Gujrat State Board, the Best Hindi Solutions, Class IX, Nirbhay Bano, Faneeshwarnath Renu, निर्भय बनो (उपन्यास अंश) फणीश्वरनाथ रेणु

(जन्म: सन् 1921 ई. : निधन सन् 1977 ई.)

प्रसिद्ध आंचलिक कथाकार ‘रेणु’ का जन्म बिहार में वर्तमान बिहार के पूर्णिया जिले के औराही – हिंगना गाँव में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा उनके गाँव, विराटनगर (नेपाल) तथा वाराणसी में हुई। उन्होंने भारत तथा नेपाल के स्वाधीनता आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया तथा कारावास भोगा। कुछ समय तक उन्होंने आकाशवाणी पटना में कार्य किया। अपने पहले उपन्यास”मैला आँचल”के प्रकाशन के साथ ही वे विख्यात हो गए। उसके पहले वे एक कहानीकार तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में साहित्य जगत में सुपरिचित हो चुके थे।

‘रेणु’जी की रचनाओं में उनका जीवन अनुभव मुखरता है। जीवन की सुरुपता – कुरुपता को मानवीय सहृदयता तथा पूर्ण तटस्थता के साथ उन्होंने अपनी रचनाओं में व्यक्त किया है। उनकी भाषा में लोक बोलियों के शब्दों का प्रयोग ध्यानाकर्षक है। भाषा में ताजगी और नयापन है। मैला आँचल, परती परिकथा, जुलूस, पल्टू बाबू रोड, कितने चौराहे आदि उनके प्रमुख उपन्यास तथा दुमरी, अग्निखोर, एक आदिमरात्रि की महक आदि उनके प्रमुख कहानीसंग्रह हैं। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ की उपाधि से सम्मानित किया था।

यह अंश उनके उपन्यास ‘कितने चौराहे’ के सातवाँ प्रकरण से लिया गया है। विद्यार्थी जीवन में ही मानवीय सामाजिक मूल्यों के प्रति कथानायक मनमोहन का कैसे झुकाव होता है, इस अंश में उसका चित्रण है। शिक्षक इस पाठ से निर्भयता के गुण का विकास करने का प्रयास करेगा।

प्रियोदा !

प्रियव्रत राय मैट्रिक में पढ़ता है। स्कूल के सभी लड़के और मास्टर उसको प्यार करते हैं। स्कूल ही नहीं, उस छोटे से कस्बे में उसको प्रायः सभी जानते हैं। हर रविवार की सुबह बगल में झोली लटकाकर ‘संन्यासी- आश्रम’ के लिए मुठिया वसूलने निकलता है- कभी अकेला, कभी साथियों के साथ। स्कूल का कोई छात्र या शिक्षक बीमार पड़ा कि प्रियोदा अपनी टोली के साथ उसके घर पर हाजिर। जब तक रोगी भला चंगा न हो जाए, उसका दल सेवा में जुटा रहता है।

रोबी और कालू प्रियोदा के दल में हैं। उन लोगों ने मनमोहन को भी अपने साथ प्रियोदा के दल में शामिल कर लिया।

हर शनिवार को परमान के उस पार ‘बालूचर’ पर प्रियोदा के दल के सदस्य, स्कूल की छुट्टी के बाद जमा होते हैं। खेल-कूद, गाने-बजाने के अलावा प्रियोदा दुनिया भर की खबर सुनाते हैं। रविवार का प्रोग्राम तय करते हैं, किस मुहल्ले में कौन जाएगा मुठिया वसूलने। किस बीमार की सेवा करने कौन-कौन जाएँगे।

उस दिन मनमोहन का परिचय देते हुए कालू ने कहा था,  “प्रियोदा ! यह मोना – मनमोहन। खूब तेज लड़का है।‘क्लब’ का सदस्य होना चाहता है।”

प्रियोदा ने मनमोहन को सिर से पैर तक देखकर पूछा था, “भारतवर्ष के एक ऐसे आदमी का नाम लो, जिसे लोग भगवान का अवतार समझते हैं।”

 “महात्मा गांधी।”

“ठीक है। तुम पढ़-लिखकर क्या बनना चाहते हो?” प्रियोदा का दूसरा सवाल।

मनमोहन चुप रहा। फिर बोला, “वक़ील।”

सभी उठाकर हँसे। लेकिन प्रियोदा गम्भीर ही रहे। बोले,“ठीक है। बीमार लोगों की सेवा करना जानते हो?”

“सीख लेंगे।”

“शाबाश! यदि रोगी हैजा से पीड़ित हो?”

मनमोहन चुप रहा, क्योंकि हैजा के नाम से ही उसे डर लगने लगताI

“गाना जानते हो?”

“जी।”

“तैरना?”

“जी नहीं।”

प्रियोदा ने सूर्यनारायण नामक सदस्य से कहा,“सूरज ! मोना तैरना नहीं जानता।”

“सीख जाएगा। एक दिन उठाकर पानी में फेंक दूँगा, खुद तैरने लगेगा।”

सभी हँसे। सूर्यनारायण पढ़ने में कमज़ोर हैं, लेकिन शरीर उसका मजबूत है। रोज एक सौ ‘दंड- बैठक’ करता है। उसके साथी ‘सूरज पहलवान’ कहते हैं, उसको। दल के सदस्यों को तैरना सिखलाना उसी का काम है।

उस दिन सभी ने नए सदस्य मोना, यानी मनमोहन से गीत सुनने की इच्छा प्रकट की। मनमोहन पहले लजाया, किंतु जब प्रियोदा ने आग्रह किया तो उसने खखारकर गला साफ किया। कौन गीत गाये वह? उसने शुरू किया।

“राम रहीम न जुदा करो भाई

दिल को सच्चा रखना जी…।”

गीत समाप्त होने के बाद प्रियोदा बोले, “वाह! बहुत मीठा गला है तुम्हारा ! कालू, तुम ‘प्रभातफेरी’ वाले दोनों गीत मोना को सिखा देना।”

सूरज पच्छिम की ओर झुक गया। बालूचर पर लाली उत्तर आई। परमान की धारा पर डूबते हुए सूरज की अंतिम किरण झिलमिलाई। पखेरू दल बाँधकर बाँस-वन की ओर लौटने लगे। प्रियोदा के दल के सभी सदस्य पंक्ति बाँधकर लौटे। पुल के पास एक गाड़ीवान तन्मय होकर गीत गा रहा था  -“भोला गरीबक दीन पहिया हरब भोला गरीब क दीन।”

सूरज ने भी उसी सुर में सुर मिलाकर गाना शुरू किया –“एक दा जे लोटा छल, बेदा छल तीन- पनियाँ पीबैत काल लोटा लेलक छीन…

कृत्यानन्द झा ने कहा, “विद्यापति की ‘लाचारी है।”

“लाचारी?”

“लाचारी।”

– ट्रट्ठाँय !…

बालूचर के उस पार से किसी ने फायर किया। एक पखेरू बालू पर गिरकर छटपटाने लगा। उसका जोड़ा विकल होकर बहुत देर तक रोता रहा। मटमैले अन्धकार में एक अर्दलीनुमी आदमी दौड़ा हुआ आया और मरी हुई चिड़िया के डैने को पकड़कर चिल्लाया, “मिल गया हुजूर!”

इब्राहीम बोला, “सब – डिप्टी साहब का अर्दली है। साला, भारी खचड़ा है।”

प्रियोदा के मुँह से अचानक निकला, “हॉल्ट !”

तब इब्राहीम को अपनी गलती का एहसास हुआ। दल का नियम है कोई सदस्य किसी किस्म का अपशब्द या गाली मुँह से नहीं निकालेगा। इब्राहीम ने तुरंत सिर झुकाकर दल के नायक प्रियोदा और सदस्यों से माफ़ी माँगी, “बात यह है कि साले ने …।”

सभी हँसे। प्रियोदा ने गंभीर होकर कहा, “इब्राहीम, यह तुम्हारी आठवीं गलती है, ‘दस’ होते ही हम तुम्हारे साथ नहीं रहेंगे।”

इब्राहीम ने पूछा, “लेकिन सरकारी अफ़सरों को गाली देने में क्या हर्ज है?”

“तुम्हारा मुँह खराब होगा। उनका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा।”

“मगर वे जो गाली देते हैं?”

“वे ही क्यों, बहुत लोग गालियाँ बकते हैं।”

“नहीं प्रियोदा, आप इब्राहीम को नहीं समझा सकिएगा। वह महीन बात देरी से बूझता है। मैं समझा देता हूँ। देखो… इब्राहीम ! यदि ‘क्लब’ का मेम्बर रहना है तो इसके ‘रूल्स’ को मानना होगा। नियम है कि कोई सदस्य आपस में बातचीत के सिलसिले में भी कोई खराब शब्द नहीं बोलेगा। जानते हो न?… बस। बात खत्म।”

‘सहुआइन – धर्मशाला’ के पास आकर सभी ने एक-दूसरे से विदाई ली। कालू ने कहा, “मोना, तू रास्ते में डरेगा, मैं जानता हूँ। चल, मैं पहुँचा दूँ।”

प्रियोदा ने कहा, “मोना डरता है? मैं उसे पहुँचा दूँगा। तू घर जा कालू।”

रास्ते में प्रियोदा चुप रहे। एक सूनी जगह पर आकर रुक गए।… सड़क के दोनों ओर बड़े-बड़े पीपल के पेड़। दोनों ओर बहुत दूर तक खंडहर और मैदान पास के एक उजड़े हुए मकान की ओर इशारा कर प्रियोदा ने कहा,“जानते हो, इस घर में कभी मुर्दों की चीर-फाड़ होती थी- पोस्टमार्टम हाउस था यह इसीलिए, लोगों को डर है कि आसपास के पेड़ों पर भूत-पिशाच किलकिल करते रहते हैं, मैदान में प्रेतनियाँ नाचती हैं- संतालियों की तरह झुंड बाँधकर।… क्यों डरने लगा?”

अकेले यहाँ आ सकते हो?”

“जी नहीं।”

प्रियोदा हँसे। बोले, “देख मोना, भूत-प्रेत ऐसे आदमी को कभी नहीं तंग करता जो ‘दस’ काम करता हो। तुम्हारी उम्र में मैं भी डरता था। मेरे गुरु महाजन ने मुझसे हँसकर कहा कि ‘दस का काम करनेवाला तो खुद ‘भूत’ होता है उसको भूत क्या कर सकता है?… चलो, शुरू करो तो वह गाना – राम रहीम ना…

मनमोहन गाने लगा, “राम रहीम ना जुदा करो भाई, दिल को सच्चा रखना जी-ई-ई-ई !!”

परमान – एक नदी का नाम

बालूचर – रेतीला नदी पट

जुदा – अलग

आग्रह – अनुरोध फ़रमाइश, हठ

पखेरू – पंखवाले, पक्षी

दल – झुंड, टोली  

पंक्ति – कतार

तन्मय – तल्लीन, समाधिस्थ

नाचारी – एक लोकगीत

विकल – व्याकुल

हॉल्ट – रुको

हर्ज – नुकसान

रुल्स – नियम

अपशब्द – गाली, बुरा शब्द

संताल – एक आदिवासी जाति

खचड़ा – अड़गेबाज, मूर्ख

मुहावरे

मुठिया वसूलना – किसी नेक काम के लिए मुट्ठीभर अनाज की भीख माँगना

भला चंगा – स्वस्थ

सिर से पैर तक देखना – भली भाँति देखना

महीन बात – सूक्ष्म बात

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :-

(1) प्रियोदा को सभी लोग क्यों प्यार करते है?

उत्तर – प्रियोदा एक समाजसेवी है। प्रत्येक रविवार को वह ‘संन्यासी आश्रम’ के लिए मुठिया वसूलने निकलता है। स्कूल का कोई छात्र या शिक्षक बीमार हो जाए तो प्रियोदा अपने क्लब के सदस्यों के साथ उनकी सेवा करता है। वह नियमों का पालन करनेवाला अनुशासनप्रिय लड़का है। उसके क्लब के सदस्यों को अपशब्दों के प्रयोग पर भी सख्त मनाही थी। इन्हीं सभी गुणों के कारण सभी लोग उसे प्यार करते थे।  

(2) प्रियोदा के दल के तीन सदस्यों के नाम बताइए।

उत्तर – प्रियोदा के दल के तीन सदस्यों के नाम हैं – मनमोहन, सूर्यनारायण और इब्राहीम।

(3) प्रियोदा की टोली कौन-कौन से सेवा कार्य करती है?

उत्तर – प्रियोदा की टोली समाजसेवी लड़कों की टोली है। यह टोली हर रविवार को सुबह ‘संन्यासी आश्रम’ के लिए मुठिया अर्थात् नेक काम के लिए मुट्ठीभर अनाज सभी के घरों से वसूलती है। स्कूल का कोई छात्र या शिक्षक बीमार पड़ता है तो प्रियोदा की यह टोली उसके घर पहुँचकर उसकी सेवा-सुश्रुषा करने में जुट जाती है। हैजा जैसी घातक बीमारियों में भी यह टोली पीड़ितों की सेवा करती है।

(4) मनमोहन को तैरना सिखाने की जिम्मेदारी किसे सौंपी गई?

उत्तर – मनमोहन को तैरना सिखाने की जिम्मेदारी सूर्यनारायण को सौंपी गई।

(5) इब्राहीम ने किस बात के लिए माफ़ी माँगी?

उत्तर – इब्राहीम ने सबडिप्टी साहब के अर्दली के लिए ‘साला’ आउट ‘खचड़ा’ अपशब्दों का प्रयोग किया था और क्लब के सदस्यों को अपशब्दों के प्रयोग की मनाही थी। इसलिए उसने माफ़ी माँगी।

(6) अपशब्द न बोलने के बारे में क्लब का क्या नियम था?

उत्तर – अपशब्द न बोलने के बारे में क्लब का यह विचार और नियम था कि अपशब्द जिसके प्रति बोला गया है उसकी कोई क्षति नहीं होती बल्कि बोलने वाले के मान का ह्रास हो जाता है। क्लब के सदस्यों में से अगर कोई अपशब्द बोलता भी है तो हॉल्ट कहकर उसे रुकने का आदेश दिया जाता था। अगर कोई सदस्य दस बार अपशब्दों का प्रयोग कर लेता है तो क्लब से उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाती थी।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-

(1) प्रियोदा के दल के सदस्य शनिवार की शाम को कहाँ पर एकत्र होते हैं?

उत्तर – प्रियोदा के दल के सदस्य शनिवार की शाम को परमान नदी के उस पार बालूचर पर एकत्र होते हैं।

(2) स्कूल की छुट्टी के बाद सभी सदस्य मिलने पर क्या करते हैं?

उत्तर – स्कूल की छुट्टी के बाद सभी सदस्य मिलने पर रविवार के दिन का कार्यक्रम और गतिविधियाँ तय करते थे।

(3) मनमोहन ने प्रियोदा के पहले प्रश्न के उत्तर में किस भारतीय महापुरुष का नाम लिया?

उत्तर – मनमोहन ने प्रियोदा के पहले प्रश्न के उत्तर में भारतीय महापुरुष महात्मा गांधी जी का नाम लिया।

(4) पक्षी को किसने गोली मारी थी?

उत्तर – पक्षी को सबडिप्टी साहब ने गोली मारी थी।

(5) प्रियोदा के मुँह से ‘हॉल्ट’ क्यों निकला?

उत्तर – इब्राहिम ने जब सबडिप्टी साहब के अर्दली के लिए ‘साला’ और ‘खचड़ा’ अपशब्दों का प्रयोग किया तो उसे रोकने के लिए प्रियोदा के मुँह से ‘हॉल्ट’ निकला।

(6) सड़क के दोनों ओर कौन-से वृक्ष थे?

उत्तर – सड़क के दोनों ओर पीपल के बड़े-बड़े वृक्ष थे।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-

(1) कस्बे के अधिकांश लोग प्रियोदा और साथियों को क्यों पहचानते थे?

उत्तर – प्रियोदा और उसके क्लब के साथी हर रविवार की सुबह ‘संन्यासी आश्रम’ के लिए मुठिया एकत्रित किया करते थे। स्कूल के किसी छात्र या शिक्षक के बीमार पड़ने पर वे उसके अच्छे होने तक सेवा-सुश्रूषा किया करते थे। उनके इसी सेवाभाव के कारण कस्बे के अधिकांश लोग प्रियोदा और उसके साथियों को पहचानते थे।

(2) प्रियोदा की टोली शनिवार को स्कूल से छूटने के बाद क्या करती है?

उत्तर – प्रियोदा की टोली शनिवार को स्कूल से छूटने के बाद परमान नदी के उस पार बालूचर पर मिलते हैं। कुछ इधर-उधर और हँसी-विनोद की बातें करने के बाद रविवार के दिन उनके क्या-क्या कार्यक्रम होंगे इस पर विचार-विमर्श किया करते थे।

(3) मनमोहन को तैरना सिखाने के बारे में सूर्यनारायण ने क्या कहा?

उत्तर – मनमोहन को तैरना सिखाने की जिम्मेदारी सूर्यनारायण को सौंपी गई थी। इस बारे में उसने कहा कि एक दिन वह मनमोहन को उठाकर पानी में फेंक देगा तो वह खुद तैरने लगेगा।

(4) पुल के पास गाड़ीवान क्या कर रहा था?

उत्तर – पुल के पास एक गाड़ीवान तन्मय होकर एल लोकगीत गीत गा रहा था  -“भोला गरीबक दीन पहिया हरब भोला गरीब क दीन।”

(5) मनमोहन का भय दूर करने के लिए प्रियोदा ने क्या किया?

उत्तर – मनमोहन का भय दूर करने के लिए प्रियोदा उसे उस रास्ते से ले गए जहाँ खंडहर थे, जो बिल्कुल सुनसान और डरावना था। प्रियोदा ने मनमोहन को वह उजड़ा मकान भी दिखाया जहाँ पहले मुर्दों की चीर-फाड़ होती थी। यह सब डरावना था फिर भी प्रियोदा ने मनमोहन से कहा देश के हित काम करने वालों से भूत-पिशाच भी डरते हैं।

(6) भूत-प्रेत के बारे में प्रियोदा ने मनमोहन से क्या कहा?

उत्तर – भूत-प्रेत के बारे में प्रियोदा ने मनमोहन से कहा कि देश के भले के लिए दस तरह का काम करनेवाला तो खुद भूत होता है। जो खुद भूत है, उसे दूसरे भूत से क्या डर?

(7) प्रियोदा की टोली का रविवार को क्या कार्यक्रम होता था?

उत्तर – रविवार को प्रियोदा की टोली शनिवार की शाम को निर्धारित किए गए कार्यक्रम के अनुसार ‘संन्यासी आश्रम’ के लिए मुहल्ले में मुठिया वसूलने जाती थी तथा लोग बीमार व्यक्ति की सेवा भी किया करती थी।

 

4. सविस्तार समझाइए :-

(1) सूरज पश्चिम की ओर झुक गया।

उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि प्रियोदा और उसके साथी परमान नदी के उस पार बालूचर पर बहुत देर तक बातें करते रहे और शाम होने लगी। यह दृश्य ऐसा लग रहा था मानो सूर्य पश्चिम दिशा में डूबने की तैयारी करने लगा हो।

 (2) दस और देश का काम करनेवाला तो खुद भूत होता है- उसको भूत क्या कर सकता है?

उत्तर – इस कथन का भावार्थ यह है कि प्रियोदा मनमोहन को समझा रहे थे कि देश के लिए दस तरह का काम करनेवाले को वक्त-बेवक्त यहाँ-वहाँ जाना पड़ता है। उसे देशसेवा में तो दिन-रात तक का ख्याल नहीं रहता। इसलिए देशभक्त खुद भूत के समान होता है। अतः, उसे भूत-पिशाच से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।

(3) राम रहीम ना जुदा करो भाई, दिल को सच्चा रखना जी…

उत्तर – मनमोहन द्वारा गाया गया “गीत राम रहीम ना जुदा करो भाई, दिल को सच्चा रखना जी” का मूल भाव यह है कि राम और रहीम को मानने वाले वास्तव में एक ही ईश्वर की संतानें हैं। दोनों धर्मों को अलग-अलग मानना मूर्खता है। हमें बस ज़रूरत है तो केवल अपना मन सच्चा रखने की।

(4) भोला गरीबक दीन पहिया हरब भोला…

उत्तर – प्रियोदा जब अपने टोली के साथ बालूचर से वापस आ रहे थे तो पुल के पास एक गाड़ीवान तन्मय होकर भोजपुरी का एक लोकगीत गीत गा रहा था  -“भोला गरीबक दीन पहिया हरब भोला गरीबक दीन।” जिसका अर्थ हुआ कि महादेव शिव भोले हैं और वे दीनों और गरीबों पर दया करने वाले हैं।

5. सही जोड़े मिलाइए :-

मनमोहन       पहलवान

प्रियव्रतराय      खचड़ा

सूर्यनारायण     एक नदी

डिप्टी का अर्दली मैट्रिक का विद्यार्थी

परमान         हैजे से डरनेवाला

उत्तर –

मनमोहन       हैजे से डरनेवाला

प्रियव्रतराय      मैट्रिक का विद्यार्थी

सूर्यनारायण     पहलवान

डिप्टी का अर्दली खचड़ा

परमान         एक नदी

6. शब्द समूहो के लिए एक-एक शब्द लिखिए :-

(1) दूसरों के किए हुए उपकार को माननेवाला…

उत्तर – कृतज्ञ

(2) दूसरों के किए गए उपकार को न माननेवाला…

उत्तर – कृतघ्न

(3) मुर्दों के चीर-फाड़ की जगह ……

उत्तर – शव परीक्षणालय

(4) जहाँ बीमारों को भर्ती करके इलाज होता है…

उत्तर – चिकित्सालय

7. सूचनानुसार उत्तर दीजिए :-

(क) विरुद्धार्थी शब्द लिखिए:

गरीब – अमीर

प्यार – नफरत

स्वस्थ – अस्वस्थ

गलत – सही

उजड़ा – आबाद

(ख) दो-दो समानार्थी शब्द लिखिए :-

सुबह – प्रभात, उषा

शाम – संध्या, साँझ

दल – टोली, समूह

कमजोर – कृशकाय, निर्बल

मकान – घर, निकेतन

यदि उपलब्ध हो सके तो ‘कितने चौराहे’ उपन्यास पढ़िए।

उत्तर – कितने चौराहे उपन्यास को फ़णीश्वरनाथ रेणु ने लिखा था। यह उपन्यास साल 1966 में प्रकाशित हुआ था। यह एक आंचलिक उपन्यास है। इसमें आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद के ग्रामीण भारत की स्थिति को दिखाया गया है

इस उपन्यास की खास बातें:

  • यह उपन्यास आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले युवकों के इर्द-गिर्द घूमता है। 
  • इसमें देशप्रेम, सेवा, त्याग जैसे आदर्शों को बढ़ावा दिया गया है। 
  • इस उपन्यास में बच्चों की शिक्षा का एक नमूना भी दिखाया गया है। 
  • इस उपन्यास में मुख्य पात्र मनमोहन के जीवन में कई चौराहे आते हैं और वह सही रास्ते पर चलता है। 
  • इस उपन्यास में रेणु ने समाज में प्रेम और भाईचारे की अहमियत पर ज़ोर दिया है। 
  • इस उपन्यास में रेणु ने अपने निजी जीवन की कई घटनाओं को शामिल किया है। 

निर्भयता के गुणवाली कहानियाँ ढूँढ़कर विद्यार्थियों को पढ़कर वर्ग में सुनाइए।

उत्तर – निर्भयता पर आधारित कुछ प्रेरणादायक कहानियाँ हैं, जो हमें साहस और आत्मविश्वास के महत्त्व को समझाती हैं। यहाँ कुछ ऐसी कहानियाँ प्रस्तुत की गई हैं –

  1. हेलेन केलर की कहानी

हेलेन केलर जन्म से ही मूक और बधिर थीं, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी स्थिति को अपनी कमजोरी नहीं माना। अपने शिक्षक एना सुलिवन की मदद से, उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और विश्वभर में एक उदाहरण प्रस्तुत किया। वे एक प्रसिद्ध लेखक और समाजसेवी बन गईं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि शारीरिक विकलांगता के बावजूद भी हम अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं, यदि हमारे भीतर निर्भयता और संघर्ष की भावना हो।

  1. भगत सिंह की शहादत

भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे। उन्होंने अपने आदर्शों और स्वतंत्रता के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना संघर्ष किया। वे अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ खड़े हुए और अपनी निर्भयता के कारण वे एक प्रेरणा बन गए। उनकी शहादत ने न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाने में योगदान दिया, बल्कि हमें यह भी सिखाया कि अपने सिद्धांतों और विश्वासों के लिए बिना डर के खड़ा रहना चाहिए।

  1. मलाला यूसुफजई की कहानी

पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई एक लड़की है जिसने लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए आवाज उठाई। 2012 में, तालिबान ने उसे सिर में गोली मारी, लेकिन मलाला ने हार नहीं मानी। उसने न केवल अपनी जान की कीमत पर लड़कियों के शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष किया, बल्कि पूरी दुनिया में शिक्षा के महत्त्व को उजागर किया। उसकी निर्भयता ने लाखों लोगों को प्रेरित किया।

  1. नरगिस की युद्ध वाली कहानी

नरगिस एक अफगान महिला हैं, जो अफगानिस्तान में युद्ध के बीच अपने परिवार के साथ बचने के लिए संघर्ष कर रही थीं। उन्होंने अपने बच्चों को बचाने के लिए माइनफील्ड्स को पार किया, और कई महीने तक शरणार्थी शिविरों में रही। उनके भीतर की निर्भयता और साहस ने उन्हें विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रहने की ताकत दी।

  1. सचिन तेंदुलकर की कड़ी मेहनत

सचिन तेंदुलकर, जिन्हें “क्रिकेट का भगवान” कहा जाता है, अपनी कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास के कारण दुनिया के सबसे महान क्रिकेट खिलाड़ियों में से एक बने। उन्होंने बचपन में ही तय किया था कि वे क्रिकेट में सफलता हासिल करेंगे। उनके जीवन में कई बार मुश्किलें आईं, लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए पूरी मेहनत की।

इन कहानियों से यह समझ में आता है कि निर्भयता सिर्फ एक भावना नहीं, बल्कि हमारे अंदर की शक्ति और दृढ़ता है, जो हमें किसी भी संकट का सामना करने की ताकत देती है।

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