असाध्य एड्स
दीपिका गुप्त
एड्स एक असाध्य रोग है। मनुष्य इसका इलाज ढूँढ़ने में निरंतर लगा हुआ है। इस समय तक इसका कोई इलाज नहीं, परंतु सही जानकारी ही हमें इस रोग से बचा सकती है। ऐसी स्थिति में यह जानकारी शिक्षा का एक आवश्यक अंग है। विद्यार्थी निश्चित रूप से इस उपयोगी ज्ञान से लाभान्वित होंगे।
प्रतिदिन की भाँति आज जब मैं आठवीं क्लास में पहुँची तो कुछ असामान्य सा शोर हो रहा था। मेरी उपस्थिति को महसूस करते हुए सभी भागकर अपने-अपने निर्धारित स्थान पर जा बैठे। मैं कुछ कहूँ, इससे पहले रोहन बोला “मैम आदिल रो रहा है।”
क्लास लगभग शांत हो चुकी थी। मैंने चारों ओर देखा, मेरी दृष्टि आदिल पर पड़ी। उसकी आँखें लाल और चेहरे पर क्रोध स्पष्ट दिखाई दे रहा था मैंने पूछा “क्या बात है आदिल?”उसने कुछ नहीं, कहकर बात को टालना चाहा पर रोहन फिर बोल पड़ा “मैम, जतिन और मयंक इसे ‘एडिल’ ! ‘एडिल’ कहकर चिढ़ा रहे थे।” इस पर आदिल ने रोहन को बैठने का इशारा करते हुए मुझसे फिर वहीं कहा “नो मैम कुछ नहीं।” मैंने भी यही सोचा कि बच्चे एक-दूसरे का नाम बिगाड़ने की शरारत तो करते ही हैं। मैंने पढ़ाना शुरू कर दिया। एक बार के लिए मैंने मन में यह सोचा कि इतनी सी बात पर रोने वाला तो आदिल है नहीं। फिर पढ़ाकर बाहर निकली और अगली क्लास में चली गईं। यह बात मैं बिलकुल भूल गई थी। छुट्टी के बाद जब मैं स्टाफ रूप से बाहर निकल रही थी तो लगभग सभी बच्चे जा चुके थे। कॉरिडोर खाली था। तभी मैंने रोहन और आदिल को आते देखा और दोनों के गंभीर चेहरों को देखकर सारी बात पुनः याद आ गई मैंने तुरंत पूछा “आदिल क्या बात है? मुझे बताओ शायद में तुम्हारी मदद कर सकूँ।” आदिल कुछ नहीं बोला। उसकी आँखों में फिर आँसू तैरने लगे तो रोहन ने बताया – “मैम इसके दादा जी. एच. आई. वी. पॉजिटिव हैं, इसलिए मयंक और जतिन इसे एडिल – एडिल कहकर चिढ़ा रहे थे।” सुनकर मैं चौंक गई। मैं जिसे बच्चों की शैतानी समझ रही थी, वह तो काफ़ी गंभीर बात थी। स्वयं को संयत कर मैंने कहा “यह तो बड़े दुःख की बात हैं, पर तुमने यह सब क्लास में क्यों बताया?” इस पर आदिल ने बताया कि “मयंक के पिताजी डॉक्टर हैं। उन्हीं की देख-रेख में मेरे दादा जी का इलाज चल रहा है।”
‘अच्छा ! ठीक है, मैं उन्हें समझाऊँगी।” कहकर मैंने बच्चों को भेज दिया और स्वयं भी घर आ गई।
घर आकर भी मेरे दिमाग में यही चलता रहा कि यह उपेक्षा करने की बात नहीं, बच्चों को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है। एक बार सोचा कि कल मैं ही उन्हें समझाऊँगी, फिर मुझे कुछ संकोच हुआ कि मैं इस विषय पर इतनी अच्छी तरह बच्चों की सभी जिज्ञासाएँ शांत नहीं कर पाऊँगी। अच्छा तो यही रहेगा कि इस विषय के किसी अच्छे जानकार के साथ बच्चों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया जाए।
यह विषय मजाक बनाने का नहीं है। संभवतः बच्चों के मन में अधकचरी के साथ-साथ कुछ भ्रांतियाँ भी हैं। इनका निराकरण बहुत ज़रूरी है।
यही सब सोचते हुए मैंने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में कार्यरत अपनी एक मित्र को फ़ोन किया। उनसे बात करते ही मेरी सारी उलझन दूर हो गई। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का एक स्पेश्यल सेल, स्कूलों के लिए इसी तरह की कार्यशालाएँ आयोजित करता है। मैं जब चाहूँ, वो अपने स्वास्थ्य अधिकारी को स्कूल में भेज सकती हैं।
अगले दिन सुबह मैं डॉ. अय्यर (स्वास्थ्य अधिकारी) को लेकर क्लास में पहुँची परिचय के पश्चात् वे सीधे बच्चों से बात करने लगे। सबसे पहले उन्होंने बोर्ड पर लिखा ‘एड्स’ और बच्चों से पूछा कि ये क्या है?
लगभग सभी ने हाथ उठाया, सबका उत्तर था कि यह एक बीमारी है। कुछ ने यह भी बताया कि यह एक जानलेवा बीमारी है।’
बच्चों के उत्तर सुनकर डॉ. अय्यर संतुष्ट थे। तभी उन्होंने उन बच्चों की ओर इशारा किया, जो आपस में बातें कर रहे थे। डॉ. अय्यर ने उन्हीं से पूछा कि वे क्या कहना चाहते हैं? “जो भी कहना है, वह खुलकर कहिए और खुलकर पूछिए: हमारी कार्यशाला का यहीं उद्देश्य है।”
इस पर बच्चों में से एक ने कहा “सर यह एक गंदी बीमारी है, जो गंदे लोगों को होती है।”
डॉ. अय्यर –
“बेटा आप लोगों ने किसी अच्छी बीमारी का नाम सुना है क्या?”
क्लास में हँसी का ठहाका लगा। डॉ. अय्यर ने समझाया कि “हर बीमारी गंदी या खराब ही होती है। पर यह बात कहना गलत है कि यह बीमारी गंदे लोगों को होती है। यह बीमारी किसी को भी हो सकती है। जिसे बीमारी हो गई है, उससे घृणा करना भी गलत है। हमारे समाज में जानकारी के अभाव में लोग एड्स के रोगियों के प्रति बुरा व्यवहार करते हैं। ऐसे भी कई किस्से सामने आए हैं, जब रोगियों को उनके घर वालों ने घर से निकाल दिया। इसलिए सही जानकारी जरूरी है। आप हर बात खुलकर पूछिए, मैं आपको पूरी जानकारी दूँगा।”
इसके बाद डॉ. अय्यर ने श्यामपट्ट (ब्लैक बोर्ड) पर लिखा
A – एक्वायर्ड (प्राप्त किया हुआ)
I – इम्यूनो (रोगों से लड़ने की क्षमता)
D – डिफिशिएसी (कमी)
S – सिंड्रोम (लक्षणों का समूह)
‘एड्स’ एक भयंकर बीमारी है। यह संसार के लिए एक चुनौती बन चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार लगभग 5 करोड़ वयस्क और 15 लाख बच्चे एच. आई. वी. की चपेट में आ चुके हैं। ”क्लास बिलकुल शांत थी। सभी ध्यान से सुन रहे थे। आदिल ने हाथ उठाया और पूछा “सर ! ये एच. आई. वी. क्या है?”
डॉ. अय्यर
असल में यह एच. आई. वी. ही एड्स की जड़ है। इसे पूरे शब्दों में ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वायरस कहते हैं। यह वायरस अर्थात् जीवाणु जिसके शरीर में प्रवेश कर जाता है, उस व्यक्ति में बीमारियों से लड़ने की क्षमता नष्ट हो जाती है।”
इस बार माधुरी ने पूछा “यह वायरस शरीर में प्रवेश कैसे करता है?”
डॉ. अय्यर “यह बात जानना बहुत जरूरी है। यही जानकारी आपको एड्स से बचा सकती है। इसे जानने के बाद आप बहुत-सी भ्रांतियों से भी बच सकते हैं। आप समझ जाएँगे कि एड्स के रोगी को छूने से या उसके पास बैठने से यह रोग नहीं फैलता। इसके निम्नलिखित कारण हैं –
(1) संक्रमित सूई (इनफेक्टेड नीडिल)
(क) अनाड़ी डॉक्टर द्वारा रोगी के लिए प्रयोग में लाई गई सूई को यदि किसी स्वस्थ व्यक्ति के लिए पुनः प्रयोग में लाया जाए तो एच. आई. वी. शरीर में प्रवेश कर जाता है।
(ख) नशीली दवा (ड्रग्स) लेने वालों द्वारा संक्रमित सूई के प्रयोग के समय भी ऐसा हो सकता है।
(ग) नाक, कान या त्वचा पर किसी भी हिस्से में छेद करवाने के समय।
(घ) गोदना गुदवाते समय यानी टैटू बनवाने वालों की सूई से भी ऐसा हो सकता है।
(2) संक्रमित रक्त : शरीर में रक्त की कमी या शल्य चिकित्सा (ऑपरेशन) के समय हमें रक्त की आवश्यकता पड़ती है, उस समय यदि संक्रमित (एच. आई. वी. इन्फेक्टेड) रक्त चढ़ा दिया जाए तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में यह विषाणु प्रवेश कर जाता है। रक्त के अतिरिक्त, कभी रक्त के अन्य पदार्थ जैसे प्लाज़मा प्लेटलैट्स आदि चढ़वाने के समय भी ऐसा हो सकता है।
(3) संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संबंध : यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी एच. आई. वी. संक्रमित स्त्री या पुरुष के साथ असुरक्षित शारीरिक संबंध बनाता है तो भी यह विषाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाता है।
(4) संक्रमित माँ द्वारा स्तनपान जो माँ एच. आई. वी. से संक्रमित है, यदि वह बच्चे को अपना दूध पिलाती है तो बच्चे के शरीर में यह विषाणु प्रवेश कर जाता है।
अतः इन बातों का हमें विशेष ध्यान रखना होगा। यदि इन कारणों से बचा जाए तो हम इस रोग को फैलने से रोक सकते हैं।”
इस बार सुशांत ने हाथ उठाया “सर ! मैं यह जानना चाहता हूँ कि एड्स के रोगी को क्या परेशानी होती है?”
डॉ. अय्यर
“एड्स से ग्रस्त व्यक्ति का वजन लगातार घटने लगता है। रोगी की जाँघ, बगल और गरदन की ग्रंथियों में सूजन आ जाती है। उसे हमेशा हल्का बुखार रहता है। उसके मुँह व जीभ पर सफ़ेद निशान पड़ जाते हैं। साथ ही उसे अन्य बीमारियों का संक्रमण भी तुरंत घेर लेता है।
हाँ ! इसके साथ एक बात यह भी जान लीजिए कि ऐसे लक्षण तपेदिक रोग के भी होते हैं, अतः पूरी तरह जाँच करना जरूरी है। एड्स की जाँच एलिसा टेस्ट और वैस्टर्न ब्लॉट नामक रक्त जाँच से होती है।”
तान्या “सर ! जिस दिन कोई व्यक्ति एच. आई. वी. पॉज़िटिव हो जाता है तो क्या उसे उसी दिन बुखार आ जाता है और ग्रंथियाँ सूज जाती हैं?”
डॉ. अय्यर – “ये एक अहम सवाल है। असल में एच. आई. वी. के शरीर में प्रवेश करते ही कुछ पता नहीं लगता।
संक्रमित व्यक्ति भी सामान्य व्यक्ति जैसा ही दिखाई देता है। इसे एड्स की स्थिति तक पहुँचने में 7 से 10 वर्ष तक का समय लगता है। कोई एच. आई. वी. पॉजिटिव है, इसकी जानकारी केवल रक्त की जाँच से ही मिलती है।
आप मेरे कोट पर यह जो लाल रिबन देख रहे हैं, यह एड्स के विरूद्ध संघर्ष का प्रतीक है। एड्स के ख़िलाफ़ विश्वव्यापी अभियान सन 1977 से आरंभ हुआ। सभी देशों की यही धारणा है कि विश्व के सभी लोग इस रोग की गंभीरता को समझें। इसके कारणों को जानकर इसे फैलने से रोकें।
संयुक्त राष्ट्र संघ (यू. एन. ओ.) ने 1 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय एड्स दिवस घोषित किया है। हमारे देश में एड्स नियंत्रण कार्यक्रम 1999 में 15 सौ करोड़ रुपयों की लागत से शुरू किया गया। दूसरा अभियान कार्यक्रम 2004 से लागू किया गया। इस रोग से लड़ने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थों (एन. जी. ओ.) समाज की मदद कर रही हैं। विद्यार्थियों में इस रोग के प्रति जागरूकता लाने के लिए प्रतिवर्ष 20,000 विद्यालयों में जानकारी देने का लक्ष्य रखा गया है। आपके विद्यालय में आज की कार्यशाला भी इसी अभियान का अंग है।”
अंत में डॉ. अय्यर ने शांत बैठकर सुनने और अच्छे प्रश्न पूछने के लिए बच्चों का धन्यवाद करते हुए एक आग्रह किया आप सभी इस देश के आने वाले ज़िम्मेदार नागरिक हैं। यह याद रखिए आज तक इस रोग का कोई उपचार नहीं है। अतः इस रोग के कारणों को जानने के बाद सदैव इस रोग से बचकर रहें।”
याद रखें कि “एड्स के रोगी को घृणा या मजाक का विषय मत बनाइए। इन रोगियों का मनोबल बढ़ाना और इनमें जीने की इच्छा जगाना जरूरी है। मुझे विश्वास है आप लोग ऐसा ही करेंगे।”
सभी बच्चों ने डॉ. अय्यर को धन्यवाद दिया। सबके चेहरे जानकारी की परिपक्वता से चमक रहे थे। मैंने डॉ. अय्यर का धन्यवाद करते हुए उन्हें पूरी क्लास के सामने बाताया कि हमारी क्लास में बड़े ही समझदार घरों के बच्चे आते हैं। इनके माता-पिता एच. आई. वी. पॉज़िटिव लोगों को प्यार से अपने घर में रखते हैं और उनका इलाज़ भी करते हैं। आपके द्वारा दी गई जानकारी इन्हें और भी समझदार बनाएगी।
शब्दार्थ
असामान्य – असाधारण
उपेक्षा – अवहेलना, ध्यान न देना
जिज्ञासा – जानने की इच्छा
निराकरण – उपाय, उपचार
संक्रमित – रोग ग्रस्त
मनोबल – मन की ताकत
टैटू – गोदना, त्वचा के नीचे रंग भरकर आकृतियाँ या चित्र बनवाना
कॉरिडोर – बरामदा
मार्गदर्शन – दिशा दिखाना
स्पेश्यल सैल – खास विभाग
तपेदिक – क्षयरोग
असाध्य – उपचार रहित
संकोच – झिझक
भ्रांति – भ्रम, अपूर्ण ज्ञान
घृणा – नफ़रत
अनाड़ी – बुद्धू
अभियान – व्यापक कार्य