भरत व्यासजी हिंदी साहित्य जगत के जाने-माने गीतकार रहे हैं। आपका जन्म राजस्थान के चुरू नामक कस्बे में हुआ था। आपने कई गीत-काव्यों की रचना की है। आपकी गीत रचनाएँ हिंदी फिल्मों में भी ली गई हैं। आपकी रचनाओं में विभिन्न मानव मूल्य प्रस्थापित हुए हैं।
प्रस्तुत गीत सन् 1958 में आई – हिंदी फिल्म गाँव की गोरी से लिया गया है। इस गीत में मनुष्य की महत्ता को देखते हुए मनुष्य को सबसे बुद्धिमान बताया हैं। मनुष्य ने अपनी बुद्धि और कठोर परिश्रम के बल पर जल, थल और नभ में तमाम उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। मनुष्य ने अपनी शक्ति से प्रकृति को बहुत सीमा तक अपने अनुकूल ढालने में सफल हुआ है। कवि बताते हैं- मनुष्य की शक्ति के सामने कोई भी कार्य असंभव नहीं है। मनुष्य जो चाहे वह प्राप्त कर सकता है। यानी कि मनुष्य ही धरती की शान है। यही भाव काव्य में अन्तर्निहित है। यही हमारी महानता का प्रमाण है।
धरती की शान
धरती की शान तू भारत की संतान,
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफान है रे,
मनुष्य तू बड़ा महान है।
तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को फोड़ दे,
जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे,
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे,
तू जो चाहे धरती को अम्बर से जोड़ दे,
अमर तेरे प्राण, मिला तुझको वरदान
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है रे॥1॥
नयनों में ज्वाल, तेरी गति में भूचाल,
तेरी छाती में छिपा महाकाल है,
पृथ्वी के लाल तेरा हिमगिरि-सा भाल,
तेरी भृकुटी में तांडव का ताल है,
निज को तू जान जरा शक्ति पहचान
तेरी वाणी में युग का आह्वान है रे॥2॥
धरती-सा धीर, तू हैं अग्नि-सा वीर,
तू जो चाहे तो काल को भी थाम ले,
पापों का प्रलय रुके, पशुता का शीश झुके,
तू जो अगर हिम्मत से काम ले,
गुरु सा मतिमान, पवन – सा तू गतिमान,
तेरी नभ से भी ऊँची उड़ान है रे॥3॥
धरती की शान – व्याख्या सहित
01
धरती की शान तू भारत की संतान,
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफान है रे,
मनुष्य तू बड़ा महान है।
तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को फोड़ दे,
जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे,
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे,
तू जो चाहे धरती को अम्बर से जोड़ दे,
अमर तेरे प्राण, मिला तुझको वरदान
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है रे॥1॥
संदर्भ –
यह कविता मानव की असाधारण शक्ति, साहस और महानता का गुणगान करती है। प्रत्येक पंक्ति में मानव की अदम्य इच्छाशक्ति और उसकी असंभव को संभव करने की क्षमता का उल्लेख किया गया है।
व्याख्या –
इस पंक्ति में कवि ने मानव को धरती की शान और भारत की संतान के रूप में संबोधित किया है। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य में अपार शक्ति और ऊर्जा भरी हुई है, जिसे वह अपनी मुट्ठियों में जैसे बाँधकर रखता है। वह महान है क्योंकि उसमें अद्भुत क्षमताएँ हैं।
यहाँ कवि ने मनुष्य की ताकत और तकनीकी कौशल को दर्शाया है। मनुष्य पहाड़ों को काटकर रास्ते बना सकता है, सुरंग खोद सकता है और नदियों के प्रवाह को मोड़ सकता है, जिससे यह साबित होता है कि उसके पास अपार शक्ति और बुद्धिमत्ता है।
कवि कहते हैं कि मनुष्य अपनी मेहनत और विज्ञान के बल पर असंभव को भी संभव कर सकता है। वह मिट्टी से जीवनदायी तत्त्व निकाल सकता है, खेती कर सकता है और अपनी खोजों व आविष्कारों से धरती को आकाश (अंतरिक्ष) से जोड़ सकता है। मनुष्य केवल एक साधारण प्राणी नहीं है, बल्कि उसमें ईश्वरीय अंश भी विद्यमान है। उसकी आत्मा में ईश्वर का निवास है, इसलिए उसके कार्य भी दिव्य और चमत्कारी हो सकते हैं। मनुष्य की चेतना और उसके कार्य उसे अमर बना सकते हैं।
विशेष
इस कविता में मनुष्य की महानता, उसकी असीम शक्ति, साहस और क्षमताओं को दर्शाया गया है। कवि यह कहना चाहता है कि यदि मनुष्य ठान ले, तो वह बड़े से बड़े काम कर सकता है। उसकी आत्मा में ईश्वर का वास है, जिससे वह धरती पर अद्भुत कार्य कर सकता है और असंभव को संभव बना सकता है।
02
नयनों में ज्वाल, तेरी गति में भूचाल,
तेरी छाती में छिपा महाकाल है,
पृथ्वी के लाल तेरा हिमगिरि-सा भाल,
तेरी भृकुटी में तांडव का ताल है,
निज को तू जान जरा शक्ति पहचान
तेरी वाणी में युग का आह्वान है रे॥2॥
संदर्भ –
इन पंक्तियों में मनुष्य की अपार शक्ति, उसके अद्भुत साहस और उसकी विलक्षण क्षमताओं को दर्शाया गया है। कवि यहाँ मनुष्य को उसकी असली पहचान और सामर्थ्य का बोध कराना चाहता है।
व्याख्या –
कवि कहते हैं कि मनुष्य की आँखों में अग्नि (ज्वाला) जैसी प्रचंड ऊर्जा और दृढ़ संकल्प झलकता है। उसकी गति इतनी तीव्र और सशक्त हो सकती है कि वह किसी भूचाल (भूकंप) की तरह धरती को हिला सकता है। उसकी छाती में महाकाल (शिव) का स्वरूप छिपा है, अर्थात् उसमें विनाश और सृजन दोनों की शक्ति समाहित है। कवि ने मनुष्य को ‘पृथ्वी का लाल’ यानी इसका सच्चा पुत्र कहा है। उसका मस्तक (भाल) हिमालय जैसा ऊँचा और गौरवशाली है, जो उसकी महानता और दृढ़ता को दर्शाता है। उसकी भृकुटि (भौंहें) जब तनती हैं, तो उसमें तांडव (शिव के विनाशकारी नृत्य) जैसी शक्ति दिखाई देती है। अर्थात, जब मनुष्य संकल्प लेता है, तो वह बड़े से बड़े बदलाव ला सकता है। यहाँ कवि मनुष्य को आत्मबोध कराने की प्रेरणा दे रहे हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य को अपनी शक्ति को पहचानना चाहिए, क्योंकि उसमें असीम क्षमताएँ छिपी हैं। उसकी वाणी में एक नए युग का आह्वान करने की शक्ति है। जब वह बोलता है, तो उसकी बातें क्रांति ला सकती हैं, परिवर्तन को जन्म दे सकती हैं और समाज को एक नई दिशा दे सकती हैं।
विशेष –
इन पंक्तियों में कवि ने मनुष्य की महानता, उसकी शक्ति और उसकी अद्भुत क्षमताओं का गुणगान किया है। वह कहना चाहता है कि मनुष्य केवल एक साधारण प्राणी नहीं है, बल्कि उसमें ब्रह्मांड को हिलाने की शक्ति है। यदि वह अपनी क्षमता को पहचाने और उसका सही उपयोग करे, तो वह संसार में क्रांति ला सकता है और इतिहास रच सकता है।
03
धरती-सा धीर, तू हैं अग्नि-सा वीर,
तू जो चाहे तो काल को भी थाम ले,
पापों का प्रलय रुके, पशुता का शीश झुके,
तू जो अगर हिम्मत से काम ले,
गुरु सा मतिमान, पवन – सा तू गतिमान,
तेरी नभ से भी ऊँची उड़ान है रे॥3॥
संदर्भ –
ये पंक्तियाँ मनुष्य की असाधारण क्षमताओं, उसकी दृढ़ता, वीरता और संकल्प शक्ति का गुणगान करती है। कवि यहाँ मनुष्य को उसकी ताकत और आत्मशक्ति का बोध कराते हुए प्रेरित कर रहा है कि वह अपने सामर्थ्य को पहचाने और उसका सही उपयोग करे।
व्याख्या –
इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मनुष्य में धरती की तरह धैर्य (धीरता) है, जो सहनशीलता और स्थिरता का प्रतीक है। साथ ही, उसमें अग्नि के समान वीरता भी है, जो शक्ति, साहस और संघर्ष का प्रतीक है। यदि मनुष्य ठान ले, तो वह स्वयं काल (समय और मृत्यु) को भी रोक सकता है, अर्थात् वह असंभव को भी संभव कर सकता है। कवि आगे कह रहे हैं कि यदि मनुष्य अपनी हिम्मत और संकल्प शक्ति का सही प्रयोग करे, तो वह समाज में व्याप्त बुराइयों, अधर्म और अमानवीय प्रवृत्तियों (पशुता) को समाप्त कर सकता है। उसके साहस और निडरता के आगे अन्याय, अनीति और बुराई झुकने को मजबूर हो जाती हैं। यहाँ कवि ने मनुष्य को ज्ञान और गति, दोनों का प्रतीक बताया है। मनुष्य में गुरु जैसी बुद्धिमत्ता (मतिमानी) है, जिससे वह ज्ञान और विवेक का सही उपयोग कर सकता है। साथ ही, वह पवन (हवा) की तरह गतिशील और तेज़ है, जिससे वह निरंतर आगे बढ़ सकता है। उसकी उड़ान इतनी ऊँची है कि वह आकाश (नभ) से भी ऊपर जा सकता है, अर्थात उसकी क्षमताओं की कोई सीमा नहीं है।
विशेष –
इन पंक्तियों में मनुष्य की अद्भुत शक्तियों, उसकी सहनशीलता, वीरता, बुद्धिमत्ता और गतिशीलता का वर्णन किया गया है। कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि यदि मनुष्य अपनी हिम्मत, बुद्धि और परिश्रम का सही उपयोग करे, तो वह दुनिया में किसी भी परिवर्तन को संभव बना सकता है। वह न केवल बुराई और अन्याय का नाश कर सकता है, बल्कि अपनी सीमाओं को लाँघकर नए कीर्तिमान भी स्थापित कर सकता है।
शब्दार्थ और टिप्पणी
हिमगिरि – हिमालय पर्वत
ज्वाल – अग्निशिखा, लौ
शान – गौरव, ऐश्वर्य, वैभव
मुख – प्रवाह,
भृकुटी – भौंह,
काल – समय (वह संबंध सत्ता जिसके द्वारा भूत, भविष्य और वर्तमान की प्रतीति होती है।)
मतिमान – बुद्धिमान, विचारवान
प्रलय – नाश, विनाश
आह्वान – पुकार
भाल – मस्तक, कपाल ललाट
निज – अपना
1. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-
(1) कवि की दृष्टि में सर्वाधिक महान कौन हैं?
उत्तर – कवि की दृष्टि में सर्वाधिक महान हम मनुष्य हैं।
(2) आप क्या – क्या कर सकते हैं?
उत्तर – एक किशोर विद्यार्थी होने के नाते मैं अच्छे से पढ़ाई करके एक अच्छा नागरिक बन सकता हूँ और देश के उत्थान में अपनी भूमिका अदा कर सकता हूँ।
(3) अन्य जीवों से मनुष्य महान कैसे हैं?
उत्तर – मनुष्य अन्य जीवों से महान है क्योंकि मनुष्य ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करके जल, थल और गगन सब पर अपना अधिकार जमा लिया है।
(4) धरती-सा धीर किसे कहा गया है?
उत्तर – धरती-सा धीर हम मनुष्यों को कहा गया है क्योंकि धैर्य धारण करते हुए हमने आज इतनी प्रगति कर ली है।
(5) धरती की शान कविता के रचयिता कौन हैं?
उत्तर – धरती की शान कविता के रचयिता पंडित भरत व्यास हैं।
2. प्रश्नों के उत्तर सविस्तार लिखिए :-
(1) कविता में कवि ने किन प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया है? कैसे?
उत्तर – कविता में कवि ने अनेक प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया है जैसे – पहाड़, नदियाँ, धरती, आकाश, हवा आदि। इन प्राकृतिक दृश्यों से ही यह दुनिया सुंदर बनती है और मानव का अस्तित्व निर्धारित होता है। कवि कविता में मनुष्यों को भी प्राकृतिक दृश्यों के रूप में प्रस्तुत किया है जो अपनी असीम शक्तियों से पर्वतों को फोड़ सकता है, नदियों के प्रवाह को मोड़ सकता है। अगर मनुष्य ठान ले तो धरती और आकाश को जोड़ भी सकता है।
(2) प्रस्तुत कविता में मनुष्य के प्रति किस भाव की अभिव्यक्ति हुई हैं, और उससे हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर – कवि के अनुसार मनुष्यों में जो सबसे बड़ा गुण है वह है- अनुकूलन करने का। अर्थात् मनुष्य हर स्थिति में चाहे वह अनुकूल हो या प्रतिकूल अपने आप को उस स्थिति में ढाल लेने के लिए हर संभव प्रयास करता है। इसी कारण से कविता में मनुष्यों को सर्वश्रेष्ठ और सर्वशक्तिमान बताया गया है। इस कविता से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि अगर हम मनुष्य होते हुए भी विशिष्ट गुणों के स्वामी नहीं बन पाए हैं तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है बल्कि हमें अपने कौशल को पहचानकर उसमें सिद्धहस्त होने की ज़रूरत है।
(3) ‘धरती की शान’ से कवि का क्या तात्पर्य है? भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘धरती की शान’ से कवि का तात्पर्य है कि मनुष्य इस दुनिया में सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है। मनुष्य ने अपनी बुद्धि के बल पर वह सब कुछ कर दिखाया है जिससे दुनिया बेहतर और समृद्ध बनी है। आज मनुष्यों ने जल, थल और गगन पर भी अपना अधिकार जमा लिया है। इसी कथन की ओर इशारा करते हुए कवि कहते हैं कि मनुष्य ही इस धरती की शान है।
(4) मनुष्य के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं हैं काव्य के आधार पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – मनुष्य के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं हैं। इस कथन पर सच्चाई की मुहर यह कविता भी लगाती है। इस कविता में यह बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य अपनी असीम शक्तियों और सामूहिक प्रयत्नों द्वारा इस दुनिया को समृद्ध बनाने के लिए पर्वतों पर रास्तों का निर्माण कर लेते हैं, नदियों के प्रवाह को मोड़ देते हैं, जल, थल और गगन पर अपनी बुद्धिमत्ता और योग्यता के कारण अपना अधिकार जमा चुके हैं।
(5) ‘धरती की शान’ कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘धरती की शान’ कविता का केन्द्रीय भाव यह है कि यह दुनिया मानवों के साथ अन्य जीवों का भी निवास स्थान है। मानव में अनंत शक्तियाँ हैं जिसका मूर्तरूप हम आए दिन देखते रहते हैं। मानव अपनी शक्तियों से इस दुनिया को बेहतर से बेहतरीन बनाने की कोशिश में निरंतर लगा हुआ है। कवि का यहाँ तक मानना है कि मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। इसके समानांतर कवि यह भी कहना चाहते हैं कि हम मनुष्यों में मानवता की भावना का जो शनै: शनै: ह्रास हो रहा है वो न हो और हम मिलजुल कर सुखमय जीवन यापन करें।
3. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(1) गुरु सा मतिमान,
पवन – सा तू गतिमान,
तेरी नभ से भी
ऊँची उड़ान है रे।
उत्तर – यहाँ कवि ने मनुष्य को ज्ञान और गति, दोनों का प्रतीक बताया है। मनुष्य में गुरु जैसी बुद्धिमत्ता (मतिमानी) है, जिससे वह ज्ञान और विवेक का सही उपयोग कर सकता है। साथ ही, वह पवन (हवा) की तरह गतिशील और तेज़ है, जिससे वह निरंतर आगे बढ़ सकता है। उसकी उड़ान इतनी ऊँची है कि वह आकाश (नभ) से भी ऊपर जा सकता है, अर्थात उसकी क्षमताओं की कोई सीमा नहीं है।
(2) धरती की शान,
तू भारत की संतान
तेरी मुट्टियों में
बंद तूफान है. रे
उत्तर – इन पंक्तियों में कवि ने मानव को धरती की शान और भारत की संतान के रूप में संबोधित किया है। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य में अपार शक्ति और ऊर्जा भरी हुई है, जिसे वह अपनी मुट्ठियों में जैसे बाँधकर रखता है। वह महान है क्योंकि उसमें अद्भुत क्षमताएँ हैं।
4. समानार्थी शब्द लिखिए।
भूचाल – भूकंप, भूडोल
हिमगिरि – हिमालय, गिरिराज, हिमाद्री
वाणी – वीणा, सरस्वती
तूफान – आँधी, झंझावात
अमृत – पीयूष, अमिय
धीर – धैर्यवान, संयमी
हिम्मत – साहस, हौसला
नभ – आकाश, गगन
निज – अपना, खुद
5. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए :-
अमृत – विष
अम्बर – पाताल
अमर – मरणशील
धीर – अधीर
वीर – कायर
पाप – पुण्य
जीवन – मरण
6. सही विकल्प चुनकर लिखिए :-
(1) तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को__________
(अ) मोड़ दे
(ब) फोड़ दे
(क) तोड़ दे
(ड) जोड़ दे
उत्तर – (ब) फोड़ दे
(2) पृथ्वी के लाल तेरा हिमगिरि-सा __________
(अ) हाल
(ब) भाल
(क) काल
(ड) मिसाल
उत्तर -(ब) भाल
(3) __________को तू जान, जरा शक्ति पहचान
(अ) निज
(ब) स्वयं
(क) खुद
(ङ) स्व
उत्तर – (अ) निज
(4) तू __________ जो अगर हिम्मत से ले
(अ) ठान
(ब) जान
(क) काम
(ड) पहचान
उत्तर – (क) काम
7. काव्य पंक्तियाँ पूर्ण कीजिए :-
(1) धरती __________ महान है।
उत्तर – धरती की शान तू भारत की संतान,
तेरी मुट्ठियों में बंद तूफान है रे,
मनुष्य तू बड़ा महान है।
(2) तू जो __________ उड़ान है रे।
उत्तर – तू जो अगर हिम्मत से काम ले,
गुरु सा मतिमान, पवन – सा तू गतिमान,
तेरी नभ से भी ऊँची उड़ान है रे
विद्यार्थी प्रवृत्ति
प्रस्तुत गीत कंठस्थ कीजिए।
उत्तर – विद्यार्थी इसे अपने स्तर पर करें।
धरती की शान गीत का सस्वर गान करवाइए।
उत्तर – शिक्षक इसे अपने स्तर पर करवाएँ।