तुम कब जाओगे, अतिथि
इस पाठ को पढ़ने के बाद आप ये जान/बता पाएँगे
- जिस प्रकार दो दिनों के बाद मछली से बू आने लगती है उसी प्रकार मेहमान से भी।
- आधुनिक अतिथि कैसे हों।
- मेजबान की समस्या।
- अतिथि के रूप में नहीं तिथि के रूप में रिश्तेदारों के यहाँ पहुँचे।
- भाषा ज्ञान
- अन्य जीवनोपयोगी जानकारियाँ
लेखक परिचय – शरद जोशी (1931 – 1991)
जीवन वृत्त
शरद जोशी का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में 21 मई 1931 को हुआ। इनका बचपन कई शहरों में बीता। कुछ समय तक यह सरकारी नौकरी में रहे, फिर इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया। इन्होंने आरंभ में कुछ कहानियाँ लिखीं, फिर पूरी तरह व्यंग्य—लेखन ही करने लगे। इन्होंने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य—व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। हिंदी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने वाले प्रमुख व्यंग्यकारों में शरद जोशी भी एक हैं।
कृतित्व
शरद जोशी की भाषा अत्यंत सरल और सहज है। मुहावरों और हास—परिहास का हलका स्पर्श देकर इन्होंने अपनी रचनाओं को अधिक रोचक बनाया है। धर्म, अध्यात्म, राजनीति, सामाजिक जीवन, व्यक्तिगत आचरण, कुछ भी शरद जोशी की पैनी नज़र से बच नहीं सका है। इन्होंने अपनी व्यंग्य—रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण किया है। पाठक इस चित्रण को पढ़कर चकित भी होता है और बहुत कुछ सोचने को विवश भी। शरद जोशी की प्रमुख व्यंग्य—कृतियाँ हैं : परिक्रमा, किसी बहाने, जीप पर सवार इल्लियाँ, तिलस्म, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, प्रतिदिन। दो व्यंग्य नाटक हैं : अंधों का हाथी और एक था गधा। एक उपन्यास है : मैं, मैं, केवल मैं, उर्फ़ कमलमुख बी-ए-।
पाठ प्रवेश
प्रस्तुत पाठ ‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ में शरद जोशी ने ऐसे व्यक्तियों की खबर ली है, जो अपने किसी परिचित या रिश्तेदार के घर बिना कोई पूर्व सूचना दिए चले आते हैं और फिर जाने का नाम ही नहीं लेते,भले ही उनका टिके रहना मेज़बान पर कितना ही भारी क्यों न पड़े। अच्छा अतिथि कौन होता है? वह, जो पहले से अपने आने की सूचना देकर आए और एक—दो दिन मेहमानी कराके विदा हो जाए या वह, जिसके आगमन के बाद मेज़बान वह सब सोचने को विवश हो जाए, जो इस पाठ के मेज़बान निरंतर सोचते रहे।
तुम कब जाओगे, अतिथि
आज तुम्हारे आगमन के चतुर्थ दिवस पर यह प्रश्न बार—बार मन में घुमड़ रहा है- तुम कब जाओगे, अतिथि?
तुम जहाँ बैठे निस्संकोच सिगरेट का धुआँ फेंक रहे हो, उसके ठीक सामने एक कैलेंडर है। देख रहे हो ना! इसकी तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से फड़फड़ाती रहती हैं। विगत दो दिनों से मैं तुम्हें दिखाकर तारीखें बदल रहा हूँ। तुम जानते हो, अगर तुम्हें हिसाब लगाना आता है कि यह चौथा दिन है, तुम्हारे सतत आतिथ्य का चौथा भारी दिन! पर तुम्हारे जाने की कोई संभावना प्रतीत नहीं होती। लाखों मील लंबी यात्रा करने के बाद वे दोनों एस्ट्रॉनाट्स भी इतने समय चाँद पर नहीं रुके थे, जितने समय तुम एक छोटी—सी यात्रा कर मेरे घर आए हो। तुम अपने भारी चरण—कमलों की छाप मेरी ज़मीन पर अंकित कर चुके, तुमने एक अंतरंग निजी संबंध मुझसे स्थापित कर लिया, तुमने मेरी आर्थिक सीमाओं की बैंजनी चट्टान देख ली; तुम मेरी काफ़ी मिट्टी खोद चुके। अब तुम लौट जाओ, अतिथि! तुम्हारे जाने के लिए यह उच्च समय अर्थात हाईटाइम है। क्या तुम्हें तुम्हारी पृथ्वी नहीं पुकारती?
उस दिन जब तुम आए थे, मेरा हृदय किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा था। अंदर—ही—अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया। उसके बावजूद एक स्नेह—भीगी मुसकराहट के साथ मैं तुमसे गले मिला था और मेरी पत्नी ने तुम्हें सादर नमस्ते की थी। तुम्हारे सम्मान में ओ अतिथि, हमने रात के भोजन को एकाएक उच्च—मध्यम वर्ग के डिनर में बदल दिया था। तुम्हें स्मरण होगा कि दो सब्ज़ियों और रायते के अलावा हमने मीठा भी बनाया था। इस सारे उत्साह और लगन के मूल में एक आशा थी। आशा थी कि दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमाननवाज़ी की छाप अपने हृदय में ले तुम चले जाओगे। हम तुमसे रुकने के लिए आग्रह करेंगे, मगर तुम नहीं मानोगे और एक अच्छे अतिथि की तरह चले जाओगे। पर ऐसा नहीं हुआ! दूसरे दिन भी तुम अपनी अतिथि—सुलभ मुसकान लिए घर में ही बने रहे। हमने अपनी पीड़ा पी ली और प्रसन्न बने रहे। स्वागत—सत्कार के जिस उच्च बिंदु पर हम तुम्हें ले जा चुके थे, वहाँ से नीचे उतर हमने फिर दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की और रात्रि को तुम्हें सिनेमा दिखाया। हमारे सत्कार का यह आखिरी छोर है, जिससे आगे हम किसी के लिए नहीं बढे़। इसके तुरंत बाद भावभीनी विदाई का वह भीगा हुआ क्षण आ जाना चाहिए था, जब तुम विदा होते और हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाते। पर तुमने ऐसा नहीं किया।
तीसरे दिन की सुबह तुमने मुझसे कहा, “मैं धोबी को कपड़े देना चाहता हूँ।” यह आघात अप्रत्याशित था और इसकी चोट मार्मिक थी। तुम्हारे सामीप्य की वेला एकाएक यों रबर की तरह खिंच जाएगी, इसका मुझे अनुमान न था। पहली बार मुझे लगा कि अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
“किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे।” मैंने कहा। मन—ही—मन एक विश्वास पल रहा था कि तुम्हें जल्दी जाना है।
“कहाँ है लॉण्ड्री?”
“चलो चलते हैं।” मैंने कहा और अपनी सहज बनियान पर औपचारिक कुर्ता डालने लगा।
“कहाँ जा रहे हैं?” पत्नी ने पूछा।
“इनके कपड़े लॉण्ड्री पर देने हैं।” मैंने कहा।
मेरी पत्नी की आँखें एकाएक बड़ी—बड़ी हो गईं। आज से कुछ बरस पूर्व उनकी ऐसी आँखें देख मैंने अपने अकेलेपन की यात्रा समाप्त कर बिस्तर खोल दिया था।
पर अब जब वे ही आँखें बड़ी होती हैं तो मन छोटा होने लगता है। वे इस आशंका और भय से बड़ी हुई थीं कि अतिथि अधिक दिनों ठहरेगा। और आशंका निर्मूल नहीं थी, अतिथि! तुम जा नहीं रहे। लॉण्ड्री पर दिए कपड़े धुलकर आ गए और तुम यहीं हो। तुम्हारे भरकम शरीर से सलवटें पड़ी चादर बदली जा चुकी और तुम यहीं हो। तुम्हें देखकर फूट पड़नेवाली मुसकराहट धीरे—धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त हो गई है। ठहाकों के रंगीन गुब्बारे, जो कल तक इस कमरे के आकाश में उड़ते थे, अब दिखाई नहीं पड़ते। बातचीत की उछलती हुई गेंद चर्चा के क्षेत्र के सभी कोनलों से टप्पे खाकर फिर सेंटर में आकर चुप पड़ी है। अब इसे न तुम हिला रहे हो, न मैं। कल से मैं उपन्यास पढ़ रहा हूँ और तुम फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे हो। शब्दों का लेन—देन मिट गया और चर्चा के विषय चुक गए। परिवार, बच्चे, नौकरी, फिल्म, राजनीति, रिश्तेदारी, तबादले, पुराने दोस्त, परिवार—नियोजन, मँहगाई, साहित्य और यहाँ तक कि आँख मार—मारकर हमने पुरानी प्रेमिकाओं का भी ज़िक्र कर लिया और अब एक चुप्पी है। सौहार्द अब शनैः—शनैः बोरियत में रूपांतरित हो रहा है। भावनाएँ गालियों का स्वरूप ग्रहण कर रही हैं, पर तुम जा नहीं रहे। किस अदृश्य गोंद से तुम्हारा व्यक्तित्व यहाँ चिपक गया है, मैं इस भेद को सपरिवार नहीं समझ पा रहा हूँ। बार—बार यह प्रश्न उठ रहा है- तुम कब जाओगे, अतिथि?
कल पत्नी ने धीरे से पूछा था,
“कब तक टिकेंगे ये?”
मैंने कंधे उचका दिए, “क्या कह सकता हूँ!”
“मैं तो आज खिचड़ी बना रही हूँ। हलकी रहेगी।”
“बनाओ।”
सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी। डिनर से चले थे, खिचड़ी पर आ गए। अब भी अगर तुम अपने बिस्तर को गोलाकार रूप नहीं प्रदान करते तो हमें उपवास तक जाना होगा। तुम्हारे—मेरे संबंध एक संक्रमण के दौर से गुज़र रहे हैं। तुम्हारे जाने का यह चरम क्षण है। तुम जाओ न अतिथि! तुम्हें यहाँ अच्छा लग रहा है न! मैं जानता हूँ। दूसरों के यहाँ अच्छा लगता है। अगर बस चलता तो सभी लोग दूसरों के यहाँ रहते, पर ऐसा नहीं हो सकता। अपने घर की महत्ता के गीत इसी कारण गाए गए हैं। होम को इसी कारण स्वीट—होम कहा गया है कि लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौडे़ं। तुम्हें यहाँ अच्छा लग रहा है, पर सोचो प्रिय, कि शराफ़त भी कोई चीज़ होती है और गेट आउट भी एक वाक्य है, जो बोला जा सकता है। अपने खर्राटों से एक और रात गुंजायमान करने के बाद कल जो किरण तुम्हारे बिस्तर पर आएगी वह तुम्हारे यहाँ आगमन के बाद पाँचवें सूर्य की परिचित किरण होगी। आशा है, वह तुम्हें चूमेगी और तुम घर लौटने का सम्मानपूर्ण निर्णय ले लोगे। मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी। उसके बाद मैं स्टैंड नहीं कर सकूँगा और लड़खड़ा जाऊँगा। मेरे अतिथि, मैं जानता हूँ कि अतिथि देवता होता है, पर आखिर मैं भी मनुष्य हूँ। मैं कोई तुम्हारी तरह देवता नहीं। एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते। देवता दर्शन देकर लौट जाता है। तुम लौट जाओ अतिथि! इसी में तुम्हारा देवत्व सुरक्षित रहेगा। यह मनुष्य अपनी वाली पर उतरे, उसके पूर्व तुम लौट जाओ!
उफ़, तुम कब जाओगे, अतिथि?
पाठ का सार
‘तुम कब जाओगे अतिथि पाठ में उन्होंने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो बिना कुछ तिथि बताए घर में आ टपकते हैं और जाने का नाम तक नहीं लेते हैं। उनके सम्मान और सेवा में घर के लोग जुट जाते हैं पर अतिथि ऐसे हैं कि जाने का नाम तक नहीं लेते हैं। ऐसे ही एक अतिथि लेखक के घर में चार दिनों से हैं। उनकी सेवा लेखक और उनकी धर्मपत्नी दोनों ने की।
अच्छा खाना बनाकर खिलाया, सिनेमा दिखाया। इधर उधर की खूब बातें कीं। स्मृतियों को ताजा किया। उनके कपड़े लॉन्ड्री से धुलवाया। पर अतिथि हैं कि जहाँ के तहाँ जमे बैठे हैं। जाने का नाम नहीं ल रहे हैं। फिर मेजवान की चिन्ता बढ़ गई। वे हर पल यही सोचने लगे कि अतिथि कब और कैसे जाएँगे?
उन्होंने कहा कि दूसरों के यहाँ रहना सबको अच्छा लगता है क्योंकि वहाँ सेवा मिलती है और आवाभगत भी अच्छी होती है। पर यह सब करने वालों को जो हालत होती है उस पर अतिथि ध्यान नहीं देते हैं। इसलिए अपना घर सबसे अच्छा है’ का पाठ पढ़ाया जाता है। यदि हम अपने घर को स्वीट होम नहीं कहेंगे तो लोग सब जगह अतिथि बन कर रहेंगे और दूसरे का घर निवास स्थल हो जाएगा। अतिथि देवता की तरह माना जाता है जब वह किसी के घर में अनधिकार प्रवेश कर लें, तथा कुछ समय रहने के बाद सम्मान के साथ वह वहाँ से निकल जाए। यदि वह विशेष उद्देश्य से किसके यहाँ रहने लगता है, घर के लोगों का व्यवहार बदलने पर भी जाने का नाम नहीं लेता है तो अतिथि देवता नहीं रह जाता और मेजवान को मजबूर होकर कहना पड़ता है कि तुम कब जाओगे अतिथि।
शब्दार्थ
- निस्संकोच — संकोचरहित, बिना संकोच के
- नम्रता — नत होने का भाव, स्वभाव में नरमी का होना
- सतत — निरंतर, लगातार
- आतिथ्य — आवभगत
- एस्ट्रॉनाट्स — अंतरिक्ष यात्री
- अंतरंग — घनिष्ठ, गहरा
- आशंका — खतरा, भय, डर
- मेहमाननवाज़ी — अतिथि सत्कार
- छोर — किनारा, सीमा
- भावभीनी — प्रेम से ओतप्रोत
- आघात — चोट, प्रहार
- अप्रत्याशित — आकस्मिक, अनसोचा
- मार्मिक — मर्मस्पर्शी
- सामीप्य — निकटता, समीपता
- औपचारिक — दिखावटी, रस्मी
- निर्मूल — मूलरहित, बिना जड़ का
- कोनलों — कोनों से
- सौहार्द — मैत्री, हृदय की सरलता
- रूपांतरित — जिसका रूप (आकार) बदल दिया गया हो
- ऊष्मा — गरमी, उग्रता
- संक्रमण — एक स्थिति या अवस्था से दूसरी में प्रवेश
- गुंजायमान — गूँजता हुआ
1. नीचे दिए गए बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्प का चयन कीजिए-
1. उसकी तारीखें अपनी सीमा में _________ से फड़फड़ाती रहती हैं।
क. श्रद्धा
ख. करुणा
ग. प्रेम
घ. नम्रता
उत्तर – घ. नम्रता
2. तुम्हारे जाने की कोई ________ प्रतीत नहीं होती।
क. आशंका
ख. आसार
ग. संभावना
घ. शरण
उत्तर – ग. संभावना
3. तुम मेरी काफी ________ खोद चुके।
क. मिट्टी
ख. गड्ढा
ग. खेत
घ. जमीन
उत्तर – क. मिट्टी
4. सत्कार की क्या _________ समाप्त हो रही थी?
क. ऊष्मा
ख. जोश
ग. ज़ोर
घ. दौर
उत्तर – क. ऊष्मा
5. अतिथि __________ होता है।
क. अपना
ख. सबका
ग. देवता
घ. दानव
उत्तर – ग. देवता
2. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए-
1. अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा था?
उत्तर – अतिथि चार दिनों से लेखक के घर पर रह रहा था।
2. विगत कितने दिनों से लेखक तारीखें बदल रहे हैं?
उत्तर – विगत दो दिनों से लेखक तारीखें बदल रहे हैं।
3. सब्जी और रायते के अलावा लेखक ने खाने में और क्या बनवाया था?
उत्तर – सब्जी और रायते के अलावा लेखक ने खाने में मीठा भी बनवाया था ।
4. अतिथि के सम्मान में लेखक ने रात का भोजन किसमें बदल दिया था?
उत्तर – अतिथि के सम्मान में लेखक ने रात का भोजन एकाएक उच्च—मध्यम वर्ग के डिनर में बदल दिया था।
5. दूसरे दिन रात्रि को लेखक मेहमान को कहाँ ले गए?
उत्तर – दूसरे दिन रात्रि को लेखक मेहमान को सिनेमा ले गए ।
6. तीसरे दिन सुबह अतिथि ने लेखक से क्या कहा?
उत्तर – तीसरे दिन सुबह अतिथि ने लेखक से कहा “मैं धोबी को कपड़े देना चाहता हूँ।”
7. लॉण्ड्री का नाम आते ही लेखक के मन में कौन-सी खास बात पलने लगी?
उत्तर – लॉण्ड्री का नाम आते ही लेखक के मन में यह बात पलने लगी कि कपड़े जल्दी धुल जाएँगे और अतिथि जल्दी चले जाएँगे।
8. एकाएक पत्नी की आँखें कैसी हो गईं?
उत्तर – पत्नी की आँखें एकाएक बड़ी—बड़ी हो गईं।
9. जब पत्नी की आँखें बड़ी होती हैं तो लेखक कैसे हो जाते हैं?
उत्तर – जब पत्नी की आँखें बड़ी होती हैं तो लेखक का मन छोटा होने लगता है।
10. लेखक की पत्नी की कौन-सी आशंका निर्मूल नहीं थी?
उत्तर – लेखक की पत्नी की वो आशंका निर्मूल नहीं थी जिसमें अतिथि अधिक दिनों के लिए ठहरने वाला था।
11. ठहाकों के रंगीन गुब्बारे अब कहाँ उड़ रहे थे?
उत्तर – ठहाकों के रंगीन गुब्बारे कमरे के आकाश में उड़ रहे थे।
12. जब लेखक उपन्यास पढ़ रहे थे तो अतिथि क्या कर रहे थे?
उत्तर – जब लेखक उपन्यास पढ़ रहे थे तो अतिथि फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे।
13. लेखक और अतिथि का सौहार्द अब धीरे-धीरे किसमें रूपांतरित होने लगा?
उत्तर – लेखक और अतिथि का सौहार्द अब शनैः—शनैः बोरियत में रूपांतरित होने लगा।
14. भावनाएँ किसका रूप लेने लगीं?
उत्तर – भावनाएँ गालियों का रूप लेने लगीं।
15. अतिथि का व्यक्तित्व किसमें चिपक गया?
उत्तर – अतिथि का व्यक्तित्व अदृश्य गोंद से चिपक गया है।
16. लेखक के मन में बार-बार कौन-सा प्रश्न उठा रहा था?
उत्तर – लेखक के मन में बार-बार प्रश्न उठा रहा था कि तुम कब जाओगे, अतिथि?
17. सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लेखक का परिवार कहाँ से चल कर कहाँ पहुँचा?
उत्तर – सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने पर लेखक का परिवार डिनर से चल कर खिचड़ी पर आ गया।
18. धीरे-धीरे लेखक और अतिथि का संबंध किस दौर से गुज़रने लगा?
उत्तर – धीरे-धीरे लेखक और अतिथि का संबंध संक्रमण के दौर से गुज़रने लगा ।
19. ‘मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी’ ऐसा किसने किसके लिए कहा?
उत्तर – ‘मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी’ ऐसा लेखक ने अतिथि के लिए कहा।
3. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दो-दो वाक्यों में दीजिए-
1. एस्ट्रॉनाट्स लंबी यात्रा के दौरान कहाँ तक गए थे और वे कहाँ पर नहीं रुके?
उत्तर – दोनों एस्ट्रॉनाट्स लाखों मील की यात्रा करने के बाद चाँद तक गए थे और वे वहाँ पर नहीं रुके।
2. लेखक ने अतिथि के सम्मान में डिनर में क्या-क्या बनाया?
उत्तर – लेखक ने अतिथि के सम्मान में डिनर में दो सब्ज़ियों और रायते के अलावा मीठा भी बनाया था।
3. लेखक ने अपनी पीड़ा कब पी ली?
उत्तर – जब दूसरे दिन भी अतिथि अपनी अतिथि—सुलभ मुसकान लिए घर में ही बने रहे तब लेखक ने अपनी पीड़ा पी ली।
4. लेखक की पत्नी की आँखें बड़ी-बड़ी क्यों हो गईं?
उत्तर – लेखक की पत्नी की आँखें बड़ी-बड़ी इस आशंका और भय से हुई थीं क्योंकि अतिथि अधिक दिनों ठहरने वाला था।
5. पिछले चार दिनों में लेखक ने अतिथि के साथ किन-किन विषयों पर चर्चा की थी?
उत्तर – पिछले चार दिनों में लेखक ने अतिथि के साथ परिवार, बच्चे, नौकरी, फिल्म, राजनीति, रिश्तेदारी, तबादले, पुराने दोस्त, परिवार नियोजन, मँहगाई, साहित्य आदि विषयों पर चर्चा की थी।
4. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर तीन-तीन वाक्यों में दीजिए-
1. जिस दिन अतिथि आए उस दिन लेखक की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर – जिस दिन अतिथि आए उस दिन लेखक हृदय किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा था। अंदर—ही—अंदर कहीं उनका बटुआ काँप गया। उसके बावजूद एक स्नेह—भीगी मुसकराहट के साथ लेखक अतिथि से गले मिला था और उनकी पत्नी ने अतिथि को सादर नमस्ते किया था।
2. अतिथि के प्रति उत्साह और लगन दिखाते समय लेखक के मन में कैसी आशा थी?
उत्तर – अतिथि के प्रति उत्साह और लगन दिखाते समय लेखक के मन में आशा थी कि दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमाननवाज़ी की छाप अपने हृदय में लेकर अतिथि चले जाएँगे। हम अतिथि से रुकने के लिए आग्रह करेंगे, मगर आप नहीं मानेंगे और एक अच्छे अतिथि की तरह चले जाएँगे।
3. तीसरे दिन की सुबह लेखक के लिए मार्मिक क्यों बनी?
उत्तर – तीसरे दिन की सुबह जब अतिथि ने लेखक से कहा, “मैं धोबी को कपड़े देना चाहता हूँ।” अर्थात् अतिथि और कुछ दिनों के लिए लेखक के घर पर रहन वाला था। यह आघात अप्रत्याशित था और इसकी चोट मार्मिक थी।
4. अब लेखक के घर में एक चुप्पी क्यों थी?
उत्तर – लेखक के घर में एक चुप्पी थी क्योंकि उन्होंने अतिथि से परिवार, बच्चे, नौकरी, फिल्म, राजनीति, रिश्तेदारी, तबादले, पुराने दोस्त, परिवार—नियोजन, मँहगाई, साहित्य आदि विषयों पर चर्चा हो चुकी थी और अब चर्चा के विषय समाप्त हो चुके थे इसलिए लेखक के घर में एक चुप्पी थी।
5. अंत में लेखक अतिथि के बारे में क्या विचार रखते हैं?
उत्तर – अंत में लेखक अतिथि के बारे में विचार रखते हैं कि अगर समय रहते अतिथि भावपूर्ण विदाई नहीं लेते हैं तो लेखक अतिथि को गेट आउट कहने को भी तैयार हो सकते हैं। लेखक को अतिथि राक्षस के समान लगने लगे हैं। अब अतिथि के प्रति सत्कार की भावना लुप्त-सी हो गई और भावनाएँ गालियों का स्वरूप धारण करने लगीं।
5.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दस-पंद्रह वाक्यों में दीजिए-
1. ‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ में लेखक के विचारों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – प्रस्तुत पाठ ‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ में शरद जोशी ने ऐसे व्यक्तियों की खबर ली है, जो अपने किसी परिचित या रिश्तेदार के घर बिना कोई पूर्व सूचना दिए चले आते हैं और फिर जाने का नाम ही नहीं लेते, भले ही उनका टिके रहना मेज़बान पर कितना ही भारी क्यों न पड़े। अच्छा अतिथि कौन होता है? वह, जो पहले से अपने आने की सूचना देकर आए और एक—दो दिन मेहमानी कराके विदा हो जाए या वह, जिसके आगमन के बाद मेज़बान वह सब सोचने को विवश हो जाए, जो इस पाठ के मेज़बान निरंतर सोचते रहे।
2. पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया?
उत्तर – पति-पत्नी ने भीगी मुस्कान से मेहमान को गले लगाकर उसका स्वागत किया। रात के भोजन में दो प्रकार की सब्जियाँ, रायता और मीठी चीज़ों का भी प्रबंध किया गया। दूसरे दिन दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की और रात्रि को सिनेमा दिखाया।
3. कौन-सा आघात अप्रत्यशित था और उसका लेखक पर कैसा प्रभाव पड़ा?
उत्तर – मेहमानों का बिना बताए मेज़बान के घर चले आने का आघात अप्रत्याशित होता है और उनके द्वारा तरह-तरह की फरमाइशें इस आघात को और भी गहरा बनाता है। बिना तिथि के अतिथि के आने से एक तो लेखक की दिनचर्या में काफी परिवर्तन आया। दूसरा, लेखक और उसकी पत्नी के बीच भी अनबन होने लगी और सबसे महत्त्वपूर्ण तो यह कि अतिथि के आने से लेखक का बटुआ हल्का हो गया।
4. लेखक का परिवार संबंध के संक्रमण से क्यों गुज़रने लगा? विस्तार से लिखिए।
उत्तर – ‘संक्रमण’ का अर्थ है- बदलाव। इस पंक्ति के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते है कि अतिथि और उनके बीच का रिश्ता इसी संक्रमण के दौर से गुज़र रहा है जो धीरे- धीरे मधुरता से कड़वाहट में परिवर्तित हो रहा है। सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो गई है और अब यह तिरस्कार का रूप धारण करने वाला है।
5. जब अतिथि चार दिनों तक नहीं गया तब लेखक के व्यवहार में कैसे-कैसे परिवर्तन आए?
उत्तर – जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन आए –
i. खाने का स्तर डिनर से गिरकर खिचड़ी तक आ पहुँचा।
ii. लेखक अतिथि को गेट आउट कहने को भी तौयार हो गया।
iii. लेखक को अतिथि राक्षस के समान लगने लगा।
iv. अब अतिथि के प्रति सत्कार की भावना लुप्त-सी हो गई।
v. भावनाएँ गालियों का स्वरूप धारण करने लगीं।
निबंध के कुछ स्मरणीय बिंदु
- निबंध के निबंधकार का नाम शरद जोशी है।
- इस निबंध में भद्र अतिथि के उज्ज्वल पक्षों की विस्तृत व्याख्या की गई है।
- यह व्यंग्यात्मक शैली में लिखा हुआ निबंध है।
- यह निबंध वर्तमान युग में अतिथि और मेज़बान के लिए सम्पूर्ण सटीक है।
- बोरियत रिश्तों में दरार लाती है इस बात का ज़िक्र इस निबंध में बखूबी हुआ है।