Punjab Board, Class IX, Hindi Pustak, The Best Solution Panch Parmeshwar, Munshi Premchand, पंच परमेश्वर, मुँशी प्रेमचन्द

(सन् 1880-1936)

मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म सन् 1880 में वाराणसी के लमही गाँव में हुआ था। खेती उनके घर का मुख्य व्यवसाय था। परंतु ग़रीबी के कारण इनके पिता मुंशी अजायबराय को डाकखाने में क्लर्की करनी पड़ी। प्रेमचंद के जन्म के समय यद्यपि उनके पिता नौकरी कर रहे थे, परंतु मूलत: कृषक होने के कारण उनके घर का वातावरण एक किसान के घर के समान था। इसीलिए प्रेमचंद को भी ये चीजें संस्कारों में ही मिलीं। बचपन में ही प्रेमचंद की दो बहनों और माता का देहांत हो गया। इन घटनाओं का प्रेमचंद पर गहरा असर हुआ। घर की ग़रीबी और माँ के प्यार से वंचित प्रेमचंद ने अभावों में ही अपनी शिक्षा शुरू की तथा उर्दू की विशेष शिक्षा पाई। तेरह वर्ष की अवस्था तक प्रेमचंद ने उर्दू के अनेक प्रसिद्ध ग्रंथ पढ़ लिए। ग़रीबी में भी इन्होंने जीवन के उच्च आदर्शों तथा ईमानदारी का त्याग नहीं किया। वे ट्यूशन करते हुए अंधेरी कोठरी में तेल की कुप्पी से पढ़ते थे। जैसे-तैसे इन्होंने सन् 1910 ई० में इंटर की परीक्षा पास की, लेकिन परीक्षा पास करने से पहले ही अठारह रुपये मासिक पर स्कूल में नौकरी कर ली थी। ग़रीबी के कारण इन्हें अनेक बार महाजनों से उधार लेना पड़ता था, इसीलिए इन्हें महाजनी व्यापार की इतनी समझ थी और इनके साहित्य में उसकी चर्चा बार-बार होती थी। पिता ने इन्हें धनपतराय नाम दिया था जबकि चाचा ने इन्हें नवाबराय के नाम से पुकारा। नवाबराय नाम से ही इन्होंने आरंभ में उर्दू में लिखना शुरू किया था और इनका पहला उर्दू कहानी-संग्रह ‘सोज़-ए- वतन’ प्रकाशित हुआ, जिसमें राष्ट्रीयता की भावना को देखते हुए अंग्रेज़ सरकार ने उसकी सारी प्रतियाँ जलाकर पाबंदी लगा दी। इसी के साथ ‘नवाबराय’ लुप्त हो गये और ‘प्रेमचंद’ के नाम से इन्होंने हिंदी में लिखना शुरू किया। लेखन कार्य के अतिरिक्त इन्होंने ‘जमाना’, ‘मर्यादा’,’माधुरी’,’जागरण’ और ‘हंस’ नामक पत्रिकाओं का समय-समय पर संपादन किया। ‘हंस’ के लिए ही इन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखा था, किंतु इनका मन वहाँ रमा नहीं।

प्रेमचंद की सबसे पहली मौलिक कहानी ‘संसार का अनमोल रत्न’ बताई जाती है, जो सन् 1907 में ‘जमाना’ में छपी थी। उसके बाद इन्होंने अनेक उपन्यासों तथा कहानियों की रचना की। इनकी लगभग तीन सौ कहानियों को ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में संकलित किया गया। ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘रंगभूमि’, ‘निर्मला’, ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’ और ‘गोदान’ इनके चर्चित उपन्यास हैं। प्रेमचंद का अंतिम उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ (सन् 1936 ई०) अपूर्ण ही रह गया।

इन्होंने नाटकों की भी रचना की। ‘संग्राम’, ‘कर्बला’ और ‘प्रेम की वेदी’ इनके नाटकों के नाम हैं। इनके आलोचनात्मक लेख ‘हंस’ तथा ‘जागरण’ की फाइलों में मिलते हैं। कुल मिला कर प्रेमचंद हिंदी कथा साहित्य के सम्राट थे। इन्होंने सामाजिक समस्याओं को कहानियों और उपन्यासों में उतार कर हिंदी कहानी और उपन्यास को एक नई दिशा दी।

प्रस्तुत कहानी में लेखक ने न्यायप्रियता और मित्रता पर प्रकाश डाला है। पंच के आसन पर आसीन साधारण मानव भी अपने-पराये, ईर्ष्या द्वेष के स्तर से ऊपर उठकर न्याय करने लगता है। न्याय के अतिरिक्त उसे कुछ नहीं सूझता। ये कहानी संदेश देती है कि निष्पक्ष न्याय की हर ओर जय जयकार होती है। यदि कभी किसी को न्याय करने का उत्तरदायित्व दिया जाए तो उसे काम क्रोध, मद लोभ और मोह से ऊपर उठकर न्याय करना चाहिए।

जुम्मन शेख और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गए थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गए थे और अलगू जब कभी बाहर जाते तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते थे। उनमें न खान-पान का व्यवहार था, न धर्म का नाता; केवल विचार मिलते थे। मित्रता का मूलमंत्र यही है।

जुम्मन शेख की एक बूढ़ी खाला (मौसी) थी। उसके पास कुछ थोड़ी-सी मिलकियत थी परंतु निकट संबंधियों में कोई न था। जुम्मन ने लंबे-चौड़े वादे करके वह मिलकियत अपने नाम लिखवा ली। जब तक उसकी रजिस्ट्री न हुई थी, तब तक खालाजान का खूब आदर-सत्कार किया गया। हलवे पुलाव की वर्षा-सी की गई पर रजिस्ट्री की मोहर ने इन ख़ातिरदारियों पर मुहर लगा दी। जुम्मन की पत्नी करीमन रोटियों के साथ कड़वी बातों के कुछ तेज़, तीखे सालन भी देने लगी। जुम्मन शेख भी निष्ठुर हो गए। अब बेचारी खालाजान को प्रायः नित्य ही ऐसी बातें सुननी पड़ती थीं।

 “बुढ़िया न जाने कब तक जिएगी! दो-तीन बीघे ऊसर क्या दे दिया, मानो मोल ले लिया है! बघारी दाल के बिना रोटियाँ नहीं उतरतीं। जितना रुपया इसके पेट में झोंक चुके, उतने से अब तक गाँव मोल ले लेते!”

कुछ दिन खालाजान ने सुना और सहा परंतु जब न सहा गया, तब जुम्मन से शिकायत की। जुम्मन ने स्थानीय कर्मचारी गृहस्वामिनी के प्रबंध में दखल देना उचित न समझा। अंत में एक दिन खाला ने जुम्मन से कहा, “बेटा! तुम्हारे साथ मेरा निर्वाह न होगा। तुम मुझे रुपये दे दिया करो, मैं अपना पका-खा लूँगी।”

जुम्मन ने धृष्टता के साथ उत्तर दिया, “रुपए क्या यहाँ फलते हैं?”

खाला ने नम्रता से कहा, “मुझे कुछ रूखा सूखा चाहिए भी कि नहीं?”

जुम्मन ने गंभीर स्वर में जवाब दिया, “तो कोई यह थोड़े ही समझा था कि तुम मौत से लड़कर आई हो!”

खाला बिगड़ गई, उन्होंने पंचायत करने की धमकी दी। जुम्मन हँसे, जिस तरह कोई शिकार हिरन को जाल की तरफ जाते देखकर मन ही मन हँसता है। वह बोले, “हाँ, जरूर पंचायत करो। फ़ैसला हो जाए। मुझे भी यह रात-दिन की खटपट पसंद नहीं।”

पंचायत में किसकी जीत होगी, इस विषय में जुम्मन को कुछ भी संदेह न था। आसपास के गाँवों में ऐसा कौन था, जो उसके अनुग्रहों का ऋणी न हो? ऐसा कौन था, जो उसको शत्रु बनाने का साहस कर सके? किसमें इतना बल था, जो उसका सामना कर सके? आसमान के फ़रिश्ते तो पंचायत करने आवेंगे नहीं!

इसके बाद कई दिन तक बूढ़ी खाला हाथ में एक लकड़ी लिए आसपास के गाँवों में दौड़ती रही। कमर झुककर कमान हो गई थी।

बिरला ही कोई भला आदमी होगा, जिसके सामने बुढ़िया ने दुख के आँसू न बहाए हों। ऐसे न्यायप्रिय, दयालु, दीन-वत्सल पुरुष बहुत कम थे, जिन्होंने उस अबला के दुखड़े को गौर से सुना हो और उसको सांत्वना दी हो। चारों ओर घूम-घामकर बेचारी अलगू चौधरी के पास आई, “बेटा, तुम भी दमभर के लिए मेरी पंचायत में चले आना।

अलगू-यों आने को आ जाऊँगा; मगर पंचायत में मुँह न खोलूँगा।

खाला- क्यों बेटा?

अलगू अब इसका क्या जवाब दूँ? अपनी खुशी! जुम्मन मेरा पुराना मित्र है। उससे बिगाड़ नहीं कर सकता।

खाला बेटा, क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?

हमारे सोए हुए धर्मज्ञान की सारी संपत्ति लुट जाए, तो उसे ख़बर नहीं होती परंतु ललकार सुनकर वह सचेत हो जाता है, फिर उसे कोई जीत नहीं सकता। अलगू इस सवाल का कोई उत्तर न दे सका पर उसके हृदय में ये शब्द गूँज रहे थे।

“क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? ”

संध्या समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। शेख जुम्मन ने पहले से ही फ़र्श बिछा रखा था। उन्होंने पान, इलायची, हुक्के तंबाकू आदि का प्रबंध भी किया था। हाँ, स्वयं अलबत्ता अलगू चौधरी के साथ जरा दूर पर बैठे हुए थे। जब पंचायत में कोई आ जाता था, तब दबे हुए सलाम से उसका स्वागत करते थे।

पंच लोग बैठ गए, तो बूढ़ी ख़ाला ने उनसे विनती की-

“पंचो, आज तीन साल हुए, मैंने अपनी सारी जायदाद अपने भानजे जुम्मन के नाम लिख दी थी। इसे आप लोग जानते ही होंगे। जुम्मन ने मुझे ता-हयात रोटी कपड़ा देना क़बूल किया। सालभर तो मैंने इसके साथ रो-धोकर काटा पर अब रात-दिन का रोना नहीं सहा जाता। मुझे न पेट की रोटी मिलती है, न तन का कपड़ा। बेकस बेवा हूँ। कचहरी दरबार नहीं कर सकती। तुम्हारे सिवा और किससे अपना दुख सुनाऊँ? तुम लोग जो राह निकाल दो, उसी राह पर चलूँ। मैं पंचों का हुक्म सिर माथे पर चढ़ाऊँगी।”

रामधन मिश्र, जिनके कई असामियों को जुम्मन ने अपने गाँव में बसा लिया था, बोले, ‘जुम्मन मियाँ, किसे पंच बदते हो? अभी से इसका निपटारा कर लो। फिर जो कुछ पंच कहेंगे, वही मानना पड़ेगा।”

जुम्मन को इस समय सदस्यों में विशेषकर वे ही लोग दीख पड़े, जिनसे किसी-न-किसी कारण उनका वैमनस्य था। जुम्मन बोले, “पंचों का हुक्म अल्लाह का हुक्म है। खालाजान जिसे चाहें, उसे पंच बनाएँ।”

खाला ने चिल्लाकर कहा, “ अरे अल्लाह के बंदे! पंचों का नाम क्यों नहीं बता देता? कुछ मुझे भी तो मालूम हो।”

जुम्मन ने क्रोध से कहा, “ अब इस वक्त मेरा मुँह न खुलवाओ। तुम जिसे चाहे पंच बना लो।”

खालाजान जुम्मन के आरोप को समझ गई, वह बोली, “बेटा, ख़ुदा से डरो। पंच न किसी के दोस्त होते हैं, न किसी के दुश्मन। कैसी बात कहते हो! और तुम्हारा किसी पर विश्वास न हो, तो जाने दो; अलगू चौधरी को तो मानते हो? लो, मैं उन्हीं को सरपंच बनाती हूँ।”

जुम्मन शेख आनंद से फूल उठे परंतु भावों को छिपाकर बोले, “अलगू ही सही, मेरे लिए, जैसे रामधन वैसे अलगू।”

अलगू इस झमेले में फँसना नहीं चाहते थे। वे कन्नी काटने लगे। बोले, “खाला, तुम जानती हो कि मेरी जुम्मन से गाढ़ी दोस्ती है।”

खाला ने गंभीर स्वर में कहा, “बेटा, दोस्ती के लिए कोई अपना ईमान नहीं बेचता। पंचों के दिल में ख़ुदा बसता है। पंचों के मुँह से जो बात निकलती है, वह ख़ुदा की तरफ से निकलती है।’

अलगू चौधरी सरपंच हुए। रामधन मिश्र और जुम्मन के दूसरे विरोधियों ने बुढ़िया को मन में बहुत कोसा।

अलगू चौधरी बोले, “शेख जुम्मन! हम और तुम पुराने दोस्त हैं! जब काम पड़ा, तुमने हमारी मदद की है और हम भी जो कुछ बन पड़ा, तुम्हारी सेवा करते रहे हैं; मगर इस समय तुम और बूढ़ी खाला, दोनों हमारी निगाह में बराबर हो। तुमको पंचों से जो कुछ अर्ज़ करनी हो, करो।”

जुम्मन को पूरा विश्वास था कि अब बाजी मेरी है। अलगू यह सब दिखावे की बातें कर रहा है। अतएव शांत चित्त होकर बोले, “पंचो, तीन साल हुए, खालाजान ने अपनी जायदाद मेरे नाम लिख दी थी। मैंने उन्हें ता-हयात खाना-कपड़ा देना क़बूल किया था। ख़ुदा गवाह है, आज तक मैंने खालाजान को कोई तकलीफ़ नहीं दी। मैं उन्हें अपनी माँ के समान समझता हूँ। उनकी ख़िदमत करना मेरा फर्ज़ है; मगर औरतों में ज़रा अनबन रहती है, इसमें मेरा क्या बस है? खालाजान मुझसे माहवार खर्च अलग माँगती हैं। जायदाद जितनी है, वह पंचों से छिपी नहीं। उससे इतना मुनाफ़ा नहीं होता कि माहवार खर्च दे सकूँ।”

अलगू चौधरी को हमेशा कचहरी से काम पड़ता था। अतएव वह पूरा कानूनी आदमी था। उसने जुम्मन से जिरह शुरू की। एक-एक प्रश्न जुम्मन के हृदय पर हथौड़े की चोट की तरह पड़ता था। रामधन मिश्र इन प्रश्नों पर मुग्ध हुए जाते थे। जुम्मन चकित थे कि अलगू को हो क्या गया। अभी यह अलगू मेरे साथ बैठा हुआ कैसी-कैसी बातें कर रहा था! इतनी ही देर में ऐसा कायापलट हो गया कि मेरी जड़ खोदने पर तुला हुआ है। न मालूम कब की कसर यह निकाल रहा है? क्या इतने दिनों की दोस्ती कुछ भी काम न आवेगी?

जुम्मन शेख तो इसी संकल्प-विकल्प में पड़े हुए थे कि इतने में अलगू ने फ़ैसला सुनाया-

“जुम्मन शेख! पंचों ने इस मामले पर विचार किया। उन्हें नीति संगत मालूम होता है कि ख़ालाजान को माहवार खर्च दिया जाए। हमारा विचार हैं कि खाला की जायदाद से इतना मुनाफ़ा अवश्य होता है कि माहवार खर्च दिया जा सके। बस, यही हमारा फ़ैसला है। अगर जुम्मन को खर्च देना मंजूर न हो, तो संपत्ति की वह रजिस्ट्री रद्द समझी जाए।”

यह फ़ैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में आ गए। मगर रामधन मिश्र और अन्य पंच अलगू चौधरी की इस नीति परायणता की प्रशंसा जी खोलकर कर रहे थे। वे कहते थे इसका नाम पंचायत है! दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। दोस्ती दोस्ती की जगह है किंतु धर्म का पालन करना मुख्य हैं। ऐसे ही सत्यवादियों के बल पर पृथ्वी ठहरी हैं, नहीं तो वह कब की रसातल में चली जाती।

इस फ़ैसले ने अलगू और जुम्मन की दोस्ती की जड़ हिला दी। अब वे साथ-साथ बातें करते नहीं दिखाई देते। इतना पुराना मित्रता रूपी वृक्ष सत्य का एक झोंका भी न सह सका। सचमुच, वह बालू की ही ज़मीन पर खड़ा था।

उनमें अब शिष्टाचार का अधिक व्यवहार होने लगा। एक-दूसरे की आवभगत ज्यादा करने लगे। वे मिलते-जुलते थे, मगर उसी तरह, जैसे तलवार से ढाल मिलती है।

जुम्मन के चित्त में मित्र की कुटिलता आठों पहर खटा करती थी। उसे हर घड़ी यही चिंता रहती थी कि किसी तरह बदला लेने का अवसर मिले।

अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है परंतु बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं होती; जुम्मन को भी बदला लेने का अवसर जल्द ही मिल गया। पिछले साल अलगू चौधरी बटेसर से बैलों की एक बहुत अच्छी जोड़ी मोल लाए थे। बैल पछाही जाति के सुंदर, बड़े-बड़े सींगोंवाले थे। महीनों तक आसपास के गाँव के लोग उनके दर्शन करते रहे। दैवयोग से जुम्मन की पंचायत के एक महीने बाद इस जोड़ी का एक बैल मर गया। जुम्मन ने दोस्तों से कहा, “यह दगाबाज़ी की सजा है। इनसान सब्र भले ही कर जाए पर ख़ुदा नेक-बद सब देखता है।’

अब अकेला बैल किस काम का? उसका जोड़ बहुत ढूँढ़ा गया पर न मिला तो निश्चय हुआ कि इसे बेच डालना चाहिए। गाँव में एक समझू साहू थे, वे इक्का-गाड़ी हाँकते थे। गाँव से गुड़-घी लादकर मंडी ले जाते, मंडी से तेल-नमक भर लाते और गाँव में बेचते। इस बैल पर उनका मन लहराया। उन्होंने सोचा, यह बैल हाथ लगे तो दिनभर में बेखटके तीन खेप हों। आजकल तो एक ही खेप में लाले पड़े रहते हैं। बैल देखा, गाड़ी में दौड़ाया, मोल तोल किया और उसे लाकर द्वार पर बाँध ही दिया। एक महीने में दाम चुकाने का वादा ठहरा। चौधरी को भी गरज थी ही, घाटे की परवाह न की।

समझू साहू ने नया बैल पाया, तो लगे उसे रगेंदने। वह दिन में तीन-तीन, चार-चार खेपें करने लगे। न चारे की फ़िक्र थी न पानी की, बस खेपों से काम था। मंड़ी ले गए, वहाँ कुछ रूखा भूसा सामने डाल दिया। बेचारा जानवर अभी दम भी न लेने पाता था कि फिर जोत दिया। इक्के का जुआ देखते ही बैल का लहू सूख जाता था। एक-एक पग चलना दूभर था। हड्डियाँ निकल आई थीं परंतु था वह पानीदार, मार की बरदाशत न थी।

एक दिन चौथी खेप में साहूजी ने दूना बोझा लादा। दिनभर का थका जानवर, पैर न उठते थे। कोड़े खाकर कुछ दूर दौड़ा, धरती पर गिर पड़ा, और ऐसा गिरा कि फिर न उठा। कई बोरे गुड़ और कई पीपे घी उन्होंने बेचे थे, दो-ढाई सौ रुपए कमर में बँधे थे। इसके सिवा गाड़ी पर कई बोरे नमक के थे, अतएव छोड़कर जा भी न सकते थे। लाचार बेचारे गाड़ी पर लेट गए। वहीं रतजगा करने की ठान ली। आधी रात तक नींद को बहलाते रहे। सुबह जब नींद टूटी और कमर पर हाथ रखा, तो थैली गायब! घबराकर इधर-उधर देखा, तो कई कनस्तर तेल भी नदारद! प्रातः काल रोते-बिलखते घर पहुँचे। सहुआइन ने जब यह बुरी सुनावनी सुनी, तब पहले तो रोई, फिर अलगू चौधरी को गालियाँ देने लगी- “निगोड़े ने ऐसी कुलच्छनी बैल दिया कि जन्म-भर की कमाई लुट गई।”

इस घटना को हुए कई महीने बीत गए। अलगू जब अपने बैलों के दाम माँगते, तब साहू और सहुआइन दोनों ही झल्ला उठते। चौधरी के अशुभ चिंतकों की कमी न थी। ऐसे अवसरों पर वे भी एकत्र होते आते और साहू जी के बर्राने की पुष्टि करते।

डेढ़ सौ रुपए से इस तरह हाथ धो लेना अलगू चौधरी के लिए आसान न था। एक बार वे भी गरम पड़े। साहू जी बिगड़कर लाठी ढूँढ़ने घर चले गए। अब सहुआइन ने मैदान लिया। प्रश्नोत्तर होते-होते हाथा-पाई की नौबत आ पहुँची। सहुआइन ने घर में घुसकर किवाड़ बंद कर लिए। शोरगुल सुनकर गाँव के भलेमानस जमा हो गए। उन्होंने दोनों को समझाया। साहू जी को दिलासा देकर घर से निकाला। लोगों ने परामर्श दिया कि इस तरह से काम न चलेगा। पंचायत कर लो। जो कुछ तय हो जाए, उसे स्वीकार कर लो। साहू जी राजी हो गए। अलगू ने भी हामी भर ली।

पंचायत की तैयारियाँ होने लगीं। दोनों पक्षों ने अपने-अपने दल बनाने शुरू किए। इसके बाद तीसरे दिन उसी वृक्ष के नीचे पंचायत बैठी।

पंचायत बैठ गई, तो रामधन मिश्र ने कहा, “अब देरी क्या है? पंचों का चुनाव हो जाना चाहिए। बोलो चौधरी, किस-किसको पंच बनाते हो?’

अलगू ने दीन भाव से कहा, “समझू साहू ही चुन लें।”

समझू खड़े हुए और कड़ककर बोले, “मेरी ओर से जुम्मन शेख।”

जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू चौधरी का कलेजा ‘ धक् धक्’ करने लगा, मानो किसी ने अचानक थप्पड़ मार दिया हो। रामधन अलगू के मित्र थे। वह बात तो ताड़ गए। पूछा, “क्यों चौधरी, तुम्हें कोई उज्र तो नहीं?”

चौधरी ने निराश होकर कहा, “नहीं, मुझे क्या उज़ होगा!”

अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधार होता है। जब हम राह भूलकर भटकने लगते हैं, तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक बन जाता है।

जुम्मन शेख के मन में भी सरपंच का उच्च स्थान ग्रहण करते ही अपनी ज़िम्मेदारी का भाव पैदा हुआ। उसने सोचा, ‘मैं इस समय न्याय और धर्म के सर्वोच्च आसन पर बैठा हूँ। मेरे मुँह से इस समय जो कुछ निकलेगा, वह देववाणी के सदृश है और देववाणी में मेरे बुरे विचारों का कदापि समावेश न होना चाहिए। मुझे सत्य से जौ भर भी टलना उचित नहीं।”

पंचों ने दोनों पक्षों से सवाल-जवाब करने शुरू किए। बहुत देर तक दोनों दल अपने-अपने पक्ष का समर्थन करते रहे। यह तो सब चाहते ही थे कि समझू को बैल का मूल्य देना चाहिए परंतु दो महाशय इस कारण रिआयत करना चाहते थे कि बैल के मर जाने से समझू की हानि हुई। सभ्य व्यक्ति समझू को दंड भी देना चाहते थे, जिससे फिर किसी को पशुओं के साथ ऐसी निर्दयता करने का साहस न हो। अंत में जुम्मन ने फ़ैसला सुनाया-

अलगू चौधरी और समझू साहू! पंचों ने तुम्हारे मामले पर अच्छी तरह विचार किया। समझू को उचित है कि बैल का पूरा दाम दें। जिस वक़्त उन्होंने बैल लिया, उसे कोई बीमारी न थी। अगर उसी समय दाम दे दिए जाते, तो झगड़ा ही खत्म हो जाता। बैल की मृत्यु केवल इस कारण हुई कि उससे बड़ा कठिन परिश्रम लिया गया और उसके दाने चारे का कोई अच्छा प्रबंध न किया गया।”

रामधन मिश्र बोले, “समझू ने बैल को जान-बूझकर मारा है, अतएव उनसे दंड लेना चाहिए।”

जुम्मन बोले, “यह दूसरा सवाल है! हमको इससे कोई मतलब नहीं।”

झगड़ साहू ने कहा, “समझू के साथ कुछ रिआयत होनी चाहिए।”

जुम्मन बोले, “यह अलगू चौधरी की इच्छा पर निर्भर है। यह रिआयत करें, तो उनकी भलमनसी।”

अलगू चौधरी फूले न समाए। उठ खड़े हुए और जोर से बोले, “पंच परमेश्वर की जय।’ इसके साथ ही चारों ओर प्रतिध्वनि हुई, “पंच परमेश्वर की जय!”

प्रत्येक मनुष्य जुम्मन की नीति को सराहता था। “इसे कहते हैं न्याय! यह मनुष्य का काम नहीं, पंच में परमेश्वर वास करते हैं, यह उन्हीं की महिमा है। पंच के सामने खोटे को कौन खरा कह सकता है!”

थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आए और उनके गले लिपटकर बोले, “भैया, जब से तुमने मेरी पंचायत की, तब से मैं तुम्हारा प्राणघातक शत्रु बन गया था परंतु आज मुझे ज्ञान हुआ कि पंच के पद पर बैठकर न कोई किसी का दोस्त होता है, न दुश्मन। न्याय के सिवा उसे और कुछ नहीं सूझता। आज मुझे विश्वास हो गया कि पंच की जबान से ख़ुदा बोलता है।” अलगू रोने लगे। इस पानी से दोनों के दिल का मैल धुल गया। मित्रता की मुरझाई हुई लता फिर हरी हो गई।

 

अटल – दृढ़, पक्का

दमभर – पल भर

ईमान – अच्छी नीयत

ता-हयात – जीवन भर स्वीकार

बेकस – निस्सहाय

बेवा – विधवा

वैमनस्य – वैर, विरोध

अर्ज – प्रार्थना

बाज़ी – दाँव, बारी

खिदमत – सेवा

फर्ज़ – कर्तव्य

मुनाफा – लाभ

जिरह – बहस

मिलकियत – संपत्ति

रजिस्ट्री –  जमीन-जायदाद बेचने खरीदने के लिए की जाने क़बूल वाली कानूनी लिखा-पढ़ी

खातिरदारी – सत्कार

सालन – साग आदि की मसालेदार तरकारी

असामी – किसी महाजन या दुकानदार से लेन देन रखने वाला

निष्ठुर – कठोर

ऊसर – बंजर

बघारी – तड़का, छौंक  

गृहस्वामिनी – घर की मालकिन

निर्वाह – गुज़ारा

धृष्टता – ढिठाई, ढीठपन

अनुग्रह – कृपा

ऋणी – कर्जदार

फ़रिश्ता – देवदूत

बिरला – बहुत कम मिलने वाला

दीन वत्सल – दीनों से प्रेम करने वाले

सांत्वना – ढाढ़स बँधाना

कायापलट – बहुत बड़ा परिवर्तन

संकल्प-विकल्प – सोच-विचार में

नीति संगत – नीति के अनुरूप

माहवार – महीने भर का

नदारद – गायब, लुप्त

परामर्श – सलाह

ताड़ जाना – भाँप जाना

उज्ज – आपत्ति, एतराज़

देववाणी – देवताओं की वाणी

सराहना – प्रशंसा

नीति परायणता – नीति का पालन करना

रतजगा – रातभर जागना

बालू – रेत

आवभगत – सेवा-सत्कार

चित्त – हृदय

सभ्य व्यवहार – शिष्टाचार

सुनावनी – ख़बर, सूचना

बर्राना – क्रोध में बोलना

कुटिलता – धोखेबाजी, दुष्टता

दैवयोग – भाग्य से

दगाबाज़ी – छल बाज़ी, धोखा

संकुचित – तंग  

नेक बद –  भला-बुरा

बेखटके – बेधड़क

खेप – एक फेरा, एक बार में ढोया जाने वाला बोझ

गरज – मतलब

रगेदने – भगाना, दौड़ाना

सदृश – बिना संकोच के

भलमनसी – सज्जनता

प्राण घातक – जान लेने वाला

पथ प्रदर्शक – राह दिखाने वाला

सर्वोच्च – सबसे ऊँचा

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-

 (i) जुम्मन शेख की गाढ़ी मित्रता किसके साथ थी?

उत्तर – जुम्मन शेख की गाढ़ी मित्रता अलगू चौधरी के साथ थी।

(ii) रजिस्ट्री के बाद जुम्मन का व्यवहार खाला के प्रति कैसा हो गया था?

उत्तर – रजिस्ट्री के बाद जुम्मन का व्यवहार खाला के प्रति बिल्कुल बदल गया। वह मौसी को बोझ समझने लगा और उसकी पत्नी करीमन भी मौसी के प्रति रूखा रवैया दिखाने लगी।

 (iii) ख़ाला ने जुम्मन को क्या धमकी दी?

उत्तर – ख़ाला ने जुम्मन को धमकी दी कि वह उसे माहवार पैसे दे नहीं तो वह इंसाफ पाने के लिए पंचायत के पास जाएगी।

 (iv) बूढ़ी ख़ाला ने पंच किसको बनाया था?

उत्तर – बूढ़ी ख़ाला ने अलगू चौधरी को पंच बनाया था।

 (v) अलगू के पंच बनने पर जुम्मन को किस बात का पूरा विश्वास था?

उत्तर – अलगू के पंच बनने पर जुम्मन को इस बात का पूरा विश्वास था कि अलगू मौसी के विपक्ष में और मेरे पक्ष में फैसला सुनाएगा जिससे मौसी नाम की बला से मुझे छुटकारा मिल जाएगा।

 (vi) अलगू ने अपना फैसला किसके पक्ष में दिया?

उत्तर –  अलगू ने अपना फैसला सत्य के पक्ष में दिया अर्थात् बूढ़ी मौसी के पक्ष में दिया। 

 (vii) एक बैल के मर जाने पर अलगू ने दूसरे बैल का क्या किया?

उत्तर – एक बैल के मर जाने पर अलगू ने दूसरे बैल को समझू साहू बनिए को बेच दिया जिसने एक महीने बाद बैल की कीमत अलगू को देने का वायदा किया था।

(viii) समझू साहू ने बैल का कितना दाम चुकाने का वादा किया?

उत्तर –  समझू साहू ने बैल के लिए अलगू को डेढ़ सौ रुपए चुकाने का वादा किया था।

 (ix) पंच परमेश्वर की जय-जयकार किस लिए हो रही थी?

उत्तर –  पंच परमेश्वर द्वारा किए गए निष्पक्ष न्याय के कारण हर ओर जय जयकार हो रही थी।  

2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिये-

 (i) जुम्मन और उसकी पत्नी द्वारा खाला की खातिरदारी करने का क्या कारण था?

उत्तर –  जुम्मन और उसकी पत्नी करीमन द्वारा खाला की खातिरदारी करने का यह कारण था कि वे  खाला की ज़मीन अपने नाम करवाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उनकी खातिरदारी के साथ-साथ उनसे यह भी वादा किया था कि जब तक वह हैं, वे उनका बहुत अच्छे से खयाल रखेंगे और खिलाते-पहनाते रहेंगे।

 (ii) बूढ़ी ख़ाला ने पंचों से क्या विनती की?

उत्तर –  बूढ़ी ख़ाला ने पंचों से क्या विनती की कि पंचो, आज तीन साल हुए, मैंने अपनी सारी जायदाद अपने भानजे जुम्मन के नाम लिख दी थी। जुम्मन ने मुझे ता-हयात रोटी कपड़ा देना क़बूल किया था। सालभर तो मैंने इसके साथ रो-धोकर काटा पर अब रात-दिन का रोना नहीं सहा जाता। मुझे न पेट की रोटी मिलती है, न तन का कपड़ा। मैं बेकस बेवा कचहरी नहीं कर सकती हूँ। इसलिए पंच लोग जो न्याय करेंगे वही मुझे स्वीकार होगा।

(iii) अलगू ने पंच बनने के झमेले से बचने के लिए बूढ़ी खाला से क्या कहा?

उत्तर –  अलगू ने पंच बनने के झमेले से बचने के लिए बूढ़ी खाला से कहा कि खाला तुम तो जानती ही हो कि जुम्मन मेरा बचपन का घनिष्ठ मित्र है। अगर मुझे पंच बनाओगी तो हो सकता है कि आपको सही न्याय न मिल पाए। ठीक यही होगा कि मुझे इस मामले में मत घसीटो। 

(iv) अलगू चौधरी ने अपना क्या फैसला सुनाया?

उत्तर – अलगू चौधरी ने जुम्मन शेख और ख़ाला के मामले पर पूरी गहराई से विचार करने के बाद  यह फैसला सुनाया कि या तो जुम्मन को माहवार ख़ाला को पैसे देने होंगे या पंचों के सामने इसी वक्त ख़ाला को ख़ाला के ज़मीन रजिस्ट्री के कागजात लौटाने होंगे और उसे रद्द समझा जाएगा।

(v) अलगू चौधरी से खरीदा हुआ समझू साहू का बैल किस कारण मरा?

उत्तर – अलगू चौधरी से समझू साहू ने नया बैल लिया तो वह दिन में तीन-तीन, चार-चार खेपें करने लगा। समझू को न ही बैल के चारे की फ़िक्र थी न ही पानी की, बस खेपों से काम था। चारे के नाम पर उसे रूखा भूसा खाने को मिलता। इस तरह बेचारा बैल इतना कमजोर पड़ गया कि उसकी हड्डियाँ दिखने लगीं। और एक दिन तो समझू साहू ने अति करते हुए उस पर दूना बोझ लाद दिया। बस यही उसकी मौत का कारण बना।  

(vi) सरपंच बनने पर भी जुम्मन शेख अपना बदला क्यों नहीं ले सका?

उत्तर – सरपंच बनने पर भी जुम्मन शेख अपना बदला नहीं ले सका क्योंकि सरपंच बनने पर उसमें भी न्यायभाव और पंच की मर्यादा का भाव आ गया और वह व्यक्तिगत भावनाओं से ऊपर उठकर निष्पक्ष हो गया। और देववाणी के सदृश सही फैसला सुनते हुए पूरे गाँववालों के सामने एक मिसाल कायम की।

(vii) जुम्मन ने क्या फैसला सुनाया?

उत्तर – अलगू चौधरी और समझू साहू के मामले में जुम्मन ने यह फैसला सुनाया कि समझू के लिए  यही उचित है कि अलगू को बैल का पूरा दाम दें। जिस वक़्त उन्होंने बैल लिया, उसे कोई बीमारी न थी। अगर उसी समय दाम दे दिए जाते, तो झगड़ा ही खत्म हो जाता। बैल की मृत्यु केवल इस कारण हुई कि उससे बड़ा कठिन परिश्रम लिया गया और उसके दाने चारे का कोई अच्छा प्रबंध न किया गया।

 (viii) ‘मित्रता की मुरझाई हुई लता फिर हरी हो गई’- इस वाक्य का क्या अभिप्राय है?

उत्तर – कहानी के अंत में जुम्मन अलगू के पास आया और उसके गले लगकर बोला कि जब से तुमने मेरी पंचायत की, तब से मैं तुम्हारा प्राणघातक शत्रु बन गया था परंतु आज मुझे ज्ञान हुआ कि पंच के पद पर बैठकर न कोई किसी का दोस्त होता है, न दुश्मन। न्याय के सिवा उसे और कुछ नहीं सूझता। आज मुझे विश्वास हो गया कि पंच की जबान से ख़ुदा बोलता है। इस पर वे दोनों रोने लगते हैं। जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की दोस्ती में जो दरार पड़ गई थी वह भी भर जाती है। इसी घटना को “मित्रता की मुरझाई हुई लता फिर हरी हो गई।” कहकर अभिव्यंजित किया गया है।  

3.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिये-

 (i) ‘पंच परमेश्वर’ कहानी का क्या उद्देश्य है?

उत्तर –  मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ आज के संदर्भ में भी अनेक उद्देश्यों को अपने में समाहित किए हुए हैं जैसे-

– इस कहानी से हमें मालूम चलता है कि दोस्ती अपनी जगह है और न्याय अपनी जगह।

– यह कहानी नारी सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है।

– बूढ़ी मौसी का अन्याय के प्रति आवाज़ उठाना हमें यह सिखाता है कि हमें भी अन्याय को सहन नहीं करना चाहिए।

– पंच की ज़िम्मेदारी बहुत अधिक होती है। उसे अपने व्यक्तिगत रिश्ते नाते और लाभ को दरकिनार करके निष्पक्ष होकर फैसला सुनाना चाहिए।

– समझू बनिए की तरह न ही किसी जानवर को परेशान करना चाहिए और न ही किसी के पैसे को हड़पने की कोशिश करनी चाहिए। 

 (ii) अलगू, जुम्मन और खाला में से आपको कौन-सा पात्र अच्छा लगा और क्यों?

उत्तर –  अलगू, जुम्मन और खाला में से मुझे खाला सबसे अच्छी लगी क्योंकि देखा जाए तो यहाँ नारी सशक्तीकरण और नारी के अधिकारों को उठाया गया है। बूढ़ी मौसी ने यहाँ सभी प्रकार के किरदार अदा किए हैं। पहले तो वह अपनी मातृ सुलभ आचरण के कारण जुम्मन की बातों में आकर अपनी ज़मीन उसके नाम कर देती है। इसके बाद जब जुम्मन अपने वादे से मुकर जाता है तो वह कई दिनों तक उसकी ज़्यादतियाँ सहती रहती हैं। जब परिस्थिति असहनीय हो जाती है तो वह पंचायत जाती है और घर-घर जाकर लोगों को अपने साथ हुए अन्याय के बारे में बताती है जिससे यह पता चलता है कि वह बूढ़ी भले ही हो गई है पर उसमें आत्म-विश्वास की कमी बिलकुल नहीं है। वह अलगू को भी मानवता का पाठ पढ़ाती है। बूढ़ी मौसी यह सिद्ध कर देती है कि अगर हमें इंसाफ चाहिए तो खुद ही हाथ-पैर चलाने होंगे।    

(iii) दोस्ती होने पर भी अलगू ने जुम्मन के खिलाफ फैसला क्यों दिया और दुश्मनी होने पर भी जुम्मन ने अलगू के पक्ष में फैसला क्यों दिया?

उत्तर – दोस्ती अपनी जगह है और न्यायधीश की ज़िम्मेदारी अपनी जगह। दोस्ती व्यक्तिगत स्तर पर होती है और न्याय सामाजिक स्तर पर। इस पाठ में दोस्ती होने पर भी अलगू ने जुम्मन के खिलाफ फैसला दिया क्योंकि जुम्मन सचमुच मौसी के साथ अन्याय कर रहा था। जब तक मौसी की ज़मीन जुम्मन के नाम नहीं हो गई थी वह उनका पूरा आदर-सत्कार करता था। ज़मीन अपने नाम करवाने से पहले भी उसने यही वायदा किया था कि वह उन्हें जीवन भर खिलाता-पहनाता रहेगा। पर ज़मीन जुम्मन के नाम होते ही सारा आदर धरा का धरा रह गया और जुम्मन अपने वादे से मुकर गया।  दूसरी तरफ दुश्मनी होने पर भी जुम्मन ने अलगू के पक्ष में फैसला दिया क्योंकि जब समझू बनिए ने अलगू से बैल खरीदा था तब वह हृष्ट-पुष्ट था। चूँकि समझू बनिए ने बैल को सही तरीके से खाना-पानी नहीं दिया और उससे आवश्यकता से अधिक काम लिया इस वजह से उसकी मृत्यु हुई है। इस लिहाज से उसे अलगू चौधरी को बैल के पूरे पैसे देने ही होंगे।

(iv) अलगू के पंच बनने पर जुम्मन के प्रसन्न होने और जुम्मन के पंच बनने पर अलगू के निराश होने का क्या कारण था?

उत्तर – अलगू के पंच बनने पर जुम्मन के प्रसन्न होने का यह कारण था कि उसे इस बात का पूरा भरोसा था कि उसके बचपन का दोस्त अलगू उसके पक्ष में फैसला सुनाएगा और मौसी नाम की मुसीबत से उसे छुटकारा मिल जाएगा। जबकि हुआ ठीक इसके विपरीत। अलगू चौधरी ने पंच की मर्यादा का पालन करते हुए निष्पक्ष होकर फैसला सुनाया। दूसरी ओर अलगू चौधरी और समझू साहू के मामले में जुम्मन के पंच बनने पर अलगू के निराश होने का कारण यह था कि उसे पूरा यकीन था कि किसी भी कीमत पर जुम्मन मुझसे बदला लेने के लिए मेरे पक्ष में फैसला नहीं सुनाएगा। अलगू ने तो यह मान भी लिया था कि उसके बैल के डेढ़ सौ रुपए डूब गए। पर हुआ ठीक इसके विपरीत जुम्मन ने भी पंच की मर्यादा का पालन करते हुए निष्पक्ष होकर फैसला सुनाया।

1.निम्नलिखित तत्सम शब्दों के तद्भव रूप लिखिए-

तत्सम तद्भव

मुख   मुँह

पंच    पाँच

मित्र   मीत

ग्राम   गाँव

उच्च   ऊँचा

गृह    घर

मृत्यु   मौत

संध्या शाम

मास   महीना

निष्ठुर कठोर,निठुर

2.विराम चिह्न

प्रेमचंद ने ठीक ही कहा है, “खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है। जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने की लगन का।

उपर्युक्त वाक्य में हिंदी विराम चिह्नों में से ‘उद्धरण चिह्न’ का प्रयोग हुआ है।

किसी के द्वारा कहे गए कथन या किसी पुस्तक की पंक्ति या अनुच्छेद को ज्यों का त्यों उद्धृत करते समय दुहरे उद्धरण चिह्न का प्रयोग होता है।

पूर्ण विराम तथा अल्प विराम पिछली कक्षाओं में करवाए गए हैं। निम्नलिखित वाक्यों में उपयुक्त स्थान पर उचित विराम चिह्न लगाएँ-

जुम्मन ने क्रोध से कहा अब इस वक्त मेरा मुँह न खुलवाओ

उत्तर – जुम्मन ने क्रोध से कहा, “अब इस वक्त मेरा मुँह न खुलवाओ।”

खाला ने कहा बेटा क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोंगे

उत्तर – खाला ने कहा, “बेटा, क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोंगे?”

अलगू बोले खाला तुम जानती हो कि मेरी जुम्मन से गाढ़ी दोस्ती है

उत्तर – अलगू बोले, “खाला, तुम जानती हो कि मेरी जुम्मन से गाढ़ी दोस्ती है।”

उन्होंने पान इलायची हुक्के तंबाकू आदि का प्रबंध भी किया था।

उत्तर – उन्होंने पान, इलायची, हुक्के, तंबाकू आदि का प्रबंध भी किया था।

3.निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर इनका अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

मुहावरा             अर्थ               वाक्य

मौत से लड़कर आना – मृत्यु न होना – भारतीय सैनिक को छह गोली लगने पर भी वह मौत से लड़कर आ गया।

कमर झुककर कमान होना – बूढ़ा हो जाना – मेरे दादा की कमर झुककर कमान हो चुकी है।

दुख के आँसू बहाना – दुख के कारण रोना – अपने पुराने दिनों को याद करके सुरेश दुख के आँसू बहाता है।

मुँह न खोलना – चुप रहना – शिक्षक से बहुत डाँट खाने पर भी सुधीर ने मुँह न खोला और अपने बदमाश मित्रों के नाम नहीं बताए। 

रात दिन का रोना –  दुखी रहना – जुम्मन शेख की उपेक्षा से बूढ़ी मौसी रात दिन का रोना रोने लगी थी।

राह निकालना –  युक्ति निकालना – समझदार लोग समस्याओं में भी राह निकाल ही लेते हैं।

हुक्म सिर माथे पर चढ़ाना – बात मानना – मंत्रिगण महाराजा को हुक्म सिर माथे पर चढ़ाते हैं।

मुँह खुलवाना –  बात उगलवाना – पुलिस को मुँह खुलवाना अच्छी तरह आता है।

कन्नी काटना – बचना – आजकल लोग चुनौतियों से कन्नी काट लेते हैं।

ईमान बेचना – बेईमान होना – हमें किसी भी कीमत पर अपना ईमान नहीं बेचना चाहिए।

मन में कोसना – मन में बुरा भला कहना – राजेश अपने बॉस को मन में कोसता रहता है।

जड़ खोदना – बात को बार-बार कुरेदना – कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो जड़ खोदने में लगे रहते हैं।

सन्नाटे में आना – स्तब्ध या सुन्न हो जाना – अपने सामने एक कार दुर्घटना देखकर मोहित सन्नाटे में आ गया।

दूध का दूध पानी का पानी – पूरा-पूरा न्याय करना – महाराज विक्रमादित्य दूध का दूध पानी का पानी करने में प्रवीण थे।

जड़ हिलाना – नष्ट करना – भारतीय क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ हिला दी थी।

तलवार से ढाल मिलना – शत्रुता के भाव से मिलना – पंचायती के दौरान जुम्मन अलगू से ऐसे मिला मानो तलवार से ढाल मिल रही हो।

आठों पहर खटकना – हमेशा बुरा लगना – जुम्मन को मौसी आठों पहर खटकती थी।

मन लहराना – खुशी होना – मौसी की ज़मीन अपने नाम करवाने के बाद जुम्मन का मन लहराने लगा।

लाले पड़ना –  मुश्किल में पड़ना – बहुत लोगों से कर्ज ले लेने के बाद दिनेश को प्राण के लाले पड़ रहे हैं।

मोल तोल करना – कीमत तय करना – महिलाएँ  मोल-तोल करना बखूबी जानती हैं।

लहू सूखना – अत्यधिक डर लगना – नाग साँप को अपने सम्मुख देखकर अनिल का लहू सूख गया।

नींद को बहलाना – जाग जाग कर रात काटना – चौकीदार नींद को बहलाना बहुत अच्छे से जानते हैं।

हाथ धो बैठना – गँवा बैठना – थोड़ी सी लापरवाही के कारण लोग जान से हाथ धो बैठते हैं।

कलेजा धक् धक् करना – व्याकुल होना – पहली बार स्काई डाईविंग करने के दौरान मेरा कलेजा धक् धक् कर रहा था।

फूले न समाना – अत्यंत प्रसन्न होना – अपने बेटे को एक साल बाद देखकर माँ फूले न समा रही हैं।

गले लिपटना – आलिंगन करना – जुम्मन और अलगू गले लिपटकर रोने लगे।

मैल धुलना – दुश्मनी खत्म होना – जुम्मन और अलगू के हृदय के मैल धुल गए।

1.यदि अलगू जुम्मन के पक्ष में फैसला सुना देता तो खाला पर क्या गुज़रती?

उत्तर – यदि अलगू जुम्मन के पक्ष में फैसला सुना देता तो खाला पर वज्रपात ही हो जाता। उसका सच्चाई पर से विश्वास ही उठ जाता। वह जीते जी मर जाती और अल्लाह तआला से यही गुजारिश करती कि उसे इस दुनिया से रुखसत कर दे। 

2.यदि जुम्मन शेख-समझू साहू के पक्ष में फैसला सुना देता तो अलगू क्या सोचता?

उत्तर – यदि जुम्मन शेख, समझू साहू के पक्ष में फैसला सुना देता तो अलगू यही सोचता कि इसने गलत फैसला सुनाया है और मुझसे बदला लिया है। इसके अलावा पूरा गाँव जुम्मन शेख के फैसले से नाराज़ होता।

3.‘दूध का दूध पानी का पानी पर कोई घटना या कहानी लिखें।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न को अपने स्तर पर करें।

1.अपने गाँव में लगने वाली ग्राम पंचायत के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न को अपने स्तर पर करें।

2.सरपंच बनकर फैसला करते समय आप अपने मित्र को महत्व देते या फिर न्याय व्यवस्था को इस पर अपने विचार कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न को अपने स्तर पर करें।

3.यदि आप ख़ाला की जगह होते तो क्या आप भी न्याय के लिए इतनी ही हिम्मत और साहस दिखाते या अन्याय सहते इस पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न को अपने स्तर पर करें।

4.पुस्तकालय से प्रेमचंद के कहानी-संग्रह ‘मानसरोवर’ में से मित्र, ‘नशा’, ‘नमक का दारोगा’ आदि कहानियाँ पढ़िए।

उत्तर – छात्र इस प्रश्न को अपने स्तर पर करें।

हज – हज एक इस्लामी तीर्थ यात्रा और मुस्लिमों के लिए सर्वोच्च इबादत है। हज यात्रियों के लिए काबा पहुँचना जन्नत के समान है। काबा शरीफ मक्का में है। हज मुस्लिम लोगों का पवित्र शहर मक्का में प्रतिवर्ष होने वाला विश्व का सबसे बड़ा जमावड़ा है।

उर्दू में रिश्तों के नाम

अम्मी (माता)        अब्बू (पिता)        

वालिदा (माता)       वालिद (पिता) माता पिता दोनों के लिए

वालिदेन            माता-पिता दोनों के लिए

बीवी (पत्नी)         शौहर (पति)

खाला (मौसी)         खालू (मौसा)

खालाजाद           मौसी के बच्चे

मुमानी (मामी)       मामूं (मामा)

सास               ससुर

भाबी               भाई

बहन               बहनोई

बेटी                दामाद

 

You cannot copy content of this page