संकेत बिंदु- (1) विकास गति अवरुद्ध (2) जनसंख्या वृद्धि के कारण (3) वोट बैंक, जनसंख्या-नियंत्रण में बाधा (4) पाकिस्तानी तथा बंगला देशी नागरिकों का अवैध रूप से रहना (5) उपसंहार।
विकासशील भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या उसकी विकास गति को अवरुद्ध करेगी। जीवन जीने के लिए अत्यावश्यक पदार्थों से वंचित करेगी। जीवन-मूल्यों पर प्रश्न-चिह्न लगाएगी। आनंद का हरण कर विश्व-प्रांगण में भारत के सम्मान को ठेस पहुँचाएगी।
जनसंख्या किसी भी राष्ट्र की शक्ति होती हैं, शोभा होती है। जनसंख्या के बल पर ही राष्ट्र सुख, समृद्धि और वैभव प्राप्त कर सकता है। विकसित राष्ट्र भी अपनी आंतरिक जन-शक्ति के बल पर विश्व में गर्व से अपना भाल ऊँचा कर सकते हैं। किंतु जनसंख्या का अत्यधिक बढ़ जाना राष्ट्र के लिए अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर देता है।
भारत की जनसंख्या 1951 में लगभग 36 करोड़ थी और सन् 2000 में यह संख्या एक अरब से अधिक हो गई है। यदि जनसंख्या वृद्धि की यही गति रही तो दो दशक बाद भारत चीन से भी अधिक जनसंख्या वाला हो जाएगा।
भारत में जनसंख्या वृद्धि के मुख्यतः तीन कारण हैं-(1) काम में विवेक की कमी। (2) सत्ताधारियों में इच्छा-शक्ति का अभाव और (3) वोट बैंक का मोह।
भारत की लगभग 35 प्रतिशत जनसंख्या अशिक्षित है। लगभग इतनी ही जनता जीवन स्तर से नीचे का जीवन जीती है। अशिक्षा और गरीबी के मध्य विवेक का स्वर अब रुद्ध हो जाता है। काम ही उनके आनंद का एक मात्र स्रोत हैं, अतः निर्बाध रूप में वे बच्चे पैदा करते हैं। ये बच्चे गरीबी में जन्म लेते हैं, पलते हैं और युवा होकर समाज-द्रोही बनते हैं। वीर्यविहीन काम का आनंद उनकी समझ के बाहर है। ऐसे नर-नारियों का जबरदस्ती वंध्यकरण करके उन्हें प्रजनन अधिकार से वंचित कर देना चाहिए।
आपत्काल में जनसंख्या नीति का कठोरता से पालन हुआ। दो संतानों के माता-पिता को नसबंदी करवाने के लिए विवश किया गया। परिणाम सुखद हुआ। जन्मदर में गिरावट आई। जन्मदर गिरी, किंतु इंदिरा जी और उनकी पार्टी ‘इंदिरा कांग्रेस’ लोकसभा चुनाव में हार गई। सत्ता से वंचित रह गई। परिणामतः जनसंख्या नीति का कठोरता से पालन सत्ता से हटने का कारण माना जाने लगा। इसलिए इंदिरा जी के बाद जब मोरार जी देसाई या उसके बाद जो सरकारें आई उन्होंने इस विषय में मौन धारण कर लिया। स्वयं इंदिरा जी पुनः प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने इस विषय में आग्रहपूर्ण तेवर नहीं दिखाए। अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने जो जनसंख्या नियंत्रण नीति बनाई, उसका कार्यान्वयन राज्य सरकारों पर छोड़ दिया। राज्य सरकारें जनसंख्या नियंत्रण के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं। इसलिए अनेक राज्यों ने जनसंख्या आयोग का गठन ही नहीं किया। यह है राज्य सरकारों की इच्छा-शक्ति का अभाव। किंतु उसके पश्चात् जनसंख्या नियंत्रण का कोई प्रयासन हुआ।
जनसंख्या नियंत्रण में सबसे बड़ी बाधा है, वोट बैंक। बीसवीं सदी का सुशिक्षित नागरिक दो संतानों से अधिक की न तो कामना करता है, न उत्पन्न करता है, किंतु जहाँ संप्रदाय विशेष का धर्म शास्त्र ही चार विवाह और अनेक संतान उत्पन्न कर जनसंख्या बढ़ाने की आज्ञा देता हो, वहाँ सरकार घुटने टेक देती है। इस भिड़ के छत्ते को हाथ लगाकर अपना वोट बैंक कौन खराब करना चाहेगा?
दूसरी ओर, भारत में लगभग एक करोड़ पाकिस्तानी तथा बंगला देशी नागरिक अवैध रूप से रहते हैं। वोट के लोभी राजनीतिक दलों की कृपा से येन-केन-प्रकारेण ये वोटर भी हैं। इनमें से अधिकांश मुसलमान हैं। अल्पसंख्यक और वोटर ऐसे जनों को देश से बाहर कौन निकाल कर जनसंख्या पर नियंत्रण करना चाहेगा?
बंगला-देशी नागरिकों को भारत से निकालने पर तथाकथित धर्म-निरपेक्ष पार्टियों ने 1999 की लोकसभा में जो शक्ति प्रदर्शन किया, उसके पीछे वोट-बैंक नीति काम कर रही थी। ऊपर से निर्भय होकर ये अधिक संतान उत्पन्न करेंगे तो भारत की जनंसख्या बढ़ेगी ही।
बढ़ती जनसंख्या का सर्वाधिक हानिकर पक्ष है-विकास कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव। सरकार वर्तमान जनगणना के आधार पर जो भी विकास कार्य करती है, वह अपनी संपन्नता तक बढ़ती आबादी में खो जाती है। उदाहरणतः दिल्ली में हर साल 10-12 नए वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय खुलते हैं, फिर भी दिल्ली के स्कूल संपूर्ण शिक्षार्थियों को प्रवेश नहीं दे पाते। कमोवेश यही हाल रोजगार उपलब्ध कराने के लिए रोजगार के नए साधन निर्माण का है, चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करने का है, यातायात एवं संचार साधनों का है। सरकार कितना भी विकास योजनाओं को संपन्न करे, वे सब ऊँट के मुँह में जीरा साबित हो रही हैं। देश की खुशहाली, प्रगति, औद्योगिक विकास, आर्थिक उन्नति को बढ़ती हुई जनसंख्या रूपी सुरसा का मुख निगल जाता है।
जब तक केंद्रीयय तथा प्रांतीय सरकारें प्रबल इच्छा शक्ति से जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को नहीं अपनाएँगी, अल्पसंख्यक जन की पक्षधरता को नहीं त्यागेंगी तथा अवैध नागरिकों को बलपूर्वक उनके राष्ट्रों में जहाँ के वे नागरिक हैं, नहीं भेजेंगी, भारत में जनसंख्या पर नियंत्रण आकाश से तारे तोड़ लाना ही सिद्ध होगा।