1887-1976)
संन्यासी स्वामी आनंद का जन्म गुजरात के कठियावाड़ ज़िले के किमड़ी गाँव में सन् 1887 में हुआ। इनका मूल नाम हिम्मतलाल था। जब ये दस साल के थे तभी कुछ साधु इन्हें अपने साथ हिमालय की ओर ले गए और इनका नामकरण किया – स्वामी आनंद। 1907 में स्वामी आनंद स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। महाराष्ट्र से कुछ समय तक ‘तरुण हिंद’ अखबार निकाला, फिर बाल गंगाधर तिलक के ‘केसरी’ अखबार से जुड़ गए। 1917 में गांधीजी के संसर्ग में आने के बाद उन्हीं के निदेशन में ‘नवजीवन’ और ‘यंग इंडिया’ की प्रसार व्यवस्था सँभाल ली। इसी बहाने इन्हें, गांधीजी और उनके निजी सहयोगी महादेव भाई देसाई और बाद में प्यारेलाल जी को निकट से जानने का अवसर मिला।
मूलतः गुजराती भाषा में लिखे गए प्रस्तुत पाठ ‘शुक्रतारे के समान’ में लेखक ने गांधीजी के निजी सचिव महादेव भाई देसाई की बेजोड़ प्रतिभा और व्यस्ततम दिनचर्या को उकेरा है। लेखक अपने इस रेखाचित्र के नायक के व्यक्तित्व और उसकी ऊर्जा, उनकी लगन और प्रतिभा से अभिभूत है। महादेव भाई की सरलता, सज्जनता, निष्ठा, समर्पण, लगन और निरभिमान को लेखक ने पूरी ईमानदारी से शब्दों में पिरोया है। इनकी लेखनी महादेव के व्यक्तित्व का ऐसा चित्र खींचने में सफल रही है कि पाठक को महादेव भाई पर अभिमान हो आता है।
लेखक के अनुसार कोई भी महान व्यक्ति, महानतम कार्य तभी कर पाता है, जब उसके साथ ऐसे सहयोगी हों जो उसकी तमाम इतर चिंताओं और उलझनों को अपने सिर ले लें। गांधीजी के लिए महादेव भाई और भाई प्यारेलाल जी ऐसी ही शख्सियत थे।
आकाश के तारों में शुक्र की कोई जोड़ नहीं। शुक्र चंद्र का साथी माना गया है। उसकी आभा-प्रभा का वर्णन करने में संसार के कवि थके नहीं। फिर भी नक्षत्र मंडल में कलगी-रूप इस तेजस्वी तारे को दुनिया या तो ऐन शाम के समय, बड़े सवेरे घंटे-दो घंटे से अधिक देख नहीं पाती। इसी तरह भाई महादेव जी आधुनिक भारत की स्वतंत्रता के उषाकाल में अपनी वैसी ही आभा से हमारे आकाश को जगमगाकर, देश और दुनिया को मुग्ध करके, शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए। सेवाधर्म का पालन करने के लिए इस धरती पर जनमे स्वर्गीय महादेव देसाई गांधीजी के मंत्री थे। मित्रों के बीच विनोद में अपने को गांधीजी का ‘हम्माल’ कहने में और कभी-कभी अपना परिचय उनके ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देने में वे गौरव का अनुभव किया करते थे।
गांधीजी के लिए वे पुत्र से भी अधिक थे। जब सन् 1917 में वे गांधीजी के पास पहुँचे थे, तभी गांधीजी ने उनको तत्काल पहचान लिया और उनको अपने उत्तराधिकारी का पद सौंप दिया। सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जाते हुए गांधीजी को पलवल स्टेशन पर गिरफ़्तार किया गया था। गांधीजी ने उसी समय महादेव भाई को अपना वारिस कहा था। सन् 1929 में महादेव भाई आसेतुहिमाचल, देश के चारों कोनों में, समूचे देश के दुलारे बन चुके थे।
इसी बीच पंजाब में फ़ौजी शासन के कारण जो कहर बरसाया गया था, उसका ब्योरा रोज़-रोज़ आने लगा। पंजाब के अधिकतर नेताओं को गिरफ़्तार करके फ़ौजी कानून के तहत जन्म-कैद की सज़ाएँ देकर कालापानी भेज दिया गया। लाहौर के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक पत्र ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सज़ा मिली।
गांधीजी के सामने ज़ुल्मों और अत्याचारों की कहानियाँ पेश करने के लिए आने वाले पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ते रहते थे। महादेव उनकी बातों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करके उनको गांधीजी के सामने पेश करते थे और आनेवालों के साथ उनकी रूबरू मुलाकातें भी करवाते थे। गांधीजी बंबई’ के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक ‘बाम्बे क्रानिकल’ में इन सब विषयों पर लेख लिखा करते थे। क्रानिकल में जगह की तंगी बनी रहती थी।
कुछ ही दिनों में ‘क्रानिकल’ के निडर अंग्रेज़ संपादक हार्नीमैन को सरकार ने देश-निकाले की सज़ा देकर इंग्लैंड भेज दिया। उन दिनों बंबई के तीन नए नेता थे। शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास। इनमें अंतिम श्रीमती बेसेंट के अनुयायी थे। ये नेता ‘यंग इंडिया’ नाम का एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक भी निकालते थे। लेकिन उसमें ‘क्रानिकल’ वाले हार्नीमैन ही मुख्य रूप से लिखते थे। उनको देश निकाला मिलने के बाद इन लोगों को हर हफ़्ते साप्ताहिक के लिए लिखनेवालों की कमी रहने लगी। ये तीनों नेता गांधीजी के परम प्रशंसक थे और उनके सत्याग्रह-आंदोलन में बंबई के बेजोड़ नेता भी थे। इन्होंने गांधीजी से विनती की कि वे ‘यंग इंडिया’ के संपादक बन जाएँ। गांधीजी को तो इसकी सख्त ज़रूरत थी ही। उन्होंने विनती तुरंत स्वीकार कर ली।
गांधीजी का काम इतना बढ़ गया कि साप्ताहिक पत्र भी कम पड़ने लगा। गांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ को हफ़्ते में दो बार प्रकाशित करने का निश्चय किया। हर रोज़ का पत्र-व्यवहार और मुलाकातें, आम सभाएँ आदि कामों के अलावा ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में छापने के लेख, टिप्पणियाँ, पंजाब के मामलों का सारसंक्षेप और गांधीजी के लेख यह सारी सामग्री हम तीन दिन में तैयार करते। ‘यंग इंडिया’ के पीछे-पीछे ‘नवजीवन’ भी गांधीजी के पास आया और दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकलने लगे। छह महीनों के लिए मैं भी साबरमती आश्रम ’ वर्तमान में इसे ‘मुंबई’ कहते हैं में रहने पहुँचा। शुरू में ग्राहकों के हिसाब-किताब की और साप्ताहिकों को डाक में डलवाने की व्यवस्था मेरे जिम्मे रही। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद संपादन सहित दोनों साप्ताहिकों की और छापाखाने की सारी व्यवस्था मेरे जिम्मे आ गई। गांधीजी और महादेव का सारा समय देश भ्रमण में बीतने लगा। ये जहाँ भी होते, वहाँ से कामों और कार्यक्रमों की भारी भीड़ के बीच भी समय निकालकर लेख लिखते और भेजते।
सब प्रांतों के उग्र और उदार देशभक्त, क्रांतिकारी और देश-विदेश के धुरंधर लोग, संवाददाता आदि गांधीजी को पत्र लिखते और गांधीजी ‘यंग इंडिया’ के कॉलमों में उनकी चर्चा किया करते। महादेव गांधीजी की यात्राओं के और प्रतिदिन की उनकी गतिविधियों के साप्ताहिक विवरण भेजा करते। इसके अलावा महादेव, देश-विदेश के अग्रगण्य समाचार-पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गांधीजी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका-टिप्पणी करते रहते थे, उनको आड़े हाथों लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। बेजोड़ कॉलम, भरपूर चौकसाई, ऊँचे-से-ऊँचे ब्रिटिश समाचार-पत्रों की परंपराओं को अपनाकर चलने का गांधीजी का आग्रह और कट्टर से कट्टर विरोधियों के साथ भी पूरी-पूरी सत्यनिष्ठा में से उत्पन्न होनेवाली विनय-विवेक-युक्त विवाद करने की गांधीजी की तालीम इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश-विदेश के सारे समाचार-पत्रों की दुनिया में और एंग्लो-इंडियन समाचार-पत्रों के बीच भी व्यक्तिगत रूप से एम -डी – को सबका लाड़ला बना दिया था।
गांधीजी के पास आने के पहले अपनी विद्यार्थी अवस्था में महादेव ने सरकार के अनुवाद-विभाग में नौकरी की थी। नरहरि भाई उनके जिगरी दोस्त थे। दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता है। साहित्य और संस्कार के साथ इसका कोई संबंध नहीं रहता। लेकिन इन दोनों ने तो उसी समय से टैगोर, शरदचंद्र आदि के साहित्य को उलटना-पुलटना शुरू कर दिया था। ‘चित्रांगदा’ कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित ‘विदाई का अभिशाप’ शीर्षक नाटिका, ‘शरद बाबू की कहानियाँ’ आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन हैं।
भारत में उनके अक्षरों का कोई सानी नहीं था। वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे। भले ही उन दिनों ब्रिटिश सल्तनत पर कहीं सूरज न डूबता हो, लेकिन उस सल्तनत के ‘छोटे’ बादशाह को भी गांधीजी के सेक्रेटरी के समान खुशनवीश (सुंदर अक्षर लिखने वाला लेखक) कहाँ मिलता था? बड़े-बड़े सिविलियन और गवर्नर कहा करते थे कि सारी ब्रिटिश सर्विसों में महादेव के समान अक्षर लिखने वाला कहीं खोजने पर भी मिलता नहीं था। पढ़ने वाले को मंत्रमुग्ध करने वाला शुद्ध और सुंदर लेखन।
महादेव के हाथों के लिखे गए लेख, टिप्पणियाँ, पत्र, गांधीजी के व्याख्यान, प्रार्थना-प्रवचन, मुलाकातें, वार्तालापों पर लिखी गई टिप्पणियाँ, सब कुछ फुलस्केप के चौथाई आकारवाली मोटी अभ्यास पुस्तकों में, लंबी लिखावट के साथ, जेट की सी गति से लिखा जाता था। वे ‘शॉर्टहैंड’ जानते नहीं थे।
बड़े-बड़े देशी-विदेशी राजपुरुष, राजनीतिज्ञ, देश-विदेश के अग्रगण्य समाचार-पत्रों के प्रतिनिधि, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के संचालक, पादरी, ग्रंथकार आदि गांधीजी से मिलने के लिए आते थे। ये लोग खुद या इनके साथी-संगी भी गांधीजी के साथ बातचीत को ‘शॉर्टहैंड’ में लिखा करते थे। महादेव एक कोने में बैठे-बैठे अपनी लंबी लिखावट में सारी चर्चा को लिखते रहते थे। मुलाकात के लिए आए हुए लोग अपनी मुकाम पर जाकर सारी बातचीत को टाइप करके जब उसे गांधीजी के पास ‘ओके’ करवाने के लिए पहुँचते, तो भले ही उनमें कुछ भूलें या कमियाँ-खामियाँ मिल जाएँ, लेकिन महादेव की डायरी में या नोट-बही में मजाल है कि कॉमा मात्र की भी भूल मिल जाए।
गांधीजी कहते: महादेव के लिखे ‘नोट’ के साथ थोड़ा मिलान कर लेना था न। और लोग दाँतों अँगुली दबाकर रह जाते।
लुई फिशर और गुंथर के समान धुरंधर लेखक अपनी टिप्पणियों का मिलान महादेव की टिप्पणियों के साथ करके उन्हें सुधारे बिना गांधीजी के पास ले जाने में हिचकिचाते थे।
साहित्यिक पुस्तकों की तरह ही महादेव वर्तमान राजनीतिक प्रवाहों और घटनाओं से संबंधित अद्यतन जानकारीवाली पुस्तकें भी पढ़ते रहते थे। हिंदुस्तान से संबंधित देश-विदेश की ताज़ी-से-ताज़ी राजनीतिक गतिविधियों और चर्चाओं की नयी-से-नयी जानकारी उनके पास मिल सकती थी। सभाओं में, कमेटियों की बैठकों में या दौड़ती रेलगाड़ियों के डिब्बों में ऊपर की बर्थ पर बैठकर, ठूँस-ठूँसकर भरे अपने बड़े-बड़े झोलों में रखे ताज़े-से-ताज़े समाचार-पत्र, मासिक-पत्र और पुस्तकें वे पढ़ते रहते, अथवा ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ के लिए लेख लिखते रहते। लगातार चलनेवाली यात्राओं, हर स्टेशन पर दर्शनों के लिए इकट्ठी हुई जनता के विशाल समुदायों, सभाओं, मुलाकातों, बैठकों चर्चाओं और बातचीतों के बीच वे स्वयं कब खाते, कब नहाते, कब सोते या कब अपनी हाज़तें रफ़ा करते, किसी को इसका कोई पता नहीं चल पाता। वे एक घंटे में चार घंटों के काम निपटा देते। काम में रात और दिन के बीच कोई फ़र्क शायद ही कभी रहता हो। वे सूत भी बहुत सुंदर कातते थे। अपनी इतनी सारी व्यस्तताओं के बीच भी वे कातना कभी चूकते नहीं थे।
बिहार और उत्तर प्रदेश के हज़ारों मील लंबे मैदान गंगा, यमुना और दूसरी नदियों के परम उपकारी, सोने की कीमत वाले ‘गाद’ के बने हैं। आप सौ-सौ कोस चल लीजिए रास्ते में सुपारी फोड़ने लायक एक पत्थर भी कहीं मिलेगा नहीं। इसी तरह महादेव के संपर्क में आने वाले किसी को भी ठेस या ठोकर की बात तो दूर रही, खुरदरी मिट्टी या कंकरी भी कभी चुभती नहीं थी। उनकी निर्मल प्रतिभा उनके में आने वाले व्यक्ति को चंद्र-शुक्र की प्रभा के साथ दूधों नहला देती थी। उसमें सराबोर होने वाले के मन से उनकी इस मोहिनी का नशा कई-कई दिन तक उतरता न था।
महादेव का समूचा जीवन और उनके सारे कामकाज गांधीजी के साथ एकरूप होकर इस तरह गुँथ गए थे कि गांधीजी से अलग करके अकेले उनकी कोई कल्पना की ही नहीं जा सकती थी। कामकाज की अनवरत व्यस्तताओं के बीच कोई कल्पना भी न कर सके, इस तरह समय निकालकर लिखी गई दिन-प्रतिदिन की उनकी डायरी की वे अनगिनत अभ्यास पुस्तकें, आज भी मौजूद हैं।
प्रथम श्रेणी की शिष्ट, संस्कार-संपन्न भाषा और मनोहारी लेखनशैली की ईश्वरीय देन महादेव को मिली थी। यद्यपि गांधीजी के पास पहुँचने के बाद घमासान लड़ाइयों, आंदोलनों और समाचार-पत्रों की चर्चाओं के भीड़-भरे प्रसंगों के बीच केवल साहित्यिक गतिविधियों के लिए उन्हें कभी समय नहीं मिला, फिर भी गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद उन्होंने किया, जो ‘नवजीवन’ में प्रकाशित होनेवाले मूल गुजराती की तरह हर हफ़्ते ‘यंग इंडिया’ में छपता रहा। बाद में पुस्तक के रूप में उसके अनगिनत संस्करण सारी दुनिया के देशों में प्रकाशित हुए और बिके।
सन् 1934-35 में गांधीजी वर्धा के महिला आश्रम में और मगनवाड़ी में रहने के बाद अचानक मगनवाड़ी से चलकर से गाँव की सरहद पर एक पेड़ के नीचे जा बैठे। उसके बाद वहाँ एक-दो झोंपड़े बने और फिर धीरे-धीरे मकान बनकर तैयार हुए, तब तक महादेव भाई दुर्गा बहन और चि – नारायण के साथ मगनवाड़ी में रहे। वहीं से वे वर्धा की असह्य गरमी में रोज़ सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुँचते थे। वहाँ दिनभर काम करके शाम को वापस पैदल आते थे। जाते-आते पूरे 11 मील चलते थे। रोज़-रोज़ का यह सिलसिला लंबे समय तक चला। कुल मिलाकर इसका जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, उनकी अकाल मृत्यु के कारणों में वह एक कारण माना जा सकता है।
इस मौत का घाव गांधीजी के दिल में उनके जीते जी बना ही रहा। वे भर्तृहरि के भजन की यह पंक्ति हमेशा दोहराते रहे: ‘ए रे जखम जोगे नहि जशे’ – यह घाव कभी योग से भरेगा नहीं। बाद के सालों में प्यारेलाल जी से कुछ कहना होता, और गांधीजी उनको बुलाते तो उस समय भी अनायास उनके मुँह से ‘महादेव’ ही निकलता।
अनुवादक : श्री काशिनाथ त्रिवेदी
स्वामी जी ने कहा है कि जिस प्रकार शुक्रतारा अपनी आभा से जगत को आलोकित करके कुछ समय पश्चात् अस्त हो जाता है, ठीक उसी प्रकार से महादेव भाई भी भारत की स्वाधीनता के ऊषाकाल में अपनी आभा से सभी को सम्मोहित कर अचानक ही अस्त हो गए। महादेव भाई सन् 1917 में गांधी जी के पास आए थे। सन् 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के संदर्भ में पंजाब जाते समय गांधी जी को पलवल स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया था।
उसी समय उन्होंने महादेव भाई को अपना वारिस कहा था। इन्हीं दिनों पंजाब से फौज़ी शासन तथा उनके अत्याचारों की खबरें आ रही थीं। पंजाब के अधिकतर नेताओं को गिरफ्तार कर उम्रकैद की सज़ा देकर उन्हें ‘कालापानी’ भेज दिया गया। महादेव भाई इन्हीं सभी खबरों को टिप्पणियों के रूप में गांधी जी के समक्ष प्रस्तुत करते थे। गांधी जी मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेजी दैनिक ‘बाम्बे क्रानिकल’ में लेख लिखा करते थे। कुछ दिनों के पश्चात् ‘क्रानिकल’ के निडर अंग्रेज़ संपादक हार्नीमैन को देश निकाला की सजा देकर इंग्लैंड भेज दिया गया। उन दिनों बंबई के तीन बड़े नेता शंकर लाल बैंकर, उम्मर सोबानी तथा जमनादास द्वारकादास ‘यंग इंडिया’ नामक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका निकालते थे। इन नेताओं के अनुरोध पर गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ का संपादन कार्य करना स्वीकार कर लिया। बाद में काम बहुत बढ़ गया था और साप्ताहिक पत्र भी कम पड़ने लगा। गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ को सप्ताह में दो बार प्रकाशित करने का निश्चय किया। बाद में ‘नवजीवन’ नामक समाचार-पत्र भी गांधी जी के पास आ गया। सन् 1917 में लेखक स्वामी आनंद गांधी जी के संपर्क में आए और ‘नवजीवन’ तथा ‘यंग इंडिया’ की प्रसार व्यवस्था सँभाल ली। कुछ दिनों पश्चात् संपादन, दोनों साप्ताहिकों तथा प्रेस की पूरी जिम्मेदारी लेखक के कंधों पर आ गई तथा गांधी जी और महादेव भाई का सारा समय देश के भ्रमण में व्यतीत होने लगा। परंतु महादेव भाई इतनी व्यवस्तताओं के बाद भी समय निकालकर लेख लिखते और भेजते रहते थे। इन दोनों पत्रों के लेख एवं टिप्पणियाँ लिखने का कार्य महादेव भाई ही सँभालते थे। इन पत्रों में वे गांधी जी के क्रियाकलापों का विवरण देना नहीं भूलते थे। गांधी जी के संपर्क में आने से पूर्व महादेव भाई ने सरकार के अनुवाद-विभाग में नौकरी की थी। इसके पश्चात् उन्होंने वकालत भी की। इसी दौरान उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर तथा शरतचंद्र के साहित्य का अनुवाद भी किया। महादेव भाई की लेखन शैली जितनी प्रभावशाली थी उतना ही सुंदर उनकी लिखावट भी थी। उन्हें शार्टहैंड नहीं आती थी परंतु गांधी जी की समस्त मुलाकातों का पूरा विवरण उनकी डायरी में दर्ज होता था। वाइसराय के नाम जाने वाले गांधी जी के पत्र सदैव महादेव भाई की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों की मोतियों जैसी लिखावट को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे हुए वाइसराय भी आहें भरते थे। महादेव भाई जेट की-सी द्रुत गति के साथ सुंदर अक्षरों में लिखा करते थे।
महादेव भाई का सरल व्यक्तित्व और उनका कोमल स्वभाव उनकी सबसे बड़ी पहचान थी। यही कारण था कि कोई भी उनसे एक बार मिलने के पश्चात् उन्हें भूल नहीं पाता था। वे अपने काम के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित थे। अपने कार्य की व्यस्तताओं के बीच रात और दिन का अंतर भी भूल जाते थे तथा अपने कार्य को अवश्य पूरा करते थे। यही नहीं, इन सबके बीच वे सूत कातना भी नहीं भूलते थे। कार्य की व्यस्तता, प्रतिकूल मौसम के दुष्प्रभाव और असहनीय गर्मी में रोज 11 मील पैदल चलना तथा दिन-रात कार्य में व्यस्त रहना ही उनकी असामयिक मृत्यु का कारण बना। महादेव भाई की मृत्यु का दुख गांधी जी के हृदय को आजीवन बना रहा। बाद के दिनों में प्यारेलाल जी जो उनके निजी सचिव बने उन्हें बुलाते समय भी गांधी जी के मुख से ‘महादेव’ ही निकलता था।
1. मूल – जड़
2. निर्देशन – Direction
3. सचिव – Secretary
4. प्रतिभा – गुण
5. अभिभूत – प्रसन्न
6. ऊर्जा – Energy
7. लगन – पूरे दिल से
8. रेखाचित्र – साहित्य की एक विधा
9. उकेरा – प्रस्तुत करना
10. दिनचर्या – Daily routine
11. समर्पण – Dedication
12. निरभिमान – जिसमें अभिमान न हो
13. ईमानदारी – Honesty
14. अभिमान – गर्व
15. शख्सियत – Personality
16. तमाम – कुल
17. आभा-प्रभा – चमक, तेज़
18. नक्षत्र-मंडल – तारा समूह
19. हम्माल – बोझ उठानेवाला, कुली
20. पीर – महात्मा, सिद्ध
21. बावर्ची – खाना पकानेवाला, रसोइया
22. भिश्ती – मशक से पानी ढोनेवाला व्यक्ति
23. खर – गधा, घास
24. आसेतुहिमाचल – सेतुबंध रामेश्वर से हिमाचल तक विस्तीर्ण
25. दुलारे – प्यारे
26. ब्योरा – विवरण
27. कालापानी – आजीवन कैद की सज़ा पाए कैदियों को रखने का स्थान, वर्तमान अंडमान निकोबार द्वीप समूह
28. रूबरू – आमने-सामने
29. धुरंधर – प्रवीण, उत्तम गुणों से युक्त
30. टीका-टिप्पणी – व्याख्या, आलोचना
31. चौकसाई – चौकस रहना, नज़र रखना
32. कट्टर – दृढ़, जिसे अपने मत या विश्वास का अधिक आग्रह हो
33. लाड़ला – प्यारा, दुलारा
34. जिगरी दोस्त – घनिष्ठ मित्र
35. पेशा – व्यवसाय
36. स्याह – काला
37. सल्तनत – राज्य, हुकूमत
38. व्याख्यान – भाषण, वक्तृता, किसी विषय की व्याख्या या टीका करना
39. फुलस्केप – कागज़ का एक आकार
40. चौथाई – चौथा भाग
41. अग्रगण्य – प्रमुख, सबसे पहले गिना जानेवाला
42. विवरण – वर्णन, व्याख्या
43. अद्यतन – अब तक का, वर्तमान से संबंध रखनेवाला
44. गाद – तलछट, गाढ़ी चीज़
45. सराबोर – तरबतर, डूबा हुआ
46. अनवरत – लगातार
47. सानी – बराबरी करनेवाला, उसी जोड़ का दूसरा
48. अनगिनत – जिसे गिना न जा सके
49. सिलसिला – क्रम
50. अनायास – बिना किसी प्रयास के, आसानी से
51.‘पीर-बावर्ची भिश्ती-खर’ – सभी प्रकार के कार्यों को सफलतापूर्वक कर सकने में समर्थ व्यक्ति
52. श्रीमती बेसेंट (एनीबेसेंट) – स्वाधीनता आंदोलन की नेता। इन्होंने होमरूल लीग और थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
1 – महादेव भाई अपना परिचय किस रूप में देते थे?
उत्तर – महादेव भाई मित्रों के बीच अपने को गांधीजी का ‘हम्माल’ और कभी-कभी अपना परिचय ‘पीर-बावर्ची -भिश्ती-खर’ के रूप में देते थे।
2 – ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लेखों की कमी क्यों रहने लगी थी?
उत्तर – ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लेखों की कमी रहने लगी थी क्योंकि ‘यंग इंडिया’ साप्ताहिक में लिखने वाले मुख्य लेखक ‘हार्नीमैन’ गांधीजी का अनुयायी बन गया था जिसके कारण उसे देश निकाले की सज़ा देकर इंग्लैंड भेज दिया गया था।
3 – गांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ प्रकाशित करने के विषय में क्या निश्चय किया?
उत्तर – गांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ प्रकाशित करने के विषय में यह निश्चय किया कि वे इस साप्ताहिक पत्र को हफ़्ते में दो बार प्रकाशित करेंगे क्योंकि गांधीजी का काम इतना बढ़ गया कि साप्ताहिक पत्र भी कम पड़ने लगा था।
4 – गांधीजी से मिलने से पहले महादेव भाई कहाँ नौकरी करते थे?
उत्तर – गांधीजी से मिलने से पहले महादेव भाई सरकार के अनुवाद विभाग में नौकरी करते थे।
5 – महादेव भाई के झोलों में क्या भरा रहता था?
उत्तर – महादेव भाई के झोलों में मासिक पत्र, समाचार पत्र और पुस्तकें भरी रहती थीं।
6 – महादेव भाई ने गांधीजी की कौन-सी प्रसिद्ध पुस्तक का अनुवाद किया था?
उत्तर – महादेव भाई ने गांधीजी की आत्मकथा ‘’सत्य के प्रयोग’ प्रसिद्ध पुस्तक का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया था।
7 – अहमदाबाद से कौन-से दो साप्ताहिक निकलते थे?
उत्तर – अहमदाबाद से ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ दो साप्ताहिक पत्र निकलते थे।
8 – महादेव भाई दिन में कितनी देर काम करते थे?
उत्तर – महादेव भाई दिन में 17-18 घंटे काम किया करते थे।
9 – महादेव भाई से गांधीजी की निकटता किस वाक्य से सिद्ध होती है?
उत्तर – महादेव भाई से गांधीजी की निकटता भर्तृहरि के भजन की यह पंक्ति: ’ए रे जखम जोगे नहि जशे’ से सिद्ध होती है जिसे महादेव भाई की मृत्यु के बाद गांधीजी हमेशा दोहराते रहे।
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
1 – गांधीजी ने महादेव को अपना वारिस कब कहा था?
उत्तर – सन् 1919 में जलियाँवाला बाग के हत्याकांड के दिनों में पंजाब जाते हुए गांधीजी को पलवल स्टेशन पर गिरफ़्तार किया गया था। गांधीजी ने उसी समय महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
2 – गांधीजी से मिलने आनेवालों के लिए महादेव भाई क्या करते थे?
उत्तर – गांधीजी से मिलने आनेवालों के लिए महादेव भाई उनकी बातों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ तैयार करके उनको गांधीजी के सामने पेश करते थे और आनेवालों के साथ उनकी रूबरू मुलाकातें भी करवाते थे।
3 – महादेव भाई की साहित्यिक देन क्या है?
उत्तर – महादेव भाई ने संयुक्त रूप से टैगोर, शरदचंद्र की रचनाएँ ‘चित्रांगदा’ ‘विदाई का अभिशाप’ आदि अनुवाद किया तथा महादेव भाई ने गांधीजी की आत्मकथा ‘’सत्य के प्रयोग’ प्रसिद्ध पुस्तक का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया था जो उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन हैं।
4 – महादेव भाई की अकाल मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर – महादेव भाई वर्धा की असह्य गरमी में रोज़ सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुँचते थे। वहाँ दिनभर काम करके शाम को वापस पैदल आते थे। जाते-आते पूरे 11 मील चलते थे। रोज़-रोज़ का यह सिलसिला लंबे समय तक चला। कुल मिलाकर इसका जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, उनकी अकाल मृत्यु के कारणों में वह एक कारण माना जा सकता है।
5 – महादेव भाई के लिखे नोट के विषय में गांधीजी क्या कहते थे?
उत्तर – महादेव भाई की लेखन प्रतिभा अद्वितीय थी, उनके समान सुंदर लिखने वाला खोजने पर भी नहीं मिलता था। अन्य की लेखनी में भूलें या कमियाँ-खामियाँ मिल जाएँ, लेकिन महादेव की डायरी में या नोट-बही में मजाल है कि कॉमा मात्र की भी भूल मिल जाए। गांधीजी अन्य लेखकों से कहते: महादेव के लिखे ‘नोट’ के साथ थोड़ा मिलान कर लेना था न और लोग दाँतों अँगुली दबाकर रह जाते।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
1 – पंजाब में फ़ौजी शासन ने क्या कहर बरसाया?
उत्तर – पंजाब में फ़ौजी शासन ने यह कहर बरसाया कि पंजाब के अधिकतर नेताओं को गिरफ़्तार करके फ़ौजी कानून के तहत उम्र-कैद की सज़ाएँ देकर कालापानी भेज दिया गया। लाहौर के मुख्य राष्ट्रीय अंग्रेज़ी दैनिक पत्र ‘ट्रिब्यून’ के संपादक श्री कालीनाथ राय को 10 साल की जेल की सज़ा मिली और वहाँ के बाशिंदों पर तरह-तरह के अत्याचार किए गए।
2 – महादेव जी के किन गुणों ने उन्हें सबका लाड़ला बना दिया था?
उत्तर – गांधीजी के सहयोगी थे। महादेवजी देश-विदेश के अग्रगण्य समाचार-पत्र, जो आँखों में तेल डालकर गांधीजी की प्रतिदिन की गतिविधियों को देखा करते थे और उन पर बराबर टीका-टिप्पणी करते रहते थे, उनको आड़े हाथों लेने वाले लेख भी समय-समय पर लिखा करते थे। महादेवजी ब्रिटिश समाचार-पत्रों की परंपराओं को अपनाते हुए अपने विरोधियों को शिष्टता के साथ जवाब देते थे। इन सब गुणों ने तीव्र मतभेदों और विरोधी प्रचार के बीच भी देश-विदेश के सारे समाचार-पत्रों की दुनिया में और एंग्लो-इंडियन समाचार-पत्रों के बीच भी व्यक्तिगत रूप से एम -डी – को सबका लाड़ला बना दिया था।
3 – महादेव जी की लिखावट की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर – महादेवजी की लिखावट बहुत सुंदर थी। पूरे भारतवर्ष में उनका कोई सानी नहीं था। वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे। वे तेज़ गति से लिख सकते थे बिना किसी त्रुटि के।उनके लिखे लेख, टिप्पणियाँ, पत्र और गांधीजी के व्याख्यान सबके सब ज्यों के त्यों प्रकाशित होते थे जिन्हें पढ़कर लोग मंत्र-मुग्ध हो जाया करते थे।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1 – ‘अपना परिचय उनके ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देने में वे गौरवान्वित महसूस करते थे।’
उत्तर – प्रस्तुत कथन में लेखक गांधीजी के निजी सचिव की निष्ठा, समर्पण, और उनकी प्रतिभा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वे स्वयं को गांधीजी का निजी सचिव नहीं बल्कि एक ऐसा सहयोगी मानते हैं जो सदा उनके साथ रहे। इसलिए स्वयं को गांधीजी का पीर अर्थात सलाहकार, रसोइया, मशक से पानी ढोनेवाला के रूप में अपना परिचय देते थे।
2 – इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता था।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि महादेव और उनके जिगरी दोस्त नरहरि भाई दोनों एक साथ वकालत पढ़े थे। दोनों ने अहमदाबाद में वकालत भी साथ-साथ ही शुरू की थी। लेखक का मत यह कि इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह करना होता है। अर्थात दलीलों से सही को गलत और गलत को सही साबित करना पड़ता था।
3 – देश और दुनिया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए।
उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि नक्षत्र मंडल में तेजस्वी शुक्रतारे की दुनिया या तो शाम के समय या बड़े सवेरे केवल दो घंटे के लिए ही देख पाती है उसी प्रकार महादेव भाई भी गांधीजी के पास आधुनिक भारत के स्वतंत्रता काल में सन् 1917 में पहुँचे। उन्होंने थोड़े से समय में ही अपनी लेखन प्रतिभा, अपने परिश्रम तथा देश के प्रति प्रेम-भावना से सारे संसार को अपनी ओर मोड़ लिया और शुक्रतारे की तरह अल्प समय में सबको मंत्र-मुग्ध करके सन् 1935 में अस्त हो गए।
4 – उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेते रहते थे।
उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि महादेव भाई द्वारा लिखे गए लेख, टिप्पणियाँ तथा पत्र अद्भुत होते थे। भारत में उनके अक्षरों का कोई सानी नहीं था। उनका शब्द चयन अनूठा था। वे इतनी शुद्ध और सुंदर भाषा में लेखन कार्य करते थे कि पढ़ने वालों के मुँह से ‘वाह’ निकल जाता था। वाइसराय के नाम जाने वाले गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे। उन पत्रों को देख-देखकर दिल्ली और शिमला में बैठे वाइसराय लंबी साँस-उसाँस लेने लगते थे क्योंकि पूरे ब्रिटिश सर्विस में महादेव के समान अक्षर लिखने वाला कोई नहीं था।
1. ‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्दों का निर्माण कीजिए –
सप्ताह साप्ताहिक
साहित्य साहित्यिक
व्यक्ति वैयक्तिक
राजनीति राजनीतिक
अर्थ आर्थिक
धर्म धार्मिक
मास मासिक
2. नीचे दिए गए उपसर्गों का उपयुक्त प्रयोग करते हुए शब्द बनाइए –
अ, नि, अन, दुर, वि, कु, पर, सु, अधि
आर्य अनार्य
डर निडर
क्रय विक्रय
उपस्थित अनुपस्थित
नायक अधिनायक
आगत स्वागत
मार्ग कुमार्ग
लोक परलोक
भाग्य सौभाग्य
3. निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
1. आड़े हाथों लेना – परीक्षा में कम अंक आने पर पिता ने पुत्र को आड़े हाथों ले लिया।
2. दाँतों तले अँगुली दबाना – दो वर्ष के बालक को फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलते देख सबने दाँतों तले अँगुली दबा ली।
3. लोहे के चने चबाना – भारतीय सेना बड़े से बड़े शक्तिशाली देश को भी लोहे के चने चबवा सकता है।
4. अस्त हो जाना – कड़ी मेहनत के बाद भारतीय वैज्ञानिक ने कोरोना वैश्विक महामारी का सूर्य अस्त कर दिया।
5. मंत्र-मुग्ध करना – माधुरी ने अपने अद्वितीय नृत्य से सबको मंत्र-मुग्ध कर दिया।
4. निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखिए –
वारिस – वंश, उत्तराधिकारी
मुकाम – लक्ष्य, मंज़िल
तालीम – शिक्षा, ज्ञान, सीख
जिगरी – पक्का, घनिष्ठ
फ़र्क – अंतर, भेद
गिरफ़्तार – कैद, बंदी
5. उदाहरण के अनुसार वाक्य बदलिए –
उदाहरणः गांधीजी ने महादेव भाई को अपना वारिस कहा था।
गांधीजी महादेव भाई को अपना वारिस कहा करते थे।
1 – महादेव भाई अपना परिचय ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में देते थे।
उत्तर – महादेव भाई अपना परिचय ‘पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर’ के रूप में दिया करते थे।
2 – पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ते रहते थे।
उत्तर – पीड़ितों के दल-के-दल गामदेवी के मणिभवन पर उमड़ा करते थे।
3 – दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकलते थे।
उत्तर – दोनों साप्ताहिक अहमदाबाद से निकला करते थे।
4 – देश-विदेश के समाचार-पत्र गांधीजी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी करते थे।
उत्तर – देश-विदेश के समाचार-पत्र गांधीजी की गतिविधियों पर टीका-टिप्पणी किया करते थे।
5 – गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाते थे।
उत्तर – गांधीजी के पत्र हमेशा महादेव की लिखावट में जाया करते थे।
पाठ ‘शुक्रतारे के समान’ के कुछ स्मरणीय बिंदु –
1. पाठ ‘शुक्रतारे के समान’ के लेखक स्वामी आनंद हैं।
2. महादेव देसाई की तुलना शुक्रतारे से की गई है क्योंकि जिस प्रकार शुक्रतारा बहुत कम समय के लिए हमें दिखाई पड़ने पर भी अतीव प्रकाशमान रहता है ठीक उसी प्रकार महादेव देसाई भी अल्पायु होने के बावजूद अपनी अविस्मरणीय प्रतिभा से अपने आप को अमर कर लिए हैं।
3. ‘क्रानिकल’ के निडर अंग्रेज़ संपादक हार्नीमैन को सरकार ने देश—निकाले की सज़ा देकर इंग्लैंड भेज दिया ताकि वो अंग्रेज़ अफसरों के कुकृत्यों के बारे में आम जनता तक जानकारी न पहुँचा सके।
4. गांधीजी ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’ के लिए लेख लिखा करते थे।
5. महादेव देसाई ने वकालत की थी। उन्होंने चित्रांगदा’ कच-देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रचित ‘विदाई का अभिशाप’ शीर्षक नाटिका, ‘शरद बाबू की कहानियाँ’ आदि अनुवाद उस समय की उनकी साहित्यिक गतिविधियों की देन हैं। गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद उन्होंने किया।
6. महादेव मगनवाड़ी से रोज़ सुबह 11 मील पैदल चलकर सेवाग्राम पहुँचते थे। इसका जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, उनकी अकाल मृत्यु के कारणों में वह एक कारण माना जा सकता है।
मुहावरे
1.आँखों में तेल डाल कर देखना – ध्यानपूर्वक देखना
2.आड़े हाथों लेना – खबर लेना/डाँटना
3.स्याह-सफ़ेद करना – गलत/सही कार्य करना
4.सानी न होना – बराबरी का न होना
5.दाँतों तले अँगुली दबाना – आश्चर्यचकित होना
वाक्यांशों के लिए एक शब्द
1. संपादक – किसी कार्य का संपादन करने वाला
2. प्रशंसक – प्रशंसा करने वाला
3. साप्ताहिक – सप्ताह में होने वाला
4. मनोहारी – मन को हरने वाला
5. आंदोलन – उथल-पुथल करने वाला प्रयत्न
6. ईश्वरीय – ईश्वर संबंधी
7. सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
विलोम शब्द
1. आधुनिक – पुरातन
2. स्वतन्त्रता – परतंत्रता
3. प्रथम – अंतिम
4. अस्त – उदय
5. अधिकतर – कमतर
6. संक्षिप्त – विस्तार
7. प्रशंसक – निंदक
8.उदार – अनुदार, उग्र
9.सफ़ेद – श्याम
10.जीवन – मृत्यु
11.शिष्ट – अशिष्ट
12.प्रतिकूल – अनुकूल
अनेकार्थी शब्द
1. पत्र – पत्ता, समाचार पत्र
2. कुल – वंश, नदी का किनारा, योग
3. पशु – असभ्य, चतुष्पद जानवर
उपसर्ग एवं प्रत्यय
उपसर्ग
1. निर् – निर्मल
2. स – सहित
3. प्र – प्रकाशित, प्रशंसक, प्रवाह, प्रभा
4. अ – अकाल
5. सम् – संपादक, संस्करण
6. बे – बेजोड़
7. नि – डर
8. वि – विनय, विवाद, विरोध, विदेशी
9. अन – अनगिनत
10. प्रति – प्रतिदिन, प्रतिकूल, प्रतिनिधि
प्रत्यय
11. आन – मिलान
12. इत – प्रकाशित, संबंधित
13. तर – अधिकतर
14. ई – अंग्रेज़ी, लंबी, जानकारी,आज़ादी, फौजी
15. इक – साप्ताहिक, सामाजिक, राजनीतिक, आधुनिक, दैनिक
16. ता – स्वतंत्रता
17. ओं- नेताओं, ग्राहकों, चर्चाओं, यात्राओं
18. आवट – लिखावट
19. एँ – सजाएँ, पुस्तकें
20. आई – चौथाई, विदाई
21. दार – दीनदार
22. कर – जगमगाकर, निकालकर, डालकर, ठूँसकर
23. ईय – राष्ट्रीय, ईश्वरीय
24. याँ – कहानियाँ
25. क – प्रशंसक
26. इम – अंतिम
पर्यायवाची
1. कारागार – बंदीगृह, हवालात, जेलखाना
2. पत्र – चिट्ठी, खत
3. विद्यार्थी – छात्र, शिक्षार्थी, तालिबान
1 – गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ को पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
2 – जलियाँवाला बाग में कौन-सी घटना हुई थी? जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
3 – अहमदाबाद में बापू के आश्रम के विषय में चित्रात्मक जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
4 – सूर्योदय के 2 -3 घंटे पहले पूर्व दिशा में या सूर्यास्त के 2 -3 घंटे बाद पश्चिम दिशा में एक खूब चमकता हुआ ग्रह दिखाई देता है, वह शुक्र ग्रह है। छोटी दूरबीन से इसकी बदलती हुई कलाएँ देखी जा सकती हैं, जैसे चंद्रमा की कलाएँ।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
5 – वीराने में जहाँ बत्तियाँ न हों वहाँ अँधेरी रात में जब आकाश में चाँद भी दिखाई न दे रहा हो तब शुक्र ग्रह (जिसे हम शुक्र तारा भी कहते हैं) के प्रकाश से अपने साए को चलते हुए देखा जा सकता है। कभी अवसर मिले तो इसे स्वयं अनुभव करके देखिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
1 – सूर्यमंडल में नौ ग्रह हैं। शुक्र सूर्य से क्रमशः दूरी के अनुसार दूसरा ग्रह है और पृथ्वी तीसरा। चित्र सहित परियोजना पुस्तिका में अन्य ग्रहों के क्रम लिखिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
2 – ‘स्वतंत्रता आंदोलन में गांधीजी का योगदान’ विषय पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
3 – भारत के मानचित्र पर निम्न स्थानों को दर्शाएँ :
अहमदाबाद, जलियाँवाला बाग (अमृतसर), कालापानी (अंडमान), दिल्ली, शिमला, बिहार, उत्तर प्रदेश
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।