(1556 – 1626)
रहीम का जन्म लाहौर (अब पाकिस्तान) में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। इनकी नीतिपरक उक्तियों पर संस्कृत कवियों की स्पष्ट छाप परिलक्षित होती है। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे।
रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे।इनके दोहे सर्वसाधारण को आसानी से याद हो जाते हैं। इनके नीतिपरक दोहे ज़्यादा प्रचलित हैं, जिनमें दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।
रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं: रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली, बरवै, भाषिक भेदवर्णन। ये सभी कृतियाँ ‘रहीम ग्रंथावली’ में समाहित हैं।
प्रस्तुत पाठ में रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं। ये दोहे जहाँ एक ओर पाठक को औरों के साथ कैसा बरताव करना चाहिए, इसकी शिक्षा देते हैं, वहीं मानव मात्र को करणीय और अकरणीय आचरण की भी नसीहत देते हैं। इन्हें एक बार पढ़ लेने के बाद भूल पाना संभव नहीं है और उन स्थितियों का सामना होते ही इनका याद आना लाज़िमी है, जिनका इनमें चित्रण है।
(1)
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
शब्दार्थ
- चटकाय – झटके से
- मत – नहीं
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम हमें यह बताने का प्रयास कर रहे हैं जीवन में प्रेम की बहुत आवश्यकता होती है इसके बिना जीवन नीरस हो जाता है। मनुष्य को कभी भी इस प्रेम रूपी धागे को अपने अहम के कारण नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि यह एक बार टूट जाता है तो फिर नहीं जुड़ता है और अगर जुड़ता भी है तो इसमें गाँठ पड़ जाती है। उस रिश्ते में फिर पहले जैसी मिठास नहीं रहती।
(2)
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥
शब्दार्थ
1.बिथा – व्यथा, दुःख, वेदना
2.गोय – छिपाकर
3.अठिलैहैं – इठलाना, मज़ाक उड़ाना
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम हमें यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि हमें अपनी पीड़ा व समस्याओं के बारे में दूसरों को नहीं बताना चाहिए। ऐसा करने पर लोग हमारे दुख व कष्ट को जानकर मन ही मन यह सोचकर प्रसन्न होंगे कि ठीक हुआ मैं इस समस्या से बच गया। वे हमारी समस्या का समाधान करने के बजाय हमारा उपहास करेंगे।
(3)
एकै साधे सब सधौ, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
शब्दार्थ
1.साधे – अनुकरण करना
2.मूलहिं – जड़
3.सींचिबो – सिंचाई करना, पौधों में पानी देना
4.अघाय — तृप्त
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम हमें यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि हमें अपने जीवन का एक ही लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और उसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देना चाहिए। ऐसा करने पर हमें अभीष्ट लक्ष्य ज़रूर प्राप्त होगा और एक बार लक्ष्य प्राप्त हो जाने के बाद हम वो सभी चीज़ें प्राप्त कर सकते हैं जिसकी कभी हमने कल्पना की थी।
(4)
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध—नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
शब्दार्थ
1.अवध – अयोध्या
2.नरेश – राजा
3.बिपति — मुसीबत, संकट
4.चित्रकूट — वनवास के समय श्री रामचंद्र जी सीता और लक्ष्मण के साथ कुछ समय तक चित्रकूट में रहे थे
5.अवत – आना
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम चित्रकूट के गुणों का बखान करते हुए कह रहे है कि यह जगह इतनी पवित्र और चमत्कारी है कि लोग अपने विपत्ति के दिनों में यहीं आते हैं। यहाँ पर आने वालों के सारे दुख और कष्ट दूर हो जाते है। प्रभु श्रीराम पर भी जब कष्टों का पहाड़ टूट पड़ा था और उन्हें 14 वर्षों का बनवास मिला तो वे भी अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ यहीं आए थे।
(5)
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥
शब्दार्थ
1.दीरघ – लंबा
2.अरथ – अर्थ
3.आखर – अक्षर
4.थोरे – थोड़ा
5.आहिं – हैं
6.नट – कलाकार
7.कुंडली – घेरा
8.सिमिटि – सिकुड़कर
9.कूदि – कूदना
10.चढ़ि – चढ़ना
11.जाहिं – जाना
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम दोहे की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि दोहे में अक्षर तो थोड़े ही होते हैं पर इसका अर्थ बहुत बड़ा और विशेष होता है। रहीम जी यहाँ दोहाकार की तुलना उस कुशल कलाकार से करते हुए कह रहे हैं कि जिस प्रकार दोहाकार कम से कम शब्दों में ज़्यादा से ज़्यादा बातें कह देता है और गागर में सागर भरने की उक्ति को चरितार्थ कर देता है उसी प्रकार कुशल कलाकार भी अपने शरीर को सिकोड़कर तंग मुँह वाले घेरे से निकल जाता है।
(6)
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
शब्दार्थ
1.धनि – धनी
2.जल – पानी
3.पंक – कीचड़
4.लघु – छोटा
5.जिय – जीव
6.पिअत – पीकर
7.अघाय – मन भरना
8.उदधि – सागर
9.पिआसो – प्यासा
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम सरोवर या कीचड़ वाले जल की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि ये ही धन्य हैं जिसका जल पीकर लघु जीव अपनी प्यास बुझाते हैं और दूसरी तरफ सागर है जहाँ से सारा संसार प्यासा लौट आता है। रहीम कहना चाहते हैं कि धनी होने का अर्थ यह नहीं कि आपने कितना धन संचय किया है बल्कि आपने कितना धन दूसरों के उपकार में लगाया है।
(7)
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
शब्दार्थ
1.नाद – संगीत
2.रीझि – प्रसन्न होकर
3.देत – देना
4.मृग – हिरण
5.हेत – कल्याण
6.समेत – साथ
7.पशु – जानवर
8.रीझेहु – प्रसन्न होकर
9.कछू – कुछ
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम कह रहे हैं कि संगीत की मधुर ध्वनि से प्रभावित होकर हिरण अपने प्राण तक न्योछावर कर देता है। इसी प्रकार कई मनुष्य ऐसे भी हैं जो संगीत और कला पर मोहित होकर प्रेम सहित धन अर्पित कर देते हैं पर वे नर बड़े ही तुच्छ श्रेणी के होते हैं जो कला और संगीत से प्रसन्न तो होते हैं, कला और संगीत से आनंदानुभूति करते हैं पर बदले में कुछ भी नहीं देते हैं। रहीम ने ऐसे नरों की तुलना पशुओं से की है।
(8)
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
शब्दार्थ
1.बिगरी – बिगड़ी
2.किन – उपाय
3.फाटे – फटा
4.माखन =मक्खन
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम कह रहे हैं कि हमें बहुत ही सोच-समझ कर बातचीत करनी चाहिए क्योंकि अगर हमारे कहे हुए कथन प्रसंग, व्यक्ति, स्थान और काल के हिसाब से सही न हुए तो बात बिगड़ सकती है और अगर एक बार बात बिगड़ जाए तो फिर वह नहीं बनती। इस बात को पुष्ट करने के लिए रहीम फटे हुए दूध का उदाहरण देते हुए कह रहे हैं कि फटे दूध को जितना भी मथने से मक्खन नहीं निकलता उसी प्रकार एक बार बात बिगड़ जाने पर वह दुबारा नहीं बनती।
(9)
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
शब्दार्थ
- देखि – देखकर
- बड़ेन – बड़ा
- लघु – छोटा
- डारि – छोड़ देना
- तरवारि – तलवार
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम कह रहे हैं कि हमें सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए। इस दुनिया में अपनी -अपनी जगह पर सभी की आवश्यकता हैं। हमें बड़े लोगों को देखकर उनसे संबंध स्थापित करते समय छोटे लोगों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार जहाँ सुई काम आती है वहाँ तलवार कुछ भी नहीं कर सकता।
(10)
रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
शब्दार्थ
1.निज – अपना
2.कोउ – कोई
3.बिपति – विपत्ति
4.सहाय – सहायता
5.ज्यों – जैसे
6.रवि – सूर्य
7.बचाय – बचाना
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम कह रहे हैं कि विपत्ति में सबसे पहले हमारी रक्षा हमारा संचित किया हुआ धन ही करता है। अगर हमारे पास धन होगा तो लोग यह सोचकर ज़रूर मदद करने आ जाएँगे कि इनकी मदद करने से हमारा भी कुछ लाभ हो जाएगा। ऐसा कहा भी जाता है कि उसे ही धन ऋण मिलता है जिसके आँगन में गेहूँ सूखता है। रहीम ने अपनी बातों को पुष्ट करने के लिए प्रकृति का एक सुंदर उदाहरण देते हुआ कहा है कि कमल के पूर्ण प्रस्फुटन में सूर्य की किरणें महत्त्वपूर्ण होती हैं पर बिना जल के कमल को सूर्य की किरणें भी नहीं बचा सकतीं।
(11)
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
शब्दार्थ
1.पानी – चमक, इज्ज़त, जल
2.बिनु – बिना
3.सून – सूना
4.ऊबरै – उठना
5.मोती – मुक्ता Pearl
6.मानुष – मनुष्य
7.चून – आटा
प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम कह रहे हैं कि पानी का बहुत महत्त्व है पानी के बिना मोती मोती नहीं रह जाता। अर्थात् जब मोती की चमक चली जाती है तो वह अपना मूल्य खो बैठता है, उसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा चली जाए तो वह समाज में नज़रें ऊँची करके नहीं चल सकता और अगर आटे में पानी न मिलाया जाए तो रोटी बना पाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए रहीम कह रहे हैं कि मोती के संदर्भ में चमक, मनुष्य के संदर्भ में इज्ज़त और आटे के संदर्भ में पानी का बहुत महत्त्व होता है।
1 – निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता?
उत्तर – प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति नहीं हो पाता क्योंकि प्रेम आपसी विश्वास और एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना से जुड़ा होता है और जब इसमें कड़वाहट आ जाती है तो पहले की भाँति न तो एक दूसरे के प्रति आपसी विश्वास रहता है और न ही एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना। अत: रिश्ते में गाँठ पड़ जाती है।
(ख) हमें अपना दुःख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है?
उत्तर – हमें अपना दुख दूसरों के सामने नहीं प्रकट करना चाहिए क्योंकि इससे लोगों को हमारी कमजोरी का पता चल जाता है और वक्त बेवक्त वे हमारी ही समस्या के बारे में हमसे बातें करके हमारे दुख को और भी दोगुना कर देते हैं। साथ ही साथ उनका व्यवहार भी हमारे प्रति बदल जाता है, वे हमारा मज़ाक उड़ाते हैं और सभा तथा दोस्तों की मंडली में हमारी ही चर्चा करने लगते हैं जैसे कि उन्हें हमारी बेबसी व मजबूरी की बहुत चिंता है।
(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?
उत्तर – रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को अधिक धन्य माना है क्योंकि पंक जल से अनेक जीवों की प्यास बुझ जाती हैं जबकि सागर किसी भी थलीय जीव की प्यास नहीं बुझा पाता है। रहीम के मतानुसार धनी वे नहीं हैं जिन्होंने बहुत सारा धन इकट्ठा किया हो बल्कि धनी तो सही मायनों में वो हैं जिसने परोपकार के लिए धन व्यय किया हो।
(घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?
उत्तर – एक को साधने से सब सध जाता है इस कथन का अर्थ यह है कि हमें अपने जीवन का एक ही लक्ष्य बनाना चाहिए और उसे प्राप्त करने के लिए जी तोड़ मेहनत करनी चाहिए। जब हमें हमारा लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा तब हम अपनी सारी इच्छाएँ पूरी कर सकते हैं। कहा भी गया है कि अगर आप एक साथ दो खरगोशों को पकड़ने का प्रयास करेंगे तो एक भी हाथ नहीं आएगा।
(ङ) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता?
उत्तर – जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी नहीं कर पाता क्योंकि जल ही कमल की असली संपत्ति है। जल से ही उसका अस्तित्व जुड़ा होता है। यहाँ सूर्य की किरणें उसे पूर्ण प्रस्फुटित होने में मदद तो करती हैं परंतु जब जल ही न रहे तो कमल खिलेगा कहाँ? अर्थात् मनुष्य के दुख का पहला साथी उसका अपना संचित किया हुआ धन है न कि सगे-संबंधी।
(च) अवध नरेश को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा?
उत्तर – अवध नरेश को चित्रकूट जाना पड़ा क्योंकि वे अपने पिता के वचनों का मान रखने के लिए 14 वर्षों का वनवास स्वीकार किए थे।
(छ) ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है?
उत्तर – नट कुंडली को समेटकर झट से ऊपर चढ़ जाने की कला में सिद्ध होता है।
(ज) ‘मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – रहीम कह रहे हैं कि पानी का बहुत महत्त्व है पानी के बिना मोती मोती नहीं रह जाता। अर्थात् जब मोती की चमक चली जाती है तो वह अपना मूल्य खो बैठता है, उसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा चली जाए तो वह समाज में नज़रें ऊँची करके नहीं चल सकता और अगर आटे में पानी न मिलाया जाए तो रोटी बना पाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए रहीम कह रहे हैं कि मोती के संदर्भ में चमक, मनुष्य के संदर्भ में इज्ज़त और आटे के संदर्भ में पानी का बहुत महत्त्व होता है।
(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों का आशय यह है कि प्रेम का संबंध एक बार टूटने से वह फिर नहीं जुड़ता है और अगर जुड़ भी जाए तो कभी भी पहले जैसा मधुर नहीं हो पाता।
(ख) सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम हमें यह बता रहे हैं कि हमें कभी भी अपना दुख दूसरों को नहीं बताना चाहिए। ऐसा करने पर एक तो उन्हें हमारी कमजोरी का पता चल जाएगा और दूसरा वे हमारा मज़ाक भी बनाएँगे।
(ग) रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में रहीम हमें जीवनोपयोगी उपदेश देते हुए कह रहे हैं कि हमें अपने जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दिन-रात एक कर देना चाहिए। ऐसा करने से हमें सफलता अवश्य मिलेगी।
(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में रहीम कह रहें हैं कि दोहे में शब्द भले ही थोड़े हो मगर उनके अर्थ बड़े और विशेष होते हैं जिन्हें हमें समयानुसार अपने प्रतिदिन के जीवन में उतारना चाहिए।
(ङ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों का आशय यह है कि संगीत पर मोहित होकर हिरण अपने प्राण तक न्योछावर कर देती है और संगीत की महानता और गहराइयों को समझने वाला प्रेमी हृदय अपने आपको धन सहित समर्पित कर देता है।
(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम हमें यह बता रहे हैं कि हमें सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए। अपनी-अपनी जगह पर सबकी उपयोगिता बनी हुई है जैसे जहाँ हमें सुई की आवश्यकता होगी वहाँ तलवार का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में रहीम हमें जीवनोपयोगी उपदेश देते हुए कह रहे हैं कि हमें अपनी प्रतिष्ठा को सदैव बनाए रखना चाहिए। यह प्रतिष्ठा उस जल की तरह होती है जो एक बार नीचे गिर जाने के बाद नहीं उठ सकती।
3 – निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है –
(क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।
उत्तर – चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।
उत्तर – रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
(ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।
उत्तर – रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥
2 -निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी
उत्तर – कविता के इन पंक्तियों का आशय यह है कि हमें जीवन पथ पर लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए। यह रास्ता बहुत ही कठिनाइयों से भरा हुआ होता है। इस मार्ग पर चलते समय हमें काफी कष्ट होगा। हमें अनेक कुर्बानियाँ देनी होंगी। ऐसी स्थिति में हम कमजोर पड़ सकते हैं और अपने पथ से भटक सकते हैं। इसी भटकाव से बचने के लिए कवि हमें यह शपथ दिला रहे हैं कि हमें अपना मार्ग किसी भी स्थिति में नहीं त्यागना है। मुसीबतों के समय हमें यह कल्पना कर धैर्य धारण करना चाहिए कि सफलता मिलने की असीम खुशी इस दुख और कष्ट से काफी बड़ी होगी।
(ख) चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों का आशय यह है कि मनुष्य को अपना जीवन सफल बनाने के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ेगा। इस संघर्ष के दौरान पसीने और खून का बहना सामान्य-सी बात हो सकती है। ऐसी स्थिति में भी हमें उस वीर सैनिक की तरह आगे बढ़ते ही रहना चाहिए जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए उस समय तक शत्रुओं से लड़ता है जब तक उसमें आखिरी साँस बची रहती है।
भाषा अध्ययन
ज्यों – जैसे
कछु – कुछ
नहिं – नहीं
कोय – कोई
धनि – धन्य
आखर – अक्षर
जिय – जीव
थोरे – थोड़े
होय – होता
माखन – मक्खन
तलवारि – तलवार
सींचिबो – सींचना
मूलहिं – मूल
पिअत – पीते ही
पिआसो – प्यासा
बिगरी – बिगड़ी
आवे – आए
सहाय – सहायक
ऊबरै – उबरे
बिनु बिन
बिथा – व्यथा
अठिलैहैं – इठलाएँगे
परिजाय – पड़ जाए
मुहावरे
1.फटे दूध से माखन निकालना – व्यर्थ परिश्रम करना
2.पानी चला जाना – इज्ज़त चला जाना
वाक्यांशों के लिए एक शब्द
1.अघाना – पेट भरकर खाना
2.लाख – सौ हज़ार
विलोम शब्द
1.प्रेम # घृणा
अनेकार्थी शब्द
1.मूल – मुख्य, जड़
2.जल – पानी, जलना
3.पानी – चमक, प्रतिष्ठा
पर्यायवाची
1.मृग – हिरण, सारंग
2.दूध – गोरस, क्षीर, दुग्ध
3.तलवार – असि, कृपाण, खड्ग
1 – ‘सुई की जगह तलवार काम नहीं आती’ तथा ‘बिन पानी सब सून’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर स्वयं करें।
2 – ‘चित्रकूट’ किस राज्य में स्थित है, जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर – यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों में हैं। हालाँकि चित्रकूट धाम मध्य प्रदेश में ही होना माना जाता है।
नीति संबंधी अन्य कवियों के दोहे/कविता एकत्र कीजिए और उन दोहों/कविताओं को चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर स्वयं करें।
परियोजना कार्य
‘जीवन संघर्षमय है, इससे घबराकर थमना नहीं चाहिए’ इससे संबंधित अन्य कवियों की कविताओं को एकत्र कर एक एलबम बनाइए।
उत्तर – छात्र अपने स्तर पर करें।