सत्साहसी
गणेश शंकर विद्यार्थी इस लेख में साहस के अनेक रूपों की चर्चा की गई है तथा यह भी बताया गया है कि सत्साहस क्या है। सत्साहस और दुस्साहस में क्या अंतर है यह भी बताया गया है।
संसार के सभी महापुरुष साहसी थे। संसार के काम, बड़े अथवा छोटे, साहस के बिना नहीं होते। बिना किसी प्रकार का साहस दिखलाए किसी जाति या किसी देश का इतिहास ही नहीं बन सकता। अपने साहस के कारण ही अर्जुन, भीम, भीष्म, अभिमन्यु आदि आज हमारे हृदयों में बसे हैं।
साहसी के लिए केवल साहस प्रकट करना ही अभीष्ट नहीं क्रोधांध होकर स्वार्थवश साहस दिखाने को किसी प्रकार प्रशंसनीय कार्य नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार का साहस चोर और डाकू भी कभी-कभी कर गुज़रते हैं। राजा-महाराजा भी अपनी कुत्सित अभिलाषाओं को पूर्ण करने के लिए कभी-कभी इससे भी बढ़कर साहस के काम कर डालते हैं। ऐसा साहस निम्न श्रेणी का साहस है। इस साहस को किसी भी दृष्टिकोण से सत्साहस नहीं कहा जा सकता।
मध्यम श्रेणी का साहस प्रायः शूरवीरों में पाया जाता है। वह उनके उच्च विचार और निर्भीकता को भली-भाँति प्रकट करता है। इस प्रकार के साहसी मनुष्यों में बेपरवाही और स्वार्थहीनता की कमी नहीं होती परंतु उनमें ज्ञान की कमी अवश्य पाई जाती है।
एक बार बादशाह अकबर के पास दो राजपूत नौकरी के लिए आए अकबर ने उनसे पूछा, “तुम क्या काम कर सकते हो? ”
वे बोले, “जहाँपनाह! करके दिखलाएँ या केवल कहकर? ”
बादशाह ने करके दिखलाने की आज्ञा दी। राजपुतों ने घोड़ों पर सवार होकर अपने-अपने बरछे सँभाले और अकबर के सामने ही एक-दूसरे पर वार करने लगे। बादशाह के देखते-देखते दोनों घोड़ों से नीचे आ गिरे और मरकर ठंडे हो गए। इस प्रकार का साहस निस्संदेह प्रसंसनीय है परंतु ज्ञान की आभा की कमी के कारण निस्तेजसा प्रतीत होता है।
सर्वोच्च श्रेणी के साहस के लिए हाथ-पैर की बलिष्ठता आवश्यक नहीं और न हीं धन-मान आदि का होना आवश्यक है। जिन गुणों का होना आवश्यक है, वे हैं हृदय की पवित्रता, उदारता और चरित्र की दृढ़ता। ऐसे गुणों की प्रेरणा से उत्पन्न हुआ साहस, तब तक पूर्णतया प्रशंसनीय नहीं कहा जा सकता, जब तक उसमें एक और गुण सम्मिलित न हो। इस गुण का नाम है, ‘कर्तव्यपरायणता’ ।
कर्तव्य का विचार प्रत्येक साहसी मनुष्य में होना चाहिए। कर्तव्यपरायण व्यक्ति के हृदय में यह बात अवश्य उत्पन्न होनी चाहिए कि जो कुछ मैंने किया, वह केवल अपना कर्तव्य किया। मारवाड़ के मौरूदा गाँव का ज़मींदार बुद्धन सिंह किसी झगड़े के कारण स्वदेश छोड़कर जयपुर चला गया और वहीं बस गया। थोड़े ही दिनों बाद मराठों ने मारवाड़ पर आक्रमण किया। यद्यपि बुद्धन मारवाड़ को बिलकुल ही छोड़ चुका था तथापि शत्रुओं के आक्रमण का समाचार पाकर और मातृभूमि को संकट में पड़ा हुआ जानकर उसका रक्त उबल पड़ा। वह अपने एक सौ पचास साथियों को लेकर बिना किसी से पूछे जयपुर से तुरंत चल पड़ा। वह समय पर अपने देश और राजा की सेवा करने के लिए पहुँच गया।
इस घटना को हुए बहुत दिन हो गए परंतु आज भी मारवाड़ के लोग कर्तव्यपरायण बुद्धन सिंह की वीरता व सत्साहस को सम्मानपूर्वक याद करते हैं। राजपूत महिलाएँ आज भी बुद्धन और उसके साथियों की वीरता के गीत गाती हैं।
सत्साहसी व्यक्ति में एक गुप्त शक्ति रहती है जिसके बल से वह दूसरे मनुष्य को दुख से बचाने के लिए प्राण तक देने को प्रस्तुत हो जाता है। धर्म, देश, जाति और परिवार वालों के लिए नहीं, अपितु संकट में पड़े हुए अपरिचित व्यक्ति के सहायतार्थ भी उसी शक्ति की प्रेरणा से वह संकटों का सामना करने को तैयार हो जाता है। अपने प्राणों की वह लेशमात्र भी परवाह नहीं करता। हर प्रकार के कलेशों को प्रसन्नतापूर्वक सहता है और स्वार्थ के विचारों को वह फटकने तक नहीं देता है। सत्साहस के लिए अवसर की राह देखने की आवश्यकता नहीं है। सत्साहस दिखाने का अवसर प्रत्येक मनुष्य के जीवन में पल-पल में आया करता है। देश, काल और कर्तव्य पर विचार करना चाहिए और स्वार्थरहित होकर साहस न छोड़ते हुए कर्तव्यपरायण बनने का प्रयत्न करना चाहिए। यहीं सत्साहस है।
शब्दार्थ
साहसी – हिम्मती
प्रशंसनीय – प्रशंसा के योग्य
निम्न – नीचा
मध्यम – बीच का
क्लेशों – कष्टों
अभीष्ट – उद्देश्य, ऐच्छिक
कुत्सित – निंदित, नीच
दृष्टिकोण – नज़रिया
सत्साहस – हिम्मत
कर्तव्यपरायण – उचित काम करने वाला
बलिष्ठता – मज़बूती
निर्भीकता – निडरता
शूरवीर – बहादुर योद्धा
सर्वोच्च – सबसे ऊँचा