कालिदास
कालिदास सच-सच बतलाना !
इंदुमती के मृत्युशोक से
अज रोया या तुम रोए थे
कालिदास सच-सच बतलाना !
शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृतमिश्रित सूखी समिधा – सम
कामदेव जब भस्म हो गया
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोए थे?
कालिदास सच-सच बतलाना
रति रोई या तुम रोए थे?
वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घन-घटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़नेवाले
कालिदास सच-सच बतलाना
परपीड़ा से पूर-पूर हो
थक – थककर औ’ चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर, तुम कब तक सोए थे?
रोया यक्ष कि तुम रोए थे?
कालिदास सच-सच बतलाना !
कविता परिचय
‘कालिदास’ शीर्षक कविता ‘सतरंगे पंखोंवाली’ (1959) काव्य-संग्रह में संगृहीत है। नागार्जुन रचनावली’ ‘के अनुसार यह नागार्जुन की तीसरी कविता है। पहली कविता है ‘निर्वासित’ और दूसरी है ‘बेकार’। नागार्जुन की शुरुआती कविता होने के बावजूद यह एक प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण कविता है। नागार्जुन ने अपने प्रिय कवि कालिदास से कुछ प्रश्न पूछे हैं। इन प्रश्नों का सारांश यह है कि साहित्य में वर्णित भावनाओं का संबंध स्वयं रचनाकार से किस तरह का होता है? रचना में यदि दुःख वर्णित है तो क्या इसका सम्बन्ध कवि के निजी दुःख से होता है?
इन्दुमती – राम के दादा अज की पत्नी,
अज – राम के दादा और दशरथ के पिता,
शिवजी की तीसरी आँख – भगवान् शंकर क्रोध में अपनी तीसरी आँख खोलते हैं,
महाज्वाला – शंकर की तीसरी आँख से निकली हुई आग,
घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम – सूखी हुई हवन सामग्री में घी लपेट दिया गया,
कामदेव – प्रेम का देवता,
रति – कामदेव की पत्नी,
दृग धोये थे – आँसुओं से आँखों का धुल जाना
स्निग्ध भूमिका – नमी/चमक से भरी पृष्ठभूमि,
विधुर यक्ष – वियोगी यक्ष,
सुभग शिखर – सुंदर पर्वत-शिखर
पुष्करावर्त मेघों – मेघों के वंश, पुष्कर, आवर्तक आदि,
पर पीड़ा – दूसरे की तकलीफ,
पूर-पूर – डूब जाना, भर जाना
अमल-धवल – पवित्र और उजला
महाकवि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। कालिदास देवभाषा संस्कृत के एक महान कवि थे। जीवन के प्रारंभ में ये विद्वान नहीं थे किंतु कुछ विद्वानों ने छल का सहारा लेकर विदुषी विद्योत्तमा से इनका उससे विवाह करवा दिया। विवाह के बाद सच्चाई जानकर विद्योत्तमा ने इनका तिरस्कार किया। इस पर इन्होंने माता काली की तपस्या की और उनकी अनुकंपा से ज्ञान प्राप्त किया और बन गए महाकवि कालिदास।
पंक्तियाँ – 01
कालिदास सच-सच बतलाना !
इंदुमती के मृत्युशोक से
अज रोया या तुम रोए थे
कालिदास सच-सच बतलाना !
कठिन शब्द
इन्दुमती – राम के दादा अज की पत्नी,
अज – राम के दादा और दशरथ के पिता,
प्रसंग
नागार्जुन की औपचारिक शिक्षा संस्कृत माध्यम से हुई थी। उनके प्रिय कवि थे कालिदास। संस्कृत से उनका रिश्ता जीवन भर बना रहा। उन्होंने संस्कृत में कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। नागार्जुन अपने प्रिय कवि कालिदास से उनके ही साहित्य का हवाला देकर कुछ प्रश्न पूछते हैं।
व्याख्या
वे कहते हैं कि तुम्हारे महाकाव्य ‘रघुवंशम’ में अज का विलाप है। राम के दादा अज अपनी पत्नी इंदुमती की मृत्यु पर बहुत रोए थे। कालिदास ने इस प्रसंग का मार्मिक चित्रण किया है। नागार्जुन पूछते कि हे मेरे प्रिय और आदरणीय कवि कालिदास ! सच – सच बतलाओ कि इस विलाप से तुम्हारा भी कुछ रिश्ता था क्या? क्या तुमने भी इस तरह का दुःख अपने जीवन में उठाया था? यदि नहीं तो फिर ऐसा चित्रण तुम कैसे कर पाए?
पंक्तियाँ – 02
शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृतमिश्रित सूखी समिधा – सम
कामदेव जब भस्म हो गया
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोए थे?
कालिदास सच-सच बतलाना
रति रोई या तुम रोए थे?
कठिन शब्द
शिवजी की तीसरी आँख – भगवान् शंकर क्रोध में अपनी तीसरी आँख खोलते हैं,
महाज्वाला – शंकर की तीसरी आँख से निकली हुई आग,
घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम – सूखी हुई हवन सामग्री में घी लपेट दिया गया,
कामदेव – प्रेम का देवता,
रति – कामदेव की पत्नी,
दृग धोये थे – आँसुओं से आँखों का धुल जाना
प्रसंग
नागार्जुन की औपचारिक शिक्षा संस्कृत माध्यम से हुई थी। उनके प्रिय कवि थे कालिदास। संस्कृत से उनका रिश्ता जीवन भर बना रहा। उन्होंने संस्कृत में कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। नागार्जुन अपने प्रिय कवि कालिदास से उनके ही साहित्य का हवाला देकर कुछ प्रश्न पूछते हैं।
व्याख्या
नागार्जुन आगे कालिदास के महाकाव्य ‘कुमारसंभवम’ के एक प्रसंग की चर्चा करते हैं कि भगवान् शंकर की तीसरी आँख से आग निकली थी और कामदेव जल कर राख हो गया था। जैसे हवन की सूखी हुई सामग्री घी से मिश्रित होकर तेजी से जलती है, वैसे ही कामदेव धधक कर जल उठा था। कामदेव की पत्नी रति चीत्कार कर रो उठी थी। उसका विलाप तुम कैसे लिख पाए। ऐसा लगता है कि इस तरह का विलाप तुमने भी कभी-न-कभी किया था और आँसुओं के जल से तुमने अपनी आँखें धोयी थीं। सच-सच बतलाना कि तुम्हारी कविता में रति रो रही थी कि तुम रो रहे थे?
पंक्तियाँ -03
वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घन-घटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़नेवाले
कालिदास सच-सच बतलाना
परपीड़ा से पूर-पूर हो
थक – थककर औ’ चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर, तुम कब तक सोए थे?
रोया यक्ष कि तुम रोए थे?
कालिदास सच-सच बतलाना !
कठिन शब्द
स्निग्ध भूमिका – नमी/चमक से भरी पृष्ठभूमि,
विधुर यक्ष – वियोगी यक्ष,
सुभग शिखर – सुंदर पर्वत-शिखर
पुष्करावर्त मेघों – मेघों के वंश, पुष्कर, आवर्तक आदि,
पर पीड़ा – दूसरे की तकलीफ,
पूर-पूर – डूब जाना, भर जाना
अमल-धवल – पवित्र और उजला
प्रसंग
नागार्जुन की औपचारिक शिक्षा संस्कृत माध्यम से हुई थी। उनके प्रिय कवि थे कालिदास। संस्कृत से उनका रिश्ता जीवन भर बना रहा। उन्होंने संस्कृत में कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। नागार्जुन अपने प्रिय कवि कालिदास से उनके ही साहित्य का हवाला देकर कुछ प्रश्न पूछते हैं।
व्याख्या
कविता के तीसरे और अंतिम चरण में नागार्जुन कालिदास के गीतिकाव्य ‘मेघदूतम’ के प्रसंग उठाते हैं। वे कहते हैं कि बेचारा यक्ष रामगिरि आश्रम में सजा काट रहा था। उसे एक वर्ष तक वहीं रहने की सजा दी गई थी। आठ महीने बीत जाने के बाद जब आषाढ़ का महीना आया तब वर्षा ऋतु की नमी से भरी हवा चली। वर्षा की स्निग्ध भूमिका बनने लगी। आकाश में काली घटाएँ छाने लगीं, जिन्हें देखकर वियोगी यक्ष का धैर्य डोल गया। अब तो उसने अपनी प्रेम-पीड़ा पर नियंत्रण बनाए रखा था, मगर बरसात के परिवेश ने उसके मन को उचाट कर दिया। उसका दिमाग बहक गया। उस बेचारे यक्ष ने भावातिरेक में आकर चित्रकूट के उस सुंदर शिखर पर खड़े होकर हाथ जोड़ लिए। उसने बादलों से कहा कि मेरे संदेश मेरी प्रिया तक पहुँचा दो! उसने बादलों को घर जाने के रास्ते भी बताए और प्रिया तक पहुँचाने वाले संदेश भी! वे मेघ पुष्कर और आवर्तक वंश के थे, ऐसा भावुक यक्ष ने पहचाना था! हे कवि-कुलगुरु महाकवि कालिदास ! उन बादलों के साथी की तरह मानो तुम साथ-साथ थे। यक्ष की पीड़ा तुम्हारे लिए पराई पीड़ा थी, मगर तुम तो उसमें पूरी तरह डूबे हुए मालूम पड़ते हो। तुम्हारी कविता इस बात की गवाही देती है। यह बताओ कि यक्ष की पीड़ा की थकावट से चूर-चूर होकर पर्वत के स्वच्छ शिखरों पर तुम कितनी देर तक या कितने दिनों तक सोये रहे थे? लगता है कि यक्ष की तरह तुम भी कभी अकेलेपन की यातना से गुजरे थे। सच-सच बतलाना कि तुम्हारी कविता में रोनेवाला यक्ष था या खुद तुम।
यह कविता कवि के अनुभव को कविता में तलाशने की कोशिश है।
एक तरह से इस कविता में इस बात का पक्ष लिया गया है कि अनुभूति की निजता के बिना प्रभावशाली अभिव्यक्ति संभव नहीं है।
यहाँ ‘परकाया प्रवेश’ जैसे सिद्धांतों पर भी विचार की गुंजाइश है। दूसरे के व्यक्तित्व में समाकर उसके भावों को समझने की कोशिश को ‘परकाया प्रवेश’ कहते हैं। मानो कवि अपने पात्रों के व्यक्तित्व में प्रवेश करके उनकी अनुभूतियों को समझता है।
पूरी कविता में 16 – 16 मात्राओं की पंक्तियों का उपयोग हुआ है।