Hindi Vyakaran

सघोष (Voice/Voiced) और अघोष Voiceless/Devoiced व्यंजन

Aghosha and Saghosha Dhwaniyan The best explanation

सघोष (Voice/Voiced) और अघोष Voiceless/Devoiced व्यंजन

     श्वास नलिका के ऊपरी भाग में ध्वनि उत्पन्न करने वाला प्रधान अवयव होता है जिसे ध्वनि यंत्र या स्वरयंत्र कहते हैं। इसे आसानी से समझने के लिए कुछ पुरुषों के गले में जो उभरी घाँटी दिखाई देता है जिसे अंग्रेज़ी में Adam apple कहते हैं यही स्वरयंत्र  कहलाता है। इस स्वर-यंत्र में पतली झिल्ली के बने दो लचीले पर्दे (Vocal Chord) होते हैं। साँस लेते समय या बोलते समय हवा इसी से होकर बाहर-भीतर आती जाती है। इन स्वर तंत्रियों की मदद से हवा को अपने अंदर रोककर हम हमारी शक्ति और हिम्मत को भी बढ़ाते हैं।

     इसे असानी से जानने के लिए हम वर्णों का उच्चारण करते समय अगर अपने गले की उभरी घाटी को कुछ इस तरह पकड़े तो उत्पन्न होने वाले कंपन्न से अघोष और सघोष ध्वनियों का निर्धारण स्पष्ट रूप से हो जाएगा।

     जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से निकलने वाली हवा स्वर तंत्रियों में बिना घर्षण किए बाहर निकल जाए उसे अघोष Voiceless/ Devoiced ध्वनियाँ कहते हैं।

व्यंजन वर्णों के सभी वर्गों के पहले और दूसरे वर्ण अघोष व्यंजन वर्ण हैं-

ड (ड़)

ढ (ढ़)

 

इस तरह कुल अघोष वर्णों की संख्या 13 हो गईं।

 जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से निकलने वाली हवा से स्वर तंत्रियों में घर्षण होता है उसे सघोष Voice/Voiced ध्वनियाँ कहते हैं।

व्यंजन वर्णों के सभी वर्गों के तीसरे, चौथे और पाँचवे वर्ण सघोष व्यंजन वर्ण हैं-

 

ड (ड़)

ढ (ढ़)

हिन्दी के स्वर वर्ण भी सघोष वर्ण कहलाते हैं।

इस तरह कुल सघोष वर्णों की संख्या 31 हो गईं।

ध्वनि परिवर्तन

संस्कृत का ‘काक’ शब्द हिन्दी में ‘काग’ या ‘कागा’ हो गया है यहाँ अघोष व्यंजन ‘क’ सघोष वर्ण ‘ग’ में बदल गया। इसी प्रकार ‘कंकण’ का ‘कंगन’ या ‘शाक’ का ‘साग’ अघोष व्यंजन से सघोष व्यंजन होने के उदाहरण हैं।

कभी कभी सघोष ध्वनियों का अघोष ध्वनियों में भी परिवर्तन होता दिखता है, जैसे- फ़ारसी का ‘ख़र्ज’ हिन्दी में ‘ख़र्च’ बन गया। इसमें ‘ज’ जो घोष ध्वनि थी बदलकर अघोष ‘च’ हो गई है। इसके अतिरिक्त पैशाची प्राकृत में अनेक उदाहरण हैं, जैसे- नगर से नकर, गगन से गकन, मेघ से मेख इत्यादि।

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