पी.सी.पटेल
(जन्म सन् 1938 ई.)
भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक पी.सी.पटेल का जन्म लणचा ग्राम (जिला- पाटन) गुजरात में हुआ एस.एससी. तक की पढ़ाई सर्व विद्यालय कड़ी (महेसाणा ) में हुई थी। गुजरात कॉलेज अहमदाबाद से उन्होंने बी. ऐससी तथा एम. ए. साइंस कॉलेज अहमदाबाद से एम.एससी. की पढ़ाई पूरी की। तत्पश्चात् वे एम.जी. साइंस कॉलेज में अध्यापक बने और सेवानिवृत्ति तक भौतिक विज्ञान का शिक्षणकार्य करते रहे। उन्होंने हिन्दी साहित्य संमेलन प्रयाग से हिन्दी विशारद की परीक्षा भी उत्तीर्ण की।
विज्ञान, कम्प्यूटर, भौतिक विज्ञान से संबंधित उनके लगभग चौदह ग्रंथ अंग्रेज़ी-गुजराती में प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी पुस्तक ‘इजनेरी दर्शन’ (इंजीनियर दर्शन) को गुजरात सरकार द्वारा प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया हैं। गुजरात विश्वकोश के लिए अधिकरण लेखक-संपादक के रूप में उन्होंने अमूल्य सेवाएँ दी हैं।
यहाँ संकलित लेख हिन्दी में लिखा गया है जिसमें गुजरात के अमर सपूत विक्रम साराभाई की सेवाओं का समृद्धि एवं शांति के लिए उनकी प्रतिबद्धता तथा प्रयासों का परिचय मिलता है।
महान भारतीय वैज्ञानिक : विक्रम साराभाई
आज भारत विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में विश्व के विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में आ रहा है, इसका बहुत कुछ श्रेय आज़ादी के बाद देश में हुए वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यो को दिया जा सकता है। भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादक की नींव डॉ. होमी जहाँगीर भाभा ने रखी थी। भारत परमाणु ऊर्जा के शांतिमय उपयोग के लिए प्रतिबद्ध राष्ट्र है। डॉ. भाभा के आकस्मिक निधन के बाद इस क्षेत्र में उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी जिस वैज्ञानिक पर आई, वह थे- डॉ. विक्रम साराभाई। भारत को अवकाश संशोधन एवं परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति के पथ पर ले जाने के श्रेय भाभा, विक्रमभाई साराभाई जैसे वैज्ञानिकों को है।
विक्रमभाई का जन्म अहमदाबाद के एक उद्योगपति परिवार में 12 अगस्त 1919 को हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अंबालाल साराभाई तथा माता का नाम सरला देवी था। पारिवारिक वातावरण ने बालक साराभाई में उत्तम गुणों की नींव डाली। इनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही कुशल अध्यापकों शिक्षकों की देखरेख में हुई। उन्होंने गुजरात कॉलेज अहमदाबाद में उच्च शिक्षा पाई तथा आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया, जहाँ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने भौतिक विज्ञान की पढ़ाई की।
विक्रम साराभाई के परिवार में उस समय देश के विख्यात व्यक्तियों, विद्वानों का आना-जाना लगा रहता था। 1924 में रवीन्द्रनाथ टागोर और दीनबंधु एन्ड्रूज़ उनके पारिवारिक निवास ‘रिट्रीट’ पर आए। विक्रमभाई उस समय बालक थे। उन्हें देखते ही टैगोर बोल उठे – ‘अरे! यह बालक तो अत्यंत असाधारण और मेघावी है।” यह थी उनके लिए भविष्यवाणी। प्रसिद्ध इतिहासविद् यनाथ सरकार, भौतिक विज्ञानी जगदीशचंद्र बोस और चन्द्रशेखर रामन, प्रसिद्ध अधिवक्ता चितरंजनदास और भूलाभाई देसाई मदनमोहन मालवीय, महादेव देसाई, समाजसेवी आचार्य कृपलाणी तथा साहित्यकार काका कालेलकर प्रभृति महानुभावों का प्रत्यक्ष परिचय उन्हें बचपण में ही मिला था। उनके कार्यो और जीवनशैली का विक्रमभाई पर अच्छा प्रभाव पड़ा। उनमें देशप्रेम की भावना विकसित हुई। इसीलिए कैम्ब्रिज से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि बनाई। वे चाहते तो अपनी प्रतिभा, ख्याति और पारिवारिक संपर्कों के बल पर विदेश की किसी भी प्रयोगशाला में अपना अनुसंधान कार्य कर सकते थे, पर भारत लौटकर उन्होंने बंगलोर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (II. Sc.) में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भौतिक वैज्ञानिक चन्द्रशेखर रमन के मार्गदर्शन में ब्रह्माण्ड किरणों पर अनुसंधान कार्य आरंभ किया। यहाँ उन्हें होमी जहाँगीर भाभा का सहयोग प्राप्त हुआ।
अपनी पारिवारिक सम्पन्नता का उपयोग उन्होंने देश के विकास के लिए किया। अहमदाबाद में अनुसंधान कार्य के लिए उन्होंने भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL की स्थापना तो की ही, साथ ही भारतीय कपड़ा उद्योग को आधुनिक बनाने के लिए अटीरा (ATIRA) अहमदाबाद टेक्स्टाईल रिसर्च एसोसिएशन’ की स्थापना की। दवाओं के उत्पादन के क्षेत्र को भी अद्यतन बनाने का प्रयास किया। उद्योगों के कुशल प्रबंधन हेतु भारतीयों को तैयार करने के लिए अहमदाबाद में भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) की स्थापना की, जो आज भी देश की अपने तरह की सर्वोत्तम संस्था मानी जाती है। विक्रम साराभाई एक साथ कुशल प्रबंधक, सफल, उद्योगपति, प्रखर वैज्ञानिक होने के साथ ही एक अच्छे शिक्षक रहे। परमाणु ऊर्जा और अवकाश अनुसंधान कार्यक्रमों के लिए उनकी लगन ने भारत को इस क्षेत्र में विश्व का एक अग्रणी राष्ट्र बनाया।
परमाणु ऊर्जा का शांतिमय कार्यों के लिए उपयोग तथा अवकाश – अनुसंधान का संदेश व्यवहार, शैक्षणिक कार्यो के लिए प्रयोग से उनके इरादे स्पष्ट होते हैं। उन्होंने इनके लिए आजीवन कार्य किया। इसमें विक्रमभाई का स्वदेश प्रेम, देश को स्वावलम्बी बनाने के इच्छा, स्वदेशी भावना साफ झलकती है। विचार और व्यवहार में विक्रमभाई महात्मा गाँधी के बहुत समीप थे। उन्हीं की तरह विक्रमभाई आजीवन समर्पित एकनिष्ठ कर्मयोगी हैं। अनासक्त भाव से स्वधर्म निर्वाह करनेवाले वे विरल विभूति रहे। हम विक्रमभाई को भारत के परमाणु और अवकाश युग के पुरस्कर्ता के रूप में, विज्ञान और विकास, स्वदेश भावना और आधुनिकता के सार्थक समन्वयकर्ता के रूप में पाते हैं। वे ऐसे स्वप्नदृष्टा थे जो रात्रि में देखे गए स्वप्न को दिन में साकार करना चाहते थे। “राष्ट्र के लिए क्या उत्तम है, यह आप निश्चित करें। जो जनता और राष्ट्र के लिए उत्कृष्ट ही वही करें।” — यह था विक्रमभाई का वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणामंत्र। अर्थात् आप वैज्ञानिक, इंजीनियर, तकनीशियन या विज्ञान के चाहक के रूप वह करें, जो जनता और राष्ट्र के विकास के लिए उत्कृष्ट हो, उपर्युक्त हो। यही तो है बुद्ध की बताई हुई विज्ञान की परिभाषा।
विक्रमभाई को आधुनिक शंकराचार्य कहा जा सकता है, क्योंकि शंकराचार्य की तरह उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक अनेक अनुसंधान शालाओं की स्थापना करके देश को विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में विकास के पथ पर अग्रसर करने हेतु वंदनीय कार्य किया। विश्वशांति की स्थापना को वे अपना धर्म मानते थे। अपने विचार, व्यवहार और वाणी के माध्यम से उन्होंने शांति का पैगाम दिया है। चंद्रमा पर शांति का सागर’ नामक एक विस्तार है, जहाँ एक बड़ा- सा उल्कागर्त है। अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ ने इस गर्त के साथ विक्रम साराभाई का नाम जोड़कर उनके खगोलीय अनुसंधान कार्यों को तो प्रतिष्ठा प्रदान की ही इस महान वैज्ञानिक को मानो अपनी भव्य भावांजलि भी दी है।
विज्ञान को मानवता के साथ समन्वित करनेवाले इस विलक्षण विश्व नागरिक ने 30 दिसम्बर 1971 को कोवलम् (केरल) से विश्व को अलविदा कर दी।
शब्दार्थ
तकनीकी – प्राद्योगिकी
श्रेय मान, सम्मान
अनुसंधान – शोधकार्य
आविष्कार – खोज
प्रभृति – जैसे, आदि
अनासक्त – बिना आसक्ति के, निस्पृह
पैगाम – संदेश
अवकाश – अंतरिक्ष