प्रश्न
- शासक को विपत्ति की हालत में कैसे काम लेना चाहिए?
उत्तर – शासक को विपत्ति की हालत में में धैर्य और समयस्फूर्ति से काम लेना चाहिए।
- आपकी नज़र में आदर्श शासक के लक्षण क्या हो सकते हैं?
उत्तर – मेरी नज़र जो शासक क्षमा का गुण रखता हो, अपनी प्रजा को अपनी संतान स्वरूप समझता हो वही आदर्श शासक हो सकता है।
- सुव्यवस्थित शासन के गुण क्या हो सकते हैं?
उत्तर – सुव्यवस्थित शासन में क़ानून और नियमों का सभी के लिए समान रूप से लागू होना ही उत्तम गुम माना जाता है।
उद्देश्य
छात्रों को साहित्य में एकांकी विधा से परिचित कराना, एकांकी की भाषा व रचना शैली से परिचित कराना, एकांकी लेखन के लिए प्रोत्साहित करना एवं इसके साथ-साथ छात्रों में देश के लिए समर्पित होने की भावना का विकास करना, इसका उद्देश्य है।
विधा विशेष
इस पाठ की विधा एकांकी है। एकांकी साहित्य की वह विधा है, जो नाटक के समान अभिनय से संबंधित है। एकांकी का अर्थ है- एक अंक वाला। यह एक अंक वाला नाटक है।
विष्णु प्रभाकर – लेखक परिचय
विष्णु प्रभाकर का जन्म मुज्फ्फरपुर जिले के मीरनपुर गाँव में हुआ था। इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में और उच्च शिक्षा हिसार में प्राप्त की थी। कई वर्षों तक पंजाब सरकार की सेवा करने के बाद सन् 1974 से ये दिल्ली आ गए और तब से दिल्ली रहकर पूर्ण समय के लिए साहित्य सेवा में लगे हैं। आपने कहानी, उपन्यास, जीवनी, नाटक, एकांकी, संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में पर्याप्त मात्रा में लिखा हैं। आपकी प्रमुख रचनाए ‘ढ़लती रात’, ‘स्वप्नमयी’ (उपन्यास), ‘संघर्ष के बाद’ (कहानी संग्रह), ‘नव-प्रभात’, ‘डॉक्टर’ (नाटक), ‘प्रकाश और परछाईयाँ’, ‘बारह एकांकी’, ‘अशोक’ (एकांकी संग्रह), ‘जाने-अनजाने’ (संस्मरण और रेखाचित्र), ‘आवारा मसीहा’ (शरतचंद्र की जीवनी) आदि।
विष्णु प्रभाकर की रचनाओं में प्रारंभ से ही स्वदेश प्रेम व राष्ट्रीय चेतना और समाज-सुधार का स्वर प्रमुख रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आपने आकाशवाणी के दिल्ली केन्द्र में नाटक निर्देशक के पद पर काम किया। बाद में स्वतंत्र लेखन को अपनी जीविका का साधन बना लिया। आपका समस्त साहित्य मानवीय अनुभूतियों से जुड़ा हुआ है। आपकी रचनाओं में रोचकता एवं संवेदनशीलता सर्वत्र व्याप्त हैं तथा भाषा सहज व सरल है।
विषय प्रवेश –
” खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी” सुभद्रा कुमारी चौहान की यह पंक्ति लक्ष्मीबाई की वीरता प्रकट करती है। लक्ष्मीबाई ने यह सिद्ध कर दिखाया कि नारी अबला नहीं सबला है। लक्ष्मीबाई ने सच्चे अर्थों में देश की स्वतंत्रता की नींव रखी थी। प्रस्तुत पाठ में देश के प्रति उनकी कर्मपरायणता बताई जा रही है। प्रस्तुत एकांकी ‘स्वराज्य की नींव में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) में लक्ष्मीबाई के त्याग और संघर्ष का वर्णन किया गया है। स्वराज की नींव रखने में स्त्रियों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रस्तुत एकांकी के पात्र स्वराज्य की नींव के पत्थर है जिनके त्याग, तपस्या व बलिदान के द्वारा भले ही स्वराज्य प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन वे स्वराज्य की नींव का पत्थर बनकर जनमानस में देशप्रेम व नवजागरण की भावना जगाने में अपनी सार्थकता समझते हैं।
स्वराज्य की नींव
पात्र
लक्ष्मीबाई
मुंदर
तात्या
जूही
रघुनाथराव
सेनानायक
(रंगमंच पर युद्धभूमि का दृश्य अंकित किया जा सकता है। कैंप कहीं पास ही लगा हुआ है। महारानी लक्ष्मीबाई के तंबू का एक भाग दिखाई देता है। परदा उठने पर महारानी लक्ष्मीबाई अपनी सखी जूही के साथ उत्तेजित अवस्था में मंच पर प्रवेश करती हैं। दोनों लाल कुर्ती के सैनिकों की वेशभूषा में हैं।)
लक्ष्मीबाई : मेरे देखते-देखते क्या से क्या हो गया जूही ! झाँसी, कालपी, ग्वालियर कहाँ गई परंतु मंज़िल है कि पास आकर भी हर बार दूर चली जाती है। स्वराज्य को आते हुए देखती हूँ, परंतु दूसरे ही क्षण मार्ग में हिमालय अड़ जाता है। उसे पार करती हूँ तो महासागर की डरावनी लहरें थपेड़े मारने लगती हैं। उनसे जूझती हूँ तो नाविक सो जाते हैं। देखो जूही, उधर क्षितिज पर देखो। कैसी लपलपाती हुई लपटें उठ रही हैं ! सारा आकाश धूम घटाओं से छाया हुआ है। प्रलय की भूमिका है, लेकिन राव साहब हैं कि रक्तमंडल की छाया में ऐशो आराम में मशगूल हैं। (आवेश में आते-आते सहसा मौन हो जाती है। जूही कुछ कहने के लिए मुँह खोलती है कि महारानी फिर बोल उठती है।) जूही, जूही, मैंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी लेकिन झाँसी हाथ से निकल गई जूही। (सहसा तीव्र होकर) नहीं, नहीं, झाँसी हाथ से नहीं निकली। मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी। मैं अकेली हूँ, लेकिन उससे क्या? मैं अकेली ही झाँसी लेकर रहूँगी।
जूही : कौन कहता है, आप अकेली हैं, महारानी, आप तो गीता पढ़ती हैं। फिर यह निराशा कैसी?
लक्ष्मीबाई : मैं निराश नहीं हूँ। मैं जानती हूँ कि मैं झाँसी लेकर रहूँगी, लेकिन क्या तुम नहीं जानती कि उस दिन बाबा गंगादास ने मुझसे क्या कहा था? “जब तक हमारे समाज में छुआछूत और ऊँच-नीच का भेद नहीं मिट जाता, जब तक हम विलासप्रियता को छोड़कर जनसेवक नहीं बन जाते, तब तक स्वराज्य नहीं मिल सकता। वह मिल सकता है केवल सेवा, तपस्या और बलिदान से।”
जूही : लेकिन महारानी, उन्होंने यह भी तो कहा था कि स्वराज्य प्राप्ति से बढ़कर है, स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार करना; स्वराज्य हाथ में है। लेकिन नींव के पत्थर बनने से हमें कौन रोक सकता है? वह हमारा अधिकार है।
लक्ष्मीबाई : (मुस्कराकर) शाबाश मेरी कर्नल ! तुम लोगों से मुझे यही आशा है। जिस स्वराज्य की नींव तुम जैसी नारियाँ बनाने जा रही हैं, वह निश्चय ही महान होगा। मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि वह मेरे जीवनकाल में आता है या नहीं आता, लेकिन मुझे इस बात का दुःख अवश्य है कि हमारे पास शक्ति है, फिर भी हम दुर्बल हैं। हमारे पास तात्या जैसे सेनापति हैं, फिर भी हमारी सेना में अनुशासन नहीं है। हमारे पास ग्वालियर का किला है, फिर भी हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। क्यों? जानती हो क्यों?
जूही : जानती हूँ महारानी ! हम विलासिता में डूब गए है। (तभी मुस्कराती हुई मुंदर वहाँ प्रवेश करती है।)
मुंदर : कौन कहता है कि हम विलासिता में डूब गए हैं? विलासिता में डूबे हैं रावसाहब। बाँदा के नवाब, सेनापति तात्या।
जूही : (सहसा) नहीं, मुंदर। सेनापति नहीं।
मुंदर : (मुसकराती है) ओह, समझी। तुम तो उनका पक्ष लोगी ही।
जूही : (दृढ़ स्वर में) मैं उसका पक्ष नहीं लेती, लेकिन जो तथ्य है, उसको छिपाया नहीं जा सकता। सरदार तात्या राव साहब को अपने तन मन का स्वामी मानते हैं।
मुंदर : और तुम उनको अपना स्वामी मानती हो।
जूही : हाँ, मैं उनको अपना स्वामी मानती हूँ और मानती रहूँगी, लेकिन उनसे भी अधिक मैं महारानी को अपना स्वामी मानती हूँ और महारानी से भी बढ़कर मैं अपने देश को अपना स्वामी मानती। देश के लिए मैं सरदार को भी ठुकरा सकती हूँ, ठुकरा चुकी हूँ।
मुंदर : (सकपका कर) जूही तू तो नाराज़ हो गई। मेरा यह मतलब नहीं था। मैं तो केवल इतना ही कहना चाहती थी कि जब तूने उन्हें अपना स्वामी मान लिया है तो तू उन्हें रोकती क्यों नहीं?
लक्ष्मीबाई : जूही ने उन्हें रोका है मुंदर मैं जानती हूँ। जब राव साहब के कहने पर तात्या इसे नाचने के लिए बुलाने को आए थे तो इसने उनको बुरी तरह दुत्कार दिया था।
जूही : हाँ रानी, मैं स्वराज्य के लिए नाच सकती हूँ। बराबर नाचती रही हूँ, परंतु विलासिता में डूबने के लिए अपनी कला को किसी के गले की फाँसी नहीं बना सकती हूँ। जो मुझको ऐसा करने के लिए कहते हैं, उनको मैं ठोकर ही मार सकती हूँ।
लक्ष्मीबाई : (दीर्घ नि:श्वास लेकर) ठोकर ही तो नहीं मार सकती जूही। यहीं दर्द तो हमें कचोट रहाI अगर ठोकर मार कर हम उनकी मदहोशी दूर कर सकते तो बात ही क्या थी?
जूही : बाई साहब, मैं औरों की बात नहीं जानती। मुझे आज्ञा दीजिए, मैं ठोकर मारने को तैयार और मैं भी तैयार हूँ बाई साहब।
मुंदर : चलो, हम सब चलकर उनकी नींद हराम कर दें।
लक्ष्मीबाई : नहीं मुंदर, नहीं। हम उनकी नींद हराम नहीं कर सकते। अब तो दुश्मन की ठोकर ही उनको उस नींद से जगा सकती है।
जूही : दुश्मन की ठोकर? यह आप क्या कह रही हैं?
लक्ष्मीबाई : हाँ जूही, दोस्त की ठोकर अविश्वास की खाई को और भी चौड़ा कर देती है। क्या तुम नहीं जानती कि हम एक दूसरे को किस दृष्टि से देखते हैं? क्या ऐसी स्थिति में मेरे कुछ कहने से शंकाओं की घटा और भी गहरा नहीं उठेगी?
मुंदर : बाई साहब ठीक कहती हैं। शंकाएँ अविश्वास पैदा करेंगी और उस अविश्वास से उत्पन्न निराशा को दूर करने के लिए पायल की झंकार और भी झनक उठेगी। श्रीखंड और लड्डुओं पर जान देनेवाले ब्राह्मणों के आशीर्वाद का स्वर और भी तेज हो उठेगा। (सहसा कहीं दूर तोपों का स्वर उठता है।)
लक्ष्मीबाई : और जूही तू अगर तात्या को खोज सके तो तुरंत उन्हें यहाँ आने के लिए कह।
जूही : खोज क्यों नहीं सकती? आपकी आज्ञा होने पर मैं उन्हें पाताल से भी खींचकर ला सकती हूँ। (जाने को मुड़ती है कि रघुनाथराव तेजी से प्रवेश करते हैं।)
रघुनाथराव : महारानी, आपने सुना?
लक्ष्मीबाई : क्या रघुनाथ?
रघुनाथराव : महारानी, जनरल रोज की सेना ने मुरार में पेशवा की सेना को हरा दिया।
जूही : (काँपकर) क्या पेशवा की सेना हार गई?
लक्ष्मीबाई : पेशवा की सेना हार गई, यह अच्छा ही हुआ। अब पेशवा की आँखें खुलेंगी। रघुनाथ अपनी सेना को तैयार होने की आज्ञा दो। रोज ग्वालियर का किला नहीं ले सकेगा।
रघुनाथ : मैं जानता हूँ, वह कभी नहीं ले सकेगा। मैं अभी सेना को कूच के लिए तैयार करता हूँ। केवल आपको सूचना देने के लिए आया था। (जाता है।)
लक्ष्मीबाई : और जूही तुम भी जाओ। (सहसा बाहर देखकर) लेकिन ठहरो, शायद सेनापति तात्या इधर ही आ रहे हैं।
जूही : (बाहर देखकर) जी हाँ, ये तो सरदार तात्या ही हैं। (सरदार तात्या का प्रवेश)
लक्ष्मीबाई : कहिए सरदार तात्या, आज आप इधर कैसे भूल पड़े?
तात्या : बाई साहब, मैं किसी के लिए सरदार हो सकता हूँ, पर आपके लिए तो सेवक ही हूँ।
लक्ष्मीबाई : (व्यंग्य से) इतने बड़े सेनापति को इस प्रकार एक नारी के सामने झुकते लज्जा नहीं आती? खैर, छोड़ो इस बात को यह तुम्हारी विनम्रता है। लेकिन यह तोपों की आवाज़ कैसी आ रही है? कौन सा उत्सव मनाया जा रहा है? शायद चाटुकारों में जागीर बाँटना अभी खत्म नहीं हुआ है?
तात्या : बाई साहब, आपको हमें लज्जित करने का पूरा अधिकार है। हम इसी योग्य हैं, लेकिन जो कुछ हो रहा है, वह आप जानती ही हैं।
लक्ष्मीबाई : शायद ब्रह्मभोज के उपलक्ष्य में ये तोपें चल रही हैं। श्रीखंड और लड्डुओं के लिए घी शक्कर की कमी तो नहीं पड़ी।
जूही : सरकार इस बार इनको माफ़ कर दीजिए।
तात्या : (व्यग्र होकर) बाई साहब, आप यूँ कब तक फटकारती रहेंगी?
लक्ष्मीबाई : तू कहती है, अच्छा लेकिन (मुंदर का प्रवेश)
मुंदर : सरकार सेना तैयार है।
लक्ष्मीबाई : तो मैं भी तैयार हूँ। तात्या तुमसे मुझे बहुत आशाएँ थीं। तुम्हारे रहते यह सब क्या हो गया?
जूही : सरकार, ये स्वामिभक्त हैं।
लक्ष्मीबाई : लेकिन आज हमें देशभक्तों की आवश्यकता है। खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। अब भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
तात्या : : इसीलिए तो आया हूँ बाई साहब। आप जो कहेंगी वही करूँगा। जो योजना बनाएँ, उसी पर चलूँगा।
लक्ष्मीबाई : तो जाओ, तलवार सँभाल लो। नूपुरों की झंकार के स्थान पर तोपों का गर्जन होने दो। भूल जाओ राग-रंग याद रखो, हमें स्वराज्य लेना है। हमें रणभूमि में मौत से जूझना है।
तात्या : महारानी आपकी जय हो। मैं युद्ध के लिए तैयार होकर आया हूँ।
लक्ष्मीबाई : जानती हूँ। लेकिन सेनापति, इस बार यह याद रखना कि यदि दुर्भाग्य से विजय न मिल सकी तो तुम्हें सेना और सामग्री दोनों को दुश्मन के घेरे से निकालकर ले जाना है।
तात्या : ऐसा ही होगा।
लक्ष्मीबाई : तात्या, मेरा मन कहता है कि यह मेरे जीवन का अंतिम युद्ध है। जीत हो या हार, मुझे किसी बात की चिंता नहीं। चिंता केवल इस बात की है, हमारी वीरता कलंकित न होने पाए।
तात्या : बाई साहब ! वीरता आपको पाकर धन्य है। आपके रहते कलंक हमारी छाया को भी नहीं छू सकेगा। आज्ञा दीजिए, प्रणाम।
लक्ष्मीबाई : प्रणाम तात्या ! मैं सीधी युद्धभूमि में जा रही हूँ, देर न लगाना। (तात्या चला जाता है।)
मुंदर : सरकार आज मैं बराबर आपके साथ रहूँगी।
जूही : और मैं तोपखाना सँभालूँगी।
लक्ष्मीबाई : और हम सब मिलकर या तो स्वराज्य प्राप्त करके रहेंगे या स्वराज्य की नींव का पत्थर बनेंगे। हर हर महादेव। (तीनों हर-हर महादेव का उद्घोष करती हैं। पृष्ठभूमि में यही उद्घोष उभरकर आता है, जो मंच पर प्रकाश के धुंधलाते न धुँधलाते सब कहीं छा जाता है। फिर धीरे-धीरे शांति छाने लगती है। प्रकाश उभरने लगता है और पृष्ठभूमि में गीतापाठ का स्वर उठता है।)
शब्द | हिंदी अर्थ | तेलुगु अर्थ | English Meaning |
स्वराज्य | स्वतंत्रता, आत्मशासन | స్వాతంత్ర్యం, స్వీయపాలన | Self-rule, Independence |
नींव | आधार, बुनियाद | పునాది, అద్భారము | Foundation, Base |
युद्धभूमि | रणक्षेत्र, संग्रामस्थल | యుద్ధభూమి, సంగ్రామ క్షేత్రం | Battlefield |
महारानी | रानी, साम्राज्ञी | మహారాణి, సమ్రాజ్ఞి | Queen, Empress |
उत्तेजित | जोशीला, उत्साहित | ఉత్తేజితమైన, ప్రేరేపిత | Excited, Enthusiastic |
प्रतिज्ञा | संकल्प, व्रत | ప్రతిజ్ఞ, సంకల్పం | Oath, Vow |
विलासप्रियता | भोगविलास की चाह | విందుభోగాల పట్ల ఆసక్తి | Luxury-seeking |
बलिदान | त्याग, समर्पण | త్యాగం, బలి | Sacrifice, Dedication |
शंकाएँ | संदेह, आशंका | అనుమానాలు, సందేహాలు | Doubts, Suspicions |
अविश्वास | भरोसे की कमी | అవిశ్వాసం, అనుమానం | Distrust, Mistrust |
अनुशासन | नियमों का पालन | నియమాశ్రయత, క్రమశిక్షణ | Discipline, Order |
दुर्बल | कमजोर, अशक्त | బలహీనమైన, నిస్సహాయ | Weak, Feeble |
गर्जन | गूंज, गड़गड़ाहट | గర్జన, మ్రోగుడు | Roar, Thunder |
रणभूमि | संग्रामस्थल, युद्ध क्षेत्र | రణభూమి, యుద్ధ క్షేత్రం | Warfield, Battleground |
वीरता | साहस, शौर्य | వీరత్వం, ధైర్యం | Bravery, Courage |
कलंकित | अपमानित, दोषयुक्त | అపకీర్తి, మచ్చపడ్డ | Tainted, Stained |
दुश्मन | शत्रु, विरोधी | శత్రువు, ప్రత్యర్థి | Enemy, Opponent |
मदहोशी | नशा, लापरवाही | మత్తు, అలక్ష్యం | Intoxication, Carelessness |
श्रद्धा | आस्था, विश्वास | భక్తి, నమ్మకం | Devotion, Faith |
विजय | जीत, सफलता | విజయం, గెలుపు | Victory, Success |
प्रेरणा | प्रोत्साहन, उत्साह | ప్రేరణ, ఉత్తేజం | Inspiration, Encouragement |
संकीर्ण | संकुचित, छोटा | సంకుచిత, పరిమిత | Narrow-minded, Restricted |
रणध्वनि | युद्ध का घोष | యుద్ధధ్వని, సంస్నానం | War cry, Battle sound |
अड़ जाना – किसी बात को मनवाने की जिद करना | |||
थपेड़े मारना – समस्याओं का तेजी से उभरना | |||
हाथ से निकल जाना – अपने बस में न रहना | |||
भूमि तैयार करना – आधार बनाना, भूमिका बनाना |
‘स्वराज्य की नींव’ एकांकी का सार
यह एकांकी महारानी लक्ष्मीबाई के अंतिम संघर्षों को दर्शाता है, जिसमें उनका दृढ़ संकल्प, साहस और स्वराज्य के प्रति उनकी निष्ठा स्पष्ट होती है।
महारानी लक्ष्मीबाई अपनी सखी जूही के साथ युद्ध की कठिनाइयों और स्वराज्य की प्राप्ति में आ रही बाधाओं पर चर्चा करती हैं। वे राव साहब और अन्य सेनानायकों की विलासिता और अनुशासनहीनता पर निराशा व्यक्त करती हैं। जूही उन्हें यह याद दिलाती है कि स्वराज्य की स्थापना के लिए नींव के पत्थर बनने की आवश्यकता है।
मुंदर, जूही और लक्ष्मीबाई के बीच वार्तालाप से यह स्पष्ट होता है कि कुछ नेता विलासिता में डूबे हुए हैं, जबकि वे तीनों पूरी निष्ठा से स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित हैं। तभी समाचार आता है कि जनरल रोज़ की सेना ने मुरार में पेशवा की सेना को हरा दिया है। महारानी इसे एक अवसर के रूप में देखती हैं और अपनी सेना को ग्वालियर के किले की रक्षा के लिए तैयार रहने का आदेश देती हैं।
सेनापति तात्या टोपे भी मंच पर आते हैं। लक्ष्मीबाई उनसे व्यंग्यपूर्ण लहजे में पूछती हैं कि क्या अब भी वे विलासिता से बाहर निकलेंगे। अंततः तात्या टोपे पूरी तरह से युद्ध के लिए तैयार होने की प्रतिज्ञा करते हैं। लक्ष्मीबाई भी संकल्प लेती हैं कि वे रणभूमि में अंतिम दम तक लड़ेगीं।
अंत में, लक्ष्मीबाई, जूही और मुंदर “हर हर महादेव” का उद्घोष करती हैं और संकल्प लेती हैं कि वे या तो स्वराज्य प्राप्त करेंगी या उसके लिए बलिदान देंगी। नाटक का समापन भगवद्गीता के श्लोकों के साथ होता है, जो बलिदान और कर्तव्य का संदेश देता है।
प्रश्न –
- लक्ष्मीबाई किससे बातें कर रही हैं?
उत्तर – लक्ष्मीबाई अपनी सखी जूही, मुंदर और सेनानायक तात्या से बातें कर रही हैं।
- उन्हें किस बात की चिंता सता रही है?
उत्तर – लक्ष्मीबाई को इस बात की चिंता सता रही है कि उनके पास शक्ति और संसाधन होते हुए भी अनुशासन की कमी और राव साहब जैसे लोगों की विलासिता के कारण स्वराज्य प्राप्ति कठिन हो रही है।
- लक्ष्मीबाई तात्या से क्यों नाराज़ थीं? तात्या ने उन्हें क्या आश्वासन दिया?
उत्तर – लक्ष्मीबाई तात्या से इसलिए नाराज़ थीं क्योंकि वे राव साहब के प्रति स्वामिभक्ति निभाते हुए विलासिता के वातावरण को रोक नहीं पाए। तात्या ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे पूरी निष्ठा से युद्ध करेंगे और यदि विजय न मिली, तो सेना और सामग्री को सुरक्षित निकाल लेंगे।
- लक्ष्मीबाई साहसी नारी थीं? उदाहरण के द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर – लक्ष्मीबाई अत्यंत साहसी नारी थीं। उन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष किया और कहा कि वे अपनी झाँसी नहीं देंगी। उन्होंने अंतिम युद्ध में वीरतापूर्वक भाग लिया और यहाँ तक कि अपने सैनिकों के साथ समान रूप से रणभूमि में डटी रहीं। जब उन्होंने देखा कि स्थिति प्रतिकूल हो रही है, तब भी वे निराश नहीं हुईं और अंतिम समय तक लड़ती रहीं और अंतत: वीरगति को प्राप्त हुईं।
(अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
- मार्ग में हिमालय के अड़ने, डरावनी लहरों के थपेड़े मारने, नाविकों के सो जाने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – इन प्रतीकों के माध्यम से रानी लक्ष्मीबाई ने स्वराज्य प्राप्ति में आ रही कठिनाइयों को व्यक्त किया है। ‘हिमालय के अड़ने’ का अर्थ है कठिनाइयों का पहाड़ खड़ा हो जाना, ‘डरावनी लहरों के थपेड़े’ स्वराज्य प्राप्ति में आने वाले संघर्षों और विपत्तियों का संकेत देते हैं, और ‘नाविकों के सो जाने’ से तात्पर्य है अपने ही लोगों की निष्क्रियता और उदासीनता, जो स्वराज्य की राह में बाधा बन रही थी।
- यह एकांकी सुनने के बाद उस समय की किन परिस्थितियों का पता चलता है?
उत्तर – इस एकांकी से उस समय की राजनीतिक, सामाजिक और सैनिक परिस्थितियों का पता चलता है। रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में स्वराज्य की लड़ाई लड़ी जा रही थी, लेकिन भारतीय पक्ष में अनुशासन की कमी, आपसी मतभेद और विलासिता में लिप्तता जैसी समस्याएँ थीं। अंग्रेज़ों की सेना लगातार आगे बढ़ रही थी, जबकि भारतीय पक्ष में कुछ लोग संघर्ष के बजाय आराम और ऐश्वर्य में डूबे थे। इसके बावजूद, रानी लक्ष्मीबाई और उनके कुछ वीर सहयोगी देश के लिए संघर्ष करने को पूरी तरह तत्पर थे।
(आ) पाठ पढ़िए। प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
- तात्या कौन थे?
उत्तर – तात्या रानी लक्ष्मीबाई के सेनापति थे, जो स्वराज्य की लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। वे वीर, स्वामिभक्त और योग्य सैनिक थे, लेकिन अपने स्वामी राव साहब के प्रति अत्यधिक निष्ठावान होने के कारण कई बार सही निर्णय लेने में असमर्थ रहे।
- बाबा गंगादास ने रानी लक्ष्मीबाई से क्या कहा था?
उत्तर – बाबा गंगादास ने रानी लक्ष्मीबाई से कहा था कि जब तक समाज में छुआछूत और ऊँच-नीच का भेद नहीं मिटता, जब तक लोग विलासप्रियता छोड़कर जनसेवक नहीं बनते, तब तक स्वराज्य की प्राप्ति संभव नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वराज्य केवल सेवा, तपस्या और बलिदान से ही मिल सकता है।
- रानी लक्ष्मीबाई ने क्या प्रतिज्ञा की थी?
उत्तर – रानी लक्ष्मीबाई ने प्रतिज्ञा की थी कि वे अपनी झाँसी किसी भी कीमत पर अंग्रेज़ों को नहीं देंगी। भले ही परिस्थितियाँ प्रतिकूल हो जाएँ, लेकिन वे अंतिम क्षण तक अपने राज्य और स्वराज्य की रक्षा के लिए संघर्ष करेंगी।
- जूही तात्या का पक्ष क्यों लेती है?
उत्तर – जूही तात्या का पक्ष इसलिए लेती है क्योंकि वह उन्हें स्वामिभक्त मानती है। वह जानती है कि तात्या केवल राव साहब के आदेशों का पालन कर रहे हैं और व्यक्तिगत रूप से विलासिता में लिप्त नहीं हैं। साथ ही, जूही का तात्या से व्यक्तिगत स्नेह भी था, लेकिन उससे अधिक वह देशभक्त थी और स्वराज्य के लिए किसी भी त्याग के लिए तैयार थी।
(इ) पाठ के आधार पर आशय स्पष्ट कीजिए।
- स्वराज्य प्राप्ति से बढ़कर है स्वराज्य की स्थापना के लिए भूमि तैयार करना, स्वराज्य की नींव का पत्थर बनना।
उत्तर – इस कथन का आशय यह है कि केवल स्वराज्य प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सशक्त और स्थायी बनाने के लिए सही सामाजिक और राजनीतिक आधार तैयार करना अधिक महत्त्वपूर्ण है। यह संभव है कि हम स्वराज्य प्राप्त न कर सकें पर हमारा बलिदान और हमारा साहस आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सबक होगा और वे भी स्वराज्य प्राप्त करने के लिए क्रांति करेंगे। पर ऐसा तभी संभव है जब समाज में एकता, त्याग और बलिदान की भावना होगी। इसलिए, स्वराज्य की नींव मजबूत करने के लिए लोगों को आत्मबलिदान और सेवा के लिए तैयार रहना चाहिए। ऐसा होने पर ही हमारे शत्रुओं को हमारे देश से खदेड़ा जा सकेगा।
- शंकाएँ अविश्वास पैदा करेंगी और उस अविश्वास से उत्पन्न निराशा को दूर करने के लिए पायल की झंकार और भी झनक उठेगी।
उत्तर – इस कथन का तात्पर्य यह है कि जब लोगों के बीच शंकाएँ और अविश्वास बढ़ते हैं, तो वे अपने कर्तव्यों से भटकने लगते हैं। जब सच्चे उद्देश्य को लेकर संदेह उत्पन्न होते हैं, तो निराशा बढ़ती है और इस निराशा को दूर करने के लिए लोग विलासिता और मनोरंजन में डूब जाते हैं। इससे समाज और राष्ट्र कमजोर होता है और स्वराज्य का सपना अधूरा रह जाता है। हर व्यक्तों को चाहिए कि वह अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्पित रहे और चाहे मार्ग में कितनी ही विपत्तियाँ क्यों न आ जाएँ कभी भी अपने लक्ष्य से न भटके।
(ई) गद्यांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
भारत का संविधान सभी महिलाओं को समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14), राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करने (अनुच्छेद 15 (1)), अवसर की समानता (अनुच्छेद 16), और समान कार्य के लिए समान वेतन (अनुच्छेद 39 (घ)) का आश्वासन देता है। इसके अतिरिक्त यह महिलाओं और बच्चों के पक्ष में राज्य के द्वारा विशेष प्रावधान (अनुच्छेद 15 (3)) बनाने की अनुमति देता है। महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली अपमानजनक प्रथाओं का उन्मूलन (अनुच्छेद 51 (अ), (ई)) के भी अधिकार देता है। इन सबका पालन करना हमारा कर्तव्य है। इसी प्रकार POCSO -2012 बच्चों को लैंगिक उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया है।
- यहाँ किसके बारे में बताया गया है?
उत्तर – यहाँ भारतीय संविधान द्वारा महिलाओं के समानता के अधिकार के बारे में बताया गया है।
- अनुच्छेद 15 (1) में क्या बताया गया है?
उत्तर – अनुच्छेद 15 (1) में यह बताया गया है कि राज्य सरकार द्वारा महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता।
- किस अनुच्छेद के अनुसार महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन की बात कही गई है?
उत्तर – अनुच्छेद (39 (घ)) के अनुसार महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन की बात कही गई है।
- POCSO-2012 के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) भारत में बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न और अश्लील सामग्री से सुरक्षा देने के लिए बनाया गया कानून है। यह अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को विशेष कानूनी संरक्षण प्रदान करता है और मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की व्यवस्था करता है।
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
(अ) एकांकी के आधार पर बताइए कि ‘स्वराज्य की नींव’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – एकांकी ‘स्वराज्य की नींव’ में ‘नींव’ का अर्थ हुआ ‘बुनियाद’ किसी भवन की मजबूती के लिए उसकी बुनियाद का मजबूत होना परम आवश्यक है। उसी तरह स्वराज्य के लिए भी स्वराज्य की नींव का मजबूत होना अति आवश्यक है। रानी लक्ष्मीबाई और उनके साथियों का बलिदान केवल तत्काल स्वतंत्रता के लिए नहीं था, बल्कि भविष्य में एक सशक्त और संगठित राष्ट्र के निर्माण के लिए था। बाबा गंगादास के अनुसार, स्वराज्य तभी टिक सकता है जब समाज ऊँच-नीच और भेदभाव को मिटाकर सेवा, तपस्या और बलिदान के मूल्यों को अपनाए। इस प्रकार, यह एकांकी हमें यह संदेश देती है कि सच्चे स्वराज्य की स्थापना के लिए लोगों में अनुशासन, एकता और त्याग की भावना आवश्यक है।
(आ) वीरांगना लक्ष्मीबाई देशभक्ति की एक अद्भुत मिसाल थीं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – वीरांगना लक्ष्मीबाई देशभक्ति की अद्भुत मिसाल थीं, क्योंकि उन्होंने स्वराज्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। एकांकी ‘स्वराज्य की नींव’ में उनका साहस, संकल्प और संघर्ष स्पष्ट रूप से दिखता है। उन्होंने कहा “मैं अपनी झाँसी किसी को नहीं दूँगी” और अंतिम क्षण तक वह अपने शत्रुओं से वीरतापूर्वक लड़ीं। उन्होंने न केवल युद्ध किया, बल्कि समाज में बदलाव की आवश्यकता को भी समझा। विलासिता और अनुशासनहीनता के विरोध में उन्होंने स्वराज्य की मजबूत नींव रखने पर जोर दिया। उनका जीवन बलिदान, त्याग और देशभक्ति का प्रतीक है।
(इ) ‘स्वराज्य की नींव’ एकांकी को अपने शब्दों में कहानी के रूप में लिखिए।
उत्तर – 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने अपने अद्वितीय साहस और वीरता का परिचय दिया। अंग्रेजों से लोहा लेते हुए उन्होंने झाँसी, कालपी और ग्वालियर को स्वतंत्र कराने का प्रयास किया, लेकिन हर बार उनकी मंज़िल कुछ दूर रह जाती थी।
युद्धभूमि के पास उनके शिविर में, रानी लक्ष्मीबाई अपनी सखी जूही के साथ चर्चा कर रही थीं। वे गहरी चिंता में थीं कि कैसे स्वराज्य प्राप्ति का मार्ग कठिन होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि समाज में जब तक छुआछूत और ऊँच-नीच का भेदभाव रहेगा, विलासप्रियता और अनुशासनहीनता बनी रहेगी, तब तक सच्चा स्वराज्य संभव नहीं होगा।
तभी उनकी एक और सखी मुंदर वहाँ आती है और राव साहब तथा अन्य नेताओं की विलासिता की निंदा करती है। इस पर जूही कहती है कि वे भले ही तात्या टोपे से प्रेम करती हैं, लेकिन राष्ट्र के लिए वे किसी भी रिश्ते का त्याग कर सकती हैं। रानी लक्ष्मीबाई यह सुनकर अपनी सेनानियों के साहस की सराहना करती हैं और स्वराज्य की नींव मजबूत करने की बात कहती हैं।
इसी बीच एक संदेशवाहक रघुनाथराव सूचना लाता है कि अंग्रेज जनरल रोज़ की सेना ने मुरार में पेशवा की सेना को पराजित कर दिया है। यह सुनकर रानी को दुख होता है, लेकिन वे हार नहीं मानतीं। तभी तात्या टोपे भी आते हैं और रानी के कटु शब्द सुनकर लज्जित होते हैं। वे अपनी भूल स्वीकार करते हैं और भविष्य में केवल स्वराज्य के लिए लड़ने का संकल्प लेते हैं।
इसके बाद युद्ध की तैयारियाँ तेज़ हो जाती हैं। रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, जूही और मुंदर सभी रणभूमि में उतरने के लिए कमर कस लेते हैं। अंत में, रानी गर्जना करती हैं— “या तो हम स्वराज्य प्राप्त करेंगे या फिर इसकी नींव का पत्थर बनेंगे!”
यह एकांकी रानी लक्ष्मीबाई की देशभक्ति, बलिदान और अद्वितीय साहस को दर्शाती है, जो स्वराज्य की सशक्त नींव रखने के लिए संघर्षरत थीं।
(ई) साहस, वीरता, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता के महत्त्व पर दो-दो वाक्य लिखिए।
उत्तर – साहस –
साहस हमें कठिन परिस्थितियों का सामना करने और विपरीत हालात में भी डटे रहने की शक्ति देता है।
रानी लक्ष्मीबाई ने अपने साहस से अंग्रेजों का सामना किया और मातृभूमि के लिए अपना बलिदान दिया।
वीरता-
वीरता केवल युद्ध में ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
जो व्यक्ति वीर होते हैं, वे किसी भी चुनौती से घबराते नहीं, बल्कि डटकर मुकाबला करते हैं।
आत्मविश्वास –
आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है, जो हमें अपने निर्णयों पर अडिग रहने की शक्ति देता है।
यदि रानी लक्ष्मीबाई के भीतर आत्मविश्वास न होता, तो वे अंग्रेजों के विरुद्ध इतनी वीरतापूर्वक संघर्ष न कर पातीं।
आत्मनिर्भरता –
आत्मनिर्भर व्यक्ति अपने बल पर आगे बढ़ता है और दूसरों पर निर्भर नहीं रहता।
लक्ष्मीबाई ने अपने साहस और आत्मनिर्भरता से यह साबित किया कि सशक्त नारी स्वयं अपने भाग्य की रचयिता होती है।
भाषा की बात
(अ) सूचना पढ़िए। वाक्य प्रयोग कीजिए।
- नारी, मित्र, प्रेम (पर्याय शब्द लिखिए।)
नारी – महिला, स्त्री, अबला, कामिनी
मित्र – सखा, दोस्त, साथी
प्रेम – स्नेह, प्यार, अनुराग
- असफलता, विश्वास (विलोम शब्द लिखिए।)
असफलता –सफलता
विश्वास – अविश्वास
- शंका, क़िला, सूचना (वचन बदलिए।)
शंकाएँ
क़िले
सूचनाएँ
(आ) सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए।
- स्वराज्य, विनम्र (उपसर्ग पहचानिए।)
स्वराज्य = स्व + राज्य
विनम्र = वि + नम्र
- वीरता, ऐतिहासिक (प्रत्यय पहचानिए।)
वीरता = वीर + ता
ऐतिहासिक = इतिहास + इक
(इ) उदाहरण देखिए। उसके अनुसार वाक्य बदलिए।
उदाहरण : राजू पुस्तक पढ़ता है।
राजू से पुस्तक पढ़ी जाती है।
- लड़का भोजन करता है।
उत्तर – लड़के द्वारा भोजन किया जाता है।
- रानी ने आज्ञा दी।
उत्तर – रानी द्वारा आज्ञा दी गई।
- लक्ष्मीबाई ने जूही से कहा।
उत्तर – लक्ष्मीबाई द्वारा जूही से कहलवाया गया।
(ई) रेखांकित शब्दों के स्थान पर नीचे दिये गये एक-एक शब्द का प्रयोग कर वाक्य बनाइए।
कक्षा में एक लड़का आया। सब लड़के कक्षा में पहुँच चुके थे। लड़कों में अनुशासन बना था।
- लड़की – सड़क पर एक लड़की खड़ी है।
2 छात्र – छात्र कक्षा में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं।
- छात्रा – हमारी कक्षा की छात्रा इंदुमती बहुत मेधावी है।
- बालक – बालक मैदान में खेल रहे हैं।
- बालिका – बालिका अपने घर के आँगन में बैठी चित्र बना रही है।
परियोजना कार्य
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में अतिरिक्त जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर – झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम वीरांगना थीं। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को काशी (वाराणसी) में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका (मनु) था। उनके पिता मोरोपंत तांबे और माता भागीरथीबाई थीं। लक्ष्मीबाई ने नाना साहेब और तात्या टोपे के साथ बचपन में ही युद्धकला सीखी थी। सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ, और वे झाँसी की रानी बनीं। 1851 में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन कुछ ही महीनों बाद उनका पुत्र चल बसा। इसके बाद राजा गंगाधर राव ने दामोदर राव को गोद लिया, लेकिन 1853 में राजा का भी निधन हो गया। अंग्रेजों ने ‘हड़प नीति’ (Doctrine of Lapse) के तहत झाँसी को अपने अधिकार में लेने का प्रयास किया, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने नारा दिया— “मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी।”
1857 की क्रांति में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाला और वीरतापूर्वक युद्ध किया। उन्होंने कालपी और ग्वालियर में तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजों से संघर्ष किया। 17 जून 1858 को कोटा की सराय में अंग्रेजों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं। उनकी बहादुरी, आत्मसम्मान और देशभक्ति की मिसाल आज भी लोगों को प्रेरित करती है।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए –
प्रश्न – लक्ष्मीबाई युद्धभूमि में जाने के लिए क्यों तैयार हो रही हैं?
उत्तर – वे स्वराज्य की रक्षा और स्थापना के लिए अंतिम संघर्ष करना चाहती हैं।
प्रश्न – तात्या ने महारानी से क्या वादा किया?
उत्तर – तात्या ने वादा किया कि वे युद्ध में पूरी निष्ठा से लड़ेंगे और सेना को सुरक्षित निकाल लेंगे।
प्रश्न – जूही ने अपने स्वामी के प्रति कैसी निष्ठा दिखाई?
उत्तर – जूही ने कहा कि वह तात्या से भी अधिक देश को अपना स्वामी मानती है और उसके लिए सब कुछ त्याग सकती है।
प्रश्न – लक्ष्मीबाई को अपने जीवन के किस अंतिम युद्ध का पूर्वाभास हो रहा था?
उत्तर – उन्हें लग रहा था कि यह उनका अंतिम युद्ध होगा, परंतु वीरता कलंकित नहीं होनी चाहिए।
प्रश्न – लक्ष्मीबाई ने युद्ध के लिए कौन-सा उद्घोष किया?
उत्तर – “हर-हर महादेव!”
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो से तीन पंक्तियों में दीजिए –
प्रश्न – लक्ष्मीबाई राव साहब की विलासिता पर क्यों नाराज़ थीं?
उत्तर – वे देख रही थीं कि देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष चल रहा है, लेकिन राव साहब जैसे लोग ऐशो-आराम में मग्न हैं, जिससे स्वराज्य की प्राप्ति कठिन हो रही है।
प्रश्न – मुंदर और जूही युद्ध के समय क्या भूमिकाएँ निभाने के लिए तैयार थीं?
उत्तर – मुंदर ने कहा कि वह महारानी के साथ रहेगी, जबकि जूही ने तोपखाना सँभालने का निश्चय किया।
प्रश्न – लक्ष्मीबाई को किस बात की चिंता थी, भले ही उन्हें अपनी हार-जीत की परवाह नहीं थी?
उत्तर – उन्हें केवल इस बात की चिंता थी कि उनके सैनिकों की वीरता कलंकित न हो और स्वराज्य की नींव मजबूत बनी रहे।