हिंदी साहित्य में नई कविता

संकेत बिंदु-(1) नए पत्ते के प्रकाशन से आरंभ (2) कविता की मूल स्थापनाओं में मुख्य तत्त्व (3) कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ (4) समसामायिक और भाषा में खुलापन का चित्रण (5) उपसंहार।

जिस काव्य के ऊपर मात्र प्रयोगवाद का विवादास्पद आरोप और प्रत्यारोप लगाया जा रहा था, उससे भिन्न स्तर पर सर्वथा विषयवस्तु की नवीनता को लेकर नई कविता को प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता अनुभव करके सन् 1953 में ‘नए पत्ते’ का प्रकाशन हुआ। सन् 1954 में जगदीश गुप्त तथा रामस्वरूप चतुर्वेदी के संपादन में प्रकाशित होने वाला संकलन ‘नई कविता’ में सर्वप्रथम अपने समस्त संभावित प्रतिमानों के साथ प्रकाश में आयी।’ आलोचना’ पत्रिका के कुछ अंकों द्वारा इस नई काव्य-प्रवृत्ति में आंदोलनात्मक त्वरा आई और इसकी वैचारिक पीठिका बनी।

नई कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

(1) यथार्थवादी अहंवाद-यथार्थ की स्वीकृति के साथ-साथ कवि अपने अस्तित्व को उस यथार्थ का अंश मानकर उसके प्रति जागरूक अभिव्यक्तियाँ देता है-

तो हमें स्वीकार है वह भी / उसी में रेत, होकर-

फिर छनेंगे हम / जमेंगे हम कहीं फिर पैर टेकेंगे।

कहीं फिर भी खड़ा होगा, नए व्यक्तित्व का आकार।

मातः ! उसे फिर संस्कार तुम देना।

-अज्ञेय

(2) व्यक्ति-अभिव्यक्ति की स्वच्छंदता-आत्मानुभूति की समस्त संवेदना को बिना

किसी आग्रह के रखने की चेष्टा है-

जहाँ नंगे अंधेरों को / और भी उघाड़ता रहता है

एक नंगा तीखा, निर्मम प्रकाश-

जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते।

केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य, तथ्य-

कितनी बार मुझे / खिन्न, विकल, संत्रस्त

कितनी बार!

-अज्ञेय

(3) परंपरागत मूल्यों की अप्रासंगिकता-नई कविता के लिए मूल्य न सनातन है, न अंतिम और न निरपेक्ष मोहभंग-चिंतन का यहीं से आरंभ होता है। यह चिंतन परंपरागत मूल्य-व्यवस्था को नकारता हुआ भी मूल्य-स्तर पर संक्रांत है, क्योंकि वह मानव मूल्यों की वांछा की सापेक्षता में है-

संकल्प-धर्मा चेतना का रक्त प्लावित स्वर हमारे ही हृदय का गुप्त स्वर्णाक्षर प्रकट होकर विकट हो जाएगा।

-मुक्तिबोध

(4) लघुता के दर्शन-नई कविता में व्यक्ति के स्वत्व और अस्तित्व-बोध के प्रश्न को जन-सामान्य की संवेदना के स्तर पर आंका गया है। इसे लघुमानव या लघुता का दर्शन भी कह सकते हैं। नई कविता में क्षण की महत्ता और लघु मानव की प्रतिष्ठा जीवन के प्रति संसक्ति और स्वीकार के भाव से प्रेरित है-

सारा जीवन मेरा साधारण ही बीता।

वह सुबह उठा तो काम-काज दफ्तर फाइल।

झिड़की-फटकारें वही वही कहना-सहना।

-कीर्ति चौधरी

(5) आधुनिक यथार्थ से द्रवित व्यंग्यात्मक दृष्टि-जीवन की कटुताओं और विषमताओं के प्रति कवि की व्यंग्यपूर्ण भावनाएँ व्यक्त हुई हैं-

बुद्धि का भाल ही फोड़ दिया।

तर्कों के हाथ उजाड़ दिए

जम गए, जाम हुए, फँस गए

अपने ही कीचड़ में धँस गए !!

विवेक बघार डाला स्वार्थी के तेल में

आदर्श खा गए।

— मुक्तिबोध

(6) समसामयिकता का संपूर्ण चित्रण-रस-रोमांच के साथ-साथ आधुनिकता और समसामयिकता का प्रतिनिधित्व संपूर्ण रूप में व्यक्त हुआ है-

अब, जब हम / हर तरह से टूट चुके हैं।

अपना ही प्रतिबिंब / हमें दिखाई नहीं देता।

अपनी ही चीख / गैर की मालूम पड़ती है।

एक आखरी बयान / जीने और मरने का।

हम दर्ज कराना चाहते हैं।  

वे छीनने आए हैं / हमसे हमारी भाषा।

-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

(7) बिंब-बहुला कविता-चित्रमयता और अनुशासित शिल्प जीवन के नए संदर्भों में उभरनेवाली अनुभूतियों, सौंदर्य-प्रतीतियों और चिंतन आयामों से सम्पृक्त बिंब ग्रहण करता है। लोक-जीवन में लिए नए बिम्बों के माध्यम से लोक-जीवन की जटिल अनुभूतियों और प्रश्नों को ध्वनित करता है। इसलिए बिंब नई कविता की मूल छवि है-

रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ

लेकिन मुझे फैंको मत

क्या जाने कब

इस दुरूह चक्रव्यूह में

अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ

कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाए।

-धर्मवीर ‘भारती’

(8) भाषा में खुलापन और ताजगी, लोक शब्दों का चयन-लोक शब्द और नए शब्दों (टोटो, भभके-खिंचा, ठिठुरन, ढसकना, डाकती, फुनगियाती आदि) का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है।

पहाड़ियों से घिरी हुई / इन छोटी-सी घाटी में

ये मुँह झाँसी चिमनियाँ बराबर / धुआं उगलती जाती हैं।

नई कविता भाव-बोध के स्तर पर अनेक दृष्टि से पूर्ववर्ती काव्य-प्रवृत्तियों से भिन्न है। यह भिन्नता मात्र उद्देश्य गत नहीं, दृष्टिगत भी है। जीवन के प्रवाह में उसकी संदर्भ युक्त अभिव्यक्ति नई कविता का भावबोध है। संदर्भ विशेष में प्रत्येक वस्तुस्थिति के प्रति सापेक्ष मूल्यों का आग्रह इसकी मनोनीत नियति न होकर आत्मगत सत्य है। इसलिए उसमें न छायावाद की भाँति उदात्त के नाम पर पलायन करने की प्रवृत्ति है, न प्रगतिवाद के नाम पर कोई सांप्रदायिक (साम्यवादी) आग्रह। प्रयोगवादी कविता में प्रयोग बाह्य शिल्पिक था जबकि नई कविता में प्रयोग पूरे संरचनात्मक तंत्र में व्याप्त है।

दूसरी ओर, नई कविता का कवि पूर्ववर्ती काव्यधारा से भिन्न यथार्थ और जीवन को एक साथ वहन करते हुए भुक्त क्षणों के दायित्वों के प्रति आग्रहशील है।

नई कविता के कवियों में प्रमुख नाम हैं-सर्वश्री अज्ञेय, गिरिजाकुमार माथुर, भवानीप्रसाद मिश्र, शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर ‘भारती’, कुँवर नारायण, मुक्तिबोध, केदारनाथसिंह, रामदरश मिश्र लक्ष्मीकांत वर्मा।

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