Gujrat State Board, the Best Hindi Solutions, Class X, Meerabai, Meera Ke Pad, मीरा के पद मीराबाई

(जन्म सन् 1498 ई., निधन सन् 1563 ई.)

श्रीकृष्ण प्रेम की अनन्य गायिका मीरा का जन्म मेड़ता (जिला जोधपुर) के निकट ‘ कुड़की’ नामक गाँव में राव रतनसिंह राठौर के यहाँ हुआ था। दो वर्ष की उम्र में उनके दादा दूदाराव उन्हें मेड़ता ले गए क्योंकि मीरा की माँ का देहावसान हो गया था। दूदाराव स्वयं वैष्णव भक्त थे। उस परिवेश के प्रभावस्वरूप मीरा बचपन से ही कृष्ण भक्ति की ओर उन्मुख हो गईं। इनका ब्याह राणा सांगा के जयेष्ठ पुत्र कुँवर भोजराज के साथ हुआ था। विवाह के सात वर्ष बाद भोजराज का स्वर्गवास हो गया। अब वे अपना अधिकांश समय सत्संग एवं पूजा पाठ में बिताने लगीं। पारिवारिक यातनाओं से व्यथित होकर विरक्त हुई मीरा तथा पहले वृंदावन और बाद में द्वारिका चली गई, जहाँ जीवन के अंतिम समय तक रहीं। मीरा रचित पद ‘मीरा पदावली’ के नाम से प्रकाशित रूप में प्राप्त हैं। अपने आराध्य ‘ गिरिधर गोपाल’ की विलक्षण रूपछटा के प्रति उनकी अनन्य आसक्ति अनेक भावधाराओं में बह चली है।

यहाँ संकलित पहले पद में कृष्ण प्रेम दीवानी मीरा समग्र संसार को छोड़कर साधु-संतों के साथ रहकर कृष्ण-भक्ति में लीन हो जाती है और लौकिक मोह का त्याग करके अपने आराध्य श्रीकृष्ण के अनन्य भक्तिभाव में डूब जाती है। दूसरे पद में मीरा ने श्रीकृष्ण नामरूपी रत्न की प्राप्ति से उत्पन्न असीम आनंद को अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है और सत्गुरु को पाकर भवसागर पार उतरने का आनंद कवयित्री को भाव-विभोर कर देता है। तीसरे पद में कृष्ण भक्ति में मतवाली मीरा ने संसार त्याग की चरमसीमा पर पहुँचकर गिरधरनागर’ की शरणागति को स्वीकार किया है।

मीरा के पद  

(1)

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई।

दूसरा न कोई साधो सकल लोक जोई॥

भाई छोड्या बंधु छोड्या छोड्या सगा सोई।

साधुसंग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥

भगत देख राजी हुई जगत देखि रोई।

अँसुवन जल सींच – सींच प्रेम बेलि बोई॥

दधि मथि घृत काढ़ि लियो डार दई छोई।

राणा विष को प्यालो भेज्यो पीय मगन होई॥

अब तो बात फैल गई जाणे सब कोई।’

मीरा’ रामलगन लागी होणी होइ सो होई।

(2)

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।

वस्तु अमोलक दी मेरे सत्गुरु कर किरपा अपणायो।

जनम जनम की पूँजी पाई जग में सबै खोवायो।

खरचै नहिं, कोई चोर न लेवै दिन-दिन बढ़त सवायो।

सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तरि आयो।

मीरा के प्रभु गिरिधरनागर हरखि- हरखि जस गायो।

(3)

पग घुँघरू बांध मीरा नाची रे, पग घुँघरू ….

लोग कहँ मीरा भई बावरी, सास कहै कुलनासी रे।

जहर का प्याला रानाजी ने भेजा, पीवत मीरा हाँसी रे।

मैं तो अपने नारायण की हो गई आपहि दासी रे।

मीरां के प्रभु गिरिधरनागर, बेग मिलो अविनासी रे।

(1)

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई।

दूसरा न कोई साधो सकल लोक जोई॥

भाई छोड्या बंधु छोड्या छोड्या सगा सोई।

साधुसंग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥

भगत देख राजी हुई जगत देखि रोई।

अँसुवन जल सींच – सींच प्रेम बेलि बोई॥

दधि मथि घृत काढ़ि लियो डार दई छोई।

राणा विष को प्यालो भेज्यो पीय मगन होई॥

अब तो बात फैल गई जाणे सब कोई।’

मीरा’ रामलगन लागी होणी होइ सो होई।

शब्दार्थ

गिरधर गोपाल – कृष्ण

साधो – साधु

सकल – सारा

छोड्या – छोड़ा

सगा – रिश्तेदार

लोकलाज खोई– शर्म का त्याग

भगत – भक्त

राजी – प्रसन्न

जगत – दुनिया

बेलि – लता  

दधि – दहि

घृत – घी

काढ़ि लियो – निकाल लेना

डार दई छोई – छाछ छोड़ देना  

राणा – मीरा के देवर

विष – जहर

पीय – पिया

जाणे – जनता है

रामलगन – राम के नाम में लग जाना

व्याख्या

अपने इस पद में मीरा कहती हैं कि मेरा गिरधर गोपाल के सिवा और कौन है जिसे मैं अपना कहूँ? इस पूरे संसार में मेरा उनके सिवा और कोई है ही नहीं। उनके लिए मैंने अपने माँ-पिता,भाई-बहन, सगे-संबंधी  सभी को छोड़ दिया और साधुओं के साथ बैठ-बैठकर अपने दुनियावी शर्म-व-हया तक का त्याग कर दिया। अब तो मुझे उन्हीं लोगों को देखकर प्रसन्नता होती है जो कृष्ण-भक्त हैं और जो दुनियावी मामले में उलझे रहते हैं उन्हें देखकर मुझे तो बहुत दुख होता है। मैंने अपने कृष्ण प्रेम को बेल को आँसुओं से सींचा है। मैंने तो कृष्ण भक्ति में रहते हुए सार को ही अपनाया है अर्थात् मैंने घी निकाल कर छाछ को छोड़ दिया है। मैं तो कृष्ण के प्रेम में इतनी लीन हो चुकी हूँ कि जन राणा ने मुझे मारने के लिए विष का प्याला भेजा तो मैंने उसे भी हँसते हुए पी लिया। मुझे यह पता है कि कृष्ण अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।  अब तो कृष्ण के प्रति मेरे प्रेम की बात फैल चुकी है और यह सबको मालूम हो गया है। मीरा तो गिरधरलाल की दासी बन चुकी है अब जो होना है, सो होगा।

(2)

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।

वस्तु अमोलक दी मेरे सत्गुरु कर किरपा अपणायो।

जनम जनम की पूँजी पाई जग में सबै खोवायो।

खरचै नहिं, कोई चोर न लेवै दिन-दिन बढ़त सवायो।

सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तरि आयो।

मीरा के प्रभु गिरिधरनागर हरखि- हरखि जस गायो।

शब्दार्थ

राम रतन – राम रूपी रत्न

अमोलक – अमूल्य

सत्गुरु – सतगुरु

किरपा – कृपा

अपणायो – अपनाया

जग – दुनिया

सबै – सब

खोवायो – खोकर

खरचै – खर्च

लेवै – लेना

बढ़त – बढ़ना

सवायो – यह  

सत – सत्या

खेवटिया – माझी

भवसागर – संसार रूपी सागर

तरि आयो – तर आना  

हरखि-हरखि – खुशी खुशी

जस गायो – यश गान करना

व्याख्या

मीरा अपने इस पद में कहती हैं कि मुझे राम-नाम रूपी असली दौलत प्राप्त हो गई है। सतगुरु ने कृपा करके मुझे अपना लिया और मुझे राम-नाम रूपी असली अनमोल चीज़ दौलत के रूप में दे दी। मैंने अपनी सारी दुनिया को खोकर भी जनमों-जनम की दौलत पा ली है। यह दौलत न ही खर्च होती है, न ही इसे चोर ले जाते हैं बल्कि यह तो दिन-रात बढ़ती ही रहती है। सच्चाई की नाव और सतगुरु की कृपा इसे खेने वाला है इसलिए मीरा जीवन रूपी भव सागर को पार कर चुकी हैं। उसे मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग मिल गया है इसलिए  मीरा ख़ुश हो-होकर प्रभु के गुण गाती है।

(3)

पग घुँघरू बांध मीरा नाची रे, पग घुँघरू ….

लोग कहँ मीरा भई बावरी, सास कहै कुलनासी रे।

जहर का प्याला रानाजी ने भेजा, पीवत मीरा हाँसी रे।

मैं तो अपने नारायण की हो गई आपहि दासी रे।

मीरां के प्रभु गिरिधरनागर, बेग मिलो अविनासी रे।

शब्दार्थ

पग – पैर

नारायण – ईश्वर, कृष्ण

आपहि – खुद ही

साची – सच्ची

भइ – हो गई

बावरी – बावली, पागल

न्यात – कुटुंब के लोग, रिश्तेदार

कुल-नासी – कुल का नाश करने वाली

विस – विष, जहर

पीवत – पीते हुए

हाँसी – हँसी

नागर – श्रेष्ठ, चतुर

सहज – आसान, स्वाभाविक

अविनासी – जिसका विनाश न हो, अमर।

व्याख्या

इस पद में मीरा कृष्ण के प्रति अपने अनुराग को प्रकट करती हैं। वे अपने नारायण के प्रति पूरी तरह समर्पित हो चुकी हैं। वह अपने पैरों में घुँघरू बाँधकर अपने कृष्ण को प्रसन्न करने की चेष्टा करती हैं। लोग उसे ‘दीवानी’ कहते हैं, उनके संबंधी उसे ‘कुलनाशिनी’ कहते हैं। राणा जी ने उसे मारने के लिए विष का प्याला भेजा है जिसे मीरा ने हँसते-हँसते पी लिया है। मीरा का कहना है कि ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और भक्ति से सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।

1. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए –

(1) मीराबाई किसकी भक्ति करती थीं?

उत्तर – मीराबाई श्रीकृष्ण की भक्ति करती थीं।

(2) मीराबाई को कौन-सा धन मिल गया है?

उत्तर – मीराबाई को राम-रतन रूपी धन मिल गया है।

 (3) पैरों में घुँघरू देखकर मीरा की सास ने उन्हें क्या कहा?

उत्तर – पैरों में घुँघरू देखकर मीरा की सास ने उन्हें कुलनाशिनी कहा।

 (4) मीरा को विष का प्याला किसने भेजा?

उत्तर – राणा ने मीरा को विष का प्याला भेजा था।

 (5) किसकी कृपा से मीरा ने ‘राम रतन धन’ पाया है?

उत्तर – सतगुरु की कृपा से मीरा ने ‘राम रतन धन’ पाया है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए:

(1) गिरधर गोपाल की भक्ति करते हुए मीराबाई ने किस-किसका त्याग किया?

उत्तर – गिरधर गोपाल की भक्ति करते हुए मीराबाई ने अपने आत्मीय-जनों का त्याग कर दिया जिसमें उसके माता-पिता, भाई-बहन, सगे-संबधी शामिल थे। इसके साथ ही मीरा ने सांसारिक मोह-माया का भी त्याग कर दिया था। 

 (2) मीरा के ‘राम रतन धन’ की क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर – मीरा के ‘राम रतन धन’ की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

यह न चोरी हो सकता है।

यह न ही खर्च होता है।

यह प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।

 (3) मीरा इस भवसागर को किस प्रकार पार करना चाहती हैं?

उत्तर – मीरा इस भवसागर को सच्चाई की नाव पर सवार होकर पार करना चाहती हैं। इस नाव के खिवैया  सतगुरु की कृपा है और इस यात्रा में श्रीकृष्ण के नाम का जाप ही एकमात्र सहारा है। इस प्रकार मीरा भवसागर पार करके मोक्ष की प्राप्ति करना चाहती हैं।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के पाँच-छह वाक्यों में उत्तर लिखिए :

(1) भक्ति के मार्ग में कौन-सा संकट आया? उससे वह कैसे पार हुईं?

उत्तर – मीरा के भक्ति के मार्ग में सांसारिक मोह-माया और परिजनों के स्नेह बंधन संकट के रूप में आया है। इनसे पार पाने के लिए मीरा सत्य की नाव पर सवार हो चुकी है, जिसे खेने वाले सतगुरु की कृपा है और यात्रा के दौरान प्रभु के नाम का जाप ही एकमात्र साथी है। इस तरह से दुनियावी चिंता से दूर मीरा ने भवसागर को पार कर मोक्ष की प्राप्ति की।

(2) मीरा के पदों के आधार पर सत्गुरु की महिमा का वर्णन कीजिए।

उत्तर – मीरा ने अपने पदों में सत्गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि जीवन में अगर सतगुरु की प्राप्ति हो जाए और उनके वचनों को हम अपने जीवन में उतार लें तो हमारा उद्धार संभव है आसानी से भवसागर पार करके मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। मीरा कहती हैं कि सतगुरु ने मुझे राम-रत्न धन के बारे में बताया है जो न कभी खर्च होता है और न ही कभी चोरी होता है। अपितु यह तो हमेशा बढ़ता ही जाता है।

(3) भक्ति में लीन मीरा को लोग क्या-क्या कहते थे? और क्यों?

उत्तर – भक्ति में लीन मीरा को लोग तरह-तरह से नीचा दिखाने और अपमानित करने की कोशिश किया करते थे। उसकी सास उसे कुलनाशिनी कहती थी तो उसके संगे-संबंधी उसे कुल की परंपरा को मटियामेट करने वाली हेय महिला मानती थीं। उसके देवर राणा ने तो उसे मारने के लिए विष का प्याला तक भेज दिया था। मीरा जब भी अपनी भक्ति में लीन रहती तो उसके अपने माँ-बाप, भाई-बहन और संबंधी उसकी निंदा करते और ज्ञान अर्जित करने हेतु जब मीरा संतों के साथ बैठती तो उस पर अमर्यादित होने का भी आरोप लगाया जाता था।

‘ अ’                                                         ‘ ब’

(1) भगत देख राजी हुई          (1) किरपा कर अपणायो।

(2) मीरा के प्रभु गिरधरनागर     (2) जगत देखि रोई।

(3) वस्तु अमोलक दी मेरे सत्गुरु   (3) हरखि हरखि जस गायो।

                                                                (4) भवसागर तरि आयो।

उत्तर –(1) भगत देख राजी हुई – (2) जगत देखि रोई।                           

(2) मीरा के प्रभु गिरधरनागर – (3) हरखि हरखि जस गायो।                      

(3) वस्तु अमोलक दी मेरे सत्गुरु – (1) किरपा कर अपणायो। 

5. आशय स्पष्ट कीजिए –

(1) जनम जनम की पूँजी पाई जग में सबै खोवायौ।

उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि मीरा ने कृष्ण भक्ति को प्राप्त करने के लिए अपने जन्मों-जनम की पूँजी अर्थात् भक्ति का प्रदर्शन किया है। इन्होंने अपने जीवन का सबकुछ गँवाकर कृष्ण भक्ति रूपी धन को प्राप्त किया है।   

(2) सत् की नाव खेवटिया सत्गुरु भवसागर तरि आयौ।

उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि मीरा ने भवसागर पार करने या मोक्ष की प्राप्ति करने के लिए सत्य की नाव में बैठकर सतगुरु की कृपा से उसे खिवा कर कृष्ण भक्ति का नाम जाप करते हुए पार करना चाहती हैं।

‘पायोजी मैंने राम रतन धन पायो’ पद कंठस्थ कीजिए।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

  • गुजरात में मीरा के लोकप्रिय भजनों की ओडियो या विड़ियो कैसेट कक्षा में सुनाइए।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

 

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