संकेत बिंदु-(1) शीर्षक का अर्थ (2) प्रदूषण के प्रकार और जल प्रदूषण (3) वायु प्रदूषण के तत्त्व और बीमारियाँ (4) ध्वनि प्रदूषण और बीमारियाँ (5) उपसंहार।
महानगरों के विस्तार और औद्योगीकरण की अधिकता के कारण आज मानव के सामने जो समस्याएँ आ रही हैं, प्रदूषण की समस्या उनमें अधिक भयंकर है। आज नगरों में बढ़ती पर्यावरण प्रदूषण की समस्या नगरवासियों से प्राकृतिक वायु और शुद्ध जल छीन रही है तथा नई-नई असाध्य बीमारियों की ओर धकेल रही है। ;
यह प्रदूषण चार प्रकार का है-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण। नगरों में शुद्ध पेय जल, शुद्ध वायु, शांत वायुमंडल तथा भूमि की उर्वरा शक्ति का दिन-प्रतिदिन ह्रास हो रहा है। परिणामतः नगर का शिशु प्रदूषण में ही जन्म लेता है। यह नगर-जन्म का एक बड़ा अभिशाप है। पंत जी ने ठीक ही कहा है-
दूषित वायु, दूषित जल कैसे हो जीवन-मंगल।
क्षीण आयु, क्षुब्ध जन, कैसे हो जन्म सफल॥
(गीत-संगीत)
नगर में प्रायः भूमिगत जल निकासी का प्रबंध होता है। मल-मूत्र, नहाने-धोने तथा सफाई करने से गंदा हुआ जल, औद्योगिक संस्थाओं का कूड़ा-करकट, रासायनिक द्रव्य, पेस्टीसाइड, बायोसाइड, कीटनाशक रसायन, सब भूमिगत नालियों द्वारा नगर की समीपवर्ती नदी में प्रवाहित कर दिए जाते हैं। इतना ही नहीं, हवन-यज्ञ, अंत्येष्टि के अवशेष तथा पाँचवर्ष से कम के मृत शिशु शव भी नदी में बहाने की प्रथा है। परिणामतः नदी-जल दूषित हो जाता है। नदी के उसी जल को वैज्ञानिक ढंग से साफ करके पेय जल बनाया जाता है। इस तथाकथित शुद्ध जल के उपयोग से आमाशय संबंधी विकार, खाद्य विषाक्तता तथा चर्म रोग उत्पन्न हो जाते हैं। प्रदूषित जल फसलों को सार हीन बना देता है। जल में अवशिष्ट जीवनाशी रसायन मानव शरीर में पहुँचकर रक्त को विषाक्त कर देते हैं, जिससे अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
शुद्ध वायु जीवन जीने का अनिवार्य तत्त्व है। शुद्ध वायु का मुख्य स्रोत है-वन, हरे-भरे बाग-बगीचे तथा लहलहाते पेड़-पौधे। कारण, ये प्रदूषण के भक्षक हैं और हैं ऑक्सीजन के प्रदाता। नगरों में बढ़ती जनसंख्या ने वन, बाग-बगीचों को उजाड़ दिया और बना दिए हैं भवन। जीवनदाता के स्थान पर जीवन-नाशक कंकरीट के जाल बसा दिए हैं। अब शुद्ध वायु आए तो आए कहाँ से?
दूसरी ओर, कारखानों की चिमनियों से, रेल के इंजनों से, घरों में काम आने वाले स्टोवों से तथा जलने वाले पदार्थों से, कूड़े-कचरे के ढेर से जो गैसें निकलती हैं, वे वायु को प्रदूषित करती हैं। रही-सही कसर नगर में डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहन पूरी कर देते हैं। स्कूटर, मोटर साइकिल, थ्रीह्विलर, ऑटोरिक्शा, कार, टैक्सी, बस, ट्रक, स्टेशन वैगन आदि वाहन रात और दिन नगरों की सड़कों पर दौड़ते रहते हैं। इन गाड़ियों के एक्जासिटों से जो कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फ्यूरिड एसिड और शीशे के तत्त्व उनके घोल में से होकर हवा में घुलते जाते हैं, वे वायु को इतना प्रदूषित कर देते हैं कि यातायात के ‘पीक आवर्स’ में तो सड़क पर चलते हुए दम घुटने-सा लगता है।
महानगर दिल्ली को ही लीजिए। इस समय वाहनों की संख्या 80 लाख को पार कर चुकी है। उधर केंद्रीयय प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी स्वयं स्वीकारते हैं कि हर तीन महीने में वाहनों के प्रदूषण जाँच वाले नियम से प्रदूषण में तो कोई कमी आयी नहीं है, जो थोड़ी-बहुत कमी आयी भी तो उतने ही वाहन बढ़ जाते हैं। राजधानी में हर रोज वाहनों से उपजे 195 मीट्रिक टन विषाक्त यौगिक हवा में घुल रहे हैं। चूँकि गाड़ियों से निकला धुआँ कम ऊँचाई पर रहता है, अतः यह कुछ अधिक ही जानलेवा है।
वायु प्रदूषण से श्वास-संबंधी रोग उत्पन्न होते हैं। जैसे-श्वसनी शोथ, फेफड़ा कैंसर, खाँसी, दमा, जुकाम। त्वचा और नेत्र भी प्रभावित होते हैं। ये जीवन को विकलांगता प्रदान करते हैं। यदि किसी नगर में किसी कारखाने की गैस निकल जाए तो उस नगर का विध्वंस प्रलय से कम नहीं होता। भोपाल नगर के नागरिकों की आत्मा आज भी ‘ भोपाल गैस कांड’ के नाम पर सिहर उठती है।
जो शब्द या नाद सामान्य से ऊँचा हो, कानों के परदे पर आघात करे या श्रवणेन्द्रिय को कष्ट कर लगे तो वह ध्वनि-प्रदूषण बन जाता है। ध्वनि प्रदूषण नागरिक जीवन का अनचाहा अभिशाप है। ब्राह्ममुहूर्त में पूजा स्थानों से ध्वनि विस्तारकों से आने वाली ऊँची आवाज आपको शांति से सोने नहीं देगी। दिन में आकाशवाणी तथा कैसेटों के शोर को झेलना पड़ेगा। मुर्दाबाद-ज़िंदाबाद के नारे, बैंड-बाजों की तीव्र ध्वनि, ढोल और शहनाई की चीख आपको सुननी पड़ेगी। घर का टी.वी. तो कानों के लिए टी.बी. (तपेदिक) ही सिद्ध हो रहा है। रही-सही कसर पूरी करती है वाहनों के होनों की पों-पों।
ध्वनि प्रदूषण श्रवण शक्ति का ह्रास करता है, जिससे मनुष्य बहरेपन का शिकार हो जाते हैं। यह उच्च रक्तचाप, मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, हृदयरोग तथा अनिद्रा को भी जन्म देता है। इससे गर्भस्थ शिशु के विकास में व्यवधान पड़ता है। दुर्घटनाओं में वृद्धि होती है।
नगरों में बढ़ती प्रदूषण की समस्या के निराकरण के लिए नगर की बढ़ती जनसंख्या को रोकना होगा, बाग-बगीचों का जाल बिछाना होगा, औद्योगिक संस्थानों को नगर से दूर स्थानांतरित करना होगा, भूमिगत नालों के प्रदूषित जल को नगर-नदी के स्थान पर अन्यत्र बहाना होगा या वैज्ञानिक रीति से स्वच्छ करके खेतों की सिंचाई के काम में लाना होगा। लाउडस्पीकर की ऊँची आवाज तथा आकाशवाणी की उच्च-ध्वनि के कान मरोड़ने होंगे। ऐसे वाहनों के चालन पर प्रतिबंध लगाना होगा, जो प्रदूषण फैलाते हैं।