मानव विज्ञान का दास है

manushya vigyan ka daas ban chuka hai par ek hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) वर्तमान युग विज्ञान का युग (2) मानव जीवन के आधार विज्ञान की देन (3) भोजन, कपड़ा और मकान विज्ञान की कृपा से (4) विद्युत और औषधि में विज्ञान का योगदान (5) उपसंहार।

वर्तमान युग विज्ञान का युग है। विज्ञान के नित्य नवीन आविष्कार मानव को अनेक सुख और सुविधाएँ प्रदान कर रहे हैं। इनके कारण मानव विज्ञान के प्रभाव तथा वश में होता जा रहा है, इसलिए वह उसका दास है। मानव विज्ञान सेवा में पूर्णत: समर्पित है, इसलिए वह विज्ञान का दास है। विज्ञान ने मानव-जीवन गिरवी रखा हुआ, इसलिए मानव उसका दास है।

स्थिति यह हो चुकी है कि जो विज्ञान पहले मानव का सेवक था, आज वह उसका स्वामी बन चुका है। विज्ञान ने मनुष्य को ऐसा गुरुमंत्र प्रदान किया है, जिससे प्रकृति की गुप्त निधियों के द्वार सहज में खुल जाते हैं। इसलिए मानव ने विज्ञान की कृतज्ञता मानकर उसका दासत्व स्वीकार किया। विज्ञान ने मनुष्य को अपरिमित शक्ति प्रदान की, प्रकृति को उसकी चेरी बनाया और ऐश्वर्य तथा वैभव को उसके चरणों में उँडेल दिया। काल और स्थान की सीमाएँ मिटा दीं। इसलिए विज्ञान उसका स्वामी है और मनुष्य उसका दास। विज्ञान ने अंधों को आँखें दी है और बहरों को सुनने की शक्ति मानव जीवन को सुंदर और दीर्घायु बनाया और उसे भय से मुक्त किया। रोगों को रौंदकर मानव को नीरोग किया। ऐसे महाबली विज्ञान के सम्मुख मानव बौना है, उसके हाथों की कठपुतली है, इसलिए उसका दास है। आर्थर बाल्फोर के शब्दों में, ‘विज्ञान सामाजिक परिवर्तन का एक महान् उपकरण है, आधुनिक सभ्यता के विकास में सहयोगी सभी क्रांतियों का संयोजक है।

ऐसे विज्ञान का दास बनकर मानव अपने जीवन की कृतार्थता मानता है।

मानव जीवन प्राण पर आधारित है। प्राण है-श्वास। यह श्वास क्या है? वायु और वायु नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, आर्गन, कार्बनडाईऑक्साइड तथा सभी गैसों का मिश्रण ही तो हैं। गैसें विज्ञान की शाखाएँ हैं।

जल को मानव का जीवन माना जाता है। कारण, यह पीने, नहाने, कपड़े धोने, सफाई, कृषि, उद्योग के अतिरिक्त शरीर के लिए अत्यंत उपयोगी है। शरीर के लगभग एक तिहाई भाग में पानी रहता है। शरीर में पानी की उपस्थिति से रक्त तरल बना रहता है। पानी क्या है? हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का एक रासायनिक यौगिक है। जीवन जीने के लिए मनुष्य को जल चाहिए, इसलिए वह विज्ञान की शरण में जाता है। फिर विज्ञान मानव को समझाता है कि पीने का पानी रंगहीन, गंधहीन, ठोस पदार्थों तथा जीवाणुओं से रहित एवं हानिकारक नाइट्रेट नाइट्राइट और अमोनिया से मुक्त होना चाहिए।

अन्न मानव जीवन का प्राण है। अन्न मिलता है कृषि कर्म से। कृषि स्वतः विज्ञान की एक शाखा है। कृषि विज्ञान कृषि की सघनता, शक्तिमत्ता एवं नीरोगता का परिचायक है। ‘बुभुक्षितः किम् न करोति पापम्।’ भूखा आदमी दासत्व तो क्या पापत्व भी स्वीकार लेता है। इसलिए मानव ने भोजन के लिए भी विज्ञान का दासत्व ओढ़ा।

हवा, पानी और भोजन की अनिवार्यता और उसके कारण मानव का विज्ञान की दासता स्वीकार करने की विवशता के बाद, हम देखते हैं कि कपड़ा और मकान भी मानव के लिए आवश्यक हैं।

वस्त्र मानव शरीर को गरमी, सर्दी और वर्षा से बचाते हैं और साथ ही मानव के बाह्य व्यक्तित्व के निर्माण करने वाले तथा सुंदरता प्रदान करने वाले भी हैं। वस्त्र बिना नंगा मनुष्य जंगली और असभ्य कहलाता है। वस्त्र चाहे सूती हों या ऊनी, नाइलान के हों या टेरीलोन, रेयान के हो या पालीएस्टर के, सबकी निर्माता है मशीनों की वैज्ञानिक प्रक्रिया। परिणामस्वरूप विज्ञान की इस शाखा का नामकरण हुआ ‘वस्त्र-विज्ञान’। सभ्य दिखना और बाह्य व्यक्तित्व का प्रदर्शन मानव की कमजोरी है। उसे वस्त्र-विज्ञान की कृपा को साभार स्वीकार करके उसके सामने समर्पण करना पड़ा।

मकान जीवनोपयोगी पदार्थों का संग्रह-स्थल है। परिवार अपनत्व के वातावरण निर्माण का कारण है। अतः मकान जीवन की आवश्यकता ही नहीं वर्तमान युग की अनिवार्यता भी है। मकान का निर्माण, उसके नियम, सिद्धांत, सब विज्ञान ‘वास्तु-विज्ञान’ के अंतर्गत आते हैं। कलात्मक, स्वास्थ्यवर्द्धक, वातानुकूलित भवनों के लिए मानव विज्ञान की शरण में जाता है।

मानव को अंधकार से प्रकाश में लाने का श्रेय है विज्ञान की विद्युत् किरणों को है।. बटन दबाया और प्रकाश हो गया। अमावस में पूर्णिमा का सा प्रकाश। नहीं तो पड़े रहिए अंधकार में। तन-मन सब निराश। इसलिए मानव विद्युत् का दास है।

मानव की कामना रही है-‘जीवेम शरदः शतम्, अदीनाः स्याम शरदः शतम्।’ रोग, चोट, बीमारी और शरीर के अवयवों का ढीलापन, टूटना, डिस्लोकेट होना आम बात है। इस मानव प्रकृति की स्वाभाविकता को खुशी में बदलने के लिए विज्ञान ने प्रकृति की गुप्त निधि के द्वार औषध-चिकित्सा तथा शल्य क्रिया रूप में खोले। परिणामतः आज का आदमी बीमारियों और शरीर के टूटते, चोट खाते अवयवों से निश्चित है। क्योंकि वह जानता है कि विज्ञान नामक प्रभु की कृपा-दृष्टि उस पर है। इसलिए वह उस प्रभु का दास बना हुआ है।

मानव घर में स्थिर खड़ी रहने वाली कोई मिट्टी की मूर्ति नहीं है। उसे दूर-दूर की यात्रा करनी पड़ती है। दूरस्थ बैठे व्यक्ति से संबंध और संपर्क बनाना पड़ता है। साइकिल, मोटर साइकिल, कार, बस, वायुयान, जलयान, अंतरिक्षयान उसके वाहन बने। लंबी दूरी का समय मिनटों में तय किया। टेलीग्राफ, टेलीफोन, टेलीप्रिंटर, फैक्स, रेडियो, दूरदर्शन इंटरनेट, उपग्रह मानव के संदेश वाहक दूत बने। इन दूतों की कृपा से मानव जीता है, इनकी खराबी और अभाव में मानव सिर धुनता है। लगता है सभ्य मानव-जीवन आज के संचार और यातायात साधनों के पास गिरवी है, ये सभी विज्ञान की देन हैं।

पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं के वाचन से ज्ञान की वृद्धि होती है। पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएँ विज्ञान की कृपा का प्रतिफल हैं। कागज और मुद्रण की कला विज्ञान की देन हैI इसी प्रकार मनोरंजन के सस्ते और सुलभ साधन हैं-दूरदर्शन, आकाशवाणी तथा चलचित्र। ये तीनों विज्ञान की देन हैं। इसलिए मानव विज्ञान का आभारी है।

सच्चाई तो यह है कि आज का मानव जीवन विज्ञान पर अत्यधिक आश्रित है। इसलिए वह विज्ञान को अपना स्वामी मानता है। वह जानता है कि यह विज्ञान रूपी स्वामी यदि रुष्ट हो गया तो उसका जीवन दूभर हो जाएगा।

About the author

हिंदीभाषा

Leave a Comment

You cannot copy content of this page