मौलाना अबुल कलाम ‘आज़ाद’
(जन्म: सन् 1885 ई., निधन सन् 1958 ई.)
जानेमाने शिक्षाविद्, चिंतक मौलाना अबुल कलाम आजाद, आजाद स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षामंत्री थे। वे प्रखर विद्वान एवं अरबी-फारसी के ज्ञाता थे। साहित्य के क्षेत्र में आप ललित और चिंतनात्मक निबंध लेखक के रूप में जाने जाते हैं। आपकी दृष्टि से मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है जिसे अन्य सजीवों से अलग तरह से रहना चाहिए।
जीने की कला एक आवश्यक कला है। व्यक्ति को इस कला से भलीभाँति परिचित होना चाहिए। उसे चाहिए कि जीवन को भलीभाँति जीए। मरते-मरते नहीं जीना चाहिए और मृत्यु के बारे में कभी सोचना ही नहीं चाहिए। हमारे जीवन में हरियाली की आवश्यकता है, सूखेपन या बंजरता की नहीं। खिले हुए पुष्प, बहते झरने, गाते पंछी और बहती हवा आदि को देख मनुष्य प्रसन्नता का अनुभव कर सकता है।
वस्तुतः हमारे धर्म, दर्शन और अध्यात्म के गहन दर्शन ने मनुष्य को अनावश्यक गंभीर और कृत्रिम बना दिया है। उसे सहज नहीं रहने दिया है। जीवन का लक्ष्य आनंद की प्राप्ति करना होता है, जिसे सिद्ध करने में ही लगे रहना चाहिए।
लोग सदा इस खोज में लगे रहते हैं कि जीवन को बड़े-बड़े कामों के लिए काम में लाएँ। मगर वे यह नहीं जानते कि यहाँ सबसे बड़ा काम खुद जीवन है, अर्थात् जीवन को हँसी-खुशी में काट देना। यहाँ इससे ज्यादा सरल काम कोई नहीं है कि मर जाइए और इससे ज्यादा विकट काम कोई नहीं है कि जीते रहिए। जिसने यह मुश्किल हल कर ली, उसने जीवन की सबसे बड़ी गुत्थी सुलझा ली।
मेरा ख्याल है, प्राचीन चीनियों ने जीवन की समस्या को ठीक समझा था। एक प्राचीन चीनी वाक्य में पूछा गया है दुनियाँ में सबसे बुद्धिमान आदमी कौन है? फिर जवाब दिया है जो सबसे ज्यादा खुश रहता है। इससे हम चीनियों का जीवन-संबंधी दृष्टिकोण समझ सकते हैं।
अगर आपने संसार की हर स्थिति में प्रसन्न रहने की कला सीख ली है, तो विश्वास कीजिए कि आपने जीवन का सबसे महान काम सीख लिया है। अब इसके बाद इस सवाल की जरूरत ही नहीं रहीं, आपने और क्या-क्या सीखा है? खुद भी खुश रहिए और दूसरों से भी कहते रहिए, कि अपने चेहरे उदास न होने दें।
आजकल के एक फ्रांसीसी लेखक आंद्री गीद (Andre Gide) की एक बात मुझे बहुत भाई, जो उसने अपनी आप- बीती में लिखी है- ‘खुश रहना केवल एक जरूरत नहीं है, यह एक नैतिक उत्तरदायित्व भी है।’ मतलब यह कि हमारे व्यक्तिगत जीवन का प्रभाव हमीं तक सीमित नहीं रहता, वह दूसरों को भी पकड़ता है। या यूँ कहिए कि हमारे सुख-दुख की छूत दूसरों को भी लगती है। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि न आप उदास हों, न दूसरों को उदास करें।
हमारा जीवन एक शीशाघर है। यहाँ हर चेहरे का प्रतिबिंब एक ही समय में सैकड़ों शीशों पर पड़ता है। अगर एक चेहरे पर भी छाया आ गई, तो वह छाया सैकड़ों चेहरों पर छा जाएगी। हममें से किसी आदमी का जीवन उसकी अपनी व्यक्तिगत जायदाद नहीं है। हर आदमी पूर्ण संग्रह का अंश है। दरिया में एक लहर अकेली उठती है, मगर उस एक ही लहर से अनगिनत लहरें बन जाती हैं। यहाँ हमारी कोई बात भी सिर्फ हमारी नहीं है, हम जो कुछ अपने लिए करते हैं, उसमें भी दूसरों का भाग होता है। हमारी कोई खुशी भी हमें खुश नहीं कर सकेगी, अगर हमारे चारों तरफ उदास चेहरे जमा हो जाएँ। हम खुद खुश रहकर दूसरों को खुश करते हैं और दूसरों को देखकर खुद खुश होने लगते हैं।
यह अजीब बात है कि धर्म, फिलासफी और सदाचार तीनों ने जीवन की समस्या हल करनी चाही और तीनों में खुद जीवन के विरुद्ध भाव उत्पन्न हो गया। इसीलिए लोग समझते हैं कि कोई आदमी जितना ज्यादा बुझा दिल और सूखा चेहरा लेकर फिरे, वह उतना ही ज्यादा धार्मिक, फिलासफर और सदाचारी है। मानो ज्ञान और पवित्रता दोनों के लिए दुख का जीवन अनिवार्य हो गया।
यह माना कि जिन गुत्थियों को दुनिया सैकड़ों वर्षों के सोच-विचार से भी नहीं सुलझा सकी, आज हम उन्हें हँसी ठठ्ठे के चार शब्दों से हल नहीं कर सकते। मगर यह तो मानना पड़ेगा, कि यहाँ सत्य की ओर से आँखें बंद नहीं की जा सकतीं। एक भक्त एक साधु, एक फिलासफर का सूखा चेहरा बनाकर हम उस चित्र में नहीं खप सकते, जो प्रकृति के विश्वकर्मा हाथों ने यहाँ खींच दिया है। जिस चित्र में सूरज का चमकता हुआ मस्तक, चाँद का हँसता हुआ चेहरा, तारों की झलमलाती हुई आँखें, पेड़ों का नृत्य, पंछियों का संगीत, बहते हुए पानी की तरंगें, खिलते हुए फूलों की बहारें अपनी शोभा दिखा रही हैं, वहाँ हम एक बुझे हुए दिल और सूखे हुए चेहरे के साथ स्थान नहीं पा सकते। प्रकृति की इस रूप सभा में तो वही जीवन सज सकता है, जो अपने वक्ष में दमकता हुआ दिल और चेहरे पर चमकती हुई आँखें रखता हो और जो चाँदनी में चाँद की तरह निखरकर, तारों की छाँह में तारों की तरह चमककर, फूलों की क्यारी में फूलों की तरह खिलकर अपना स्थान ले सकता हो।
गुत्थी – उलझन, समस्या
उत्तरदायित्व – जिम्मेदारी
शीशाघर – ऐसा कक्ष जिसमें दीवारें शीशे की बनी हो, वह घर जिसकी दीवारों तथा छत पर शीशे लगे हों
जायदाद – संपत्ति
हँसी-ठट्ठे – हँसी-मजाक
विकट – मुश्किल
फिलासफी – दर्शनशास्त्र
झलमलाती – प्रकाशित, चमकती
बुझे हुए – मुरझाये हुए
वक्ष – छाती
1. निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए
(1) मनुष्य जीवन को किस काम में लाया जाना चाहिए?
(अ) जीवन को समझने
(ब) हँसी-खुशी में बिताने
(क) सरल काम करने
(ड) विकट काम करने
उत्तर – (ब) हँसी-खुशी में बिताने
(2) आदमी ज्यादा धार्मिक, फिलासफर और सदाचारी लगता है, ऐसा लोग कब समझते हैं?
(अ) जब वह बुझेदिल हो।
(ब) जब वह प्रसन्न हो।
(क) जब वह धर्म की बात करते हो।
(ड) जब वह पवित्र हो।
उत्तर – (अ) जब वह बुझेदिल हो।
(3) लेखक के मतानुसार जीवन की समस्याओं को किस प्रजा ने ठीक से समझा था?
(अ) प्राचीन भारतीय
(ब) अमेरिकन
(क) चीनी
(ड) आधुनिक भारतीय
उत्तर – (क) चीनी
2. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
(1) जीवन की सबसे बड़ी गुत्थी कैसे सुलझायी जाए?
उत्तर – जीवन की सबसे बड़ी गुत्थी हँसी-खुशी से सुलझायी जाए।
(2) जीवन की समस्या किसने ठीक समझा था?
उत्तर – जीवन की समस्या को चीनियों ने ठीक se समझा था।
(3) दुनिया में सबसे बड़ा बुद्धिमान कौन है?
उत्तर – जो सबसे ज्यादा खुश रहता है वही दुनिया में सबसे बड़ा बुद्धिमान है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
(1) प्रसन्न रहने की कला क्या है?
उत्तर – प्रसन्न रहने के लिए हमें जीवन में आने वाली बाधाओं और चुनौतियों का प्रसन्नता के साथ सामना करना चाहिए क्योंकि मुश्किलों या विपत्तियों की बौछार जीवन में लगातार होती रहती हैं। आप चाहे दुखी मन से उसे झेलें या फिर खुशी से समस्याओं का आना तो तय है।
(2) ‘खुश रहना केवल एक जरूरत नहीं, यह एक नैतिक उत्तरदायित्व भी है’ – कैसे?
उत्तर – ‘खुश रहना केवल एक जरूरत नहीं, यह एक नैतिक उत्तरदायित्व भी है’ क्योंकि हमारे खुश रहने से हमारे आस-पास के लोग भी हमें देखकर खुश हो जाते हैं और हमारे चारों तरफ एक खुशनुमा माहौल बन जाता है।
(3) हमारी खुशी हमें कब खुश नहीं कर सकती?
उत्तर – हमारी खुशी हमें खुश नहीं कर सकेगी, अगर हमारे चारों तरफ उदास, दुखी और मायूस चेहरे जमा हो जाएँ।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के सविस्तार उत्तर लिखिए :-
(1) आदमी का जीवन उसकी अपनी व्यक्तिगत जायदाद क्यों नहीं है?
उत्तर – आदमी का जीवन उसकी अपनी व्यक्तिगत जायदाद नहीं है क्योंकि हमारे व्यक्तिगत जीवन का प्रभाव हमीं तक सीमित नहीं रहता, वह हमारे परिवार के सदस्यों, सगे-संबंधियों और समाज के दूसरे लोगों पर भी पड़ता है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि हमारे सुख-दुख की छूत दूसरों को भी लगती है। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि न हम उदास हों, न दूसरों को उदास करें।
(2) हम बुझे हुए दिल और सूखे हुए चेहरे के साथ कहाँ स्थान नहीं प्राप्त कर सकते?
उत्तर – प्रकृति के जिस चित्र में सूरज का चमकता हुआ मस्तक, चाँद का हँसता हुआ चेहरा, तारों की झलमलाती हुई आँखें, पेड़ों का नृत्य, पंछियों का संगीत, बहते हुए पानी की तरंगें, खिलते हुए फूलों की बहारें अपनी शोभा दिखा रही हैं, वहाँ हम एक बुझे हुए दिल और सूखे हुए चेहरे के साथ स्थान नहीं पा सकते।
कला – कलाकार
नीति – नीतिज्ञ
बात – बातूनी
दिल – दिलदार
सदाचार – सदाचारी
संगीत – संगीतकार
नृत्य – नृत्यांगना
संसार – सांसारिक
विश्वास – विश्वसनीय
प्रतिबिंब – प्रतिबिंबित
कृति – कृत्य
समय – सामयिक
अंश – आंशिक
प्रसन्न – प्रसन्नता
सरल – सरलता
बड़ा – बड़प्पन
खुश – खुशी
उदास – उदासी
बहुत – बाहुल्य
आदमी – आदमीयत
‘जीवन जीने की कला’ विषय पर वक्तृत्व स्पर्धा का आयोजन कीजिए।
उत्तर – जीवन जीने की कला का मतलब है अपने जीवन को संतुलन, खुशी और उद्देश्य के साथ जीना। यह कला केवल बाहरी उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि आंतरिक शांति, सकारात्मक दृष्टिकोण और अच्छे रिश्तों में भी समाहित है। जीवन की कला में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपने संघर्षों और समस्याओं को एक चुनौती के रूप में देखें, न कि निराशा का कारण। इसके लिए हमें खुद से ईमानदारी, आत्मविश्वास और धैर्य की आवश्यकता होती है। हर दिन को एक नए अवसर के रूप में जीने की कला हमें हमारे सपनों की ओर बढ़ने में मदद करती है। यह समझना कि खुश रहने के लिए हमें बाहरी कारणों से अधिक, अपनी आंतरिक स्थिति को बेहतर बनाने की आवश्यकता है, जीवन जीने की कला का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। ।
‘जीवन में आनंद का महत्त्व’ विषय पर लेखन कार्य करवाइए।
उत्तर – जीवन में आनंद का महत्त्व अत्यधिक है, क्योंकि यह हमें मानसिक शांति और संतुष्टि प्रदान करता है। जब हम आनंदित होते हैं, तो न केवल हमारा मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है, बल्कि हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आनंद जीवन के छोटे-छोटे पलों में मिल सकता है—एक मुस्कान, किसी प्रिय व्यक्ति का साथ, या अपनी मेहनत के फल का स्वाद। आनंद हमें जीवन की कठिनाइयों से जूझने की शक्ति देता है और हमारी चिंताओं को कम करता है। यह हमें सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करता है, जिससे हम कठिन परिस्थितियों में भी उम्मीद और आत्मविश्वास बनाए रख सकते हैं। अंततः, आनंद जीवन को और अधिक अर्थपूर्ण और खुशहाल बनाता है, क्योंकि यह हमें यह समझने में मदद करता है कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य केवल हासिल करने से नहीं, बल्कि हर पल में संतुष्टि और खुशी महसूस करने में है।
‘आनंद’ फिल्म दर्शाने का आयोजन कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
‘प्रसन्नता ईश्वर का दूसरा स्वरूप है।’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा का आयोजन कीजिए।
उत्तर – प्रसन्नता ईश्वर का दूसरा स्वरूप है, क्योंकि यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का स्रोत बनती है। जब हम प्रसन्न रहते हैं, तो हमारा हृदय और मन शुद्ध होते हैं, और हम अपने आसपास के लोगों को भी खुशियाँ और प्रेम बांटते हैं। ईश्वर ने हमें यह गुण दिया है, ताकि हम जीवन के हर पहलू को स्वीकार कर सकें और मुश्किलों का सामना भी मुस्कान के साथ कर सकें। प्रसन्नता से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है, और यह हमें जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देती है। यह भी कहा जा सकता है कि प्रसन्नता ईश्वर की कृपा का प्रतीक है, क्योंकि जब हम प्रसन्न रहते हैं, तो हम अपने भीतर ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करते हैं। इससे हमारे जीवन में शांति, संतोष और आंतरिक सुख का संचार होता है, जो हमें सही मार्ग पर चलने की दिशा दिखाता है।
प्रसन्नता, जीवन जीने की कला, सदाचार, धर्म, दर्शन… आदि शीर्षक अंतर्गत विद्वानों के विचार, सूक्तियाँ एवं लेखों का संकलन करने का कार्य छात्रों को दीजिए।
उत्तर – शिक्षक इसे अपने स्तर पर करें।