Gujrat State Board, the Best Hindi Solutions, Class IX, Yug Aur Mainn Narendra Sharma, युग और मैं (काव्य) नरेन्द्र शर्मा

कवि नरेन्द्र शर्मा का जन्म 1913 ई. में जहाँगीरपुर (बुलंदशहर) में हुआ। शिक्षा प्रयाग विश्व विद्यालय में एम. ए. तक हुई। वे आकाशवाणी के विविध भारती कार्यक्रम के प्रधान के रूप में सक्रिय रूप से जुड़े रहे।

उनका नाम प्रगतिवादी कवियों में भी लिया जाता है, जो अंशतः उचित भी है। नरेन्द्र शर्मा के कवि जीवन का विकास भी सुमित्रानंदन पंतजी की तरह तीन युगों में रहा है। वे पहले प्रेम और विरह के छायावादी गीतकार रहे, फिर प्रगतिवादी कवि के रूप में और अंत में अरविंदवादी दार्शनिक के रूप में उनके कविता संकलनों में प्रमुख हैं- प्रभातफेरी, प्रवासी के गीत, अग्निशस्य, रक्तचंदन, लालनिशान, पलाशवन आदि कवितासंग्रहों के अतिरिक्त नरेन्द्रजी का एक कहानीसंग्रह भी है- ‘कड़वी मीठी बातें उनकी कई कविताओं में तत्कालीन समय की वेदना प्रतिबिंबित है।

‘युग और में’ कविता में देश में जो विनाशक वातावरण पैदा हुआ, बस्तियाँ उजड़ने लगीं, मानवता जख्मी हुई, इस की कवि को असह्य पीड़ा है। सारी दुनिया की पीड़ा के सामने कवि को अपनी पीड़ा नगण्य लगती है। मनुष्य को धरती पर स्वर्ग निर्मित करने के लिए परमात्मा ने हाथ दिए हैं, पर अपने में देवत्व पैदा करने का काम अधूरा छोड़कर मनुष्य आत्मघाती बनकर एक-दूसरे का पराभव कर जगत के वैभव को तहस-नहस कर रहा है, इसकी वेदना ‘युग और मैं’ कविता में अभिव्यक्त हुई हैं।

युग और मैं

उजड़ रहीं अनगिनत बस्तियाँ, मन, मेरी ही बस्ती क्या !

धब्बों से मिट रहे देश जब, तो मेरी ही हस्ती क्या !

बरस रहे अंगार गगन से धरती लपटें उगल रही,

निगल रही जब मौत सभी को, अपनी ही क्या जाय कही?

दुनियाँ भर की दुःख कथा है, मेरी ही क्या करुणा कथा !

जाने कब तक धाव भरेंगे इस घायल मानवता के?

जाने कब तक सच्चे होंगे सपने सब की समता के?

सब दुनिया पर व्यथा पड़ी है, मेरी ही क्या बड़ी व्यथा !

खौल रहे हैं. सात समुन्दर, डूबीं जाती है. दुनिया

ज्ञान थाह लेता था जिस से, गर्क हो रही वह दुनिया !

डूब रहीं हो सब दुनिया, जब मुझे डूबता ग़म तो क्या !

हाथ बने किसलिये? करेंगे भू पर मनुज स्वर्ग निर्माण !

बुद्धि हुई किस लिए? कि डाले मानव – जग-जड़ता में प्राण !

आज हुआ सबका उलटा रुख मेरा उलटा पासा क्या !

मानव को ईश्वर बनना था, निखिल सृष्टि वश में लानी,

काम अधूरा छोड़ कर रहा आत्मघात मानव ज्ञानी।

सब झूठे हो गए, निशाने, तुम मुझ से छूटे तो क्या !

एक दूसरे का अभिभव कर रचने एक नये भव को।

है संघर्ष – निरत मानव अब, फूंक जगत- गत वैभव को

तहस-नहस हो रहा विश्व, तो मेरा अपना आपा क्या !

01

उजड़ रहीं अनगिनत बस्तियाँ, मन, मेरी ही बस्ती क्या !

धब्बों से मिट रहे देश जब, तो मेरी ही हस्ती क्या !

बरस रहे अंगार गगन से धरती लपटें उगल रही,

निगल रही जब मौत सभी को, अपनी ही क्या जाय कही?

व्याख्या –

यह कविता गहन पीड़ा, असहायता और व्यापक विनाश की भावना को व्यक्त करती है। कवि यहाँ व्यक्तिगत दुख को व्यापक समाज की विपत्तियों से जोड़ते हुए यह बताना चाहते हैं कि जब संपूर्ण समाज, देश, और मानवता ही संकट में है, तब व्यक्तिगत दुख या अस्तित्व का क्या मूल्य रह जाता है?

विस्तृत व्याख्या

कवि कहते हैं कि जब अनगिनत लोग तबाह हो रहे हैं, अनगिनत घर और परिवार उजड़ रहे हैं, तो केवल अपनी बस्ती के उजड़ने का दुख क्यों किया जाए? यहाँ ‘बस्ती’ न केवल भौतिक घर बल्कि मानवीय सभ्यता और सामाजिक ताने-बाने का प्रतीक भी है। जब पूरा देश विनाश और पतन की ओर बढ़ रहा है, जब सभ्यता स्वयं अपने मूल्यों और आदर्शों को खो रही है, तो व्यक्तिगत अस्तित्व का क्या महत्त्व रह जाता है? यह एक दार्शनिक प्रश्न है कि जब बड़ी संरचना नष्ट हो रही हो, तो किसी एक व्यक्ति की पहचान और अस्तित्व किस मायने में रह जाता है? यहाँ विनाश और त्रासदी का भयावह दृश्य प्रस्तुत किया गया है। आकाश से आग बरस रही है, युद्ध, हिंसा, या प्राकृतिक आपदा के कारण सब कुछ जल रहा है। यह प्रतीकात्मक भी हो सकता है—जहाँ चारों ओर सामाजिक, राजनीतिक, और नैतिक पतन की आग लगी हो। जब मृत्यु चारों ओर फैली हुई है, जब संपूर्ण मानवता का अस्तित्व खतरे में है, तब किसी एक व्यक्ति की मौत या उसके अस्तित्व का क्या अर्थ रह जाता है? यह पंक्ति गहरी असहायता और तुच्छता की भावना को प्रकट करती है कि जब संपूर्ण समाज नष्ट हो रहा है, तो किसी एक व्यक्ति की चिंता करना कितना अर्थहीन लगता है।

02

दुनियाँ भर की दुख कथा है, मेरी ही क्या करुणा कथा !

जाने कब तक धाव भरेंगे इस घायल मानवता के?

जाने कब तक सच्चे होंगे सपने सब की समता के?

सब दुनिया पर व्यथा पड़ी है, मेरी ही क्या बड़ी व्यथा !

व्याख्या –

ये पंक्तियाँ व्यापक मानवीय पीड़ा, असमानता, और समाज में व्याप्त करुणा की भावना को व्यक्त करती है। कवि यहाँ व्यक्तिगत दुख को वैश्विक स्तर पर हो रहे कष्टों से जोड़ते हुए यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जब संपूर्ण मानवता पीड़ा और संकट से गुजर रही है, तब केवल अपने व्यक्तिगत दुख को सबसे बड़ा मान लेना अनुचित है।

विस्तृत व्याख्या:

पूरी दुनिया में दुख और पीड़ा की अनगिनत कहानियाँ हैं, ऐसे में केवल मेरी करुणा कथा (दुख भरी कहानी) कोई विशेष महत्त्व नहीं रखती। यह दर्शाता है कि हममें से प्रत्येक को यह समझना चाहिए कि दुनिया में कई लोग हमसे भी अधिक पीड़ित हैं। यह प्रश्न पूरे विश्व के कष्टों और मानवीय पीड़ा की ओर संकेत करता है। यहाँ “धाव” (घाव) से तात्पर्य उन सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक असमानताओं से है, जिनके कारण पूरी मानवता घायल अवस्था में है। कवि यह सवाल कर रहे हैं कि यह दुख और त्रासदी कब समाप्त होगी? यह पंक्ति समाज में समानता (Equality) की आशा और उसकी दूर होती वास्तविकता को दर्शाती है। यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या कभी दुनिया में सभी लोगों को समान अधिकार, अवसर, और जीवन जीने की परिस्थितियाँ प्राप्त होंगी? कवि संकेत कर रहे हैं कि समानता का सपना अभी भी अधूरा है। जब पूरी दुनिया दुख और संघर्षों से गुजर रही है, तब मेरा व्यक्तिगत दुख कोई विशेष महत्त्व नहीं रखता। कवि यहाँ हमें यह सिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि हमें केवल अपने दुख पर केंद्रित नहीं रहना चाहिए, बल्कि पूरे विश्व की पीड़ा को समझना चाहिए और उसके समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए।

03

खौल रहे हैं सात समुन्दर, डूबीं जाती है दुनिया

ज्ञान थाह लेता था जिससे, गर्क हो रही वह दुनिया !

डूब रहीं हो सब दुनिया, जब मुझे डूबता ग़म तो क्या !

हाथ बने किसलिये? करेंगे भू पर मनुज स्वर्ग निर्माण !

व्याख्या –

इन पंक्तियों में कवि विश्व में व्याप्त विनाश, दुख और संकट की ओर संकेत कर रहे हैं। वे बताते हैं कि जब पूरी दुनिया संकटों से घिरी हो, तब केवल अपने व्यक्तिगत दुख को लेकर चिंतित रहना व्यर्थ है। लेकिन इसी के साथ, वे आशा का संदेश भी देते हैं कि मनुष्य के हाथ केवल रोने के लिए नहीं, बल्कि पृथ्वी पर स्वर्ग के समान सुंदर, समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज बनाने के लिए हैं।

विस्तृत व्याख्या –

दुनिया में हो रही अराजकता, संघर्ष, और विनाश की स्थिति को दर्शाती है। “खौल रहे हैं सात समुन्दर” का अर्थ है कि चारों ओर अशांति, युद्ध और विपत्तियाँ फैली हुई हैं। “डूबीं जाती है दुनिया” यह संकेत करता है कि दुनिया इन संकटों के कारण धीरे-धीरे विनाश की ओर बढ़ रही है। पहले जिस दुनिया में ज्ञान और सभ्यता का विकास हुआ था, वही अब विनाश की कगार पर पहुँच चुकी है। यह वैज्ञानिक और नैतिक पतन की ओर भी संकेत करता है कि जिस मानवता ने कभी ज्ञान और संस्कृति से अपना विकास किया था, वह अब अपनी ही गलतियों के कारण नष्ट हो रही है। जब पूरी दुनिया ही डूब रही हो (अर्थात् संकट में हो), तब मेरा व्यक्तिगत दुख या संकट कोई विशेष महत्त्व नहीं रखता। कवि यहाँ हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें केवल अपनी परेशानियों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि पूरे समाज और मानवता की स्थिति को समझकर कार्य करना चाहिए। यहाँ कवि आशा और कर्तव्य की भावना को प्रकट करते हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य को केवल अपने दुख में डूबकर नहीं बैठना चाहिए, बल्कि अपने हाथों से धरती पर स्वर्ग के समान सुंदर और सुखद संसार का निर्माण करना चाहिए। यह मनुष्य की सृजनशीलता, कर्मठता और उत्तरदायित्व की भावना को दर्शाता है।

04

बुद्धि हुई किस लिए? कि डाले मानव – जग-जड़ता में प्राण !

आज हुआ सबका उलटा रुख मेरा उलटा पासा क्या !

मानव को ईश्वर बनना था, निखिल सृष्टि वश में लानी,

काम अधूरा छोड़ कर रहा आत्मघात मानव ज्ञानी।

व्याख्या –

इन पंक्तियों में कवि मानवता के बौद्धिक और नैतिक पतन पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। वे इस बात पर बल देते हैं कि मनुष्य को अपनी बुद्धि का उपयोग जगत की जड़ता (अज्ञान, निष्क्रियता) को दूर करने और सृजनात्मक कार्यों के लिए करना चाहिए था, लेकिन उसने इसके विपरीत दिशा में कदम बढ़ाए हैं। मनुष्य को सृष्टि पर नियंत्रण स्थापित कर एक श्रेष्ठ जीवन का निर्माण करना था, लेकिन उसने अपने अधूरे प्रयासों और आत्मघाती प्रवृत्तियों से अपने ही विनाश का मार्ग चुन लिया।

विस्तृत व्याख्या:

ये पंक्तियाँ एक प्रश्न के रूप में है, जो मानव बुद्धि के वास्तविक उद्देश्य को स्पष्ट करती है। मनुष्य को बुद्धि इसीलिए मिली थी कि वह अज्ञान, आलस्य, और निष्क्रियता को समाप्त कर पूरे जगत में सजीवता और प्रगति का संचार करे। लेकिन क्या उसने ऐसा किया? आज की दुनिया में नैतिकता, मूल्यों, और मानवीय संवेदनाओं का पतन हो गया है। समाज का झुकाव सत्य, करुणा और ज्ञान की ओर न होकर भौतिकवाद, स्वार्थ और हिंसा की ओर बढ़ गया है। कवि यहाँ स्वयं से पूछते हैं कि जब सबकुछ उल्टा हो रहा है, तो यदि मैं भी उलटी दिशा में चला जाऊँ तो इसमें नया क्या होगा? मनुष्य को अपने ज्ञान, विज्ञान और विवेक से सृष्टि पर नियंत्रण प्राप्त कर, इसे एक सुंदर और संगठित स्वरूप देना था। ‘ईश्वर बनना’ से आशय यह नहीं है कि मनुष्य को अभिमानी या सर्वशक्तिमान बनना चाहिए था, बल्कि उसे प्रेम, दया, और सृजनशीलता का प्रतीक बनना चाहिए था। मनुष्य ने अपने बौद्धिक विकास को सही दिशा में नहीं बढ़ाया। उसने विज्ञान और तकनीक में प्रगति की, लेकिन नैतिकता और करुणा के स्तर पर पतन हो गया। यह आत्मघात के समान है, क्योंकि उसने अपनी असली शक्ति और कर्तव्य को भुला दिया।

05

सब झूठे हो गए, निशाने, तुम मुझसे छूटे तो क्या !

एक दूसरे का अभिभव कर रचने एक नये भव को।

है संघर्ष – निरत मानव अब, फूंक जगत- गत वैभव को

तहस-नहस हो रहा विश्व, तो मेरा अपना आपा क्या !

व्याख्या –

इन पंक्तियों में कवि वैश्विक विनाश, संघर्ष और परिवर्तन की ओर संकेत कर रहे हैं। वे बताते हैं कि जब पूरे विश्व में उथल-पुथल और विनाश हो रहा है, तब व्यक्तिगत स्तर पर खोई हुई चीजों (जैसे लक्ष्य, सपने या पहचान) का कोई विशेष महत्त्व नहीं रह जाता। साथ ही, वे यह भी दर्शाते हैं कि वर्तमान संघर्ष और विनाश केवल एक अंत नहीं है, बल्कि यह एक नए युग के निर्माण के लिए आवश्यक प्रक्रिया है।

विस्तृत व्याख्या:

ये पंक्तियाँ जीवन के लक्ष्यों और सपनों के छूटने या असफल होने की ओर संकेत करती है। कवि यह कहना चाहते हैं कि यदि उनके द्वारा तय किए गए लक्ष्य उनसे छूट भी गए, तो इसका कोई विशेष महत्त्व नहीं है, क्योंकि अब पूरी दुनिया ही भ्रम और असत्य से भरी हुई लग रही है। यहाँ कवि यह संकेत दे रहे हैं कि पुरानी व्यवस्थाएँ और धारणाएँ नष्ट हो रही हैं, ताकि एक नई दुनिया और नए भविष्य का निर्माण हो सके। ‘अभिभव’ का अर्थ है एक चीज का दूसरी पर प्रभाव डालना या उसे बदलना। यहाँ संघर्ष और विनाश को सृजनात्मक दृष्टि से देखा गया है, जहाँ पुराने विचारों और व्यवस्थाओं को हटाकर कुछ नया गढ़ा जा रहा है। वर्तमान समय में मनुष्य निरंतर संघर्षरत है और पुरानी दुनिया की समृद्धि और वैभव को जलाकर नष्ट कर रहा है। यह विनाश केवल भौतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों का भी हो सकता है। कवि यहाँ संकेत कर रहे हैं कि दुनिया में बड़े बदलाव हो रहे हैं, और यह संघर्ष आवश्यक हो सकता है, ताकि एक नई व्यवस्था स्थापित की जा सके। जब पूरी दुनिया ही विनाश और संघर्ष के दौर से गुजर रही हो, तब व्यक्तिगत अस्तित्व या आत्मसम्मान/अभिमान (आपा) का क्या महत्त्व रह जाता है? यह पंक्ति गहरी दार्शनिकता से भरी हुई है, जहाँ कवि अपने अस्तित्व को पूरी मानवता के संकट से जोड़कर देखते हैं और इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि व्यक्तिगत दुख और पहचान का कोई विशेष महत्त्व नहीं रह जाता जब पूरी दुनिया ही बिखर रही हो।

धब्बा – दाग, कलंक

हस्ती – अस्तित्व

लपटें – ज्वालाएँ

समता – समानता

व्यथा – दुख, पीड़ा

रूख – वर्तन, व्यवहार

निखिल – सारी, संपूर्ण

अभिभव – आदर

भव – संसार, दुनिया

वैभव – संपत्ति

आपा – अभिमान

मुहावरे

गर्क होना – डूब जाना

तहस-नहस होना – नष्ट होना

पासा उलटा पड़ना – परिस्थितियाँ विपरीत होना

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए :-

(1) प्रस्तुत कविता के रचनाकार का नाम बताइए।

उत्तर – प्रस्तुत कविता ‘युग और मैं’ के रचनाकार का नाम नरेंद्र शर्मा है।

(2) गगन और धरती से क्या हो रहा है?

उत्तर – गगन से आग के गोले बरस रहे हैं और धरती से धधकती ज्वालाएँ उठ रही हैं।

(3) सात समंदर में क्या हो रहा है?

उत्तर – सात समंदर में चारों ओर अशांति, युद्ध और विपत्तियाँ फैली हुई हैं।

(4) काव्य – शीर्षक का समानार्थी शब्द दीजिए।

उत्तर – काव्य – शीर्षक का समानार्थी शब्द – आज का समय और मैं

2. संक्षेप में उत्तर लिखिए :-

(1) बुद्धि और हाथ किस कार्य के लिए हैं?

उत्तर – बुद्धि का कार्य संसार में व्याप्त अज्ञानता को दूर करके ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करनी है और हाथों का काम है कि मेहनत करके पृथ्वी को स्वर्ग के समान बनाया जाए।

(2) ज्ञान और पृथ्वी की कैसी स्थिति हो रही है?

उत्तर – आज के दौर में ज्ञान अपने मूल लक्ष्य से भटक रहा है और इसका प्रयोग निर्माण की जगह विनाश के लिए तथा सामूहिक सुख की जगह व्यक्तिगत लाभ के लिए किया जा रहा है। दूसरी ओर संपूर्ण पृथ्वी तरह-तरह की विपदाओं के कारण दुख के महासमुद्र में डूब रही है।

(3) मानव की क्या स्थिति हो गयी है?

उत्तर – आज के युग का मानव महत्त्वाकांक्षी होकर ईश्वर बनने का प्रयास कर रहा है। उसे सृष्टि की सारी वस्तुओं पर अपना एकाधिकार चाहिए। इसी कारण से वह अपना विनाश स्वयं करने लगा है।

3. सविस्तार उत्तर दीजिए :-

(1) कवि के हृदय में कैसी व्यथा है?

उत्तर – कवि संसार में हो रहे उन्मादों को देखकर बहुत दुखी हैं। उन्हें लगने लगा है कि ऐसी स्थिति में देश-दुनिया की चिंता करनेवाला कोई नहीं बचा है तो भला कौन उनकी करुण कथा सुनेगा। कवि अपनी पीड़ा को अपने ही मन में दबा लेना उचित समझते हैं। सारी दुनिया को दुख में डूबा देखकर उन्हें अपना व्यक्तिगत दुख कम लगने लगा है। वह यह भी मानते हैं कि जब पूरी दुनिया ही विनाश और संघर्ष के दौर से गुजर रही हो, तब व्यक्तिगत अस्तित्व या आत्मसम्मान/अभिमान का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है।  

(2) ‘युग और मैं कविता का संदेश लिखिए।

उत्तर – ‘युग और मैं’ कविता में कवि ने संसार की दयनीय और निरंतर बिगड़ती स्थिति के संदर्भ में अपनी स्थिति देखी है। कवि कहते हैं कि सभी मनुष्यों को अपनी पीड़ा ही सबसे बड़ी प्रतीत होती है। यह पृथ्वीलोक ही सबसे बड़ा दुखलोक है यहाँ सभी जनों के पास कोई-न-कोई दुख अवश्य है। कवि कहते हैं कि पहले मैं भी अपने दुख को सबसे बड़ा दुख मानता था, पर जैसे-जैसे मैंने दुनिया का अध्ययन करना शुरू किया तो पाया कि दुनिया के दुख के आगे मेरा दुख कुछ भी नहीं है। इसलिए स्थिति चाहे कितनी भी खराब क्यों न हो हमें कभी भी धैर्य का दामन नहीं छोड़ना चाहिए और मरते दम तक संघर्ष की भावना से आगे बढ़ते रहना चाहिए।  

4. संदर्भ सहित स्पष्टीकरण दीजिए :-

(1) मानव को ईश्वर बनना था, निखिल सृष्टि वश में लानी,

काम अधूरा छोड़कर रहा आत्मघात मानव ज्ञानी।

सब झूठे हो गए, निशाने, तुम मुझसे छूटे तो क्या !

उत्तर – ये पंक्तियाँ हिन्दी साहित्य जगत के प्रसिद्ध कवि नरेंद्र शर्मा की कविता ‘युग और मैं’ से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में कवि मानवता के बौद्धिक और नैतिक पतन पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। वे इस बात पर बल देते हैं कि मनुष्य को अपनी बुद्धि का उपयोग जगत की जड़ता (अज्ञान, निष्क्रियता) को दूर करने और सृजनात्मक कार्यों के लिए करना चाहिए था, लेकिन उसने इसके विपरीत दिशा में कदम बढ़ाए हैं। मनुष्य को सृष्टि पर नियंत्रण स्थापित कर एक श्रेष्ठ जीवन का निर्माण करना था, लेकिन उसने अपने अधूरे प्रयासों और आत्मघाती प्रवृत्तियों से अपने ही विनाश का मार्ग चुन लिया।

(2) जाने कब तक घाव भरेंगे इस घायल मानवता के?

जाने कब तक सच्चे होंगे सपने सब की समता के?

सब दुनिया पर व्यथा पड़ी है, मेरी ही क्या बड़ी व्यथा !

उत्तर – ये पंक्तियाँ हिन्दी साहित्य जगत के प्रसिद्ध कवि नरेंद्र शर्मा की कविता ‘युग और मैं’ से उद्धृत हैं। ये पंक्तियाँ व्यापक मानवीय पीड़ा, असमानता और समाज में व्याप्त करुणा की भावना को मानव जीवन के घाव के रूप में अभिव्यक्त करते हैं। कवि यहाँ व्यक्तिगत दुख को वैश्विक स्तर पर हो रहे कष्टों से जोड़ते हुए यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि जब संपूर्ण मानवता पीड़ा और संकट से गुजर रही है, तब केवल अपने व्यक्तिगत दुख को सबसे बड़ा मान लेना अनुचित है।

5. विरोधी शब्द लिखिए :-

हस्ती – नास्ति

अंगार – ओला 

समुंदर – तालाब

6. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द देकर उनका वाक्य में प्रयोग कीजिए :-

अनगिनत – असंख्य –  दुनिया में असंख्य लोग हैं।

गगन – आसमान – नीले आसमान में बहुत सारे पंछी उड़ रहे हैं।  

दुनिया – संसार – यह संसार तरह-तरह की वस्तुओं से निर्मित है।

निखिल – संपूर्ण – ईमानदारी की कीर्ति संपूर्ण विश्व में फैली हुई है।

तहस-नहस – सर्वनाश – एटम बम से सर्वनाश सुनिश्चित है।

आपा – अभिमान – मीठे वचनों से अभिमान शून्य पर आ जाता है।

  1. ऐसी स्थिति में आप क्या कर सकते हैं?

जब मौत सभी को निगल रही हो? चारों ओर अत्र तत्र सर्वत्र आग लगी हो, हत्याएँ हो रही हों।

उत्तर – ऐसी स्थिति में मैं धैर्य का दामन नहीं छोड़ूँगा। समस्या का सही अंदाज़ा लगाकर सही लोगों से संपर्क करूँगा और स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए जितना प्रयत्न कर सकूँगा, करूँगा।

 

हमारे आसपास परिस्थिति जब विषम हो गयी हो, हमें क्या करना चाहिए? इस विषय पर चर्चा – विमर्श कीजिए।

उत्तर – जब हमारे आसपास परिस्थितियाँ विषम (कठिन या प्रतिकूल) हो जाएँ, तो हमें धैर्यपूर्वक और समझदारी से काम लेना चाहिए। ऐसे समय में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें ध्यान में रखनी चाहिए-

  1. धैर्य बनाए रखें –

घबराने से स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है।

ठंडे दिमाग से सोचें और जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें।

आत्मसंयम बनाए रखें और मानसिक संतुलन न खोएँ।

  1. समस्या का सही आकलन करें –

परिस्थिति को समझने और उसके कारणों को जानने का प्रयास करें।

यह देखें कि समस्या अस्थायी है या दीर्घकालिक।

तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाएँ और वास्तविकता को स्वीकार करें।

  1. समाधान पर ध्यान दें –

केवल समस्या पर सोचने के बजाय समाधान पर केंद्रित रहें।

अगर संभव हो तो किसी अनुभवी व्यक्ति या विशेषज्ञ से सलाह लें।

छोटे-छोटे कदम उठाकर धीरे-धीरे स्थिति सुधारने की कोशिश करें।

  1. सकारात्मक दृष्टिकोण रखें –

हर समस्या का कोई न कोई समाधान अवश्य होता है।

सकारात्मक सोच रखें और आत्मविश्वास बनाए रखें।

सफलता और असफलता जीवन के हिस्से हैं, इसे समझें।

  1. आत्मविश्लेषण करें –

क्या इस परिस्थिति में आपकी कोई गलती थी? अगर हाँ, तो उससे सीखें।

आत्मनिरीक्षण करें और भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के उपाय खोजें।

अपनी क्षमताओं और सीमाओं को पहचानें और बेहतर बनने की कोशिश करें।

  1. अच्छे लोगों का साथ लें –

नकारात्मक लोगों से दूरी बनाकर रखें, जो स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं।

परिवार, मित्रों और शुभचिंतकों का सहयोग लें।

अगर मानसिक तनाव अधिक हो तो किसी विश्वासपात्र व्यक्ति से बात करें।

  1. आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करें –

विषम परिस्थितियाँ हमें मजबूत बनने का अवसर देती हैं।

खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाने का प्रयास करें।

नए कौशल सीखें जो आपको आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं।

  1. धैर्य और मेहनत से डटे रहें –

समय बदलता रहता है, बुरी स्थिति हमेशा नहीं रहेगी।

अपनी मेहनत और ईमानदारी पर भरोसा रखें।

छोटे-छोटे प्रयास भी बड़ी सफलता की ओर ले जाते हैं।

  1. आध्यात्मिकता और ध्यान का सहारा लें –

ध्यान (Meditation) और योग करने से मानसिक शांति मिलती है।

धार्मिक ग्रंथों और प्रेरणादायक साहित्य का अध्ययन करें।

प्रार्थना और आत्मचिंतन से मनोबल को ऊँचा रखें।

  1. हार न मानें –

असफलता को अंत नहीं, बल्कि एक नया सबक मानें।

जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन आत्मविश्वास बनाए रखें।

“यह भी बीत जाएगा”—इस मंत्र को हमेशा याद रखें।

पंडित नरेन्द्र शर्माजी की अन्य कृतियों के बारे में छात्रों को परिचित करवाइए।

उत्तर – पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की कृतियाँ

पंडित नरेन्द्र शर्मा (1913-1989) हिंदी साहित्य, कविता, फिल्मी गीत, और रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। उनकी रचनाएँ काव्यात्मक सौंदर्य, भावनात्मक गहराई और राष्ट्रीय चेतना से भरपूर होती हैं। उन्होंने न केवल हिंदी साहित्य में योगदान दिया, बल्कि भारतीय सिनेमा और आकाशवाणी में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किए।

प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ (काव्य संग्रह और काव्य रचनाएँ)

प्रभात फेरी – उनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह, जिसमें देशभक्ति और सामाजिक चेतना से ओत-प्रोत कविताएँ हैं।

अमृत महोत्सव – स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित रचनाएँ, जिसमें देशभक्ति और राष्ट्रीय चेतना की झलक मिलती है।

रक्त की रेखाएँ – इसमें सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कविताएँ हैं, जो समाज की सच्चाइयों को उजागर करती हैं।

कुमकुम – सौंदर्य, प्रेम और भारतीय संस्कृति पर आधारित कविताओं का संग्रह।

गगन वाणी – इसमें भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रप्रेम की झलक मिलती है।

फिल्मी गीत और सिनेमा योगदान –

पंडित नरेन्द्र शर्मा जी ने भारतीय सिनेमा में कई अमर गीत लिखे। उन्होंने खासकर वी. शांताराम और अन्य प्रसिद्ध निर्देशकों के लिए काम किया।

उनके कुछ प्रसिद्ध गीत –

“सत्यम शिवम सुंदरम” – (फिल्म: सत्यम शिवम सुंदरम, 1978)

“आ लौट के आजा मेरे मीत” – (फिल्म: रानी रूपमती, 1957)

“ज्योति कलश छलके” – (फिल्म: भाभी की चूड़ियाँ, 1961)

“बिंदिया चमकेगी” – (फिल्म: दो रास्ते, 1969)

“नव कल्पना नव चेतना” – (फिल्म: सीमा, 1955)

रेडियो और टेलीविज़न में योगदान –

आकाशवाणी (All India Radio) में लंबे समय तक जुड़े रहे और हिंदी काव्य व साहित्य के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया।

रामायण (1987 टीवी धारावाहिक) – दूरदर्शन पर प्रसारित रामानंद सागर की प्रसिद्ध रामायण के मुख्य शीर्षक गीत (“मंगल भवन अमंगल हारी”) के लेखक पंडित नरेन्द्र शर्मा ही थे।

विशेषताएँ और साहित्यिक योगदान –

देशभक्ति और राष्ट्रीय चेतना – स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी कविताएँ जन-जन में उत्साह भरने वाली थीं।

संस्कृति और परंपरा – भारतीय संस्कृति, वैदिक आदर्शों और अध्यात्म की झलक उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखती है।

फिल्म और साहित्य का संगम – उन्होंने न केवल शुद्ध साहित्य रचा, बल्कि सिनेमा के माध्यम से भी साहित्यिक मूल्यों को जन-जन तक पहुँचाया।

शुद्ध हिंदी और संस्कृतनिष्ठ भाषा – उनके लेखन में हिंदी और संस्कृत का गूढ़ सौंदर्य देखने को मिलता है।

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