(जन्म सन् 1925 ई. निधन सन् 1972 ई.)
मोहन राकेश का जन्म जालंधर (पंजाब) में हुआ था। इनके पिता व्यवसाय से वकील थे, परंतु उनकी साहित्य में बहुत रुचि थी। अतः राकेश को बचपन से ही घर में पर्याप्त साहित्यिक वातावरण प्राप्त हुआ। इन्होंने हिंदी तथा संस्कृत में एम. ए. तक शिक्षा प्राप्त की और तत्पश्चात् डी.ए.वी. कॉलेज, जालंधर में हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में अध्यापन कार्य किया। कुछ समय तक इन्होंने ‘सारिका’ कहानी पत्रिका का सफल सम्पादन किया और बाद में स्वतंत्र लेखन करते रहे। कहानी लेखन के साथ-साथ इन्होंने उपन्यास और नाटक भी लिखे थे। इनकी प्रमुख रचनाओं में ‘इंसान के खंडहर’, ‘नए बादल’, ‘एक और आदमी’ आदि कहानी संग्रह तथा अँधेरे बंद कमरे’, ‘न आनेवाला कल’ प्रसिद्ध उपन्यास हैं। ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘आधे-अधूरे’ तथा ‘लहरों के राजहंस’ इनके प्रसिद्ध नाटक हैं। मोहन राकेश मूलतः एक सफल कहानीकार तथा नाटककार हैं।
‘गुलमर्ग की खिड़की से एक रात’ ‘परिवेश’ से लिया गया है। इस यात्रा वृत्तांत में लेखक ने गुलमर्ग के प्राकृतिक सौंदर्य का स्वानुभूत विवरण प्रस्तुत किया है। गुलमर्ग का सारा वातावरण इनको अपने में समाया सा लगता है। ‘गुलमर्ग की एक रात’ का अकल्पनीय सौंदर्य इनसे भुलाया ही नहीं जाता।
गुलमर्ग की खिड़की से एक रात
कुछ जगहें होती हैं जिन्हें आँख एक बार देखती है तो चौंक उठती है, फिर धीरे-धीरे परिचित होकर उदासीन हो जाती है। गुलमर्ग ऐसी जगह नहीं है।
मैं जब पहली बार गुलमर्ग गया, तो मुझे वहाँ कुछ भी असाधारण नहीं लगा एक खुला सपाट मैदान, देवदारों के घने झुरमुट और बस ! तब मैं घण्टे भर में सारा गुलमर्ग देख आया था।
मगर बाद में महीनों वहाँ रहने पर एहसास हुआ कि पहली बार तो क्या, बाद में भी कभी उस स्थान को पूरा नहीं देख पाया उसे पूरा कभी देखा हीं नहीं जा सकता। शायद यही कारण है कि गुलमर्ग में रहकर वहाँ के साथ व्यक्ति की आत्मीयता धीरे-धीरे इतनी गहरी हो जाती है कि वह अपने को भी उस सपाट मैदान के एक हिस्से के रूप में ही देखने लगता है- काँपती तितलियों उठते बादलों और बर्फ से चमकती पहाड़ियों की तरह दूसरी ओर वह पूरा विस्तार, जिसमें वह स्वयं भी रहता है, उसे अपने में समाया-सा लगता है- सूर्योदय और सूर्यास्त, दोनों सन्ध्याएँ, घना कोहरा, पीली धूप और सब कुछ ! इसलिए जब व्यक्ति गुलमर्ग से चलता है, तो एहसास होता है अपने से ही बिछुड़ने का अपने उस रूप से जो कि इतना परिचित होते हुए भी सदा अपरिचित बना रह जाता है ! गुलमर्ग में सपने फूल बनकर उगते हैं- हरियाली के आर-पार, लाल-लाल छतों के ऊपर, आकाश में। आँखें मुग्ध होकर देखती रहती हैं और फूलों में नये-नये रंग भर जाते हैं, वातावरण में नयी-नयी कोंपलें फूट आती हैं। हर क्षण एक नये अनुभव, नये रोमांच की सृष्टि होती हैं।… बादलों के पोर्टिको के नीचे लोग बाँहें फैलाये घास पर बैठे हैं। दूर-दूर तक सैलानियों की पंक्तियाँ घोड़े दौड़ाती नज़र आती हैं। रंगों के कुछ बिन्दु हरियाली के पद पर जहाँ-तहाँ छिटके हैं। सहसा प्रकाश से नन्हीं-नन्हीं पारदर्शक बूँदे पड़ने लगती हैं। रंगीन बिन्दुओं का पूरा विस्तार एक बार सिहर जाता है और अपने को समेटने लगता है। हरियाली का सपना कुहासे के फूल में बदल जाता है। मैदान सुरमई आभा ओढ़ लेता है। अब चारों तरफ़ धुन्ध-ही-धुन्ध है और बेबस होकर फैली पगडण्डियों की पतली पतली नरम बाहें। जब तक बादल बरसेगा, बाँहें फैली रहेंगी ऐसी ही कोमल, विस्मृत और निढाल। सूरज चमकेगा तो फूल में से नया सपना जन्मेगा। आकाश में बादलों के नन्हें-नन्हें द्वीप इधर-उधर भटकते फिरेंगे। भेड़ों और बकरियों के रेवड़ पगडण्डियों पर टैंक जाएँगे। दिन तब रात की प्रतीक्षा करता सा प्रतीत होगा। रात आएगी तो सब कुछ खामोश हो जाएगा मैदान की वह खामोशी भी, जो दिन के समय इतनी वाचाल हो जाती है!
गुलमर्ग की वह रात मुझे कभी नहीं भूलेगी। मैं होटल की खिड़की में खड़ा था। दूर- बहुत दूर सामने से एक बरसती घटा मेरी तरफ़ बढ़ती आ रही थी। मैं प्रतीक्षा कर रहा था कि कब वह मुझ तक पहुँचे और मुझे अपने में लपेट ले। बरसती घटा में घिर जाने से बड़ा सुख मैंने बहुत कम जाना है। घटा ऊपर से घिर आये और व्यक्ति को छोटा करके उस पर छा जाए, यह इससे अलग स्थिति है। इस बार आती हुई घटा का हर संकेत मेरे सामने था और मैं उसके बराबर का होकर अपनी खिड़की में खड़ा उसे बुला रहा था कि आ… आ… आ, मैं तुझसे कमजोर नहीं हूँ। हवा तेज़ थी, मगर घटा तेजी से नहीं बढ़ रही थी- हालाँकि तूफ़ान बहुत उठा हुआ था। बार – बार ज़ोर की गरज होती थी जिससे धरती और आकाश की शिराएँ काँप जाती थी। बार-बार सामने के चित्रपट पर बिजली कौंधती थी और प्रकाश का वह भयानक विस्फोट हर चीज को नंगा कर जाता था। मैं खुश था कि थोड़ी देर में ये बूँदें मेरे ऊपर बरसेंगी – बिजलियों का यह क़हर मेरे ऊपर टूटेगा। मैं बाँहें फैलाकर सामने से उसे अपने ऊपर लेने के लिए तैयार था।
मगर अचानक हवा रूक गयी। बढ़ता हुआ तूफ़ान जहाँ का तहाँ ठिठक गया और दूर ही पर कटे पक्षी की तरह दम तोड़ने लगा। बिजली की साँस रुकने लगी और मेरी भी- क्योंकि हवा के रुक जाने से मुझे भी बहुत ऊँचे आसमान से नीचे आना पड़ा था। तूफ़ान का जोम उतर गया और उसके साथ ही मेरा भी। मैं उसके बराबर का कभी नहीं हो सका।
वे ऐसे क्षण थे जो जीवन में दो-एक बार ही आते हैं। गुलमर्ग में रहते हुए ऐसे क्षण हर किसी के जीवन में किसी-न-किसी रूप में अवश्य आते होंगे। तभी तो मुद्दत तक वहाँ रह चुकने पर भी कोई आकर्षण व्यक्ति को फिर खींचकर वहाँ ले जाता है। वरना वहाँ हैं क्या एक खुला सपाट मैदान जहाँ ज्यादा गॉल्फ खेली जा सकती है! व्यक्ति क्यों बार-बार वहाँ जाना चाहता है? क्या गॉल्फ खेलने के लिए ही?
गुलमर्ग – कश्मीर का एक सुन्दर प्राकृतिक रमणीय स्थान
तिगलिया – तिराहा, जहाँ तीन रास्ते मिलते हों
रोमांचकी – आनंद देनेवाली, हर्षित करनेवाली
पोर्टिको – बरामदा, ड्योढ़ी
भयानक – खतरनाक
विस्फोट – Explosion
रेबड़ – झुंड
कहर – अत्याचार
दम तोड़ना – मर जाना
जोम – उत्साह
1. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
(1) गुलमर्ग का भौगोलिक वातावरण कैसा है?
उत्तर – गुलमर्ग कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 52 किलोमीटर दूर है। 2,650 मीटर की ऊँचाई पर स्थित गुलमर्ग में बर्फबारी होती है जिस वजह से यहाँ ठंड ही रहती है।
(2) लेखक ने गुलमर्ग के साथ व्यक्ति की आत्मीयता बढ़ने का क्या कारण बताया हैं?
उत्तर – महीनों गुलमर्ग में रहने पर भी लेखक को यह एहसास हुआ वे उस स्थान को पूरा नहीं देख पाए हैं। अतः, यहाँ की अद्वितीय सुंदरता को लेखक ने गुलमर्ग के साथ व्यक्ति की आत्मीयता बढ़ने का कारण बताया है।
(3) खिड़की के पास खड़ा लेखक बरसाती घटा को देखकर किस बात की प्रतीक्षा करने लगा?
उत्तर – खिड़की के पास खड़ा लेखक बरसाती घटा को देखकर बरसाती घटा का अपने पास पहुँचने की प्रतीक्षा करने लगा।
(4) तूफ़ान के एकाएक रूक जाने पर लेखक को कैसा अनुभव हुआ?
उत्तर – तूफ़ान के एकाएक रूक जाने पर लेखक को अनुभव हुआ कि तूफ़ान एक परकटे पक्षी की तरह दूर ही दम तोड़ने लगा।
(5) लेखक को किस बात का अफसोस हुआ?
उत्तर – लेखक को इस बात का अफसोस हुआ कि बरसाती घटा उन तक नहीं पहुँच पाई।
(6) लेखक ने गुलमर्ग की पगडण्डियों के लिए क्या उपमा दी?
उत्तर – लेखक ने गुलमर्ग की पगडण्डियों के लिए पतली पतली नरम बाहों की उपमा दी है।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-दो वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
(1) गुलमर्ग से विदा होते समय सैलानियों को कैसा अहसास होता है?
उत्तर – सैलानियों को गुलमर्ग-भ्रमण के दौरान वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, जैसे- सूर्योदय और सूर्यास्त, दोनों संध्याएँ, घना कोहरा, पीली धूप और सब कुछ अपने में समाया-सा लगता है। इसलिए जब सैलानी गुलमर्ग से चलते हैं, तो उन्हें अपने से ही बिछुड़ने का एहसास होता है।
(2) लेखक ने गुलमर्ग के दिन को वाचाल क्यों कहा?
उत्तर – लेखक ने गुलमर्ग के दिन को वाचाल कहा क्योंकि दिन के समय वहाँ सैलानियों की चहल-पहल रहती हैं। बकरियाँ चारा करती हैं। खिलाड़ी गोल्फ खेलते हैं। इन वजहों से वहाँ मीठा शोर होता रहा है।
(3) सैलानी कब और क्यों सिहर जाते हैं?
उत्तर – गुलमर्ग समुद्र ताल से 2,650 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ अधिक बर्फबारी होती है जिस वजह से यहाँ ठंड भी बहुत रहती है। इसी बर्फबारी और ठंड की वजह से सैलानी सिहर जाते हैं।
(4) लेखक की प्रतीक्षा असफल क्यों हुई?
उत्तर – गुलमर्ग में प्रवास के दौरान लेखक ने एक दिन आकाश में छाई बरसाती घटा का अपनी ओर आने का इंतज़ार किया था लेकिन बहुत प्रतीक्षा करने के बाद भी वह बरसाती घटा बीच मे ही रुक गई और लेखक तक नहीं पहुँच पाई। इसलिए लेखक की प्रतीक्षा असफल हुई।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के पाँच-छह वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
(1) लेखक ऐसा क्यों कहता है कि गुलमर्ग को कभी पूरा देखा नहीं जा सकता?
उत्तर – लेखक महीनों तक गुलमर्ग में रहे थे फिर भी उन्हें एहसास हुआ कि पहली बार तो क्या, बाद में भी वे कभी उस स्थान को पूरा नहीं देख पाएँगे या उसे पूरा कभी देखा हीं नहीं जा सकता क्योंकि वहाँ की सुंदरता अतुलनीय होती है। व्यक्ति की आत्मीयता गुलमर्ग से धीरे-धीरे इतनी गहरी हो जाती है कि वह अपने को भी वे उस सपाट मैदान के एक हिस्से के रूप में ही देखने लगते हैं।
(2) ‘दिन में गुलमर्ग की शोभा’ का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – ‘दिन में गुलमर्ग की शोभा’ अतुलनीय होती है। गुलमर्ग की प्रकृति का हरा-भरा रूप नयनाभिराम होता है। मखमली हरी घास बिछी रहती है जहाँ बीच-बीच तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल खिले होते हैं। वातावरण में रमणीयता नई-नई कोपलें फूट आती हैं। कोई गॉल्फ खेल रहा होता है तो कहीं सैलानी घुड़सवारी का आनंद लेते नजर आते हैं। यहाँ हर पल नए अनुभव और रोमांच की सृष्टि होती है। आकाश में बादलों के नन्हे-नन्हे द्वीप तैरते दिखाई देते हैं। पगडंडियाँ भेड़-बकरियों के रेवड़ों से ढक जाती हैं।
(3) प्रकाश, बादल तथा हवा के कारण गुलमर्ग दर्शन में आए रोमांच का वर्णन कीजिए।
उत्तर – गुलमर्ग में प्रकृति के विविध खेल देखने को मिलते हैं जिसमें खिलाड़ियों के रूप में प्रकाश, बादल तथा हवा अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। बर्फ से ढके पर्वतों पर सूर्य का प्रकाश सुनहली आभा प्रकट करता है। आकाश से बरसते बर्फ के पारदर्शक कण प्रकाश में उज्ज्वल हो उठते है। बादलों के समूह आकाश में ऐसे विचरण करते हैं जैसे नन्हें-नन्हें द्वीप इधर-उधर भटक रहे हों। सुहावनी लगने वाली हवा एकाएक तूफान का रूप ले लेती है, तेज हवा के साथ बरसाती घटाएँ तेज़ी से आगे बढ़ती हैं। बीच-बीच में बिजली भी कौंधने लगती है। इस प्रकार प्रकाश, बादल और हवा के कारण गुलमर्ग एक अनोखे रोमांच से भर जाता है।
4. पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए :-
(1) गुलमर्ग में सपने फूलकर उगते हैं- हरियाली के आर-पार, लाल-लाल छतों के ऊपर आकाश में।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि गुलमर्ग एक ऐसी जगह है जहाँ हमारे सपने वास्तविक रूप में प्रकट होते हैं। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य इतना मनोरम होता है कि रंगीन बादलों के विविध रूप सम्मोहित करने की क्षमता रखते हैं।
(2) रंगीन बिन्दुओं का पूरा विस्तार एक बार सिहर जाता है और अपने को समेटने लगता है।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि गुलमर्ग में प्रकृति की सुंदरता सदा अपने चरम पर होती है। जब आकाश में बादलों का सुंदर दृश्य दिख रहा होता है तो बरसाती घटाओं के आ जाने से सभी सैलानी इधर-उधर बारिश की बूँदों से बचने के लिए एक सुरक्षित स्थान ढूँढने लग जाते हैं।
- ‘हरियाली का सपना कुहासे के फूल में बदल जाता है। यह दृश्य किस समय का है?
(अ) प्रातः काल
(ब) दोपहर
(क) सायंकाल
(ड) अर्धरात्रि
उत्तर – (क) सायंकाल
6. (1) उचित उपसर्ग जोड़कर उनके विरुद्धार्थी शब्द बनाइए :-
साधारण – अ + साधारण = असाधारण
मान – अप + मान = अपमान
उदार – अन + उदार = अनुदार
रंग – बे + रंग = बेरंग
स्मृति – वि + स्मृति = विस्मृति
(2) उचित प्रत्यय जोड़कर विशेषण शब्द बनाइए :-
सुरमा – सुरमा + अई = सुरमई
बरसात – बरसात + ई = बरसाती
तूफ़ान – तूफ़ान + ई = तूफ़ानी
चमक – चमक + ईला = चमकीला
विस्फोट – विस्फोट + क = विस्फोटक
(3) उचित प्रत्यय जोड़कर संज्ञा बनाइए :-
लाल – लाल + इमा = लालिमा
खामोश – खामोश + ई = खामोशी
कमजोर – कमजोर + ई = कमज़ोरी
आकर्षक – आकर्षक + क = आकर्षक
7. वाक्य में प्रयोग कीजिए :-
विस्फोट – बड़े-बड़े पहाड़ों को विस्फोटक की मदद से विस्फोट कर सड़क बनाने का काम चल रहा है।
आकर्षण – गांधी मैदान में लगा मेला लोगों का आकर्षण बना हुआ है।
पारदर्शक – हिमालय की हिमनदें पारदर्शक हैं।
रोमांचक – जंगल की सैर करना सचमुच रोमांचक कार्य है।
राहुल सांस्कृत्यायन की ‘मेरी लद्दाख यात्रा’ पुस्तक पढ़िए।
उत्तर – राहुल सांस्कृत्यायन की ‘मेरी लद्दाख यात्रा’ का संक्षिप्त वर्णन
लद्दाख का सांस्कृतिक और धार्मिक चित्रण:
लेखक ने लद्दाख की बौद्ध संस्कृति को विस्तार से दर्शाया है। उन्होंने वहाँ के मठों (गोंपा), बौद्ध धर्म ग्रंथों और धार्मिक परंपराओं का गहन अध्ययन किया।
वे लद्दाख के विभिन्न मठों में गए, जहाँ उन्होंने प्राचीन पांडुलिपियों और तिब्बती बौद्ध ग्रंथों का अवलोकन किया।
उन्होंने वहाँ के लामा संप्रदाय, पूजा-पद्धति, भिक्षुओं के जीवन और बौद्ध मत के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया।
लद्दाख की प्राकृतिक सुंदरता और भौगोलिक परिस्थितियाँ:
लद्दाख की बर्फीली चोटियाँ, ठंडा रेगिस्तान, नदियाँ, पहाड़ी रास्ते और जलवायु का रोचक वर्णन किया गया है।
वहाँ की जलवायु अत्यंत ठंडी और कठिन थी, फिर भी लोग अपनी परंपराओं के अनुसार जी रहे थे।
स्थानीय लोगों की वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन और उनके सामाजिक जीवन का सजीव चित्रण मिलता है।
स्थानीय जनजीवन और कठिनाइयाँ:
राहुल सांकृत्यायन ने लद्दाख के लोगों की सरलता, परिश्रमशीलता और आत्मनिर्भरता को रेखांकित किया है।
वहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय याक पालन, कृषि और व्यापार था।
यात्रा के दौरान आने वाली कठिनाइयों, जैसे ऊँचाई पर सांस लेने में दिक्कत, ठंड, अनजान रास्ते, सीमित संसाधन आदि का उल्लेख भी किया गया है।
भाषा और शैली:
इस पुस्तक की भाषा सरल, प्रवाहमयी और वर्णनात्मक है। राहुल सांकृत्यायन ने यात्रा विवरण को केवल एक व्यक्तिगत अनुभव तक सीमित न रखते हुए उसमें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टिकोण भी जोड़ा है।
आपने जिन पर्यटन स्थलों की यात्रा की है, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर – मेरी ऋषिकेश यात्रा
ऋषिकेश! गंगा की पावन धारा के किनारे बसा यह नगर न केवल अध्यात्म का केंद्र है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और रोमांचक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध है। जब मैंने ऋषिकेश यात्रा की योजना बनाई, तो मन में उत्साह और श्रद्धा दोनों का संचार था।
ऋषिकेश की ओर प्रस्थान
मेरी यात्रा का प्रारंभ हरिद्वार से हुआ। गंगा के किनारे बसे इस पवित्र नगर में कुछ समय व्यतीत करने के बाद, मैं ऋषिकेश की ओर बढ़ा। रास्ते में पहाड़ों की हरियाली और गंगा की निर्मल धारा ने मन को मोह लिया। जैसे-जैसे हम ऋषिकेश के करीब पहुंचे, वैसे-वैसे हवा में एक अलग तरह की शांति और आध्यात्मिकता महसूस होने लगी।
लक्ष्मण झूला और राम झूला
ऋषिकेश पहुँचते ही सबसे पहले मैं लक्ष्मण झूला गया। यह पुल गंगा नदी के ऊपर झूलता हुआ प्रतीत होता है। कहा जाता है कि भगवान लक्ष्मण ने इसी स्थान पर गंगा को पार किया था। पुल से नीचे गंगा की लहरों को देखना अत्यंत मनमोहक था। इसके बाद मैं राम झूला पहुँचा, जो लक्ष्मण झूले की तरह ही है, लेकिन अधिक बड़ा और भव्य।
परमार्थ निकेतन और गंगा आरती
शाम के समय मैं परमार्थ निकेतन आश्रम पहुँचा, जहाँ गंगा आरती का दिव्य आयोजन होता है। जैसे ही सूरज अस्त होने लगा, संतों और श्रद्धालुओं की भीड़ गंगा किनारे जुटने लगी। आरती की ध्वनि, मंत्रोच्चार और घंटियों की गूँज से पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया। जलती हुई दीपमालाएँ जब गंगा की लहरों पर तैरने लगीं, तो वह दृश्य अविस्मरणीय बन गया।
नीर गढ़ झरना – प्रकृति की गोद में
अगले दिन मैंने नीर गढ़ झरने की यात्रा की। घने जंगलों के बीच यह झरना एक अद्भुत स्थान है। यहाँ तक पहुँचने के लिए एक छोटे से ट्रेक का आनंद लिया, जहाँ रास्ते में कई खूबसूरत नज़ारे देखने को मिले। झरने के शीतल जल ने सारी थकान मिटा दी।
अध्यात्म और योग का अनुभव
ऋषिकेश योग की राजधानी के रूप में भी जाना जाता है। मैंने एक योग केंद्र में कुछ समय बिताया, जहाँ प्राचीन योग पद्धतियों और ध्यान साधना के बारे में जानकारी मिली। गंगा किनारे ध्यान लगाने का अनुभव अनोखा था।
रिवर राफ्टिंग का रोमांच
ऋषिकेश केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि रोमांचक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध है। मैंने गंगा में रिवर राफ्टिंग करने का निर्णय लिया। तेज़ बहाव वाली लहरों के बीच नाव को नियंत्रित करना एक रोमांचक अनुभव था। यह यात्रा केवल अध्यात्म ही नहीं, बल्कि रोमांच से भी भरपूर रही।
किसी यात्रा का आयोजन करें।
उत्तर – शिक्षक इसे अपने स्तर पर करें।
यात्रा वर्णनों का संकलन करवाइए।
उत्तर – यात्रा वर्णन हिंदी साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा रही है, जिसमें लेखकों ने अपने यात्रा अनुभवों को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है। यहाँ कुछ प्रसिद्ध हिंदी लेखकों द्वारा लिखे गए यात्रा वृत्तांतों का संकलन प्रस्तुत है-
- राहुल सांकृत्यायन – ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ और ‘तिब्बत में सवा साल’
राहुल सांकृत्यायन को हिंदी यात्रा साहित्य का पितामह कहा जाता है। उन्होंने अपनी यात्राओं के अनुभवों को विस्तृत रूप से लिखा है। उनकी पुस्तक ‘तिब्बत में सवा साल’ तिब्बत की संस्कृति, समाज और धार्मिक परंपराओं का अद्भुत विवरण प्रस्तुत करती है। ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ में उन्होंने यात्राओं के महत्व और एक घुमक्कड़ के जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला है।
- महापंडित विद्यानिवास मिश्र – ‘बनारस’
यह पुस्तक वाराणसी शहर के इतिहास, संस्कृति और धार्मिक महत्त्व को दर्शाती है। मिश्र जी ने बनारस के घाटों, मंदिरों, गलियों और वहाँ की जीवनशैली का अत्यंत रोचक और सूक्ष्म वर्णन किया है।
- अज्ञेय – ‘अरे यायावर रहेगा याद?’
यह यात्रा-वर्णनात्मक निबंधों का संकलन है, जिसमें अज्ञेय ने अपनी विदेश यात्राओं, विशेषकर जापान और यूरोप के अनुभवों को संजोया है। उनकी भाषा शैली अत्यंत प्रवाहमयी और काव्यात्मक है, जो पाठकों को उनकी यात्राओं का सजीव अनुभव कराती है।
- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ – ‘एक बूंद सहसा उछली’
इस पुस्तक में लेखक ने विभिन्न स्थानों की यात्रा करते हुए अपने व्यक्तिगत अनुभवों को गहरे दार्शनिक और सौंदर्यबोध से प्रस्तुत किया है।
- विष्णु प्रभाकर – ‘संवेदनाओं के घेरे’
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखक ने अपनी विभिन्न यात्राओं के दौरान अनुभव किए गए प्राकृतिक सौंदर्य, लोगों की संस्कृति और उनके जीवन को बड़े ही संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया है।
- शिवानी – ‘स्मृति कलश’
इस पुस्तक में शिवानी ने अपने यात्रा अनुभवों को आत्मकथात्मक शैली में प्रस्तुत किया है। हिमालय की गोद में बसी उनकी यात्राओं का सुंदर चित्रण इस कृति में देखने को मिलता है।
- हरिशंकर परसाई – ‘रानी नागफनी की कहानी’
परसाई जी ने व्यंग्यात्मक शैली में यात्रा अनुभवों को प्रस्तुत किया है। उनकी रचनाओं में समाज और राजनीति पर तीखी टिप्पणियाँ होती हैं, जो यात्रा वर्णन को और भी रोचक बना देती हैं।
- यतींद्र मिश्र – ‘गिरिजा’
इस पुस्तक में यात्रा का वर्णन काशी, प्रयाग और अयोध्या जैसे धार्मिक स्थलों के संदर्भ में किया गया है।
- प्रभाकर माचवे – ‘यायावर की डायरी’
यह एक घुमक्कड़ लेखक की यात्रा डायरी है, जिसमें उनके विभिन्न स्थानों की यात्रा के दौरान हुए अनुभवों का सुंदर चित्रण है।