CBSE, NCERT, Class – IX, Sparsh, Chapter -14, Arun Kamal – Is Nae Ilake Me, Khushboo Rachte Hain Haath, अरुण कमल – नए इलाके में…खुशबू रचते हैं हाथ…  (HINDI Course B)

(1954)

अरुण कमल का जन्म बिहार के रोहतास ज़िले के नासरीगंज में 15 फरवरी 1954 को हुआ। ये इन दिनों पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं। इन्हें अपनी कविताओं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इन्होंने कविता-लेखन के अलावा कई पुस्तकों और रचनाओं का अनुवाद भी किया है।

अरुण कमल की प्रमुख कृतियाँ हैं: अपनी केवल धार, सबूत, नए इलाके में, पुतली में संसार (चारों कविता-संग्रह) तथा कविता और समय (आलोचनात्मक कृति)। इनके अलावा अरुण कमल ने मायकोव्यस्की की आत्मकथा और जंगल बुक का हिंदी में और हिंदी के युवा कवियों की कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया, जो ‘वॉयसेज’ नाम से प्रकाशित हुआ।

अरुण कमल की कविताओं में नए बिंब, बोलचाल की भाषा, खड़ी बोली के अनेक लय-छंदों का समावेश है। इनकी कविताएँ जितनी आपबीती हैं, उतनी ही जगबीती भी। इनकी कविताओं में जीवन के विविध क्षेत्रों का चित्रण है। इस विविधता के कारण इनकी भाषा में भी विविधता के दर्शन होते हैं। ये बड़ी कुशलता और सहजता से जीवन-प्रसंगों को कविता में रूपांतरित कर देते हैं। इनकी कविता में वर्तमान शोषणमूलक व्यवस्था के खिलाफ़ आक्रोश, नफ़रत और उसे उलटकर एक नयी मानवीय व्यवस्था का निर्माण करने की आकुलता सर्वत्र दिखाई देती है।

प्रस्तुत पाठ की पहली कविता ‘नए इलाके में’ में एक ऐसी दुनिया में प्रवेश का आमंत्रण है, जो एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है। यह इस बात का बोध कराती है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं होता। इस पल-पल बनती-बिगड़ती दुनिया में स्मृतियों के भरोसे नहीं जिया जा सकता। इस पाठ की दूसरी कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ सामाजिक विषमताओं को बेनकाब करती है। यह किसकी और कैसी कारस्तानी है कि जो वर्ग समाज में सौंदर्य की सृष्टि कर रहा है और उसे खुशहाल बना रहा है, वही वर्ग अभाव में, गंदगी में जीवन बसर कर रहा है? लोगों के जीवन में सुगंध बिखेरनेवाले हाथ भयावह स्थितियों में अपना जीवन बिताने पर मजबूर हैं! क्या विडंबना है कि खुशबू रचनेवाले ये हाथ दूरदराज़ के सबसे गंदे और बदबूदार इलाकों में जीवन बिता रहे हैं। स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान करनेवाले ये लोग इतने उपेक्षित हैं! आखिर कब तक?

1.प्राध्यापक – Lecturer

2.अनुवाद – Translation, तर्जुमा

3.आत्मकथा – Biography

4.विविध – विभिन्न

5.रूपांतरित – Transformation

6.शोषण – Exploitation

7.व्यवस्था – System

8.खिलाफ़ – Against

9.आक्रोश – गुस्से में

10.आकुलता – कुछ करने की उत्सुकता

11.सर्वत्र – सभी जगह

12.आमंत्रण – न्योता

13.स्मृतियों – यादें

14.सामाजिक – Social

15.बेनकाब – Expose

16.कारस्तानी – किया हुआ काम

17.भयावह – डरावना

18.मजबूर – बेबस

19.विडंबना – दुविधा

20.उपेक्षित – Deprived

21.इलाका – क्षेत्र

22.अकसर – प्रायः, बहुधा

23.ताकता – देखता

24.ढहा – गिरा हुआ, ध्वस्त

25.ठकमकाता – धीरे-धीरे, डगमगाते हुए

26.स्मृति – याद

27.वसंत – छह ऋतुओं में से एक

28.पतझड़ – एक ऋतु जब पेड़ों के पत्ते झड़ते हैं

29.वैसाख (वैशाख) – चैत (चैत्र) के बाद आने वाला महीना

30.भादों – सावन के बाद आने वाला महीना

31.अकास (आकाश) – गगन

32.नालों – घरों और सड़कों के किनारे गंदे पानी के बहाव के लिए बनाया गया रास्ता

33.कूड़ा-करकट – रद्दी, कचरा

34.टोले – छोटी बस्ती

35.ज़ख्म – घाव, चोट

36.मुल्क – देश

37.केवड़ा – एक छोटा वृक्ष जिसके फूल अपनी सुगंध के लिए प्रसिद्ध हैं

38.खस – पोस्ता

39.रातरानी – एक सुगंधित फूल

40.मशहूर – प्रसिद्ध

प्रस्तुत कविता में कवि ने व्यक्ति के जीवन को संघर्षमय कहते हुए इससे घबराए बिना निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। कवि कहते हैं कि जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है। जीवन पथ ‘अग्नि पथ’ के समान है। राह में भले ही छायादार वृक्ष मिलें (आराम करने की जगह), परंतु व्यक्ति को छाया की इच्छा किए बिना निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। कवि मनुष्य को कर्मठतापूर्वक आगे बढ़ने का संदेश देते हुए कहते हैं कि तेरे सामने कठिनाइयों और विभिन्न बाधाएँ हैं परंतु तू कभी मत घबराना। शपथ लो कि तुम कभी भी नहीं थकोगे, नहीं रुकोगे तथा न ही वापस मुड़ने की बात करोगे। कवि आँसू, पसीने तथा रक्त से लथपथ निरंतर आगे बढ़ते मनुष्य के इस दृश्य को महान मानता है। कवि के अनुसार यह अद्भुत दृश्य मनुष्य की निरंतरता कर्मठता और जुझारूपन ही उसे आम से खास बनाती है।

इन नए बसते इलाकों में

जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान

मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ

धोखा दे जाते हैं पुराने निशान

खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़

खोजता हूँ ढहा हुआ घर

और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ

मुड़ना था मुझे

फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का

घर था इकमंज़िला

और मैं हर बार एक घर पीछे

चल देता हूँ

या दो घर आगे ठकमकाता

 

कवि नए इलाकों में हो रहे निर्माण की गति के साथ-साथ उससे उत्पन्न होने वाली पहचान की समस्या को उजागर करते हुए कह रहे हैं कि वे अधिकतर अपने घर का रास्ता भूल जाते हैं। पहचान के लिए प्रयोग में लाए जाने वाला पीपल का पेड़ और ढहा हुआ मकान धोखा दे जाते हैं क्योंकि उसके स्थान पर नवनिर्माण हो चुका है। खाली जगह का नामों-निशान तक नहीं रहा। कवि हर बार या तो गंतव्य से एक घर पीछे ही रह जाता है या फिर दो घर आगे ठकमकाता रहता है। कवि के कहने का आशय यह है कि रोजगार के उद्देश्य से रोज़ाना हज़ारों-हज़ारों लोग शहर आ जाते हैं जिससे एक तो शहर की जनसंख्या बढ़ जाती है दूसरा और बहुत महत्त्वपूर्ण यह कि इससे ग्रामीण सभ्यता का धीरे-धीरे लोप होता जा रहा है जिसका एकमात्र कारण है सरकार की गलत नीतियाँ।

 

 

यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है

रोज़ कुछ घट रहा है

यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं

एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया

जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ

जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ

अब यही है उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ

और पूछो – क्या यही है वो घर?

समय बहुत कम है तुम्हारे पास

आ चला पानी ढहा आ रहा अकास

शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।

 

कवि कहते हैं कि आज स्मृति पर भरोसा नहीं रहा। आज नित्य नए-नए निर्माण हो रहे हैं। कवि को प्रत्येक दिन परिवर्तन का आभास हो रहा है। पुरानी यादें एक दिन में मिट जा रही हैं। कवि को ऐसा लगता है कि एक दिन में वसंत से पतझड़ का मौसम और वैसाख से भादों का मौसम आ जा रहा हो। अब उन्हें यही ठीक लगता है कि प्रत्येक घर का दरवाजा खटखटाया जाए और पूछा जाए कि क्या यह वही घर है जिसे मैं ढूँढ़ रहा हूँ। अब तो समय भी बहुत कम है बारिश भी होने वाली है। अब तो यही उम्मीद है कि कोई जाना पहचाना बुला ले तो बहुत अच्छा हो। यहाँ कवि के कहने का आशय यह है कि मनुष्य प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कर रहा है जिसके दुष्परिणाम मौसम में होने वाले बदलाव के रूप में देखे जा सकते हैं। आज बेवक्त की बरसातें, अत्यधिक गरम और अत्यधिक ठंड, प्राकृतिक आपदाएँ ये सब कुछ समूहों के बुरे कर्मों का ही फल है जिससे पूरी मानव सभ्यता आतंकित है।

खुशबू रचते हैं हाथ

 

कई गलियों के बीच

कई नालों के पार

कूड़े-करकट

के ढेरों के बाद

बदबू से फटते जाते इस

टोले के अंदर

खुशबू रचते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ।

 

कवि प्रगतिशील चिंताधारा के एक भले मानुष हैं। समाज में गरीबों के साथ हो रहे अन्याय को कविता के माध्यम से व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि जो लोग समाज में खुशबू बिखेरते हैं अर्थात अगरबत्तियाँ निर्माण करते हैं वे स्वयं बदबूदार इलाके में रहते हैं। उन निर्माताओं का निवास स्थान इतनी गंदगी और कूड़े-करकट की ढेर से घिरा रहता है कि वहाँ जाने से पहले आप और हम जैसे इंसान नाक-मुँह को कपड़े से ढकेंगे ही ढकेंगे। इसी जगह पर ये अगरबत्तियों के निर्माता टोली बनाकर रहते हैं। खुद बदबूदार इलाके में रहकर भी ये समाज में सुगंध फैलाने का काम करते हैं। यही इनकी विशेषता है।    

 

उभरी नसोंवाले हाथ

घिसे नाखूनोंवाले हाथ

पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ

जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ

गंदे कटे-पिटे हाथ

ज़ख्म से फटे हुए हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ।

यहीं इस गली में बनती हैं

मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ

इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग

बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी

अगरबत्तियाँ

दुनिया की सारी गंदगी के बीच

दुनिया की सारी खुशबू

रचते रहते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ।

 

कवि अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से कह रहे हैं कि लोगों के जीवन में सुगंध बिखेरने वाले हाथ भयावह स्थिति में जीवन बिता रहे हैं। दुनिया भर की गंदगी के बीच अगरबत्तियों का निर्माण होता है। इन अगरबत्तियों को उभरी नसों वाले हाथ यानी व्यस्क लोग तो बनाने में लगे ही हुए हैं ये उनकी जीविका का साधन है पर इस कार्य में छोटे-छोटे बच्चे भी लगे हुए हैं जिनके हाथ पीपल के नए पत्ते जैसे हैं। उन नवयुवतियों के हाथों को देखने से ऐसा लगता है मानो ये जूही की कोमल कली हों। इस काम में लंबे समय तक कार्य करने के पश्चात उन बच्चों के हाथ भी जख्म से भर जाते हैं। ये बाल मजदूरी क सजीव चित्र उपस्थित करता है।

1 -निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल जाता है?

उत्तर – नए बसते इलाके में कवि रास्ता भूल जाते है क्योंकि शहर में नित्य नए निर्माण हो रहे हैं वो भी इतनी द्रुत गति से कि रास्ता पहचानने के लिए तय की गईं निशानियाँ जल्दी ही मिट जाती हैं।

(ख) कविता में कौन-कौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है?

उत्तर – कविता में निम्नलिखित पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है –

– पीपल का पेड़ बादशाह  

– खंडहर बना मकान    

– ज़मीन का खाली टुकड़ा

– दो मकान के बाद रंगीन लोहे के फाटक वाला एक मंज़िला मकान

(ग) कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता है?

उत्तर – कवि अपने निर्धारित घर से एक घर पीछे या दो घर आगे ही ठकमकाते रहते हैं। इसका कारण है कि नित्य नए निर्माण के कारण होने वाली शहरों की काया-पलट। दूसरी तरफ़ पहचान के लिए तय किए गए निशान भी लुप्त होते जा रहे हैं।

(घ) ‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादों को लौटा’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर – ‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादों को लौटा’ से अभिप्राय यह है कि समाज का कुछ वर्ग ऐसा है जो पैसे कमाने की होड़ में प्रकृति ने नियमों के खिलाफ़ जा रहे हैं। जिसकी वजह से मौसम में अप्रत्याशित परिवर्तन हो रहे हैं। आज बेवक्त की बरसातें, अत्यधिक गरमी और अत्यधिक ठंड, प्राकृतिक आपदाएँ ये सब कुछ धन लोलुपों समूहों के बुरे कर्मों का ही फल है जिससे पूरी मानव सभ्यता आतंकित है।

(ङ) कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी’ की ओर क्यों इशारा किया है?

उत्तर – कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी’ की ओर इशारा किया है क्योंकि यह युग सूचना क्रांति का युग है। आज सभी एक दूसरे से आगे निकलना चाहते हैं। आज के युग में व्यक्ति के पास सब कुछ हो सकता है पर समय नहीं और कवि ठहरे सीधे साधे व्यक्ति। उन्हें आज की इस पीढ़ी की अंधी दौड़ के बारे में कुछ भी पता नहीं बस वे तो इतना चाहते हैं कि किसी तरह कोई उनका जाना पहचाना मिल जाए जो उन्हें उसके घर तक ले जाए।

(च) इस कविता में कवि ने शहरों की किस विडंबना की ओर संकेत किया है?

उत्तर – इस कविता में कवि ने शहरों की विडंबना की ओर संकेत करते हुए कह रहे हैं कि शहरों में द्रुत गति से होने वाले निर्माण उसे हर दिन नया चोला पहना डालते हैं। यहाँ एक ही दिन में चीज़ें पुरानी पड़ जाती हैं। शहर की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में अब ये मनुष्य न रहकर मशीन बन गए हैं जिनमें कोई संवेदना नहीं। जैसे-जैसे शहरों की जनसंख्या बढ़ती जाती है वैसे-वैसे लोग और भी अकेले पड़ते जाते हैं।

(क) ‘खुशबू रचनेवाले हाथ’ कैसी परिस्थितियों में तथा कहाँ-कहाँ रहते हैं?

उत्तर – खुशबू रचने वाले हाथ अत्यंत ही दयनीय अवस्था में गंदी बस्तियों में रहते हैं। इनके घर के इर्द-गिर्द कूड़े-करकट का ढेर लगा रहता है। चारों ओर बदबू फैली रहती है। अस्वच्छता एवं प्रदूषित वातावरण से इनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

(ख) कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है?

उत्तर – कविता में निम्नलिखित तरह के हाथों की चर्चा हुई है –

– उभरी नसों वाले हाथ यानी कि वृद्ध व्यक्ति

– घीसे नाखूनों वाले हाथ यानी कि मजदूरों के हाथ  

– पीपल के पत्ते जैसे नए-नए हाथ अर्थात छोटे बच्चों के कोमल हाथ

– जूही की डाल जैसे खुशबूदार हाथ अर्थात नवयुवतियों के सुंदर-सुंदर हाथ

– गंदे कटे-पिटे हाथ।

– जख्म से फटे हुए हाथ।

 (ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’?

उत्तर – कवि ने यह कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ क्योंकि आज भी अगरबत्ती जैसी प्रतिदिन और प्रत्येक घर में प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तु का निर्माण लघु उद्योग के रूप में किया जाता है। ये उद्योग काफी मात्रा में आज भी गंदी बस्तियों में ही होते हैं और इसके निर्माण में हाथों की अहम भूमिका होती है। 

 (घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल कैसा होता है?

उत्तर – जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल बहुत ही भयावह होता है। अस्वच्छता एवं प्रदूषित वातावरण के कारण निर्माताओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इन निर्माताओं का निवास स्थान इतनी गंदगी और कूड़े-करकट की ढेर से घिरा रहता है कि वहाँ जाने से पहले आप और हम जैसे इंसान नाक-मुँह को कपड़े से ढकेंगे ही ढकेंगे। इसी जगह पर ये अगरबत्तियों के निर्माता टोली बनाकर रहते हैं। खुद बदबूदार इलाके में रहकर भी ये समाज में सुगंध फैलाने का काम करते हैं।

 (ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर – इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य यह है कि इस समाज और पूरे संसार को सुंदर बनाने का कार्य गरीब मजदूर ही करता है पर इन गरीब मजदूरों की ज़िंदगी को बेहतर बनाने का ज़िम्मा न तो पूँजीपति वर्ग लेता है और न ही नेतागण। इस कविता के माध्यम से कवि सामाजिक विषमताओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठाकर उनका शोषण करने वाले वर्ग से यह उम्मीद की जा रही है कि अब वे ये अमानवीय क्रिया का त्याग कर दें। ऐसा करने पर मजदूरों को आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक समानता मिलेगी और बाल मजदूरी का भी अंत हो जाएगा। बच्चों को उनका बचपन मिल जाएगा।

(क)    यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं

                एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कह रहे हैं कि शहर में होने वाले द्रुत गति के निर्माण के कारण सब कुछ एक ही दिन में बदल जाता है। ऐसे में घर तक पहुँचने के पहचान के लिए तय किया गया संकेत कहीं अदृश्य हो जाता है। अतः अब स्मृति पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

(ख) समय बहुत कम है तुम्हारे पास

                आ चला पानी ढहा आ रहा अकास

                शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर

उत्तर – कवि अपनी इन पंक्तियों में यह कह रहे हैं कि अब तो समय भी बहुत कम है बारिश भी होने वाली है और अभी तक मैं घर नहीं ढूँढ़ पाया हूँ। अब तो यही उम्मीद है कि कोई जाना पहचाना बुला ले तो बहुत अच्छा हो। यहाँ कवि के कहने का आशय यह है कि मनुष्य प्रकृति के नियमों का उलंघन कर रहा है जिसके दुष्परिणाम मौसम में होने वाले बदलाव के रूप में देखे जा सकते हैं।

(क) (i) पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ

                जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कह रहे हैं पीपल के पत्ते जैसे नए-नए हाथ अर्थात छोटे बच्चों के कोमल हाथ जूही की डाल जैसे खुशबूदार हाथ अर्थात नवयुवतियों के सुंदर-सुंदर हाथ गंदी बस्तियों में अगरबत्तियाँ बनाते हैं।

 (ii) दुनिया की सारी गंदगी के बीच

                दुनिया की सारी खुशबू

                रचते रहते हैं हाथ

उत्तर – दुनिया भर की गंदगी के बीच अगरबत्तियों का निर्माण होता है। इन अगरबत्तियों को उभरी नसों वाले हाथ, घीसे नाखूनों वाले हाथ, गंदे कटे-पिटे हाथ, जख्म से फटे हुए हाथ यानी व्यस्क लोग तो बनाने में लगे ही हुए हैं ये उनकी जीविका का साधन है पर इस कार्य में छोटे-छोटे बच्चे भी लगे हुए हैं जिनके हाथ पीपल के नए पत्ते जैसे हैं। नवयुवतियों के हाथों को देखने से ऐसा लगता है मानो ये जूही की कोमल कली हों। अतः खुशबू रचते हैं हाथ।

(ख) कवि ने इस कविता में ‘बहुवचन’ का प्रयोग अधिक किया है? इसका क्या कारण है?

उत्तर – कवि ने इस कविता में ‘बहुवचन’ शब्दों का प्रयोग जैसे- नाखूनों, गलियों, नालों, गंदे हाथों आदि का प्रयोग अधिक किया है क्योंकि यह किसी एक मजदूर की समस्या नहीं बल्कि जनसंख्या के बहुत बड़े हिस्से की समस्या है जिसका समाधान अत्यंत आवश्यक है।

 (ग) कवि ने हाथों के लिए कौन-कौन से विशेषणों का प्रयोग किया है?

उत्तर – कवि ने हाथों के लिए निन्म्लिखित विशेषणों का प्रयोग किया है –

उभरी नसों वाले हाथ

घीसे नाखूनों वाले हाथ

पीपल के पत्ते जैसे नए-नए हाथ

जूही की डाल जैसे खुशबूदार हाथ

गंदे कटे-पिटे हाथ।

जख्म से फटे हुए हाथ।

पर्यायवाची

1.पीपल – अश्वत्थ

2.स्मृति – याद, ध्यान, स्मरण

पाठ में हिंदी महीनों के कुछ नाम आए हैं। आप सभी हिंदी महीनों के नाम क्रम से लिखिए।

उत्तर – छात्र गृह कार्य के रूप में इसे पूरा करें।

अगरबत्ती बनाना, माचिस बनाना, मोमबत्ती बनाना, लिफ़ाफ़े  बनाना, पापड़ बनाना, मसाले कूटना आदि लघु उद्योगों के विषय में जानकारी एकत्रित कीजिए और लिखित रूप में शिक्षक को दिखाइए।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

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