संकेत बिंदु-(1) सांप्रदायिकता का अभिशाप (2) विभिन्न धर्मावलंबी (3) सांप्रदायिक दंगों की बढ़ती संख्या (4) सांप्रदायिक तुष्टीकरण (5) उपसंहार।
सांप्रदायिकता का अभिशाप जब अपना प्रभाव दिखाता है, तो जन और धन, दोनों की हानि करता है, संपत्ति का विध्वंस करता है। नर-नारियों की हत्या करता है, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों की लूट होती है और वाहनों या मूल्यवान् सामान की होली जलाई जाती है। मानव, मानव के रक्त का प्यासा हो जाता है।
सांप्रदायिक दंगे भारत माता के भाल पर भयंकर कलंक हैं। राष्ट्र की प्रगति के लिए सबसे बड़े बाधक हैं। कानून और व्यवस्था के शत्रु हैं। सुखी और शांतिपूर्ण जीवन के लिए भयंकर अभिशाप हैं।
राष्ट्र के प्रति व्यापक निष्ठा के मुकाबले किन्हीं भी क्षुद्र संकीर्ण निष्ठाओं के जगाने को’ सांप्रदायिकता’ का नाम दिया जा सकता है। ये संकीर्ण निष्ठाएँ हैं-धर्म पर आधारित संप्रदायों की निष्ठा।
भारत में विभिन्न धर्मावलंबी लोग रहते हैं-सनातन धर्मी, आर्यसमाजी, ब्राह्मसमाजी, शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध, कबीरपंथी, दादूपंथी, निरंकारी, सिक्ख, ईसाई, मुसलमान, पारसी आदि। ये धार्मिक संप्रदाय न केवल एक-दूसरे से लड़ते हैं, अपितु प्रत्येक संप्रदाय के अंदर भी विभिन्न वर्ग हैं, जो परस्पर टकराते हैं। मुसलमानों में शिया और सुन्नियों का, वोहदों और अहमदियों का, ईसाइयों में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंटों का, हिंदुओं में सवर्णों और हरिजनों का झगड़ा सामान्य घटनाएँ हैं।
सांप्रदायिक अभिशाप ने क्या-क्या गुल नहीं खिलाए। भारत-विभाजन सांप्रदायिक अभिशाप का अमिट कलंक है। पाकिस्तान का निर्माण सांप्रदायिक अभिशाप की ही देन है। लाखों लोगों की हत्या, नारियों का सतीत्व-हरण तथा कुमारियों के कौमार्य को भंग करने का अति निंदनीय क्रूर कर्म है। सहस्रों वर्षों से अपने पूर्व पुरुषों के घरों को छोड़ निष्कासित शरणार्थी जीवन बिताना सांप्रदायिक अभिशाप का ऐतिहासिक काला अध्याय है। मोपला विद्रोह, मुस्लिम लीग का एक्शन-डे, स्वर्ण-मंदिर पर सैन्य कार्यवाही, पंजाब और कश्मीर में निरीह हिंदुओं का कत्ल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में सामूहिक सिक्ख संहार, सेना में सिक्ख विद्रोह, 2 नवंबर 1990 को राम मंदिर के कार सेवकों की लाशों का ढेर; गणेशशंकर विद्यार्थी, स्वामी श्रद्धानंद तथा श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या इतिहास के पृष्ठों में काले अक्षरों में अंकित हैं।
क्या कारण है कि भारत में सांप्रदायिकता की अग्नि शांत होने की बजाए दावानल बनती जा रही है? वर्षानुवर्ष सांप्रदायिक दंगों की संख्या बढ़ती जा रही है। दंगों की उग्रता, तीव्रता और भीषणता प्रचंडतर होती जा रही है? संप्रदाय, पंथ या मजहब के प्रति कट्टरता और दुराग्रही प्रवृत्ति दृढ़तर होती जा रही है? सच्चाई यह है कि 1947 में जिस सांप्रदायिकता की अंत्येष्टि के लिए राष्ट्र ने भारत-विभाजन का विषैला घूँट पिया था, कांग्रेस के 45 वर्षीय शासन में वह भूत बनकर देश की शांति, समृद्धि तथा स्वातंत्र्य को भयभीत कर रहा है। अपने विषैले डंक से राष्ट्र की भावना और आत्मा को विषाक्त कर रहा है। सन् 2000 तक पहुँचते-पहुँचते वोट के लालची राजनीतिज्ञों ने मुसलमानों तथा ईसाइयों का पक्ष लेकर और हिंदू-हित की बलि देकर इस सांप्रदायिक सर्प को दूध पिलाकर देश का वातावरण विषाक्त बना दिया है।
सत्ता के मोह जाल में फँसकर शासन भयभीत है। शासन का भय राष्ट्र का विनाश करेगा। विश्व के दो प्रमुख धर्म (मुस्लिम तथा ईसाई) विश्व राजनीति में अपना वर्चस्व रखते हैं। अरब के पास तेल है। तेल के बिना विश्व पंगु है। ईसाई राष्ट्र उन्नति के चरम शिखर पर हैं। उनकी भृकुटी पर पड़ा जरा-सा बल विश्व को कँपा देता है। ऐसी स्थिति में भारत की केंद्रीयय सरकार मुसलमानों तथा ईसाइयों से डरती है। उनके विरुद्ध कोई कठोर पग उठाते हुए झिझकती है। भारत में सांप्रदायिक अभिशाप का यह भी एक कारण है
राजनीतिज्ञों के द्वारा सांप्रदायिक तुष्टिकरण सांप्रदायिकता की अग्नि में घी डालने के समान है। दोषी सांप्रदायिक तत्त्वों को दंडित न करना सांप्रदायिकता को खुली छूट देना है। इंग्लैण्ड में तो देशद्रोही मुसलमान मौलवी को निष्कासित किया जाता है, किंतु भारत की राजधानी में ही जामा मस्जिद के पूर्व इमाम अब्दुल बुखारी के देशद्रोहपूर्ण आचरण पर भी उसको बंदी बनाते सरकार डरती है। सांप्रदायिकता का संरक्षण ईसाई व मुसलमान जनता को राष्ट्रीय धारा में समान रूप से सम्मिलित न होने देने का षड्यन्त्र है।
अल्पसंख्यक मतावलंबी अपने-अपने धर्मों के प्रति आस्थावान् हैं। कट्टरता उनकी नस-नस में है, धर्म प्रचार उनका पावन कर्म है। स्वधर्म के प्रचार और प्रसार के लिए प्रत्येक बलिदान पर सिक्ख, मुसलमान तथा ईसाई गर्व करता है। तर्क के लिए इन धर्मों में स्थान नहीं। धर्म के नाम पर वे टूट सकते हैं, झुक नहीं सकते, समझौता नहीं कर सकते।
सांप्रदायिकता के अभिशाप से राष्ट्र की मुक्ति तभी संभव है, जब शासन सांप्रदायिक दंगों में बिना किसी दबाव के पक्षपात रहित रहकर दोषी व्यक्तियों को कठोर दंड दे। दूसरे, देश के कानून धर्म-विशेष पर आधारित न हों। जैसे-हिंदू तो बहु-विवाह निषेध के कानून से बद्ध है, किंतु मुसलमान नहीं। तीसरे, भारत के नागरिक होने के नाते सब में भारत के प्रति मातृभूमि, पितृभूमि तथा पुण्यभूमि के रूप में श्रद्धा उत्पन्न की जाए। चौथे, सब लोगों से समान रूप से भारत की पुरातन सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय धारा में एकरूप होने की ललक जागृत की जाए। पाँचवें, अल्पसंख्यकों का राजनीतिक संरक्षण बंद कर दिया जाए।