(जन्म सन् 1912 ई., मृत्यु सन् 2000 ई.)
आपका जन्म अलीगढ़ जिले के विजयगढ़ कस्बे में हुआ था। बालसाहित्य पर आपने अपनी लेखनी चलाई। बाल मनोविज्ञान पर उन्होंने अनेक कहानियाँ लिखी हैं हुआ था।
सन् 1990 में उनको भारत सरकार का प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘पद्मश्री’ प्राप्त ‘अजन्ता इलोरा’ , ‘अहिंसा’ और ‘भारत के यात्री’ उनकी ख्यातनाम कृतियाँ हैं।
नौकर हमारे परिवार का अंग होना चाहिए। हमें उसके साथ आत्मीय व्यवहार करते हुए स्वीकार करना चाहिए। हम जो खाते हैं वह नौकर को भी मिलना चाहिए ताकि मानवीय और सौहार्दपूर्ण वातावरण से घर में सुख-शांति और आनंद बना रहे। इस संदेश के साथ एक परिवार की कहानी यहाँ सुंदर ढंग से प्रस्तुत की गई है।
चोरी
कमरे को साफ कर झाड़ू पर कूड़ा रखे जब बिन्दू कमरे से बाहर निकला, तब बारंडे में बैठी मालती का ध्यान उसकी ओर अनायास ही चला गया। उसने देखा कि एक हाथ में झाड़ है; पर दूसरे हाथ की मुट्ठी बँधी है और कुछ पीछे की ओर जानबूझकर आड़ में कर ली गई है। मालती को लगा, हो न हो, कमरे से बिन्दू कुछ लाया हैं। उसने कहा, ‘बिन्दू !’
दो कदम पर बिन्दू, पर उसने मानो मालती की आवाज सुनी ही न हो ! वह चलता ही गया; बल्कि मालती ने देखा कि उसकी पुकार पर बिन्दू की चाल में कुछ तेजी आ गई है। गुस्से में भरकर उसने कहा, ‘बिन्दू ! ओ बिन्दू ! ठहर, कहाँ जाता है? ‘
इतना कहना था कि बिन्दू तो दौड़ने लगा और वह गया, वह गया। मालती के संदेह की पुष्टि के लिए यह सब काफ़ी था। उसने तेजी के साथ कहा, ‘सुनते हो जी, देखो, बिन्दू कुछ लिए जा रहा है। जल्दी आओ।”
नंदन अपने कमरे में बैठा अपने पत्र के लिए कुछ लिख रहा था। मालती का यों चिल्लाना उसे अच्छा नहीं लगा और उसने चाहा कि टाल दे; पर मालती माने तब न ! एक सपाटे में वह कमरे में आ गई और बोली, ‘झटपट उठो। देखो, बिन्दू मुट्ठी में दबाये कुछ ले गया है।’
नंदन ने कलम एक ओर रख दी और जैसे किसी ने जबरदस्ती पकड़कर उठा लिया हो, वह उठा। कमरे से बाहर आया तो देखता क्या है कि बिन्दू लौटकर आ रहा है। एक हाथ में झाड़ू है, दूसरा रीता है और नीचे लटका है। उसे देखते ही मालती उबल पड़ी, ‘क्यों रे बिन्दू के बच्चे, मैं गला फाड़ती रही और तू रुका तक नहीं ! बोल हाथ में क्या ले गया था? ‘
बिन्दू का चेहरा फक ! बोला, ‘कुछ नहीं, बीबीजी !”
झूठा कहीं का ! क्यों रे, तेरे हाथ में कुछ नहीं था, तो मेरे पुकारने पर फिर तू रुका क्यों नहीं? ‘मालती ने रोषपूर्ण स्वर में पूछा।
बिन्दू से बोला नहीं जा रहा था। कहे, तो क्या कहे ! तब नंदन आगे बढ़ा। बोला, ‘घबराओ नहीं ! सच बताओ कि क्या ले गए थे? ”
‘सच, बाबूजी, मेरे हाथ में झाडू थी और कूड़ा था।’
‘फिर वही झूठ !’ मालती ने चिढ़कर कहा।’ इसे पुलिस में दे दो। लातों के देव कहीं बातों से मानते हैं? इस बेईमान के ऊपर घर छोड़ रखा है, तो इसीलिए कि चीज उठा-उठाकर ले जाए और ऊपर से झूठ बोले !”
नंदन ने मालती को शान्त कर कहा, ‘असली बात जानने का यह तरीका नहीं है।’ फिर बिन्दू को उसने प्यार से समझाया और कहा, ‘मैं तुम से कुछ कहूँगा नहीं। ठीक-ठीक बताओ कि क्या ले गए थे।’ किन्तु बिन्दू घबराया – सा, खोया-सा, धरती की ओर देखता रहा और नंदन का बहुत आग्रह हुआ तो उसने इतना ही कहा ‘मैंने कुछ लिया है।’
नंदन फिर भी खीझा नहीं। बोला, ‘अच्छा चल, देखूँ, तू कूड़ा कहाँ फेंक आया है?’
बिन्दू पहले तो कुछ ठिठका, अनन्तर मुड़कर चुपचाप आगे हो लिया। नंदन और मालती ने वह जगह देखी, पर कुछ दिखा नहीं। नंदन ने कहा, ‘बिन्दू, यो हैरान करने से क्या होगा? बता क्यों नहीं देता कि क्या लाया था? ”
बिन्दू के होठ खुले, जैसे कुछ कहना चाहता हो; पर फिर बंद हो गए।’ हाँ कहो, रुक क्यों गए? ” नंदन ने शान्त स्वर में कहा।
‘बाबूजी…’ बिन्दू फिर चुप।
‘शाबाश, कहो कहो।’
‘बाबू…
.जी, थोड़ी-सी मेवा नीचे पड़ी थी। मैं उठा लाया।’ बिन्दू कह तो गया; पर जैसे वह अनुभव कर रहा हो कि दुनिया का जाने कितना गहरा पाप उसने कर डाला है।
‘मैं कहती थी न !’ मालती बोल उठी, ‘कि यह कुछ-न-कुछ ले जरूर आया है। देखा, मेरी बात सच निकली न !”
‘मेवा का तुमने क्या किया, बिन्दू? ”
“खा ली।”
‘इतनी जल्दी? बिन्दू, झूठ मत बोलो ! सच बता दो।”
‘इधर फेंक दी।’
नंदन और मालती ने देखा कि उसकी बताई जगह पर थोड़े से काजू और कुछ किसमिशें पड़ी हैं। नंदन ने बिन्दू के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘मेरे साथ आओ।’
बिन्दू चुपचाप मालिक के साथ चल दिया। नंदन उसे लेकर कमरे की ओर गया। मालती ने कहा, ‘आज इसने मेवा ली है, कल को और कुछ उठा ले जाएगा। एक बार जो नीयत बिगड़ी, तो क्या फिर हाथ रुकता है? ”
नंदन ने पत्नी की बात सुनी-अनसुनी कर दी। बिन्दू को साथ लेकर कमरे में गया और कनस्तर खोलकर उसमें से एक मुट्ठी मेवा उसके हाथ में देते हुए बोला, ‘बिन्दु, लो, खा लो !’
पति के इस नरमी के व्यवहार से मालती आग बबूला हो गई। बोली, ‘ऐसे ही तो नौकर बिगड़ते हैं। उसे कुछ कहना तो दूर, उलटे उसकी खुशामद कर रहे हो !’
नंदन मुस्कराया। बोला, ‘मालती, चोर बिन्दू नहीं है, हम हैं। हम क्यों ऐसी चीजें खाएँ जो सबको नहीं मिलती? इसीसे तो चोरी की भावना को जन्म मिलता है। हम लोग रोज मेवा खाते हैं। एक दिन इस बेचारे का मन चल आया और थोड़ी-सी ले ली, तो क्या हो गया? ‘
‘मैं कब कहती हूँ कि कुछ हो गया ! बात मेवा की नहीं है, नीयत की है। इसका जी चला था तो माँग लेता। मैं न देती तब कहता। घर में पचासों चीजें रहती हैं। यों तो जिस पर मन आएगा, उठाकर ले जाएगा और एक दिन यहीं होना है। वह न करेगा तो तुम करवाओगे।”
‘मालती, यह बात नाराज होने की नहीं है, सोचने की हैं। जब तक सब चीजें सबको नहीं मिलती, चोरी बंद नहीं हो सकती। चोरी अच्छी नहीं है, पर आज की स्थिति बड़ी लाचारी की हो गई है। नंदन ने समझाते हुए कहा।
‘देख लेना, एक दिन यही बिन्दू घर में से ट्रंक उठाकर न ले जाए तो मेरा नाम मालती नहीं।’
इतना कहकर मालती रसोई में चली गई और नंदन पुनः अपनी कुर्सी पर आ बैठा। पर मन उसका दूसरी ही दिशा में चल रहा था। थोड़ी देर वह सोचता रहा। फिर उसने विचारों को समेटा और लेख पूरा करने में लग गया।
लेख पूरा हुआ तो काफ़ी देर हो चुकी थी। वह उठा और सीधा रसोई में पहुँचा। देखता क्या है कि मालती सिल पर चटनी पीस रही है। नंदन ने कहा, ‘बिन्दू कहाँ है? ‘
‘मैं क्या जानूँ? तुम जानो और तुम्हारा लाडला बिन्दू जाने।’
‘उसे निकाल दिया? ‘
‘निकालनेवाली मैं कौन होती हूँ? ‘
‘कब से नहीं हैं? ”
‘तभी चला गया था।’
नंदन थोड़ा हैरानी में पड़ा। मालती ने पुनः कहा, ‘तुम यहाँ के नौकरों को जानते नहीं। अपने घर में भी उनका हाथ रुकता नहीं। कुन्दन के यहाँ कितना अनाज भरा है ! फिर भी एक दिन आँख बच गई तो काका के यहाँ से गेहूँ ले ही गया।’
नंदन जानता था कि बहस का अंत नहीं। उसने बात आगे नहीं बढ़ाई और तौलिया उठाकर स्नान करने चला गया। स्नान करने के बाद उसने भोजन किया।
दोपहर बीती और शाम होने को आई। फिर भी जब बिन्दू न लौटा तो मालती के मन को अच्छा नहीं लगा। चौके में अब भी बिन्दू का खाना पड़ा था।
‘झूठ बोला तो क्या, आखिर बालक ही तो है। बेचारा, भूखा जाने कहाँ भटक रहा होगा।’
कई बार कमरे से बाहर आ आकर मालती ने बिन्दू को देखा, फिर बगीचे का एक चक्कर लगाया कि कहीं पेड़ के नीचे पड़ा सो न रहा हो। पर बिन्दू वहाँ कहाँ था जो मिलता ! मालती आकर पलंग पर पड़ गई और अपने को कोसने लगी कि जरा-सी बात को इतना तूल क्यों दिया। थोड़ी-सी मेवा ले गया था, तो क्या गज़ब हो गया था?
सोचते-सोचते देर हो गई तो वह उठी और सहन में टहलने लगी। इतने में कुन्दन उधर से निकला तो मालती ने उत्सुकता से पूछा, ‘कुन्दन, तुमने बिन्दू को देखा है क्या? ”
‘बिन्दू? ‘कुन्दन बोला, ‘अरे, वह तो नदीवाली कोठरी में पड़ा है? ‘
मालती तत्काल पैरों में चप्पल डालकर बाहर हो गई।
लौटी तो बिन्दू उसके साथ था। बाँह पकड़कर नंदन के कमरे में ले गई और बोली, ‘देखी तुमने इसकी बात ! यहाँ से गया है, तब से वहाँ कोठरी में पड़ा है।’
नंदन ने कहा, ‘क्यों रे, वहाँ क्या कर रहा था? ”
बिन्दू चूप।
‘मैं पूछता हूँ, वहाँ क्या कर रहा था? ‘
फिर चुप ।
‘अरे, बोलता क्यों नहीं? मुँह में जबान नहीं है? ‘
बिन्दू की आँखें डबडबा आईं।
मालती ने कहा, ‘इसका पागलपन देखो। सबेरे से कुछ नहीं खाया और भूखा-प्यासा वहाँ पड़ा है। चल, खाना खा।”
नंदन के कुछ कहने से पहले ही वह उसे चौके में ले गई और स्वयं परोसकर उसे खिलाने लगी। बोली, ‘भर- पेट खा लेना। भूखा मत रहना।’
नंदन ने पत्नी की बात सुनी और एक प्रसन्नताभरी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर दौड़ गई।
अनायास – अचानक, बिना प्रयत्न के
सन्देह – शक
रीता – खाली
कनस्तर – डिब्बा
नीयत – इरादा
बहस – चर्चा
मुहावरे
गला फाड़ना – जोरों से चिल्लाना
आग बबूला हो जाना – बहुत गुस्सा आना
कहावत
लातों के देव बातों से नहीं मानते – (जैसा व्यक्ति वैसा व्यवहार) बुरे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने से वे नहीं मानते हैं।
1. निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर खाली जगह भरिए :-
(1) मालती की आवाज सुनकर बिन्दू की चाल में
(अ) रुकावट आ गई।
(ब) तेजी आ गई।
(क) बदल गई।
(ड) सुधार आ गई।
उत्तर – (ब) तेजी आ गई।
(2) ‘असली बात जानने का यह तरीका नहीं है?’ यह कौन कहता है?
(अ) मालती
(ब) नंदन
(क) नंदन
(ड) नयन
उत्तर – (ब) नंदन
(3) ‘देख लेना, एक दिन यही बिन्दू घर में से ………. उठाकर न ले जाए तो मेरा नाम मालती नहीं।’
(अ) संदूक
(ब) अनाज
(क) ट्रंक
(ड) सामान
उत्तर – (क) ट्रंक
(4) ‘अरे, वह तो नदीवाली कोठरी में पड़ा है।’ यह वाक्य कौन कहता है?
(अ) कुन्दन
(ब) बिन्दू
(क) मालती
(ड) नन्दन
उत्तर – (अ) कुन्दन
(5) नंदन ने पत्नी की बात सुनी तो उसके चहेरे पर ———- आ गई।
(अ) चिंता की रेखा
(ब) प्रसन्नता भरी मुस्कुराहट
(क) प्रसन्नता
(ड) मुस्कुराहट
उत्तर – (ब) प्रसन्नता भरी मुस्कुराहट
2.निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
(1) मालती के मन में बिन्दू के प्रति क्या आशंका हुई?
उत्तर – मालती के मन में बिन्दू के प्रति यह आशंका हुई कि वह अपने हाथ में कुछ छुपाए हुए जा रहा है।
(2) मालती को शांत करते हुए नंदन ने क्या कहा?
उत्तर – मालती को शांत करते हुए नंदन ने कहा, ‘असली बात जानने का यह तरीका नहीं है।’
(3) कूड़ा फेंकने की जगह पर नंदन और मालती को क्या दिखा?
उत्तर – कूड़ा फेंकने की जगह पर नंदन और मालती ने कुछ काजू और किशमिश गिरे हुए देखे।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
(1) नंदन ने बिन्दू से चोरी की बात किस प्रकार मालूम की?
उत्तर – नंदन ने बिन्दू से चोरी की बात मालूम करने के लिए मालती को शांत कर कहा, ‘असली बात जानने का यह तरीका नहीं है।’ फिर बिन्दू को उसने प्यार से समझाया और कहा, ‘मैं तुमसे कुछ कहूँगा नहीं। ठीक-ठीक बताओ कि क्या ले गए थे।’ इस प्रकार नंदन के बहुत आग्रह पर बिन्दु ने मेवा लेने की बात स्वीकार की।
(2) बिन्दू ने अपने दोष का किस प्रकार पश्चात्ताप किया?
उत्तर – बिन्दू को अपने कृत्य पर बड़ा पछतावा हो रहा था। उसे लगने लगा कि उसने बहुत बड़ा पाप कर दिया है। अपने दोष का पश्चात्ताप करने के लिए दिनभर बिना कुछ खाए-पिए अकेले नदीवाली कोठरी में पड़ा रहा।
(3) बिन्दू के न दिखने पर मालती को क्या चिंता हुई?
उत्तर – बिन्दू के न दिखने पर मालती को बिन्दू की बहुत चिंता होने लगी क्योंकि वह सुबह से ही कहीं दिख नहीं रहा था। उसने कुछ खाया-पिया भी नहीं था और सबसे बड़ी बात यह कि उसने किसी को कुछ बताए बिना कहीं चला गया था।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के पाँच-छह वाक्यों में उत्तर लिखिए :-
(1) नौकर के संबंध में नंदन और मालती के विचारों में क्या अंतर था?
उत्तर – नौकर के संबंध में नंदन और मालती के विचारों में यह अंतर था कि नंदन सही और शांत स्वभाव से बिन्दु से यह पूछ रहा था कि आखिर उसने क्या चीज़ ली थी। बिन्दु के मेवा लेने की बात पर वह बिना विस्मित और क्रोधित हुए धीर भाव से उसे अपने साथ ले गया और मुट्ठी भर मेवा खाने को दिया। जबकि दूसरी तरफ मालती बिन्दु के साथ सख्त व्यवहार कर रही थी। वह उसे डरा-धमका कर सच उगलवाना चाहती थी। उसने तो बिन्दु के लिए यहाँ तक कह दिया कि लातों के देवता बातों से नहीं मानते।
(2) चोरी का पता लग जाने पर नंदन ने बिन्दू के साथ कैसा व्यवहार किया? क्यों?
उत्तर – चोरी का पता लग जाने पर नंदन ने बिन्दू के साथ आत्मीयपूर्ण व्यवहार किया और उसे अपने साथ ले जाकर मेवे के कनस्तर से एक मुट्ठी मेवा खाने को दिया। नंदन के इस व्यवहार के पीछे उसकी समझदारी थी क्योंकि उसे पता था कि समाज में वर्गों की सृष्टि योग्यता, उपलब्धता और आर्थिक संपन्नता के आधार पर होती है। चूँकि बिन्दु के पास इतने पैसे नहीं है कि वह मेवा खरीदकर खा सके इसलिए उसने मेवे खाने के लिए चोरी की।
(3) बिन्दू के प्रति सहानुभूति जगने पर मालती ने क्या किया?
उत्तर – महिला ममता की मूर्ति होती हैं। यहाँ मालती भले ही बिन्दु के प्रति सख्त रवैया अपना रही थी पर बाद में बिन्दु के शाम तक घर न लौट कर आने पर उसे अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी और बिन्दु की चिंता होने लगी। वह रह-रहकर बिन्दु को देखने-खोजने के लिए बगीचे तक चली जा रही थी। जब कुन्दन से उसे पता चला कि वह नदीवाली कोठरी में है तो स्वयं उसे लेने चली गई और अपने सामने बैठाकर उसे खाना खिलाया।
5. उचित जोड़ मिलाइए :-
(1) बिन्दू
नंदन ‘बिन्दू ! ओ बिन्दू ! ठहर, कहाँ जाता है?’
मालती
उत्तर – मालती – ‘बिन्दू ! ओ बिन्दू ! ठहर, कहाँ जाता है?’
(2) नंदन
मालती ‘सच बाबूजी, मेरे हाथ में झाडू थी और कूड़ा था।’
बिन्दू
उत्तर – बिन्दू – ‘सच बाबूजी, मेरे हाथ में झाडू थी और कूड़ा था।’
(3) मालती
बिन्दू ‘असली बात जानने का यह तरीका नहीं है।’
नंदन
उत्तर – नंदन – ‘असली बात जानने का यह तरीका नहीं है।’
(4) नंदन
बिन्दू अरे, बोलता क्यों नहीं? मुँह में जबान नहीं है?
मालती
उत्तर – नंदन – अरे, बोलता क्यों नहीं? मुँह में जबान नहीं है?
(5) मालती
कुन्दन ‘अरे, वह तो नदीवाली कोठरी में पड़ा है।’
नंदन
उत्तर – कुन्दन – ‘अरे, वह तो नदीवाली कोठरी में पड़ा है।’
6. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द दीजिए :-
बेइमान – ईमानदार
मालिक – नौकर
असली – नकली
झूठ – सच
7. निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा बनाइए :-
बच्चा – बचपन
मुस्कुराना – मुसकुराहट
लड़का – लड़कपन
प्रसन्न – प्रसन्नता
बूढ़ा – बुढ़ापा
पागल – पागलपन
चोर – चोरी
8. आशय स्पष्ट कीजिए :-
(1) ‘लातों के देव बातों से नहीं मानते हैं।’
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें प्यार की बोली समझ में नहीं आती। उनके साथ सख्त रवैया अपनाना ही पड़ता है। इस पाठ में भी मालती को जब अपने घरेलू नौकर बिन्दु पर कुछ सामान चुराने का शक होता है तो अपने पति नंदन से बिन्दु के प्रति सख्त रवैया अपनाने और सच का पता लगाने के लिए इस कहावत का प्रयोग करती है।
(2) हम क्यों ऐसी चीजें खाएँ जो सबको नहीं मिलती, इसीसे तो चोरी की भावना को जन्म मिलता है।
उत्तर – इस पंक्ति का आशय यह है कि समाज में चीजों का आबंटन सही और समान तरीके से न होने के कारण ही वर्गों की सृष्टि होती है। जिस वर्ग के पास सबकुछ रहता है उसे तो कोई कमी नहीं होती पर सर्वहारा वर्ग की कमी ही उसे असामाजिक कामों की ओर प्रवृत्त करती है। इस पाठ में भी बिन्दु को मेवा खाने की इच्छा हुई जो उसके पास उपलब्ध नहीं थी इसलिए उसने अपनी मालकिन मालती को बिना बताए मेवा लेकर खा लिया।
‘चोरी’ कहानी के आधार पर ‘मालती की ममता’ पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर – मालती कहानी के आरंभ में तो बिन्दु के प्रति काफी कठोर व्यवहार प्रदर्शित करती हैं। पर जब उसकी बातों से आहत होकर बिन्दु कहीं चला जाता है और शाम तक वापस नहीं आता तो बिन्दु को अपने किए पर पछतावा होने लगता है। उसे लगता है कि मैंने बालक बिन्दु के साथ बहुत बुरा व्यवहार कर दिया है। वह उसे खोजने के लिए बगीचे तक जाती है। उसे इस बात की भी चिंता होती है कि उसने सुबह से कुछ खाया नहीं है उसे भूख भी ज़रूर लग रही होगी। जब उसे कुन्दन से यह पता चलता है कि बिन्दु नदीवाली कोठरी में अकेला पड़ा हुआ है तब वह स्वयं उसे लाने के लिए चली जाती हैं और प्रेम प्रदर्शित करते हुए उसे भर-पेट खाना खिलाती है।
- बच्चे सच बोलना सीखें ऐसी अन्य कहानी या प्रेरक प्रसंग कक्षा में सुनाइए।
उत्तर – एक बार एक छोटे से गाँव में एक बच्चा रहता था जिसका नाम मोहन था। मोहन बहुत प्यारा और होशियार था, लेकिन एक दिन उसने मम्मी से झूठ बोला। उसने कहा कि वह स्कूल में अच्छे से पढ़ाई कर रहा है, जबकि असल में उसने होमवर्क नहीं किया था।
मम्मी ने मोहन से पूछा, “तुमने होमवर्क किया?” मोहन डरते हुए बोला, “हाँ मम्मी, मैंने सब कर लिया।”
लेकिन, मोहन की मम्मी को पहले से ही पता था कि वह झूठ बोल रहा है। मम्मी ने मोहन से कहा, “अगर तुम सच बोलते हो, तो मैं तुम्हें और भी समझाती और मदद करती। लेकिन अगर तुम झूठ बोलोगे, तो कोई तुम्हारी मदद नहीं कर पाएगा।”
उस दिन के बाद मोहन ने फैसला किया कि वह हमेशा सच बोलेगा।
- छात्रों से प्रेरक कथाओं का संकलन करवाइए।
उत्तर – शिक्षक अपने स्तर पर करें।