दूरदर्शन का इतिहास

doordarshan ka itihas par ek shandaar nibandh

संकेत बिंदु-(1) दूरदर्शन शब्द का अर्थ (2) भारत में दूरदर्शन का आगमन (3) दैनिक राष्ट्रीय कार्यक्रम और अंतर्राष्ट्रीय चैनल शुरू (4) मनोरंजन, ज्ञानवर्धन और विज्ञापन का साधन (5) उपसंहार।

दूरदर्शन अंग्रेजी शब्द टेलीविजन का हिंदी पर्याय है। ‘टेलीविजन’ (Television) अंग्रेजी के दो शब्दों ‘Tele’ और ‘vision’ से मिलकर बना है। Tele का अर्थ है ‘दूर’ और vision का अर्थ है ‘देखना’ अर्थात् ‘दूरदर्शन’। विज्ञान के जिन चमत्कारों ने मनुष्य को आश्चर्यचकित कर दिया है, उनमें टेलीविजन भी मुख्य है। इस यंत्र के द्वारा दूर से प्रसारित ध्वनि चित्र सहित दर्शक के पास पहुँच जाती है।

भारत में ‘दूरदर्शन’ का आगमन 15 सितंबर, 1959 से ही समझना चाहिए, जब कि तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्रप्रसाद ने आकाशवाणी के टेलीविजन विभाग का उद्घाटन किया था। 500 वाट शक्ति वाला ट्रांसमीटर दिल्ली से 25 कि.मी. की दूरी तक कार्यक्रम प्रसारित कर सकता था। 1965 से एक समाचार बुलेटिन के साथ नियमित रूप से प्रतिदिन एक घंटे का प्रसारण शुरू हुआ। टेलीविजन सेवा का बम्बई में विस्तार 1972 में ही हो पाया। 1975 तक कलकत्ता, चेन्नई, श्रीनगर, अमृतसर और लखनऊ में भी टेलीविजन केंद्र स्थापित किए जा चुके थे।

प्रगति का एक पग और बढ़ा। 1 अगस्त, 1975 से अमेरिकी उपग्रह द्वारा 6 राज्यों के 2400 गाँवों की 25 लाख जनता दूरदर्शन से लाभान्वित हुई।

15 अगस्त, 1982 को भारतीय उपग्रह ‘इन्सेट-1 ए’ के माध्यम से विभिन्न दूरदर्शन केंद्रों से एक ही कार्यक्रम दिखाना संभव हुआ। दूसरी ओर ‘इन्सेट-1बी’ उपग्रह के सफल स्थापन के बाद सितंबर, 1983 से न केवल भारत के विभिन्न दूरदर्शन-केंद्रों में सामंजस्य स्थापित हो सका, अपितु देश के कोने-कोने में बसे हुए गाँव भी दूरदर्शन कार्यक्रम से लाभान्वित होने लगे। यही कार्य अब ‘इन्सेट-डी’ कर रहा है।

1981-1990 के दशक में ट्रांसमीटरों की संख्या 19 से बढ़कर 519 हो गई। अनेक शहरों में स्टूडियो भी खोले गए। दूरदर्शन ने 1993 में चार नए चैनल शुरू किए थे, किंतु 1994 में परिवर्तन करके भाषानुसार कर दिए। 1995 इन्सेट 2-सी के प्रक्षेपण के बाद दूरदर्शन की नीति हर प्रांत के क्षेत्रीय चैनल बढ़ाने की रही।

15 अगस्त 1984 को सारे देश में एक साथ प्रसारित किए जाने वाले दैनिक राष्ट्रीय कार्यक्रमों का शुभारंभ हुआ। 1987 में दैनिक प्रातः कालीन समाचार बुलेटिन का प्रसारण आरंभ हुआ। 20 जनवरी 1989 को दोपहर का प्रसारण आरंभ हुआ। जनवरी 1986 से दूरदर्शन की विज्ञापन सेवा आरंभ हुई। परिणामतः उसके राजस्व में बहुत अधिक वृद्धि हुई।

डी डी 2 मैट्रो चैनल 1984 में शुरू हुआ। यह सेवा 46 शहरों में उपलब्ध है, किंतु डिश एँटीना के जरिए देश के अन्य भागों में भी इसके कार्यक्रम देखे जा सकते हैं।

1995 से दूरदर्शन का अंतर्राष्ट्रीय चैनल शुरू हुआ। पी. ए. एस. -4 के द्वारा इसके प्रसारण एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप के पचाम देशों में पहुँच चुके हैं। अमरीका और कनाडा के लिए इसके प्रसारण पी.ए.एस.-1 से किए जा रहे हैं।

नए चेनलों में ‘खेल चेनल’ तथा अगस्त 2000 से पंजाबी चैनल शुरू हुआ जो 24 घंटे कार्यक्रम प्रसारित करेगा।

दूरदर्शन पर सरकारी नियंत्रण था। उसके विकास का दायित्व सरकार पर होता था। 23 नवंबर 1997 से इसका कार्यभार प्रसार भारती (स्वायत्त प्रसारण परिषद्) ने संभाल लिया है।

दूरदर्शन मन को स्थिर करने का साधन है, एकाग्रचित्तता का अभ्यास हैं। इसके कार्यक्रम देखते हुए हृदय, नेत्र और कानों की एकता दर्शनीय है। जरा सा भी व्यवधान साधक को बुरा लगता है। दूरदर्शन के कार्यक्रम के मध्य अन्य कोई व्यवधान दर्शक को बेचैन कर देता है, क्रोधित कर देता है।

दूरदर्शन मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, शिक्षा तथा विज्ञापन का सुलभ और सशक्त माध्यम है। फीचर फिल्म, टेली फिल्म, चित्रहार, चित्रमाला, रंगोली, नाटक-एकांकी-प्रहसन, लोक-नृत्य-संगीत, शास्त्रीय नृत्य-संगीत, मैजिक शो, अंग्रेजी धारावाहिक, हास्य फिल्में, ये सभी दूरदर्शन के मनोरंजक कार्यक्रम ही तो हैं। ये दिनभर के थके-हारे मानव के मन को गुद्गुदा कर स्वस्थ और प्रसन्न करते हैं, स्फूर्ति और शक्ति प्रदान करते हैं।

जीवन और जगत के विविध पहलुओं के कार्यक्रम दर्शक का निःसंदेह ज्ञानवर्धन करते हैं। ‘बातें फिल्मों की’ जैसे कार्यक्रम जहाँ फिल्म जगत की पूरी जानकारी देते हैं, वहाँ यू.जी.सी. के कार्यक्रम वैज्ञानिक प्रगति का सूक्ष्म-परिचय भी देते हैं। टेलीविजन द्वारा शरीर के कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्टरी सलाह दी जाती हैं, तो कानून की पेचीदगियों को समझाने के लिए चर्चा की जाती है। प्रकृति के रहस्य, समुद्र की अतल गहराई नभ की अनंतता, विभिन्न देशों का सर्वांगीण परिचय, भारत तथा विश्व की कला एवं संस्कृति की विविधता की जानकारी, सभी ज्ञानवर्धन के कार्यक्रम हैं।

व्यापार की समृद्धि प्रचार पर निर्भर हैं। वस्तु विशेष का जितना अधिक प्रचार होगा, उतनी ही अधिक उसकी माँग बढ़ेगी। दूरदर्शन प्रचार का श्रेष्ठ माध्यम है, वस्तु-विशेष की माँग पैदा करने का उत्तम उपाय है। दूरदर्शन के विज्ञापन दर्शक के हृदय पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं, जो जरूरतमन्दों को वस्तु विशेष खरीदते समय प्रचारित वस्तु खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं।

जैसे-जैसे मानव की व्यस्तता बढ़ेगी, मानसिक तनाव बढ़ेंगे, जीवन में मनोरंजन की अपेक्षाएँ बढ़ेंगी, वैसे-वैसे दूरदर्शन अपने में गुणात्मक सुधार उत्पन्न कर मनोरंजन का सशक्त साधन सिद्ध होता जाएगा।

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