संस्कृति और सभ्यता के कारण भी संसार का नेतृत्व करता रहा है। वे यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या संपूर्ण विश्व में भारत जैसा कोई अन्य प्राचीन और महान देश है? स्पष्ट रूप से, उनका उत्तर यही है कि भारत अतुलनीय है और अन्य किसी भी देश की तुलना में अधिक पुरातन तथा गौरवशाली है। कवि आगे कहते हैं कि भारत ईश्वर की अपार विभूतियों का प्रथम भंडार है। अर्थात् भगवान ने अपनी दिव्य शक्तियों और कृपाओं को सबसे पहले इसी भूमि पर प्रकट किया। यह वही देश है जहाँ मानव सभ्यता का प्रथम विकास हुआ और जहाँ मानव जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए धर्म, ज्ञान, योग, वेद, उपनिषद, दर्शन आदि का उदय हुआ। ईश्वर की सृष्टि के विकास का प्रारंभ भी इसी भूमि से हुआ, क्योंकि विधाता (सृष्टिकर्ता) ने मानव जीवन का सबसे पहला विस्तार भारत में ही किया। कुल मिलाकर इस पद में भारतवर्ष की प्राचीनता, आध्यात्मिक श्रेष्ठता और दिव्यता को उजागर किया गया है। भारत न केवल सभ्यता और संस्कृति का जन्मस्थल है, बल्कि ईश्वरीय कृपा का प्रथम केंद्र भी है। यह देश वेदों, ऋषियों, संतों, तपस्वियों और योगियों की भूमि है, जिसने सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान, धर्म, नीति और मानवता का मार्ग दिखाया है। इसलिए भारत को संसार का ‘सिरमौर’ (सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र) कहा गया है।
यह पुण्यभूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी आर्य हैं,
विद्या, कला-कौशल सबके जो प्रथम आचार्य हैं।
सन्तान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े,
पर चिह्न उनकी उच्चता के आज भी कुछ हैं खड़े।
व्याख्या – मैथिलीशरण गुप्त जी कहते हैं कि भारतवर्ष एक पुण्यभूमि (पवित्र भूमि) है, जिसे अपने सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों के कारण विश्व में ख्याति प्राप्त है। इस भूमि के निवासी आर्य हैं, अर्थात् वे लोग जो श्रेष्ठ गुणों से संपन्न, उच्च विचारों वाले और धार्मिक प्रवृत्ति के हैं। भारत केवल भौगोलिक रूप से ही महान नहीं है, बल्कि इसके निवासियों ने विद्या, कला और कौशल में भी विश्व का मार्गदर्शन किया है। वे इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि भारत के ऋषि-मुनि, आचार्य और विद्वान समस्त विश्व के पहले गुरु थे, जिन्होंने शिक्षा, विज्ञान, अध्यात्म और कला में अद्वितीय योगदान दिया। परंतु आज की स्थिति को देखते हुए कवि दुख व्यक्त करते हुए कहते हैं कि आज उनकी संतान अर्थात् हम भारतीय पतन को प्राप्त हो गए हैं। पहले जो देश ज्ञान, योग, दर्शन, साहित्य, विज्ञान और नीति का केंद्र था, वह आज कई समस्याओं में उलझा हुआ है। हालाँकि हम अपने पूर्वजों की उच्चता तक नहीं पहुँच पाए, फिर भी उनके महान कार्यों और उपलब्धियों के कुछ चिह्न आज भी विद्यमान हैं। अर्थात् उनके द्वारा स्थापित ज्ञान, परंपराएँ, स्थापत्य कला, ग्रंथ, संस्कृति और धार्मिक धरोहरें आज भी इस देश की गौरवशाली अतीत की साक्षी हैं। ये पंक्तियाँ वास्तव में हमें हमें अपने गौरव को पुनः स्थापित करने की प्रेरणा देते हैं।
वे आर्य ही थे जो कभी अपने लिए जीते न थे;
वे स्वार्थ रत हो मोह की मदिरा कभी पीते न थे।
संसार के उपकार हित जब जन्म लेते थे सभी,
निश्चेष्ट होकर किस तरह वे बैठ सकते थे कभी?
व्याख्या – मैथिलीशरण गुप्त जी कहते हैं कि वे सच्चे आर्य थे जो कभी केवल अपने स्वार्थ या व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं जीते थे। उनका जीवन त्याग, सेवा और परोपकार के सिद्धांतों पर आधारित था। वे स्वार्थपरक जीवन जीने वाले नहीं थे, न ही वे मोह और माया में लिप्त होकर भौतिक सुखों की लालसा रखते थे। इसके विपरीत, वे मदिरा रूपी मोह, अज्ञान और सांसारिक भटकावों से दूर रहते थे और हमेशा अपने जीवन को उच्चतम लक्ष्यों के लिए समर्पित करते थे। उनका जन्म केवल संसार के उपकार के लिए हुआ था। वे व्यक्तिगत लाभ या सुख-सुविधाओं के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के कल्याण के लिए कार्य करते थे। जब उनके जीवन का उद्देश्य ही दूसरों की भलाई था, तो वे निष्क्रिय होकर, निठल्ले बैठ ही नहीं सकते थे। वे निरंतर कर्म में संलग्न रहते थे, क्योंकि उनका धर्म ही सेवा, कर्तव्य और परमार्थ था। ये पंक्तियाँ हमें अपने प्राचीन महान पूर्वजों से प्रेरणा लेने और परोपकार व कर्मशीलता को अपनाने का संदेश देती है।
गौरव – सम्मान, प्रतिष्ठा
भू-लोक – संसार, दुनिया
लीला स्थल – महान पुरुषों की क्रीड़ा भूमि
उत्कर्ष – उन्नति, प्रगति
सिरमौर – श्रेष्ठ
पुरातन – प्राचीन
भवभूति – संसार का वैभव
विधि – ब्रह्मा, सृष्टि की रचना करनेवाला देवता
आचार्य – शिक्षक, आदर्श आचार को आचरण में लानेवाला
अधोगति – अवनति दयनीय दशा
स्वार्थरत – केवल अपना ही लाभ देखनेवाला
मदिरा – शराब, मद्य
संसार – दुनिया
निश्चेष्ट – निष्क्रिय, चेष्टारहित
1. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
(1) भारत को प्रकृति का लीला स्थल क्यों कहा है?
उत्तर – भारत में श्वेत हिमालय पर्वत है जो भारत के शीश के समान है और गंगा जैसी पवित्र नदियाँ हैं जिसके कारण इस देश को प्रकृति का लीला-स्थल कहा गया है।
(2) भारतवर्ष को वृद्ध क्यों कहा गया है?
उत्तर – भारतवर्ष को वृद्ध कहा गया है क्योंकि यह विश्व का सबसे प्राचीन देश है।
(3) विधाता ने नर- सृष्टि का विस्तार कहाँ से किया है?
उत्तर – विधाता ने नर- सृष्टि का विस्तार भारत देश से किया है।
(4) आर्य किन-किन विषयों के आचार्य थे?
उत्तर – आर्य सभी तरह की विद्याओं व कलाओं के आचार्य थे।
(5) आर्यों की संतान आज किस स्थिति में जी रही है?
उत्तर – आर्यों की संतान आज अधोगति की ओर जाती हुई शोचनीय स्थिति में जी रही है।
(6) आर्यों की क्या विशेषताएँ रही हैं?
उत्तर – आर्यों की विशेषताएँ हैं कि वे परोपकारी होते हैं, पूरी दुनिया का कल्याण ही अपना धर्म समझते हैं, वे कभी निष्क्रिय नहीं होते हैं।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के पाँच-छह वाक्यों में उत्तर दीजिए :-
(1) गुप्तजी ने भारत के गौरव को किस रूप में हमारे सामने रखा है?
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्तजी कहते हैं कि भारत प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल है। यह ऋषि-मुनियों की पावन भूमि है। यह विद्याओं और कलाओं का केंद्र है। यह विश्व का अति प्राचीन देश है। भारत ही संसार का सिरमौर है। ईश्वर की कृपाओं व भव-भूतियों का सबसे पहला भंडार भारतवर्ष ही है। यहाँ के निवासी आर्यों की यह पवित्र भूमि है। आर्यों ने ही सम्पूर्ण संसार को अपने परिवार का अंग माना है। विश्व कल्याण की भावना से आर्यगण सदा ओत-प्रोत रहे हैं।
(2) भारतवासियों के बारे में गुप्तजी क्या कहते हैं?
उत्तर – भारतवासियों के बारे में गुप्तजी कहते हैं कि हम भारतवासी आर्यों की संतानें हैं। एक समय था जब आर्यगण विद्या और कला-कौशल में सबसे आगे थे। उनके ज्ञान के बूते पर ही भारत विश्व का सिरमौर बना हुआ था। भारत देश को ज्ञान केंद्र और धर्मस्थापना का उद्गम स्थल माना जाता था। परंतु आज हम आर्य संतान होने के बावजूद भी दैहिक, भौतिक और व्यक्तिगत सुखों को प्राथमिकता देकर अधोगति में पड़े हुए हैं। आज शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोग विदेश जाना पसंद कर रहे हैं, विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में हम पिछड़ गए हैं। भारत के उच्च आदर्शों को मटियामेट कर चुके हैं।
3. योग्य विकल्प द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :-
(1) भारत को ___________ कहा गया है।
(क) ऋषिभूमि
(ख) तपोभूमि
(ग) वीरभूमि
उत्तर – (क) ऋषिभूमि
(2) वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का ___________ है।
(क) तिलक
(ख) आभूषण
(ग) सिरमौर
उत्तर – (ग) सिरमौर
(3) विधि ने ___________ का विस्तार यहीं से किया है।
(क) नरसृष्टि
(ख) जीवसृष्टि
(ग) पशुसृष्टि
उत्तर – (क) नरसृष्टि
(4) भारत के निवासी ___________ हैं।
(क) मंगोल
(ख) आर्य
(ग) शक
उत्तर – (ख) आर्य
(5) आर्यों की संतानों की आज ___________ हो गई है।
(क) अधोगति
(ख) उन्नति
(ग) अवगति
उत्तर – (क) अधोगति
4. ‘क’ विभाग को ‘ख’ विभाग के साथ उचित रूप में जोड़ते हुए पूरा वाक्य लिखिए :-
‘क’ ‘ख’
(1) वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का (1) उत्कर्ष है।
(2) विद्या कला कौशल के (2) प्रथम भंडार है।
(3) सम्पूर्ण देशों से अधिक भारत का (3) सिरमौर है।
(4) भगवान की भवभूति का (4) दुनिया में कोई दूसरा नहीं है।
(5) भारत जैसा पुरातन देश (5) आर्य हैं।
(6) भारत के निवासी (6) प्रथम आचार्य आर्य हैं।
उत्तर –
(1) वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का (3) सिरमौर है।
(2) विद्या कला कौशल के (6) प्रथम आचार्य आर्य हैं।
(3) सम्पूर्ण देशों से अधिक भारत का (1) उत्कर्ष है।
(4) भगवान की भवभूति का (2) प्रथम भंडार है।
(5) भारत जैसा पुरातन देश (4) दुनिया में कोई दूसरा नहीं है।
(6) भारत के निवासी (5) आर्य हैं।
5. भाव स्पष्ट कीजिए :-
(1) वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है।
उत्तर – कवि मैथिलीशरण गुप्त इस पंक्ति में गर्वपूर्वक कहते हैं कि भारतवर्ष प्राचीन काल से ही संपूर्ण संसार में सर्वोपरि रहा है। यह देश केवल भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि अपने ज्ञान, संस्कृति और सभ्यता के कारण भी संसार का नेतृत्व करता रहा है। वे यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या संपूर्ण विश्व में भारत जैसा कोई अन्य प्राचीन और महान देश है? स्पष्ट रूप से, उनका उत्तर यही है कि भारत अतुलनीय है और अन्य किसी भी देश की तुलना में अधिक पुरातन तथा गौरवशाली है। कवि आगे कहते हैं कि भारत ईश्वर की अपार विभूतियों का प्रथम भंडार है। इसलिए भारत को संसार का ‘सिरमौर’ कहा गया है।
(2) भगवान की भवभूतियों का यह प्रथम भण्डार है।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि ईश्वर की सृष्टि के विकास का प्रारंभ भी इसी पावन भूमि से हुआ, क्योंकि विधाता ने मानव जीवन का सबसे पहला विस्तार भारत में ही किया। भारत न केवल सभ्यता और संस्कृति का जन्मस्थल है, बल्कि ईश्वरीय कृपा का प्रथम केंद्र भी है। यह देश वेदों, ऋषियों, संतों, तपस्वियों और योगियों की भूमि है, जिसने संपूर्ण विश्व को ज्ञान, धर्म, नीति और मानवता का मार्ग दिखाया है।
6. शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए:
अधोगति –ऊर्ध्वगति
वृद्ध – तरुण
पुरातन – नूतन
प्रथम – अंतिम
विस्तार – संकीर्ण, संकुचन
पुण्यभूमि – पापभूमि
उत्कर्ष – अपकर्ष
उच्च – निम्न
7. शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए :-
हिमालय – हिमगिरि, हिमाच्छादित
गंगा – जाह्नवी, त्रिपथगा
गिरि – पर्वत, भूधर
भूमि – भू, धरती
विश्व – दुनिया, संसार
मदिरा – सोमरस, शराब
भारत – गौरव से संबंधित कविताओं का संकलन कीजिए।
उत्तर – भारत की माटी, सोना है,
हर कण में इतिहास बसा,
शौर्य, प्रेम, बलिदान की गाथा,
हर युग ने यहाँ लिखा।
गंगा, यमुना, नर्मदा की धारा,
संस्कृति का गीत सुनाती है,
योग, वेद, उपनिषदों की गूँज,
दुनिया को राह दिखाती है।
चंद्रगुप्त, अशोक महान,
रण में दिखाया जोश जहाँ,
झाँसी की रानी की तलवार,
गूँजी थी बनकर आग वहाँ।
वेदों का ज्ञान, विज्ञान की शक्ति,
नवयुग का करता निर्माण,
विश्वगुरु बन चमक रहा है,
भारत का स्वाभिमान।
जय जवान, जय किसान,
हर दिल में उमंग वही,
भारत माता की शान में,
गूँज उठे हर गली-गली।
वंदे मातरम्!
‘भारत देश’ पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर – भारत देश
भूमिका –
भारत एक महान राष्ट्र है, जिसे इसकी संस्कृति, सभ्यता, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण पूरे विश्व में विशेष स्थान प्राप्त है। यह देश प्राचीन काल से ही ज्ञान, विज्ञान, कला और आध्यात्मिकता का केंद्र रहा है। विविधता में एकता, धार्मिक सहिष्णुता और समृद्ध सांस्कृतिक परंपराएँ भारत की पहचान हैं।
भौगोलिक विशेषताएँ –
भारत एशिया महाद्वीप में स्थित है और यह क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है। इसके उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत स्थित है, जो इसे प्राकृतिक रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। दक्षिण में हिंद महासागर, पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी भारत को एक महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक स्थान प्रदान करती है। भारत की जलवायु विविधताओं से भरी हुई है, जहाँ रेगिस्तान, मैदान, पहाड़ और समुद्र तट सभी प्रकार के स्थल मिलते हैं।
इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर –
भारत का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। यह वही भूमि है जहाँ मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी प्राचीन सभ्यताएँ विकसित हुईं। वैदिक काल में यहाँ वेदों और उपनिषदों की रचना हुई, जिन्होंने पूरी दुनिया को ज्ञान का प्रकाश दिया। बौद्ध धर्म और जैन धर्म की उत्पत्ति भी इसी पावन भूमि पर हुई। मौर्य, गुप्त, चोल, मुगल और मराठा साम्राज्य जैसे शासकों ने इस देश की संस्कृति को समृद्ध बनाया।
भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। यहाँ विभिन्न धर्मों, भाषाओं और परंपराओं का संगम देखने को मिलता है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी यहाँ प्रेम और सौहार्द के साथ रहते हैं। नृत्य, संगीत, वास्तुकला और साहित्य की दृष्टि से भी भारत अद्वितीय है।
भारत की स्वतंत्रता और लोकतंत्र –
भारत ने 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की। महात्मा गांधी, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल जैसे महान नेताओं के संघर्ष और बलिदान के कारण भारत आज एक स्वतंत्र राष्ट्र है। 26 जनवरी 1950 को भारत ने अपने संविधान को लागू किया और एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना।
आर्थिक और वैज्ञानिक प्रगति –
आज भारत तेजी से विकास कर रहा है। कृषि, उद्योग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत ने महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। इसरो (ISRO) के माध्यम से भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान में उल्लेखनीय सफलता पाई है। आईटी और सॉफ्टवेयर उद्योग में भी भारत विश्व में अग्रणी देशों में शामिल है। आर्थिक सुधारों के कारण भारत एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति बन रहा है।
भारतीय समाज और शिक्षा –
भारतीय समाज पारिवारिक मूल्यों और आध्यात्मिकता पर आधारित है। यहाँ शिक्षा को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। आधुनिक भारत में विज्ञान, चिकित्सा, इंजीनियरिंग और प्रबंधन के क्षेत्र में उत्कृष्ट संस्थान स्थापित किए गए हैं, जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।
उपसंहार –
भारत केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है। इसकी सांस्कृतिक विरासत, ऐतिहासिक गौरव, वैज्ञानिक उपलब्धियाँ और सामाजिक मूल्यों ने इसे एक विशिष्ट स्थान दिलाया है। हमें अपने देश की गरिमा को बनाए रखने के लिए सदैव प्रयासरत रहना चाहिए और इसे एक विकसित एवं समृद्ध राष्ट्र बनाने में योगदान देना चाहिए।