(जन्म सन् 1925 ई., निधन सन् 1972 ई.)
मोहन राकेश का जन्म पंजाब के अमृतसर में हुआ था। इनका असली नाम तो मदन मोहन गुगलानी था। उनकी दीदी ने मदन मोहन राकेश नाम रखा था। बाद में मोहन राकेश नाम स्थायी हुआ। मोहन राकेश हिंदी साहित्य के अच्छे नाट्यकार, उपन्यासकार और कहानीकार के रूप में अपना नाम अमर कर गए हैं। इन्होंने डायरी, संस्मरण, जीवनी, निबंध, पत्रकारिता तथा अनुवाद के क्षेत्र में भी ठोस योगदान दिया है। नाटक में ‘ आषाढ़ का एक दिन’ बहुत ही विख्यात और चर्चित नाटक रहा है।
नाटक : ‘ आधे अधूरे’ , ‘ लहरों के राजहंस’ , ‘ आषाढ़ का एक दिन’ , एकांकी : ‘ अंडे के छिलके’ , ‘ बीज नाटक’ , ‘ आईने के सामने’ एवं ‘ सारा आकाश’ , ‘ आखरी चट्टान तक उनकी गद्य रचनाएँ हैं।
यहाँ पर ‘आषाढ़ का एक दिन’ से केवल एक अंश ही ‘कालिदास का प्राणी प्रेम’ शीर्षक से प्रस्तुत किया गया है। नाटक के दो प्रमुख पात्र हैं, मल्लिका और कालिदास। कालिदास बाण से घायल हरिणशावक को बचा लेता हैं। नाट्यकार ने यह कहना चाहा है कि अगर हम प्राण दे नहीं सकते तो किसी का प्राण लेने का अधिकार भी हमें नहीं है। ‘मारने वाले से बचानेवाला महान है।’ वस्तुतः दन्तुल ने शिशु हरिणशावक को घायल कर दिया है इसीलिए इस प्रकार का व्यंग बाण लेखक उस पर ही चलाते हैं। अतः यहाँ पर जीवदया की बात बताकर कालिदास का प्राणीप्रेम प्रकट किया है। पशु-पक्षी हमारे मित्र हैं। अतः उनका हनन नहीं होना चाहिए।
पर्यावरण की रक्षा के लिए पशु-पक्षियों का अनन्य महत्त्व है। मानव जीवन विकास में प्राणियों का बड़ा योगदान है। प्राणी मानव के साथी हैं इसीलिए हमें उनका रक्षण करना चाहिए।
(कालिदास एक हरिणशावक को बाँहों मे लिए पुचकारता हुआ आता है। हरिणशावक के शरीर से लहू टपक रहा है।)
कालिदास : हम जिएँगे हरिणशावक ! जिएँगे न? एक बाण से आहत होकर हम प्राण नहीं देंगे। हमारा शरीर कोमल है तो क्या हुआ? हम पीड़ा सह सकते हैं। एक बाण प्राण ले सकता है तो उँगलियों का कोमल स्पर्श प्राण दे भी सकता है। हमें नये प्राण मिल जाएँगे। हम कोमल आस्तरण पर विश्राम करेंगे। हमारे अंगों पर घृत का लेप होगा। कल हम फिर वनस्थली में घूमेंगे। कोमल दूर्वा खाएँगे न? खाएँगे न?
(मल्लिका अपने को सहेजकर द्वार की ओर जाती है।)
मल्लिका : यह आहत हरिणशावक 2… यहाँ ऐसा कौन व्यक्ति है जिसने इसे आहत किया? क्या दक्षिण की तरह यहाँ भी…?
कालिदास : आज गाँव- प्रदेश में कई नयी आकृतियाँ देख रहा हूँ।
(झरोखे के पास जाकर आसन पर बैठ जाता है।)
राज्य के कुछ कर्मचारी आए हैं।
(हरिणशावक को वक्ष से सटाकर थपथपाने लगता है।)
हम सोएँगे? हाँ, हम थोड़ी देर सो लेंगे तो हमारी पीड़ा दूर हो जाएगी। परंतु
उससे पहले हमें थोड़ा दूध पी लेना है। मल्लिका थोड़ा दूध हो तो किसी भाजन में ले आओ।
मल्लिका : माँ ने दूध औटाकर रखा है। देखती हूँ।
(चूल्हे के निकट रखे बरतनों के पास जाकर देखने लगती हैं।)
अभी-अभी दो-तीन राज कर्मचारियों को हमने घोड़े पर जाते देखा है। माँ कहती है कि जब भी ये लोग आते हैं, कोई न कोई अनिष्ट होता है। वर्षा के रोमांच के बाद मुझे यह सब बहुत विचित्र लगा।
(दूध का बरतन उठाकर दूध खुले बरतन में उड़ेलने लगती है।)
माँ आज बहुत रुष्ट है।
(कालिदास हरिणशावक को बाँहों से झुलाने लगता है।)
कालिदास : हम पहले से सुखी हैं। हमारी पीड़ा धीरे-धीरे दूर हो रही है। हम स्वस्थ हो रहे हैं। न जाने इसके रूई जैसे कोमल शरीर पर उससे बाण छोड़ते बना कैसे? वह कुलांच भरता मेरी गोदी में आ गया। मैंने कहा, तुझे वहाँ ले चलता हूँ जहाँ तुझे अपनी माँ की सी आँखें और उसका सा ही स्नेह मिलेगा।
(मल्लिका की ओर देखता है। मल्लिका दूध लिए पास आ जाती है।)
मल्लिका : सच, माँ आज बहुत रुष्ट हैं। माँ को अनुमान हो गया कि वर्षा में मैं तुम्हारे साथ थी, नहीं तो इस तरह भीगकर न आती। माँ को अपवाद की बहुत चिंता रहती है।
कालिदास : दूध मुझे दे दो और इसे बाँहों में ले लो।
(दूध का भाजन उसके हाथ से ले लेता है। मल्लिका हरिणशावक को बाँहों में लेकर उसका मुँह दूध के निकट ले जाती है। कालिदास भाजन को उसके और निकट कर देता है।) हम दूध नहीं पीएँगे? नहीं हम ऐसा हठ नहीं करेंगे। हम दूध अवश्य पीएँगे।
(राजपुरुष दन्तुल ड्योढ़ी से आकर द्वार के पास रुक जाता है। क्षणभर वह उन्हें देखता रहता है। कालिदास हरिण को मुँह से दूध पिला देता है।)
ऐसे… ऐसे।
(दन्तुल बढ़कर उनके निकट आता है 1)
दन्तुल : दूध पिलाकर इसके कोमल मांस को और कोमल कर लेना चाहते हो?
(कालिदास और मल्लिका चौंककर उसे देखते हैं। मल्लिका हरिणशावक को लिए थोड़ा पीछे हट जाती है। कालिदास दूध का भाजन आसन पर रख देता है।)
कालिदास : जहाँ तक मैं जानता हूँ हम लोग परिचित नहीं हैं। तुम्हारा एक अपरिचित घर में आने का साहस कैसे हुआ?
(दन्तुल एक बार मल्लिका की ओर देखता है फिर कालिदास की ओर।)
दन्तुल : कैसी आकस्मिक बात है कि ऐसा ही प्रश्न मैं तुमसे पूछना चाहता था। हमारा कभी का परिचय नहीं फिर भी मेरे बाण से आहत हरिण को उठा ले आने में तुम्हें संकोच नहीं हुआ? यह तो कहो कि द्वार तक रक्त बिन्दुओं के चिह्न बने हैं, अन्यथा इन बादलों से घिरे दिनों में मैं तुम्हारा अनुसरण कर पाता?
कालिदास : देख रहा हूँ कि तुम इस प्रदेश के निवासी नहीं हो।
(दन्तुल व्यंग्यात्मक हँसी हँसता है।)
दन्तुल : मैं तुम्हारी दृष्टि की प्रशंसा करता हूँ। मेरी वेश-भूषा ही इस बात का परिचय देती है कि मैं यहाँ का निवासी नहीं हूँ।
कालिदास : मैं तुम्हारी वेश-भूषा को देखकर नहीं कह रहा।
दन्तुल : तो क्या मेरे ललाट की रेखाओं को देखकर? जान पड़ता है चोरी के अतिरिक्त सामुद्रिक का भी अभ्यास करते हो।
(मल्लिका चोट खायी – सी कुछ आगे आती है।)
मल्लिका : तुम्हें ऐसा लांछन लगाते लज्जा नहीं आती?
दन्तुल : क्षमा चाहता हूँ देवि ! परंतु यह हरिणशावक, जिसे बाँहों में लिए हैं, मेरे बाण से आहत हुआ है। इसलिए यह मेरी संपत्ति है। मेरी संपत्ति मुझे लौटा तो देंगी?
कालिदास : इस प्रदेश में हरिणों का आखेट नहीं होता राजपुरुष। तुम बाहर से आए हो, इसलिए इतना ही पर्याप्त है कि हम इसके लिए तुम्हें अपराधी न मानें।
दन्तुल : तो राजपुरुष के अपराध का निर्णय गाँववासी करेंगे। ग्रामीण युवक, अपराध और न्याय का शब्दार्थ भी जानते हो।
कालिदास : शब्द और अर्थ राजपुरुषों की संपत्ति है, जानकर आश्चर्य हुआ।
दन्तुल : समझदार व्यक्ति जान पड़ते हो। फिर भी नहीं जानते कि राजपुरुषों के अधिकार बहुत दूर तक आते हैं। मुझे देर हो रहीं है। यह हरिणशावक मुझे दे दो।
कालिदास : यह हरिणशावक इस पार्वत्य भूमि की संपत्ति है, राज-पुरुष ! और इसी पार्वत्य भूमि के निवासी हम इसके सजातीय हैं। तुम यह सोचकर भूलकर रहे हो कि हम इसे तुम्हारे हाथ में सौंप देंगे। मल्लिका, इसे अंदर ले जाकर तल्प पर या किसी आस्तरण पर… (अम्बिका सहसा अंदर से आती है।)
अम्बिका : इस घर के तल्प और आस्तरण हरिणशावकों के लिए नहीं है।
मल्लिका : तुम देख रही हो माँ…!
अम्बिका : हाँ, देख रही हूँ। इसलिए तो कह रही हूँ। तल्प और आस्तरण मनुष्यों के सोने के लिए हैं, पशुओं के लिए नहीं।
कालिदास : इसे मुझे दे दो, मल्लिका !
(दूध का भाजन नीचे रख देता है और बढ़कर हरिणशावक को अपनी बाँहों में ले लेता है।) इसके लिए मेरी बाँहों का आस्तरण ही पर्याप्त होगा। मैं इसे घर ले जाऊँगा। (द्वार की ओर चल देता है।)
दन्तुल : और राजपुरुष दन्तुल तुम्हें ले जाते देखता रहेगा।
कालिदास : यह राजपुरुष की रुचि पर निर्भर करता है।
(बिना उसकी ओर देखे ड्योढ़ी में चला जाता है।)
दन्तुल : : राजपुरुष की रुचि अरुचि क्या होती है, संभवतः इसका परिचय तुम्हें देना आवश्यक होगा।
(कालिदास बाहर चला जाता है। केवल उसका शब्द ही सुनाई देता है।)
कालिदास : संभवतः।
दन्तुल : संभवतः?
(तलवार की मूठ पर हाथ रखे उसके पीछे जाना चाहता है। मल्लिका शीघ्रता से द्वार के सामने खड़ी हो जाती है।)
मल्लिका : ठहरो राजपुरुष ! हरिणशावक के लिए हठ मत करो। तुम्हारे लिए प्रश्न अधिकार का है, उनके लिए संवेदना का। कालिदास निःशस्त्र होते हुए भी तुम्हारे शस्त्र की चिंता नहीं करेंगे।
दन्तुल : कालिदास? तुम्हारा अर्थ है कि मैं जिनसे हरिणशावक के लिए तर्क कर रहा था वे कवि कालिदास हैं?
मल्लिका : हाँ-हाँ। परंतु तुम यह कैसे जानते हो कि कालिदास कवि हैं?
दन्तुल : कैसे जानता हूँ ! उज्जयिनी की राज्यसभा का प्रत्येक व्यक्ति ‘ ऋतुसंहार’ के लेखक कवि कालिदास को जानता है।
मल्लिका : उज्जयिनी की राज्यसभा का प्रत्येक व्यक्ति उन्हें जानता है?
दन्तुल : सम्राट ने स्वयं ऋतुसंहार पढ़ा और उसकी प्रशंसा की है। इसलिए आज उज्जयिनी का राज्य ‘ ऋतुसंहार’ के लेखक का सम्मान करना और उन्हें राजकवि का सम्मान देना चाहता है। आचार्य वररुचि इसी उद्देश्य से उज्जयिनी से यहाँ आए हैं।
(मल्लिका सुनकर स्तम्भित सी हो रहती हैं।)
मल्लिका : उज्जयिनी का राज्य उन्हें सम्मान देना चाहता है? राजकवि का आसन….?
दन्तुल : मुझे खेद हैं मैंने उनके साथ अशिष्टता का व्यवहार किया। मुझे जाकर उनसे क्षमा माँगनी चाहिए।
हरिणशावक – हिरण का बच्चा, मृगछौना
आस्तरण – बिछौना, गद्दा
कुलांच – चौकड़ी भरना
घृतः – घी
भाजन – पात्र, बरतन
अनुसरण – पीछे-पीछे चलना
सामुद्रिक – हस्तरेखा विद्या, ज्योतिष
आखेट – शिकार
पार्वत्य – पर्वतीय
अपवाद – निंदा
व्यथित – दुःखी
तल्प – शय्या, अटारी
1. निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए :
(1) हरिणशावक इनमें से किसके बाणों से घायल हुआ था?
(अ) कालिदास
(ब) मल्लिका
(क) दन्तुल
(ड) अम्बिका
उत्तर -(क) दन्तुल
(2) कालिदास हरिणशावक के अंगों पर _________का लेप लगाना चाहता है।
(अ) हवाई
(ब) तेल
(क) मरहम
(ड) घृत
उत्तर – (ड) घृत
(3) ‘मेरी वेश-भूषा ही इस बात का परिचय देती है कि मैं यहाँ का निवासी नहीं हूँ।’ यह वाक्य कौन किससे कहता है?
(अ) कालिदास दन्तुल से
(ब) दन्तुल कालिदास से
(क) मल्लिका दन्तुल से
(ड) दन्तुल मल्लिका से
उत्तर – (ब) दन्तुल कालिदास से
(4) उज्जयिनी की राज्यसभा का प्रत्येक व्यक्ति कालिदास को किसलिए जानता है?
(अ) ‘ऋतुसंहार’ के लिए
(क) ‘संगीतसंहार’ के लिए
(ब) ‘गीतसंहार’ के लिए
(ड) ‘नाट्यसंहार’ के लिए
उत्तर – (अ) ‘ऋतुसंहार’ के लिए
2. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए –
(1) कालिदास कौन थे?
उत्तर – कालिदास कवि थे जिन्होंने ‘ऋतुसंहार’ काव्य की रचना की थी।
(2) हिरणशावक किसके बाणों से घायल हुआ था?
उत्तर – हिरणशावक दंतुल के बाणों से घायल हुआ था।
(3) कालिदास हिरण को कहाँ ले गए?
उत्तर – कालिदास घायल हिरण को मल्लिका के घर ले गए।
(4) अंत में दन्तुल ने कालिदास को कैसे पहचाना?
उत्तर – हिरन शावक को लेकर जब बात बढ़ गई तब मल्लिका ने दंतुल को सावधान करते हुए कहा कि कालिदास नि:शस्त्र होते हुए भी तुम्हें हिरन नहीं देंगे। यह सुनकर दंतुल को कालिदास के बारे में पता चला।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए:
(1) माँ के रुष्ट होने के पीछे मल्लिका क्या अनुमान करती है?
उत्तर – मल्लिका अपनी माँ अंबिका के रुष्ट होने के पीछे यह अनुमान करती है कि शायद उन्हें यह पता चल गया है कि मैं वर्षा में कालिदास के साथ भीग रही थी और इस बात से हमारी बदनामी होगी।
(2) दन्तुल कौन था? वह मल्लिका के घर कैसे पहुँचा?
उत्तर – दंतुल उज्जयिनी का एक राजपुरुष था। वह हिरन शावक के रक्त बिंदुओं का अनुसरण करते-करते मल्लिका के घर तक पहुँच गया।
(3) मल्लिका ने दन्तुल को हरिणशावक के लिए हठ न करने के लिए क्यों कहा?
उत्तर – मल्लिका ने दंतुल को हरिणशावक के लिए हठ न करने के लिए कहा क्योंकि वे कालिदास के प्राणीप्रेम से भली-भाँति परिचित थी। उसे पता था कि कालिदास नि:शस्त्र होते हुए भी डरेंगे नहीं और न ही घायल शावक को दंतुल को देंगे।
(4) कालिदास दन्तुल को अपराधी न मानने के लिए क्या तर्क देता है?
उत्तर – कालिदास दंतुल को अपराधी न मानने के लिए यह तर्क देते हैं कि तुम इस प्रदेश में नए हो। शायद तुम्हें यह पता नहीं कि यहाँ हरिणों का आखेट नहीं होता इसलिए हम तुम्हें अपराधी नहीं मानते।
(5) उज्जयिनी की राजसभा कवि कालिदास का सम्मान किस तरह करना चाहती है?
उत्तर – उज्जयिनी की राजसभा कवि कालिदास को उसकी रचना ‘ऋतुसंहार’ के लिए राजकवि का सम्मान देकर सम्मानित करना चाहती है।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के चार-पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए :
(1) घायल हरिणशावक को बचाने के लिए कालिदास ने क्या-क्या किया?
उत्तर – घायल हरिणशावक को बचाने के लिए कालिदास ने निम्नलिखित कार्य किए –
– घायल हरिणशावक से उत्साहवर्धक बातें की।
– उसके जख्मों पर धृत अर्थात् घी का लेप लगाया।
– उसके लिए गरम दूध पीने की व्यवस्था की।
– उसके लिए कोमल आस्तरण बिछाया।
– घायल हरिणशावक को बचाने के लिए उसने मल्लिका की सहायता भी ली।
– घायल हरिणशावक को बचाने के लिए वह राजपुरुष दंतुल तक से भिड़ गया।
(2) कालिदास हरिणशावक को क्यों बचाना चाहते थे?
उत्तर – कवि हृदय से कालिदास हरिणशावक को बचाना चाहते थे क्योंकि उन्हें सभी प्राणियों से बड़ा स्नेह था। उनका मानना था कि अगर हम सभ्य कहे जाने वाले मनुष्य किसी को जीवन दे नहीं सकते तो हमें किसी का जीवन लेने का भी कोई अधिकार नहीं है। वे ये जानते थे कि पशुओं से ही जंगलों की सुरक्षा होती और पारिस्थितिकी का संतुलन बना रहता है।
(3) हरिणशावक के लिए कालिदास और दन्तुल के बीच में हुए संवाद को अपने शब्दों में लिखिए?
उत्तर – दंतुल – यह हिरन शावक मेरे बाणों से घायल हुआ है। अत:, इस पर मेरा अधिकार है।
कालिदास – यह हिरन शावक इस पर्वतीय भूमि की संपत्ति है। इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं।
दंतुल – मैं तुम्हारी बातों में नहीं आऊँगा, मुझे यह हिरन शावक दे दो।
कालिदास – यह तो संभव नहीं।
दंतुल – क्या तुम मेरे पास ये अस्त्र नहीं देख रहे।
कालिदास – हाँ, इस अस्त्र से ही तुममे अहंकार भर गया है।
दंतुल – इस अस्त्र का प्रयोग मैं हिरन शावक को बलपूर्वक लेने में भी कर सकता हूँ।
कालिदास – पर मैं नि:शस्त्र होकर भी तुमसे न डरूँगा और न ही हिरन शावक दूँगा।
दंतुल – मुझे तुम्हारी बहादुरी अच्छी लगी।
5. आशय स्पष्ट कीजिए :
(1) तुम्हारे लिए प्रश्न अधिकार का है, उनके लिए संवेदना का।
उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि मल्लिका दंतुल को सतर्क करते हुए कहती है कि यह हिरन शावक तुम्हारे लिए अंहकार और अधिकार का विषय हो सकता है परंतु यह कालिदास के लिए संवेदना और भावुकता का विषय है। जब कभी भी अंहकार और संवेदना के बीच संघर्ष हुआ है तो जीत और जनमत सदा से संवेदना और भावुकता के पक्ष में ही खड़ा होता है।
(2) यह हरिणशावक पार्वत्य भूमि की संपत्ति है, राजपुरुष और इसी पार्वत्य भूमि के निवासी हम इसके सजातीय हैं।
उत्तर – इस कथन से कालिदास और दंतुल के बीचे हो रहे वाद-विवाद का बोध होता है जब कालिदास दंतुल को कह रहे होते हैं कि यह हरिण शावक पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं बल्कि यह तो इस पर्वत भूमि की संपत्ति है। हम भी इसी पर्वतीय भूमि के निवासी हैं और इस आधार पर हम सब सजातीय हैं।
आस्तरण – बिछौना – कालिदास ने घायल हिरन के लिए घास का एक आस्तरण लगाया।
रुष्ट – नाराज – छोटे बच्चे अपने मनपसंद चीज के न मिलने पर रुष्ट हो जाते हैं।
दूर्वा – दूब घास – पूजा-पाठ में दूर्वा की आवश्यकता पड़ती है।
आखेट – शिकार करना – आज के युग में जंगली जानवरों का शिकार करना कानूनन अपराध है।
शरीर – शारीरिक
गाँव – गँवार
प्रदेश – प्रादेशिक
दिन – दैनिक
पीड़ा – पीड़ित
कोमल – कोमलता
बहुत – बाहुल्य
रुष्ट – रुष्टता
लहू – रक्त, खून
हरिण – मृग, हिरन
ऋतु – मौसम, रुत
दूध – क्षीर, गोरस
अनुसरण – अनुगमन करना/पीछे चलना – अव्ययीभाव समास
हिरण शावक – हिरण का शावक – तत्पुरुष समास
प्रतिदिन – हर दिन – अव्ययीभाव समास
निःशस्त्र – न शस्त्र – नञ् तत्पुरुष समास
- ‘जीवदया’ पर निबंध लिखिए।
उत्तर – जीवदया पर निबंध
‘जीवदया’ का अर्थ है सभी जीवों के प्रति सहानुभूति और दया का भाव रखना। यह केवल मानवों तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और करुणा दिखाने की भावना है। जीवदया का पालन करने से समाज में अहिंसा, शांति और प्रेम की भावना फैलती है। हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण में जीवों को भी समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में माना गया है, इसलिए उन्हें बिना किसी कारण कष्ट देना या दुख पहुँचाना अनैतिक और अवांछनीय है।
हमारे पूर्वजों ने हमेशा यह सिखाया कि ‘जीवों में भगवान का वास है’, इसलिए हमें उनके प्रति भी वही सम्मान और प्रेम दिखाना चाहिए, जैसा हम अपने परिवार और मित्रों के प्रति करते हैं। जीवदया का यह विचार न केवल हिंदू धर्म, बल्कि बौद्ध, जैन और सिख धर्मों में भी गहरे रूप से निहित है। इन धर्मों में अहिंसा और जीवों के प्रति दया को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है।
आजकल के आधुनिक समाज में, जहाँ स्वार्थ और उपभोग की भावना बढ़ रही है, जीवदया की आवश्यकता और भी ज्यादा बढ़ गई है। लोग अक्सर अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जानवरों और अन्य जीवों को अनावश्यक रूप से दुख पहुँचाते हैं, जैसे कि अवैध शिकार, वन्य जीवों का शोषण, और पर्यावरणीय असंतुलन। यह न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह प्रकृति और मानवता के लिए भी खतरनाक हो सकता है।
हमारे समाज में यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि सभी जीवों का जीवन मूल्यवान है, और हमें उनके साथ करुणा, सम्मान और सहानुभूति से पेश आना चाहिए। हमें यह भी समझना चाहिए कि जीवों को नुकसान पहुँचाने से पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है, जो मानव जीवन के लिए भी खतरे की घंटी है।
अंततः, यदि हम जीवन में सच्ची शांति और समृद्धि चाहते हैं, तो हमें जीवदया के सिद्धांत को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। यह न केवल हमारी आंतरिक शांति को बढ़ाएगा, बल्कि यह हमारी आगामी पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और संतुलित पृथ्वी का निर्माण भी करेगा। जीवदया के माध्यम से हम अपनी आंतरिक अच्छाई को जगाकर, दुनिया को एक बेहतर स्थान बना सकते हैं।
- इस नाट्यांश का वर्गखंड में मंचन कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
कालिदास के नाटकों में से किसी एक नाटक की जानकारी विद्यार्थियों को दें।
उत्तर – ‘मेघदूत’ कालिदास की एक प्रसिद्ध काव्य रचना है, जो संस्कृत साहित्य का महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है। यह एक यथार्थवादी काव्य है, जिसमें प्रेम और विरह की भावना को बहुत ही सुंदर रूप में व्यक्त किया गया है। इस काव्य का कथानक मुख्यतः एक विरही यक्ष और उसकी पत्नी के बीच की विरह भावनाओं पर आधारित है।
काव्य की कथा इस प्रकार है कि एक यक्ष को उसके स्वामी ने अभिशापित करके, कैलाश पर्वत से दूर, एक वन में रहने के लिए भेज दिया। वहाँ वह अपने प्रिय पत्नी से बिछड़कर अत्यधिक दुखी और दुखी होता है। उसे अपने प्रियतम से मिलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता, तभी वह एक बादल (मेघ) को अपनी दीन-हीन स्थिति बताता है और उसे संदेश भेजने के लिए कहता है। यक्ष उसे अपनी पत्नी के पास जाने के लिए कहता है और उसे वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य, अपनी भावनाओं और पत्नी के प्रति अपनी गहरी प्रीति के बारे में बताता है।
यक्ष का संदेश पूरी यात्रा में प्रकृति की सुंदरता, उसके परिवेश और दुखी प्रेमी की संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है। काव्य के माध्यम से, कालिदास ने प्रेम, विरह, और प्रकृति के साथ एक गहरे संबंध को चित्रित किया है। ‘मेघदूत’ में प्रकृति को न केवल पृष्ठभूमि के रूप में, बल्कि प्रेम और भावनाओं की गहराई को दर्शाने के लिए एक जीवंत पात्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। काव्य में प्रेम, सौंदर्य, प्रकृति, और विदाई के भावों का अत्यंत सुंदर और संवेदनशील चित्रण किया गया है, जिससे यह काव्य कालिदास की काव्यशास्त्र की महानता और उनकी दृष्टि को प्रमाणित करता है।