(सन् 1904-1948)
हिंदी कवयित्रियों में सुभद्राकुमारी चौहान का प्रमुख स्थान है। इनका जन्म सन् 1904 की नाग पंचमी को प्रयाग (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। कहीं कहीं इनका जन्म सन् 1905 में लिखा हुआ भी मिलता है। इनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा-प्रेमी एवं उच्च विचारों के व्यक्ति थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा प्रयाग में संपन्न हुई। इन्होंने क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की।
रचनाएँ : सुभद्राकुमारी चौहान को बचपन से ही काव्य से बहुत प्रेम था। इनके हृदय की भाँति इनकी कविताएँ भी सरल और निर्मल भावों से युक्त हैं। इनकी कविताओं के दो काव्य संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-’मुकुल’ और ‘त्रिधारा’। इनकी कविताओं में देश-प्रेम की भावना तथा वात्सल्य भाव का चित्रण विशेष रूप से हुआ है। ‘झाँसी की रानी’, ‘वीरों का कैसा हो बसंत’, ‘राखी की चुनौती’ तथा ‘जलियाँवाला बाग़ में बसंत’ इनकी अत्यंत लोकप्रिय कविताएँ हैं।
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी इन्होंने बढ़चढ़कर भाग लिया। सन् 1948 में एक दुर्घटना में इनका निधन हो गया था।
प्रस्तुत कविता में ‘झाँसी की रानी’ की वीरगाथा है। उन्होंने अंग्रेजी सेना के साथ साहसपूर्वक मुकाबला करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। वह भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अमर सेनानी रही हैं। कवयित्री ने रानी की समाधि पर अपने स्नेह और श्रद्धा के पुष्प अर्पित किए हैं और समाधि में छिपी उनकी राख की ढेरी में भारत की स्वतंत्रता की चिंगारी को देखा है। कवयित्री को रानी की समाधि अति प्रिय है क्योंकि इसमें वीरांगना की स्मृतियाँ समाई हुई हैं जो हमें सदा प्रेरणा देती रहेंगी।
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी।
जलकर जिसने स्वतंत्रता की दिव्य आरती फेरी॥
यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की।
अंतिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की॥
यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न विजय माला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी॥
सहे वार पर वार अन्त तक लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर चमक उठी ज्वाला-सी॥
बढ़ जाता है मान वीर का रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की, आशा की चिनगारी॥
इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते॥
पर कवियों की अमर गिरा में इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती है वीरों की बानी॥
बुंदेले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी।
खूब लड़ी मरदानी वह थी, झाँसी वाली रानी॥
यह समाधि यह चिर समाधि है, झाँसी की रानी की।
अन्तिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की।
पंक्तियाँ – 01
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी।
जलकर जिसने स्वतंत्रता की दिव्य आरती फेरी॥
यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की।
अंतिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की॥
शब्दार्थ
समाधि – शव स्थल पर बनाया गया छोटा-सा सदन
राख – Ash
ढेरी – Heap
स्वतंत्रता – आज़ादी
दिव्य – अलौकिक
आरती – पूजा करने के दौरान की अंतिम विधि
लघु – छोटा
झाँसी – उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड का एक जनपद
अंतिम – आखिरी
लीला – महात्म्य
स्थली – जगह
लक्ष्मी – रानी लक्ष्मी बाई
मरदानी – मर्द का स्त्रीलिंग
प्रसंग –
प्रस्तुत कविता हमारी नौवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक के चौथे अध्याय से ली गई है। यह कविता हिंदी साहित्य जगत की यशस्वी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी की लिखी हुई है जिसमें उन्होंने वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि का वर्णन किया है।
व्याख्या –
कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी मानती हैं कि वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि में राख़ की एक ढेरी छिपी हुई है। यही राख कभी जीवंत रानी लक्ष्मी बाई के रूप में अग्नि के समान थी जिसने स्वतंत्रता की पहली क्रांति की ज्योत जलाई थी। उन्होंने ही इस स्वतंत्रता की पहली क्रांति की आरती से सबको अभिभूत किया था। झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ने अंतिम साँस तक स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुई। उस मर्दानी रानी लक्ष्मी बाई की अंतिम लीला स्थली यही है जिससे प्रेरित होकर आज भी लोग उनके शौर्य और पराक्रम की गाथा गाते हैं।
पंक्तियाँ – 02
यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न विजय माला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी॥
सहे वार पर वार अन्त तक लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर चमक उठी ज्वाला-सी॥
शब्दार्थ
भग्न – टूटा हुआ
विजय – जीत
माला – हार
फूल – पुष्प
संचित – सँजोया हुआ
स्मृति – याद
शाला – शर
वार – प्रहार
वीर – साहसी
बाला – लड़की
आहुति – होम में दी जाने वाली सामग्री
चिता – Funeral
ज्वाला – अग्निशिखा
प्रसंग –
प्रस्तुत कविता हमारी नौवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक के चौथे अध्याय से ली गई है। यह कविता हिंदी साहित्य जगत की यशस्वी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी की लिखी हुई है जिसमें उन्होंने वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि का वर्णन किया है।
व्याख्या –
कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी मानती हैं कि वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि महज एक समाधि मात्र ही नहीं वरन् यह भारत का गौरवमायी इतिहास का केंद्र है जिसके साक्ष्य यहाँ पर अनुभव किए जा सकते हैं। अगर महसूस किया जाए तो हमें यहाँ टूटी हुई विजयमाला के प्रमाण मिल सकते हैं, उस विजयमाला के फूल आज भी यहाँ सुरक्षित हैं। यह समाधि एक स्मृतिशाला है जो हमें रानी लक्ष्मी बाई के अदम्य साहस की याद दिलाता है कि कैसे उस मर्दानी ने युद्ध में वार पर वार सहे पर दुश्मनों का डटकर सामना किया और अंत में यज्ञशाला के हवन कुंड में समिधा की तरह स्वाहा हो कर अति उत्तप्त ज्वाला में परिणत हुई अर्थात् वीरगति को प्राप्त हुई।
पंक्तियाँ – 03
बढ़ जाता है मान वीर का रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतन्त्रता की, आशा की चिनगारी॥
शब्दार्थ
मान – इज्ज़त
वीर – साहसी
रण – युद्ध
बलि – बलिदान
मूल्यवती – कीमती
सोने – स्वर्ण
भस्म – जलकर राख
यथा – जैसे
निहित – समाहित
स्वतन्त्रता – स्वाधीनता
आशा – उम्मीद
चिनगारी – चिंगारी, अग्निकण
प्रसंग –
प्रस्तुत कविता हमारी नौवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक के चौथे अध्याय से ली गई है। यह कविता हिंदी साहित्य जगत की यशस्वी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी की लिखी हुई है जिसमें उन्होंने वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि का वर्णन किया है।
व्याख्या –
कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी मानती हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में जो अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देते हैं वे सचमुच महान बन जाते हैं। ये समाज उनके बलिदानों को सदा सम्मान की दृष्टि से देखता है। इसी क्रम में कवयित्री कहती हैं कि ऐसे ही रानी लक्ष्मी बाई ने अपने प्राणों की आहुति दे दी और उनकी आहुति के अंतिम तत्त्व – ‘ये राख़’ हमें वास्तविक सोने से भी ज़्यादा प्यारे हैं। आज हमारे लिए रानी लक्ष्मी बाई से भी कहीं अधिक उनकी ये समाधि ही प्यारी है क्योंकि इस समाधि में स्वतंत्रता की चिंगारी है, आशा की किरणें हैं।
पंक्तियाँ – 04
इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते॥
पर कवियों की अमर गिरा में इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती है वीरों की बानी॥
शब्दार्थ
जग – दुनिया
गाथा – गौरव गाथा
निशीथ – आधी रात
क्षुद्र जंतु – छोटे जीव
अमर – जो न मरे
गिरा – वाणी
अमिट – न मिटने वाली
स्नेह – प्रेम
श्रद्धा – समर्पण भाव
बानी – वाणी
प्रसंग –
प्रस्तुत कविता हमारी नौवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक के चौथे अध्याय से ली गई है। यह कविता हिंदी साहित्य जगत की यशस्वी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी की लिखी हुई है जिसमें उन्होंने वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि का वर्णन तथा अन्य समाधियों का वर्णन किया है।
व्याख्या –
कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी कहती हैं कि इस संसार में और भी ऐसे कई समाधियाँ हैं जो रूप में बहुत ही सुंदर और आकार में बहुत ही बड़े हैं। वास्तव में यहाँ एक प्रकार की उलाहना है कि किसी ने देश के लिए कुछ भी नहीं किया फिर भी उनकी समाधियाँ भव्य हैं और हर साल उनकी समाधियों पर राजनैतिक दल माल्यार्पण करते हैं और उसी समय रानी लक्ष्मीबाई की समाधि निस्तब्ध पड़ी रहती है। सुभद्रा जी ऐसी समाधियों पर व्यंग्य करते हुए कहती हैं आधी रात को क्षुद्र जीव ही इन समाधियों की गाथा गाते होंगे। दूसरी तरफ भावों से भरे कवि समुदाय की वाणी में रानी लक्ष्मी बाई की समाधि जो वीरता, उत्साह, मातृभूमि प्रेम का प्रतीक है, का वर्णन अनंतकाल तक श्रद्धा और स्नेह के साथ होता रहेगा।
पंक्तियाँ – 05
बुंदेले हरबोलों के मुख, हमने सुनी कहानी।
खूब लड़ी मरदानी वह थी, झाँसी वाली रानी॥
यह समाधि यह चिर समाधि है, झाँसी की रानी की।
अन्तिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की।
शब्दार्थ
बुंदेले – बुंदेल के लोग
हरबोलों – बुंदेलखंड की एक जाति जो राजा-महाराजाओं का यशोगान करती थी।
मुख – मुँह
मरदानी – रानी लक्ष्मीबाई के लिए प्रयुक्त
चिर – हमेशा
लीला स्थली – जहाँ कार्य किया जाए।
चिर – सदा रहने वाली
प्रसंग –
प्रस्तुत कविता हमारी नौवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक के चौथे अध्याय से ली गई है। यह कविता हिंदी साहित्य जगत की यशस्वी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी की लिखी हुई है जिसमें उन्होंने वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि का वर्णन किया है।
व्याख्या –
कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी कहती हैं कि हमने बुंदेले हरबोलों के मुख से वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के शौर्य और पराक्रम के कई किस्से सुने हैं। उन्होंने किस तरह अंग्रेजों को धूल चटाई थी और उनके दाँत खट्टे किए थे, यह सब बुंदेले हरबोलों ने पूरी सजीवता और संजीदगी के साथ बयाँ किया है। रानी लक्ष्मी बाई की यह समाधि वास्तव में एक ऐसी समाधि है जो चिरकाल तक स्मरणीय रहेगी। यह समाधि उस वीर भूमिपुत्री की अंतिम लीला स्थली है जहाँ से वो आज भी हममें देशप्रेम की भावना का संचार करती हैं। यह समाधि उस मर्दानी की है जो स्त्री के रूप में माता दुर्गा की साक्षात् अवतार है।
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) समाधि में छिपी राख की ढेरी किसकी है?
उत्तर – समाधि में छिपी राख की ढेरी रानी लक्ष्मीबाई की है जिन्होंने स्वतंत्रता की पहली लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी।
(ii) किस महान लक्ष्य के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने अपना बलिदान दिया?
उत्तर – देश को अंग्रेजों के आधिपत्य से मुक्त कराने के महान लक्ष्य के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने अपना बलिदान दिया।
(iii) रानी लक्ष्मीबाई को कवयित्री ने ‘मरदानी’ क्यों कहा है?
उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई को कवयित्री ने ‘मरदानी’ कहा है क्योंकि उस समय जब समाज में पुरुषों का दबदबा रहता था और वह पुरुष प्रधान समाज कहलाता था उस स्थिति में अपने राज्य और देश के लिए एक महिला का अंग्रेजों से लोहा लेना बहुत बड़ी बात थी।
(iv) रण में वीरगति को प्राप्त होने से वीर का क्या बढ़ जाता है?
उत्तर – रण में वीरगति को प्राप्त होने से वीर का मान बढ़ जाता है क्योंकि उसके बलिदान के बाद पूरा समाज अनंतकाल तक उसके बलिदान की अमर गाथा गाता है और आने वाली पीढ़ी को भी स्थानांतरित करता जाता है।
(v) कवयित्री को रानी से भी अधिक रानी की समाधि क्यों प्रिय है?
उत्तर – कवयित्री को रानी से भी अधिक रानी की समाधि प्रिय है क्योंकि भले ही इस पार्थिव शरीर का अंत हो जाए और यह शरीर पंचभूतों में विलीन हो जाए पर जीवितावस्था में किए गए स्मरणीय कार्य सदैव अमर रहते हैं और यह समाधि रानी लक्ष्मीबाई की अनेक अमर बलिदानों का प्रतीक है।
(vi) रानी लक्ष्मीबाई की समाधि का ही गुणगान कवि क्यों करते हैं?
उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई की समाधि का ही गुणगान कवि करते हैं क्योंकि यह वह समाधि है जिसने भारतीयों को आत्मबलिदान का महत्त्व समझाया है, मातृभूमि और राष्ट्रप्रेम का पुनीत संकल्प जनमानस में जागृत किया है।
II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(i) यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न विजय माला-सी।
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी॥
सहे वार पर वार अन्त तक लड़ी वीर बाला-सी।
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर चमक उठी ज्वाला-सी॥
उत्तर – प्रसंग –
प्रस्तुत कविता हमारी नौवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक के चौथे अध्याय से ली गई है। यह कविता हिंदी साहित्य जगत की यशस्वी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी की लिखी हुई है जिसमें उन्होंने वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि का वर्णन किया है।
व्याख्या –
कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी मानती हैं कि वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि महज एक समाधि मात्र ही नहीं वरन् यह भारत का गौरवमायी इतिहास का केंद्र है जिसके साक्ष्य यहाँ पर अनुभव किए जा सकते हैं। अगर महसूस किया जाए तो हमें यहाँ टूटी हुई विजयमाला के प्रमाण मिल सकते हैं, उस विजयमाला के फूल आज भी यहाँ सुरक्षित हैं। यह समाधि एक स्मृतिशाला है जो हमें रानी लक्ष्मी बाई के अदम्य साहस की याद दिलाता है कि कैसे उस मर्दानी ने युद्ध में वार पर वार सहे पर दुश्मनों का डटकर सामना किया और अंत में यज्ञशाला के हवन कुंड में समिधा की तरह स्वाहा हो कर अति उत्तप्त ज्वाला में परिणत हुई अर्थात् वीरगति को प्राप्त हुई।
(ii) बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से।
मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से॥
रानी से भी अधिक हमें अब, यह समाधि है प्यारी।
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की आशा की चिनगारी॥
उत्तर – प्रसंग –
प्रस्तुत कविता हमारी नौवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक के चौथे अध्याय से ली गई है। यह कविता हिंदी साहित्य जगत की यशस्वी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी की लिखी हुई है जिसमें उन्होंने वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि का वर्णन किया है।
व्याख्या –
कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी मानती हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में जो अपने प्राणों का उत्सर्ग कर देते हैं वे सचमुच महान बन जाते हैं। ये समाज उनके बलिदानों को सदा सम्मान की दृष्टि से देखता है। इसी क्रम में कवयित्री कहती हैं कि ऐसे ही रानी लक्ष्मी बाई ने अपने प्राणों की आहुति दे दी और उनकी आहुति के अंतिम तत्त्व – ‘ये राख़’ हमें वास्तविक सोने से भी ज़्यादा प्यारे हैं। आज हमारे लिए रानी लक्ष्मी बाई से भी कहीं अधिक उनकी ये समाधि ही प्यारी है क्योंकि इस समाधि में स्वतंत्रता की चिंगारी है, आशा की किरणें हैं।
(iii) इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते।
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते॥
पर कवियों की अमर गिरा में इसकी अमिट कहानी।
स्नेह और श्रद्धा से गाती है वीरों की बानी॥
उत्तर – प्रसंग –
प्रस्तुत कविता हमारी नौवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक के चौथे अध्याय से ली गई है। यह कविता हिंदी साहित्य जगत की यशस्वी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी की लिखी हुई है जिसमें उन्होंने वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई की समाधि का वर्णन तथा अन्य समाधियों का वर्णन किया है।
व्याख्या –
कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान जी कहती हैं कि इस संसार में और भी ऐसे कई समाधियाँ हैं जो रूप में बहुत ही सुंदर और आकार में बहुत ही बड़े हैं। वास्तव में यहाँ एक प्रकार की उलाहना है कि किसी ने देश के लिए कुछ भी नहीं किया फिर भी उनकी समाधियाँ भव्य हैं और हर साल उनकी समाधियों पर राजनैतिक दल माल्यार्पण करते हैं और उसी समय रानी लक्ष्मीबाई की समाधि निस्तब्ध पड़ी रहती है। सुभद्रा जी ऐसी समाधियों पर व्यंग्य करते हुए कहती हैं आधी रात को क्षुद्र जीव ही इन समाधियों की गाथा गाते होंगे। दूसरी तरफ भावों से भरे कवि समुदाय की वाणी में रानी लक्ष्मी बाई की समाधि जो वीरता, उत्साह, मातृभूमि प्रेम का प्रतीक है, का वर्णन अनंतकाल तक श्रद्धा और स्नेह के साथ होता रहेगा।
1.निम्नलिखित एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए-
एकवचन बहुवचन
रानी रानियाँ
माला मालाएँ
समाधि समाधियाँ
शाला शालाएँ
ढेरी ढेरियाँ
चिता चिताएँ
प्यारी प्यारे
ज्वाला ज्वालाएँ
चिनगारी चिनगारियाँ
कहानी कहानियाँ
बाला बालाएँ
गाथा गाथाएँ
2.निम्नलिखित शब्दों को शुद्ध करके लिखिए-
अशुद्ध शुद्ध
सुतंत्रता स्वतंत्रता
आरति आरती
लघू लघु
स्थलि स्थली
भगन भग्न
आहूति आहुति
मुल्यवती मूल्यवती
भसम भस्म
कशुद्र क्षुद्र
कवीयों कवियों
श्रधा श्रद्धा
जंतू जंतु
1. रानी लक्ष्मीबाई की पूरी जीवनी पुस्तकालय से पुस्तक लेकर पढ़ें।
उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।
2.रानी लक्ष्मीबाई के अतिरिक्त दुर्गाभाभी (क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा की धर्मपत्नी), झलकारी बाई, सुनीति चौधरी, सुहासिनी गांगुली, विमल प्रतिभा देवी (भारत नौजवान सभा, बंगाल शाखा की अध्यक्ष) आदि की जीवनियों के बारे में पुस्तकों/ इंटरनेट से जानकारी ग्रहण करें।
उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।
3.स्वतंत्रता सेनानियों से संबंधित डाक टिकटों/सिक्कों अथवा चित्रों का संग्रह करें।
उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।
4.पंजाब के अमर शहीदों जैसे लाला लाजपतराय, भगत सिंह, करतार सिंह सराभा, मदनलाल ढींगरा आदि के बारे में पढ़ें व इनके जीवन से देशभक्ति की प्रेरणा लें।
उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।
5.झाँसी की आधिकारिक वेबसाइट (www.jhansi.nic.in) पर झाँसी / रानी झाँसी से संबंधित दुर्लभ चित्रों का अवलोकन करें।
उत्तर – छात्र इस प्रश्न का उत्तर अपने स्तर पर करें।
1. झाँसी : झाँसी भारत के उत्तर प्रदेश का एक जिला है। यह उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है। यह शहर बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है।
2.झाँसी के दर्शनीय स्थल -झाँसी-किला, रानी महल, झाँसी-संग्रहालय, महालक्ष्मी-मंदिर, गणेश मंदिर व गंगाधर राव की छतरी।
3.रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर, 1828 ई० को काशी (बाद में बनारस और अब वाराणसी) के भदैनी नगर में हुआ। लक्ष्मीबाई की जन्म तिथि के बारे में इतिहासकारों / विद्वानों की एक राय नहीं है। कुछ विद्वान इनका जन्म 19 नवम्बर, 1835 को मानते हैं। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे व माता का नाम भागीरथी बाई था। लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था किंतु सभी इसे प्यार से मनु कहते थे। मनु का विवाह झाँसी के महाराज गंगाधर राव से हुआ था। विवाह के बाद मनु का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। इस तरह मनु झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बन गई। सन् 1851 को रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया किंतु कुछ ही महीने बाद गंभीर रूप से बीमार होने पर इस बालक की चार महीने की उम्र में ही मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् महाराज बीमार रहने लगे और उन्होंने एक बच्चे को गोद लिया। इस बालक का नाम दामोदर राव रखा गया। किंतु महाराज का स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा था अतः कहते हैं कि पुत्र गोद लेने के दूसरे ही दिन महाराज की भी मृत्यु हो गई। अंग्रेजों ने गोद लिए हुए पुत्र को राजा मानने से इंकार कर दिया। वे झाँसी को अपने अधीन करना चाहते थे किंतु रानी ने अंग्रेजों को घोषणा की कि मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी। तत्पश्चात् रानी और अंग्रेज़ों में भयंकर युद्ध हुआ और 18 जून, 1858 को रानी अंग्रेज़ों से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई। (कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि रानी 17 जून, 1858 को शहीद हुई थीं अतः जन्म तिथि की ही भाँति इनकी शहादत की तिथि पर भी मतभेद हैं)
4. रानी लक्ष्मीबाई पर डाक टिकट भारत सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई पर वर्ष 1957 को पंद्रह पैसे का एक डाक टिकट जारी किया।
इसके बाद वर्ष 1988 को भारत सरकार ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के प्रमुख सेनानियों के लिखे नामों (रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, नाना साहब, मंगल पांडे, बहादुर शाह ज़फर) का डाक टिकट जारी किया जिसमें रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे ऊपर दर्ज है।
5. झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की सेना की महिला शाखा ‘दुर्गा दल’ की सेनापति थी झलकारी बाई। इसकी वीरता के किस्से भी झाँसी में प्रसिद्ध हैं। कहते हैं कि रानी की हमशक्ल होने के कारण इसने कई बार अंग्रेजों को धोखा दिया। मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी बाई की बहादुरी पर लिखा है-
“जाकर रण में ललकारी थी,
वह तो झाँसी की झलकारी थी
गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में,
झलक रही वह तो भारत की ही नारी थी।”
भारत सरकार ने 22 जुलाई, 2001 को झलकारी बाई का चार रुपए का डाक टिकट जारी किया।
6. बुंदेलखंड : बुंदेलखंड मध्यभारत का एक प्राचीन क्षेत्र है। यूँ तो बुंदेलखंड क्षेत्र दो राज्यों – उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश में विभाजित है परंतु भौगोलिक व सांस्कृतिक दृष्टि से यह एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ा है। रीति-रिवाजों, भाषा और विवाह संबंधों के कारण इसकी एकता और भी मज़बूत हुई है। बुंदेली इस क्षेत्र की बोली है। इतिहासकारों के अनुसार बुंदेलखंड में 300 ई० पूर्व मौर्य शासन काल के साक्ष्य उपलब्ध हैं। इसके बाद वाकाटक शासन, गुप्त, कलचुरी, चंदेल, बुंदेल शासन, मराठा शासन व अंग्रेजों का शासन रहा।
7. बुंदेले हरबोले : ‘बुंदेले हरबोले’ बुंदेलखंड की एक जाति विशेष है। इस जाति के लोग राजा-महाराजाओं के यश का गुणगान करने के लिए जाने जाते हैं।
8. बुंदेलखंड की अमर विभूतियाँ / विशिष्ट व्यक्तित्व
(i) आल्हा ऊदल आल्ह और ऊदल ये दो भाई थे। ये बुंदेलखंड (महोबा) के वीर योद्धा थे। इनकी वीरता की कहानी उत्तर भारत में गायी जाती रही है।
(ii) कवि पद्माकर – रीतिकालीन कवि।
(iii) रानी लक्ष्मीबाई – प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अमर सेनानी।
(iv) मैथिलीशरण गुप्त – राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के देदीप्यमान नक्षत्र हैं। इनका जन्म झाँसी (उत्तर प्रदेश) के चिरगाँव में हुआ।
(v) डॉ० हरिसिंह गौर – डॉ० हरिसिंह गौर सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, शिक्षाशास्त्री, ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता, समाज सुधारक, साहित्यकार, महान दानी व देशभक्त थे। ये दिल्ली तथा नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे हैं।