संकेत बिंदु-(1) राष्ट्र-निर्माण में गाँधी जी की भूमिका (2) देश का विभाजन और औद्योगिक विकास (3) संविधान का महत्त्व (4) देश-निर्माण में प्रधानमंत्रियों का सहयोग (5) राष्ट्र-निर्माण निरंतर चलने वाली प्रक्रिया।
स्वतंत्र भारत को उन्नत रूप देने वाले राजनेताओं में सर्वप्रथम पूज्य महात्मा गाँधी को स्मरण किया जाएगा तो द्वितीय स्थान पर स्वतंत्र भारत के भूतपूर्व उपप्रधानमंत्री लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को। पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वाधीन भारत निर्माण में तीसरे क्रम पर आते हैं।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संचालक महात्मा गाँधी ने राष्ट्र-निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया। इन्होंने देश को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। हरिजनों से प्रेम करना सिखाया। भारतवासियों में सांप्रदायिक एकता का मंत्र फूँका। सर्व-धर्म समभाव के दर्शन करवाए। गाँवों में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन की प्रेरणा दी तो शहरों में स्वदेशी वस्तुओं को स्वीकार करने पर बल दिया। उपदेश से अधिक आचरण पर जोर दिया।
यद्यपि देश-विभाजन का आधार द्विराष्ट्रवाद-सिद्धांत था। मुस्लिम बहुल प्रांतों को मिलाकर पाकिस्तान निर्माण हो चुका था; फिर भी, गाँधी जी ने मुसलमानों को अपनाया। धर्म के आधार पर देश-स्वातंत्र्य के दस्तावेज को तो स्वीकार किया, किंतु भारत स्वतंत्र होने पर इस सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया। देश को धर्म निरपेक्षता का मंत्र प्रदान किया।
भारत के औद्योगिक विकास का प्रारंभिक श्रेय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को है। देश को आत्म-निर्भरता की दिशा में अग्रसर करने के लिए उद्योग-पथ को अपनाना अनिवार्य था। फलतः बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण किया। पन-बिजली परियोजनाएँ चालू कीं। लोहे, इस्पात और रासायनिक खाद्य कारखानों का जाल बिछाया गया। देश को परमाणु शक्ति के मार्ग पर चलने को प्रोत्साहित किया।
भारत की निर्धनता और निरक्षरता, अंधविश्वास और अज्ञानता, रूढ़िवादिता, बीमारी, गन्दगी और भूख, इन सबको जड़मूल से उखाड़ फेंकने के लिए विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी (टेक्नोलोजी) की शरण में जाना जरूरी है। औद्योगिक, कृषि, चिकित्सा, प्रतिरक्षा, आदि अन्यान्य विविध क्षेत्रों में जो क्रमशः उन्नति हुई है, उसका संपूर्ण श्रेय पंडित नेहरू को है।
देश-संचालन में संविधान का विशेष महत्त्व है। इसका श्रेय है संविधान सभा अध्यक्ष डॉ. राजेंद्रप्रसाद के साथ-साथ विधानसभा निर्मात्री सात सदस्यीय समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर को जाता है। 26 जनवरी 1950 से लागू भारत का अपना संविधान भारत-निर्माण में रीढ़ की हड्डी बनी, जिस पर देश खड़ा है, संचालित है और प्रगति की ओर अग्रसर है।
राजनेताओं में लोकनायक जयप्रकाश नारायण का भी देश निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान है। एक ओर विनोबा का शिष्य जनकर उन्होंने भूदान तथा सर्वोदय द्वारा भूमिहीन किसानों, हरिजनों, पिछड़े वर्गों का उत्थान किया तो दूसरी ओर 14 अप्रैल 1972 को चम्बल घाटी के बर्बर दस्युओं का आत्म समर्पण कराकर उन्हें सुनागरिक जीवन अपनाने को प्रेरित किया। तीसरी ओर अप्रैल 1974 में ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा देकर देश को मदांध शासकों के प्रति जनता को जागृत किया। ‘जनता पार्टी’ का जन्म इसी संपूर्ण क्रांति पीड़ा का सुफल था।
नेहरू जी के पश्चात् आने वाले प्रत्येक प्रधानमंत्री ने देश–निर्माण में अपने ढंग से सहयोग दिया। श्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का उद्घाप देकर देश में सैन्य शक्ति तथा कृषि विकास पर समान रूप से बल दिया तो श्रीमती इंदिरा गाँधी ने देश की चहुँ ओर प्रगति और विकास पर बल दिया। देश को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने के लिए एक ओर उद्योगों का जाल बिछाया तो दूसरी ओर शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए केंद्रीयय विद्यालय संगठन खड़ा किया। शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए मुक्त विश्वविद्यालय खोले। परिवार नियोजन पर बल दिया। निर्धन वर्ग के हितार्थ ‘जनता क्वार्टर्स’ की नींव रखी। वैज्ञानिक प्रगति को और विशेष बल दिया। उपग्रह स्थापना उनकी देन है। श्री राजीव गाँधी ने इंदिरा जी की नीतियों को आगे बढ़ाया। हाँ, विश्वनाथ प्रतापसिंह ने छोटे किसानों के दस हजार रुपए तक के ऋण माफ करके तथा उपज का मूल्य बढ़ाकर कृषि विकास में योगदान दिया। अल्पमत सरकार के स्वामी नरसिंहराव ने बहूद्देशीय विदेशी कंपनियों को भारत प्रवेश का निमंत्रण दिया। देश के सौभाग्य से पुनः एक आत्मविश्वासी चाणक्य-पुत्र प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मिला जिसने विश्व के विकसित और अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्र के रोष की चिंता न करते हुए पोखरन में परमाणु परीक्षण कर देश के आत्म-विश्वास को जागृत किया। ‘कारगिल विजय’ द्वारा देश के स्वाभिमान को गौरवान्वित किया। विदेशी पूँजी तथा तकनीक का स्वागत करके देश की आर्थिक स्थिति को सदृढ़ता प्रदान की।
सच्चाई तो यह है कि राष्ट्र-निर्माण का कार्य निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं। इसमें छोटे-से-छोटे नगरपालिका पार्षद् से लेकर विधानसभा और संसद सदस्य तक, मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री तक, राज्यपाल ले लेकर राष्ट्रपति तक और इतना ही नहीं विरोधी दलों के राजनीतिज्ञों तक, सब अपने-अपने दृष्टिकोण, सामर्थ्य, सीमा तथा दृष्टिकोण से राष्ट्र-निर्माण में संलग्न रहे हैं और हैं।