Gujrat State Board, the Best Hindi Solutions, Class IX, Mahakavi Kalidas, Narpati Barhath, महाकवि कालिदास (जीवनी) नरपत बारहठ हड़वैचा

राजस्थानी संस्कृति के शोधकर्ता नरपत बारहद ‘हडवेचा’ ने एम.ए.बी.एड. की उपाधि प्राप्त की है। जयनारायण विश्व विद्यालय, जोधपुर से वे संलग्न है। उनकी विशेष रूचि काज लेखन में हैं। वे संस्कृति के प्रवाहों और प्रवाहों को समझने में यत्नशील है। महापुरुषों को नमन करते हुए आपने लिखा है- जिन्होंने देशसेवा की खातिर अपना घर, परिवार छोड़कर एशो-आराम त्याग कर भूखे-प्यासे नंगे- पाँव रहकर देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए सर्वस्व कुरबान किया वे वंदनीय हैं। ‘महापुरुषों की जीवनियाँ’ आपकी प्रसिद्धि कृति है। इस संग्रह में कुल 60 प्रसिद्ध महापुरुष को जीवनचरित्र अंकित है। प्रस्तुत जीवनी ‘महाकवि कालिदास में कालिदास के जन्म और परिचय का एवं उनकी प्रसिद्ध साहित्यिक रचनाओं का विवरण हैं।

इस कृति से यह संदेश मिलता है कि किसी बच्चे को बुद्ध (मूर्ख) मानना नहीं चाहिए, क्योंकि वह मौका मिलते ही हीरे की तरह चमक सकता है।

महाकवि कालिदास

कालिदास को हम मात्र संस्कृत के महाकवि के रूप में जानते हैं। स्वयं महाकवि कालिदास ने अपने विषय में कुछ नहीं लिखा है। हर्षचरित के शुरू में कवि बाण ने कालिदास का उल्लेख किया है। इससे पता चलता है कि कालिदास बाण से पहले हुए है। एक स्थान पर स्वयं कालिदास ने अपने अभिभावक के रूप में ‘विक्रम’ नाम का उल्लेख किया है। वह कौन-सा विक्रम हैं, इस बात का अभी पूरी तरह पता नहीं चल पाया है। फिर भी उन्हीं राजा विक्रमादित्य और राजा भोज का समकालीन मानकर कितनी ही कथाओं का नायक बनाया गया है। विभिन्न भाषाओं में पहेलियों और लोककथाओं में उनकी विद्वता, कविता और चमत्कारिक प्रसंगों का वर्णन मिलता है।

जन्म और परिचय :

कुछ विद्वानों ने कालिदास का जन्म 365 ई. तथा निधन 445 ई. माना है। महाकवि कालिदास के जन्म स्थान के बारे में ठीक ठीक पता नहीं चलता। कुछ विद्वानों ने उनका जन्मस्थान उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन) माना जो सही लगता है क्योंकि मेघदूत में स्वयं कवि ने उज्जयिनी को विशेष दर्शनीय कहा है और लंबा रास्ता पड़ने पर भी उधर से जाने के लिए बादल से अनुरोध किया है।

उज्जयिनी में उन दिनों राजा विक्रमादित्य का राज्य था। वहाँ की प्रजा सब प्रकार से सुखी थी। साहित्य और कला की उन्नति चरम सीमा पर पहुँची थी। राजा विक्रमादित्य ने अपने नाम से ही विक्रम संवत् चलाया था। समय – समय पर उन्होंने सोने के जो सिक्के चलवाये थे, उनसे उनके राज्यकाल का ठीक-ठीक पता चलता हैं। विक्रमादित्य के शासनकाल में जितना वैभव देश में था, जितनी साहित्य तथा कला की उन्नति हुई, उतनी कभी नहीं हुई। एक से बढ़कर एक कवि, साहित्यकार और वैज्ञानिक इस युग में उत्पन्न हुए। राजा विक्रमादित्य स्वयं साहित्य और संगीत के अच्छे जानकार थे। संस्कृत भाषा की उन्नति भी इस काल में ही अधिक हुई।

अपने पूर्व जीवन में बुद्ध माने जानेवाले कालिदास विक्रमादित्य के दरबारी कवियों में सर्वश्रेष्ठ थे। कालिदास के अतिरिक्त आठ और कवि भी दरबार में थे जो नवरत्न कहलाते थे।

कालिदास के विषय में कहा जाता है कि वे युवावस्था तक निरक्षर थे जिस डाल पर बैठते उसे ही काटते थे। निरक्षर होने पर भी वह इतने विद्वान और महाकवि किस तरह बन गए इसकी भी एक बड़ी विचित्र और रोचक कहानी है।

उन दिनों शारदानंद नाम के एक राजा थे। उनकी एक गुणवती और विद्वान पुत्री थी, जिसका नाम विद्योत्तमा था। वह बहुत सुंदर और रूपवती भी थी। उसके रूप, गुण और ज्ञान की प्रशंसा दूर-दूर के देशों तक फैली हुई थी। विद्योत्तमा को अपने रूप, गुण और ज्ञान का बड़ा घमंड था। अपने विवाह के संबंध में उसने एक घोषणा कर रखी थी कि जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा उसी के साथ वह अपना विवाह करेगी।

उसकी इस घोषणा की जानकारी जैसे-जैसे पास पड़ोस के देशों तक पहुँचती गयी, वहाँ-वहाँ के विद्वान तथा पंडित विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ करने के लिए आने लगे, लेकिन विद्वान या पंडितों को बड़ी ग्लानि का अनुभव हो रहा था, और वे इसका बदला लेने का उपाय सोचने लगे थे। विद्वानों और पंडितों ने मिलकर तय किया कि विद्योत्तमा का विवाह किसी मूर्ख से करवा दिया जाए तो इसका घमंड टूट जाएगा और वे अपने अपमान का बदला भी ले सकेंगे। अतः अब वे ऐसे एक मूर्ख की तलाश में रहने लगे। संयोग से उन्हें एक दिन एक ऐसा ही मूर्ख युवक मिल गया। वह पेड़ की जिस डाल पर बैठा था उसे ही काट रहा था। पंडितों तथा विद्वानों को लगा कि उससे बड़ा मूर्ख और कौन होगा? इसलिए पंडितों ने उसे पेड़ से नीचे उतारा ओर समझा बुझाकर एक सुंदर राजकुमारी से उसका विवाह करा देने की बात कहकर तथा लालच देकर अपने साथ चलने को राजी किया। पंडितों ने उस मूर्ख युवक को यह बात अच्छी तरह समझा दी कि वह वहाँ कुछ नहीं बोलेगा और गूंगा बना रहेगा, नहीं तो उसका विवाह नहीं होगा। वह मूर्ख युवक बड़ा खुश हुआ। उसने पंडितों की बात मान ली ओर उनके द्वारा दिए गए अच्छे-अच्छे कपड़े पहन लिए। पंडित उसे विद्योत्तमा के पास शास्त्रार्थ के लिए ले गए।

राजकुमारी विद्योत्तमा को उस मूर्ख युवक का परिचय देते हुए पंडितों ने बताया कि ये हमारे गुरु हैं और बहुत बड़े विद्वान है, शास्त्रों के जानकार है। आपके साथ शास्त्रार्थ करने यहाँ आये हैं, लेकिन उन दिनों मौन व्रत चलने के कारण ये संकेत से ही शास्त्रार्थं करेंगे।

विद्योत्तमा पंडितों की यह छल भरी बात नहीं समझ सकी और शास्त्रार्थ के लिए तैयार हो गयी। उसने युवक को एक उँगली दिखायी जिसका भाव था कि ईश्वर एक है।

उस मूर्ख युवक ने समझा कि यह मेरी एक आँख फोड़ डालना चाहती है। उसने दो उँगलियाँ दिखाते हुए उसकी दोनों आँखें फोड़ डालने का संकेत किया। पंडितों ने इस संकेत का अर्थ विद्योत्तमा को समझाते हुए कहा-

आपके प्रश्न के उत्तर में हमारे गुरुजी का कहना है कि ईश्वर और जीव दो है।

इस बार राजकुमारी विद्योत्तमा ने पाँच उँगलियाँ दिखाकर पाँचों तत्त्वों का संकेत किया। उस मूर्ख ने समझा कि वह मेरे मुँह पर तमाचा मारने का संकेत कर रही है। उसने मुट्ठी बाँधकर तमाचे का जवाब घूँसे से देने का संकेत किया। पंडितों ने इस बार भी विद्योत्तमा को इस संकेत का अर्थ बताते हुए कहा –“आपने पाँच उँगलियों से पाँच तत्त्वों का संकेत किया था, लेकिन हमारे गुरुजी का कहना है कि पाँचों तत्त्वों के मिलने से ही सृष्टि का निर्माण होता है, अलग-अलग रहने में नहीं।

इस तरह उपरोक्त शास्त्रार्थ में विद्योत्तमा ने उस मूर्ख युवक से अपनी हार मान ली और दोनों का विवाह धूम-धाम से पंडितों ने करवा दिया। एक दिन की बात है, एक ऊँट की बोली सुनकर वह मूर्ख युवक अपना मौन व्रत भूलकर यकायक बोल बैठा- उटू… उ…।

उसको बोलते सुनकर विद्योत्तमा चौंक उठी। उसे पता चला कि उसका पति कोई विद्वान पंडित नहीं बल्कि एक बहुत बड़ा मूर्ख हैं। पंडितों की छल भरी बातों का अर्थ अब उसकी समझ में आ गया। विद्योत्तमा को बहुत मानसिक दुःख पहुँचा और उसने अपने महल में कालिदास के प्रवेश पर रोक लगा दी और द्वारबंद कर लिए। कठोर उपासना से उसे माँ काली का वरदान प्राप्त हुआ और उसे काली का दास होने के कारण कालिदास नाम प्राप्त हुआ। शीघ्र की कालिदास सारी विधाओं को सीखकर प्रवीण हो गए। राजनीति, धर्मशास्त्र ओर साहित्य का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर वह फिर से विद्योत्तमा के पास लौटे। द्वार तब भी बंद था। कवि ने अपने विद्वान होने के प्रमाणस्वरूप संस्कृत में द्वार खोलने के लिए विद्योत्तमा से प्रार्थना की, ‘अनावृत्त कपाट द्वार देहि।’

अंदर से पत्नी विद्योत्तमा ने पूछा, ‘अस्ति कश्चिद् वाग्विशेषः।’

इस पर महाकवि कालिदास ने क्रमश: – ‘कुमारसम्भव’, ‘मेघदूत’ और ‘रघुवंश’ की रचना विद्योत्तमा को सुनायी। विद्योत्तमा को जब उनके पंडित होने का विश्वास हो गया तो उसने द्वार खोलकर महाकवि का स्वागत किया।

कालिदास को हर क्षेत्र का गहरा अनुभव था। प्रकृति का जैसा वर्णन उनके साहित्य में मिलता है वैसा कहीं नहीं मिलता। उन्हें प्रकृति के बिना मनुष्य जीवन अधूरा दिखायी पड़ता था। कालिदास की उपमाएँ विश्व विख्यात हैं। उनकी कोई तुलना नहीं। उसका कोई जोड़ नहीं। चरित्रचित्रण में भी महाकवि कालिदास की तुलना नहीं की जा सकती ! उनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। उसके पात्रों का व्यक्तित्व अपनापन लिए रहता है। हर बात बड़ी ही स्वाभाविकता से उपस्थित होती है। कालिदास अपने काव्य तथा नाटक के द्वारा बार-बार यही बताना चाहते हैं कि राजा प्रजा का शासक ही नहीं उसका रक्षक और पिता भी है। उन दिनों समाज में नारी का क्या स्थान था इस बात का पता भी हमें कवि कालिदास की रचनाओं में मिलता है। समाज में नारी को सम्मान और श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता था और उसे नृत्य, संगीत चित्रकला आदि की शिक्षा दी जाती थी

महाकवि कालिदास के सात प्रमुख ग्रंथ हैं। उनमें से पहला ग्रंथ है ‘ऋतुसंहार’। यह एक उत्तम काव्य है। इसमें कालिदास ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि का परिचय दिया है। ऋतुओं का तथा प्रकृति का जितना सुंदर चित्रण काव्य में है, उतना कालिदास के अन्य ग्रंथों में नहीं है।

‘मालविकाग्निमित्र’ कालिदास का दूसरा ग्रंथ और पहला नाटक है। उसमें पाँच अंक और विदिशा के राजा अग्निमित्र तथा विदर्भ की राजकुमारी मालविका की प्रेमकथा है। तीसरा ग्रंथ ‘विक्रमोर्वशीयम्’ कालिदास का दूसरा नाटक हैं, इसमें पाँच अंक हैं तथा महाराज पुरुरवा और उर्वशी की प्रेमकथा का चित्रण किया गया है। ‘कुमारसम्भव’ का काव्य है और इसमें शिवपार्वती के विवाह से लेकर कुमार कार्तिकेय के जन्म और उसके द्वारा तारकासुर के वध तक की कथा का वर्णन है। ‘मेघदूत’ कालिदास का पाँचवा ग्रंथ है। यह भी एक खंडकाव्य है और इसके शुरू में कालिदास ने बादल को दूत बनाकर कुबेर की नगरी अलकापुरी तक का मार्ग बताया है। इसके उत्तरार्ध में यक्ष ने अपनी विरहिणी प्रिया को पहचानने के उपाय मेघ को बताये हैं और अपना संदेश दिया है। इस काव्य में वर्षाकाल ओर विरह का वर्णन खूब निखरा है। इसमें भारत के भूगोल की भी अच्छी जानकारी दी गयी है।

‘रघुवंश’ एक महाकाव्य है। कवि कालिदास ने रघुवंश की कथा कहने से पहले ही कह दिया है कहाँ तो सूर्य से उत्पन्न हुआ यह वंश, कहाँ मोटी बुद्धिवाला। मैं तिनकों से बनी छोटी सी नाव लेकर अपार समुद्रि को पार करने की बात सोच रहा हूँ। सूर्यवंश के दिलीप से लेकर कुश और उनके अनेक उत्तराधिकारियों तक की कथा रघुवंश में है।

महाकवि कालिदास का सातवाँ ओर सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ है ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’। यह उनका तीसरा नाटक है और इसमें सात अंक है। महाकवि ने इस नाटक में राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला की कथा कही है। इस तरह महाकवि कालिदास आज भी हमारे संस्कृत साहित्य में अमर है। उनकी रचनाओं में तत्कालीन साहित्य, शासन और राजनीति, समाज और जनविश्वास, भूगोल, ललितकला, स्थापत्य आदि सभी की झलक मिलती है।

 

अभिभावक – बच्चों के पारिवारिक रक्षक

शास्त्रार्थ – शास्त्र संबंधी चर्चा

अनुरोध – विनती

ग्लानि – दुख, पीड़ा

संकेत – इशारा

यकायक – सहसा

निरक्षर – अनपढ़

रोचक – आकर्षक

सर्वोत्कृष्ट – सबसे अच्छा

अंक – भाग

तत्कालीन – उस समय का

भूगोल – खगोल, Geography

ललितकला – Painting

स्थापत्य – Architecture

1.प्रश्नों के प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर दीजिए :-

(1) कालिदास के जन्मस्थान का नाम बताइए।

उत्तर – कालिदास का जन्मस्थान उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन) माना जाता है।

(2) मेघदूत का नायक कौन है?

उत्तर – मेघदूत का नायक यक्ष है।

(3) ‘विक्रम संवत’ का प्रारंभ किसने करवाया था?

उत्तर – राजा विक्रमादित्य ने अपने नाम से ही विक्रम संवत् प्रारंभ करवाया था।

2. प्रश्नों के तीन-चार वाक्यों में उत्तर लिखिए:-

(1) कालिदास की अज्ञता किस बात से प्रकट होती है?

उत्तर – विद्योत्तमा से विवाह के पहले कालिदास पेड़ की जिस डाल पर बैठे थे उसी डाल को काट रहे थे। इससे ही उनकी अज्ञता का बोध होता है। विद्योत्तमा से विवाह के पश्चात् एक दिन, एक ऊँट की बोली सुनकर कालिदास ने अपना मौन व्रत भूलकर यकायक बोल बैठे- उटू… उ…। इस तरह से विद्योत्तमा को उनके मूर्ख होने का बोध हो गया।

(2) विद्योत्तमा का परिचय दीजिए।

उत्तर – विद्योत्तमा राजा शारदानंद की गुणवती, रूपवती और विद्वान पुत्री थी। विद्योत्तमा ने विवाह के संबंध में एक घोषणा कर रखी थी कि जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा उसी के साथ वह विवाह करेगी। उसकी इस घोषणा पर पास-पड़ोस के देशों के विद्वान तथा पंडित विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ करने के लिए आने लगे, लेकिन विद्योत्तमा को पराजित न कर सके। पंडितों को इससे बड़ी ग्लानि का अनुभव हुआ और बदला लेने के लिए उन्होंने छल से एक मूर्ख व्यक्ति के साथ विद्योत्तमा का विवाह करवा दिया। बाद में वही मूर्ख विद्योत्तमा का तिरस्कार पाकर माँ काली की भक्ति से महाकवि कालिदास बना।

(3) महाकवि कालिदास की कृतियों के नाम दीजिए।

उत्तर – महाकवि कालिदास के सात प्रमुख ग्रंथ हैं। उनमें से पहला ग्रंथ है ‘ऋतुसंहार’ जिसमें ऋतुओं का तथा प्रकृति का सुंदर चित्रण मिलता है। ‘मालविकाग्निमित्र’ कालिदास का दूसरा ग्रंथ और पहला नाटक है। इसमें विदिशा के राजा अग्निमित्र तथा विदर्भ की राजकुमारी मालविका की प्रेमकथा है। तीसरा ग्रंथ ‘विक्रमोर्वशीयम्’ कालिदास का दूसरा नाटक हैं, इसमें महाराज पुरुरवा और उर्वशी की प्रेमकथा का चित्रण किया गया है। ‘कुमारसम्भव’ में शिवपार्वती के विवाह का वर्णन है। ‘मेघदूत’ कालिदास का पाँचवा ग्रंथ है। इसमें यक्ष ने अपनी विरहिणी प्रिया को मेघ द्वारा अपना संदेश दिया है। ‘रघुवंश’ एक महाकाव्य है। महाकवि कालिदास का सातवाँ ओर सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ है ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’।

 

3. निम्नलिखित शब्दसमूह के लिए एक-एक शब्द लिखिए :-

(1) जिसमें सभी का हित समाया हुआ हो –

उत्तर – साहित्य

(2) विद्वानों द्वारा की जानेवाली शास्त्रों की चर्चा

उत्तर – शास्त्रार्थ

(3) विद्या में जो उत्तम हो

उत्तर – विद्योत्तमा

4. निम्नलिखित विधानों के रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :-

(1) विद्योत्तमा के एक उँगली दिखाने में ____________ भाव था।

उत्तर – ईश्वर के एक होने का

(2) सृष्टि का निर्माण ____________ तत्त्वों के मेल से होता है।

उत्तर – पाँच

(3) ऊँट की बोली सूनकर मूर्ख युवक ____________ बोल उठा।

उत्तर – उटू… उ…

अपनी कक्षा से प्रत्येक छात्रों की अच्छाई बताने का अवसर सभी को दीजिए।

उत्तर – शिक्षक इसे अपने स्तर पर करवाए।

‘महाकवि कालिदास’ की काव्यकला विषयक विद्वानों की प्रशस्ति – उपमा कालिदासस्य… के बारे में जानकारी दें।

उत्तर – संस्कृत साहित्य में महाकवि कालिदास को उनकी अद्वितीय काव्यशैली के लिए अत्यंत सम्मान प्राप्त है। उनकी उत्कृष्ट उपमाओं (संधर्भानुसार सटीक और सुंदर तुलनाओं) के कारण विद्वानों ने उनकी प्रशंसा में कहा है—

“उपमा कालिदासस्य” (Upamā Kālidāsasya)

इसका अर्थ है— “उपमा (उपमानों की सुंदरता) केवल कालिदास के समान ही होती है।” इस वाक्य का उल्लेख साहित्यदर्पण सहित कई काव्यशास्त्रीय ग्रंथों में मिलता है, जो यह दर्शाता है कि उपमाओं की रचना में कालिदास अतुलनीय थे।

उनकी रचनाओं में प्रयुक्त उपमाएँ सहज, सुगठित और अत्यंत प्रभावशाली होती हैं। उदाहरण के लिए, अभिज्ञानशाकुंतलम्, मेघदूत, कुमारसंभव आदि ग्रंथों में प्रकृति, प्रेम, सौंदर्य और मानवीय भावनाओं का अत्यंत सूक्ष्म और सजीव चित्रण किया गया है। कालिदास की उपमाएँ न केवल उनकी काव्यकला की गहराई को दर्शाती हैं, बल्कि पाठकों और श्रोताओं को भी सहजता से उनकी कल्पनाओं की अनुभूति कराती हैं।

इस प्रकार, “उपमा कालिदासस्य” केवल एक प्रशस्ति नहीं, बल्कि उनकी अनुपम काव्यप्रतिभा की अमर पहचान है, जो उन्हें संस्कृत साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवियों में स्थान दिलाती है।

 

‘कोई निरा बुद्धू’ जन्म भर के लिए नहीं होता, कठिन तपश्चर्या और मेहनत से महान बनता है, महाकवि कालिदास के जीवन से प्राप्त संदेश बोध के रूप में दें।

उत्तर – महाकवि कालिदास का जीवन इस सत्य को प्रमाणित करता है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता, बल्कि अपने परिश्रम, साधना और ज्ञानार्जन से महानता प्राप्त करता है। प्रारंभ में कालिदास एक सामान्य व अल्पबुद्धि व्यक्ति माने जाते थे, किंतु कठिन तपस्या, सतत् अध्ययन और आत्मसंघर्ष के बल पर वे संस्कृत साहित्य के सर्वोच्च कवि बन गए। उनके जीवन से यह संदेश मिलता है कि यदि व्यक्ति में सीखने की लगन, धैर्य और कठोर परिश्रम करने की इच्छा हो, तो वह किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।

 

कालिदास की रचनाएँ यह प्रेरणा देती हैं कि विद्या, समर्पण और स्वाध्याय से मानव जीवन का विकास संभव है। उनका जीवन बताता है कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, आत्मनिर्माण और ज्ञानार्जन से व्यक्ति स्वयं को महान बना सकता है।

‘महाकवि कालिदास का संस्कृत साहित्य में योगदान’ विषयक चर्चा- संगोष्ठी का आयोजन करें।

उत्तर – महाकवि कालिदास संस्कृत साहित्य के महानतम कवि और नाटककारों में से एक माने जाते हैं। उनका साहित्य न केवल अपनी उत्कृष्ट भाषा और काव्य सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि उसमें भारतीय संस्कृति, प्रकृति, प्रेम और दर्शन का अद्भुत समन्वय भी देखने को मिलता है। उनके प्रमुख काव्य ग्रंथों में मेघदूत, ऋतुसंहार, और कुमारसंभव शामिल हैं, जिनमें प्रकृति और प्रेम का अनुपम चित्रण हुआ है। वहीं, उनके नाटकों—अभिज्ञानशाकुंतलम्, मालविकाग्निमित्रम्, और विक्रमोर्वशीयम्—में मानवीय भावनाओं और रसों की गहराई देखने को मिलती है।

कालिदास की रचनाएँ संस्कृत साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं, जिनका प्रभाव भारतीय काव्यशास्त्र और नाट्य परंपरा पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उनके साहित्य में कल्पनाशीलता, भावनात्मक गहराई और अद्वितीय शैलियों का समावेश है, जो उन्हें युगों-युगों तक प्रासंगिक बनाए रखता है।

 

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