संकेत बिंदु-(1) राजनीति से प्रेरित न्यायलय (2) राजनीति और न्यायलय का मिश्रण (3) दोनों एक ही थाली के चट्टे-बट्टे (4) राजनीति और न्यायलय दोनों भ्रष्ट (5) उपसंहार।
आज हमारे देश की राजनीति द्रोपदी के समान असहाय हो गई है और बाहुबली दागी और बागी नेताओं के चंगुल में बेचारी राजनीति अपना चीर बचाने के लिए छटपटा रही है। रही न्याय की बात, तो न्याय की देवी के हाथ में एक तराजू है और उसकी आँख पर आजादी से पहले से ही एक काली पट्टी बँधी है जो आज के परिवेश ने गांधारी का प्रतीक है। वैसे न्यायाधीश के ठीक पीछे ‘सत्यमेव जयते’ का वाक्य लगा है और इस वाक्य के नीचे ही हमेशा राजनीति के गंदले प्रभाव के कारण झूठ का बोलबाला देश में होता देखा गया है।
अदालतों में काले कोट पर लगा सफेद बैंड इस बात का खुला प्रतीक है कि अदालतों में न्याय केवल ‘उड़द पर लगी सफेदी के बराबर होता है।’ यदि ऐसा नहीं है तो राजनीति से प्रेरित होकर देश के हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट द्वारा जनता पर आदेश क्यों लादे जा रहे हैं? आज देश में प्रत्येक कार्य कोर्ट के आर्डर से ही संपन्न हो रहा है।
आज न्यायालय में राजनीति और राजनीति में न्यायालय आपस में इतना घुलमिल गया है कि अंतर कर पाना कठिन है कि आदेश न्यायालय का है या राजनीति का? अब तब राजनीति ने अपने वोट बैंक को सुरक्षित रखने के लिए न्यायालय को आगे कर जनता को परेशान किया है, उदाहरण के लिए-‘हेलमेट’ का स्कूटर चालक और मोटर साइकिल चालक को पहनना अनिवार्य है साथ ही पीछे बैठी सवारी को भी हैलमेट पहनना अनिवार्य है, यह आदेश कोर्ट द्वारा जारी किया गया।
प्रदूषण समस्या के नाम पर दिल्ली में ‘सी. एन. जी.’ वाहनों के लिए अनिवार्य बनाना भी कोर्ट का आदेश था। कुछ वाहन मालिक सड़कों पर भी आए, हड़तालें भी हुई, नेताओं के पास भी लोग फरियाद लेकर पहुँचे, मगर नेताओं ने भी अदालत का आदेश कहकर मगरमच्छ जैसे आँसू बहा दिये। आदेश का भी पालन हो गया और नेताओं का वोट बैंक भी सुरक्षित रहा, यह राजनीति बनाम न्यायालय नहीं और क्या कहा जाएगा? बेंकट हाल नेताओं के इशारे पर बनते हैं, भू-माफिया नेताओं के पालतू होते हैं, मगर इन भू-माफियों ने नेताओं को हिस्सा देना बंद कर दिया तो राजनैतिक प्रभाव से अदालत के आदेश आ गए कि बेंकट हाल में शादियाँ और अन्य कार्यक्रम वहीं संपन्न हो सकेंगे जहाँ साठ फुट चौड़ी सड़क होगी, परिणामस्वरूप इस प्रकार के समारोह स्थल बंद कर दिए गए। अदालत के जजों ने आदेश जारी करते समय यह क्यों न ध्यान दिया कि दिल्ली के अनेक प्रमुख बाजारों का अन्य अनेक प्रमुख स्थानों पर सड़क साठ तो क्या तीस भी नहीं है, उस संकरी सड़क के बारे में कोई आदेश क्यों नहीं आया?
रिहायशी इलाकों में व्यापारिक गतिविधियों को बंद करने के आदेश भी न्यायालय ने दिये। प्रभावित लोग जब अपने क्षेत्र के पक्ष और विपक्ष के नेताओं के पास गए तो नेताओं ने अपने हाथ खड़े कर यह कहा कि यह तो कोर्ट का आदेश है, हम कुछ नहीं कर सकते। नेताओं की यह दोहरी चाल जनता को केवल परेशान करने के लिए है। नेता और राजनीति को तो केवल चुनाव के समय ही जनता का ध्यान आता है। चुनाव संपन्न होने के पश्चात् तो राजनीति और न्यायालय लगभग एक ही थाली के चट्टे-बट्टे बने दिखायी देते हैं। जैसे कहा जाता है कि, “ वक्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाया जाता है और वक्त निकलने पर तो बाप भी गधा बन जाता है, आज के नेताओं की यही परिभाषा सामने आती है।”
सी. बी. आई, आयकर के अधिकारियों द्वारा बड़े-बड़े नेताओं के घरों, कार्यालयों, फार्म हाऊसों में छापे मारे जाते हैं तो लाखों की बेनाम संपत्ति, आभूषण, नकदी सामने आती है। लेकिन राजनीति तब न्यायालय पर प्रभावी हो जाती है और परिणाम ‘ढाक के तीन पात’ अर्थात् ‘नंबर दो’ की इस प्रकार की कमाई के लिए शायद ही किसी नेता को दंड दिया हो सरकार ने, क्योंकि ‘सैंया भये कोतवाल फिर डर काहे का’ वाली कहावत चरितार्थ हो जाया करती है। वैसे भी न्यायालय हो या राजनीति यहाँ ‘हमाम में सभी नंगे।’ राजनीति के बिना न्याय और न्याय के बिना राजनीति हमारे भारत में तो चल ही नहीं सकती; क्योंकि कानून अंग्रेज़ी सरकार का बनाया हुआ है और राजनीति में शुद्ध भारतीय लोग अपना पैर जमाये बैठे हैं। हमारे देश का सबसे बड़ा उदाहरण यह भी है कि हमारे देश के मंत्रियों और नेताओं पर अनेक घोटालों के आरोप लगे, जिनमें चारा घोटाला, शेयर घोटाला, सूटकेस घोटाला, चीनी घोटाला, ताबूत घोटाला, तहलका, तेलगी और न जाने कौन-कौन-सा घोटाला देश में हुआ, आयोग बैठे, रिपोर्ट आथी, दूध का दूध, पानी का पानी न हो सका, क्योंकि राजनीति बनाम न्याय यही तो परिभाषित करता है। कवि मनोहर लाल ‘रत्नम् ‘ इस संदर्भ में अपनी कविता में कहते हैं-
चोर लुटेरे आ बैठे हैं, सत्ता के सिंहासन पर,
और डाकूओं का डेरा, सबसे ऊँचे आसन पर।
देश रसातल में जाता, यहाँ घोटाले बढ़ते हैं-
हम हैं सब मिट्टी के माधो, सच कहने से डरते हैं।
न्याय की देवी की आँख पर काली पट्टी सत्यमेव नयते का बदलता अर्थ, अपराधी को खुली छूट, देश की पुलिस असमर्थ। जिस देश में इतनी विशेषताएँ हों वहाँ भला न्यायालय में राजनीति का खुला प्रवेश नहीं होगा तो क्या होगा? देश की जनता को तो केवल भगवान भरोसे से ही रहना चाहिए क्योंकि भारत देश की न तो राजनीति पवित्र है और न ही न्याय सच्चा मिल पाता है।