(जन्म सन् 1896)
सेठ जी साहित्य और राजनीति का संगम थे। देश प्रेम इन्हें संस्कारों में मिला था। यही उनके जीवन और साहित्य का प्रखर स्वर रहा है। हिंदी के प्रचार और प्रसार में इन्होंने विशेष रचनात्मक योग दिया है। एक लंबे समय तक ये लोकसभा के सम्माननीय सदस्य रहे हैं। भारत सरकार ने इन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित भी किया है।
वैसे तो सेठ जी ने साहित्य के सभी क्षेत्रों में लेखन कार्य किया है, परंतु नाटक-एकांकी के क्षेत्र में इन्होंने महान् ख्याति प्राप्त की है।
रचनाएँ (नाटक-एकांकी)
‘कर्तव्य’, ‘हर्ष’, ‘प्रकाश’, ‘कर्ण’, ‘शशिगुप्त’, ‘सेवापथ अशोक’, ‘विकास’, ‘शाप और वर’, ‘सच्चा जीवन’, ‘अलबेला’।
इनके नाटकों-एकांकियों में ऐतिहासिक, सामाजिक पृष्ठभूमि पर हमारे जीवन की अनेक समस्याओं को उठाया गया है। इनमें भारतीय संस्कृति, राष्ट्र-प्रेम और गाँधी-दर्शन का आलोक फैला है।
हिंदी-नाटक और एकांकी के विकास में डॉ. सेठ की सेवाओं का ऐतिहासिक महत्व है।
शिवाजी हमारे राष्ट्रीय गौरव का महान ध्वज हैं। वे अपराजेय शक्ति, शौर्य और पराक्रम के साक्षात् रूप थे। धर्मान्ध विदेशी शासन के अमानुषिक अत्याचारों से उन्होंने निरंतर लोहा लिया। देश की शक्तियों को संगठित कर “हिंदवी स्वराज्य” की स्थापना की। ऐसा स्वराज्य जो सर्वथा धर्मनिरपेक्ष था। मानव मूल्यों की आधार शिलाओं पर उसकी रचना हुई थी। उसमें प्रत्येक नागरिक को सम्मानपूर्ण जीवन-यापन के पूर्ण अधिकार प्राप्त थे।
शिवाजी का यही शुचि चरित्र प्रस्तुत एकांकी में सामने आया है। शत्रु पत्नी उन्हें माँ से भी अधिक वंदनीय है। अन्य धर्मों को मानने वाले उन्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। उनके स्वराज्य में न कहीं मस्जिद कुरान का अपमान हुआ और न कहीं किसी मुसलमान से द्वितीय श्रेणी के नागरिक का व्यवहार ही उनकी सेना में वे भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त थे।
वस्तुतः शिवाजी के नेतृत्व में यहाँ की संपूर्ण प्रजा ने एक प्राण होकर अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष किया था।
एकांकी के पात्र
शिवाजी – प्रसिद्ध मराठा वीर
मोरोपंत – पेशवा
आवाजी सोनदेव – शिवाजी का एक सेनापति
स्थान
राजगढ़ दुर्ग का एक दालान
काल – सन् 1648 ई०, संध्या
(दाहिनी ओर दालान का कुछ हिस्सा दिखाई देता है। दालान के सामने किले का खुला मैदान है। मैदान के इस ऊँचे स्तम्भ पर भगवा रंग का मराठा झंडा फहरा रहा है। दालान में जाजम बिछी है, उस पर कमख्वाब की गद्दी पर मसनद के सहारे शिवाजी वीरासन में बैठें हैं। दालान के द्वार पर शस्त्रों से सुसज्जित दो मावली शरीर रक्षक खड़े हुए हैं। बायीं ओर से मोरोपंत पिंगले का प्रवेश)।
मोरोपंत : (अभिवादन कर) श्रीमंत सरकार, सेनापति आवाजी सोनदेव कल्याण प्रांत की जीत, वहाँ का सारा खजाना लूटकर आ गये हैं।
शिवाजी : (चौंककर) अच्छा। (मोरोपंत की ओर देखकर) बैठो पेशवा, बड़ा शुभ संवाद लाए। आवाजी सोनदेव है कहाँ?
मोरोपंत : (वीरासन से बैठकर) श्रीमंत की सेवा में अभी उपस्थित हो रहे हैं।
(कुछ देर निस्तब्धता। शिवाजी और मोरोपंत दोनों उत्सुकता से बाईं ओर देखते हैं। कुछ ही देर में आवाजी सोनदेव बाईं ओर आता हुआ दिखाई देता है। उसके पीछे हम्मालों का एक बड़ा भारी झुंड है। हर हम्माल के सिर पर एक हारा (बड़ा भारी टोकना) है। हम्मालों के झुंड के पीछे पालकी पालकी बन्द है। आवाजी सोनदेव भी अधेड़ अवस्था का ऊँचा-पूरा मनुष्य है। वेश-भूषा मोरोपंत के सदृश है। आवाजी सोनदेव दालान में आकर शिवाजी का अभिवादन करता है। हम्मालों का झुंड और पालकी दालान के बाहर रहते हैं।)
शिवाजी : बैठो आवाजी, कल्याण-विजय पर तुम्हें बधाई है।
आवाजी सोनदेव : (बैठते हुए) बधाई है श्रीमंत सरकार को।
शिवाजी : कहो, पैदल मावलियों ने अधिक वीरता दिखाई या हेटकरियों ने?
आवाजी सोनदेव : इनमें भी दोनों ने ही, श्रीमंत।
शिवाजी : सेना के अधिपति कैसे रहे?
आवाजी सोनदेव : पैदल के अधिपति नायक, हवालदार, जुमलादार और एकहजारी, तथा घुड़सवारों के अधिपति- हवालदार, जुमलदार और सूबेदार, सभी का काम प्रशंसनीय रहा, श्रीमंत सरकार।
शिवाजी : (हम्माल की ओर देखकर मुस्कराते हुए) कल्याण का खजाना भी लूट लाए; बहुत माल मिला?
आवाजी सोनदेव : हाँ श्रीमंत, सारा खजाना लूट लिया गया है और इतना माल मिला जितना अब तक की किसी लूट में न मिला था। चाँदी, सोना, जवाहरात न जाने क्या-क्या मिला। मैं तो समझता हूँ, श्रीमंत, केवल दक्षिण ही नहीं उत्तर की भी विजय इस संपदा से हो सकेगी।
शिवाजी : (हम्मालों के पीछे पालकी को देखकर) और उस मेणा में क्या है?
आवाजी सोनदेव : (मुस्कराते हुए) उस मेणा ….. उस मेणा में, श्रीमंत, इस विजय का सबसे बड़ा तोहफा है।
शिवाजी : (उत्सुकता से आवाजी सोनदेव की ओर देखते हुए) अर्थात्?
आवाजी सोनदेव : श्रीमंत, कल्याण सूबेदार अहमद की पुत्र वधू के सौंदर्य का वृत्त कौन नहीं जानता? उसे भी श्रीमंत की सेवा के लिए बंद करके लाया हूँ।
(शिवाजी की सारी प्रसन्नता एकाएक लुप्त हो जाती है। उनकी भृकुटी चढ़ जाती है और नीचे का होंठ ऊपर के दांतों के नीचे आ जाता है। आवाजी सोनदेव शिवाजी की परिवर्तित मुद्रा देखकर घबरा-सा जाता है। मोरोपंत एकाएक शिवाजी की ओर देखता है। कुछ देर निस्तब्धता रहती है।)
शिवाजी : (भर्राए हुए स्वर में) मेणा को तत्काल इस पड़वी में लाओ। (आवाजी सोनदेव जल्दी दालान के बाहर जाता है। शिवाजी एकटक पालकी की ओर देखते हैं; मोरोपंत शिवाजी की तरफ कुछ ही क्षणों में पालकी दालान में आती है। ज्योंही पालकी दालान में रखी जाती है त्योंही शिवाजी जल्दी से पालकी के निकट पहुँचते हैं। मोरोपंत शिवाजी के पीछे जाता है।)
शिवाजी : (आवाजी सोनदेव से) खोल दो मेणा, आवाजी।
(आवाजी सोनदेव मेणा के दरवाजे खोलता है। दरवाजे खुलते ही अहमद की पुत्र वधू उसमें से निकल चुपचाप एक ओर सिकुड़कर खड़ी हो जाती है। वह परम सुन्दरी युवती है। वेश-भूषा मुग़ल स्त्रियों के सदृश।)
शिवाजी : (अहमद की पुत्र वधू से) माँ, शिवा अपने सिपहसालार की नामाकूल हरकत पर आपसे मुआफी चाहता है। आह! कैसी अजीबो-गरीब खूबसूरती है आपकी। आपको देखकर मेरे दिल में एक सिर्फ एक बात उठ रही है कहीं मेरी माँ में आपकी सी खूबसूरती होती तो मैं भी बदसूरत न होकर एक खूबसूरत शख्स होता। माँ, आपकी खूबसूरती को मैं एक सिर्फ एक काम में ला सकता हूँ उसका हिंदू विधि से पूजन करूँ; उसकी इस्लामी तरीके से इबादत करूँ। आप जरा भी परेशान न हों। माँ, आपको आराम, इज्जत, हिफाज़त और खबरदारी के साथ आपके शौहर के पास पहुँचा दिया जाएगा; बिना देरी के, फौरन (आवाजी सोनदेव की ओर घूमकर) आवाजी, तुमने ऐसा काम किया है जो कदाचित् क्षमा नहीं किया जा सकता। शिवा को जानते हुए, निकट से जानते हुए भी तुम्हारा साहस ऐसा घृणित कार्य करने के लिए कैसे हुआ? शिवा ने आज तक किसी मस्जिद की दीवार में बाल बराबर दरार भी न आने दी। शिवा को यदि कुरान की पुस्तक मिली तो उसने उसे सिर पर चढ़ा, उसके एक पन्ने को भी किसी प्रकार की क्षति पहुँचाए बिना, मौलवी साहब की सेवा में भेज दिया। हिन्दू होते हुए भी शिवा के लिए इस्लाम धर्म पूज्य है। इस्लाम के पवित्र स्थान, उसके पवित्र ग्रन्थ सम्मान की वस्तुएँ हैं। शिवा, हिन्दू और मुसलमान प्रजा में कोई भेद नहीं समझता। अरे! उसकी सेना में मुस्लिम सैनिक तक हैं। वह देश में हिंदू-राज्य नहीं, सच्चे स्वराज्य की स्थापना चाहता है। आततायियों से सत्ता का अपहरण कर उदारचेताओं के हाथों में अधिकार देना चाहता है। फिर पर-स्त्री- अरे! पर स्त्री तो हरेक के लिए माता के समान है। जो अधिकार प्राप्त जन हैं, जो सरदार हैं, या राजा उन्हें तो इस संबंध में विवेक, सबसे अधिक विवेक रखना आवश्यक है। (कुछ रुककर) आवाजी, क्या तुम मेरी परीक्षा लेना चाहते थे? इसलिए तो तुमने यह कार्य नहीं किया? शिवा ये लड़ाई- झगड़े, ये लूट-पाट व्यक्तिगत सुखों के लिए कर रहा है? क्या स्वयं चैन उड़ाना उसका उद्देश्य है? तब… तब तो ये रक्तपात, ये लूटमार घृणित कृतियाँ हैं। शिवा में यदि शील नहीं तो उसके सेनापतियों, सरदारों को शील का स्पर्श तक नहीं हो सकता। फिर तो हममें और इन्द्रिय-लोलुप लुटेरों तथा डाकुओं में कोई अंतर ही नहीं रह जाता। अरे! तब तो हमारे जीवन से हमारी मृत्यु, हमारी विजय से हमारी पराजय, कहीं श्रेयस्कर है। (मोरोपंत से) आह। पेशवा, यह… यह मेरे …. मेरे एक सेनापति ने… मेरे एक सेनापति ने क्या … क्या कर डाला। लज्जा से मेरा सिर आज पृथ्वी में नहीं, पाताल में घुसा जाता है। इस पाप का न जाने मुझे कैसा…कैसा प्रायश्चित करना पड़ेगा? (कुछ रुक कर) पेशवा, इस समय तो मैं केवल एक घोषणा करता हूँ-भविष्य में अगर कोई ऐसा कार्य करेगा जो उसका सिर उसी समय धड़ से अलग कर दिया जाएगा।
(शिवाजी का सिर नीचे झुक जाता है। अहमद की पुत्रवधू कनखियों से शिवाजी की और देखती हैं। उसकी आँखों में आँसू छलछला आते हैं। मोरोपंत शिवाजी की ओर देखता है और आवाजी सोनदेव घबराहट- भरी दृष्टि से मोरोपंत की ओर।)
दालान – बरामदा
स्तंभ – खंभा
जाजम – फर्श आदि पर बिछाई जाने वाली छपी हुई चादर, कालीन
कमख्वाब – रंगीन – बूटी धार रेशमी कपड़ा
दुर्ग – क़िला
पेशवा – सरदार, नेता
मसनद – गोल लंबोतरा तथा बड़ा तकिया
नामाकूल हरकत = अनुचित व्यवहार, मूर्खतापूर्ण व्यवहार, बेहूदा शरारत
पूजा – इबादत
सत्कार – अभिवादन
सदृश – समान
हिफाज़त – सुरक्षा
खबरदारी – सावधानीपूर्ण, होशियारी से
पति – शौहर
कदाचित् – शायद, कभी
वीरासन – बैठने का एक ढंग जो प्रायः प्राचीन योद्धाओं, योगियों तांत्रिकों आदि द्वारा अपनाया जाता है।
घृणित – घृणा के योग्य
आततायी – सताने वाले
उदारचेता – खुले विचारों वाला
क्षति – नुकसान
मावली – शिवाजी के खास सैनिक
निस्तब्धता – चुप्पी
हम्माल – मज़दूर, कुली
मेणा – बंद पालकी
वृत्त – इतिहास, वृत्तांत
भृकुटि – भौंह
तोहफा – भेंट उपहार
प्रायश्चित्त – पछतावा
कनखी – तिरछी नज़र
सिपहसालार – सेनापति
अजीबो गरीब – विचित्र
सत्ता का अपहरण – राज्य छीनना
रक्तपात – खून बहाना
शील – चरित्र
श्रेयस्कर – कल्याणकारी
इन्द्रियलोलुप – भोग-विलास की इच्छा रखने वाला
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए-
(i) शिवाजी कौन थे?
उत्तर – प्रसिद्ध मराठा वीर शिवाजी हमारे राष्ट्रीय गौरव के महान ध्वज हैं। वे अपराजेय शक्ति, शौर्य और पराक्रम के साक्षात् रूप थे।
(ii) मोरोपंत कौन था?
उत्तर – मोरोपंत शिवाजी के राज्य में एक मुख्य पेशवा थे, जो प्रधान मंत्री की भूमिका अदा करते थे। (iii) आवाजी सोनदेव कौन था?
उत्तर – आवाजी सोनदेव शिवाजी के सेनापति थे।
(iv) शिवाजी के सच्चा स्वरूप को दर्शाती इस पाठ की घटना किस समय की है?
उत्तर – शिवाजी के सच्चे स्वरूप को दर्शाती इस पाठ की घटना 1648 ईस्वी की है।
(v) मोरोपंत शिवाजी को आकर क्या शुभ समाचार देता है?
उत्तर – मोरोपंत शिवाजी के पास आकर यह शुभ समाचार देते हैं कि उनके सेनापतियों ने कल्याण प्रांत को जीत लिया है और वहाँ का सारा खजाना लूटकर ले आए हैं।
(vi) आवाजी सोनदेव ने शिवाजी को सबसे बड़े तोहफे के बारे में क्या बताया?
उत्तर – आवाजी सोनदेव ने शिवाजी को सबसे बड़े तोहफे के बारे में यह बताया कि वे कल्याण के सूबेदार अहमद की अति सुंदर पुत्र वधू को उठा लाए हैं।
(vii) शिवाजी की प्रसन्नता एकाएक लुप्त क्यों हो गयी थी?
उत्तर – शिवाजी की प्रसन्नता एकाएक लुप्त हो गई थी क्योंकि उनके लिए पराई स्त्रियाँ मातृ तुल्य थीं और उनके लोगों ने सूबेदार अहमद की अति सुंदर पुत्र वधू का अपहरण कर उन्हें बड़ा आघात पहुँचाया था।
(viii) शिवाजी ने सूबेदार की पुत्र वधू की सुरक्षा करते हुए उसे क्या आश्वासन दिया?
उत्तर – शिवाजी ने सूबेदार की पुत्र वधू की सुरक्षा करते हुए उसे आश्वासन दिया कि आपको पूरे आराम, इज्जत, हिफाज़त और खबरदारी के साथ आपके शौहर के पास बिना देरी के, फौरन पहुँचा दिया जाएगा।
(ix) शिवाजी पर स्त्री को किसके समान मानते थे?
उत्तर – शिवाजी पर स्त्री को माँ के समान मानते थे।
(x) शिवाजी ने अंत में क्या घोषणा की?
उत्तर – शिवाजी ने अंत में घोषणा की कि भविष्य में अगर कोई भी किसी स्त्री का अपहरण करेगा तो उसका सिर उसी समय धड़ से अलग कर दिया जाएगा।
2.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिये-
(i) शिवाजी ने अपने सेनापति की ग़लती पर सूबेदार की पुत्र वधू से किस प्रकार मुआफी माँगी?
उत्तर – शिवाजी ने अपने सेनापति की ग़लती पर सूबेदार की पुत्र वधू से हाथ जोड़कर कहा कि माँ, शिवा अपने सिपहसालार की नामाकूल हरकत पर आपसे मुआफी चाहता है। माँ, आपकी खूबसूरती हिंदू विधि से पूजने योग्य है और इस्लामी तरीके से इबादत के काबिल। आप जरा भी परेशान न हों। माँ, आपको पूरे आराम, इज्जत, हिफाज़त और खबरदारी के साथ आपके शौहर के पास बिना देरी के, फौरन पहुँचा दिया जाएगा।
(ii) शिवाजी ने अपने सेनापति को किस प्रकार डाँट फटकार लगायी?
उत्तर – शिवाजी ने अपने सेनापति को रोष भरे शब्दों में कहा कि तुमने एक स्त्री का अपहरण करके बड़ा ही घृणित कार्य किया है जो क्षमा लायक है ही नहीं। मेरे लिए सभी पराई स्त्रियाँ माँ के समान हैं। आज के बाद अगर किसी ने भी ऐसा घृणित कार्य करने की सोची भी तो उसका सिर धड़ से तत्काल अलग कर दिया जाएगा।
(iii) शिवाजी किस तरह के सच्चे स्वराज्य की स्थापना करना चाहते थे?
उत्तर – शिवाजी के लिए सभी धर्म पूजनीय थे। वे हिन्दू और मुसलमान प्रजा में कोई भेद नहीं समझते थे। वह देश में सच्चे स्वराज्य की स्थापना चाहते थे इसलिए देश की शक्तियों को संगठित कर ‘हिंदवी स्वराज्य’ की स्थापना की थी, जो सर्वथा धर्मनिरपेक्ष था। उसमें प्रत्येक नागरिक को सम्मानपूर्ण जीवन-यापन के पूर्ण अधिकार प्राप्त थे और पराई स्त्रियाँ माँ के समान मानीं जाती थीं।
(iv) शिवाजी शील अर्थात् सच्चरित्र को जीवन का आवश्यक अंग क्यों मानते थे?
उत्तर – शिवाजी शील अर्थात् सच्चरित्र को जीवन का आवश्यक अंग मानते थे क्योंकि उन्हें यह शिक्षा उनके परम गुरु समर्थ रामदास से मिली थी। उनका मानना था कि सच्चरित्रता सफल जीवन की पहली आवश्यक शर्त है जिसे हर कीमत पर पूरा किया जाना चाहिए।
3.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह-सात पंक्तियों में दीजिये-
(i) ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ पाठ के आधार पर शिवाजी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर – ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ पाठ के आधार पर शिवाजी के चरित्र में हमें निम्नलिखित खूबियाँ देखने को मिलती हैं –
सच्चरित्रता – यह गुण किसी भी सफल जीवन की आधारशिला होती है। शिवाजी ने भी इस गुण को पूरी तरह से आत्मसात किया था तथा कल्याण के सूबेदार की पुत्र वधू को माँ का दर्जा देते हुए उन्हें तत्काल उनके निवास पहुँचवाया था।
कुशल शासक – शिवाजी एक कुशल शासक थे तभी तो उन्होंने एक संगठित राज्य की स्थापना की थी और भारत देश में मराठों की वीरता के झंडे गाड़े।
वीर योद्धा – शिवाजी ने पूरी वीरता से मुगलों के खिलाफ़ कई युद्ध लड़े और कई किले भी बनवाए थे।
दंड विधान करने वाले – अपने अधिकारियों द्वारा एक स्त्री के अपहरण किए जाने के जघन्य अपराध पर उन्होने तत्काल घोषणा की कि आज के बाद अगर किसी ने भी ऐसा घृणित कार्य किया तो उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा।
(ii) इस पाठ से आपको क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर – यह पाठ ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ अनेक सीखों से भरा हुआ है। इस पाठ से हमें अपने देश के प्रति जिम्मेदारियों का बोध होता है। नारी के प्रति सम्मान प्रदर्शन की भावना का विकास होता है। हमें अपने पद की गरिमा का भी ख्याल रखना चाहिए इस बात का भी पता चलता है। सभी धर्मों को सम्मान की नज़रों से देखा जाना चाहिए, इस बात का बोध भी हमें होता है और इसके अलावा एक सभ्य समाज के लिए दंड विधान भी होना चाहिए ताकि कोई भी समाज में किसी भी तरह के गलत कामों को प्रशय न दे सके, यह भी पता चलता है।
(iii) ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी के नाम की सार्थकता अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी के नाम की सार्थकता पाठ पढ़ने के उपरांत स्वत: ही सिद्ध हो जाती है। सच्चरित्रता किसी भी जीवन के सफल होने की पृष्ठभूमि मानी जाती जाती है। सच्चरित्रता ही किसी को अनुकरणीय, पथ-प्रदर्शक या नेता बनाती है। इस पाठ में भी हमने देखा कि दुश्मन की पुत्र-वधू को जब शिवाजी के अधिकारियों ने जबरन उठा लिया तो इस कृत्य पर शिवाजी को बहुत क्षोभ हुआ। उन्होने करबद्ध उस महिला को माँ कहकर संबोधित किया और उनसे माफी माँगी। उन्हें तत्काल उनके शौहर के पास भिजवा दिया और अपने अधिकारियों को यह कहा कि आज के बाद अगर किसी ने भी ऐसा घृणित कार्य किया तो उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा।
(iv) निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
– आवाजी, क्या तुम मेरी परीक्षा लेना चाहते थे? इसलिए तो तुमने यह कार्य नहीं किया?
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि आवाजी के घृणित कार्य जो उन्होंने कल्याण के सूबेदार की पुत्र वधू का अपहरण करके किया था, इस पर रोष से भरे शिवाजी ने पहले तो उनकी बहुत निंदा की और यहाँ तक कह डाला कि यह जघन्य अपराध है जो क्षमा के लायक नहीं है। फिर शिवाजी को लगा शायद इसने मेरे चरित्र की परीक्षा लेने के उद्देश्य से ऐसा किया हो इसलिए वे आवाजी से कहते हैं, क्या तुम मेरी परीक्षा लेना चाहते थे।
– पेशवा, यह… यह मेरे…. मेरे एक सेनापति ने … मेरे एक सेनापति ने क्या … क्या कर डाला। लज्जा से मेरा सिर आज पृथ्वी में नहीं, पाताल में घुसा जाता है। इस पाप का न जाने मुझे कैसा… कैसा प्रायश्चित्त करना पड़ेगा?
उत्तर – इन पंक्तियों के माध्यम से यह कहा गया है कि अपने अधिकारियों द्वारा किए गए घृणित कार्य से शिवाजी बहुत दुखी हो जाते हैं और अपने पेशवा मोरोपंत से कहते हैं कि मेरे सेनापति ने यह क्या कर डाला? मेरे लिए पराई स्त्री मातृ तुल्य है। पर मेरे सेनापति के इस पाप से मेरा सिर शर्म से झुक गया। अब मुझे निश्चित तौर पर इस पाप का प्रायश्चित्त करना पड़ेगा।
1.निम्नलिखित शब्दों को शुद्ध करके लिखिए-
अशुद्ध शुद्ध
दलान दालान
सुसजित सुसज्जित
वेषभूशा वेशभूषा
गबराहट घबराहट
हिंदु हिंदू
मसजिद मस्जिद
सेनापती सेनापति
उपसथित उपस्थित
मुसकुराना मुसकराना
खुबसूरती खूबसूरती
सुराजय स्वराज्य
घृणीत घृणित
श्रेसकर श्रेयस्कर
प्राशचित प्रायश्चित
2.निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उन्हें वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए-
मुहावरा अर्थ वाक्य
भृकुटि चढ़ना – क्रोध आना – छात्रों की गलती पर शिक्षक की भृकुटि चढ़ने लगती है।
(नीचे का) होंठ (ऊपर के) दाँतों के नीचे आना – क्रोध आना – अपने दुश्मनों के कृत्यों से शिवाजी के होंठ दाँतों के नीचे आ जाते थे।
सिर पर चढ़ाना – सम्मान करना, आदर भाव से ग्रहण करना – चिंटू के माता-पिता उसके घर आने वाले शिक्षक को सिर पर चढ़ाकर रखते हैं।
बाल बराबर दरार न आने देना – ज़रा भी नुकसान न होने देना, एक समान भाव रखना, समानता रखना – ताजमहल की सुंदरता में आज तक इसके संरक्षकों ने बाल बराबर दरार भी नहीं आने देते हैं।
- ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ पाठ में लेखक क्या कहना चाहता है? क्या लेखक अपनी बात कहने में पूरी तरह सफल हुआ है? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए।
उत्तर – ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ पाठ में लेखक शिवाजी के उदार चरित्र और उनके सत्पुरुष होने की बात को हम पाठकों को बताना चाहते थे। इसमें उन्हें पूरी तरह सफलता प्राप्त हुई है।
- यदि आप शिवाजी की जगह होते तो सेनापति आवाजी सोनदेव को उसकी नामाकूल हरकत के लिए क्या सजा देते?
उत्तर – यदि मैं शिवाजी की जगह होता तो सेनापति आवाजी सोनदेव को उसकी नामाकूल हरकत के लिए तत्काल सज़ा न देकर उन्हें सावधान करता और आज के बाद से उन्हें किसी युद्ध में जाने की इजाजत तब तक नहीं देता जब तक उन्हें अपनी गलती का अहसास नहीं हो जाता।
- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः अर्थात् जहाँ नारी की पूजा (सम्मान) होती है वहाँ देवता निवास करते हैं-क्या आप इस बात से सहमत हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मैं इस कथन से पूर्णत: सहमत हूँ क्योंकि विद्या के लिए हमें माता सरस्वती की आराधना करनी पड़ती है तो धन के लिए हमें माता लक्ष्मी की और शक्ति के लिए माता दुर्गा की। इस आधार पर यह तो सत्य है कि स्त्रियों की भूमिका किसी देवी से कम नहीं। आज के समय में भी हमें वो देश विकसित मिलते हैं जहाँ स्त्रियों को पुरुष के समान समझा जाता है।
- स्त्री को छेड़ने/ अपहरण आदि करतूत करने में बहादुरी नहीं होती। असली बहादुरी तो स्त्री रक्षा/सुरक्षा में है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर -इसका उत्तर देने के लिए मैं साहस और दुस्साहस के बारे में कहना चाहूँगा। बुरे काम में भी साहस की आवश्यकता होती है पर वह साहस दुस्साहस कहलाता है। इसलिए स्त्री को छेड़ने/ अपहरण आदि मामलों में दुस्साहस प्रदर्शन करने की बजाय हमें स्त्री रक्षा और उसका सम्मान करना चाहिए इसमें ही साहस और शोर्य है।
- नारी के उत्थान के लिए अनेक समाज सुधारकों/कवियों/लेखकों / महापुरुषों ने कार्य किये हैं। आप किससे प्रभावित हुए हैं? नारी उत्थान में उनके योगदान को उजागर करते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर – नारी के उत्थान के लिए मैं श्री राजाराम मोहन राय के कार्यों को प्रशंसा करना चाहूँगा क्योंकि उन्होने सती प्रथा का अंत किया तथा विधवा विवाह का प्रचलन शुरू किया वो भी उस समय जब इन प्रथाओं का कड़ाई से पालन किया जाता था।
- ‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ एकांकी को अपने स्कूल के मंच पर खेलिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- अपने स्कूल/शहर/ गाँव के पुस्तकालय से शिवाजी से संबंधित पुस्तक लेकर उनके अन्य जीवन प्रसंग पढ़िए। प्रेरक प्रसंगों की जानकारी इंटरनेट से भी प्राप्त हो सकती है।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- ‘नारी अबला नहीं, सबला है’ इस विषय पर कक्षा में वाद-विवाद आयोजित करें।
(नोट : कक्षा में सभी विद्यार्थियों को इस विषय के पक्ष या विपक्ष में बोलने के लिए 2 मिनट का समय दिया जाए।)
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
शिवाजी के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें जानिए-
पूरा नाम : शिवाजी राजे भोंसले
जन्म तिथि : 19 फरवरी, 1630
जन्म भूमि : शिवनेरी (महाराष्ट्र)
पिता: शाह जी भोंसले
माता : जीजाबाई
पत्नी : साइबाई निम्बालकर
सन्तान : शम्भा जी
उपाधि : छत्रपति
युद्ध : मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध
निर्माण : अनेक क़िलों का निर्माण व पुनरुद्धार
सुधार परिवर्तन हिन्दू राज्य की स्थापना
राजघराना : मराठा साम्राज्य
वंश : भोंसले
मृत्यु : 3 अप्रैल, 1680