Punjab Board, Class IX, Hindi Pustak, The Best Solution Neenva Ki Iint, Shree Ramvriksha Benipuri, नींव की ईंट, श्री रामवृक्ष बेनीपुरी

(सन् 1902-1968)

श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का हिंदी गद्य जगत में अद्भुत योगदान रहा है। इनका जन्म सन् 1902 ई. में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में बेनीपुर गाँव में हुआ था। बचपन में ही इनके माँ-बाप का निधन हो गया था। ये दृढ़ निश्चयी थे अतः इन्होंने कष्ट सहकर मैट्रिक कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। गाँधी जी के नेतृत्व में सन् 1920 में असहयोग आंदोलन का इन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि ये अध्ययन छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। इन्हें भी राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ ये कुशल संपादक, श्रेष्ठ साहित्यकार भी थे। माँ सरस्वती व भारत माता की सेवा करते हुए 7 सितम्बर, सन् 1968 को इनका निधन हो गया।

रचनाएँ : चिता के फूल (कहानी), आम्रपाली (नाटक), माटी की मूरतें (रेखाचित्र), पतितों के देश में (उपन्यास), जंजीरें और दीवारें (संस्मरण) इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनकी रचनाओं की भाषा सरल एवं व्यावहारिक खड़ी बोली है।

‘नींव की ईंट’ एक बहुत ही रोचक एवं प्रेरक निबंध है। इस पाठ में लेखक कहना चाहता है कि व्यक्ति को देश और समाज के कल्याण व उत्थान के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। लेखक को बहुत अफ़सोस है कि लोग किसी भवन के कँगूरे (भवन का सबसे ऊपरी भाग) की तरह बनना चाहते हैं क्योंकि कँगूरा उन्हें लुभाता है, उसकी सुंदरता व चमक उन्हें आकर्षित करती है। इस कँगूरे को पाने की सभी में होड़ मची है किंतु नींव की ईंट कोई नहीं बनना चाहता। जबकि सत्य यह है कि नींव की ईंट को हिला देने से कँगूरा ज़मीन पर औंधे मुँह गिर जाएगा। अतः लेखक का मानना है कि आज देश को ऐसे नवयुवकों की आवश्यकता है जो तारीफ़ के लिए नहीं अपितु कर्त्तव्य के लिए कर्म करें। लेखक ने नींव की ईंट के माध्यम से बच्चों को निःस्वार्थ त्याग और बलिदान की प्रेरणा दी है।

वह जो चमकीली, सुंदर, सुघड़-सी इमारत है, वह किस पर टिकी है? इसके कँगूरों को आप देखा करते हैं, क्या कभी आपने इसकी नींव की ओर ध्यान दिया है?

दुनिया चमक-दमक देखती है, ऊपर का आवरण देखती है, आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है, उस पर कितने लोगों का ध्यान जाता है?

ठोस ‘सत्य’ सदा ‘शिवम्’ होता ही है किंतु वह हमेशा ‘सुंदरम्’ भी हो, यह आवश्यक नहीं। सत्य कठोर होता है, कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं। हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं इसलिए सत्य से भी भागते हैं। नहीं तो हम इमारत के गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते।

वह ईंट धन्य है जो कट छँटकर कँगूरे पर चढ़ती है और बरबस लोक-लोचनों को अपनी ओर आकृष्ट करती है। किंतु धन्य है वह ईंट, जो ज़मीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी।

क्यों इसी पहली ईंट पर उसकी मजबूती और पुख्तेपन पर सारी इमारत की अस्ति-नास्ति निर्भर करती है?

उस ईंट को हिला दीजिए, कँगूरा बेतहाशा ज़मीन पर आ गिरेगा।

कँगूरे के गीत गाने वाले हम, आइए, अब नींव के गीत गाएँ।

वह ईंट, जो ज़मीन में इसलिए गड़ गई कि दुनिया को इमारत मिले, कँगूरा मिले। वह ईंट, जो सब ईंटों से ज्यादा पक्की थी जो ऊपर लगी होती तो कँगूरे की शोभा सौगुनी कर देती।

किंतु जिस ईंट ने देखा, इमारत की पायदारी उसकी नींव पर मुनहसिर होती है इसलिए उसने अपने को नींव में अर्पित किया।

वह ईंट, जिसने अपने को सात हाथ ज़मीन के अंदर इसलिए गाड़ दिया कि इमारत ज़मीन से सौ हाथ ऊपर तक जा सके।

वह ईंट, जिसने अपने लिए अंधकूप इसलिए क़बूल किया कि ऊपर के उसके साथियों को स्वच्छ हवा मिलती रहे, सुनहली रोशनी मिलती रहे।

वह ईंट, जिसने अपना अस्तित्व इसलिए विलीन कर दिया कि संसार एक सुंदर सृष्टि देखे। सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का सुंदर इमारत बने इसलिए कुछ पक्की पक्की लाल ईंटों को चुपचाप नींव में जाना है। सुंदर समाज बने इसलिए कुछ तपे – तपाए लोगों को मौन मूक शहादत का लाल सेहरा पहनना है।

शहादत और मौन – मूक! जिस शहादत को शुहरत मिली, जिस बलिदान को प्रसिद्धि प्राप्त हुई, वह इमारत का कँगूरा है मंदिर का कलश है।

हाँ, शहादत और मौन मूक! समाज की आधारशिला यही होती है।

ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बना दिया, आप कह लीजिए। किंतु मेरी समझ में ईसाई धर्म को अमर बनाया उन लोगों ने, जिन्होंने उस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया।

उसमें से कितने जिंदा जलाए गए, कितने शूली पर चढ़ाए गए, कितने वन-वन की खाक छानते जंगली जानवरों के शिकार हुए, कितने उससे भी भयानक भूख-प्यास के शिकार हुए। उनके नाम शायद ही कहीं लिखे गए हों। उनकी चर्चा शायद ही कहीं होती हो किंतु ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फूल रहा है। वे नींव की ईंट थे, गिरजाघर के कलश उन्हीं की शहादत से चमकते हैं।

आज हमारा देश आजाद हुआ। सिर्फ उनके बलिदानों के कारण नहीं, जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है।

देश का शायद कोई ऐसा कोना हो, जहाँ कुछ ऐसे दधीचि नहीं हुए हों, जिनकी हड्डियों के दान ने ही विदेशी वृत्रासुर का नाश किया।

हम जिसे देख नहीं सके, वह सत्य नहीं है, यह है मूढ़ धारणा ढूँढने से ही सत्य मिलता है। हमारा काम है, धर्म है, ऐसी नींव की ईटों की ओर ध्यान देना।

सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हमने पहला कदम बढ़ाया है। इस नए समाज के निर्माण के लिए हमें नींव की ईंट चाहिए।

अफ़सोस, कँगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही हैं।

सात लाख गाँवों का नवनिर्माण! हजारों शहरों और कारखानों का नव-निर्माण। कोई शासक इसे संभव नहीं कर सकता। ज़रूरत है ऐसे नौजवानों की जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दें।

जो एक नई प्रेरणा से अनुप्राणित हों, एक नई चेतना से अभिभूत, जो शाबाशियों से दूर हों, दलबंदियों से अलग हों, जिनमें कँगूरा बनने की कामना न हो; कलश कहलाने की जिनमें वासना न हो, सभी कामनाओं एवं सभी वासनाओं से दूर हों।

उदय के लिए आतुर हमारा समाज चिल्ला रहा है- हमारी नींव की ईंट किधर है? देश के नौजवानों को यह चुनौती है।

 

सुघड़ – सुडौल, जिसकी बनावट सुंदर हो

आवरण – पर्दा

भद्दापन – बदसूरती

आकृष्ट – आकर्षित

कँगूरा – चोटी, शिखर, गुंबद, बुर्ज

शिवम् – कल्याणकारी

लोकलोचनों – लोगों की नज़रों

अस्ति नास्ति – होना न होना

पायदारी – मज़बूती

अंधकूप – अँधेरा कुआँ

मुनहसिर – निर्भर

बेतहाशा – अचानक और वेगपूर्वक

विलीन –  ओझल, अदृश्य, मिल जाना

अस्तित्व – हस्ती

शुहरत – शोहरत, ख्याति, प्रसिद्धि

उत्सर्ग – बलिदान

शहादत – बलिदान

मूढ़ – मूर्ख

आधारशिला – बुनियाद का पत्थर

शूली – लोहे की नुकीली छड़, प्राण दंड देने का एक साधन

लुप्त –  गायब

वासना –  इच्छा

अनुप्राणित – प्रेरित

होड़ा-होड़ी – प्रतिस्पर्धा, एक दूसरे से आगे बढ़ जाने की कोशिश

आतुर –  उतावला

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-

(i) ‘नींव की ईंट’ पाठ के आधार पर बतायें कि दुनिया क्या देखती है?

उत्तर – ‘नींव की ईंट’ पाठ के आधार पर दुनिया इमारत की चमक-दमक देखती है, ऊपर का आवरण देखती है, आकर्षक कँगूरे को देखती है।

(ii) इमारत का होना न होना किस बात पर निर्भर करता है?

उत्तर – इमारत का होना न होना नींव या बुनियाद की मजबूती पर निर्भर करता है।

(iii) लेखक ने नींव की ईंट किसे बताया है?

उत्तर – लेखक ने इमारत के संदर्भ में नींव की ईंट उन मजबूत लाल ईंटों को बताया है जो जमीन के सात हाथ नीचे दबे हुए हैं और समाज के संदर्भ में नींव की ईंट उन महान देशभक्तों को बताया है जिन्होंने अपनी चिंता किए बिना समाज के उत्थान के लिए अपना बलिदान दे दिया।

(iv) नींव की ईंट ने अपना अस्तित्व क्यों विलीन कर दिया?

उत्तर – नींव की ईंट ने अपना अस्तित्व विलीन कर दिया ताकि एक भव्य और मजबूत इमारत खड़ी हो सके।

(v) ईसा की शहादत ने किस धर्म को अमर बना दिया?

उत्तर – ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बना दिया।

(vi) किसकी हड्डियों के दान से वृत्रासुर का नाश हुआ?

उत्तर – महर्षि दधीचि के हड्डियों (अस्थियाँ) के दान से वृत्रासुर का नाश हुआ था।

(vii) लेखक के अनुसार सत्य की प्राप्ति कब होती है?

उत्तर – लेखक के अनुसार सत्य की प्राप्ति सत्य को ढूँढने से होती है और सत्य को इमारत की नींव में ढूँढा जा सकता है।

(viii) पाठ में लेखक ने ‘दधीचि’ तथा ‘वृत्रासुर’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त किए हैं?

उत्तर – पाठ में लेखक ने ‘दधीचि’ का प्रयोग देश के उन देशभक्तों के लिए किया है जिनकी कुर्बानियों के कारण भारत देश को विदेशी आक्रांताओं अर्थात् ‘वृत्रासुर’ जैसे राक्षसों से मुक्त किया जा सका। 

2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिये-

 (i) नींव की ईंट और कंगूरे की ईंट दोनों क्यों वन्दनीय हैं?

 उत्तर – नींव की ईंट वंदनीय है क्योंकि वह अपने अस्तित्व को जमीन से सात हाथ नीचे दबाकर इमारत के निर्माण की पहली ईंट बनती है, जिसपर भव्य इमारत का निर्माण होता है। कंगूरे की ईंट वंदनीय है क्योंकि यह भी कट-छँट कर इमारत के ऊपर लगती है और और अपनी सुंदरता से लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं और इमारत की शोभा बढ़ाती है।

(ii) नींव की ईंट पाठ के आधार पर सत्य का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘नींव की ईंट’ पाठ के आधार पर सार्वभौमिक सत्य के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि सत्य सदा ठोस और कठोर होता है इसलिए ‘सत्य’ सदा ‘शिवम्’ होता है। किंतु सत्य हमेशा ‘सुंदरम्’ भी हो, यह आवश्यक नहीं। सत्य कठोर होता है इसलिए उसमें कठोरता और भद्दापन दोनों साथ-साथ होता है। दूसरी तरफ हम कठोरता और भद्देपन से मुख मोड़ते हैं इसलिए सत्य से भी भागते हैं।

(iii) देश को आजाद करवाने में किन लोगों का योगदान रहा? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर – देश को आजाद करवाने में ऐसे अनेक महान विभूतियों का योगदान रहा है जिन्होंने आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य और सुनहरे दिनों के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना आज़ादी के पथ पर अपने शीश कटवा लिए। इनमें से कुछ तो इतिहास के पन्नों पर अमर हो गए परंतु बहुत से ऐसे स्वतंत्रता सैनानी भी रहे जो इतिहास के पन्नों पर अंकित न होकर गुमनामी में खो गए।  

(iv) आजकल के नौजवानों में कँगूरा बनने की होड़ क्यों मची हुई है?

उत्तर – आजकल के नौजवानों में कँगूरा बनने की होड़ मची हुई है क्योंकि उनमें बलिदान की भावना तो लेश मात्र भी नहीं है अगर है तो लोकप्रियता और प्रसिद्धि प्राप्त करने की चाह। इस कलियुग में हमारी सीमित और संकुचित दृष्टिकोण के कारण हम भी वास्तविक सच्चाई तक नहीं पहुँच पाते हैं। यह बात उन नौजवानों को भली-भाँति पता है कि किसी का भी ध्यान नींव की ईंट की तरफ नहीं जाता, ध्यान जाता है तो उस तरफ जो सुंदर और आकर्षक दिखता है।

(v) नये समाज के निर्माण के लिए हमें किस चीज़ की आवश्यकता है?

उत्तर – नये समाज के निर्माण के लिए हमें ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है जो देशप्रेम से अनुप्राणित होकर अपना जीवन देश के उत्थान में समर्पित कर दें। इनकी मानसिकता में यही विचारधारा का सतत् प्रवाह होना चाहिए कि उन्हें प्रसिद्धि मिले या न मिले, आने वाली पीढ़ी उनके बारे में जान पाए या न पाए लेकिन नींव की ईंट की तरह उन्नत समाज की आधारशिला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके।

3.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिये-

(i) ‘नींव की ईंट’ पाठ के आधार पर बताएँ कि समाज की आधारशिला क्या होती है?

उत्तर – ‘नींव की ईंट’ पाठ के आधार पर रामवृक्ष बेनीपुरी के अनुसार समाज की आधारशिला महान विभूतियों के समर्पण और बलिदान पर टिकी होती है। अगर आज हमारे प्यारे भारत देश में शाश्वत मूल्य स्थापित हैं तो इसकी वजह केवल देशप्रेमी आर मानव कल्याण की भावना से ओत-प्रोत वाले महानुभाव ही हैं। दुख की बात यह यह कि लेखक को लगता है कि वह साँचा शायद टूट गया है जिसमें महापुरुष ढला करते थे। यही कारण है कि लेखक को यह निबंध लिखना पड़ा जिसमें नींव की ईंट तो कोई नहीं बनना चाहता पर इमारत का कंगूरा बनने के लिए लार टपकाने वालों की कमी नहीं है।    

(ii) आज देश को कैसे नौजवानों की जरूरत है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।

उत्तर – आज देश को ऐसे नौजवानों की जरूरत है जो देश के उत्थान के लिए समर्पण और बलिदान की भावना रखे। इमारत का कंगूरा बनने की चाह से पहले इमारत की नींव की ईंट बनने में गौरव का अनुभव करें। हमें ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है जो देश के उद्धार के लिए भरसक कोशिश करें और प्रसिद्धि या श्रेय न मिलने पर भी विचलित हुए बिना देशोद्धार का काम पूरी तन्मयता से करें। उनके कर्मों का केंद्रीय भाव केवल और केवल देश को उन्नति के मार्ग पर द्रुत गति से अग्रसर करना हो।

(iii) निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-

– सुंदर समाज बने, इसलिए कुछ तपे तपाए लोगों को मौन मूक शहादत का लाल सेहरा पहनना है।

उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि यह तयशुदा बात है कि देश की उन्नति हेतु काम करने वाले लोगों के समुदाय में बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें न ही श्रेय मिलता है और न ही इतिहास के पन्नों पर कभी उनका नाम ही अंकित हो पाता है। ये ऐसे सज्जन होते हैं जो मूक रहते हुए अपना सारा जीवन देश और समाज की उन्नति के हवनकुंड में स्वाहा कर देते हैं।

– हम जिसे देख नहीं सके, वह सत्य नहीं है, यह है मूढ़ धारणा। ढूँढ़ने से ही सत्य मिलता है। ऐसी नींव की ईंटों की ओर ध्यान देना ही हमारा काम है, हमारा धर्म है।

उत्तर – इन पंक्तियों का आशय यह है कि हमें जो दिखता है सत्य केवल उतना ही नहीं है बल्कि सत्य तो और भी अधिक व्यापक और विस्तृत होता है जिसे खोजना पड़ता है। इमारत की सुंदरता देखकर हम उसे ही सत्य मान लेते हैं और उस सत्य के पीछे एक और सत्य भी है जिसे न तो हम देखना चाहते हैं और न ही उसके बारे में सोचते हैं, यह सत्य है – नीव की ईंट। नींव की ईंट जमीन से सात हाथ नीचे दबी हुई है जो उस सुंदर इमारत की आधारशिला होती है, यह सत्य कठोरता और भद्देपन से सराबोर होता है जिसे हम देखना तक पसंद नहीं करते। हमें चाहिए कि हम ऐसे सत्य का उद्घाटन करें और अपनी दृष्टिकोण का विस्तार करें।

– उदय के लिए आतुर समाज चिल्ला रहा है- हमारी नींव की ईंट किधर है? देश के नौजवानों को यह चुनौती है।

उत्तर – आज विकसित देशों की श्रेणी में हमारा देश भारत का स्थान बहुत पीछे है। देखा जाए तो जनसंख्या के मामले में अग्रणी देश होने के बावजूद भी इसके पिछड़ेपन का कारण नौजवानों में देशप्रेम की भावना का ह्रास होना ही है। आज आवश्यकता है तो ऐसे नौजवानों की जो देशप्रेम और राष्ट्र उद्धार के पुनीत कार्य में पूरे मनोयोग से लगे। उन्हें न ही प्रसिद्धि की चाह हो और न ही श्रेय की इच्छा। वे तो बस एकमत और एकलक्ष्य से देश के विकास के लिए काम करें। देश के नौजवानों के लिए यह एक चुनौती है।

1.निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-

शब्द     उपसर्ग   मूल शब्द

आवरण    आ + वरण

प्रताप    प्र + ताप

प्रचार    प्र + चार

बेतहाशा   बे + तहाशा

प्रसिद्धि   प्र + सिद्धि

अभिभूत   अभि + भूत

अनुप्राणित अनु + प्राणित  

आकृष्ट    आ + कृष्ट

2.निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए-

शब्द      मूल शब्द   प्रत्यय

मज़बूती   मज़बूत + ई

भद्दापन  भद्दा + पन

पायदारी   पाय + दार + ई

विदेशी    विदेश  + ई

चमकीली  चमक + ईला + ई

पुख्तापन  पुख्ता + पन

कारखाना  कार  + खाना

सुनहली   सुनहला + ई

3.निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उन्हें वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए-

मुहावरा             अर्थ                     वाक्य

नींव की ईंट बनना – काम का आधार बनना – हमारे पूर्वज हमारे कुल की नींव की ईंट बने हैं।

 शहादत का लाल – बलिदान देने वाला व्यक्ति – भगत सिंह शहादत का लालों में अग्रणी हैं।

सेहरा पहनना – सर्वस्व बलिदान देना – मदन मोहन मालवीय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के निर्माण हेतु सेहरा पहन चुके थे। 

खाक छानना – बहुत ढूँढ़ना, मारा-मारा फिरना – बेरोजगार नौकरी की तलाश में खाक छानते फिरते हैं।

फलना फूलना – सुखी व संपन्न होना – बड़े हमें फलने-फूलने का आशीर्वाद देते हैं।

खपा देना – किसी काम में लग जाना, उपयोग में आना – युवक गुकेश ने शतरंज के खेल में महारत हासिल करने के लिए अपनी ज़िंदगी खपा दी।

4. निम्नलिखित वाक्यों में उचित विराम चिह्न लगाइए-

(i) कँगूरे के गीत गाने वाले हम आइए अब नींव के गीत गाएँ

उत्तर – कँगूरे के गीत गाने वाले हम, आइए, अब नींव के गीत गाएँ।

(ii) हाँ शहादत और मौन मूक समाज की आधारशिला यही होती है

उत्तर – हाँ, शहादत और मौन, मूक समाज की आधारशिला यही होती है।

(iii) अफसोस कँगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा होड़ी मची है नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है

उत्तर – अफसोस, कँगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है।

(iv) हमारी नींव की ईंट किधर है

उत्तर – हमारी नींव की ईंट किधर है?

1.आप नींव की ईंट या कँगूरे की ईंट में से कौन-सी ईंट बनना चाहेंगे और क्यों? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – मुझसे अगर सच पूछा जाए तो मैं कँगूरे की ईंट बनना चाहूँगा। हालाँकि यह पाठ के सिद्धांतों और सीखों के विरुद्ध है फिर भी मैं कँगूरे की ईंट ही बनना चाहूँगा। मैं भी यही चाहता हूँ कि लोग मुझे मेरी सुंदरता और ज्ञान की वजह से सराहें। मैं भी लोगों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर सकूँ और उनमें भी अद्वितीय व्यक्तित्व बनने की चाह पैदा कर सकूँ।

2.लेखक इस पाठ में नींव की ईंट के माध्यम से क्या संदेश देना चाहता है?

उत्तर – लेखक इस पाठ के माध्यम से हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। हमें जो दिखाई देता है सत्य केवल उतना ही नहीं होता बल्कि उससे भी कहीं अधिक व्यापक और विस्तृत होता है। हमारी दृष्टिकोण के विकास से हम उस व्यापक सत्य को देख, जान और समझ पाएँगे। साथ ही साथ हमारी परख और अन्वेषण करने की शक्ति भी विकसित होगी। 

3.आपकी नज़र में ऐसा कौन सा व्यक्तित्व है जिसने देश और समाज के उत्थान में नींव की ईंट के समान कार्य किया है। उसके योगदान को बताते बात स्पष्ट करें।

उत्तर – मेरी नज़र में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस और भीमराव आंबेडकर दो ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने देश और समाज के उत्थान में नींव की ईंट के समान कार्य किया है। नेताजी ने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया तो भीमराव आंबेडकर ने समानता का अधिकार दिलाकर सबको एक पंक्ति में ला खड़ा किया।

1.अपने स्कूल / आस-पड़ोस कहीं भी यदि किसी नयी इमारत का निर्माण हो रहा हो तो वहाँ जाकर कारीगर से जानकारी प्राप्त करें कि इमारत की नींव रखने के लिए किस प्रकार ज़मीन की खुदाई की जाती है और कैसे उस खुदी हुई ज़मीन पर सुंदर और विशाल इमारत खड़ी करने से पूर्व नींव की ईंटें रखी जाती हैं।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

2.‘हमारे देश की नींव’ शीर्षक के अंतर्गत कुछ ऐसे देशभक्तों और महापुरुषों के नाम एक चार्ट पर लिखकर स्कूल / कक्षा की दीवार पर लगाइए।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

दधीचि – एक प्रसिद्ध ऋषि जिसने अपने शरीर की हड्डियाँ देवताओं को अर्पित कर दी थीं और स्वयं मरने को तैयार हो गया था। इन हड्डियों से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने एक वज्र का निर्माण किया था।

वृत्रासुर – एक राक्षस। ऋषि दधीचि की हड्डियों से निर्मित वज्र से इन्द्र ने वृत्रासुर व अन्य राक्षसों को मार गिराया था।

सफलता की नींव – हम लोग किसी सफल व्यक्ति की सफलता से प्रभावित होते हैं, उससे प्रेरणा लेते हैं किंतु सफल व्यक्ति की सफलता की नींव को जानने का प्रयास कितने लोग करते हैं? दरअसल सफल व्यक्ति की कामयाबी की कहानी में त्याग, निष्ठा, मेहनत, अनुशासन, समर्पण और यहाँ तक कि अनेक असफलताएँ भी छिपी होती हैं। यही सब कुछ उनकी आज की सफलता की नींव बनती हैं।

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