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जलियाँवाला बाग में बसंत

सुभद्राकुमारी चौहान

प्रस्तुत कविता में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने भारत की निहत्थी और शांतिपूर्वक सभा कर रही जनता पर जलियाँवाला बाग में अंग्रेज़ सरकार द्वारा गोली चलाने की मार्मिक कथा का वर्णन किया है। इस घटना से मर्माहत कवयित्री ने वहाँ बसंत से धीरे एवं शांतिभाव से आने का आग्रह किया है।

यहाँ कोकिला नहीं, काक हैं शोर मचाते।

काले-काले कीट, भ्रमर कर भ्रम उपजाते।

कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक कुल से।

वे पौधे, वे पुष्प, शुष्क हैं अथवा झुलसे॥

परिमल – हीन पराग दाग-सा बना पड़ा है।

हा ! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।

आओ, प्रिय ऋतुराज ! किंतु धीरे से आना।

यह है शोक – स्थान, यहाँ मत शोर मचाना ॥

वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना।

दुख की आहें संग उड़ाकर मत ले जाना।

कोकिल गावे, किंतु राग रोने का गावे।

भ्रमर करे गुँजार, कष्ट की कथा सुनावे॥

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले।

हो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ-कुछ गीले।

किंतु न तुम उपहार भाव आकर दरसाना।

स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना॥

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर।

कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।

आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं।

अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं

कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना।

करके उनकी याद अश्रु की ओस बहाना।

तड़प-तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर।

शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर॥

यह सब करना, किंतु बहुत धीरे से आना।

यह है शोक-स्थान यहाँ न शोर मचाना॥

शब्दार्थ

ऋतुराज – वसन्तकाल

कीट – कीड़े-मकोड़े

कंटक – काँटा

शुष्क – सूखा, अनार्द

पराग – फूल के भीतरी भाग का धूल

परिमल – सुगंध, सुवास

कोकिला – कोयल

स्मृति में – याद में

ऋतु – मौसम

भ्रम – संशय

मंद – धीमा

आह – दुख या क्लेशसूचक शब्द

ओस – शीत (हवा में मिली हुई भाप जो रात्रि के समय सरदी से जमकर जल-कण के रूप में गिरती है।)

 

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