जन-जागरण और समाचार-पत्र

janjagaran me masachar patra ki bhumika par ek hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) सर्वश्रेष्ठ, सुगम और सस्ता साधन (2) स्वतंत्रता संग्राम और अनेक राजनीतिक-सामाजिक घटनाओं में समाचार पत्र (3) समाचार पत्र की विस्तृत भूमिका (4) विश्व की घटनाओं का संक्षिप्त दस्तावेज (5) उपसंहार।

समाचार-पत्र जन-जागरण के सर्वश्रेष्ठ, सर्वसुलभ सस्ते तथा सुगम साधन हैं। समाचार-पत्र के लेखों से जनता पर जादू का सा प्रभाव पड़ता है। वह बुरे कर्म से सचेत होती है, अच्छी और लाभप्रद बातों का लाभ उठाती है।

जनता को विकास पथ पर अग्रसर होने के लिए सचेत करने को जन-जागरण कह सकते हैं। जनता को सतत जागृत रखना समाचार-पत्रों का दायित्व है। जन-जीवन के जागरण की विविध दिशाएँ हैं-सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, पारिवारिक, आर्थिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक, साहित्यिक आदि। वस्तुतः समाचार-पत्र जन-जागरण के प्रहरी ही नहीं, मंत्रदाता और मार्गदर्शक भी हैं।

महाकवि जयशंकर प्रसाद ने जागरण का अर्थ कर्म क्षेत्र में अवतीर्ण होना माना है। वे लिखते हैं-‘कर्मक्षेत्र क्या है? जीवन संग्राम।’ जनता को जीवन-संग्राम में अवतरित करने में समाचार-पत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसीलिए कुछ महापुरुषों ने तो समाचार-पत्रों को ‘जनता के शिक्षक’ माना है और जे. पार्टन ने उन्हें ‘जनता के विश्वविद्यालय’ स्वीकार किया है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में समाचार-पत्रों ने जनता को राजनीतिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक रखा। परतंत्रता के युग में अंग्रेजों के दमन चक्र के विरुद्ध सत्याग्रह के लिए वातावरण तैयार करने एवं अंग्रेजों के विरुद्ध जनाक्रोश उत्पन्न करने में समाचार-पत्रों की भूमिका अविस्मरणीय थी। आपत्काल में इण्डियन एक्सप्रेस, वीर अर्जुन, प्रताप, पाञ्चजन्य आदि पत्रों ने अपने अग्रलेखों से जनता को जागरूक रखा।

किसी भी सरकार की नीतियों के आलोचक समाचार-पत्र ही होते हैं। उनके संपादकीय लेख अधिनायकवादी सत्ताधारियों के मिजाज ठीक कर देते हैं। भारतीय शासन में बढ़ते और फैलते भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद तथा स्वार्थपूर्ति के लिए किए गए कुकर्मों का भंडाफोड़ भारत के समाचार पत्र ही करते रहे हैं। ब्रिटेन के प्रसिद्ध प्रधानमंत्री डिजरायली का विचार था कि अत्याचारी शासक वर्ग का सबसे बड़ा शत्रु समाचार-पत्र हैं। प्रसिद्ध अमेरिकी संवाददाता जैक ऐम्डर्सन ने लिखा है, ‘समाचार पत्रों की स्वतंत्रता एक पहरेदार कुत्ते की तरह है, जो कभी-कभी भयंकर रूप धारण कर सकती है और इसकी घ्राणशक्ति हमें उन अलमारियों तक ले जाती है, जिनमें सरकारों, बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थानों तथा नेताओं की भयावनी योजनाएँ छिपी रहती हैं।’

अमेरिका के सुप्रसिद्ध ‘वाटरगेट कांड’, जिसके कारण राष्ट्रपति निक्सन का पतन हुआ, जापान के शक्तिशाली प्रधानमंत्री काकुई तनाका के पतन एवं इंग्लैण्ड के मंत्री प्रोफ्यूमा के सेक्स कांड और अमेरिका के राष्ट्रपति क्विंटन के अवैध काम-संबंध के उद्घाटन का श्रेय समाचार-पत्रों को ही है। भारत तो षड्यंत्रों और भ्रष्टाचरण का भवन बनता जा रहा है। नागरवाला कांड, बोफर्स कांड, चाराकांड, शेयर मार्किट और बैंकों का षड्यन्त्र, एक से एक बढ़कर षड्यन्त्र होते हैं, जिन्हें समाचार-पत्र ही उद्घाटित करते हैं। वे जनता के दुखदर्द से अनजान सत्ता की नींद हराम करते हैं। इसलिए विश्वविख्यात वीर नेपोलियन ने एक बार कहा था-‘मैं लाखों विरोधियों की अपेक्षा तीन विरोधी समाचार-पत्रों से अधिक भयभीत रहता हूँ।’

समाचार-पत्र सामाजिक कुरीतियों से पर्दा उठाकर जनता को उनके विषाक्त परिणाम से अवगत कराते हैं। दहेज की बलिवेदी पर चढ़ने वाली नारियों तथा सती प्रथा द्वारा आत्मदाह करने वाली पत्नियों के समाचारों को प्राथमिकता देते हैं। इधर ‘कल्याण’ पत्र ने धार्मिक क्षेत्र में जन-जागरण का जो कार्य किया है और कर रहा है, उसे भारतीय जनता विस्मृत नहीं कर सकेगी। उसमें धार्मिक जीवन की सुचारुता, शांति और प्रगति के लिए लेखों की भरमार रहती है। राष्ट्र की आर्थिक दशा का विश्लेषण करके जनता को सचेत करने में समाचार-पत्र कभी पीछे नहीं रहे। आर्थिक विकास के साधनों के प्रयोग को

समाचार-पत्र प्रकाश में लाते रहते हैं। आर्थिक चेतना की जागृति के लिए तो भारत में अब अनेक आर्थिक दैनिक-पत्र भी छपते हैं। जनता को वैज्ञानिक उन्नति की जानकारी देने एवं उसके हानि-लाभ से परिचित कराने का श्रेय समाचार-पत्रों को ही है। वैज्ञानिक-पत्रिकाओं का उद्देश्य तो केवल यही है कि जनता वैज्ञानिक प्रयोगों और उनकी आश्चर्यजनक उपलब्धियों से परिचित रहे। जनता जानती है कि अब बड़ी से बड़ी बीमारी पर भी विज्ञान ने विजय प्राप्त कर ली है। तपेदिक, कैंसर, हृदय तथा मस्तिष्क रोगों से अब मानव मरता नहीं। इसी प्रकार स्वास्थ्य-रक्षा के साधनों, उनके कार्यक्रमों तथा उपायों की विस्तृत जानकारी देकर ये समाचार-पत्र जनता को जागृत करते रहते हैं।

समाचार-पत्र विश्व की घटनाओं का संक्षिप्त दस्तावेज हैं। प्रातः उठकर मानव ज्ञानवर्द्धन के लिए समाचार-पत्र पढ़ता है। विश्व की घटनाओं के प्रति जानकारी प्राप्त करता है। व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व के संदर्भ में उनका मूल्यांकन करता है। सन् 1974 में बंगला देश में जब मार्शल लॉ लागू हुआ तो भारत की जनता सजग हो गई कि कहीं भारत पर उसका प्रभाव न पड़े। जागरूक जन नेताओं की दूरदर्शिता सच निकली और जून, 1975 में भारत में आपत्स्थिति घोषित हो गई।

लोकतन्त्रात्मक राष्ट्रों में समाचार-पत्र चतुर्थ जन-शक्ति है। यह जन-शक्ति जनता के अधिकारों के लिए लड़ती है और कर्तव्यपूर्ति के लिए जनता को प्रेरित करती है। सरकार निर्माण के लिए मतदान के अवसर पर वह प्रत्येक प्रत्याशी और दल की गतिविधियों की समीक्षा करके उसकी अच्छाई-बुराई को स्पष्ट करती है, ताकि जनता मत डालते समय जागरूक रहे, राजनीतिज्ञों की धूर्तता के मोह जाल में न फँस जाए।

वित्तीय घोटालों और कांडों की राजनीति का पर्दाफास करना, जातीय हिंसा, सांप्रदायिक विद्वेष तथा क्षेत्रीय आतंकवादी राजनीति से सरकार और जनता को सचेष्ट करना, दलीय राजनीतिक से लोकतांत्रिक मूल्यों की सुरक्षा के लिए तर्क करना तथा देशद्रोहियों की गतिविधियों से जागरित करना चतुर्थ जन-शक्ति का कर्तव्य है।

इस प्रकार जनता को जागरूक रखने का बहुत बड़ा श्रेय समाचार-पत्रों को है। जनता के अधिकारों के लिए लड़ना और जनता को अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत करना समाचार-पत्र अपना धर्म समझते हैं। अत्याचार और अनाचार के विरुद्ध जनता में पाँचजन्य का घोष करके एवं उसे क्रांति के लिए प्रस्तुत करके, उसे आर्थिक, धार्मिक तथा सामाजिक विद्रोही तत्त्वों से सजग रखने में ही समाचार-पत्रों की इतिकर्तव्यता है।

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