Class IX, Hindi Vallari, Third Language, Karnataka Board, KSEEB, Chapter Jay Jay Bharat Maata, Maithilisharan Gupt, जय-जय भारत माता, (कविता) मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी (1886-1964) का जन्म चिरगाँव, झाँसी जिला, उत्तर प्रदेश में हुआ। इनके पिता श्री सेठ रामचरण भी ब्रजभाषा के कवि थे। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी आपके साहित्यिक गुरु थे। आपने प्रबंध काव्यों तथा खंड काव्यों की रचना की है। खड़ीबोली के विकास में गुप्त जी का योगदान अनन्यतम है। साहित्यिक सेवा के सम्मानार्थ सन् 1961 ई. में उन्हें ‘पद्म भूषण’ उपाधि मिली थी। ‘साकेत’ महाकाव्य पर आपको ‘गंगा प्रसाद पारितोषिक’ मिला था। आप राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे।

पंचवटी, जयद्रथ वध, रंग में भंग, भारत-भारती, अनघ, नहुष आदि आप की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं। आपकी भाषा सरल – सरस और शैली रोचक है।

कवि इस कविता में भारत माता का गुणगान कर रहे हैं। कवि प्रार्थना कर रहे हैं कि इस देश के पावन आँगन में अँधेरा हटे और ज्ञान मिले। सब लोग मिलजुल कर भारत माता के यश की गाथा गाएँ।

 

जय-जय भारत माता।

जय-जय भारत माता।

ऊँचा हिया हिमालय तेरा

उसमें कितना स्नेह भरा

दिल में अपने आग दबाकर

रखता हमको हरा-भरा,

सौ-सौ सोतों से बह-बहकर

है पानी फूटा आता,

जय-जय भारत माता।

कमल खिले तेरे पानी में

धरती पर हैं आम फले,

 इस धानी आँचल में देखो

कितने सुंदर भाव पले,

भाई – भाई मिल रहें सदा ही

टूटे कभी न नाता,

जय-जय भारत माता।

तेरी लाल दिशा में ही माँ

चंद्र-सूर्य चिरकाल रहें,

तेरे पावन आँगन में

अंधकार हटे और ज्ञान मिले,

मिलजुल कर ही हम सब गाएँ

तेरे यश की गाथा,

जय-जय भारत माता।

01

जय-जय भारत माता।

ऊँचा हिया हिमालय तेरा

उसमें कितना स्नेह भरा

दिल में अपने आग दबाकर

रखता हमको हरा-भरा,

सौ-सौ सोतों से बह-बहकर

है पानी फूटा आता,

व्याख्या –  कविता की ये पंक्तियाँ भारत माता की महिमा का गुणगान करती हैं। प्रत्येक पंक्ति में देश की प्राकृतिक सुंदरता और उसकी विशेषताओं का चित्रण किया गया है।

इसमें भारत माता की वंदना और गौरवगान किया गया है। हिमालय की ऊँचाई को उसकी दृढ़ता और विशालता के प्रतीक के रूप में दिखाया गया है। हिमालय न केवल शक्ति और कठोरता का प्रतीक है, बल्कि उसमें प्रेम और स्नेह भी भरा हुआ है। हिमालय अपने अंदर ज्वालामुखी जैसी ऊर्जा को समेटे हुए भी धरती को हरा-भरा बनाए रखता है। हिमालय से अनेक जलस्रोत और नदियाँ निकलती हैं, जो संपूर्ण भारत को जीवन प्रदान करती हैं।

विशेष –

मैथिलीशरण गुप्त जी की कविता की इन पंक्तियों में हिमालय की महिमा का वर्णन किया गया है। वह भारत का रक्षक है, जीवनदायी जल प्रदान करता है और अपनी विशालता से राष्ट्र की महानता को दर्शाता है। यह देशभक्ति की भावना को प्रकट करने वाली एक प्रेरणादायक कविता है।

02

जय-जय भारत माता।

कमल खिले तेरे पानी में

धरती पर हैं आम फले,

 इस धानी आँचल में देखो

कितने सुंदर भाव पले,

भाई – भाई मिल रहें सदा ही

टूटे कभी न नाता,

व्याख्या –  मैथिलीशरण गुप्त जी की कविता की इन पंक्तियों में भारत माता की सुंदरता, समृद्धि और एकता का चित्रण हुआ है। प्रत्येक पंक्ति में देश की प्राकृतिक संपदा और समाज की सौहार्द्रपूर्ण संस्कृति को दर्शाया गया है। यहाँ भारत माता की जय-जयकार करते हुए उसका गौरवगान किया गया है। भारत की नदियों और जलस्रोतों में पवित्रता और सौंदर्य का प्रतीक कमल के फूल खिलते हैं, जो इसकी प्राकृतिक शोभा को दर्शाता है। भारत की उर्वर भूमि में आम जैसे स्वादिष्ट और प्रिय फल उगते हैं, जो देश की कृषि संपन्नता को दिखाते हैं। भारत माता के हरे-भरे आँचल अर्थात् प्राकृतिक सौंदर्य और समृद्धि में सुंदर प्रेम, भाईचारा, समर्पण की भावनाएँ पनपती हैं। यहाँ पर सभी लोग प्रेमपूर्वक रहते हैं, और उनके आपसी संबंध हमेशा अटूट रहते हैं।

विशेष –

इस कविता में भारत की प्राकृतिक संपदा, सांस्कृतिक सौंदर्य और सामाजिक एकता का वर्णन किया गया है। भारत नदियों, फसलों और सुंदर भावनाओं से समृद्ध है, जहाँ भाईचारा हमेशा बना रहता है। यह कविता राष्ट्रप्रेम और भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाती है।

03

जय-जय भारत माता।

तेरी लाल दिशा में ही माँ

चंद्र-सूर्य चिरकाल रहें,

तेरे पावन आँगन में

अंधकार हटे और ज्ञान मिले,

मिलजुल कर ही हम सब गाएँ

तेरे यश की गाथा,

जय-जय भारत माता।

व्याख्या – मैथिलीशरण गुप्त जी की कविता की इन पंक्तियों में भारत माता की महिमा, ज्ञान, प्रकाश और एकता का सुंदर चित्रण हुआ है। इसमें देश की उज्ज्वल भविष्य की कामना की गई है। कवि भारत माता की वंदना और गौरवगान करते हुए कहते हैं कि भारत की पूर्व दिशा अर्थात् वह लाल दिशा, जहाँ से सूर्य उगता है, उसमें सूर्य और चंद्रमा अनंत काल तक चमकते रहें, जिससे देश में हमेशा प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता बनी रहे। भारत के पवित्र भूमि से अज्ञानता और बुराइयाँ दूर हों और ज्ञान का प्रकाश फैले, जिससे प्रगति और विकास हो। सभी भारतीय एकता और भाईचारे के साथ मिलकर भारत माता की महानता का गुणगान करें और उसकी सेवा में समर्पित रहें। कवि पुनः भारत माता की जय-जयकार करते हुए राष्ट्रप्रेम और गौरव को प्रकट करते हैं।

विशेष –

यहाँ भारत की उन्नति, प्रकाश, ज्ञान और एकता की भावना को दर्शाती है। इसमें कामना की गई है कि देश में हमेशा सूर्य और चंद्रमा की तरह उजाला बना रहे, अज्ञानता का अंधकार मिटे और सब लोग मिलकर भारत की महानता का गुणगान करें। यह कविता देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता की प्रेरणा देती है।

शब्दार्थ :

हिया – हृदय,

छाती – वक्षस्थल, सीना

सोत – स्रोत, मूल

आँचल – छोर दामन, पल्ला,

गाथा – कथा,

धानी – हल्का हरा रंग

नाता – संबंध, रिश्ता

यश – कीर्ति

मनोनीत – चुना हुआ, नामांकित।

I. एक वाक्य में उत्तर लिखिए :-

1)जय – जय भारत माता’ कविता के कवि कौन हैं?

उत्तर – ‘जय – जय भारत माता’ कविता के कवि मैथिलीशरण गुप्त जी हैं।

2) गुप्त जी को कौन-सी उपाधि मिली है?

उत्तर – साहित्यिक सेवा के सम्मानार्थ सन् 1961 ई. में मैथिलीशरण गुप्त जी को ‘पद्म भूषण’ उपाधि मिली थी।

3) कवि किस देवी की वंदना कर रहे हैं?

उत्तर – कवि देवी के रूप में भारत माता की वंदना कर रहे हैं।

4) हिमालय रूपी हृदय में क्या भरा है?

उत्तर – हिमालय रूपी हृदय में स्नेह और अग्नि दोनों भाव भरे हुए हैं।

5) पानी कैसे फूटा आता है?

उत्तर – हिमालय के सौ-सौ स्रोतों से जलधाराएँ फूटती हैं।

6) पानी में क्या खिले हैं?

उत्तर – पानी में कमल के फूल खिले हैं।

7) सुंदर भाव कहाँ पले हैं?

उत्तर – भारत माता के धानी आँचल में सुंदर भाव पलते हैं।

II. दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :-

1) हिमालय के बारे में कवि की भावना क्या है?

उत्तर – हिमालय के बारे में कवि की यह भावना है कि हिमालय की ऊँचाई भारत की दृढ़ता और विशालता को दर्शाती है। साथ ही साथ यह यह भारत के मस्तक के समान ही शोभायमान है।

2) “दिल में आग दबाकर” का मतलब क्या है?

उत्तर – “दिल में आग दबाकर” का मतलब है कि हिमालय अपने अंदर ज्वालामुखी जैसी ऊर्जा को समेटे हुए भी अनेक जलस्रोतों को प्रवाहित करके धरती को हरा-भरा बनाए रखती है।

3) कवि ऊँचा हिया क्यों कहते हैं?

उत्तर – कवि मैथिलीशरण गुप्त हिमालय को ऊँचा हिया कहते हैं क्योंकि भारत विश्व का अति प्राचीन देश है। यहाँ सभी धर्मों और संप्रदायों को समान रूप से देखा जाता है।  

4) हमें मिलजुलकर कौन – सा गीत गाना चाहिए?

उत्तर – हम सभी भारतवासियों को मिल-जुलकर भारत माता के गौरवमयी यश की गाथा गानी चाहिए।

III. खाली स्थान भरिए :-

1) भारत का हिया _________ है।

उत्तर – हिमालय

2) दिल में _________ दबाकर रखता हमको _________ । 

उत्तर – आग दबाकर, हरा-भरा

3) _________ चिरकाल रहें।

उत्तर – सूर्य-चंद्र

 

IV.नमूने के अनुसार तुकांत शब्द लिखिए :-

उदाहरण : स्नेह-भरा – हरा-भरा

1) आता – माता

2) पले – फले

3) नाता – माता

V.कविता में ‘बह-बहकर पानी आता’ का प्रयोग हुआ है। उसी प्रकार निम्नलिखित शब्दों में से सही शब्द चुनकर वाक्य पूर्ण कीजिए :-

(गिर-गिरकर, मिट-मिटकर, सुन-सुनकर, देख-देखकर)

1) बालक _________ सीखता है।

उत्तर – देख-देखकर

2) भाषा _________ बोली जाती है।

उत्तर – सुन-सुनकर

3) मेघ _________ बरसते हैं।

उत्तर – मिट-मिटकर

4) बच्चा _________ चलता है।

उत्तर – गिर-गिरकर

 

 VI.इस कविता की प्रथम आठ पंक्तियों को कंठस्थ कीजिए।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

VII. अनुरूपता :-

1) सागर : विशाल :: हिमालय : ऊँचा

2) अंधकार : अँधेरा :: पवित्र : पावन

3) आम : धरती :: कमल : पानी

4) सूर्य : सूरज :: चंद्र : चाँद

1) देश – भक्ति से जुड़ी किन्हीं दो कविताओं को सुंदर अक्षरों में चार्ट पर लिखिए। उसे अपनी कक्षा में लगाइए और गाइए।

उत्तर – 1. सुभाषितम – भारत माता की वंदना

जय-जय भारत माता
तेरा वैभव अमर रहे,
सदियों तक यह गूँज उठे,
हर दिल में तेरा प्रेम रहे।

हिमालय की ऊँची चोटियाँ,
तेरी शक्ति का जयगान करें,
गंगा, यमुना के निर्मल जल से,
हर धरती की प्यास बुझाएँ।

वीरों की भूमि, तपस्वियों की धरा,
हर युग में तेरा मान बढ़े,
तेरी रक्षा को हम तत्पर हैं,
तेरा गौरव सदा खिला रहे।

  1. सरफरोशी की तमन्ना (रामप्रसाद बिस्मिल)

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-कातिल में है।

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है।

है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर।

खून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्किल में है,
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

 

2) ‘वीर ज़ारा’ सिनेमा का यह गीत मिलकर कक्षा में गाइए।

धरती सुनहरी, अंबर नीला, हर मौसम रंगीला ऐसा देश है मेरा |

बोले पपीहा, कोयल गाए, सावन घिर आए ऐसा देश है मेरा।

भोले-भोले बच्चे हैं जैसे गुड्डे गुड़िया जिन्हें रोज़ सुनाएँ दादी-नानी एक परियों की कहानी …. ऐसा देश है मेरा।

उत्तर – छात्र इसे अपने स्तर पर करें।

हिमालय पर्वत भारत माता की चोटी पर है। वह हमारी पहरेदारी करता है। इस कविता को पढ़ाते समय हिमालय पर्वत की जानकारी अवश्य दें।

उत्तर – हिमालय पर्वत की जानकारी

  1. परिचय :-

हिमालय पर्वत विश्व की सबसे ऊँची पर्वत शृंखला है, जो एशिया महाद्वीप में स्थित है। यह भारत, नेपाल, भूटान, चीन और पाकिस्तान तक फैला हुआ है। संस्कृत में “हिमालय” का अर्थ ‘बर्फ का घर’ होता है।

  1. भौगोलिक विस्तार :-

यह लगभग 2,400 किलोमीटर लंबी पर्वत शृंखला है।

इसकी चौड़ाई 200 से 400 किलोमीटर तक होती है।

यह पश्चिम में नंगा पर्वत (पाकिस्तान) से लेकर पूर्व में नामचा बारवा (तिब्बत) तक फैला हुआ है।

  1. प्रमुख पर्वत चोटियाँ :-

माउंट एवरेस्ट (8,848.86 मीटर) – विश्व की सबसे ऊँची चोटी (नेपाल-तिब्बत सीमा पर)

कंचनजंगा (8,586 मीटर) – भारत की सबसे ऊँची चोटी

नंगा पर्वत (8,126 मीटर) – पाकिस्तान में स्थित

अन्नपूर्णा (8,091 मीटर) – नेपाल में स्थित

  1. हिमालय की प्रमुख नदियाँ :-

हिमालय से कई बड़ी नदियाँ निकलती हैं, जो एशिया की जीवनरेखा हैं। प्रमुख नदियाँ हैं :-

गंगा (भागीरथी और अलकनंदा मिलकर गंगा बनती हैं)

ब्रह्मपुत्र

सिंधु

यमुना

  1. जलवायु और प्राकृतिक संपदा :-

हिमालय में ऊँचाई के अनुसार जलवायु में अंतर पाया जाता है।

ऊँचाई बढ़ने पर तापमान गिरता है और बर्फबारी होती है।

यहाँ विभिन्न प्रकार के वन पाए जाते हैं – चीर, देवदार, बुरांश, बाँस, ओक आदि।

यह क्षेत्र कई दुर्लभ जंगली जीवों का घर है – हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, लाल पांडा, याक आदि।

  1. हिमालय का महत्त्व :-

जलवायु नियंत्रक: हिमालय भारत को ठंडी साइबेरियन हवाओं से बचाता है।

जलस्रोत: यह कई नदियों का उद्गम स्थल है।

कृषि और वनस्पति: यहाँ की उपजाऊ घाटियाँ कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

धार्मिक महत्त्व: यह हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में पवित्र माना जाता है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, कैलाश मानसरोवर आदि तीर्थस्थान यहीं स्थित हैं।

निष्कर्ष :-

हिमालय केवल एक पर्वत नहीं, बल्कि यह भारत की जलवायु, संस्कृति, आस्था और प्राकृतिक संतुलन का महत्त्वपूर्ण आधार है। इसकी सुरक्षा और संरक्षण हमारा कर्तव्य है।

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