Gujrat State Board, the Best Hindi Solutions, Class X, Shree Prakash, Ek Prashn Chaar Uttar, एक प्रश्न: चार उत्तर, श्री प्रकाश

(जन्म सन् 1890 ई., निधन सन् 1971 ई.)

श्री प्रकाश हिंदी के जाने माने साहित्यकार हैं। उन्होंने अपनी लेखनी के द्वारा राष्ट्र भक्ति सांस्कृतिक उत्थान, सामाजिक उत्थान एवं सम-सामयिक समस्याओं पर प्रकाश डाला है। उनकी भाषा सरल एवं सहज है। उन्होंने निबंध, लेख, संस्मरण, जीवनी पर भी अपनी कलम चलाई है। छोटी-छोटी बातों पर गहरा चिंतन उनके साहित्य में देखने को मिलता है।

प्रस्तुत पाठ में श्री प्रकाश द्वारा पूछे गए एक ही प्रश्न का उत्तर चार महानुभावों ने अपने-अपने ढंग से दिए हैं। हमारा देश तभी उन्नति कर सकता है जब देश का प्रत्येक नागरिक पूर्णतः ईमानदारी, लगन एवं निष्ठा के साथ अपना छोटे-से-छोटा कार्य करेगा। यही चारों महानुभावों के द्वारा दिए गए उत्तरों का निष्कर्ष है।

सबको ही कुछ न कुछ खब्त होता है। मुझे भी कई बातों का खब्त है। उनमें एक यह है कि जब किसी विदेशी से मेरी मित्रता हो जाती है और उन्हें सहृदय पाता हूँ साथ ही यह समझता हूँ कि हमारे देश में बहुत दिनों से रहने के कारण वे पर्याप्त अनुभव भी प्राप्त कर चुके हैं तो उनके किसी सुअवसर पर मैं पूछता हूँ ‘आप कृपाकर यह बतलावें कि क्या कारण है कि हमारे देश में इतने विशेष पुरुषों के रहते हुए, इतने बड़े-बड़े आंदोलनों के होते हुए भी देश कुछ उन्नति नहीं कर रहा है? ऐसा मालूम होता है कि हम ज्यों के त्यों पड़े हुए हैं।’अवश्य ही हमारे मित्र इससे चकित होते हैं, उत्तर देते संकोच करते हैं और शिष्टता के नाते क्षमा चाहते हैं। पर मैं उन्हें छोड़ता नहीं और उनको उत्तर देने के लिए बाध्य करताI

मेरे पहले मित्र एक वृद्ध ईसाई पादरी हैं। वे 36 वर्ष से भारत में ईसाई मत के प्रचार में तो उतना नहीं, पर सपत्नीक देश के दरिद्र नर-नारियों की सामाजिक सेवा में लगे रहे हैं। मेरे हृदय में उनके लिए बड़ा सत्कार और प्रेम है। उनका उत्तर थोड़े में यह है कि, ‘तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते।’विस्तार से उन्होंने बताया कि यहाँ पर जब किसी को कोई नौकरी चाहिए तो अतिशयोक्तिपूर्ण शब्दों में वह दरखास्त देता है। बहुत ही ‘विनय’और ‘सम्मान’के साथ वह आरंभ करता है। अंत में प्रतिज्ञा करता है कि यदि स्थान मिल जाएगा, तो वह सदा अपने मालिक की शुभकामना करेगा। पर स्थान मिलते ही वह अपने काम अर्थात् अपनी जीविका के साधन को ही खराब समझने लगता है। अन्य साथियों से मिलकर काम खराब करने के लिए षड्यंत्र रचने लगता है और मालिक की नाकों- दम कर डालता है। और देशों में भी लोग नौकरी की दरखास्त देते हैं। वे साधारण शब्दों में प्रार्थना पत्र लिखते हैं और जब स्थान मिल जाता है तो इस तरह काम करते हैं जैसे संसार की गति उन्हीं पर निर्भर करती है और वे यदि काम छोड़ दें तो संसार डूब जाय।

बात इस पादरी मित्र ने बहुत ठीक कही। हमें अपने काम का गर्व नहीं है। दुख तो इसका है कि मुल्क की परंपरा में अपने काम का गर्व करने का आदेश है। जाति-भेद इसी पर निर्भर करता है। एक जाति का आदमी दूसरी जाति के आदमी द्वारा अपना मान-मर्यादा नहीं चाहता। वह अपनी जातिवालों के बीच अपना उपयुक्त पद और स्थान चाहता है। यह अपनी जीविका के साधनों का बड़ा आदर-सत्कार करता है। बढ़ई अपने औजारों की और दुकानदार अपनी बहियों की निश्चित तिथियों पर पूजा करता हैं। पर लंबी दासता के कारण हम अपनी परंपरा को भूल गए हैं। हम अपना काम छोड़कर दूसरों का काम उठाते हैं। एक काम छोड़कर दूसरा काम लेते रहते हैं। हम अपनी असफलता का दोष दूसरों को देते हैं। स्वयं दुखी रहते हैं, दूसरों को भी दुःखी करते हैं। कोई काम ठीक न कर सकने के कारण अपने को खराब करते हैं, काम को भी खराब करते हैं। ‘स्वधर्म निधन श्रेय:’ (अपना धर्म या कर्तव्य करते हुए मर जाना श्रेयस्कर है) यह आदेश हम भूल गए। हम अपने काम में गर्व नहीं लेते।

दूसरे मित्र एक वृद्ध सरकारी कर्मचारी आई.सी.एस. (आई.ए.एस.) के सदस्य हैं। 30 वर्ष से अधिक भारत में गवर्नमेन्टी नौकरी कर हाल में पैंशन लेकर वापिस स्वदेश गए। न जाने कैसे मेरी उनसे बड़ी मैत्री हो गई। वही सवाल मैंने उनके सामने पेश किया। उत्तर मिला ‘तुम लोग जिम्मेदारी नहीं समझते।’ विस्तार में इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति का समष्टि की तरफ जो कर्तव्य होता है, उसे हम नहीं जानते। जो काम उठाया उसे करना चाहिए – यह गुण हम भूल गए। किसी को किसी पर विश्वास नहीं रह गया हैं। खाने की दावत हो तो न मेजबान को यह विश्वास कि मेहमान समय से आवेंगे, न मेहमान को विश्वास कि समय पर जाने से खाना मिल जाएगा। न गृहस्थ को विश्वास कि धोबी और दरजी वायदे पर कपड़े दे जाएँगे, न धोबी और दरजी को विश्वास है कि हमें समय से दाम मिल जाएँगे। रेलगाड़ी पर चढ़नेवालों को यह विश्वास नहीं कि पहले से बैठे मुसाफिर उन्हें स्थान देंगे, पहले से बैठनेवालों को यह विश्वास नहीं कि नया मुसाफिर धीरे से आकर उचित स्थान लेगा और व्यर्थ का शोर न मचायेगा, न और प्रकार से तंग करेगा। सड़क पर चलनेवालों का यह विश्वास नहीं कि आगे चलनेवाला अपना छाता इस तरह से खोलेगा कि उस की नोक से मेरी आँख न फूट जायगी, या पीछे चलनेवाला मुझे व्यर्थ धक्का न देगा। किसी को किसी पर यह विश्वास नहीं कि केले, नारंगी का छिलका या सूई, पिन आदि इस तरह वह न छोड़ेगा, जिससे दूसरों को कष्ट न पहुँचे। माँगी चीज ठीक हालत में वापिस करेगा, इत्यादि, इत्यादि। हम केवल अपनी तात्कालिक सुविधा देखते हैं, सारे संसार को अपने आराम के लिए बना समझते हैं। दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों का अनुभव नहीं करते। इसी कारण हम सब एक-दूसरे के प्रति अविश्वसनीय और अस्पृश्य हो गए हैं। हम अपना धार्मिक आदर्श भूल गए – ‘आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।’, ‘हम अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते।’

तीसरा व्यक्ति एक स्त्री है। सात-आठ वर्षों से अपने को भारतीय बनाकर बड़े प्रेम और श्रद्धा से बड़ी तत्परता से वे भारत की सेवा कर रही हैं। असहयोग आंदोलन में वे जेल भी जा चुकी हैं। कई कारणों से भारतीयों का निकटतम अनुभव उन्हें कई कार्यक्षेत्रों में हुआ है। उनको भी मैंने घेरा। उनका उत्तर था तुम लोग बड़े आलसी हो।’अर्थात् हम लोगों ने श्रम का महत्त्व ही नहीं पहचाना है। मेहनत करना तो हमने मरभुक्खों का काम समझ रखा है। बड़े लोगों का काम को केवल बैठे रहना है। हम भूल गए कि संसार में जो बड़े हुए हैं, वे सब अथक परिश्रमी रहे हैं। जब हम परिश्रम ही न करेंगे, तो सफलता कैसे पाएँगे? आरंभशूर तो हम हैं, पर हममें लगन नहीं हैं। इसी कारण न हम अपने रोजगार में और न अपने गृहस्थी संबंधी या सार्वजनिक कार्य में सफल होते हैं। रोने, पीटने, झींकने में जितना समय हम बिताते हैं, उतना यदि काम में बिताएँ तो हम देश की और अपनी काया पलट सकते हैं।‘हम लोग बड़े आलसी हैं।’

चौथा व्यक्ति एक बड़ी वृद्धा स्त्री थी। वे संसार में प्रसिद्ध थीं। मेरे कुल से उनका बड़ा प्रेम था। मेरी पितामही तुल्य थीं। उनको भी मैंने तंग किया ‘आपने तो अपने 40 वर्ष हमारे देश की विविध सेवाओं में लगा दिए हैं। आपको बतलाना ही होगा कि हमारा क्या दोष है, जिससे हमारी उन्नति नहीं होती? थोड़े में उनका उत्तर था ‘तुम लोगों में उदारता नहीं है। विस्तार से उदाहरण दे देकर उन्होंने बतलाया कि भारत में लोग दूसरों को आगे नहीं बढ़ाते। स्वयं को ही आगे रखना चाहते हैं।’ गुणी नवयुवकों को अपनी योग्यता दिखलाने का मौका नहीं देते। उनके मरने के बाद उनका काम ही खराब हो जाता है। वास्तव में वृद्धा की बातें ठीक थीं। अंत तक पिता पुत्र को घर का काम नहीं बतलाता। कितने ही कुटुंब इसके कारण नष्ट हो गए। बड़े- बड़े गुणी अपनी विद्या साथ लेकर मर गए। इस कारण कितने ही वैज्ञानिक आविष्कार, औषधियाँ आदि लुप्त हो गईं। पेशों में इतनी प्रतिद्वंद्विता हो गई है कि बड़ा छोटे को काम नहीं सिखलाता। सार्वजनिक जीवन में तो इतनी बीभत्स दीख पड़ती है कि चित्त व्याकुल हो जाता है। कितना काम बिगड़ता है, इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया जाता।

सारांश यह है कि ठीक समय से उपयुक्त काम न उठाकर और अपने काम में गर्व न रखकर उसके करने में दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को न अनुभव कर, अपने काम की एक-एक तफसील को समझकर, उसमें दत्तचित्त होकर परिश्रम के साथ उसे स्वयं न कर और उदारता के साथ उसे दूसरों को न सिखाकर हम अपना नाश कर रहे हैं। चारों मित्रों ने एक-एक अंश हमारे दोषों का बतलाया। उन सबको मिलाकर मैंने उत्तर पूर्ण कर दिया। यदि और भी सूत्रवत् सत्य कोई जानना चाहें तो मैं कहूँगा कि हम नागरिक कर्तव्यों और अधिकारों को भूल गए हैं। बड़े- से-बड़े नेता के होते हुए भी हम साधारण जन उनसे कोई लाभ नहीं उठा रहे हैं। हम उनकी मूर्ति की स्थापना करते हैं, उनका जय जयकार पुकारते हैं और इसी में अपने धर्म की इतिश्री समझते हैं। हम उनके कहे अनुसार चलते नहीं; आदेशों के अनुरूप अपने जीवन का संगठन नहीं करते। यहीं कारण है कि हम वहीं के वहीं है। संसार वेग से चला जा रहा है, हम तटस्थ हैं, सामने सब कुछ हैं, जो आकर हमारा काम कर दे। दूसरा क्या कर सकता है, जब हम खुद कुछ नहीं करना चाहते? यदि हम ख्याल रखें कि देश भक्ति केवल व्याख्यान देने में नहीं है, किन्तु ठीक तरह से काम करने में है, यदि हम यह अनुभव कर सकें कि हम कर्तव्य ठीक प्रकार करते हैं तो हम किसी भी देश- भक्त से कम नहीं हैं और बहुत से बड़े लोग हैं जो इस नाम से प्रसिद्ध किये गए हैं- यद्यपि हमारा कार्यक्षेत्र संकुचित ही क्यों न हो, हम केवल धोबी, दरजी, किसान, मजदूर, दुकानदार, पहरेदार, गाँव- शिक्षक ही क्यों न हों तो हमारा देश एकदम जाग उठेगा, उसके एक-एक अंग में जान आ जाएगी। हमारे व्यक्तिगत जीवन के संगठित होते ही सारा देश और मनुष्य-समाज स्वतः संगठित हो जाएगा। देश को केवल उपयुक्त नागरिकों की आवश्यकता है, किसी दूसरे प्रकार के मनुष्य या वस्तु की नहीं है, नहीं है, नहीं है।

खब्त – धुन

बाध्य – विवश

दरखास्त – आवेदन प्रस्ताव

दासता – गुलामी

दावत – भोज का आमंत्रण, निमंत्रण

मेजबान – यजमान

इतिश्री – समाप्ति

वृद्ध – बूढ़ा

ईसाई – Christianity 

पादरी – Father

सपत्नीक – पत्नी के साथ

दरिद्र – गरीब

आविष्कार – Invention

मरभुक्खा – ज्यादा भूखा, जो भूख से मर रहा है।

नाक में दम करना – जीना हराम कर देना

1. निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :

(1) प्रत्येक नागरिक को पूर्णतः लगन एवं निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए।

(अ) ईमानदारी

(ब) बेईमानी

(क) जल्दबाजी

(ड) धीरे-धीरे

उत्तर – (अ) ईमानदारी

(2) वृद्ध ईसाई पादरी ने कहा –

(अ) तुम बड़े आलसी हो।

(क) तुम ईमानदार बनो।

(ब) तुम भिखारी हो।

(ड) तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते।

उत्तर – (ड) तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते।

(3) भगवान की मूर्ति की स्थापना करने के बाद –

(अ) उनके कहे अनुसार चलना चाहिए।

(ब) मूर्ति की पूजा करनी चाहिए।

(क) प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

(ड) पुजारीजी के आदेश का पालन करना चाहिए।

उत्तर – (अ) उनके कहे अनुसार चलना चाहिए।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए –

(1) लेखक को किस बात की खब्त है?

उत्तर – लेखक को इस बात की खब्त है कि जब भी उनके कोई पहचान वाले उनके आत्मीय बन जाते हैं तो वे उनसे सवाल करते हैं कि क्या कारण है कि हमारे देश में इतने विशेष पुरुषों के रहते हुए, इतने बड़े-बड़े आंदोलनों के होते हुए भी देश कुछ उन्नति नहीं कर रहा है?

(2) कुटुंब व्यवस्था किस प्रकार नष्ट हो गई?

उत्तर – जब एक गुणी व्यक्ति अपने गुणों को अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण आने वाली पीढ़ी को नहीं बताता है और उसका गुण उसके साथ ही मर जाता है तो इस प्रकार कुटुंब व्यवस्था नष्ट हो जाती है।

(3) हम किसकी जय जयकार करते हैं?

उत्तर – हम बड़े-बड़े नेताओं की मूर्ति की स्थापना करके उनकी जय जयकार करते हैं।

(4) सच्चा देशभक्त कौन हैं?

उत्तर – सच्चा देशभक्त हर वो व्यक्ति है जो अपने कर्म को पूरे गर्व के साथ नियत समय पर और सत्यनिष्ठा से पूरा करता है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए:

(1) हमारे देश में किस प्रकार जागृति आ सकती है?

उत्तर – जब हमारे देश के लोगों में चाहे वे बड़े ओहदे पर हो या निम्न ओहदे पर, अपने कार्य के प्रति रुचि, कार्य को पूरी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से नियत समय पर पूरा करने का जज़्बा जाग जाएगा तब जाकर हमारे देश में जागृति आ सकती है।  

(2) मनुष्य समाज को संगठित करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?  

उत्तर – मनुष्य समाज को संगठित करने के लिए समाज की सबसे छोटी इकाई मनुष्य को व्यक्तिगत रूप से जागरुक होने की आवश्यकता है। इसमें ‘हम’ से पहले ‘मैं’ का स्थान है। हर व्यक्ति को अपने स्तर पर खुद को उपयुक्त बनाना होगा। इस तरह से हर उपयुक्त मनुष्य ही एक संगठित समाज का निर्माण कर सकता है।

(3) ‘तुम लोगों में उदारता नहीं हैं। – कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘तुम लोगों में उदारता नहीं हैं। – कथन का आशय यह है कि आज के दौर में एक गुणी व्यक्ति अपने गुणों को अपनी ओछी सोच के कारण दूसरों को स्थानांतरित नहीं करता। उसके गुण उसके मर जाने के साथ ही मर जाते हैं। यही कारण हैं कि कितने ही वैज्ञानिक आविष्कार, औषधियाँ आदि लुप्त हो गईं।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के सविस्तार उत्तर लिखिए :

(1) ईसाई पादरी ने लेखक के प्रश्न का उत्तर किस प्रकार दिया?

उत्तर – ईसाई पादरी ने लेखक के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते। यहाँ पर जब किसी को कोई नौकरी चाहिए तो अतिशयोक्तिपूर्ण शब्दों में वह दरखास्त देता है। बहुत ही ‘विनय’और ‘सम्मान’के साथ वह आरंभ करता है। अंत में प्रतिज्ञा करता है कि यदि स्थान मिल जाएगा, तो वह सदा अपने मालिक की शुभकामना करेगा। पर स्थान मिलते ही वह अपने काम अर्थात् अपनी जीविका के साधन को ही खराब समझने लगता है। अन्य साथियों से मिलकर काम खराब करने के लिए षड्यंत्र रचने लगता है और मालिक की नाक में दम कर देता है। जबकि दूसरे देशों में भी लोग नौकरी की दरखास्त साधारण शब्दों में देते हैं और जब स्थान मिल जाता है तो इस तरह काम करते हैं जैसे संसार की गति उन्हीं पर निर्भर करती है और वे यदि काम छोड़ दें तो संसार डूब जाए।

(2) वृद्ध सरकारी कर्मचारी ने लेखक के प्रश्न का उत्तर किन-किन उदाहरणों से समझाया?

उत्तर – वृद्ध सरकारी कर्मचारी ने लेखक के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि ‘तुम लोग जिम्मेदारी नहीं समझते।’ और इसे निम्नलिखित उदाहरणों से समझाया –

आज किसी को किसी पर विश्वास नहीं रह गया है। खाने की दावत हो तो न मेजबान को यह विश्वास कि मेहमान समय से आएँगे, न मेहमान को विश्वास कि समय पर जाने से खाना मिल जाएगा।

एक गृहस्थ को विश्वास हो चुका है कि धोबी और दरजी वायदे पर कपड़े नहीं देंगे और न ही धोबी और दरजी को विश्वास है कि हमें समय से उचित दाम मिलेगा।

किसी को किसी पर यह विश्वास नहीं कि उससे माँगी हुई चीज उसे ठीक हालत में वापिस मिलेगी।

किसी को किसी पर यह विश्वास नहीं कि केले, नारंगी का छिलका या सूई, पिन आदि इस तरह वह न छोड़ेगा, जिससे दूसरों को कष्ट न पहुँचे।

(3) एक बड़ी वृद्धा स्त्री ने प्रश्न का उत्तर किस प्रकार दिया?

उत्तर – एक बड़ी वृद्धा स्त्री ने लेखक के प्रश्न का उत्तर यह कहकर दिया कि ‘तुम लोगों में उदारता नहीं है। विस्तार से उदाहरण दे देकर उन्होंने बतलाया कि भारत में लोग दूसरों को आगे नहीं बढ़ाते। स्वयं को ही आगे रखना चाहते हैं।’ गुणी नवयुवकों को अपनी योग्यता दिखलाने का मौका नहीं देते। बड़े-बड़े गुणी अपनी विद्या साथ लेकर मर गए। इस कारण कितने ही वैज्ञानिक आविष्कार, औषधियाँ आदि लुप्त हो गईं।

(4) देश को कैसे नागरिकों की आवश्यकता है और क्यों?

उत्तर – देश को केवल उपयुक्त नागरिकों की आवश्यकता है क्योंकि उपयुक्त नागरिक अपने काम पर गर्व करते हैं, उसे नियत समय पर पूरी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से पूरा करते हैं। उनमें उदारता की भावना के साथ-साथ ज़िम्मेदारी की भावना भी देखने को मिलती हैं। इस लिहाज से वे भले ही किसी सामान्य पद पर ही क्यों न हों, वे ही सच्चे देशभक्त कहलाने के योग्य होते हैं और उपयुक्त नागरिकों से ही देश की उन्नति संभव है।

  • अपना देश किस प्रकार उन्नति कर सकता है? इस विषय पर कक्षा में अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर – हमारा देश उन्नति की दिशा में कई तरीकों से आगे बढ़ सकता है। सबसे पहले, शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। यदि हर नागरिक को बेहतर और सुलभ शिक्षा प्राप्त हो, तो वह न केवल अपने जीवन को सुधार सकता है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी योगदान कर सकता है।

इसके बाद, तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में शोध और नवाचार को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। इससे देश में नई प्रौद्योगिकियों का विकास होगा, जो न केवल रोजगार के अवसर सृजित करेंगे, बल्कि समग्र विकास में भी सहायक होंगे।

आर्थिक सुधार और बुनियादी ढाँचे में निवेश भी आवश्यक है। बेहतर सड़कें, ऊर्जा, और परिवहन सुविधाएँ न केवल जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाती हैं, बल्कि व्यापार और उद्योग के विकास में भी मदद करती हैं।

इसके अतिरिक्त, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को भी प्राथमिकता देना ज़रूरी है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, देश की भविष्यवाणी के लिए आवश्यक है।

अंत में, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विविधता को महत्व देना चाहिए। जब हम एकजुट होकर अपने विभिन्न मतों, धर्मों और जातियों का सम्मान करेंगे, तो सामाजिक सद्भाव और राष्ट्र की शक्ति और अधिक मजबूत होगी।

इन पहलुओं पर ध्यान देकर हमारा देश न केवल आर्थिक रूप से उन्नत हो सकता है, बल्कि एक सशक्त और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना सकता है।

‘हम नागरिक के मूल कर्तव्यों और अधिकारों को भूल गए हैं।’इस विषय पर चर्चासभा का आयोजन कीजिए।

उत्तर – आजकल के समाज में हम अक्सर अपने नागरिक कर्तव्यों और अधिकारों को भूलते जा रहे हैं। नागरिक अधिकार, जैसे कि स्वतंत्रता, समानता और न्याय, हमारे संविधान द्वारा हमें दिए गए हैं, लेकिन ये अधिकार तभी प्रभावी होते हैं जब हम अपने कर्तव्यों को भी निभाएँ। कर्तव्य, जैसे कि संविधान का सम्मान करना, कर्तव्यों का पालन करना, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना, और पर्यावरण का संरक्षण करना, ये सभी देश के प्रति हमारी जिम्मेदारी हैं। यदि हम केवल अपने अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करें और कर्तव्यों को नज़रअंदाज़ करें, तो समाज में अव्यवस्था और असंतुलन पैदा हो सकता है। नागरिकों को यह समझना चाहिए कि अधिकारों का उपयोग तभी सार्थक होता है जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए देश के समग्र विकास में योगदान करें। इस प्रकार, कर्तव्यों और अधिकारों का संतुलन बनाए रखना ही एक सशक्त और प्रगतिशील समाज की नींव है।

 

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