विष्णु प्रभाकर का जन्म मुज्फ्फरपुर जिले के मीरनपुर गाँव में हुआ था। इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में और उच्च शिक्षा हिसार में प्राप्त की थी। कई वर्षों तक पंजाब सरकार की सेवा करने के बाद सन् 1974 से ये दिल्ली आ गए और तब से दिल्ली रहकर पूर्ण समय के लिए साहित्य सेवा में लगे हैं। आपने कहानी, उपन्यास, जीवनी, नाटक, एकांकी, संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में पर्याप्त मात्रा में लिखा हैं। आपकी प्रमुख रचनाए ‘ढ़लती रात’, ‘स्वप्नमयी’ (उपन्यास), ‘संघर्ष के बाद’ (कहानी संग्रह), ‘नव-प्रभात’, ‘डॉक्टर’ (नाटक), ‘प्रकाश और परछाईयाँ’, ‘बारह एकांकी’, ‘अशोक’ (एकांकी संग्रह), ‘जाने-अनजाने’ (संस्मरण और रेखाचित्र), ‘आवारा मसीहा’ (शरतचंद्र की जीवनी) आदि।
विष्णु प्रभाकर की रचनाओं में प्रारंभ से ही स्वदेश प्रेम व राष्ट्रीय चेतना और समाज-सुधार का स्वर प्रमुख रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आपने आकाशवाणी के दिल्ली केन्द्र में नाटक निर्देशक के पद पर काम किया। बाद में स्वतंत्र लेखन को अपनी जीविका का साधन बना लिया। आपका समस्त साहित्य मानवीय अनुभूतियों से जुड़ा हुआ है। आपकी रचनाओं में रोचकता एवं संवेदनशीलता सर्वत्र व्याप्त हैं तथा भाषा सहज व सरल है।
प्रस्तुत एकांकी ‘स्वराज्य की नींव में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) में लक्ष्मीबाई के त्याग और संघर्ष का वर्णन किया गया है। स्वराज की नींव रखने में स्त्रियों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रस्तुत एकांकी के पात्र स्वराज्य की नींव के पत्थर है जिनके त्याग, तपस्या व बलिदान के द्वारा भले ही स्वराज्य प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन वे स्वराज्य की नींव का पत्थर बनकर जनमानस में देशप्रेम व नवजागरण की भावना जगाने में अपनी सार्थकता समझते हैं।
स्वराज्य की नींव
पात्र
लक्ष्मीबाई
मुंदर
तात्या
जूही
रघुनाथराव
सेनानायक
(रंगमंच पर युद्धभूमि का दृश्य अंकित किया जा सकता है। कैंप कहीं पास ही लगा हुआ है। महारानी लक्ष्मीबाई के तंबू का एक भाग दिखाई देता है। परदा उठने पर महारानी लक्ष्मीबाई अपनी सखी जूही के साथ उत्तेजित अवस्था में मंच पर प्रवेश करती हैं। दोनों लाल कुर्ती के सैनिकों की वेशभूषा में हैं।)
लक्ष्मीबाई : मेरे देखते-देखते क्या से क्या हो गया जूही ! झाँसी, कालपी, ग्वालियर कहाँ गई परंतु मंज़िल है कि पास आकर भी हर बार दूर चली जाती है। स्वराज्य को आते हुए देखती हूँ, परंतु दूसरे ही क्षण मार्ग में हिमालय अड़ जाता है। उसे पार करती हूँ तो महासागर की डरावनी लहरें थपेड़े मारने लगती हैं। उनसे जूझती हूँ तो नाविक सो जाते हैं। देखो जूही, उधर क्षितिज पर देखो। कैसी लपलपाती हुई लपटें उठ रही हैं ! सारा आकाश धूम घटाओं से छाया हुआ है। प्रलय की भूमिका है, लेकिन राव साहब हैं कि रक्तमंडल की छाया में ऐशो आराम में मशगूल हैं। (आवेश में आते-आते सहसा मौन हो जाती है। जूही कुछ कहने के लिए मुँह खोलती है कि महारानी फिर बोल उठती है।) जूही, जूही, मैंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी लेकिन झाँसी हाथ से निकल गई जूही। (सहसा तीव्र होकर) नहीं, नहीं, झाँसी हाथ से नहीं निकली। मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी। मैं अकेली हूँ, लेकिन उससे क्या? मैं अकेली ही झाँसी लेकर रहूँगी।
जूही : कौन कहता है, आप अकेली हैं, महारानी, आप तो गीता पढ़ती हैं। फिर यह निराशा कैसी?
लक्ष्मीबाई : मैं निराश नहीं हूँ। मैं जानती हूँ कि मैं झाँसी लेकर रहूँगी, लेकिन क्या तुम नहीं जानती कि उस दिन बाबा गंगादास ने मुझसे क्या कहा था? “जब तक हमारे समाज में छुआछूत और ऊँच-नीच का भेद नहीं मिट जाता, जब तक हम विलासप्रियता को छोड़कर जनसेवक नहीं बन जाते, तब तक स्वराज्य नहीं मिल सकता। वह मिल सकता है केवल सेवा, तपस्या और बलिदान से।”
जूही : लेकिन महारानी, उन्होंने यह भी तो कहा था कि स्वराज्य प्राप्ति से बढ़कर है, स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार करना; स्वराज्य हाथ में है। लेकिन नींव के पत्थर बनने से हमें कौन रोक सकता है? वह हमारा अधिकार है।
लक्ष्मीबाई : (मुस्कराकर) शाबाश मेरी कर्नल ! तुम लोगों से मुझे यही आशा है। जिस स्वराज्य की नींव तुम जैसी नारियाँ बनाने जा रही हैं, वह निश्चय ही महान होगा। मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि वह मेरे जीवनकाल में आता है या नहीं आता, लेकिन मुझे इस बात का दुःख अवश्य है कि हमारे पास शक्ति है, फिर भी हम दुर्बल हैं। हमारे पास तात्या जैसे सेनापति हैं, फिर भी हमारी सेना में अनुशासन नहीं है। हमारे पास ग्वालियर का किला है, फिर भी हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। क्यों? जानती हो क्यों?
जूही : जानती हूँ महारानी ! हम विलासिता में डूब गए है। (तभी मुस्कराती हुई मुंदर वहाँ प्रवेश करती है।)
मुंदर : कौन कहता है कि हम विलासिता में डूब गए हैं? विलासिता में डूबे हैं रावसाहब। बाँदा के नवाब, सेनापति तात्या।
जूही : (सहसा) नहीं, मुंदर। सेनापति नहीं।
मुंदर : (मुसकराती है) ओह, समझी। तुम तो उनका पक्ष लोगी ही।
जूही : (दृढ़ स्वर में) मैं उसका पक्ष नहीं लेती, लेकिन जो तथ्य है, उसको छिपाया नहीं जा सकता। सरदार तात्या राव साहब को अपने तन मन का स्वामी मानते हैं।
मुंदर : और तुम उनको अपना स्वामी मानती हो।
जूही : हाँ, मैं उनको अपना स्वामी मानती हूँ और मानती रहूँगी, लेकिन उनसे भी अधिक मैं महारानी को अपना स्वामी मानती हूँ और महारानी से भी बढ़कर मैं अपने देश को अपना स्वामी मानती। देश के लिए मैं सरदार को भी ठुकरा सकती हूँ, ठुकरा चुकी हूँ।
मुंदर : (सकपका कर) जूही तू तो नाराज़ हो गई। मेरा यह मतलब नहीं था। मैं तो केवल इतना ही कहना चाहती थी कि जब तूने उन्हें अपना स्वामी मान लिया है तो तू उन्हें रोकती क्यों नहीं?
लक्ष्मीबाई : जूही ने उन्हें रोका है मुंदर मैं जानती हूँ। जब राव साहब के कहने पर तात्या इसे नाचने के लिए बुलाने को आए थे तो इसने उनको बुरी तरह दुत्कार दिया था।
जूही : हाँ रानी, मैं स्वराज्य के लिए नाच सकती हूँ। बराबर नाचती रही हूँ, परंतु विलासिता में डूबने के लिए अपनी कला को किसी के गले की फाँसी नहीं बना सकती हूँ। जो मुझको ऐसा करने के लिए कहते हैं, उनको मैं ठोकर ही मार सकती हूँ।
लक्ष्मीबाई : (दीर्घ नि:श्वास लेकर) ठोकर ही तो नहीं मार सकती जूही। यहीं दर्द तो हमें कचोट रहाI अगर ठोकर मार कर हम उनकी मदहोशी दूर कर सकते तो बात ही क्या थी?
जूही : बाई साहब, मैं औरों की बात नहीं जानती। मुझे आज्ञा दीजिए, मैं ठोकर मारने को तैयार और मैं भी तैयार हूँ बाई साहब।
मुंदर : चलो, हम सब चलकर उनकी नींद हराम कर दें।
लक्ष्मीबाई : नहीं मुंदर, नहीं। हम उनकी नींद हराम नहीं कर सकते। अब तो दुश्मन की ठोकर ही उनको उस नींद से जगा सकती है।
जूही : दुश्मन की ठोकर? यह आप क्या कह रही हैं?
लक्ष्मीबाई : हाँ जूही, दोस्त की ठोकर अविश्वास की खाई को और भी चौड़ा कर देती है। क्या तुम नहीं जानती कि हम एक दूसरे को किस दृष्टि से देखते हैं? क्या ऐसी स्थिति में मेरे कुछ कहने से शंकाओं की घटा और भी गहरा नहीं उठेगी?
मुंदर : बाई साहब ठीक कहती हैं। शंकाएँ अविश्वास पैदा करेंगी और उस अविश्वास से उत्पन्न निराशा को दूर करने के लिए पायल की झंकार और भी झनक उठेगी। श्रीखंड और लड्डुओं पर जान देनेवाले ब्राह्मणों के आशीर्वाद का स्वर और भी तेज हो उठेगा। (सहसा कहीं दूर तोपों का स्वर उठता है।)
लक्ष्मीबाई : और जूही तू अगर तात्या को खोज सके तो तुरंत उन्हें यहाँ आने के लिए कह।
जूही : खोज क्यों नहीं सकती? आपकी आज्ञा होने पर मैं उन्हें पाताल से भी खींचकर ला सकती हूँ। (जाने को मुड़ती है कि रघुनाथराव तेजी से प्रवेश करते हैं।)
रघुनाथराव : महारानी, आपने सुना?
लक्ष्मीबाई : क्या रघुनाथ?
रघुनाथराव : महारानी, जनरल रोज की सेना ने मुरार में पेशवा की सेना को हरा दिया।
जूही : (काँपकर) क्या पेशवा की सेना हार गई?
लक्ष्मीबाई : पेशवा की सेना हार गई, यह अच्छा ही हुआ। अब पेशवा की आँखें खुलेंगी। रघुनाथ अपनी सेना को तैयार होने की आज्ञा दो। रोज ग्वालियर का किला नहीं ले सकेगा।
रघुनाथ : मैं जानता हूँ, वह कभी नहीं ले सकेगा। मैं अभी सेना को कूच के लिए तैयार करता हूँ। केवल आपको सूचना देने के लिए आया था। (जाता है।)
लक्ष्मीबाई : और जूही तुम भी जाओ। (सहसा बाहर देखकर) लेकिन ठहरो, शायद सेनापति तात्या इधर ही आ रहे हैं।
जूही : (बाहर देखकर) जी हाँ, ये तो सरदार तात्या ही हैं। (सरदार तात्या का प्रवेश)
लक्ष्मीबाई : कहिए सरदार तात्या, आज आप इधर कैसे भूल पड़े?
तात्या : बाई साहब, मैं किसी के लिए सरदार हो सकता हूँ, पर आपके लिए तो सेवक ही हूँ।
लक्ष्मीबाई : (व्यंग्य से) इतने बड़े सेनापति को इस प्रकार एक नारी के सामने झुकते लज्जा नहीं आती? खैर, छोड़ो इस बात को यह तुम्हारी विनम्रता है। लेकिन यह तोपों की आवाज़ कैसी आ रही है? कौन सा उत्सव मनाया जा रहा है? शायद चाटुकारों में जागीर बाँटना अभी खत्म नहीं हुआ है?
तात्या : बाई साहब, आपको हमें लज्जित करने का पूरा अधिकार है। हम इसी योग्य हैं, लेकिन जो कुछ हो रहा है, वह आप जानती ही हैं।
लक्ष्मीबाई : शायद ब्रह्मभोज के उपलक्ष्य में ये तोपें चल रही हैं। श्रीखंड और लड्डुओं के लिए घी शक्कर की कमी तो नहीं पड़ी।
जूही : सरकार इस बार इनको माफ़ कर दीजिए।
तात्या : (व्यग्र होकर) बाई साहब, आप यूँ कब तक फटकारती रहेंगी?
लक्ष्मीबाई : तू कहती है, अच्छा लेकिन (मुंदर का प्रवेश)
मुंदर : सरकार सेना तैयार है।
लक्ष्मीबाई : तो मैं भी तैयार हूँ। तात्या तुमसे मुझे बहुत आशाएँ थीं। तुम्हारे रहते यह सब क्या हो गया?
जूही : सरकार, ये स्वामिभक्त हैं।
लक्ष्मीबाई : लेकिन आज हमें देशभक्तों की आवश्यकता है। खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। अब भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
तात्या : : इसीलिए तो आया हूँ बाई साहब। आप जो कहेंगी वही करूँगा। जो योजना बनाएँ, उसी पर चलूँगा।
लक्ष्मीबाई : तो जाओ, तलवार सँभाल लो। नूपुरों की झंकार के स्थान पर तोपों का गर्जन होने दो। भूल जाओ राग-रंग याद रखो, हमें स्वराज्य लेना है। हमें रणभूमि में मौत से जूझना है।
तात्या : महारानी आपकी जय हो। मैं युद्ध के लिए तैयार होकर आया हूँ।
लक्ष्मीबाई : जानती हूँ। लेकिन सेनापति, इस बार यह याद रखना कि यदि दुर्भाग्य से विजय न मिल सकी तो तुम्हें सेना और सामग्री दोनों को दुश्मन के घेरे से निकालकर ले जाना है।
तात्या : ऐसा ही होगा।
लक्ष्मीबाई : तात्या, मेरा मन कहता है कि यह मेरे जीवन का अंतिम युद्ध है। जीत हो या हार, मुझे किसी बात की चिंता नहीं। चिंता केवल इस बात की है, हमारी वीरता कलंकित न होने पाए।
तात्या : बाई साहब ! वीरता आपको पाकर धन्य है। आपके रहते कलंक हमारी छाया को भी नहीं छू सकेगा। आज्ञा दीजिए, प्रणाम।
लक्ष्मीबाई : प्रणाम तात्या ! मैं सीधी युद्धभूमि में जा रही हूँ, देर न लगाना। (तात्या चला जाता है।)
मुंदर : सरकार आज मैं बराबर आपके साथ रहूँगी।
जूही : और मैं तोपखाना सँभालूँगी।
लक्ष्मीबाई : और हम सब मिलकर या तो स्वराज्य प्राप्त करके रहेंगे या स्वराज्य की नींव का पत्थर बनेंगे। हर हर महादेव। (तीनों हर-हर महादेव का उद्घोष करती हैं। पृष्ठभूमि में यही उद्घोष उभरकर आता है, जो मंच पर प्रकाश के धुंधलाते न धुँधलाते सब कहीं छा जाता है। फिर धीरे-धीरे शांति छाने लगती है। प्रकाश उभरने लगता है और पृष्ठभूमि में गीतापाठ का स्वर उठता है।)
प्रलय – सृष्टि का विनाश
एशोआराम – विलासप्रियता
प्रतिज्ञा – प्रण
दुत्कारना – धिक्कारना
स्वराज्य – अपना राज्य
व्यग्र – आतुर
राग-रंग – गाना-बजाना
रणभूमि – लड़ाई का मैदान
अंकित – निशान लगा हुआ
उत्तेजित – भड़का हुआ
मुहावरे
अड़ जाना – किसी बात को मनवाने की जिद करना
थपेड़े मारना – समस्याओं का तेजी से उभरना
हाथ से निकल जाना – अपने बस में न रहना
भूमि तैयार करना – आधार बनाना, भूमिका बनाना
नींव का पथ्थर बनना – किसी खास कार्य की शुरूआत करना
नींद हराम करना – गहरी चिंता में डाल देना
पाताल से खींच लाना – किसी इच्छित चीज को कहीं से ढूँढ लाना
आँखें खुलना – सजग होना
मौत से जूझना – साहस से मौत का सामना करना
1. एक-दो वाक्यों में उत्तर दीजिए :-
(1) रानी लक्ष्मीबाई की चिंता का कारण क्या था?
उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई की चिंता का कारण यह था कि उनकी और उनके वीर सैनिकों की वीरता कलंकित न हो।
(2) बाबा गंगादास ने रानी लक्ष्मीबाई से क्या कहा था?
उत्तर – बाबा गंगादास ने रानी लक्ष्मीबाई से कहा था कि जब तक हमारे समाज में छुआछूत और ऊँच-नीच का भेद नहीं मिट जाता, जब तक हम विलासप्रियता को छोड़कर जनसेवक नहीं बन जाते, तब तक स्वराज्य नहीं मिल सकता।
(3) रानी लक्ष्मीबाई ने क्या प्रतिज्ञा की थी?
उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई ने प्रतिज्ञा की थी कि वह अपनी झाँसी किसी को नहीं देगी।
(4) जूही सेनापति तात्या का पक्ष क्यों लेती है?
उत्तर – जूही सेनापति तात्या का पक्ष लेती है क्योंकि उसे पता है कि तात्या एक देशभक्त हैं।
(5) तात्या रानी लक्ष्मीबाई के सामने लज्जित क्यों हो उठे?
उत्तर – तात्या रानी लक्ष्मीबाई के सामने लज्जित हो उठे क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता युद्ध के प्रति थोड़ी उदासीनता दिखाई थी और उनके इस कृत्य पर रानी लक्ष्मीबाई ने उन पर व्यंग्य किया था।
2. पाँच-छह वाक्यों में उत्तर दीजिए :- :-
(1) मार्ग में हिमालय अड़ने, डरावनी लहरों के थपेड़े मारने, नाविकों के सो जाने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के हाथों से झाँसी, कालपी, ग्वालियर पर अंग्रेज़ अधिकारी रोज का अधिकार होने से वे अत्यधिक विचलित हो गईं थीं। उनकी इसी वेदना की अनुभूति इन वाक्यों से अभिव्यक्त होती है। उन्हें लगता है कि स्वराज्य प्राप्त होने वाला है पर हिमालय स्वरूप कोई-न-कोई बाधा आ खड़ी होती है। उसे पार करती हैं तो महासागर की डरावनी लहरें थपेड़े मारने लगती अर्थात् देश के अन्य राजाओं का समर्थन प्राप्त नहीं हो पाता है। उनसे जूझती हैं तो नाविक सो जाते हैं अर्थात् सैनिकों और सेनापति में तालमेल नहीं बैठ पाता।
(2) रानी लक्ष्मीबाई देशभक्ति की एक अद्भुत मिसाल थीं- समझाइए।
उत्तर – बाल्यकाल से वीरता और देशप्रेम की भावना रानी लक्ष्मीबाई में थी। बचपन से ही उन्होंने घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्धकला में दक्षता हासिल की। वे बचपन से ही निडर और साहसी थीं। झांसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने “लैप्स सिद्धांत” (Doctrine of Lapse) के तहत झांसी को अपने अधीन करने की कोशिश की, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी को न देने की प्रतिज्ञा ली और कहा— “मैं अपनी झांसी नहीं दूँगी!” 1857 की क्रांति, भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जानी जाती है। रानी लक्ष्मीबाई ने इस क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने झांसी की रक्षा के लिए महिलाओं की एक सेना तैयार की और अपने सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेजों से युद्ध किया। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास युद्ध करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुईं। उनकी शहादत ने पूरे देश में स्वतंत्रता की भावना को और प्रज्वलित कर दिया।
(3) ‘स्वराज्य की नींव ‘शीर्षक कहाँ तक सार्थक है? प्रस्तुत एकांकी के लिए कोई अन्य शीर्षक दीजिए।
उत्तर – ‘स्वराज्य की नींव ‘शीर्षक पूर्ण रूप से सार्थक है क्योंकि पाठ में रानी लक्ष्मीबाई ने स्वराज्य हासिल करने के लिए एक आधारशिला तैयार की और उसी आधारशिला को पृष्ठभूमि बनाकर देशभक्तों ने कालांतर में आज़ादी पाई। प्रस्तुत एकांकी के लिए अन्य शीर्षक ‘भारत की वीरांगना’ या ‘झाँसी की रानी’ हो सकता है क्योंकि ये दोनों शीर्षक इस एकांकी को पूरी तरह से औचित्य प्रदान करते हैं।
(4) प्रस्तुत एकांकी में से उन कथनों को छाँटिए जिससे पता चलता है कि युद्ध की छाया में भी राव साहब वैभव विलास में डूबे थे?
उत्तर – जूही : जानती हूँ महारानी ! हम विलासिता में डूब गए है।
मुंदर : कौन कहता है कि हम विलासिता में डूब गए हैं? विलासिता में डूबे हैं रावसाहब। बाँदा के नवाब, सेनापति तात्या।
लक्ष्मीबाई : जूही ने उन्हें रोका है मुंदर मैं जानती हूँ। जब राव साहब के कहने पर तात्या इसे नाचने के लिए बुलाने को आए थे तो इसने उनको बुरी तरह दुत्कार दिया था।
3. आशय स्पष्ट कीजिए :-
(1) ‘स्वराज्य प्राप्ति से बढ़कर है स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार करना, स्वराज्य की नींव का पथ्थर बनना।”
उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि स्वतंत्रता या स्वराज्य मिले या न मिले पर उसके लिए उद्यम करना अति आवश्यक है। ऐसा करने से हो सकता है कि हम स्वराज्य न प्राप्त कर सके पर हमारी भावी पीढ़ी को एक आधारशिला एक पृष्ठभूमि तो प्राप्त होगी जिसे आधार बना कर वे स्वराज्य की संकल्पना को साकार करने के लिए प्रेरित होंगे।
(2) “शंकाएँ अविश्वास पैदा करेंगी और उस अविश्वास से उत्पन्न निराशा को दूर करने के लिए पायल की झंकार और भी झनक उठेंगी।”
उत्तर – प्रस्तुत कथन का आशय यह है कि विलासिता में डूबे राव साहब को कड़े तरीके से अगर कुछ भी समझाने का प्रयास किया जाए तो हो सकता है कि शंकाएँ और अविश्वास और भी बढ़ जाए। ऐसा होने पर वे भी विलासिता में और भी डूब सकते हैं और देश के प्रति अपने दायित्वों से विमुख हो सकते हैं।
(3) “दोस्त की ठोकर अविश्वास की खाई को और चौड़ा कर देती हैं?”
उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि जब एक दो दोस्तों के बीच किसी बात पर विवाद खड़ा हो जाता है तो ऐसे में अगर एक दोस्त अपने दूसरे दोस्त को सही राह पर लाने के लिए कड़े कदम उठाएगा तो दोस्ती के बीच आई दरार और भी गहरी और बड़ी हो जाएगी। इस एकांकी में भी हमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और बाँदा के राजा रावसाहब के बीच में मतभेद दिखाई पड़ता है।
4. सही शब्द चुनकर वाक्य पूर्ण कीजिए :-
(1) वह मिल सकता है, केवल सेवा, तपस्या और बलिदान से।(बलिदान / युद्ध)
(2) महासागर की डरावनी लहरें थपेड़े मारने लगती हैं। (लहरें / हवाएँ)
(3) कौन कहता है कि विलासिता में डूब गए हैं? (विलासिता / तपस्या)
(4) मैं स्वराज्य के लिए नाच सकती हूँ। (विजय / स्वराज्य)
(5) हमारी वीरता कलंकित न होने पाए। (श्रेष्ठता / वीरता)
5. शब्दसमूह के लिए एक शब्द :-
धरती और आकाश के मिलने का स्थान – क्षितिज
निराशा या क्रोध में मुँह से निकलने वाली श्वास –निःश्वास
दहीं से बननेवाला एक व्यंजन- श्रीखंड
ब्राह्मणों को खिलाया जानेवाला भोज – ब्रह्मभोज
स्वामि के प्रति श्रद्धा रखनेवाला – स्वामिभक्त
6. उदाहरण के अनुसार शब्द बनाए :-
राज्य – स्व+राज्य = स्वराज्य
देश – स्व+देश = स्वदेश
भाव – स्व+भाव = स्वभाव
तंत्र – स्व+तंत्र = स्वतंत्र
जन – स्व+जन = स्वजन
7.उदाहरण के अनुसार शब्द बनाए :-
सुन्दर – सुन्दरता – सौंदर्य
शूर – शूरता – शौर्य
धीर – धीरता – धैर्य
उदार – उदारता – औदार्य
स्थिर – स्थिरता – स्थैर्य
-सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले किसी एक स्वतंत्रता सेनानी के जीवन पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर – 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानी मंगल पांडे के जीवन पर दस पंक्तियाँ-
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था।
वे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के सिपाही थे।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी भड़काने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
उन्होंने 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में अंग्रेज अधिकारी पर हमला किया था।
कारण था नई एनफील्ड राइफल, जिसकी कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली थी।
उनके विद्रोह ने भारतीय सैनिकों और जनता में आजादी की लहर पैदा कर दी।
ब्रिटिश सेना ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और कठोर दंड दिया।
8 अप्रैल 1857 को उन्हें फाँसी दे दी गई।
उनकी शहादत ने पूरे भारत में क्रांति की ज्वाला भड़का दी।
आज भी वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीदों में गिने जाते हैं।
-उन देशभक्त नारियों के नाम लिखिए जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया था।
उत्तर – भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक वीरांगनाओं ने साहस और वीरता का परिचय दिया। यहाँ कुछ प्रमुख देशभक्त नारियों की जानकारी दी गई है –
- रानी लक्ष्मीबाई (1828-1858)
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की महान नायिका थीं।
उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा और कहा – “मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी!”
1858 में अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं।
- सरोजिनी नायडू (1879-1949)
सरोजिनी नायडू को “भारत कोकिला”कहा जाता है।
वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्षा बनीं।
गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय रहीं और जेल भी गईं।
- उदा देवी (1830-1857)
1857 की क्रांति में अवध की वीरांगना उदा देवी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
उन्होंने गुप्त रूप से पेड़ पर छिपकर कई अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया।
अंत में वीरगति को प्राप्त हुईं, लेकिन अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी।
- भीकाजी कामा (1861-1936)
वे पहली महिला थीं जिन्होंने विदेश में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का झंडा लहराया।
1907 में जर्मनी में हुए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने भारत का ध्वज फहराया।
उन्होंने क्रांतिकारियों को आर्थिक और नैतिक सहयोग दिया।
- कस्तूरबा गांधी (1869-1944)
कस्तूरबा गांधी, महात्मा गांधी की पत्नी थीं और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहीं।
उन्होंने सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया।
जेल में रहते हुए भी वे महिलाओं को जागरूक करती रहीं।
- अरुणा आसफ़ अली (1909-1996)
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराया।
उन्हें “भारत की ग्रैंड ओल्ड लेडी”कहा जाता है।
स्वतंत्रता के बाद वे समाजवादी आंदोलनों से जुड़ी रहीं।
- मातंगिनी हाजरा (1870-1942)
गांधीजी के अहिंसक आंदोलन में शामिल हुईं और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया।
पुलिस की गोली लगने के बावजूद वे तिरंगा उठाए हुए आगे बढ़ती रहीं और शहीद हो गईं।
- रानी चेनम्मा (1778-1829)
कर्नाटक की वीरांगना जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
वे भारतीय इतिहास की पहली महिला थीं जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी।
इन वीरांगनाओं ने अपने साहस, बलिदान और नेतृत्व से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को शक्ति प्रदान की।
देश की आज़ादी के लिए शहीद होनेवाले किसी दो शहीदवीरों की फिल्म वर्गखंड में प्रस्तुत करें।
उत्तर – 1. भगत सिंह (1907-1931)
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा गाँव (अब पाकिस्तान में) में हुआ था।
वे बचपन से ही देशभक्ति से ओतप्रोत थे और जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने उनके हृदय में क्रांति की ज्वाला जला दी।
उन्होंने चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु आदि के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियाँ चलाईं।
1928 में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए उन्होंने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सांडर्सन की हत्या की।
1929 में उन्होंने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंककर ब्रिटिश शासन का विरोध किया।
23 मार्च 1931 को उन्हें राजगुरु और सुखदेव के साथ फाँसी दे दी गई।
वे भारत के युवाओं के लिए आज भी प्रेरणास्रोत हैं।
- चंद्रशेखर आज़ाद (1906-1931)
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भावरा गाँव में हुआ था।
कम उम्र में ही वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए।
बाद में वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़ गए और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गए।
उन्होंने भगत सिंह, राजगुरु और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन को चुनौती दी।
27 फरवरी 1931 को जब वे इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में थे, तब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें घेर लिया।
उन्होंने अंतिम समय तक लड़ाई लड़ी और अंत में खुद को गोली मार ली ताकि अंग्रेज उन्हें जीवित न पकड़ सकें।
वे हमेशा के लिए “आज़ाद”बनकर देशवासियों के दिलों में अमर हो गए।