संकेत बिंदु-(1) पूर्व समस्याओं का विकराल रूप (2) आर्थिक समस्या और स्थिर सरकार की समस्या (3) राजनीतिक और नौकरशाही की अकर्मण्यता की समस्या (4) सामाजिक समस्याएँ (5) बढ़ती जनसंख्या।
भारत की आधुनिक समस्याएँ उसकी पूर्व समस्याओं का विकराल रूप हैं और समाधान की दिशा में उठाए गए विवेक-हीन और असंगत उपायों का दुष्परिणाम है। स्वार्थ और दलहित से प्रेरित आत्मघाती दृष्टिकोण का अभिशाप है और है नेतृत्व के बौनेपन का स्पष्ट उदाहरण।
आज की राजनीतिक समस्याएँ राष्ट्र को अस्थिरता की ओर धकेल रही हैं। आर्थिक समस्याएँ राष्ट्र की समृद्धि के मार्ग में बाधक बनी हुई हैं। सामाजिक समस्याओं ने समाज का जीना दूभर कर रखा है। उग्रवाद, आतंकवाद और सांप्रदायिकता भारत में नागरिकों से जीवन जीने का अधिकार छीन रही है। उद्योगों के क्षेत्र में आत्म निर्भरता और स्वायत्तता को विदेशी सहयोग की बैसाखी की जरूरत पड़ गई है। जनसंख्या की वृद्धि कोढ़ में खाज पैदा कर रही है।
भारत की सर्वप्रमुख समस्या स्थिर केंद्रीयय सरकार की हैं। 1989, 1991 तथा 1996 से बाद के महानिर्वाचनों में किसी भी राष्ट्रीय दल को बहुमत न मिलना भारत के लिए अभिशाप है। कारण, अल्पमत सरकार देश की समस्याओं से सशक्त मनोबल से जूझने और प्रगति तथा समृद्धि की ओर अग्रसर होने में अक्षम रहती हैं।
आर्थिक समस्या आज प्रजा को निगलने के लिए मुँह बाए खड़ी है। अर्थ का अनर्थ हो चुका है। भारत विदेशों के अरबों रुपयों का कर्जदार है। महँगाई छलाँग लगाकर लगातार बढ़ रही है, जिसने मध्यवर्ग का जीना दूभर कर रखा है। देश का धनीवर्ग विदेशों में अपना धन रखकर भारत की आर्थिक रीढ़ को तोड़ने पर लगा है। बड़े-बड़े आर्थिक स्केण्डलों (घोटालों) ने देश की अर्थ नींव को हिला दिया है। काले धन के वर्चस्व ने देश की प्रतिष्ठा को ही काला कर रखा है। पाकिस्तान द्वारा पाँच सौ रुपए के जाली नोटों के प्रचलन ने देश की मुद्रा पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया है। सरकारी क्षेत्र के उद्योग निरंतर करोड़ों रुपए का घाटा देकर आर्थिक स्थिति को जटिल बनाने पर तुले हैं। दूसरी ओर भारत की 40 प्रतिशत जनता गरीबी की सीमा रेखा से नीचे जीवन जीने को विवश है।
राजनीतिक समस्याओं ने देश के चित्र और चरित्र को बिगाड़ दिया है। चरित्रविहीन राजनीति ने देश की दुर्गति करने में कसर नहीं छोड़ी। अपराधियों के राजनीतिकरण ने देश में ‘चरित्र’ की व्याख्या ही बदल दी है। आज देश में व्याप्त उग्रवाद, सांप्रदायवाद भारत की तुष्टिमूलक प्रवृत्ति और वोट प्राप्ति की देन हैं, जो भस्मासुर की तरह भारत को ही निगल रहे हैं। संविधान में जाति, संप्रदाय, वर्ग विशेष, प्रांत-विशेष के विशिष्ट अधिकार तथा संरक्षणवाद ने बिभाजन और विभेद का राक्षस खड़ा कर रखा है। नेतागण लोकतंत्र की दुहाई देते हैं, पर कार्य किसी तानाशाह से कम का नहीं करते। भ्रष्ट और देश-द्रोही तत्त्व राजनीतिक आँचल में सुरक्षा पा रहे हैं।
भारत की बड़ी समस्याओं में से एक है नौकरशाही की अकर्मण्यता। राजकीय कर्मचारी चाहे वह किसी भी पद पर आसीन हो, कार्य को तत्काल और सुचारू रूप से करने में खुश नहीं। परिणामतः कार्यपालिका लंगड़ी चाल से चल रही है, जो देश की सुचारु गति पर अर्ध विराम लगा रही है। ऊपर से भ्रष्टाचार ने कार्यपालिका के मुँह में खून लगा दिया है, जिससे राष्ट्र की आत्मा ही हिल गई है।
आज देश में अनेक सामाजिक समस्याएँ भी तांडव नृत्य कर रही हैं। दहेज ने विवाह पूर्व और विवाहोपरांत जीवन में कैंसर पैदा कर दिया है। ऊँच-नीच के भेद-भाव ने समस्त समाज को ही अन्त्यज बना दिया है। नारी के शोषण, उत्पीडन और बलात्कार ने ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’ के आदर्श को लांछित कर दिया है।
समाज से अपनत्व की भावना समाप्त होती जा रही है। पुत्र में वैयक्तिक सुखोप-भोग की वृत्ति बढ़ रही है; इसलिए वह माता-पिता से विद्रोह पर उतर आया है। व्यक्तिगत अहं ने पारिवारिक जीवन को नष्ट कर दिया है। समाज में संवेदना ही समस्या बन गई है।
आज का युवक सुरा, सुंदरी तथा मादक पदार्थों के सेवन में आत्मविस्तृत हो रहा है। वह अपने शरीर पर अत्याचार कर रहा है और कर रहा है मन पर बलात्कार। युवा पीढ़ी को इस आत्महत्या से बचाने की समस्या विराट् और विनाशकारी दानव बनकर खड़ी है। युवा पीढ़ी की यह बरबादी राष्ट्र को ही तबाह कर देगी।
बढ़ती जनसंख्या भी भारत की गहन समस्या है। इसने देश के विकास कार्यों को बौना, जीवनयापन को अत्यंत दुरूह तथा जीवन-शैली को उच्छृंखल और कुरूप बना दिया है। परिणामतः आज भारत की 40 प्रतिशत जनता गरीबी की सीमा रेखा से नीचे जीवनयापन करने को विवश है। घर के अभाव में नीलगगन उसकी छत है और भूमि उसकी शय्या। वह भूखे पेट को शांत करने के लिए असामाजिक कृत्य करती है।
भारत के उद्योगों को आत्मनिर्भर बनाने, अपने पैरों पर खड़ा करने की भी समस्या है। कारण, विदेशी पूँजी और टेक्नीक भारतीय उद्योग को परतंत्रता के लौह-पाश में जकड़ती जा रही हैं। आज विदेशी पूँजी और टेक्नीक ने भारत में विदेशी बहुद्देशीय कंपनियों का साम्राज्य स्थापित कर दिया है। भारत का कुटीर उद्योग और लघु उद्योग मर रहे हैं और औद्योगिक समूहों की आर्थिक स्थिति डाँवाँडोल है, उनके पैर लड़खड़ा रहे हैं।
वस्तुतः आज भारत अनेक समस्याओं का घर बन गया है। वह समस्याओं से घिरा हुआ है, आहत है, पीड़ित है। इनके दो प्रमुख कारण हैं-समस्या की सही पहचान न होना और उस पर पकड़ न होना तथा सत्ता पक्ष और राजनीतिज्ञों की बदनीयती।