(जन्म सन् 1924)
रामदरश मिश्रजी हिंदी साहित्य के प्रथम कोटि के साहित्यकार है। आपने कहानियाँ, काव्य एवं उपन्यास आदि क्षेत्रों में अपनी कलम चलाई है। आपके बहुचर्चित उपन्यास हैं- जल टूटता हुआ और ‘पानी के प्राचीर’ आपकी कविताओं के संग्रह हैं- ‘बैरंग- बेनाम चिट्टियाँ’, ‘पक गई हैं धूप’, ‘जुलूस कहाँ जा रहा है?’, ‘आम के पत्ते’। आपके कहानी संग्रह हैं- ‘खाली घर’, ‘बसंत का एक दिन’, ‘इकसठ कहानियाँ’, तथा ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’। ‘आम के पत्ते’ काव्य संग्रह को व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया है। आपका हिंदी अकादमी के शिखर सम्मान एवं उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान के भारतभारती पुरस्कार से प्रतिष्ठित किया गया है।
‘एक यात्रा यह भी’- कहानी में रिक्शावाले से परिचित होने पर उसके जीवन की घटनाओं से नारी के प्रति उसका दृष्टिकोण देखकर तथा जीवन में उतारे गए कर्तव्यबोध से प्रेरणा प्राप्त होती है स्त्रीसम्मान, स्त्री सुरक्षा एवं आत्मीयतापूर्ण संबंधों को खूबी से प्रस्तुत किया गया है जो अत्यंत प्रेरक है।
एक यात्रा यह भी
मैं बहुत यात्रा – भीरु हूँ। यात्रा पर निकलते समय डर बना होता है कि पता नहीं कैसे-कैसे लोगों से पाला पड़ेगा। सबसे बड़ी असहजता तो अनुभव होती है अंट-शंट किराया माँगनेवाले ऑटोवालों से। नए शहर में कैसे- कैसे लोग मिलेंगे, यह चिंता भी बनी होती है।
तो इस बार एक डॉक्टर से मिलने के लिए ग्वालियर जाना पड़ गया। पत्नी साथ थी, इसलिए आश्वस्ति बनी हुई थी। स्टेशन पर उतरते ही ऑटोवाले पीछे पड़ गए। हम चुपचाप आगे बढ़ते रहे। एक नवयुवक ऑटोवाला साथ लग गया। हम कुछ बोले बिना आगे बढ़ते रहे कि उसकी आवाज आई,”बाबूजी, आप आखिर कहीं जाएँगे ही और कोई ऑटो करेंगे ही, तो फिर मेरा ऑटो क्यों नहीं?”उसकी जिद और आवाज में कुछ ऐसा आकर्षण महसूस हुआ कि मैंने स्वीकृति दे दी।
वह प्रेम-भरी बातें करता रहा और हमें डॉक्टर के यहाँ पहुँचा दिया। उसके द्वारा बताए वांछित पैसे देकर डॉक्टर के घर की कॉल बेल बजाई। ज्ञात हुआ कि डॉक्टर ने क्लीनिक की जगह बदल दी है।
ऑटोवाला बिना हमारे कहे हमारा इंतजार कर रहा था। हमें नई जगह पर पहुँचा दिया। मैंने पूछा, “कितने पैसे दे दूँ?”
बाबूजी, “जो इच्छा हो दे दीजिए। वैसे डॉक्टर के घर से यहाँ तक का किराया तो अतिरिक्त हो गया न।”
उसने पूछा, “बाबूजी यहाँ से कहाँ जाएँगे?”मैंने होटल का नाम बता दिया और कहा, “भाई, तुम जाओ, यहाँ देर लग सकती है।”
वह कुछ बोला नहीं। हम डॉक्टर के पास चले गए। घंटा भर बाद निकले तो देखा, वह वहीं खड़ा था। अब हमें महसूस होने लगा था कि यह ऑटोवाला कुछ और है। वह हमारे भीतर घर करता गया। होटल पर छोड़कर उसने पूछा, “फिर कब आऊँ?”
“यानी”
“यानी आप शहर में घूमेंगे फिरेंगे न? आपको जहाँ जाना होगा, ले चलूँगा। वैसे यहाँ कब तक हैं?”
“कल शताब्दी से लौटेंगे।”
“तो आपको घुमाने के लिए कब आ जाऊँ?”
“भई, आज तो थके हैं। आराम करेंगे, कल घूमेंगे।”
“ठीक है बाबूजी, यह रहा मेरा मोबाइल नंबर, मुझे फोन करके बुला लीजिएगा।”
“अरे, तुमने अपना नाम तो बताया ही नहीं।”
“मोहन।”
मोहन अच्छा नाम है।”
दूसरे दिन घूमने का कार्य शुरू हो गया। वह बहुत प्रेम से एक के बाद एक स्थान दिखाता गया। मुझे
‘बाबूजी’ और पत्नी को ‘अम्माँ’ नाम से संबोधित करता रहा। घूम-घूमाकर होटल पर लौटे तो चाय पीने के लिए उसे भी कमरे में बुला लिया। वह बहुत संकोच के साथ आया। चाय-पान के साथ हमारी पारिवारिक वार्ता शुरू हो गई। पत्नी ने पूछा, “बेटे, तुम ग्वालियर के हो?”
“नहीं अम्माँ! मैं मूलतः आगरा का हूँ। यहाँ आना पड़ गया।”
हमें लगा कि वह यह कहते-कहते कुछ भर आया है। इसलिए चुप रहे, लेकिन वह स्वयं बोलने लगा, “आगरा में अपना घर है। माँ-बाप तो बचपन में ही गुज़र गए, बड़े भाई ने मेरी परवरिश की। भाई वकील हैं। मैं भी बी. ए. पास हूँ। कोई नौकरी खोज रहा था कि…”
एक चुप्पी सी छा गईं। हमें लगा कि इसके साथ कोई अवांछित घटना घटी है। उसे छेड़ा नहीं, किंतु उसने फिर कहना शुरू किया, “मैं नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। एक दिन भटककर लौट रहा था कि रास्ते में एक परिचित लड़की मिल गई, बदहवास सी, घिघियाती हुई बोली, “मोहन, मुझे बचा लो।”
“क्यों, क्या हुआ?”
“मेरे माँ-बाप एक अधेड़ के हाथ मुझे बेच रहे हैं। मैं कुएँ में गिरकर जान दे दूँगी, किंतु उस खूसट अधेड़ के साथ नहीं जाऊँगी।”
“मैं बहुत असमंजस में पड़ गया। क्या करूँ? कर भी क्या सकता हूँ। मुझे लगा कि स्टेशन चलना चाहिए। वहाँ उसे ले गया और थानेदार से हकीकत बयान की। वे कुछ देर सोचते रहें कि क्या किया जा सकता है।”
थानेदार साहब बोले, “इसकी एफ. आई. आर. लिखकर इसके माँ-बाप को हवालात में बंद कर देता, लेकिन फ़िलहाल चिंता इस लड़की की है कि आखिर इसके लिए क्या किया जाए?”
एक छोटी सी चुप्पी के बाद वे एकाएक बोले, “तुम्हारी शादी हो गई है?”मैंने न में सिर हिलाया। तो बोले, “तुम इससे शादी क्यों नहीं कर लेते?”
मैं तो इस आकस्मिक प्रस्ताव से चकरा गया, किंतु कुछ पल बाद लगा कि इसमें बुराई क्या हैं। मैंने कहा, “सर, इससे तो पूछ लीजिए।”
थानेदार ने उससे पूछा तो उसने स्वीकृति – सूचक सिर हिला दिया। “लेकिन।”
“लेकिन क्या मोहन?”
“बाबूजी, लेकिन यह कि भाभी अपनी बहन से मेरी शादी कराना चाहती रहीं। बात तय हो चुकी थी।”“फिर?”
“बाबूजी, मैंने सोचा, भाभीजी की बहन से तो कोई भी अच्छा आदमी शादी कर लेगा। वहाँ कोई संकट नहीं है, लेकिन इस लड़की की तो जिंदगी खतरे में है। लड़की सुंदर भी है, परिचित भी और सबसे अहम बात यह कि वह संकट मैं है। इससे विवाह करना प्रीतिकर भी होगा और मानवीय भी। लेकिन…
“फिर लेकिन?”
“हाँ, अब समस्या यह कि विवाह एकदम तो न हो जाएगा। यदि लड़की घर गई तो फिर वही बेच दिए जाने का संकट। मैं साथ ले जाऊँ तो भैया-भाभी तो नाराज होंगे ही, इसके माँ-बाप मेरे ऊपर लड़की भगाने का केस कर देंगे। जब मैंने थानेदार के सामने यह समस्या रखी तो वे बोले, कुछ दिन के लिए इसे नारी निकेतन में रखवा देता हूँ। लड़की से माँ-बाप के खिलाफ शिकायत लिखवाकर रख लेता हूँ।”
“पंद्रह दिन बाद उन्होंने मंदिर में उससे मेरी शादी करवा दी।”
मैंने कहा, “मोहन, ऐसे थानेदार कहाँ होते हैं। मुझे तो इस घटना पर विश्वास ही नहीं हो रहा है। लगता है, कथा सुन रहा हूँ।”
“आप सही कह रहे हैं बाबूजी, लेकिन यह थानेदार कवि भी है। कवि सम्मेलनों में कविताएँ पढ़ता है और इसकी कविताएँ मानवीय संवेदना से भरी होती हैं।”
“हाँ, तब ठीक है। भाई, हर क्षेत्र में कोई न कोई मसीहा दिखाई पड़ ही जाता है। हाँ, तब।”
“तब यह कि मेरे भाई-भाभी मुझसे खफा हो गए और हमें घर से निकाल दिया। एक तो मैंने उनकी साली से शादी नहीं की, दूसरे जिस लड़की से की, वह किसी और जाति की है।”
“तो तुम लोग ग्वालियर आ गए।”
“हाँ, बाबूजी, आगरा में हमारा निबाह होना कठिन था। पराए शहर में भले ही कोई अपनापन न हो, किंतु यह परायापन उस अपनेपन से अच्छा है न, जो दिन-रात अप्रीतिकर व्यवहार बनकर तन-मन को उद्विग्न करता रहे।”
“हाँ, सही कह रहे हो।”
“तो यहाँ कोई नौकरी तो रखीं नहीं थीं। बस ऑटो का दामन थाम लिया और उसी के सहारे चल रहा हूँ।”
“वास्तव में तुम बहुत बड़े हो मोहन। बड़े-बड़े लोग तो नारी हित में बड़े-बड़े लैक्चर देते हैं, लेख- कविताएँ लिखते रहते हैं, किंतु अपने व्यवहार में नहीं उतारते। लेकिन तुमने तो बहुत सहज भाव से एक लड़की को दुर्दशाग्रस्त होने से बचा लिया और अपने जीवन के साथ उसे सम्मानपूर्वक लगा लिया।”
“बाबूजी, इस कार्य से मुझे भी बहुत संतोष मिला। मैंने तो एक बार उसका उद्धार किया, किंतु वह तो प्रायः मुझे संकटों से उबारती रहती है।”
मोहन की यह कहानी हम पर छा गई और वह हमारे मन में कितना बड़ा हो गया।
गाड़ी का समय हो रहा था। मोहन हमें लेकर स्टेशन आ गया। उसे मैं पाँच सौ रुपए का नोट देने लगा। वह बोला, “रहने दीजिए बाबूजी।”
“अरे यह तुम्हारा पारिश्रमिक है, कोई दान थोड़े ही दे रहा हूँ।”
“बाबूजी, मैंने माँ-बाप का प्यार नहीं पाया। कल से ही लग रहा है कि मुझे माँ-बाप मिल गए हैं। इस सुख के आगे पैसे का तो कुछ भी मोल नहीं है। पैसा तो और लोगों से कमा ही लेता हूँ।”
“बेटे, लेकिन मेरी भी तो सोचो। मैं बेटे का शोषण कैसे कर सकता हूँ?”
“लेकिन यह तो बहुत है। इतना लूँगा तो आपका शोषण हो जाएगा।”यह कहकर वह पाँच सौ का नोट लेकर तीन सौ वापस करने लगा।
बोला, “मुझे इतना पराया न कीजिए, बाबूजी हाँ, जब भी ग्वालियर आइएगा, मुझे बुला लीजिएगा। मेरा फोन नंबर तो आपके पास है ही।”
‘लेकिन मेरी एक शर्त है।”
“वह क्या बाबूजी?”
“ये पाँच सौ रुपए चुपचाप तुम्हें लेने ही पड़ेंगे।
उसने तीन सौ रुपए अपनी जेब में रख लिए। जैसे कह रहा हो ‘यह कैसी शर्त आपने रख दी बाबूजी।’ कुछ क्षण बाद बोला, “बाबूजी, आपका फोन नंबर तो मेरे फोन पर आ ही गया है। कभी-कभी फोन करता रहूँ क्या?”
“हाँ-हाँ भाई, शौक से मुझे अच्छा लगेगा।”
“लेकिन आपका नाम तो मैंने पूछा ही नहीं।”“मैं हूँ सत्यकेतु और पत्नी हैं कामना।”
और जब हम स्टेशन के अंदर जाने लगे तब वह आँखें में न जाने कितना अपनापन लिए हमें निहारता रहा।
शब्दार्थ और टिप्पणी
यात्रा-भीरु – यात्रा से डरनेवाला
अंट-शंट – मरजी में आए ऐसा, निरंकुश
आश्वस्ति – आश्वासन, तसल्ली
वांछित – इच्छा अनुसार
इन्तजार – प्रतीक्षा
बाट – राह
अतिरिक्त – उपरांत
छेड़ना – उकसाना
खूसट – अप्रिय
अधेड़ – आधे उम्र का प्रौढ
हवालात – जेल
अहम बात – मुख्य बात
प्रीतिकर – मनभावन
संवेदना – पीड़ा
मसीहा – देवदूत
उबारना – बचाना, से बाहर निकालना
मुहावरे
पाला पड़ना – संबंध जुड़ना
चुप्पी-सी छा जाना – शांति छा जाना,
असमंजस में पड़ जाना – दुविधा में पड़ना, क्या करूँ क्या न करूँ यह समझ में न आना
निबाह होना – घर खर्च निकलाना
उद्विग्न करना – पीड़ा देना
1.प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर दीजिए :-
(1) लेखक को ग्वालियर क्यों जाना पड़ा?
उत्तर – लेखक को एक डॉक्टर से मिलने के लिए ग्वालियर जाना पड़ा।
(2) लेखक के न कहने पर भी ऑटोवाला उनका इन्तजार क्यों करने लगा?
उत्तर – लेखक के न कहने पर भी ऑटोवाला उनका इंतजार करने लगा क्योंकि वह ऑटोवाला भला व्यक्ति था और उसे पता था कि डॉक्टर से मिलने के बाद ये दंपति होटल तो जाएँगे ही।
(3) लड़की ने मोहन से घिघियाते हुए क्या कहा?
उत्तर – लड़की ने मोहन से घिघियाते हुए कहा कि “दया करके मुझे बचा लो।”
(4) मोहन लड़की से विवाह करने क्यों तैयार हो गया?
उत्तर – मोहन लड़की से विवाह करने को तैयार हो गया क्योंकि वह सुंदर भी थी, सुशील भी थी और संकट में भी थी।
(5) थानेदार की क्या विशेषता थी?
उत्तर – थानेदार की विशेषता यह थी कि एक अच्छा थानेदार होने के साथ-साथ वह मानवीय संवेदनाओं से भरी कविताएँ भी लिखता था।
(6) मोहन ने ज्यादा पैसे लेने से क्यों इन्कार किया?
उत्तर – मोहन ने ज्यादा पैसे लेने से इंकार किया क्योंकि उन्हें लेखक और उनकी पत्नी में अपने माँ-पिता की परछाई दिखने लगी। दूसरा कारण यह भी था कि किराया सचमुच उसे ज़्यादा दिया जा रहा था।
2. प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर दीजिए :-
(1) लेखक ने ऑटोवाले की बात को स्वीकृति क्यों दी?
उत्तर – ग्वालियर में उतरने के बाद जब ऑटोवाले ने उन्हें अपने रिक्शे में बैठने के लिए कहा तो लेखक उसकी आवाज़ के आकर्षण में आकर उसके ऑटो में जाने की स्वीकृति दे दी।
(2) मोहन की पारिवारिक स्थिति क्या थी?
उत्तर – मोहन का घर आगरा में था। बचपन में ही माँ-बाप के गुजर जाने के बाद बड़े भाई ने पाल-पोस कर उसे बड़ा किया था। उसका बड़ा भाई वकील था और उसकी शादी हो चुकी थी। मोहन ने भी बी.ए. पास कर रखा था और नौकरी की तलाश में था।
(3) लड़की किस बात के लिए तैयार नहीं थी? क्यों?
उत्तर – लड़की, माँ-बाप के द्वारा चुने गए एक अधेड़ उम्र के आदमी के साथ जाने को तैयार नहीं थी। लड़की को यह नागवार महसूस हो रहा था। उसे लग रहा था कि इस तरह तो उसकी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी।
(4) लेखक मोहन को बहुत बड़ा क्यों बताते हैं?
उत्तर – लेखक मोहन को बहुत बड़ा बताते हैं क्योंकि लोग केवल नारी-हित की बातें करते हैं पर उन्हें व्यवहार में नहीं लाते। इसके ठीक विपरीत मोहन ने एक ऐसी लड़की को अपनी पत्नी बनाया जो संकट में थी, उसकी जाति की भी नहीं थी और इस वजह से उसका अपने परिवार वालों से साथ भी छूट गया।
3. विस्तार से उत्तर दीजिए :-
(1) लेखक यात्रा से क्यों डरते थे?
उत्तर – लेखक को यात्रा करना अच्छा नहीं लगता था। यात्रा पर निकलते समय वे सोचते कि रास्ते में न जाने कैसे-कैसे लोग मिलेंगे? नए शहर के लोगों का कैसा व्यवहार होगा? सबसे अधिक परेशानी उन्हें ऑटोवालों के बारे में सोचकर होती थी। दूसरे शहर के ऑटोवाले मनमाना किराया माँगेंगे। इन्हीं सब कारणों से लेखक यात्रा से डरते थे।
(2) मोहन का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर – मोहन का चरित्र चित्रण कुछ इस प्रकार अच्छे से किया जा सकता है –
आत्मीय – मोहन आत्मीय गुणों वाला युवक है। उसकी आवाज़ में ईमानदारी की झलक है। वह दूसरे ऑटोवाले की तरह नहीं है बल्कि सज्जनता का मान रखने वाला है।
जिम्मेदार – मोहन एक जिम्मेदार युवक है। नौकरी न मिलने पर बेरोजगार न रहकर वह ऑटो चलाता है। मुसीबत में पड़ी लड़की की वह केवल मदद ही नहीं करता बल्कि उससे विवाह भी करता है।
ईमानदार – वह कभी भी किसी सवारी से ज़्यादा किराया नहीं लेता। यहाँ तक कि जब लेखक उसे प्यार से ज़्यादा किराया दे रहे थे तो भी वह लेने से हिचकिचा रहा था।
(3) लेखक के साथ मोहन ने अपनापन कैसा जताया?
उत्तर – लेखक के साथ मोहन ने अनेक तरीके से अपनापन जताया। पहले तो मोहन ने लेखक को डॉक्टर के नए पते पर पहुँचाया और लेखक के कहने पर भी वह नहीं गया और उनका इंतज़ार करता रहा ताकि उन्हें होटल तक पहुँचा सके। अगले दिन भी वह पूरी आत्मीयता से उन्हें शहर घूमाने का प्रस्ताव देता है। अंत में जब मोहन उन्हें रेलवे स्टेशन छोड़ने जाता है तो लेखक के द्वारा दिया जाने वाला 500 रुपए वह न लेकर तीन सौ उन्हें वापस करते हुए कहता है कि मुझे पराया न बनाइए। मुझे आप दोनों में अपने माता-पिता की परछाई दिखती है।
4. निम्नलिखित विधान किसने किससे और क्यों कहा?
(1) “इससे विवाह करना प्रीतिकर भी होगा और मानवीय भी।”
उत्तर – यह कथन मोहन ने थानेदार से कहा था क्योंकि लड़की सुंदर, सुशील और संकट में भी थी।
(2) भाई हर क्षेत्र में कोई न कोई मसीहा दिखाई पड़ ही जाता है।
उत्तर – यह कथन लेखक ने मोहन से कहा था क्योंकि थानेदार ने मसीहा का रूप लेकर संकट में पड़ी लड़की की शादी मोहन से कराने में मदद की थी।
(3) मुझे इतना पराया न कीजिए, बाबूजी?
उत्तर – यह विधान मोहन ने बाबूजी अर्थात् लेखक से कहा है क्योंकि वे मोहन को उचित किराया से कहीं अधिक किराया दे रहे थे।
5. सही शब्द चुनकर योग्य उत्तर दीजिए।
(1) ऑटोवाले ने लेखक को नई जगह पर पहुँचा दिया, क्योंकि…
(अ) लेखक को दूसरी जगह घूमने जाना था।
(ब) वहाँ डॉक्टर हाज़िर नहीं था।
(क) डॉक्टर ने क्लीनिक की जगह बदल दी थीं।
उत्तर – (क) डॉक्टर ने क्लीनिक की जगह बदल दी थीं।
(2) बात करते हुए मोहन रुक गया और चुप्पी सी छा गई, क्योंकि….
(अ) कोई अवांछित घटना घटी थी।
(ब) नौकरी की तलाश में उसे आगरा से भटकते हुए ग्वालियर आना पड़ा।
(क) उसे एक लड़की मिल गई।
उत्तर – (अ) कोई अवांछित घटना घटी थी।
(3) लेखक को मोहन की बात कहानी – कथा सुन रहे हो, ऐसी लगी, क्योंकि…
(अ) लेखक सोचने लगे कि कोई थानेदार ऐसा सह्रद व्यवहार कर सकता है?
(ब) लेखक को मोहन की बात पर विश्वास नहीं आ रहा था।
(क) मोहन कोई कहानी सुना रहा था।
उत्तर – (अ) लेखक सोचने लगे कि कोई थानेदार ऐसा सह्रद व्यवहार कर सकता है?
(4) मोहन ने ज्यादा पैसे लेने से इन्कार कर दिया, क्योंकि…
(अ) मोहन चाहता था कि उसे इतना पराया न समझा जाय।
(ब) वह परिश्रम से ज्यादा पैसे लेने के पक्ष में नहीं था।
(क) वह चाहता था कि लेखक दूबारा ग्वालियर आए तो उसके ही आँटों का उपयोग करें।
उत्तर – (अ) मोहन चाहता था कि उसे इतना पराया न समझा जाय।
6. निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग कीजिए :-
(1) पाला पड़ना – चोर को पता नहीं है कि किस पुलिस से उसका पाला पड़ा है।
(2) असमंजस में पड़ना – मेडिकल करे या इंजीनियरिंग बारहवीं पास करने के बाद छात्र इसी असमंजस में पड़े रहते हैं।
(3) दामन थाम लेना – जीवन भर धोखे खाने के बाद रमेश ने अब ईमानदारी का दामन थाम लिया है।
7. निम्नलिखित शब्दों के विरोधी शब्द दीजिए :-
वांछित – अवांछित
परिचित – अपरिचित
समस्या – समाधान
मसीहा – शैतान
प्रीति – बैर
संतोष – असंतोष
शोषण – पोषण
मैं ऑटोवाला होता तो…. विषय पर छात्र अपने विचार व्यक्त करे।
उत्तर – यदि मैं एक ऑटोवाला होता, तो मेरी जिंदगी रोज़ नए लोगों से मिलते और उन्हें उनके गंतव्य तक पहुँचाते हुए गुजरती। मेरा दिन सुबह जल्दी शुरू होता, जब मैं अपनी सवारी के इंतज़ार में सड़क पर निकलता। लोगों को उनके कार्यस्थल, स्कूल, रेलवे स्टेशन और बाज़ार तक सुरक्षित पहुँचाना मेरी जिम्मेदारी होती।
मुझे अपनी ईमानदारी और मेहनत पर गर्व होता क्योंकि मैं अपनी सेवा के माध्यम से समाज का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनता। यात्रियों से बातचीत के दौरान उनकी कहानियाँ सुनने का अवसर मिलता, जिससे मुझे जीवन के अलग-अलग पहलुओं को समझने का मौका मिलता।
यदि मैं ऑटोवाला होता, तो मैं अपनी सवारी के साथ-साथ शहर की सड़कों, ट्रैफिक नियमों और यात्रियों की सुविधा का भी पूरा ध्यान रखता। जरूरतमंद लोगों की मदद करना, बुजुर्गों को कम किराए में सवारी देना और मुसाफिरों को सही मार्गदर्शन देना मेरी प्राथमिकता होती।
मेरे लिए मेरा ऑटो सिर्फ एक वाहन नहीं, बल्कि मेरा सहायक और रोज़गार का साधन होता। मैं इसे अच्छी तरह से संभालता, ताकि यात्रियों को आरामदायक सफर का अनुभव हो। एक ईमानदार और खुशमिजाज ऑटोवाला बनकर मैं अपने परिवार की जरूरतें पूरी करता और अपने काम पर गर्व महसूस करता।
– नारी सशक्तीकरण-छात्रों से एवं नारी सुरक्षा के विषय में साहित्य सामग्री का संग्रह करवाइए।
उत्तर – नारी सशक्तीकरण किसी भी समाज और राष्ट्र की प्रगति का महत्त्वपूर्ण आधार है। जब महिलाएँ शिक्षित, आत्मनिर्भर और सशक्त होती हैं, तो समाज में समानता और समृद्धि का विकास होता है। छात्रों को बचपन से ही नारी सम्मान और उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए, जिससे वे समाज में महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपना सकें। शिक्षा, आत्मरक्षा, और आर्थिक स्वतंत्रता महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होती है।
नारी सुरक्षा भी सशक्तीकरण का एक अनिवार्य पहलू है। समाज में महिलाओं को सुरक्षित माहौल देना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि वे निर्भय होकर अपने सपनों को साकार कर सकें। आत्मरक्षा प्रशिक्षण, सख्त कानून, और सामाजिक जागरूकता महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। यदि छात्र इस विषय पर गंभीरता से सोचें और अपने व्यवहार में परिवर्तन लाएँ, तो एक ऐसा समाज बनाया जा सकता है जहाँ महिलाओं को समान अवसर और सुरक्षा मिले। नारी का सम्मान ही सशक्त समाज की पहचान है।
– किसी व्यक्ति का साक्षात्कार करने के लिए प्रश्नसूची तैयार करें।
उत्तर – साक्षात्कार का उद्देश्य और साक्षात्कार दिए जाने वाले व्यक्ति के अनुसार प्रश्न अलग हो सकते हैं। नीचे एक सामान्य प्रश्नसूची दी गई है जिसे आदर्शरूप माना जा सकता है।
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कृपया अपना संक्षिप्त परिचय दें।
आपकी शिक्षा और पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है?
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समाज में बदलाव लाने के लिए आप क्या प्रयास कर रहे हैं?
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आने वाले वर्षों में आप अपने क्षेत्र में क्या नया करना चाहते हैं?
आपके जीवन का सबसे बड़ा सपना क्या है?
क्या कोई ऐसी योजना है जिसे आप आने वाले समय में साकार करना चाहते हैं?
– छात्रों के द्वारा किसी व्यक्ति का परिचय लिखवाइए।
उत्तर – शिक्षक इसे अपने स्तर पर करवाए।
– किसी घटना का रिपोर्ट तैयार करवाइए।
उत्तर – शीर्षक: हिंदी दिवस – हमारी भाषा, हमारी पहचान
प्रस्तावना –
हर वर्ष 14 सितंबर को पूरे भारत में हिंदी दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें हिंदी भाषा के महत्त्व और उसकी सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाता है। 14 सितंबर 1949 को हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा मिला था, और इसी उपलक्ष्य में यह दिवस मनाया जाता है।
कार्यक्रम का विवरण –
इस वर्ष हमारे विद्यालय में हिंदी दिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और सरस्वती वंदना से हुई। विद्यालय के प्रधानाचार्य ने हिंदी भाषा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान का प्रतीक है।
इसके बाद विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें निबंध लेखन, कविता पाठ, भाषण प्रतियोगिता, वाद-विवाद, और नाटक प्रमुख रहे। छात्रों ने हिंदी के विकास, इसके वैश्विक प्रभाव और डिजिटल युग में हिंदी की बढ़ती भूमिका पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
मुख्य आकर्षण –
हिंदी कविता पाठ प्रतियोगिता, जिसमें छात्रों ने महान कवियों की रचनाएँ प्रस्तुत की।
नाटक प्रदर्शन, जिसमें हिंदी भाषा के महत्त्व को रोचक तरीके से दिखाया गया।
हिंदी प्रश्नोत्तरी, जिसमें छात्रों ने हिंदी भाषा, साहित्य और व्याकरण से जुड़े सवालों के उत्तर दिए।
समापन एवं संदेश –
कार्यक्रम के अंत में प्रधानाचार्य ने सभी विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए और हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि हमें गर्व के साथ हिंदी का प्रयोग करना चाहिए और इसे आधुनिक युग में भी आगे बढ़ाना चाहिए।
निष्कर्ष –
हिंदी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और भावनाओं का परिचायक भी है। हमें हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयासरत रहना चाहिए और इसे वैश्विक मंच पर और अधिक सशक्त बनाना चाहिए।
“हिंदी है पहचान हमारी, भारत माँ की शान हमारी!”