पुराने जमाने का दूरभाष

doorbhasha ka purane jamane me mahattv par ek hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) विज्ञान का अद्भुत आविष्कार (2) समय की बचत (3) टेलीफोन का राक्षसत्व रूप (4) टेलीफोन का दुरुपयोग (5) उपसंहार।

टेलीफोन या दूरभाष विज्ञान का अद्भुत आविष्कार है। यह ग्राहम वैल की विश्व को कल्याणकारी भेंट है। मानवीय जीवन के लिए उपयोगी वरदान है। मनचाहे दूरस्थ व्यक्ति से बातचीत का सरलतम सुविधाजनक माध्यम है। तुरंत संदेश देने तथा समाचार भेजने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। व्यापार और कार्यालय संचालन का विश्वसनीय साथी है।

आज मानव मनचाही बात पर तुरंत कार्यवाही चाहता है उसके पास समयाभाव है। वह चाहता है कि उसका संदेश कुछ ही क्षणों में संबंधित व्यक्ति को मिल जाए। तुरंत टेलीफोन का डायल घुमाइए और दूर से दूर बैठे व्यक्ति से बातचीत कर लीजिए। यह है विज्ञान का ईश्वरीय रूप, मानव के लिए कल्याणकारी वरदान।

टेलीफोन से समय की बचत हुई। संदेश या समाचार वायु-वेग से पहुँच गया। कुछ ही क्षणों में मनचाहे व्यक्ति मे मुँह-दर-मुँह बातचीत हो गई। आपका आत्मीयजन बीमार पड़ा है, घबराने की जरूरत नहीं। डॉक्टर को फोन कीजिए। किसी अधिकारी से मिलना है, जाने पर मिलेगा या नहीं, यह संशय है। दूरभाष पर ‘टाइम अप्यॉइंट’ (समय निश्चित) कर लीजिए। पड़ोस में आग लग गई। फायर ब्रिगेड को तत्काल फोन कीजिए। किसी की मृत्यु हो गई है। फोन करके कुछ ही क्षणों में संबंधी इकट्ठे कर लीजिए। घर में चोर घुस आए हैं। ‘पुलिस फ्लाइंग स्क्वाड’ को दूरभाष पर 100 नंबर को सूचना दीजिए।

कार्यालयों, संस्थाओं, प्रतिष्ठानों का जीवन फोन बिना दूभर है। अधिकारी को क्षण-क्षण में निजी सचिव से बातचीत करनी पड़ती है। बार-बार उठने में, बुलवाने में दोनों का समय बरबाद होता है। फोन पर बातचीत हो गई। समय की बचत, शारीरिक कष्ट से मुक्ति, तत्परता से कार्य की पूर्ति के अतिरिक्त कार्यालय की कार्य-शक्ति सुचारु रूप से संचारित हो रही है।

दूरभाष ने तरक्की की। उसने अपना एक रूप ‘सेल्यूलर’ ऐसा प्रकट किया, जिसमें आप कार में हो या हवाई जहाज में, पिकनिक में हों या पार्टी में आपकी सेल्यूलर की घंटी बज उठेगी। महत्त्वपूर्ण संदेश मिल जाएगा, बातचीत हो जाएगी।

रोटी, कपड़ा और मकान की भाँति फोन भी आज के जीवन का आवश्यक अंग बन गया है। यह आवश्यक अंग कहीं-कहीं अनिवार्य भी बन गया है। इसके अभाव में संचार-व्यवस्था ठप्प हो जाएगी और जीवन दूभर हो जाएगा।

किंतु टेलीफोन का देवत्व रूप जब राक्षसत्व में प्रकट होता है, तो फोन का स्वामी थरथर काँपने लगता है।

टेलीफोन मिलाया-3266412। ट्रिल-ट्रिल घंटी बजी। दूसरी ओर से रिसीवर उठाया। ‘हाँ जी।’

-अरुण जी को दीजिए।

-यहाँ कोई अरुण नहीं है, राँग नंबर।

भाग्यचक्र देखिए-तीन बार मिलाया, तीनों बार राँग नंबर। पैसे के पैसे गए, बातचीत भी न हो सकी।

जरूरी काम से टेलीफोन का रिसीवर उठाया। वहाँ किसी की बातचीत चल रही है। आपकी लाईन पर किसी और का नंबर मिल गया है। जब तक वह लाइन कटे नहीं, बातचीत समाप्त न हो, आप फोन कर ही नहीं सकते।

नंबर घुमाया। ट्रिल-ट्रिल। किसी ने दूसरी ओर का रिसीवर उठाया। बातचीत शुरू की-यह क्या? उसकी आवाज आप सुन रहे हैं। आपकी आवाज उधर सुनाई नहीं दे रही। नंबर घुमाया। टेलीफोन का डायल चुप-न एँगेज, न घंटी नंबर घुमा घुमाकर परेशान। त्योरियाँ चढ़ गई।

ट्रिल-ट्रिल की घंटी उस समय ज्यादा परेशान करती है, जब आप विश्राम कर रहे हों, स्वप्नों में विचर रहे हों, मूड ऑफ हो। अनचाहे परिचित की कॉल हो। स्नानागर में स्नान कर रहे हों, शौचालय में शौच से निवृत हो रहे हों, भजन-पूजन में ध्यानस्थ होने का प्रयास कर रहे हों, भोजन का आनंद ले रहे हों, मित्रों से गपशप कर रहे हों, किसी गंभीर मंत्रणा में लगे हों, उस समय ट्रिल-ट्रिल की घंटी अनचाहे अतिथि-सी लगने लगेगी। आपने गुस्से में फोन का रिसीवर उठा कर अलग रख दिया। इस बीच संभव है आप किसी महत्त्वपूर्ण संदेश से वंचित रह गए हों, जो गाड़ी छूटने के बाद स्टेशन पहुँचने के समान पश्चात्तापकारी हो।

हमारे पड़ोसी हैं शर्मा जी। जब-तब फोन करने चले आते हैं। वे हमारे फोन को अपना ही समझते हैं। इसलिए न समय-असमय को देखते हैं, न हमारी ‘प्राइवेसी’ का ध्यान रखते हैं। दूसरे, यह कि वे अन्य शहरों में रह रहे संबंधियों से बातचीत का भी मजा लेते रहते हैं। उन्हें क्या पता कि अपनी बातचीत से वे सुविधा प्रदाता के तन-मन-धन को क्षति पहुँचा रहे हैं।

पड़ोसियों के लिए जब फोन आने लगें तो दूरभाष संकट मोचन की बजाय पीड़ा-दायक बन जाता है। अपनी सब व्यस्तता छोड़ उन्हें बुलवाइए। जब तक वे आकर फोन न सुन लें, आप अपना समय उनको समर्पित कर दीजिए। व्यक्तिगत जीवन के उन क्षणों को परहित पर न्योछावर समझ लीजिए। उन्हें बुलाते-बुलाते तंग आ जाएँ, तो झूठ बोलने का अभ्यास बना लीजिए।

टेलीफोन एक्सचेंज के 180, 181, 197, 199 नंबर सदा इतने व्यस्त रहते हैं कि बार-बार डायल घुमाना पड़ता है। कभी-कभी तो घंटी बजती रहती है, उठाता ही कोई नहीं।

इस प्रकार टेलीफोन वर्तमान सभ्य समाज के लिए संचार सुविधा का अत्यंत उपयोगी माध्यम है। साथ ही तन, मन और धन को क्षति पहुँचाने वाला असुविधाप्रद यंत्र भी है।

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