(जन्म सन् 1926 ई. : निधन सन् 1997 ई.)
धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर, 1926 ई. को इलाहाबाद में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्हों ने एम. ए., पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वहाँ हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हुए। सन् 1960 से 1988 तक ‘धर्मयुग’ जैसे प्रतिष्ठित साप्ताहिक का सम्पादन कार्य किया। उन्होंने देश-विदेश की यात्राएँ भी की थी। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सन्मानित किया था और साहित्य सेवा के लिए ‘व्यास सम्मान’ से अलंकृत किया गया था।
धर्मवीर भारती नयी कविता के श्रेष्ठ कवि, उपन्यासकार, कहानीकार और निबंधकार थे। ‘अंधायुग’, ‘कनुप्रिया’, ‘सातगीत वर्ष’, ‘ठंडा लोहा’ उनके काव्य संग्रह है। काव्य-नाटक अंधायुग उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना हैं। ‘गुनाहों के देवता’, ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ तथा ‘ग्यारह स्वप्नों का देश’ उनके प्रमुख उपन्यास हैं। ‘गुल की बन्नो’, ‘बन्द गली का आखिरी मकान आदि कहानियों का हिन्दी की नयी कहानी में विशिष्ट स्थान हैं। ‘ठेले पर हिमालय’ और ‘पश्यंती’ उनके निबंध संग्रह हैं।
प्रस्तुत संस्मरण द्वारा धर्मवीर भारतीजी ने अपने बचपन के दिनों की बातों को हमारे सामने रखा है। उनका बचपन गरीबी में बीता था। लेकिन उनको पढ़ने का बड़ा शौक था। स्कूल में से इनाम में दो किताबें मिली तो पिताजी ने अपनी अलमारी में जगह देकर लेखक की अपनी लाइब्रेरी बना दी। वहाँ से लेखक को किताबें इकट्ठी करने की धुन सवार हो गई। माँ ने पिक्चर देखने के लिए दो रुपये दिये थे लेकिन, लेखक का मन पलट जाता हैं और वे पुस्तक की दुकान में से दस आने की ‘देवदास’ नाम की पुस्तक खरीदतें हैं। लेखक ने अपने पैसों से खरीदी हुई वह पहली किताब थी। इस पाठ में लेखक ने जीवन में पुस्तकों के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
जब मैंने पहली पुस्तक खरीदी
बचपन की बात है। उस समय आर्यसमाज का सुधारवादी आन्दोलन पूरे जोर पर था। मेरे पिता आर्यसमाज रानीमंडी के प्रधान थे और माँ ने स्त्री शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी।
सत्यार्थ प्रकाश ‘सत्यार्थ मजा आता था।
पिता की अच्छी-खासी सरकारी नौकरी थी, बर्मा रोड जब बन रही थी तब बहुत कमाया था उन्होंने। लेकिन मेरे जन्म के पहले ही गाँधीजी के आह्वान पर उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी। हम लोग बड़े आर्थिक कष्टों से गुजर रहे थे फिर भी घर में नियमित पत्र-पत्रिकाएँ आती थीं- ‘आर्यमित्र’, ‘साप्ताहिक’, ‘वेदोदय’, ‘सरस्वती’, ‘गृहणी’ और दो बाल पत्रिकाएँ खास मेरे लिए ‘बालसखा’ और ‘चमचम’। उनमें होती थी परियों, राजकुमारों, दानवों और सुन्दर राजकन्याओं की कहानियाँ और रेखाचित्र | मुझे पढ़ने की चाह लग गयी। हर समय पढ़ता रहता। खाना खाते समय थाली के पास पत्रिकाएँ रखकर पढ़ता। अपनी दोनों पत्रिकाओं के अलावा भी ‘सरस्वती’ और ‘आर्यमित्र’ पढ़ने की कोशिश करता। घर में पुस्तकें भी थीं। उपनिषदें और उनके हिन्दी अनुवाद प्रकाश’ के खंडन-मंडन वाले अध्याय पूरी तरह समझ में नहीं आता था पर पढ़ने में
मेरी प्रिय पुस्तक थी स्वामी दयानन्द की एक जीवनी, रोचक शैली में लिखी हुई, अनेक चित्रों से सुसज्जित। वे तत्कालीन पाखंडों के विरुद्ध अदम्य साहस दिखाने वाले अद्भुत व्यक्तित्व थे। कितनी ही रोमांचक घटनाएँ थीं उनके जीवन की जो मुझे बहुत प्रभावित करती थी। चूहे को भगवान का मीठा खाते देख कर मान लेना कि प्रतिमाएँ भगवान नहीं होती, घर छोड़कर भाग जाना। तमाम तीर्थों, जंगलों, गुफाओं, हिमशिखरों पर साधुओं के बीच घूमना और हर जगह इसकी तलाश करना कि भगवान क्या है? सत्य क्या है? जो भी समाज विरोधी, मनुष्य विरोधी मूल्य हैं, रूढ़ियाँ हैं उनका खंडन करना और अन्त में अपने हत्यारे को क्षमा कर उसे सहारा देना। यह सब मेरे बालमन को बहुत रोमांचित करता।
माँ स्कूली पढ़ाई पर जोर देती। चिन्तित रहती कि लड़का कक्षा की किताबें नहीं पढ़ता। पास कैसे होगा? कहीं खुद साधु बनकर फिर से भाग गया तो? पिता कहते जीवन में यही पढ़ाई काम आयेगी पढ़ने दो। मैं स्कूल नहीं भेजा गया था, शुरू की पढ़ाई के लिए घर पर मास्टर रक्खे गये थे। पिता नहीं चाहते थे कि नासमझ उम्र में मैं गलत संगति में पड़ कर गाली-गलौज सीखूँ, बुरे संस्कार ग्रहण करूँ। अतः स्कूल में मेरा नाम लिखाया गया, जब मैं कक्षा दो तक की पढ़ाई घर पर कर चुका था। तीसरे दर्जे में भर्ती हुआ। उस दिन शाम को पिता उँगली पकड़ कर मुझें घुमाने ले गये। लोकनाथ की एक दुकान से ताजा अनार का शर्बत मिट्टी के कुल्हड़ में पिलाया और सर पर हाथ रख कर बोले ‘वायदा करो कि पाठ्यक्रम की किताबें भी इतने ही ध्यान से पढ़ोगे, माँ की चिन्ता मिटाओगे। ‘उनका आशीर्वाद था या मेरा जी तोड़ परिश्रम कि तीसरे चौथे में मेरे अच्छे नम्बर आये और पाँचवें दर्जे में तो मैं फर्स्ट आया। माँ ने आँसू भर कर गले लगा लिया, पिता मुस्कुराते रहे, कुछ बोले नहीं।
अंग्रेजी में मेरे नम्बर सबसे ज्यादा थे, अतः स्कूल से इनाम में दो अंग्रेजी किताबें मिली थीं। एक में दो छोटे बच्चे घोंसलों की खोज में बागों और कुंजों में भटकते हैं और इस बहाने पक्षियों की जातियाँ, उनकी बोलियाँ, उनकी आदतों की जानकारी उन्हें मिलती हो। दूसरी किताब थी ‘ट्रस्टी द रग’ जिसमें पानी की कथाएँ थीं, कितने प्रकार के होते हैं। कौन कौन सा माल लाद कर लाते हैं, कहाँ ले जाते हैं, नाविकों की ज़िन्दगी कैसी होती है, कैसे-कैसे जीव मिलते हैं, कहाँ व्हेल होती है, कहाँ शार्क होती है।
इन दो किताबों ने एक नई दुनिया का द्वार मेरे लिए खोल दिया। पक्षियों से मेरा आकाश और रहस्यों से भरा समुद्र। पिता ने अलमारी के एक खाने में अपनी चीजें हटाकर जगह बनायी और मेरी दोनों किताबें उस खाने में रख कर कहा, ‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का यह तुम्हारी लाइब्रेरी है।’ यहाँ से आरम्भ हुई उस बच्चे की लाइब्रेरी आप पूछ सकते हैं कि किताबें पढ़ने का शौक तो ठीक, किताबें इकट्ठी करने की सनक क्यों सवार हुई, उसका कारण भी बचपन का एक अनुभव है।
इलाहाबाद भारत के प्रख्यात शिक्षा केन्द्रों में एक रहा है। ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा स्थापित पब्लिक लाइब्रेरी से लेकर महामना मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित भारती भवन तक अपने मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी हरि भवन। स्कूल से छुट्टी मिली कि मैं उसमें जाकर अध्ययन करता।
शब्दार्थ और टिप्पणी
आह्वान – बुलावा
अदम्य – जो दबाया न जा सके, प्रबल
रोमांचित – पुलकित, जिसके रोयें खड़े हों
टोल्सटाय – रुसी कथाकार
विक्टर ह्यूगो – फ्रांसिसी कथाकार
मैक्सिम – गोर्की एक रुसी कथाकार
ईश्यू कराना – निर्गत कराना
कोशिश – प्रयत्न
रोचक – रुचि अनुसार
जीवनी – जीवनचरित्र
खंडन – विभाजन
संगति – संगत, मेल
कुल्हड़ – मिट्टी का बरतन
अक्सर – प्राय:
सहमति – अनुमोदन
1.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :-
(1) माँ की स्कूली पढ़ाई पर जोर देने से लेखक की पढ़ाई पर क्या असर हुआ?
उत्तर – बचपन में धर्मवीर बालक भारती पाठ्यक्रम की पुस्तकों में अधिक रुचि न लेकर बाहरी पुस्तकों में अधिक रुचि रखा करते थे। इस पर एक दिन उनकी माता ने चिंता जाहीर की कि ऐसे में वे स्कूली जीवन की परीक्षाएँ कैसे पास करेगा? इस पर एक दिन पिता ने पुत्र से वादा लिया कि वह पाठ्यक्रम की किताबें भी ध्यान से पढ़ेगा और माँ की चिंता दूर करेगा। बालक भारती पर इसका इतना असर हुआ कि उन्होंने जी-तोड़ परिश्रम किया, जिससे तीसरी और चौथी कक्षा में उनके अच्छे अंक आए तथा पाँचवीं कक्षा में वे अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
(2) लेखक की प्रिय पुस्तक कौन-सी थी? वे किन बातों से सम्बन्धित थी?
उत्तर – लेखक धर्मवीर भारती की प्रिय पुस्तक स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी ‘सत्यार्थ प्रकाश’ थी। इस पुस्तक में स्वामी दयानन्द की जीवनी रोचक शैली में लिखी हुई थी। यह अनेक चित्रों से सुसज्जित थी। इसमें उनके द्वारा तत्कालीन पाखंडों के विरुद्ध आवाज उठाने के संदर्भ थे। अनेक रोमांचक घटनाएँ थीं। प्रतिमाएँ भगवान नहीं होती इसके पीछे उनके तर्क थे, ज्ञानप्राप्ति के लिए संघर्ष था और अंत में अपने हत्यारे को क्षमा कर उसे सहारा देना जैसी अनेक बातें थीं।
(3) माँ के दिये हुए रुपयों का लेखक ने क्या किया? क्यों?
उत्तर – माँ के दिये हुए दो रुपए जिससे लेखक को ‘देवदास’ फिल्म देखनी थी, फिल्म न देखकर थिएटर के सामने वाले परिचित पुस्तक की दुकान से दस आने में देवदास उपन्यास ही खरीद लिया और बाकी बचे पैसे घर जाकर माँ के हाथ में रख दिए। उन्होंने ऐसा किया ताकि वे पैसे भी बचा सके और अपनी पहली पुस्तक भी खरीद सके।
2. प्रश्नों प्रश्नों के उत्तर दो-दो वाक्यों में लिखिए :-
(1) बचपन में लेखक के घर में कौन-कौन सी पत्रिकाएँ आती थी?
उत्तर – बचपन में लेखक के घर में ‘आयमित्र’, ‘साप्ताहिक’, ‘वेदोदय’, ‘सरस्वती और गृहिणी’ ये पत्रिकाएँ आती थीं। इन पत्रिकाओं के अतिरिक्त ‘बालसखा’ और ‘चमचम’ ये दो बाल पत्रिकाएँ खास लेखक के लिए आती थीं।
(2) बचपन में लेखक को स्वामी दयानन्दजी की जीवनी क्यों पसंद थी?
उत्तर – बचपन में लेखक को स्वामी दयानन्दजी की जीवनी उनकी प्रिय पुस्तक थी क्योंकि इसमें स्वामी दयानन्द की जीवनी रोचक शैली में लिखी हुई, अनेक चित्रों से सुसज्जित थी तथा इसमें वे तत्कालीन पाखंडों के विरुद्ध अदम्य साहस दिखाने वाले अद्भुत व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत थे।
(3) लेखक को अंग्रेजी में सबसे अधिक अंक पाने के बाद उपहार में कौन सी दो पुस्तकें मिली थी और उनसे लेखक को क्या जानकारी प्राप्त हुई?
उत्तर – लेखक को अंग्रेजी में सबसे अधिक अंक प्राप्त होने पर उपहार में अंग्रेज़ी की दो पुस्तकें मिली थीं। पहली पुस्तक से लेखक को पक्षियों की जातियों, उनकी बोलियों और आदतों के बारे में जानकारी मिली। दूसरी पुस्तक थी – ‘ट्रस्टी द रग’, जिससे लेखक को समुद्री जीवन, जहाज के प्रकारों, नाविकों और मछलियों के बारे में अनेक जानकारियाँ प्राप्त हुईं।
(4) लेखक की माँ ने लेखक को कितने रुपये दिये? क्यों?
उत्तर – लेखक की माँ ने लेखक को देवदास फिल्म देखने के लिए दो रुपये दिये थे। वास्तव में लेखक की माँ ने यह अनुभव किया कि लेखक यदा-कदा उस फिल्म का गीत गुनगुनाते रहते हैं। इसलिए उन्हें लगा कि बेटे को फिल्म देखने की इच्छा है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए :-
(1) लेखक को बचपन से क्या शौक था?
उत्तर – लेखक को बचपन से विविध पुस्तकें पढ़ने का शौक था।
(2) लेखक के पिता कहाँ के प्रधान थे?
उत्तर – लेखक के पिता रानीमंडी में स्थित आर्यसमाज संस्था के प्रधान थे।
(3) लेखक की प्रिय पुस्तक कौन सी थी?
उत्तर – लेखक की प्रिय पुस्तक स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ थी।
(4) लेखक कौन-सी फिल्म देखने गये?
उत्तर – लेखक ‘देवदास’ फिल्म देखने गये।
(5) लेखक की माँ की आँखों में आँसू क्यों आ गए?
उत्तर – लेखक धर्मवीर भारती जब कक्षा पाँचवीं में प्रथम स्थान प्राप्त किए तो खुशी के मारे लेखक की माँ की आँखों में आँसू आ गए।
4. निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी शब्द लिखिए :-
(1) लाइब्रेरी – पुस्तकालय
(2) थियेटर – प्रेक्षागृह
(3) पिक्चर – चलचित्र
(4) इंडिया – भारत
(5) लाइब्रेरियन – पुस्तकालयाध्यक्ष
5.निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए:
(1) आरम्भ X अंत
(2) आनंद X विषाद
(3) जीवन X मरण
(4) छोटा X बड़ा
(5) दुःख X सुख
6. निम्नलिखित वाक्यों में से साधारण, संयुक्त तथा मिश्रित वाक्यों को पहचान कर नाम लिखिए:
(1) मेरे पिता आर्य समाज रानी मंडी के प्रधान थे और माँ ने स्त्री शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी।
उत्तर – संयुक्त वाक्य
(2) माँ स्कूली पढ़ाई पर जोर देती थी।
उत्तर – साधारण वाक्य
(3) जल्दी-जल्दी घर लौट आया और दो रुपये में से एक रुपये छह आना माँ के हाथ में रख दिया।
उत्तर – संयुक्त वाक्य
(4) उनका आशीर्वाद था या मेरा जी-तोड़ परिश्रम कि तीसरे चोथे में मेरे अच्छे नम्बर आये और पाँचवें दर्जे में तो मैं फर्स्ट आया।
उत्तर – मिश्रित वाक्य
(5) उस साल इण्टरमीडिएट पास किया था।
उत्तर – साधारण वाक्य
7. संधि विग्रह कीजिए :-
(1) वीरोचित = वीर + उचित
(2) रमेश – रामा + ईश
(3) देवोचित = देव + उचित
(4) सुरेश = सुर + ईश
अपने स्कूल की लाइब्रेरी में जाकर अपनी पसंदीदा पुस्तकों की सूची बनाइए।
उत्तर – मेरी पसंदीदा पुस्तकों की सूची कुछ इस प्रकार बनी है।
- हिंदी साहित्य की प्रमुख पुस्तकें
गोदान – मुंशी प्रेमचंद
गुनाहों का देवता – धर्मवीर भारती
राग दरबारी – श्रीलाल शुक्ल
मधुशाला – हरिवंश राय बच्चन
कर्बला – राही मासूम रज़ा
- भारतीय आध्यात्मिक और धार्मिक ग्रंथ
भगवद गीता – वेदव्यास
रामचरितमानस – तुलसीदास
श्रीरामकृष्ण वचनामृत – महेंद्रनाथ गुप्त
अनामदास का पोथा – हजारीप्रसाद द्विवेदी
योगसूत्र – पतंजलि
- आत्मकथा और जीवनी
मेरी सत्य के प्रयोग – महात्मा गांधी
अग्नि की उड़ान – डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
Playing It My Way – सचिन तेंदुलकर
The Story of My Experiments with Truth – महात्मा गांधी
Wings of Fire – ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
- ऐतिहासिक और प्रेरणादायक पुस्तकें
भारत एक खोज – जवाहरलाल नेहरू
फ्रीडम एट मिडनाइट – लैरी कॉलिन्स और डॉमिनिक लैपियर
Discovery of India – जवाहरलाल नेहरू
Sapiens: A Brief History of Humankind – युवाल नोआ हरारी
The Diary of a Young Girl – ऐनी फ्रैंक
- अंग्रेजी साहित्य की प्रसिद्ध पुस्तकें
Pride and Prejudice – जेन ऑस्टिन
To Kill a Mockingbird – हार्पर ली
The Great Gatsby – एफ. स्कॉट फिट्ज़गेराल्ड
1984 – जॉर्ज ऑरवेल
Moby-Dick – हरमन मेलविल
- विज्ञान और तकनीक से जुड़ी पुस्तकें
A Brief History of Time – स्टीफन हॉकिंग
The Selfish Gene – रिचर्ड डॉकिंस
The Innovators – वॉल्टर आइजैकसन
Cosmos – कार्ल सागन
Zero to One – पीटर थील
- हिंदी कविता और काव्य संकलन
साकेत – मैथिलीशरण गुप्त
कुरुक्षेत्र – रामधारी सिंह दिनकर
रश्मिरथी – रामधारी सिंह दिनकर
परिशिष्ट – अज्ञेय
नील कंठ – हरिवंश राय बच्चन
- रहस्य, रोमांच और थ्रिलर
Sherlock Holmes Series – आर्थर कॉनन डॉयल
The Da Vinci Code – डैन ब्राउन
Gone Girl – गिलियन फ्लिन
And Then There Were None – अगाथा क्रिस्टी
The Girl with the Dragon Tattoo – स्टिग लार्सन
- बच्चों के लिए रोचक पुस्तकें
पंचतंत्र की कहानियाँ – विष्णु शर्मा
अलिफ लैला – अरबी लोककथाएँ
गुलिवर की यात्राएँ – जोनाथन स्विफ्ट
हैरी पॉटर सीरीज – जे.के. रोलिंग
Alice’s Adventures in Wonderland – लुईस कैरोल
- व्यापार और प्रेरणादायक पुस्तकें –
Rich Dad Poor Dad – रॉबर्ट कियोसाकी
The 7 Habits of Highly Effective People – स्टीफन कोवी
Think and Grow Rich – नेपोलियन हिल
The Power of Habit – चार्ल्स डुहिग
Atomic Habits – जेम्स क्लियर
“मेरी प्रिय पुस्तक’ विषय पर निबंध लेखन करवाइए।
उत्तर – मेरी प्रिय पुस्तक ‘रामचरितमानस’
भूमिका –
पुस्तकें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती हैं। वे हमें ज्ञान, प्रेरणा और मनोरंजन प्रदान करती हैं। पुस्तकें न केवल हमारा मार्गदर्शन करती हैं, बल्कि हमारे विचारों को भी समृद्ध बनाती हैं। मैंने अब तक कई पुस्तकें पढ़ी हैं, लेकिन ‘रामचरितमानस’ मेरी सबसे प्रिय पुस्तक है। इस पुस्तक ने मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है।
पुस्तक का परिचय-
‘रामचरितमानस’ महान कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक अद्भुत ग्रंथ है। यह ग्रंथ भगवान श्रीराम के जीवन और आदर्शों पर आधारित है। इसे सात कांडों में विभाजित किया गया है, जिसमें श्रीराम के जन्म से लेकर उनके राज्याभिषेक तक की कथा वर्णित है। यह पुस्तक न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह हमें जीवन के मूल्यों, कर्तव्य, प्रेम और समर्पण की शिक्षा भी देती है।
इस पुस्तक की विशेषताएँ –
आदर्श जीवन की प्रेरणा-
श्रीराम के चरित्र से हमें सत्य, न्याय, दया और धर्म का पालन करने की प्रेरणा मिलती है।
भाषा और शैली –
तुलसीदासजी ने इसे अवधी भाषा में लिखा है, जो सरल और काव्यात्मक है। इसके दोहे और चौपाइयाँ हृदय को छू लेने वाली हैं।
सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्य –
इसमें भक्ति, सेवा, त्याग और कर्तव्यपरायणता जैसी शिक्षाएँ दी गई हैं, जो हमें अपने जीवन में अपनानी चाहिए।
पारिवारिक और सामाजिक समरसता –
इस ग्रंथ में पारिवारिक आदर्शों, भाइयों के प्रेम, गुरु-शिष्य संबंध और स्त्री सम्मान की सुंदर झलक मिलती है।
पुस्तक से मिलने वाली शिक्षा –
‘रामचरितमानस’ हमें बताती है कि जीवन में कठिनाइयाँ कितनी भी बड़ी क्यों न हों, हमें धैर्य और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए। यह ग्रंथ हमें सिखाता है कि माता-पिता, गुरु और समाज के प्रति हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिए।
निष्कर्ष –
“रामचरितमानस” मेरी प्रिय पुस्तक है क्योंकि यह न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह जीवन जीने की कला भी सिखाती है। इसे पढ़कर मुझे आत्मिक शांति और मानसिक प्रेरणा मिलती है। हर व्यक्ति को इस अद्भुत ग्रंथ को पढ़ना चाहिए, ताकि वह अपने जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों को अपना सके।
“पुस्तकें केवल कागज के पन्ने नहीं होतीं, वे ज्ञान और संस्कारों का अनमोल भंडार होती हैं।”
विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय ‘नेशनल लाइब्रेरी’ की कक्षा में विद्यार्थिओं की जानकारी दे।
उत्तर – विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय – नेशनल लाइब्रेरी, वाशिंगटन डी.सी. है।
परिचय –
विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय ‘लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस’ (Library of Congress) है, जिसे ‘नेशनल लाइब्रेरी ऑफ अमेरिका’ भी कहा जाता है। यह पुस्तकालय अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी.सी. में स्थित है और यह विश्व का सबसे बड़ा पुस्तक संग्रहालय है।
मुख्य जानकारी:
स्थान: वाशिंगटन डी.सी., अमेरिका
स्थापना: 24 अप्रैल 1800
पुस्तकों की संख्या: 173 मिलियन (17.3 करोड़ से अधिक)
दस्तावेज़ संग्रह: 470 से अधिक भाषाओं में पुस्तकें और 39 मिलियन से अधिक कैटलॉग रिकॉर्ड
संरचना: तीन प्रमुख इमारतें –
थॉमस जेफरसन बिल्डिंग
जेम्स मैडिसन मेमोरियल बिल्डिंग
जॉन एडम्स बिल्डिंग
संग्रह की विविधता: पांडुलिपियाँ, मानचित्र, अखबार, फिल्मों की रिकॉर्डिंग, ध्वनि रिकॉर्ड, चित्र और डिजिटल संग्रह
इतिहास –
1800 में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एडम्स ने इसे स्थापित किया।
1814 में ब्रिटिश सेना ने इसे जला दिया, जिससे पूरा पुस्तकालय नष्ट हो गया।
1815 में राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन ने अपनी 6,487 पुस्तकों का दान देकर इसे फिर से शुरू किया।
तब से, यह लगातार दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय बनता गया।
विशेषताएँ:
✅ विश्व का सबसे बड़ा पुस्तक संग्रह: 173 मिलियन से अधिक किताबें और दस्तावेज़।
✅ 470+ भाषाओं में सामग्री: दुनिया भर की भाषाओं में साहित्य और ग्रंथ संग्रहीत।
✅ पुरानी और दुर्लभ पांडुलिपियाँ: हजारों ऐतिहासिक और दुर्लभ पांडुलिपियाँ यहाँ संरक्षित हैं।
✅ डिजिटल संग्रह: पुस्तकालय की अधिकांश सामग्री डिजिटल रूप में भी उपलब्ध है।
✅ लोकतंत्र और कानून पर विशेष संग्रह: अमेरिकी संविधान, ऐतिहासिक कानून और सरकारी दस्तावेज़ संरक्षित हैं।
निष्कर्ष –
लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस न केवल अमेरिका बल्कि पूरे विश्व के लिए ज्ञान का सबसे बड़ा भंडार है। यह पुस्तकालय शोधकर्ताओं, विद्वानों और इतिहासकारों के लिए एक बहुमूल्य स्रोत है। यह पुस्तकालय न केवल पुस्तकों का भंडार है, बल्कि संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों को भी सँजोए हुए है।