Gujrat State Board, the Best Hindi Solutions, Class IX, Neeti Ke Dohe, Raheem नीति के दोहे (दोहे) रहीम

(जन्म : लगभग 1553 ई. निधन सन् 1626 ई.)

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। उनके पिता का नाम बैरम खाँ था जो अकबर के अभिभावक थे। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम की कार्यक्षमता और बुद्धिमत्ता से अकबर बहुत प्रभावित थे और इसीलिए उन्होंने रहीम को अपने दरबार का महामंत्री का सर्वोच्च पद प्रदान किया था। रहीम संस्कृत, अरबी, फारसी के विद्वान थे। दानी के रूप में बहुविख्यात है। जीवन के व्यावहारिक अनुभवों को उन्होंने अपनी ‘सतसई’ में व्यक्त किया है।

प्रथम दोहे में परहित की भावना, दूसरे दोहे में सही संबंध की रीत और सच्चा प्यार, तीसरे दोहे में छोटी चीज़ का महत्त्व, चौथे दोहे में सही दीनबंधु की बात की गई है। पाँचवे दोहे में कड़वे वचन बोलनेवाले की स्थिति का वर्णन है। छठवें दोहे में उत्तम व्यक्ति की प्रवृत्ति, सातवें दोहे में बिगड़ी हुई बात को छोड़ देने की, आठवें दोहे में धैर्य का महत्त्व तथा अंतिम दोहे में किसी से माँगना नहीं चाहिए इस बात को उद्धृत किया है

नीति के दोहे

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।

कहि रहीम परकाज हित, सम्पत्ति सुचहिं सुजान॥1॥

कहिं रहीम सम्पत्ति सगे बनत बहुत बहु रीत।

बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत॥2॥

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करे तरवारि॥3॥

दीन सबनको लखत हैं, दीनहिं लखे न कोय।

जो रहीम दौनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय॥4॥

खीरा को मुँह काटिकै मलियत नोन लगाय।

रहिमन करुए मुखन की चहिए यही सजाय॥5॥

जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकृत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥6॥

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।

रहिमन बिगर दूध को, भथे न माखन होय॥7॥

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।

हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥8॥

रहिमन वे नर मर चुके, जे कहूँ माँगन जाहिं।

उनसे पहिले वे मुएँ, जिन मुख निकसत नाहिं॥9॥

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं न पान।

कहि रहीम परकाज हित, सम्पत्ति सुचहिं सुजान॥1॥

व्याख्या – इस दोहे में रहीम ने परोपकार और दानशीलता का महत्त्व बताया है। जैसे पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते, बल्कि दूसरों को देते हैं, और जलाशय स्वयं अपना जल नहीं पीते, बल्कि सभी के लिए उपलब्ध कराते हैं—वैसे ही सच्चे ज्ञानी और महान लोग अपनी संपत्ति और संसाधनों का उपयोग केवल अपने लिए नहीं करते, बल्कि समाज और जरूरतमंदों की भलाई के लिए भी करते हैं। जो व्यक्ति अपने पास उपलब्ध संसाधनों को केवल खुद तक सीमित रखता है, वह स्वार्थी होता है। जबकि बुद्धिमान और महान लोग अपनी संपत्ति को दूसरों के कल्याण के लिए उपयोग करते हैं, जिससे वे समाज में सम्मान और आदर प्राप्त करते हैं।

कहिं रहीम सम्पत्ति सगे बनत बहुत बहु रीत।

बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत॥2॥

व्याख्या – इस दोहे में रहीम ने सच्चे और झूठे मित्रों की पहचान करने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय बताया है। जब किसी व्यक्ति के पास धन-संपत्ति होती है, तो उसे चाहने वाले बहुत से लोग आ जाते हैं, जो उसके साथ प्रेम और अपनापन दिखाते हैं। लेकिन जब वह व्यक्ति किसी संकट में पड़ता है, तो अधिकांश लोग साथ छोड़ देते हैं। केवल वही मित्र या रिश्तेदार सच्चे होते हैं, जो कठिन परिस्थितियों में भी सहायता करने के लिए खड़े रहते हैं। इसीलिए, सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय ही होती है, ठीक वैसे ही जैसे सोने की शुद्धता को परखने के लिए उसे कसौटी पर कसा जाता है।

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करे तरवारि॥3॥

व्याख्या – इस दोहे में रहीम यह महत्त्वपूर्ण जीवन-प्रेरणा देते हैं कि हर व्यक्ति या वस्तु का अपना एक विशेष महत्त्व होता है। अक्सर लोग केवल बड़े और शक्तिशाली चीजों या व्यक्तियों को महत्त्व देते हैं और छोटी चीजों की उपेक्षा करते हैं। लेकिन कई परिस्थितियों में छोटी चीजें ही अधिक उपयोगी साबित होती हैं, जैसे- कपड़े सिलने के लिए हमें सुई की जरूरत होती है, वहाँ तलवार किसी काम की नहीं होती। इसी प्रकार, जीवन में छोटे व्यक्ति, वस्तुएँ या कार्य भी महत्त्वपूर्ण होते हैं और उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

दीन सबनको लखत हैं, दीनहिं लखे न कोय।

जो रहीम दौनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय॥4॥

व्याख्या – इस दोहे में रहीम ने समाज की एक महत्त्वपूर्ण सच्चाई को उजागर किया है। आमतौर पर, हर कोई गरीबी और जरूरतमंदों को देखता है, लेकिन बहुत कम लोग होते हैं जो उनके दुख को समझते हैं और उनकी सहायता करने के लिए आगे बढ़ते हैं। सच्चा मानव वही है जो सिर्फ देखने तक सीमित न रहे, बल्कि संवेदनशील होकर उनकी सहायता करे। यही सच्चे परोपकार और करुणा का प्रतीक है। ऐसे व्यक्ति को “दीनबंधु” कहा जाता है, जो गरीबों का वास्तविक मित्र और संरक्षक होता है।

खीरा को मुँह काटिकै मलियत नोन लगाय।

रहिमन करुए मुखन की चहिए यही सजाय॥5॥

व्याख्या – इस दोहे में रहीम ने खीरे का उदाहरण देकर यह समझाया है कि जैसे खीरे को खाने से पहले उसके कड़वेपन को दूर करने के लिए नमक लगाया जाता है, वैसे ही कटु वचन बोलने वाले या रूखा व्यवहार करने वाले लोगों को भी उचित व्यवहार और सुधार की आवश्यकता होती है। अर्थात्, जो लोग दूसरों से कठोर या कटु शब्दों में बात करते हैं, उन्हें दंड या सुधारात्मक व्यवहार मिलना चाहिए ताकि वे अपनी भाषा और व्यवहार को मधुर बना सकें। यह दोहा यह भी सिखाता है कि हर व्यक्ति को अपने शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए क्योंकि कटु वचन किसी के भी मन को आहत कर सकते हैं।

जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकृत कुसंग।

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥6॥

व्याख्या – रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति स्वभाव से उत्तम चरित्र वाला होता है, वह अगर कभी बुरे लोगों (कुसंगति) के संपर्क में आ भी जाए, तो भी उसका स्वभाव नहीं बदलता। ठीक उसी प्रकार जैसे चंदन के वृक्ष से सर्प लिपटे रहते हैं, लेकिन उनके विष का प्रभाव चंदन पर नहीं पड़ता। इस दोहे में रहीम ने एक गहरी नैतिक शिक्षा दी है। वे बताते हैं कि जो व्यक्ति सच्चे गुणों से संपन्न होता है, वह कभी भी बुरी संगति का प्रभाव नहीं लेता। ठीक वैसे ही जैसे चंदन के पेड़ से जहरीले साँप लिपटे रहते हैं, लेकिन चंदन अपने शीतल और सुगंधित गुणों को बनाए रखता है और सर्प के विष से प्रभावित नहीं होता।

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।

रहिमन बिगर दूध को, भथे न माखन होय॥7॥

व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि यदि कोई बात या संबंध एक बार बिगड़ जाता है, तो चाहे कितना भी प्रयास कर लिया जाए, उसे पहले जैसा नहीं बनाया जा सकता। ठीक वैसे ही जैसे यदि दूध फट जाए, तो लाख कोशिश करने पर भी उससे मक्खन नहीं निकाला जा सकता। वास्तव में रहीम इस दोहे में संबंधों की नाज़ुकता पर ज़ोर दे रहे हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने रिश्तों और कार्यों में संयम और समझदारी रखनी चाहिए, ताकि वे न बिगड़ें। क्योंकि एक बार यदि संबंधों में दरार आ जाए या कोई बात बिगड़ जाए, तो उसे पहले जैसा करना बहुत कठिन होता है। इसलिए हमें सोच-समझकर बोलना और व्यवहार करना चाहिए ताकि रिश्ते स्नेहपूर्ण बने रहें।

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।

हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥8॥

व्याख्या – रहीम कहते हैं कि संकट (विपत्ति) अगर थोड़े समय के लिए आए तो वह अच्छी होती है। क्योंकि इसी विपत्ति के समय में व्यक्ति को अपने सच्चे मित्र (हितैषी) और शत्रु (अहितकारी) की पहचान होती है। सुख के समय सभी साथ होते हैं, लेकिन विपत्ति आने पर ही असली पहचान होती है कि कौन अपने हैं और कौन पराए। वास्तव में यह दोहा हमें सिखाता है कि जीवन में कठिनाइयों को केवल नकारात्मक दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। संकट हमें अपने आसपास के लोगों के वास्तविक स्वभाव को समझने का अवसर देता है। जो व्यक्ति कठिन समय में भी साथ खड़ा रहता है, वही सच्चा मित्र होता है, जबकि स्वार्थी लोग ऐसे समय में दूर हो जाते हैं। इसलिए थोड़े समय के लिए आई विपत्ति हमें सच्चे-झूठे रिश्तों की परख करने का अवसर देती है।

रहिमन वे नर मर चुके, जे कहूँ माँगन जाहिं।

उनसे पहिले वे मुएँ, जिन मुख निकसत नाहिं॥9॥

व्याख्या – यह दोहा महान कवि रहीम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना द्वारा रचित है। रहीम कहते हैं कि वे लोग मरे हुए के समान हैं जो किसी से कुछ माँगने जाते हैं (यानी जो दूसरों के आगे हाथ फैलाते हैं)। लेकिन उनसे पहले ही वे लोग मर चुके होते हैं, जिनके मुख से किसी को कुछ देने के लिए शब्द ही नहीं निकलते (यानी जो अत्यंत कंजूस होते हैं और दान-पुण्य नहीं करते)।  रहीम इस दोहे में दानशीलता और आत्मसम्मान का महत्त्व बता रहे हैं। वे कहते हैं कि भिक्षावृत्ति या दूसरों पर निर्भरता व्यक्ति के आत्मसम्मान को नष्ट कर देती है, इसलिए माँगने वाले को मृत समान माना गया है। परंतु इससे भी अधिक मृत समान वे लोग हैं जो अत्यंत कंजूस होते हैं और किसी जरूरतमंद की सहायता नहीं करते। इस प्रकार, इस दोहे में रहीम ने उदारता और स्वाभिमान, दोनों गुणों को महत्त्व दिया है।

तरुवर – वृक्ष

परकाज – दूसरों के काम

बिपत्ति – आपत्ति

मीत – प्यारा

लघु – छोटा

तरवारि – तलवार

दीन – गरीब

सम – समान

खीश – ककड़ी

करुण – करुए

भुजंग – साँप

बिगरी – बिगड़ी हुई

थोरे – थोड़े

निकसत – निकलना

 

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए :-

(1) रहीम के अनुसार संपत्ति का महत्त्व क्या है?

उत्तर – रहीम के अनुसार संपत्ति का महत्त्व जरूरतमंदों की मदद करने में है।

(2) छोटों का तिरस्कार क्यों नहीं करना चाहिए?

उत्तर – छोटों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए क्योंकि वे भी हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं।

(3) सुई का काम कौन नहीं कर सकता?

उत्तर – सुई का काम तलवार नहीं कर सकता है।

(4) उत्तम प्रवृत्ति का क्या लक्षण हैं?

उत्तर – उत्तम प्रवृत्ति वाले लोगों के यह लक्षण होते हैं कि उनपर कुसंगति का प्रभाव नहीं पड़ता।

(5) सीसे क्यों नहीं चाहिए?

उत्तर – यह प्रश्न पाठ के अनुसार नहीं है।

(6) माँगने के बारे में रहीम क्या कहते हैं?

उत्तर – माँगने के बारे में रहीम कहते हैं कि यह तो आत्मसम्मान को खोने के बराबर है।

 

2. प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए :-

(1) वृक्ष और सरोवर के उदाहरण से रहीम हमें क्या समझाते हैं?

उत्तर – वृक्ष और सरोवर के उदाहरण से रहीम हमें यह समझाते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष अपना फल खुद नहीं खाता है और सरोवर अपना पानी खुद नहीं पीता है बल्कि ये तो प्राणियों के कल्याण के लिए सदा दान और त्याग करते रहते हैं। उसी प्रकार हमें भी अपने पास संचित धन का उपयोग जरूरतमंदों की मदद के लिए करना चाहिए।  

(2) रहीम कड़वे मुखवाली मनुष्य की प्रकृति को कैसे समझाते हैं?

उत्तर – रहीम कड़वे मुखवाली मनुष्य की प्रकृति को समझाते हुए कहते हैं कि जो लोग दूसरों से कठोर या कटु शब्दों में बात करते हैं, उन्हें दंड या सुधारात्मक व्यवहार मिलना चाहिए ताकि वे अपनी भाषा और व्यवहार को मधुर बना सकें। यह सिखाता है कि हर व्यक्ति को अपने शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए क्योंकि कटु वचन किसी के भी मन को आहत कर सकते हैं।

(3) ‘लाख प्रयत्न करने पर बिगड़ी हुई बात नहीं बनती’ ऐसा रहीम किस उदाहरण से समझाते हैं?

उत्तर – ‘लाख प्रयत्न करने पर बिगड़ी हुई बात नहीं बनती’ ऐसा रहीम ने ‘फटे दूध’ के उदाहरण से समझाते हैं कि जिस प्रकार एक बार बात बिगड़ जाती है तो वह नहीं बन पाती उसी प्रकार अगर दूध फट जाए तो उसे जितना भी क्यों न मथा जाए, उससे कभी भी मक्खन नहीं निकल सकता।

 

3. आशय स्पष्ट कीजिए :-

(1) ‘रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।’

उत्तर – इस दोहे में रहीम यह महत्त्वपूर्ण जीवन-प्रेरणा देते हैं कि हर व्यक्ति या वस्तु का अपना एक विशेष महत्त्व होता है। अक्सर लोग केवल बड़े और शक्तिशाली चीजों या व्यक्तियों को महत्त्व देते हैं और छोटी चीजों की उपेक्षा करते हैं। लेकिन कई परिस्थितियों में छोटी चीजें ही अधिक उपयोगी साबित होती हैं, जैसे- कपड़े सिलने के लिए हमें सुई की जरूरत होती है, वहाँ तलवार किसी काम की नहीं होती। इसी प्रकार, जीवन में छोटे व्यक्ति, वस्तुएँ या कार्य भी महत्त्वपूर्ण होते हैं और उन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

(2) चंदन विष व्याप्त नहीं, लपटे रहत भुजंग।

उत्तर – रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति स्वभाव से उत्तम चरित्र वाला होता है, वह अगर कभी बुरे लोगों (कुसंगति) के संपर्क में आ भी जाए, तो भी उसका स्वभाव नहीं बदलता। ठीक उसी प्रकार जैसे चंदन के वृक्ष से सर्प लिपटे रहते हैं, लेकिन उनके विष का प्रभाव चंदन पर नहीं पड़ता। इस दोहे में रहीम ने एक गहरी नैतिक शिक्षा दी है। वे बताते हैं कि जो व्यक्ति सच्चे गुणों से संपन्न होता है, वह कभी भी बुरी संगति का प्रभाव नहीं लेता। ठीक वैसे ही जैसे चंदन के पेड़ से जहरीले साँप लिपटे रहते हैं, लेकिन चंदन अपने शीतल और सुगंधित गुणों को बनाए रखता है और सर्प के विष से प्रभावित नहीं होता।

रहीम के दोहों में निष्पन्न नीतिविषयक बात को चुनकर सुवाच्य अक्षरों में लिखिए और स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – “बड़े पुरूष की बात का, करिये तुरत उपाय।

जो रहीम थोरी करै, पीछे अति दुख पाय॥”

व्याख्या:

इस दोहे में रहीम ने अनुभव और ज्ञान की महत्ता को दर्शाया है। बड़े व्यक्ति, अर्थात् बुजुर्ग, ज्ञानी, या अनुभवी लोग जब कोई सलाह देते हैं, तो वह उनके जीवन के अनुभव और समझदारी का परिणाम होती है। यदि हम उनकी बातों को हल्के में लेते हैं या उनका पालन नहीं करते, तो भविष्य में हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

जैसे एक अनुभवी नाविक समुद्र के तूफानों को पहचानकर पहले ही सावधानी बरतने की सलाह देता है, और यदि उसकी बात को नजरअंदाज किया जाए, तो नाव डूब सकती है। ठीक उसी प्रकार, यदि हम समझदार और अनुभवी लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देते, तो हमें जीवन में गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

शिक्षा:

अनुभवी और ज्ञानी लोगों की बातों को गंभीरता से लेना चाहिए।

अच्छी सलाह को अनदेखा करना बाद में दुखदायी हो सकता है।

बुजुर्गों और शिक्षकों के अनुभव से सीखकर गलतियों से बचा जा सकता है।

समय रहते सही निर्णय लेना आवश्यक होता है, वरना भविष्य में पछताना पड़ सकता है।

रहीम के अन्य दोहे का संग्रह कीजिए।

उत्तर –

“चित को बहुत ठगाइये, किनारे कोइ न जाय।

रहिमन जो जल बिना, वह बिनु मछरी मरि जाय॥”

प्रेम और सहारे के बिना जीवन अधूरा होता है, जैसे मछली पानी के बिना मर जाती है।

“सरसों सम तनु राखिये, तिल सम बढ़ावै ज्ञान।

जो रहीम जस चाहिये, छोड़िये अभिमान॥”

विनम्रता बनाए रखें और ज्ञान को बढ़ाते रहें, क्योंकि अहंकार नष्ट कर देता है।

“जग में बैरी कोउ नहीं, जो मन शीतल होय।

यह आपु आपनि सोचि ले, तुहि आपुहिं खोय॥”

यदि मन शांत हो तो कोई भी शत्रु नहीं होता, लेकिन यदि मन में कटुता हो तो व्यक्ति स्वयं अपने विनाश का कारण बनता है।

“रहिमन रीति सराहिये, जहँ नीति अधिक होय।

हीरा तजि काँच को, बिनु परखै न खोय॥”

हमेशा अच्छे गुणों को पहचानकर ही किसी चीज को महत्त्व देना चाहिए।

“दुर्जन की मैत्री करै, सिर पर आवै कष्ट।

कहि रहीम पछिताइये, जब अनहोनी घट॥”

बुरे लोगों से मित्रता करने पर बाद में पछताना पड़ता है।

“रहिमन ऐसी प्रीति कर, ज्यों नाव जल माहिं।

उतर चढ़ावो खात सह, और सुख दुःख नाहिं॥”

प्रेम ऐसा होना चाहिए जो हर परिस्थिति में स्थिर रहे, जैसे नाव जल में रहती है और सुख-दुख सहती है।

“रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए टार।

जहाँ काम आवै सुई, कहा करे तलवार॥”

बड़े लोगों को देखकर छोटे लोगों को नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि छोटी चीजों की भी अपनी उपयोगिता होती है।

“जो बड़ेन को लघु कहे, नही रहीम घटि जाइ।

गिरधर मुरलीधर कहे, कौन बड़ा कौन छोटाई॥”

यदि कोई बड़े व्यक्ति को छोटा कहता है, तो उसकी महानता कम नहीं होती, जैसे श्रीकृष्ण को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा कम नहीं होती।

“रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।

सुनी अठिलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय॥”

अपने मन की पीड़ा स्वयं ही सहनी चाहिए, क्योंकि लोग केवल मजाक उड़ाएँगे, मदद कोई नहीं करेगा।

 

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