(जन्म: 1906 ई., निधन 1995 ई.)
‘काका हाथरसी’ हिंदी के जानेमाने हास्य-व्यंग्यकार थे। आपने हिंदी जगत में एक विशेष पहचान बनायी है। मूल नाम प्रभुलाल गर्ग था, पर हाथरस में एक नाट्यमंचन के दौरान आपने ‘काका’ की भूमिका निभायी थी तभी से आपने स्वयं अपना तखल्लुस काक हाथरसी रख लिया। हिंदी के हास्य कवियों को मंच देने का श्रेय आपको जाता है। जहाँ कहीं भी हास्य कवि संमेलन आयोजित होते थे वहाँ काका की अनिवार्य अनुपस्थिति होती थी।
हिंदी की सुविख्यात पत्र-पत्रिकाएँ यथा ‘धर्मयुग’ , ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ , ‘वीणा’ आदि में आपकी रचनाएँ नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती थीं। कुल मिलाकर आपके नाम 42 संकलन मिलते हैं। व्यंग्य- हास्य के क्षेत्र में आपके सुपुत्र निर्भय हाथरसी का नाम भी प्रसिद्ध है।
1985 में आपको भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित ‘पद्मश्री’ से सम्मानित दिया गया। हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा प्रति वर्ष काका हाथरसी पुरस्कार दिया जाता है।
प्रस्तुत रचना में ढोंगी धूर्त बाबाओं की लीला का चित्रण किया गया है।’ साधुपदेश’ शीर्षक से तो लगता है साधु अर्थात् सज्जन का उपदेश होगा पर कवि ने व्यंग्य शैली अपनाकर ऐसे साधु, ढोंगी बाबा आदि के प्रति अपना आक्रोश प्रकट किया है। पोथी पढ़ने और माला फेरने से कुछ नहीं होता। एक ओर हम ‘रामनाम जपते हैं। गोमुखी में हाथ डाल माला के दाने को फेरते हैं, तो दूसरी ओर मीठी छुरी भी चलाते है। ये तथाकथित साधु बाबा न तो ज्यादा पढ़े लिखे होते हैं, न ज्ञानी इसलिए भक्तों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर न देने पड़ें इस हेतु ‘मौनी बाबा’ का स्वांग रचाये बैठे रहते हैं। वे मौन रहकर जीव जगत और माया संबंधी असंगत बातें, मनगढ़ंत बातें किए जाते हैं।
साधुपदेश
आइये प्रिय भक्तगण !
उपदेश कुछ सुन लीजिये
पढ़ चुके हैं बहुत पोथी
आज कुछ गुन लीजिये।
हाथ में हो गोमुखी
माला सदा हिलती रहे
नम्र ऊपर से बनें
भीतर छुरी चलती रहे।
नगर से बाहर बगीचे में
बना लें झोंपड़ी
दीप जैसी देह चमके
सीप जैसी खोपड़ी
तर्क करने के लिए
आ जाए कोई सामने
खुल न जाए पोल इस
भय से लगें मत काँपने।
जीव क्या है ब्रह्म क्या?
तू कौन है, मैं कौन हूँ?
स्लेट पर लिख दो महोदय
आजकल मैं मौन हूँ,
धर्मसंकट शीघ्र ही
इस युक्ति से कट जाएँगे।
सामने से तार्किक विद्वान
सब हट जाएँगे।
किए जा निष्काम सेवा
सब फलेच्छा छोड़कर
याद फल की जब सताए,
खा पपीता तोड़कर
स्वर्ग का झगड़ा गया
भय भी नरक का छोड़ दे
पाप-घट भर जाए तो
काशी पहुँच कर फोड़ दे।
पोथी – पुस्तक
गोमुखी – ऐसी थैली जिसमें माला रखकर नाम स्मरण किया जाता है
तर्क – दलील,
पोल – रहस्य,
दोष – अपराध
धर्मसंकट – मुश्किल
निष्काम – निरपेक्ष बिना किसी कामना के, निःस्वार्थ
मुहावरा
पोल खोलना – रहस्य प्रगट करना, दोष बता देना
कहावत
मुख में राम बगल में छुरी – कथनी और करनी में अंतर होना
1. निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए:-
(1) कवि भक्तगण को कौन से गुण ग्रहण करने की बात करते हुए व्यंग्य करते हैं?
(अ) पोथी पढ़कर ज्ञानी बनना
(ब) हाथ में गोमुखी लेकर ईश्वर स्मरण करना
(क) मुख में राम बगल में छुरी चलाना
(ड) उपदेश सुनना
उत्तर – (ब) हाथ में गोमुखी लेकर ईश्वर स्मरण करना
(2) आजकल के साधु के सामने कोई तर्क करने आए तो वे क्या युक्ति करेंगे?
(अ) अपने को ही ज्ञानि सिद्ध करेंगे।
(ब) डर के मारे वाद-विवाद ही नहीं करेंगे।
(क) अपनी झोंपड़ी में प्रवेश ही नहीं करने देंगे।
(ड) अपनी पोल खुल न जाए इसके लिए मौन रहेंगे।
उत्तर – (ड) अपनी पोल खुल न जाए इसके लिए मौन रहेंगे।
2.निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
(1) दिखावा करते हुए साधु कैसा व्यवहार करता है?
उत्तर – दिखावा करते हुए साधु नम्र, ज्ञानी, अनासक्त होने का व्यवहार करता है।
(2) साधु उपदेश देने के लिए झोंपड़ी कहाँ बनाते हैं?
उत्तर – साधु उपदेश देने के लिए नगर से बाहर बगीचे में झोंपड़ी बनाते हैं।
(3) दंभी साधुओं को किस बात का भय सताता है?
उत्तर – दंभी साधुओं को उनकी पोल खुल जाने का भय सताता है।
(4) साधु मौन धारण क्यों करते हैं?
उत्तर – साधु जब तार्किक विद्वानों के तर्कों का खंडन करने में असमर्थ हो जाते हैं तब वे मौन धारण कर लेते हैं।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :–
(1) ढोंगी साधु भक्तजनों को क्या उपदेश देते हैं?
उत्तर – ढोंगी साधु भक्तजनों को उपदेश देते हैं कि हाथ में गोमुखी धारण करके राम-नाम जपना चाहिए, सदैव नम्र बने रहना चाहिए। फल की इच्छा न करके कर्म करते रहना चाहिए। हालाँकि इसके पीछे केवल और केवल उनके ही स्वार्थ की सिद्धि होती है।
(2) ढोंगी साधु मौनव्रत क्यों धारण करते है?
उत्तर – ढोंगी साधुओं की पोल खोलने के उद्देश्य से कोई विद्वान तार्किक जब उनसे तर्क करने लगता है और उन तर्कों का खंडन ढोंगी साधु नहीं कर पाते हैं तब वे मौनव्रत धारण करके इस अप्रिय स्थिति से अपने आपको बचाते हैं।
(3) ‘साधुपदेश’ काव्य में काका हाथरसी ने किस पर व्यंग्य किया है?
उत्तर – ‘साधुपदेश’ काव्य में काका हाथरसी ने ढोंगी बाबाओं और साधुओं पर व्यंग्य किया है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि साधु के चोले में जब कोई किसी को ठगता है या लूटता है तो शास्त्रों में इसे महा अपराध माना जाता है। रावण ने भी साधु के चोले में सीता का हरण किया था। ऐसी ही स्थिति हमें आज के दिन में भी देखने को मिलती हैं जब भगवे और गेरुए कोपिन पहनकर लोग दूसरों को ठगते हैं जिससे न केवल भावनात्मक चोट लगती हैं बल्कि धर्म का भी पतन होता है।
पोल खोलना – रहस्य का उदघाटन करना – कुछ समाज सुधारकों ने ढोंगी बाबाओं की पोल खोल दी।
5. निम्नलिखित शब्दों के विरोधी शब्द दीजिए :-
प्रिय – अप्रिय
नम्र – उग्र
भीतर – बाहर
भय – निर्भय
मौन – मुखर
6. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण बनाइए :-
स्वर्ग – स्वर्गीय
चमक – चमकीला
तर्क – तार्किक
धर्म – धार्मिक
देह – दैहिक
नगर – नागरिक
8. निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा बनाइए :-
नम्र – नम्रता
काँपना – कँपकपाहट
गुणी – गुण
भयभीत – भय
8. निम्नलिखित शब्दों का कर्तृवाचक संज्ञा बनाइए :-
उपदेश – उपदेशक
धर्म – धर्मात्मा
झगड़ा – झगड़ैल
- किसी पत्रिका में प्रकाशित हास्य और व्यंग्य की रचना को वर्ग में सुनाइए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- समाचारपत्रों के प्रकाशित ढोंगी साधुओं के समाचारों को काटकर संग्रह कीजिए और बुलेटिन बोर्ड पर प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।
- ढोंगी साधुओं की करतूतों से बचने के लिए उपायों और सावधानियों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर – ढोंगी साधुओं और बाबाओं से बचने के लिए कुछ उपाय और सावधानियाँ अपनाई जा सकती हैं:
- सतर्क रहें और शंका रखें
यदि कोई साधु या बाबा अचानक आपके सामने आकर उपदेश देने या चमत्कारी क्रियाएँ दिखाने लगे, तो पहले संदेह करें। सच्चे साधु अपनी साधना और उपदेशों के लिए प्रसिद्ध होते हैं, न कि दिखावा करने के लिए।
- धार्मिक आस्थाएँ खुद विकसित करें
धर्म और आध्यात्मिकता के बारे में अपनी खुद की समझ और ज्ञान विकसित करें। किताबों, गुरुओं और विश्वासों से जानकारी प्राप्त करें। जब आप स्वयं जागरूक होंगे, तो धोखाधड़ी के प्रति जागरूक रहेंगे।
- ध्यान से धन और वस्त्रों का लेन-देन करें
कई बार धोखाधड़ी करने वाले साधु अपने अनुयायियों से पैसे और भेंट माँगते हैं। अगर कोई व्यक्ति आपको अपनी समस्याओं का समाधान केवल धन देने से करने की बात कहे, तो सतर्क हो जाएँ। सच्चे साधु या गुरु कभी धन के लिए नहीं कहते।
- विवेक का प्रयोग करें
किसी भी आध्यात्मिक गुरु या साधु का चयन करते समय विवेक का प्रयोग करें। उनसे मिलने से पहले उनकी पृष्ठभूमि और उनके बारे में जानकारी प्राप्त करें। अन्य भक्तों से पूछताछ करें और किसी प्रकार की अजीब बातें या चमत्कारी दावों से दूर रहें।
- सामाजिक प्रमाण की आवश्यकता
यदि कोई साधु या बाबा अपने बारे में चमत्कारी शक्तियाँ होने का दावा करता है, तो पहले यह सुनिश्चित करें कि वह सच्चा है या नहीं। दूसरों की राय और समीक्षाएँ भी महत्त्वपूर्ण हो सकती हैं।
- बड़ी रकम का लेन-देन न करें
बहुत से ढोंगी साधु भक्तों से बड़ी रकम की माँग करते हैं। इस प्रकार के लोगों से बचें और बड़े वित्तीय लेन-देन से हमेशा बचें, विशेष रूप से जब यह धर्म या विश्वास के नाम पर हो।
- निजी जीवन में हस्तक्षेप से बचें
ढोंगी साधु कभी भी आपके निजी जीवन में हस्तक्षेप करते हैं, जैसे व्यक्तिगत संबंधों या परिवार की समस्याओं में अनावश्यक रूप से दखल देना। सच्चे साधु कभी इस तरह का व्यवहार नहीं करते।
- सशक्त कानूनी उपाय
अगर आपको किसी साधु या बाबा के धोखाधड़ी का शिकार होने का संदेह हो, तो पुलिस या उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क करें और शिकायत दर्ज करें। यह आपकी सुरक्षा और अन्य लोगों के लिए मददगार हो सकता है।
- ध्यान रखें: चमत्कारी दावे अक्सर झूठे होते हैं
चमत्कारी शक्तियों का दावा करने वाले साधु या बाबा अक्सर झूठ बोलते हैं। कोई भी सच्चा साधु अपनी साधना और तपस्या में विश्वास करता है, न कि चमत्कारी प्रदर्शन में।
इन सावधानियों को ध्यान में रखते हुए आप ढोंगी साधुओं और बाबाओं से बच सकते हैं और अपने जीवन में सही मार्ग पर चल सकते हैं।