CBSE, NCERT, Class – IX, Sparsh, Chapter -4, Dheeranjan Maalwe – Vaigyanik Chetana Ke Vahak, C.V. Raman धीरंजन मालवे – वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चंद्रशेखर वेंकट रामन् (HINDI Course B)

(1952)
धीरंजन मालवे का जन्म बिहार के नालंदा ज़िले के डुँवरावाँ गाँव में 9 मार्च 1952 को हुआ। ये एम-एससी- (सांख्यिकी), एम-बी-ए- और एल-एल-बी- हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन से जुड़े मालवे अभी भी वैज्ञानिक जानकारी को लोगों तक पहुँचाने के काम में जुटे हुए हैं। आकाशवाणी और बी-बी-सी- (लंदन) में कार्य करने के दौरान मालवे रेडियो विज्ञान पत्रिका ‘ज्ञान-विज्ञान’ का संपादन और प्रसारण करते रहे।
मालवे की भाषा सीधी, सरल और वैज्ञानिक शब्दावली लिए हुए है। यथावश्यक अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी वे करते हैं। मालवे ने कई भारतीय वैज्ञानिकों की संक्षिप्त जीवनियाँ लिखी हैं, जो इनकी पुस्तक ‘विश्व-विख्यात भारतीय वैज्ञानिक’ पुस्तक में समाहित हैं।

प्रस्तुत पाठ ‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक रामन्’ में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रथम भारतीय वैज्ञानिक के संघर्षमय जीवन का चित्रण किया गया है। वेंकट रामन् कुल ग्यारह साल की उम्र में मैट्रिक, विशेष योग्यता के साथ इंटरमीडिएट, भौतिकी और अंग्रेज़ी में स्वर्ण पदक के साथ बी-ए- और प्रथम श्रेणी में एम-ए- करके मात्र अठारह साल की उम्र में कोलकाता में भारत सरकार के फाइनेंस डिपार्टमेंट में सहायक जनरल एकाउंटेंट नियुक्त कर लिए गए थे। इनकी प्रतिभा से इनके अध्यापक तक अभिभूत थे।
सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार पाने के बाद सी-वी- रामन् ने अपने एक मित्र को उस पुरस्कार-समारोह के बारे में लिखा था : जैसे ही मैं पुरस्कार लेकर मुड़ा और देखा कि जिस स्थान पर मैं बैठाया गया था, उसके ऊपर ब्रिटिश राज्य का ‘यूनियन जैक’ लहरा रहा है, तो मुझे अफ़सोस हुआ कि मेरे दीन देश भारत की अपनी पताका तक नहीं है। इस अहसास से मेरा गला भर आया और मैं फूट-फूट कर रो पड़ा।
चंद्रशेखर वेंकट रामन् भारत में विज्ञान की उन्नति के चिर आकांक्षी थे तथा भारत की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। वे महात्मा गांधी को अपना अभिन्न मित्र मानते थे। नोबेल पुरस्कार समारोह के बाद एक भोज के दौरान उन्होंने कहा था : मुझे एक बधाई का तार अपने सर्वाधिक प्रिय मित्र (महात्मा गांधी) से मिला है, जो इस समय जेल में हैं। एक मेधावी छात्र से महान वैज्ञानिक तक की रामन् की संघर्षमय जीवन यात्रा और उनकी उपलब्धियों की जानकारी यह पाठ बखूबी कराता है।

पेड़ से सेब गिरते हुए तो लोग सदियों से देखते आ रहे थे, मगर गिरने के पीछे छिपे रहस्य को न्यूटन से पहले कोई और समझ नहीं पाया था। ठीक उसी प्रकार विराट समुद्र की नील-वर्णीय आभा को भी असंख्य लोग आदिकाल से देखते आ रहे थे, मगर इस आभा पर पड़े रहस्य के परदे को हटाने के लिए हमारे समक्ष उपस्थित हुए सर चंद्रशेखर वेंकट रामन्।
बात सन् 1921 की है, जब रामन् समुद्री यात्रा पर थे। जहाज के डेक पर खड़े होकर नीले समुद्र को निहारना, प्रकृति-प्रेमी रामन् को अच्छा लगता था। वे समुद्र की नीली आभा में घंटों खोए रहते। लेकिन रामन् केवल भावुक प्रकृति-प्रेमी ही नहीं थे। उनके अंदर एक वैज्ञानिक की जिज्ञासा भी उतनी ही सशक्त थी। यही जिज्ञासा उनसे सवाल कर बैठी-‘आखिर समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है? कुछ और क्यों नहीं?’ रामन् सवाल का जवाब ढूँढ़ने में लग गए। जवाब ढूँढ़ते ही वे विश्वविख्यात बन गए।
रामन् का जन्म 7 नवंबर सन् 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। इनके पिता विशाखापत्तनम् में गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। पिता इन्हें बचपन से गणित और भौतिकी पढ़ाते थे। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जिन दो विषयों के ज्ञान ने उन्हें जगत-प्रसिद्ध बनाया, उनकी सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी। कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने पहले ए-बी-एन- कॉलेज तिरुचिरापल्ली से और फिर प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की। बी-ए- और एम.ए. दोनों ही परीक्षाओं में उन्होंने काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए।
रामन् का मस्तिष्क विज्ञान के रहस्यों को सुलझाने के लिए बचपन से ही बेचैन रहता था। अपने कॉलेज के ज़माने से ही उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था। उनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था। उनकी दिली इच्छा तो यही थी कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को ही समर्पित कर दें, मगर उन दिनों शोधकार्य को पूरे समय के कैरियर के रूप में अपनाने की कोई खास व्यवस्था नहीं थी। प्रतिभावान छात्र सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित होते थे। रामन् भी अपने समय के अन्य सुयोग्य छात्रों की भाँति भारत सरकार के वित्त-विभाग में अफ़सर बन गए। उनकी तैनाती कलकत्ता में हुई। कलकत्ता में सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने अपने स्वाभाविक रुझान को बनाए रखा। दफ़्तर से फुर्सत पाते ही वे लौटते हुए बहू बाज़ार आते, जहाँ ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस’ की प्रयोगशाला थी। यह अपने आपमें एक अनूठी संस्था थी, जिसे कलकत्ता के एक डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार ने वर्षों की कठिन मेहनत और लगन के बाद खड़ा किया था। इस संस्था का उद्देश्य था देश में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना।
अपने महान् उद्देश्यों के बावजूद इस संस्था के पास साधनों का नितांत अभाव था। रामन् इस संस्था की प्रयोगशाला में कामचलाऊ उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए शोधकार्य करते। यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था, जिसमें एक साधक दफ्तर में कड़ी मेहनत के बाद बहू बाज़ार की इस मामूली-सी प्रयोगशाला में पहुँचता और अपनी इच्छाशक्ति के ज़ोर से भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने के प्रयास करता। उन्हीं दिनों वे वाद्ययंत्रों की ओर आकृष्ट हुए। वे वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्यों की परतें खोलने का प्रयास कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने अनेक वाद्ययंत्रों का अध्ययन किया जिनमें देशी और विदेशी, दोनों प्रकार के वाद्ययंत्र थे।
वाद्ययंत्रों पर किए जा रहे शोधकार्यों के दौरान उनके अध्ययन के दायरे में जहाँ वायलिन, चैलो या पियानो जैसे विदेशी वाद्य आए, वहीं वीणा, तानपूरा और मृदंगम् पर भी उन्होंने काम किया। उन्होंने वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर पश्चिमी देशों की इस भ्रांति को तोड़ने की कोशिश की कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में घटिया हैं। वाद्ययंत्रों के कंपन के पीछे छिपे गणित पर उन्होंने अच्छा-खासा काम किया और अनेक शोधपत्र भी प्रकाशित किए।
उस ज़माने के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी को इस प्रतिभावान युवक के बारे में जानकारी मिली। उन्हीं दिनों कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का नया पद सृजित हुआ था। मुखर्जी महोदय ने रामन् के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे सरकारी नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार कर लें। रामन् के लिए यह एक कठिन निर्णय था। उस ज़माने के हिसाब से वे एक अत्यंत प्रतिष्ठित सरकारी पद पर थे, जिसके साथ मोटी तनख्वाह और अनेक सुविधाएँ जुड़ी हुई थीं। उन्हें नौकरी करते हुए दस वर्ष बीत चुके थे। ऐसी हालत में सरकारी नौकरी छोड़कर कम वेतन और कम सुविधाओंवाली विश्वविद्यालय की नौकरी में आने का फैसला करना हिम्मत का काम था।
रामन् सरकारी नौकरी की सुख-सुविधाओं को छोड़ सन् 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की नौकरी में आ गए। उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के शैक्षणिक माहौल में वे अपना पूरा समय अध्ययन, अध्यापन और शोध में बिताने लगे। चार साल बाद यानी सन् 1921 में समुद्र-यात्रा के दौरान जब रामन् के मस्तिष्क में समुद्र के नीले रंग की वजह का सवाल हिलोरें लेने लगा, तो उन्होंने आगे इस दिशा में प्रयोग किए, जिसकी परिणति रामन् प्रभाव की खोज के रूप में हुई।
रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। वजह यह होती है कि एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुज़रते हुए इनके अणुओं से टकराते हैं तो इस टकराव के परिणामस्वरूप वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियाँ प्रकाश के वर्ण (रंग) में बदलाव लाती हैं। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में सबसे अधिक ऊर्जा बैंजनी रंग के प्रकाश में होती है। बैंजनी के बाद क्रमशः नीले, आसमानी, हरे, पीले, नारंगी और लाल वर्ण का नंबर आता है। इस प्रकार लाल-वर्णीय प्रकाश की ऊर्जा सबसे कम होती है। एकवर्णीय प्रकाश तरल या ठोस रवों से गुज़रते हुए जिस परिमाण में ऊर्जा खोता या पाता है, उसी हिसाब से उसका वर्ण परिवर्तित हो जाता है।
रामन् की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी। इसका पहला परिणाम तो यह हुआ कि प्रकाश की प्रकृति के बारे में आइंस्टाइन के विचारों का प्रायोगिक प्रमाण मिल गया। आइंस्टाइन के पूर्ववर्ती वैज्ञानिक प्रकाश को तरंग के रूप में मानते थे, मगर आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। इन अति सूक्ष्म कणों की तुलना आइंस्टाइन ने बुलेट से की और इन्हें ‘फोटॉन’ नाम दिया। रामन् के प्रयोगों ने आइंस्टाइन की धारणा का प्रत्यक्ष प्रमाण दे दिया, क्योंकि एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन यह साफ़तौर पर प्रमाणित करता है कि प्रकाश की किरण तीव्रगामी सूक्ष्म कणों के प्रवाह के रूप में व्यवहार करती है।
रामन् की खोज की वजह से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। पहले इस काम के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था। यह मुश्किल तकनीक है और गलतियों की संभावना बहुत अधिक रहती है। रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर, पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है। इस जानकारी की वजह से पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थां का कृत्रिम रूप से निर्माण संभव हो गया है।
रामन् प्रभाव की खोज ने रामन् को विश्व के चोटी के वैज्ञानिकों की पंक्ति में ला खड़ा किया। पुरस्कारों और सम्मानों की तो जैसे झड़ी-सी लगी रही। उन्हें सन् 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। सन् 1929 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई। ठीक अगले ही साल उन्हें विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार-भौतिकी में नोबेल पुरस्कार-से सम्मानित किया गया। उन्हें और भी कई पुरस्कार मिले, जैसे रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फ़िलोडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक, सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार आदि। सन् 1954 में रामन् को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वे नोबेल पुरस्कार पानेवाले पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। उनके बाद यह पुरस्कार भारतीय नागरिकता वाले किसी अन्य वैज्ञानिक को अभी तक नहीं मिल पाया है। उन्हें अधिकांश सम्मान उस दौर में मिले जब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था। उन्हें मिलनेवाले सम्मानों ने भारत को एक नया आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास दिया।
विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने एक नयी भारतीय चेतना को जाग्रत किया। भारतीय संस्कृति से रामन् को हमेशा ही गहरा लगाव रहा। उन्होंने अपनी भारतीय पहचान को हमेशा अक्षुण्ण रखा। अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद भी उन्होंने अपने दक्षिण भारतीय पहनावे को नहीं छोड़ा। वे कट्टर शाकाहारी थे और मदिरा से सख्त परहेज़ रखते थे। जब वे नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने स्टॉकहोम गए तो वहाँ उन्होंने अल्कोहल पर रामन् प्रभाव का प्रदर्शन किया। बाद में आयोजित पार्टी में जब उन्होंने शराब पीने से इनकार किया तो एक आयोजक ने परिहास में उनसे कहा कि रामन् ने जब अल्कोहल पर रामन् प्रभाव का प्रदर्शन कर हमें आह्लादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, तो रामन् पर अल्कोहल के प्रभाव का प्रदर्शन करने से परहेज़ क्यों?
रामन् का वैज्ञानिक व्यक्तित्व प्रयोगों और शोधपत्र-लेखन तक ही सिमटा हुआ नहीं था। उनके अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी और वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्हें अपने शुरुआती दिन हमेशा ही याद रहे जब उन्हें ढंग की प्रयोगशाला और उपकरणों के अभाव में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। इसीलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान की स्थापना की जो बंगलोर में स्थित है और उन्हीं के नाम पर ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नाम से जानी जाती है। भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने इंडियन जरनल ऑफ़ फ़िज़िक्स नामक शोध-पत्रिका प्रारंभ की। अपने जीवनकाल में उन्होंने सैकड़ों शोध-छात्रों का मार्गदर्शन किया। जिस प्रकार एक दीपक से अन्य कई दीपक जल उठते हैं, उसी प्रकार उनके शोध-छात्रों ने आगे चलकर काफ़ी अच्छा काम किया। उन्हीं में कई छात्र बाद में उच्च पदों पर प्रतिष्ठित हुए। विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए वे करेंट साइंस नामक एक पत्रिका का भी संपादन करते थे। रामन् प्रभाव केवल प्रकाश की किरणों तक ही सिमटा नहीं था; उन्होंने अपने व्यक्तित्व के प्रकाश की किरणों से पूरे देश को आलोकित और प्रभावित किया। उनकी मृत्यु 21 नवंबर सन् 1970 के दिन 82 वर्ष की आयु में हुई।
रामन् वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने हमें हमेशा ही यह संदेश दिया कि हम अपने आसपास घट रही विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक दृष्टि से करें। तभी तो उन्होंने संगीत के सुर-ताल और प्रकाश की किरणों की आभा के अंदर से वैज्ञानिक सिद्धांत खोज निकाले। हमारे आसपास ऐसी न जाने कितनी ही चीज़ें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं। ज़रूरत है रामन् के जीवन से प्रेरणा लेने की और प्रकृति के बीच छुपे वैज्ञानिक रहस्य का भेदन करने की।

सन् 1921 में एक समुद्री यात्रा के दौरान समुद्र की नीलवर्णीय आभा उनकी जिज्ञासा का कारण बनी। इन्होंने इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और विश्वविख्यात बन गए। स्कूल तथा कॉलेज में उच्च अंक तथा स्वर्णपदक पाने वाले रामन् को मात्र अठारह वर्ष में भारत सरकार के वित्त विभाग में नियुक्ति मिली। सन् 1930 में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय वैज्ञानिक रामन् के मन में अपने देश के प्रति अथाह श्रद्धा थी। भारत की स्वतंत्रता के पक्षधर तथा भारत में विज्ञान की उन्नति के अभिलाषी वेंकट रामन् के जीवन संघर्ष तथा एक प्रतिभावान छात्र से एक महान वैज्ञानिक तक की गाथा को लेखक ने प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है। 7 नवंबर सन् 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में जन्मे श्री रामन् बचपन से ही वैज्ञानिक रहस्यों को सुलझाने के लिए प्रयत्नरत रहते थे।
अपने कॉलेज के दिनों से ही इन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना प्रारंभ कर दिया था। उनका प्रथम शोधपत्र ‘फिलॉसॉफिकल मैगजीन’ में प्रकाशित हुआ था। बहू बाजार स्थित ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ की प्रयोगशाला में उपकरणों के अभावों के बावजूद वे भौतिक विज्ञान को समृद्ध बनाने की साधना करते रहे। इन्हीं दिनों रामन् वाद्य यंत्रों की ओर भी आकृष्ट हुए और विभिन्न देशी तथा विदेशी वाद्ययंत्रों पर शोध करके पश्चिमी देशों की इस भ्रांति को भंग किया कि भारतीय वाद्य यंत्र विदेशी वाद्य यंत्रों की अपेक्षा घटिया हैं। इन्होंने अनेक ठोस रवेदार तथा तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरणों का अध्ययन किया तथा ‘रामन् प्रभाव’ की खोज ने भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति उत्पन्न कर दी। रामन् की खोज के परिणामस्वरूप अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सरल हो गया। रामन् प्रभाव की खोज ने इन्हें विश्व के शीर्षस्थ वैज्ञानिकों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। इसके बाद पुरस्कारों और सम्मानों की मानो लड़ी–सी लग गई। रामन् वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। रामन् ने अपने बाल्यावस्था से लेकर अपने महान खोज तक तरह-तरह के संसाधनों के अभावों को झेला था इसीलिए उन्होंने बैंगलौर में ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नामक शोध संस्थान की स्थापना की तथा ‘इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स’ नामक शोध-पत्रिका प्रारंभ की। आज रामन् के संघर्षमयी जीवन से किशोर एवं युवा वैज्ञानिकों को प्रेरणा मिलती है और वे भी प्रकृति में छिपे रहस्यों को अनावृत करने की कोशिश में लगे हुए हैं।

1. सांख्यिकी – Statistics
2. आकाशवाणी – AIR
3. दूरदर्शन – राष्ट्रीय चैनल
4. वैज्ञानिक – Scientist
5. संपादन – Publish
6. प्रसारण – Transmission
7. संक्षिप्त – Short
8. समाहित – Include
9. मैट्रिक – दसवीं
10. इंटरमीडिएट – +2
11. भौतिकी – Physics
12. डिपार्टमेंट – विभाग
13. एकाउंटेंट – लेखाकार
14. प्रतिभा – गुण
15. अभिभूत – प्रसन्न होना
16. यूनियन जैक – इंग्लैंड का झंडा
17. पताका – ध्वज
18. अफ़सोस – पछतावा
19. बखूबी – अच्छे-से
20. उपलब्धियों – Achievements
21. पक्षधर – समर्थन करने वाला
22. नील वर्णीय – नीले रंग का
23. असंख्य – अनगिनत, जिसकी संख्या बताना संभव न हो
24. आभा – चमक
25. जिज्ञासा – जानने की इच्छा
26. विश्वविख्यात – संसार में प्रसिद्ध
27. भौतिकी – वह विज्ञान जिसमें तत्त्वों के गुण आदि का विवेचन किया गया हो, फ़िज़िक्स
28. अतिशयोक्ति – किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना
29. हासिल – प्राप्त
30. शोधकार्य – खोज, अनुसंधान कार्य
31. प्रतिभावान – जिसमें विलक्षण-बौद्धिक शक्ति हो
32. वित्त विभाग – किसी राज्य के आय-व्यय से संबंधित विभाग
33. रुझान – झुकाव, किसी ओर प्रवृत्त होना
34. उपकरण – साधन, औजार
35. समृद्ध – उन्नतशील
36. भ्रांति – संदेह, अयथार्थ ज्ञान
37. सृजित – रचा हुआ
38. समक्ष – सामने
39. अध्यापन – पढ़ाना
40. परिणति – परिणाम
41. ठोस रवे – बिल्लौर, मणिभ
42. फोटॉन – प्रकाश का अंश
43. एकवर्णीय – एक रंग का
44. ऊर्जा – शक्ति, बल
45. प्रायोगिक – प्रयोग संबंधित
46. तीव्रधारा – तेज़ धारा
47. इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी- अवरक्त स्पेक्ट्रम विज्ञान
48. आणविक – अणु का
49. परमाणविक – परमाणु का
50. संरचना – बनावट
51. संश्लेषण – मिलान करना (सिंथेसिस)
52. कृत्रिम – बनाया हुआ, बनावटी
53. अक्षुण्ण – अखंडित
54. कट्टर – दृढ़
55. परिहास – हँसी-मज़ाक
56. आह्लादित – आनंदित
57. आलोकित – प्रकाशित
58. प्रतिमूर्ति – अनुकृति, चित्र, प्रतिमा

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
1- रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा और क्या थे?
उत्तर – रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा और एक जिज्ञासु वैज्ञानिक भी थे।
2- समुद्र को देखकर रामन् के मन में कौन-सी दो जिज्ञासाएँ उठीं?
उत्तर – समुद्र को देखकर रामन् के मन में जिज्ञासाएँ उठीं कि आखिर समुद्र का रंग नीला ही क्यों होता है? कुछ और क्यों नहीं?
3- रामन् के पिता ने उनमें किन विषयों की सशक्त नींव डाली?
उत्तर – रामन् के पिता ने उनमें भौतिकी और गणित विषय की सशक्त नींव डाली।
4- वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन् क्या करना चाहते थे?
उत्तर – वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन् इनके पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्यों की परतें खोलना चाहते थे।
5- सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन् की क्या भावना थी?
उत्तर – सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन् की वैज्ञानिक अध्ययन और शोधकार्य करने की भावना थी।
6- ‘रामन् प्रभाव’ की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरें ले रहा था?
उत्तर – ‘रामन् प्रभाव’ की खोज के पीछे समुद्र के नीले रंग की वजह का सवाल हिलोरें ले रहा था।
7- प्रकाश तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने क्या बताया?
उत्तर – प्रकाश तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है जिसे उन्होंने ‘फोटॅान’ नाम दिया था।
8- रामन् की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया?
उत्तर – रामन् की खोज ने पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना के अध्ययन को सहज बनाया।

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1- कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा क्या थी?
उत्तर – अपने कॉलेज के ज़माने से ही उन्होंने शोधकार्यों में दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था। उनका पहला शोधपत्र फिलॉसॉफिकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था। इससे उन्हें असीम सुख प्राप्त हुआ और कॉलेज के दिनों से ही रामन् की दिली इच्छा तो यही हो गई कि वे अपना सारा जीवन शोधकार्यों को ही समर्पित कर दें।
2- वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन् ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की?
उत्तर – वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन् ने वर्षों से फैली भ्रांति; भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्ययंत्रों की तुलना में घटिया है, को तोड़ने की कोशिश की।
3- रामन् के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था?
उत्तर – रामन् के लिए नौकरी संबंधी यह निर्णय कठिन था, जब आशुतोष मुखर्जी ने रामन् के समक्ष कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर के पद को ग्रहण करने का प्रस्ताव रखा। प्रोफ़ेसर की नौकरी की तुलना में उनकी वर्तमान की सरकारी नौकरी ज़्यादा वेतन तथा सुविधाओं से भरी थी।
4- सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया?
उत्तर – सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। सन् 1930 में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार-भौतिकी में नोबेल पुरस्कार-से सम्मानित किया गया, इसके अतिरिक्त उन्हें
– सन् 1924 में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया।
– सन् 1929 में उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई।
– रोम का मेत्यूसी पदक प्रदान किया गया।
– रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक प्रदान किया गया।
– फ़िलोडेल्फ़िया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक प्रदान किया गया।
– सोवियत रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
– सन् 1954 में रामन् को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
5- रामन् को मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतीय-चेतना को जाग्रत किया। ऐसा क्यों कहा गया है?
उत्तर – रामन् को मिलनेवाले पुरस्कारों ने भारतवर्ष को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक नई पहचान, सम्मान और आत्मविश्वास दिया। उनके अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी। वे वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के प्रति समर्पित थे। उन्हें भारतीय संस्कृति से गहरा लगाव था। अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद भी उन्होंने सैकड़ों छात्रों का मार्गदर्शन किया और देश के छात्रों को एक सफल वैज्ञानिक बनने की प्रेरणा दी।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1- रामन् के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है?
उत्तर – रामन् के प्रारंभिक शोधकार्य को आधुनिक हठयोग कहा गया है क्योंकि उनकी परिस्थितियाँ बिलकुल विपरीत थीं। वे अत्यधिक महत्त्वपूर्ण तथा व्यस्त नौकरी पर थे। उन्हें हर प्रकार की सुख-सुविधा प्राप्त हो गई थी पर यह उनका विज्ञान के प्रति प्रेम ही था जिसके कारण कलकत्ता में एक छोटी-सी प्रयोगशाला जहाँ उपकरणों की काफी कमी थी फिर भी वे पूरे मनोयोग से अपने शोधकार्य किया करते थे।
2- रामन् की खोज ‘रामन् प्रभाव’ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुज़रने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। वजह यह होती है कि एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुज़रते हुए इनके अणुओं से टकराते हैं तो इस टकराव के परिणामस्वरूप वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियाँ प्रकाश के वर्ण (रंग) में बदलाव लाती हैं। यही खोज ‘रामन् प्रभाव’ के नाम से जाना गया।
3- ‘रामन् प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके?
उत्तर – रामन् की खोज की वजह से पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन सहज हो गया। पहले इस काम के लिए इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था। यह मुश्किल तकनीक है और गलतियों की संभावना बहुत अधिक रहती है। रामन् की खोज के बाद पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के अध्ययन के लिए रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाने लगा। यह तकनीक एकवर्णीय प्रकाश के वर्ण में परिवर्तन के आधार पर, पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की संरचना की सटीक जानकारी देती है। इस जानकारी की वजह से पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण संभव हो गया है।
4- देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – रामन् के अंदर एक राष्ट्रीय चेतना थी और वे देश में वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन के विकास के प्रति समर्पित थे। उन्हें अपने शुरुआती दिन हमेशा ही याद रहे जब उन्हें ढंग की प्रयोगशाला और उपकरणों के अभाव में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। इसीलिए उन्होंने एक अत्यंत उन्नत प्रयोगशाला और शोध-संस्थान की स्थापना की जो बंगलोर में स्थित है और उन्हीं के नाम पर ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ नाम से जानी जाती है। भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने ‘इंडियन जरनल ऑफ़ फ़िज़िक्स’ नामक शोध-पत्रिका प्रारंभ की। अपने जीवनकाल में उन्होंने सैकड़ों शोध-छात्रों का मार्गदर्शन किया।
5- सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के जीवन से प्राप्त होनेवाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। धन के स्थान पर उन्होंने विद्या को हमेशा महत्त्व दिया। अपने शोध के प्रति उनका दृढ़ विश्वास विपरीत परिस्थितियों में थोड़ा-सा भी नहीं डगमगाया। वे अपने देश की सभ्यता और संस्कृति से बहुत प्रेम करते थे और इन्होंने इसके साथ कभी किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया। नई पीढ़ी के वैज्ञानिक चेतना का पोषण करने के लिए ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की स्थापना तथा ‘इंडियन जरनल ऑफ़ फ़िज़िक्स’ नामक शोध-पत्रिका प्रारंभ की। उनका जीवन और आचरण अनुकरणीय है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1- उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।
उत्तर – रामन् सरस्वती के सच्चे साधक थे। वे जिज्ञासु प्रकृति के वैज्ञानिक तथा अन्वेषक थे। सरस्वती की साधना के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी की सुख-सुविधा छोड़ दी और कम वेतन तथा कम सुविधा वाली प्रोफ़ेसर की नौकरी स्वीकार कर ली। उन्होंने आजीवन शिक्षा पाने और देने में बिता दिया।
2- हमारे पास ऐसी न जाने कितनी चीज़ें बिखरी पड़ी हैं जो अपने पात्र की तलाश में हैं।
उत्तर – मस्तिष्क में सवालों का उठना ही व्यक्ति के विकास का प्रथम सोपान है। रामन् के मन में समुद्र के नीले रंग को लेकर सवाल उठा। ऐसे ही हम अनेक ऐसी चीज़ों से घिरे हुए हैं जिन पर अभी तक कोई भी शोध कार्य नहीं हुआ है। अगर हमारी दृष्टि किसी ऐसे ही वस्तु पर पड़े तो हम भी विश्वविख्यात बन सकते हैं।
3- यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।
उत्तर – हठ का अर्थ है-ज़िद। योग का अर्थ है – किसी भी कार्य को पूरे मन से करने की प्रबल इच्छा। रामन् का अपने शोध कार्य के प्रति उत्कट आतुरता ही आधुनिक हठयोग का प्रमाण है। रामन् ने विपरीत परिस्थितियों में भी निरंतर काम कर कर अपने सपने को सच कर दिखाया। यह वास्तव में आधुनिक हठयोग का उदाहरण है।
(घ) उपयुक्त शब्द का चयन करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी, इंडियन असोसिएसन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस , फिलॅासॅाफ़िकल मैगज़ीन, भौतिकी, रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट
1- रामन् का पहला शोध पत्र फिलॅासॅाफ़िकल मैगज़ीन में प्रकाशित हुआ था।
2- रामन् की खोज भौतिकी के क्षेत्र में एक क्रांति के समान थी।
3- कलकत्ता की मामूली-सी प्रयोगशाला का नाम इंडियन असोसिएसन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस था।
4- रामन् द्वारा स्थापित शोध संस्थान रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट नाम से जानी जाती है।
5- पहले पदार्थों के अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना का अध्ययन करने के लिए इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया जाता था।

1- नीचे कुछ समानदर्शी शब्द दिए जा रहे हैं जिनका अपने वाक्य में इस प्रकार प्रयोग करें कि उनके अर्थ का अंतर स्पष्ट हो सके।
(क) प्रमाण – प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता है?
(ख) प्रणाम – हमें अपने बड़ों को प्रणाम करना चाहिए।
(ग) धारणा – मेरी धारणा है कि यह दुनिया खराब ही होती जाएगी।
(घ) धारण – श्रीकृष्ण सदैव पीले वस्त्र धारण करते हैं।
(ङ) पूर्ववर्ती – भारत के पूर्ववर्ती इलाकों में पर्वतों की संख्या अधिक है।
(च) परवर्ती – सम्राट अशोक के परवर्ती शासक मोर्य साम्राज्य के पतन का कारण बने।
(छ) परिवर्तन – परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है।
(ज) प्रवर्तन – सत्ताधारी राजनैतिक दल नई-नई योजनाओं का प्रवर्तन करते हैं।

2. रेखांकित शब्द के विलोम शब्द का प्रयोग करते हुए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
(क) मोहन के पिता मन से सशक्त होते हुए भी तन से अशक्त हैं।
(ख) अस्पताल के अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी रुप से नौकरी दे दी गई है।
(ग) रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया।
(घ) आज बाज़ार में देशी और विदेशी दोनों प्रकार के खिलौने उपलब्ध हैं।
(ङ) सागर की लहरों का आकर्षण उसके विनाशकारी रुप को देखने के बाद विकर्षण में परिवर्तित हो जाता है।

3. नीचे दिए उदाहरण में रेखांकित अंश में शब्द-युग्म का प्रयोग हुआ है-
उदाहरण : चाऊतान को गाने-बजाने में आनंद आता है।
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्द-युग्मों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सुख-सुविधा – माँ अपने बच्चे की सुख-सुविधा का ध्यान रखती हैं।
अच्छा-खासा – शादी में अच्छा-खासा खर्च हो जाता है।
प्रचार-प्रसार – विज्ञापन प्रचार-प्रसार का एक सशक्त माध्यम है।
आस-पास – हमें आस-पास की घटनाओं की जानकारी होनी चाहिए।

4. प्रस्तुत पाठ में आए अनुस्वार और अनुनासिक शब्दों को निम्न तालिका में लिखिए-
अनुस्वार अनुनासिक
अंदर ढूँढ़ते
रंग जहाँ
प्रेसीडेंसी जाएँ
संस्था पहुँचना
वेंकट रामन् सुविधाएँ

5. पाठ में निम्नलिखित विशिष्ट भाषा प्रयोग आए हैं। सामान्य शब्दों में इनका आशय स्पष्ट कीजिए-
घंटों खोए रहते, स्वाभाविक रुझान बनाए रखना, अच्छा-खासा काम किया, हिम्मत का काम था, सटीक जानकारी, काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए, कड़ी मेहनत के बाद खड़ा किया था, मोटी तनख्वाह
घंटों खोए रहते – बहुत देर तक ध्यान में लीन रहते।
स्वाभाविक रुझान बनाए रखना – सहज रूप से रूचि बनाए रखना।
अच्छा-खासा काम किया – उचित और ढेर सारा काम करना।
हिम्मत का काम था – कठिन काम था।
सटीक जानकारी – एकदम सही और प्रमाणिक जानकारी।
काफ़ी ऊँचे अंक हासिल किए – बहुत अच्छे अंक पाए।
कड़ी मेहनत के बाद खड़ा किया था – बहुत मेहनत के बाद किसी संस्था की स्थापना करना।
मोटी तनख्वाह – बहुत अधिक वेतन।

6. पाठ के आधार पर मिलान कीजिए-
नीला समुद्र
पिता नींव
तैनाती कलकत्ता
उपकरण कामचलाऊ
घटिया भारतीय वाद्ययंत्र
फोटॉन रव
भेदन वैज्ञानिक रहस्य

7. पाठ में आए रंगों की सूची बनाइए। इनके अतिरिक्त दस रंगों के नाम और लिखिए।
पाठ आए रंगों के नाम अन्य रंगों के नाम
बैंजनी काला
नीला सफेद
आसमानी गुलाबी
हरा कत्था
पीला नारंगी
नारंगी भूरा
लाल लाल
खाकी
पर्पल
स्लेटी

8. नीचे दिए गए उदाहरण के अनुसार ‘ही’ का प्रयोग करते हुए पाँच वाक्य बनाइए।
उदाहरण : उनके ज्ञान की सशक्त नींव उनके पिता ने ही तैयार की थी।
• तुमसे ही मिलना है।
• लोग केवल बाहरी शोभा को ही देखते हैं।
• जीवन का नाम ही संघर्ष है।
• चारों ही अपनी-अपनी जगह सुंदर हैं।
• हमारा अन्न कीचड़ में ही पैदा होता है।

मुहावरे
1. परदा हटाना = रहस्य उजागर करना
2. मस्तिष्क में हिलोरें लेना = विचार करना

वाक्यांशों के लिए एक शब्द
1. वैज्ञानिक = विशेष ज्ञान रखने वाला
2. अतिशयोक्ति = बढ़ा-चढ़ा कर कहना
3. विज्ञान = विशेष ज्ञान
4. शाकाहारी = शाक-पात खाने वाला
5. अनुसंधान = किसी चीज़ की खोज करना
6. जिज्ञासा = जानने की इच्छा
7. प्रमाणित = प्रमाण द्वारा सिद्ध हुआ हो

विलोम शब्द
1. विराट # सूक्ष्म
2. आदि # अनादि
3. उपस्थित # अनुपस्थित
4. इच्छा # अनिच्छा
5. स्वाभाविक # अस्वाभाविक
6. तरल # ठोस
7. प्रकाश # अंधकार
8. प्रत्यक्ष # अप्रत्यक्ष
9. आंतरिक # बाह्य
10. आधार # निराधार
11. संश्लेषण # विश्लेषण
12. कृत्रिम # नैसर्गिक
13. गुलाम # मालिक
14. गहरा # उथला
15. शाकाहारी # मांसाहारी
16. इंकार # स्वीकार
17. राष्ट्रीय # अंतर्राष्ट्रीय

अनेकार्थी शब्द
1. दिशा = संकेत, पूर्व-पश्चिम
2. रूप = शक्ल, सुंदरता
3. वर्ण = रंग, स्वर-व्यंजन
4. काल = मृत्यु, समय

उपसर्ग एवं प्रत्यय
उपसर्ग
1. सम्- संरचना, संश्लेषण, सम्पादन, संदेश
2. वि – विज्ञान, विदेशी, विभिन्न
3. निर् – निर्माण
4. अ- असंख्य, अनूठी, अभाव
5. आ – आधार, आयोजक
6. प्र – प्रकाशित, प्रयोग, प्रयास, प्रसिद्ध, प्रमाण, प्रभाव, प्रकृति, प्रदर्शन
7. बे – बेचैन
8. अनु – अनुसंधान
9. परि – परिहास, परिवर्तन
10. स – सशक्त
11. उप – उपस्थित, उपकरण, उपयोगी
प्रत्यय
12. यों – सदियों
13. इत – प्रकाशित, आकर्षित, समर्पित, सम्मानित, आयोजित, आह्लादित
14. ता – सदस्यता, नागरिकता
15. ई – प्रेमी, भौतिकी, सरकारी, देशी, विदेशी, जानकारी, आसमानी
16. उक – भावुक
17. इक – वैज्ञानिक, स्वाभाविक, प्रायोगिक
18. वान – प्रतिभावान
19. शाला – प्रयोगशाला
20. आऊ – चलाऊ
21. इया – घटिया
22. इका – पत्रिका
23. आव – बदलाव, लगाव
24. वाले – नागरिकतावाले
25. वर्ती – पूर्ववर्ती
26. गामी – तीव्रगामी
27. त्व – व्यक्तित्व
28. आती – शुरूआती
29. पूर्ण – महत्त्वपूर्ण

पर्यायवाची
1. पेड़ – पादप, वृक्ष, द्रुम
2. समुद्र – सागर, सिंधु, अर्णव, रत्नाकर

पाठ ‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चंद्रशेखर वेंकट रामन्’ के कुछ स्मरणीय बिंदु –
1. पाठ ‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक : चंद्रशेखर वेंकट रामन्’ के लेखक धीरंजन मालवेहैं।
2. रामन् का जन्म 7 नवंबर सन् 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नगर में हुआ था। बी-ए- की पढ़ाई उन्होंने पहले ए-बी-एन- कॉलेज तिरुचिरापल्ली से और फिर एम-ए प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास से की।
3. बात सन् 1921 की है, जब रामन् समुद्री यात्रा पर थे और उनके मस्तिष्क में एक सवाल आया कि समुद्र का रंग नीला क्यों होता है?
4. रामन् भारत सरकार के वित्त-विभाग, कलकत्ता, में अफ़सर बन गए। । वहाँ डॉक्टर महेंद्रलाल सरकार की ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस’ की प्रयोगशाला थी।
5. रामन् ने सबसे पहले देशी और विदेशी, दोनों प्रकार के वाद्ययंत्रों का अध्ययन कर शोधपत्र प्रकाशित किया।
6. प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर आशुतोष मुखर्जी ने रामन् के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे सरकारी नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर का पद स्वीकार कर लें।
7. रामन् ने इंडियन जरनल ऑफ़ फ़िज़िक्स, करेंट साइंस शोध-पत्रिका प्रारंभ की
8. रामन् के नाम पर ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ बैंगलुरु में स्थित है।
9. उनकी मृत्यु 21 नवंबर सन्1970 के दिन 82 वर्ष की आयु में हुई।
10. देश की उन्नति सांस्कृतिक सद्भावनाओं को बढ़ावा देने के साथ-साथ विज्ञान के प्रचार-प्रसार से भी होती है। यही इस पाठ का मूल उद्देश्य है।

1- ‘विज्ञान का मानव विकास में योगदान’ विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इस प्रश्न का उत्तर करें।
2- भारत के किन-किन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार मिला है? पता लगाइए और लिखिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इस प्रश्न का उत्तर करें।
3- न्यूटन के आविष्कार के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर इस प्रश्न का उत्तर करें।

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