Hindi Sahitya

कर गयी प्लावित तन-मन सारा (झरना) जयशंकर प्रसाद की रचना

Kar Gayi Plawit Tan Man Saara , Jaishankar Prasad, The Best Explanation

कर गयी प्लावित तन-मन सारा (झरना)

मधुर है स्रोत मधुर है लहरी

न है उत्पात, छटा है छहरी

मनोहर झरना

कठिन गिरि कहाँ विदारित करना

बात कुछ छिपी हुई है गहरी

मधुर है स्रोत मधुर है लहरी

कल्पनातीत काल की घटना

हृदय को लगी अचानक रटना

देखकर झरना

प्रथम वर्षा से इसका भरना

स्मरण ही रहा शैल का कटना

कल्पनातीत काल की घटना

कर गई प्लावित तन-मन सारा

एक दिन तव अपांग की धारा

हृदय से झरना

बह चला, जैसे – गजल ढरना

प्रणय बन्या ने किया पसारा

कर गई प्लावित तन-मन सारा

प्रेम की पवित्र परछाईं में

लालसा हरित विटप आईं में

बह चला झरना

तापमय जीवन शीतल करना

सत्य यह तेरी सुघराई में

प्रेम की पवित्र परछाईं में

‘कर गई प्लावित तन-मन सारा’ कविता जयशंकर प्रसाद के काव्य-संग्रह ‘झरना’ (1918) में संगृहीत है। इसके लेखन और प्रथम प्रकाशन वर्ष की जानकारी ‘जयशंकर प्रसाद ग्रन्थावली’ में नहीं दी गई है। ‘झरना’ में संगृहीत कविताएँ, जयशंकर प्रसाद की प्राररंभिक कविताएँ (खड़ी बोली हिंदी में) हैं। इस कविता में ‘झरना’ को विषय बनाया गया है। उसकी मधुरता, स्वच्छंदता और कल्पना को जन्म देने की क्षमता के बारे में बात करते हुए कवि कहते हैं कि तुममें मन को शीतलता प्रदान करने की क्षमता है।

प्रस्तुत कविता में ‘झरना’ स्वच्छंदता का प्रतीक है। वह मधुर, सुंदर और कोमल है। मगर उसने कठोर पर्वत को चीरकर अपना यह स्वरूप प्राप्त किया है। उसे देखकर मन में स्वच्छंदता के भाव उत्पन्न होते हैं। यह प्रेरणा मिलती है कि पराधीनता चाहे कितनी भी कठोर हो, अपनी कोमलता के बावजूद उसका निराकरण किया जा सकता है।

पंक्तियाँ – 01

मधुर है स्रोत मधुर है लहरी

न है, छटा है छहरी

मनोहर झरना

कठिन गिरि कहाँ विदारित करना

बात कुछ छिपी हुई है गहरी

मधुर है स्रोत मधुर है लहरी

कल्पनातीत काल की घटना

हृदय को लगी अचानक रटना

देखकर झरना

शब्दार्थ

प्लावित – सराबोर कर देना, पूरी तरह नहला देना,

उत्पात – शैतानी

छहरी – छिटक छिटक कर शोभा का उत्पन्न होना,

मनोहर – मन को हरने वाला

गिरि – पर्वत,

विदारित – चीरना, पत्थरों को चीरते हुए झरने का निकलना,

कल्पनातीत – कल्पना की सीमा में जो न समा सके,

रटना – रट लग जाना, किसी बात की आवृत्ति मन ही मन होने लगना,

प्रसंग

‘कर गयी प्लावित तन-मन सारा’ कविता में झरना मधुर है, उसकी लहरें कोमल हैं। उसकी छिटकती बूँदों में सौन्दर्य का विलास है। मगर, उसने कठोर पर्वत को चीरकर अपना यह स्वरूप धारण किया है। उसे देखते हुए कवि अपने हृदय में फूटती प्रेम की धारा की अनुभूति करते हैं।  

व्याख्या

जयशंकर प्रसाद ने प्रस्तुत कविता में ‘झरना’ को विषय बनाया है। वे कहते हैं कि झरना एक मधुर जलस्रोत की तरह है। इसमें प्रवाहित होनेवाली जल की तरंगें मधुर मालूम पड़ती हैं। इसके प्रवाह में किसी तरह का उत्पात नहीं है। इसकी छहराती जल-बूँदों में सौंदर्य की अद्भुत छटाएँ हैं। झरना मनोहर मालूम पड़ता है।

अपनी कोमलता के बावजूद, कठोर पर्वत को चीरकर, यह झरना निकल पड़ता है। इसमें जरूर कोई गहरी-गंभीर बात छिपी हुई है, क्योंकि कहाँ कोमल-मधुर झरना और कहाँ कठोर पर्वत। कठोर को भेदता हुआ कोमल। पर्वत को चीरनेवाली घटना कब घटित हुई होगी? यह घटना संभवतः उस कालखंड में हुई होगी, जो हमारी कल्पना की सीमा से परे है। झरने को देखकर हमारे मन में मानो यह बात बार-बार याद आने लगी कि यह सब कब हुआ होगा? जब कोमल ने कठोर को चीर दिया होगा।

पंक्तियाँ – 02

प्रथम वर्षा से इसका भरना

स्मरण ही रहा शैल का कटना

कल्पनातीत काल की घटना

कर गई प्लावित तन-मन सारा

एक दिन तव अपांग की धारा

हृदय से झरना

शब्दार्थ

प्रथम वर्षा – पहली बारिश में, प्रेम की पहली अनुभूति में,

शैल का कटना – चट्टानों को काटते हुए झरनों का निकलना,

अपांग – आँखों का किनारा या कोर,

प्रसंग

‘कर गयी प्लावित तन-मन सारा’ कविता में झरना मधुर है, उसकी लहरें कोमल हैं। उसकी छिटकती बूँदों में सौन्दर्य का विलास है। मगर, उसने कठोर पर्वत को चीरकर अपना यह स्वरूप धारण किया है। उसे देखते हुए कवि अपने हृदय में फूटती प्रेम की धारा की अनुभूति करते हैं।  

व्याख्या

कवि कहते हैं कि यह झरना पहली बार कब बारिश से भरा-पूरा हुआ होगा? पता नहीं। फिर इसने चट्टानों को धीरे-धीरे काट डाला होगा। अब तो यह सब झरने की स्मृति मात्र में रह गया होगा। यह घटना कल्पना की सीमा से परे हो गए किसी काल-क्रम में घटित हुई होगी। इसके बाद कवि झरना के बहाने अपनी प्रिया को याद करने लगते हैं। झरने के रूप-विन्यास, ध्वनि, गति आदि के प्रभाव में आकर वह अपने व्यक्तिगत प्रेम की स्मृति की ओर उन्मुख हो जाते हैं। वे कहते हैं कि प्रेम की पहली बारिश से मेरे हृदय रूपी झरने का भर जाना, अनेक तरह की कठोर कठिनाइयों का प्रेम के प्रवाह में कट जाना आदि – आज मेरी स्मृति में हैं। तुम्हारी आँखों के कोरकों में छलक आई आँसू की धारा मेरे तन-मन को सराबोर कर गई थी। मेरा हृदय मानो झरने की तरह फूट-फूटकर बह चला था।

पंक्तियाँ – 03

बह चला, जैसे – गजल ढरना

प्रणय बन्या ने किया पसारा

कर गई प्लावित तन-मन सारा

प्रेम की पवित्र परछाईं में

लालसा हरित विटप आईं में

बह चला झरना

तापमय जीवन शीतल करना

सत्य यह तेरी सुघराई में

प्रेम की पवित्र परछाईं में

शब्दार्थ

गजल – आँसू

ढरना – बहना

प्रणय – प्रेम

बन्या – बाढ़, जल प्लावन,

पसारा – फैलाव

लालसा – इच्छा

विटप – वृक्ष

सुघराई – सुंदर और सुडौल

प्रसंग

‘कर गयी प्लावित तन-मन सारा’ कविता में झरना मधुर है, उसकी लहरें कोमल हैं। उसकी छिटकती बूँदों में सौन्दर्य का विलास है। मगर, उसने कठोर पर्वत को चीरकर अपना यह स्वरूप धारण किया है। उसे देखते हुए कवि अपने हृदय में फूटती प्रेम की धारा की अनुभूति करते हैं।  

व्याख्या

कवि अपनी कविता की अंतिम पंक्तियों में कहते हैं कि मैं अपने आँसुओं के प्रवाह के साथ बह चला। प्रेम की बाढ़ ने मानो मेरे तन-मन को सराबोर कर दिया था। मैं प्रेम की पवित्र छाया में था और मेरे हृदय का झरना मानो प्रेम की लालसा के हरित वन में प्रवाहित हो चला। झरना और झरने के कारण आई प्रेम की स्मृति ने तापमय जीवन को शीतलता दी। झरने की सुंदर और सुगढ़ छवि में एक तरह के सत्य का दर्शन हुआ और उसमें प्रेम की पवित्र परछाई भी दिखाई पड़ी।

यह कविता छायावाद की स्वच्छंदता को ‘झरना’ के प्रतीक से व्यक्त करती है। अंग्रेजी और बांगला की रोमानी कविताओं में भी ‘झरना’ के प्रतीक को इसी अर्थ में अपनाया गया है।

मनुष्य के भाव को प्रकृति में देखना और प्रकृति के विविध रूपों में मनुष्य के भाव को देखना – यह क्रम छायावादी कविता की एक पहचान है। इस कविता में प्रकृति को देखते हुए मानवीय भावों तक पहुँचा गया है और पुनः प्रकृति की ओर लौटते हुए मानवीय भावों को व्यक्त किया गया है।

इस कविता में 17 और 9 मात्राओं की पंक्तियाँ हैं। टेक की तरह आई हुई चार पंक्तियों में 9-9 मात्राएँ हैं और शेष 20 पंक्तियों में 17-17 मात्राएँ हैं। प्रत्येक पंक्ति के अंत में दीर्घ की मात्रा है।

 

About the author

हिंदीभाषा

Leave a Comment

You cannot copy content of this page