संकेत बिंदु-(1) आकर्षक शहर (2) चंडीगढ़ का निर्माण (3) चंडीगढ़ की बनावट और परिकल्पना (4) चंडीगढ़ के दर्शनीय स्थल और मुख्य इमारतें (5) उपसंहार।
यक्षनगरी अलकापुरी हो सकता है कि महाकवि कालिदास की मात्र कल्पना ही हो, लेकिन यदि अलकापुरी का अस्तित्व सचमुच कभी रहा होगा, तो निश्चित ही वह चंडीगढ़ जैसा ही होगा। दिल भले ही इस नगरी का कंक्रीट का बना हो, लेकिन स्थापत्य कला में यह अत्याधुनिक नगरी अलकापुरी-समान ही तो है। ‘कौन जाए दिल्ली की गलियाँ छोड़कर ‘ वाली उक्ति चंडीगढ़ पर भी चरितार्थ होती है। एक बार जो चंडीगढ़ आ जाता है, उससे फिर यहाँ से जाते नहीं बनता। यह वह मदिरा है जो एक बार होठों से क्या लगती है कि फिर छूटती ही नहीं है। अत्याधुनिक अलकापुरी चंडीगढ़ का जादू तो सिर चढ़के बोलता है। एक बार पंजाब के साथ हरियाणा की राजधानी क्या बनी तो फिर क्या मजाल थी हरियाणा की कि वह किसी और नगरी को हरियाणा की राजधानी बनाने के बारे में सोचने की हिमाकत कर सकता। चंडीगढ़ की तर्ज पर पंचकूला और मोहाली जैसे शहर बने तो सही, लेकिन वही कहावत चरितार्थ हुई कि असल असल है, और नकल नकल।
चंडीगढ़ भले ही लाहौर की तरह जगमगाती विरासत वाला शहर न हो, लेकिन चंडीगढ़ ने अपने पाँच दशकों की कालावधि में जो इतिहास रचा है, वह अपना उदाहरण स्वयं ही है। विभाजन की त्रासदी पर पंजाब का पश्चिमी भाग पाकिस्तान में शामिल हुआ और पूर्वी भाग भारत में। यही पूर्वी भाग भारत का वर्तमान पंजाब है, लेकिन वर्तमान पंजाब के अस्तित्व में आने के बाद उसके पास लाहौर जैसा कोई शहर नहीं था जिसे पंजाब की राजधानी बनाया जा सकता। यहीं से चंडीगढ़ के जन्म की कहानी शुरु होती है। पंजाब की राजधानी ऐसी होनी चाहिए जो किसी भी दृष्टि से लाहौर से कम न हो-यह विचार सबसे पहले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू के मन में आया। अंबाला से उनतालीस किलोमीटर की दूरी पर, अंबाला रोपड़ मार्ग पर और चड़ी मंदिर से दस से बारह किलोमीटर के अंतर पर छोटे-छोटे कई गाँव शिवालिक पर्वतमालाओं के चरणों में बसे थे और उनके दोनों ओर बहती हुई दो छोटी-छोटी नदियाँ हिमालय के पंख पखारती थीं। यही वह जगह थी जो अलकापुरी चंडीगढ़ के निर्माण के लिए चुनी गई थी।
चंडीगढ़ शहर की परिकल्पना को एक जीवित राष्ट्र-पुरुष के रूपक से भी समझा जा सकता है जिसके मस्तक पर उच्च न्यायालय विराजमान है। सचिवालय और न्यायाधीश निवास इसकी दो भुजाएँ हैं। शेष नगर उसका मध्य भाग है और केंद्रीयय तथा हरियाणा, पंजाब और स्वयं चंडीगढ़ संघ राज्य के कर्मचारियों के निवास स्थान इसके चरण हैं।
निरंतर विकासमान चंडीगढ़ अभी तक पचास से भी अधिक सैक्टरों में विभक्त है। इसमें मंत्रियों से संतरियाँ तक के लिए विभिन्न प्रकार के भवन निर्मित हैं जिनका विधिवत् उद्घाटन 7 अक्तूबर 1953 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्रप्रसाद ने किया था।
चंडीगढ़ शहर के वास्तुशिल्प की विशिष्ता इस बात में भी निहित है कि इसके प्रत्येक सैक्टर की निर्मिति एक स्वतंत्र उपनगरी की पद्धति पर हुई है। प्रत्येक सैक्टर की अपनी मार्कीट है तो अपनी डिस्पेंसरी और अपने बैंक भी हैं। यही नहीं, प्रत्येक सैक्टर के अपने पार्क भी हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण सैक्टरों में अपने डाकखाने भी हैं। सभी सैक्टर समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनमें सरकारी कर्मचारी भी रहते हैं और अधिकारी भी, व्यापारी भी रहते हैं और छोटे-छोटे कामगार भी। पंजाब और हरियाणा की संयुक्त रूप से राजधानी और संघीय राज्य होने के कारण भी चंडीगढ़ का अपना एक अलग चरित्र और हैसियत है। विधायकों, मंत्रियों के आवास हालांकि शहर की अत्याधुनिक बस्तियों में स्थित हैं, लेकिन उनके लिए कोई अलग सैक्टर निर्मित नहीं है।
नए मिजाज का शहर होने के कारण यहाँ सड़कें बहुत चौड़ी हैं जिनकी परिकल्पना पुराने चलन के शहरों में तो की भी नहीं जा सकती। हालांकि तेजी से बढ़ती आबादी और दूर-दराज के शहरों से रोजी-रोटी की तलाश में निरंतर यहाँ आने वाले लोगों के कारण चंडीगढ़ में भी अब भीड़ द्रुतगति से बढ़ रही है, फिर भी यह नगरी अभी महानगर में परिवर्तित नहीं हुई है। इसलिए प्रदूषण का प्रकोप अभी उतना नहीं बढ़ा है। फिर यहाँ सड़कों के किनारे पेड़ इतने बहुतायत में हैं कि उन्होंने इसे प्रदूषण से काफी हद तक बचा रहता है। नीम, पीपल, बड़ के पेड़ों ने तो जो हमारी सांस्कृतिक अस्मिता के प्रतीक हैं, इस नए मिजाज़ के शहर में मुश्किल से ही मिल पाते हैं, लेकिन सड़कों के किनारे लगे अमलतास, गुलमुहर, युकिलिप्टस और पगोड़ा के खुशबूदार वृक्ष जरूर इस शहर के चरित्र को एक अलग पहचान देते हैं।
प्रकृति भी इस अत्याधुनिक अलकापुरी पर विशेष मेहरबान है। तीन-चार दिन गर्मी पड़ी नहीं कि बारिश हो जाती है। इसलिए मौसम यहाँ प्रायः आनंददायक रहता है और दिल्ली जैसी पसीने की चिपचिपाहट यहाँ की रोजमर्रा की दिनचर्या को निरानंद नहीं करती।
चंडीगढ़ में सात सिनेमा हाल हैं तो टैगोर थिएटर भी है। पंजाब विश्वविद्यालय का ओपन एयर थिएटर रंगकर्मियों का तीर्थ है तो टैगोर थिएटर इस नगरी के सांस्कृतिक जीवन का दिल है। बेकार की चीजों से निर्मित ‘रॉक गार्डन’ नेकचंद की ईश्वर की सृष्टि की तरह एक समानांतर सृष्टि ही तो है जो दुनियाभर में एक विरल रचना के रूप में जानी जाती है। रोजगार्डन, बोटेनिकल गार्डन इस शहर के जन-जीवन की सौंदर्य प्रियता के प्रतीक हैं तो आर्टगैलरी अपनी तरह की एक ऐसी कला दीर्घा है जो कला-प्रेमियों को निरंतर कुछ नया करने की प्रेरणा देती रहती है। सुखना झील का भी अपना ही महत्त्व है। यह सैलानियों को तो लुभाती ही है, इसका चंद्राकार तट एक कलात्मक नमूना भी है।
सचिवालय भवन, विधानसभा भवन, उच्च न्यायालय भवन और पंजाब विश्वविद्यालय के भवन भी स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने हैं तो इंजीनियरिंग कॉलिज का भवन एक उड़ान भरते मॉडल का रूप होने के कारण विशुद्ध भारतीय कलाकृति ही प्रतीत होती है। हाईकोर्ट का मुख्य द्वारा देख कर फतहपुर सीकरी के बुलन्द दरवाजे का स्मरण हो आता है। विधानसभा भवन और हाईकोर्ट भवन में सीढ़ियों का प्रयोग न करके जयपुर के आमेर महल की भाँति ऐसी समतल गैलरी बनाई गई है कि उस पर बेबी आस्टिन कार सुविधा से चली जाती है। पंजाब विश्वविद्यालय के गाँधी भवन की स्थापत्य कला तो अद्भुत है। कृत्रिम जलाशय में स्थित गाँधी भवन की दूर से दिखाई देती प्राचीरें बड़ा ही मनोरम दृश्य उपस्थित करती हैं।
पंजाब विश्वविद्यालय के ठीक सामने पी. जी. आई. का भवन है। पी. जी. आई अर्थात् उत्तर भारत का सुप्रसिद्ध चिकित्सा संस्थान, जहाँ देश के हर कोने से निराश रोगी सैंकड़ों की संख्या में रोज ही इस अस्पताल की शरण में आते हैं। पी. जी. आई. सचमुच उत्तर भारत के जीवन में निराश रोगियों के लिए एक प्राणदायी उपहार सरीखा ही तो है।
अलकापुरी चंडीगढ़ अब अखबारों की नगरी के रूप में भी जाना जाने लगा है। यह इस शहर के चरित्र का एक नया आयाम है। यहाँ से अंग्रेजी के तीन-‘दी ट्रिब्यून’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, तथा हिंदी के चार-‘दैनिक ट्रिब्यून’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘अमर उजाला’, और ‘देश सेवक’, तथा पंजाबी के दो ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ और ‘देश सेवक’-प्रकाशित होते हैं। इस तरह से अलकापुरी चंडीगढ़ अब बाबूओं का शहर ही नहीं रहा है, सूचना प्रौद्योगिकी के रूप में भी पनपता जा रहा है।
हालाँकि चंडीगढ़ को जब-तब पंजाब को सौंपे जाने की खबर राजनीतिक गलियारों से सुनाई पड़ती रहती है, लेकिन चंडीगढ़ का चरित्र जिस तरह से लघु भारत के एक सटीक, रूपक के रूप में विकसित हो रहा है तो यही बेहतर होगा कि आने वाले दिनों में भी चंडीगढ़ का संघीय दर्जा यथावत् कायम रखा जाए और अलकापुरी चंडीगढ़ हरियाणा और पंजाब की संयुक्त राजधानी के रूप में भारत संघ के राज्यों में मुकुट की मध्य-मणि के रूप में विराजमान रहे।