Gujrat State Board, the Best Hindi Solutions, Class IX, Krantikari Shekhar Ka Bachapan, Sacchidanand Heeranand Vatsayayan Ageya, क्रांतिकारी शेखर का बचपन (उपन्यास अंश) सच्चिदानंद हीरानंद वाल्स्यायन ‘अज्ञेय’

 (जन्म : सन् 1911 ई. निधन : सन् 1987 ई.)

आधुनिक हिंदी काव्यधारा में नई कविता के प्रमुख कवि एवं बहुचर्चित उपन्यासकार के रूप में ‘अज्ञेयजी’ का नाम एवं प्रदान उल्लेखनीय है। उनका जन्म 9 मार्च, 1911 में कसया (कुशीनगर) में हुआ। बचपन का 1911 1915 का समय लखनऊ में बीता। बाद में कुछ समय के लिए वे श्रीनगर और जमू में रहे। उन्होंने लाहौर के एक कालेज से बी.एससी. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। क्रांतिकारी दल में सक्रिय भाग लेने के कारण उन्हें कारागार में रहना पड़ा। उन्होंने ‘सैनिक’ और ‘विशाल भारत’ का संपादन भी किया। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भारतीय साहित्य और संस्कृति के अध्यापक के रूप में काम किया। अज्ञेयजी विद्रोही व्यक्ति रहे है। विद्रोह उनके साहित्य की मूल चेतना है। उनका उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी’ प्रेमचंद के गोदान के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘नदी के द्वीप’ और ‘अपने अपने अजनबी’ उपन्यास भी लिखे हैं। वे हिंदी कविता में प्रयोगवादी आंदोलन के प्रवर्तक माने जाते हैं। इन्हें ‘आँगन के पार द्वार’ काव्यकृति पर साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया। ‘कितनी नावों में कितनी बार’ पुस्तक पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्रदान किया गया। ‘भग्नदूत’, ‘चिन्ता’, ‘इत्यलम्’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ उनकी प्रमुख काव्यकृतियाँ हैं। उन्होंने ‘तार सप्तक’ का भी संपादन किया था।

‘क्रांतिकारी शेखर का बचपन’ उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी’ भाग-1 का अंश है। यह उपन्यास 1940 ई. में लिखा गया था। बचपन से लेकर कॉलेज जीवन तक का जीवनविचित्र है। इसमें शेखर का जीवन दर्शन स्वातंत्र्य की खोज लक्षित हैं। वह लील पर चलनेवाला नहीं हैं।

शेखर का बचपन क्रांतिकारी विचारों से अभिभूत था। वह ब्रिटीश शासन का जबरदस्त विरोधी और स्वदेशी चीजों का चाहक। अंग्रेजी के बजाय हिंदी का हिमायती बचपन के उसके जीवन का कुछ अंश इस उपन्यास अंश में संकलित हैं।

क्रांतिकारी शेखर का बचपन

असहयोग की एक लहर आयी और देश उसमें बह गया। शेखर भी उसमें बहने की चेष्टा करने लगा और जब नहीं बह पाया, तब हाथों से खेकर अपने को बहाने लगा-

उसने विदेशी कपड़े उतारकर रख दिये, जो दो चार मोटे देशी कपड़े उसके पास थे, वही पहनने लगा। बाहर घूमने-मिलने जाना उसने छोड़ दिया, क्योंकि इतने देशी कपड़े उसके पास नहीं कि बाहर जा सके। प्रायः दुपहर को वह ऊपर की एक खिड़की के पास जाकर खड़ा हो जाता और बाहर देखा करता। कभी दूर से जब बहुत से कण्ठों की समवेत पुकार उस तक पहुँचती:

‘गांधी का बोलबाला! दुश्मन का मुँह हो काला!’

तब उसके प्राण पुलकित हो उठते और वह भी अपनी खिड़की से पुकार उठता-

‘गांधी का बोलबाला! दुश्मन का मुँह हो काला!’

इससे आगे वह जा नहीं सकता था घर से अनुमति नहीं थी लेकिन अनुमति का न होना ही तो एक अंकुश था, जो निरंतर उसे कोई मार्ग ढूँढ़ने के लिए प्रेरित किया करता था…

माँ के अतिरिक्त सब लोग बाहर गये हुए थे। माँ ऊपर कोठे पर बैठी हुई थी। शेखर ने घर के सब कमरों में से विदेशी कपड़े बटोरे और नीचे एक खुली जगह ढेर लगा दिया। फिर लैम्पे लाकर उन पर मिट्टी का तेल उँड़ेला (तेल का पीपा नौकरों के पास रहता था, वहाँ जाने की हिम्मत नहीं हुई), और आग लगा दी।

आग एकदम भभक उठी। शेखर का आह्लाद भी भभक उठा। वह आग के चारों ओर नाचने लगा और गला खोलकर गाने लगा:

‘गांधी का बोलबाला! दुश्मन का मुँह हो काला!’

थोड़ी ही देर में माँ आयी और थोड़ी देर में शेखर के गाल भी मानों विदेशी हो गए – जलने लगे… लेकिन ढेर राख हो गया था।

शेखर के मन में विदेशी मात्र के प्रति घृणा हो गई। उसने देखा कि हमारी नस-नस में विदेशी का प्रभुत्व ही नहीं, आतंक भरा हुआ है। उसे पुरानी बातें भी याद आयी और नयीं भी वह देखने लगा। उसे यह भी ध्यान हुआ कि पिता उसे घर में भाइयों से अंग्रेजी में बात करने को कहा करते हैं, यह भी कि वह शैशव से अंग्रेजी बोलना जानता है, पर हिंदी अभी सीख रहा है। उसकी पहली आया ईसाई थी और अंग्रेजी ही बोलती थी, उसका पहला गुरु, जिसके साथ उसे दिन-भर बिताना होता था, एक अमरिकन मिशनरी था, जो पढ़ाता चाहे कुछ नहीं था, दिन-भर अंग्रेजी की शिक्षा तो देता था। शेखर ने देखा कि यदि मातृभाषा वह है, जो हम सबसे पहले सीखते हैं, तब तो अंग्रेजी ही उसकी मातृभाषा है और विदेशी ही उसकी माँ… उसके आत्माभिमान को बहुत सख्त धक्का लगा… जिसे मैं घृणित समझता हूँ, उसी विदेशी को माँ कहने को बाध्य होऊँ। उसने उसी दिन से बड़ी लगन से हिंदी पढ़ना आरंभ किया और चेष्टा से अपनी बातचीत में से अंग्रेजी शब्द निकालने लगा, अपनी आदतों में से विदेशी अभ्यासों को दूर करने लगा…

और अपने हिंदी – ज्ञान को प्रमाणित करने के लिए, और गांधी के प्रति अपनी श्रद्धा जिसे व्यक्त करने का और कोई साधन उसे प्राप्त नहीं था – प्रकट करने के लिए उसने एक राष्ट्रीय नाटक लिखना आरंभ किया। जीवन में देखे हुए एकमात्र खेल की स्मृति अभी ताजी थी, इसलिए उसे लिखने में विशेष कठिनाई नहीं हुई। प्रस्तावना तो ज्यों-की- त्यों हथिया ली, केवल कहीं-कहीं कुछ मामूली परिवर्तन करना पड़ा। उसके बाद नाटक आरंभ हुआ- एक स्वाधीन लोकतंत्र भारत का विराट स्वप्न, जिसके राष्ट्रपिता गांधी हैं; और सिद्धि के लिए साधन है अनवरत कताई और बुनाई, विदेशी माल और मनुष्य का परित्याग और प्रत्येक अवसर पर दूसरा गाल आगे कर देना। ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ का इन्द्रलोक आरंभ से हटकर अंत में आ गया था – अपने ऊपर शेखर की प्रतिभा द्वारा सूर्यास्त के सुनहरे टापू की छाप लेकर। शेखर के नाटक का अन्तिम दृश्य था स्वाधीन और बाधाहीन भारत एक स्थूल आकार – प्राप्त स्वप्न…

नाटक पूरा हो गया। शेखर ने सुन्दर देशी स्याही से उसकी प्रतिलिपि तैयार की और उसे अपनी पुस्तकों के नीचे छिपाकर रख दिया। पहले साहित्यिक प्रयत्नों की गति उसे अभी याद थी, इसलिए उसने अपना यह नाटक, यह अमूल्य रत्न किसी को नहीं दिखाया – सरस्वती को भी नहीं! और हर समय, जब जहाँ वह जाता, उसके मन में एक ध्वनि गूंजा करती, मैं शेखर हूँ, एक अपूर्व नाटक का लेखक चन्द्रशेखर! और मैंने अकेले ही, बिना किसी की सहायता के अपने हाथों से उसका निर्माण किया है, स्वाधीन बाधाहीन भारत के उस चित्र का, मैंने!

शेखर के पिता एक दिन के दौरे पर जा रहे थे और शेखर साथ था। बाँकीपुर स्टेशन पर सामान रखकर, पिता और पुत्र वेटिंग रूम के बाहर टहल रहे थे शेखर कुछ आगे, पिता पीछे-पीछे।

पास से एक लड़का आया और शेखर की ओर उन्मुख होकर अंग्रेजी में बोला, ‘तुम्हारा नाम क्या है? ‘ शेखर ने सिर से पैर तक उसे देखा। लड़का एक अच्छा सा सूट पहने था सिर पर अंग्रेजी टोपी और उसके स्वर में अहंकार था, शायद वह अपने अंग्रेजी – ज्ञान का परिचय देना चाहता था।

शेखर को प्रश्न बुरा और अपमानजनक लगा। उसने उत्तर नहीं दिया। कुछ इसलिए भी नहीं दिया कि पीछे पिता थे और पिता की उपस्थिति में बात करते वह झिझकता था।

उस लड़के ने समझा, उसका सामना करनेवाला कोई नहीं है- यह लड़का शायद अंग्रेजी जानता ही नहीं। उसने तनिक और रोब में कहा, “My name is- Do you go to school?” (मेरा नाम है- तुम स्कूल में पढ़ते हो?’ ) शेखर के पिता वहाँ न होते तो वह प्रश्न का उत्तर चाहे न देता पर (हिंदी में) कुछ उत्तर अवश्य देता। उसके मन में यह सन्देह उठ भी रहा था कि वह लड़का शायद कोई पाठ ही दुहरा रहा है, अंग्रेजी उतनी जानता नहीं। पर उसने घृणा से उस लड़के की ओर देखा, उत्तर कोई नहीं दिया।

पिता के क्रुद्ध स्वर ने कहा- शायद उस लड़के को जताने के लिए कि मेरा लड़का अंग्रेजी जानता है- ‘जवाब क्यों नहीं देते!”

शेखर और भी चिढ़ गया और भी चुप हो गया। वह लड़का मुस्कराकर आगे बढ़ गया। पिता ने कहा, ‘इधर आओ।’ शेखर उनके पीछे-पीछे वेटिंग रूम में गया तो पिता ने उसका कान पकड़कर पूछा, “जवाब क्यों नहीं दिया? मुँह टूट गया है.?”

तभी ट्रेन आ गयीं और शेखर कुछ उत्तर देने से या उत्तर न देने की गुस्ताखी करने से बच गया। दूसरे दिन घर पर पिता ने माँ से कहा, ‘हमारे लड़के सब बुद्धू है। किसी के सामने तो बोल नहीं निकलता।’ शेखर ने सुन लिया।

(‘शेखर: एक जीवनी उपन्यास : पहला भाग’ )

शब्दार्थ और टिप्पणी

शैशव – बचपन

बोलबाला – अति प्रसिद्ध

अनुमति – सहमति

अंकुश – नियंत्रण

परित्याग – बहिष्कार

घृणा – नफरत

बाध्य – विवश

मुहावरे

मुँह काला होना – बेइज्जती होना

1.निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर दीजिए :-

(1) शेखर ने बाहर घूमने-मिलने जाना क्यों छोड़ दिया?

उत्तर – शेखर के पास देशी कपड़े पर्याप्त न होने के कारण उन्होंने बाहर घूमने-मिलने जाना छोड़ दिया था।

(2) शेखर के मस्तिष्क में कैसी पुकार पहुँचती थी?

उत्तर – शेखर के मस्तिष्क में क्रांतिकारियों की समवेत पुकार पहुँचती थी – ‘गांधी का बोलबाला! दुश्मन का मुँह हो काला!’ और इसी से अनुप्राणित होकर उसने हिंदी में एक नाटक लिखा जो हर समय, उसके मन में गूंजा करती, मैं शेखर हूँ, एक अपूर्व नाटक का लेखक चन्द्रशेखर!

(3) शेखर ने आग कैसे जलाई?

उत्तर – शेखर ने आग लगाने के लिए लैम्प के मिट्टी का तेल विदेशी कपड़ों के ढेर पर उड़ेला और आग लगा दी।

(4) शेखर गला खोलकर क्या गाने लगा?

उत्तर – शेखर गला खोलकर गाने लगा – ‘गांधी का बोलबाला! दुश्मन का मुँह हो काला!’

(5) अंग्रेजी बालक ने जवाब में क्या कहा?

उत्तर – अंग्रेज बालक ने जवाब में कहा, “My name is- Do you go to school?” अर्थात् मेरा नाम है- तुम स्कूल में पढ़ते हो?’

2. दो-तीन वाक्य में उत्तर दीजिए :-

(1) घर के सदस्य बाहर गए तब शेखर ने क्या किया?

उत्तर – जब शेखर के घर के सदस्य बाहर गए हुए थे तब उसने चुपचाप सारे विदेशी कपड़ों को इकट्ठा किया और लैंप के तेल से उन कपड़ों की ढेरी में आग लगा दी और आग के चारे ओर नाच-नाच कर कहने लगा – ‘गांधी का बोलबाला! दुश्मन का मुँह हो काला!’

(2) शेखर के नाटक का विषय क्या था?

उत्तर – शेखर के नाटक का विषय है – स्वाधीनता से पूर्व शेखर के बालमन पर गांधीजी के स्वदेशी आंदोलन के कारण स्वतंत्रता की ललक पैदा होना, अंग्रेज़ी वस्तुओं और अंग्रेज़ी भाषा के प्रति वितृष्णा का भाव आना और हिंदी भाषा के उत्थान हेतु एक नाटक का लिखा जाना।

(3) अंग्रेजी बालक के प्रश्न का उत्तर शेखर ने क्यों नहीं दिया?

उत्तर – अंग्रेजी बालक के प्रश्न का उत्तर शेखर ने नहीं दिया क्योंकि जब उसके पिता उसके साथ रहते हैं तो वह किसी से बात-चीत करने में कतराया करता था और दूसरा कारण यह था कि शेखर को उसका प्रश्न अभिमान से भरा हुआ लगा क्योंकि वह अपने अंग्रेज़ी ज्ञान का रोब झाड़ रहा था।

(4) पिता ने क्रुद्ध स्वर में शेखर को क्या कहा?

उत्तर – पिता ने क्रुद्ध स्वर में शेखर से कहा कि तुमने उस अंग्रेज़ बालक के प्रश्नों का उत्तर क्यों नहीं दिया क्या तुम्हारा मुँह टूट गया है? शेखर के पिता का यह मानना था कि आज के दौर में अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान नितांत आवश्यक है और अंग्रेज़ी आने पर भी शेखर चुप कैसे रह सकता है।   

(5) शेखर उत्तर न देने में कैसे बच गया?

उत्तर – अंग्रेज़ बालक के सवाल पूछने पर शेखर एकदम चुप रह गया। पिताजी यह जानना चाहते थे कि उसने आखिर उत्तर क्यों नहीं दिया पर इसी बीच ट्रेन आ गई और वह अपने पिताजी की डाँट से बच गया।

(6) घर आकर पिता ने माँ से क्या कहा? क्यों?

उत्तर – घर आकर पिता ने शेखर की माँ से कहा कि हमारे लड़के सब बुद्धू हैं। किसी के सामने तो बोल नहीं निकलता। शेखर के पिता ने ऐसा कहा क्योंकि उन्हें यह बात चुभ रही थी कि अंग्रेज़ी का ज्ञान होने पर भी इसने उस अंग्रेज़ बालक के सवालों का जवाब क्यों नहीं दिया।  

3. निम्नलिखित प्रश्नों के सविस्तार उत्तर लिखिए :-

(1) शेखर के मन में विदेशी मात्र के प्रति घृणा क्यों हो गई थी?

उत्तर – शेखर के मन में विदेशी मात्र के प्रति घृणा हो गई थी क्योंकि उसने देखा कि भारतीय जनमानस के नस-नस में विदेशी का प्रभुत्व ही नहीं, आतंक भरा हुआ है। उसे हिंदी से कहीं अधिक अंग्रेज़ी पढ़ने और बोलने पर ज़ोर दिया जाता है। भारत भूमि पर भारतीय संस्कृति की जो दुर्गति हो रही थी उससे वह खिन्न रहने लगा था। इन सबका विरोध करने के लिए ही महात्मा गांधी ने स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात किया और शेखर इस आंदोलन से इतना प्रभावित हुआ कि विदेशी वस्तुओं की होली जलाने के बाद वह हिंदी भाषा पर भी अपना अधिकार प्राप्त करने की कोशिश में लग गया।

(2) शेखर के घर में अंग्रेजी भाषा के प्रति गहरा प्रभाव था ऐसा हम कैसे कह सकते हैं?

उत्तर – शेखर के पिता अंग्रेज़ी भाषा और सभ्यता के हिमायती थे। पिताजी और शेखर के बड़े भाई घर पर अंग्रेज़ी में ही बातें किया करते थे। शेखर को भी बचपन से अंग्रेजी बोलनी आती थी। शेखर की पहली आया ईसाई थी और अंग्रेजी बोलती थी। उसका पहला शिक्षक भी एक अमरिकन मिशनरी था, जो दिनभर अंग्रेजी बोलता था। शेखर के घर का अंग्रेज़ियत से भरा ऐसा वातावरण देखकर हम कह सकते हैं कि शेखर के घर में  अंग्रेजी भाषा के प्रति गहरा प्रभाव था।

(3) शेखर का चरित्र चित्रण कीजिए।

उत्तर – शेखर का चरित्र चित्रण कुछ इस प्रकार सही तरीके से किया जा सकता है –

विचारशील बालक – शेखर एक बालक है फिर भी उसमें विचार करने की अद्भुत क्षमता है। वह यह समझ गया था कि भारत में अंग्रेजों का अन्याय दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है और इस वजह से ही गांधीजी ने आंदोलन करने शुरू किए हैं।

स्वदेशी – शेखर के मन में स्वदेशी का भावना का जन्म होता है और वह अपने घर की विदेशी वस्तुओं की होली जला देता है।

मातृभाषा के प्रति लगाव- शेखर ने हिंदी भाषा में प्रवीणता हासिल करने के लिए मेहनत की और एक हिंदी नाटक भी लिखा।

मौन धारण करना – शेखर बालक होते हुए भी यह समझ चुका था कि जो मूर्ख होते हैं उनके सामने अपने शब्दों को जाया नहीं करना चाहिए। इसी वजह से उसने अंग्रेज़ी का ज्ञान होने पर भी अंग्रेज़ बालक के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया।

(4) शेखर ने नाटक लिखना कब आरंभ किया? क्यों?

उत्तर – शेखर गांधीजी जी के स्वदेशी आंदोलन से अत्यंत प्रभावित था। आंदोलनकारियों की समवेत पुकार ‘गांधी का बोलबाला! दुश्मन का मुँह हो काला!’ उसे अंदर से झकझोर कर मानो भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रति जागरूक कर चुकी हो। उसे अंग्रेज़ी भाषा से भी घृणा हो गई थी। इसलिए उसने हिंदी भाषा में प्रवीणता हासिल की और नाटक लिखना आरंभ किया। वास्तव में शेखर को गांधीजी के प्रति अपनी अपार श्रद्धा व्यक्त करनी थी। इसके अलावा वे स्वयं को एक कृति का स्वामी भी बनाना चाहते थे।  

4. विलोम शब्द लिखिए :-

सहयोग – असहयोग

विदेशी – स्वदेशी

बाहर – भीतर

दुश्मन – दोस्त

अंकुश – निरंकुश

5.समानार्थी शब्द लिखिए :-

अनुमति – सहमति, हामी

कष्ट – पीड़ा, दुख

निरंतर – लगातार, सतत्

आज़ाद – मुक्त, स्वतंत्र

(1) मुँह काला होना – बदनाम होना – गैर सामाजिक गतिविधियों में संलग्न होकर लोग समाज में अपना मुँह काला कर लेते हैं।

अन्य क्रांतिकारियों में से किन्हीं दो क्रांतिकारियों की जानकारी प्राप्त कीजिए और कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर – भगत सिंह (1907-1931)

भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक थे। वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य थे और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया।

मुख्य घटनाएँ:

1928: भगत सिंह और उनके साथियों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सांडर्स हत्या कांड को अंजाम दिया।

1929: भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की असेंबली में बम फेंका, जिससे किसी की जान नहीं गई, लेकिन अंग्रेजों के खिलाफ विरोध दर्ज हुआ।

1931: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर षड्यंत्र केस में फाँसी दे दी गई।

 

राम प्रसाद बिस्मिल (1897-1927)

राम प्रसाद बिस्मिल एक महान क्रांतिकारी, लेखक और कवि थे। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और देशभक्ति से जुड़ी कई कविताएँ लिखीं, जिनमें “सरफरोशी की तमन्ना” सबसे प्रसिद्ध है।

मुख्य घटनाएँ:

1918: अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू कीं और हथियारों की तस्करी में शामिल हुए।

1925: काकोरी कांड का नेतृत्व किया, जिसमें क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाने को लूट लिया।

1927: ब्रिटिश सरकार ने उन्हें काकोरी कांड के लिए दोषी ठहराया और 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गई।

हिंदी दिवस अंतर्गत विविध प्रवृत्तियों का आयोजन कीजिए और राष्ट्रभाषा का महत्त्व बढ़ाइए।

उत्तर – हिंदी दिवस: आयोजन और राष्ट्रभाषा का महत्त्व

परिचय:

हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन 1949 में संविधान सभा द्वारा हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार करने की स्मृति में मनाया जाता है। इस अवसर पर देशभर में विभिन्न कार्यक्रम और गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं, जिनका उद्देश्य हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाना और इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना होता है।

हिंदी दिवस के अंतर्गत विविध गतिविधियाँ (प्रवृत्तियाँ):

  1. निबंध और भाषण प्रतियोगिता

हिंदी भाषा के महत्त्व और विकास पर विद्यालयों, महाविद्यालयों और संस्थानों में निबंध लेखन एवं भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।

  1. कवि सम्मेलन और काव्य पाठ

हिंदी साहित्य और काव्य को प्रोत्साहित करने के लिए कवि सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं, जहाँ विद्यार्थी एवं साहित्य प्रेमी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं।

  1. वाद-विवाद और विचार गोष्ठी

हिंदी भाषा की वर्तमान स्थिति, चुनौतियाँ और विकास पर वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ और विचार गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं, जिसमें विशेषज्ञ एवं विद्वान अपने विचार रखते हैं।

  1. हिंदी पुस्तक प्रदर्शनी और पठन अभियान

हिंदी पुस्तकों को बढ़ावा देने के लिए पुस्तक मेले एवं पठन अभियान आयोजित किए जाते हैं, जिससे लोगों में हिंदी साहित्य पढ़ने की रुचि विकसित हो।

  1. नाटक और नृत्य नाटिकाएँ

हिंदी भाषा और संस्कृति से जुड़े नाटकों और नृत्य नाटिकाओं का मंचन किया जाता है, जिससे भाषा का प्रचार प्रभावी तरीके से हो सके।

  1. हिंदी कार्यशालाएँ और सेमिनार

कार्यालयों, विद्यालयों एवं सरकारी संस्थानों में हिंदी कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन कर, हिंदी के आधिकारिक और तकनीकी प्रयोग को बढ़ावा दिया जाता है।

राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का महत्त्व:

राष्ट्रीय एकता का प्रतीक: हिंदी पूरे भारत में विभिन्न समुदायों और राज्यों को एकता के सूत्र में बाँधती है।

संचार की भाषा: हिंदी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों के लोग आपस में संवाद कर सकते हैं।

साहित्य और संस्कृति का संवाहक: हिंदी साहित्य, कविता, नाटक और सिनेमा के माध्यम से भारत की संस्कृति और परंपरा को जीवंत बनाए रखती है।

शासन एवं प्रशासन की भाषा: सरकारी कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग बढ़ाकर प्रशासन को अधिक प्रभावी और सहज बनाया जा सकता है।

व्यापार और तकनीक में हिंदी: आजकल हिंदी डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया और व्यापारिक क्षेत्रों में भी महत्त्वपूर्ण स्थान बना रही है।

निष्कर्ष-

हिंदी दिवस केवल एक दिन मनाने का अवसर नहीं, बल्कि यह भाषा के संरक्षण और संवर्धन का संकल्प लेने का अवसर है। हिंदी को सम्मान देने और इसे बढ़ावा देने के लिए हमें इसे अपने दैनिक जीवन, शिक्षा, प्रशासन और तकनीक में अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। “हिंदी केवल भाषा नहीं, हमारी पहचान है।”

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