- हाथों में क्या रचनेवाली है?
उत्तर – हाथों में मेहंदी रचनेवाली है।
- इस तरह के गीतों को क्या कहा जाता है?
उत्तर – इस तरह के गीतों को लोकगीत कहा जाता है।
- किन-किन संदर्भों में लोकगीत गाए जाते हैं?
उत्तर – विवाह, फसलों की कटाई, सावन के मौसम में और पर्व त्योहार के संदर्भ में लोकगीत गाए जाते हैं।
उद्देश्य
निबंध विधा से परिचित कराते हुए निबंध लिखने की प्रेरणा देना। लोकगीत लिखने के लिए प्रेरित करना इसका उद्देश्य है।
विधा विशेष
‘लोकगीत’ निबंध पाठ है। ‘निबंध’ का अर्थ है- ‘बाँधना’। सुंदर और उचित शब्दों के द्वारा भावों की प्रस्तुति ही निबंध है।
भगवतशरण उपाध्याय – लेखक परिचय
भगवतशरण उपाध्याय हिंदी साहित्य के सुपरिचित रचनाकार हैं। इनका जन्म सन् 1910 में हुआ। इन्होंने कहानी, कविता, रिपोर्ताज, निबंध, बाल-साहित्य में अपनी विशेष छाप छोड़ी है। विश्व साहित्य की रूपरेखा, कालिदास का भारत, ठूँठा आम, गंगा गोदावरी आदि इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
विषय प्रवेश –
हमारी संस्कृति में लोकगीत और संगीत का अटूट संबंध है। मनोरंजन की दुनिया में आज भी लोकगीतों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गीत-संगीत के बिना हमारा मन रसा से नीरस हो जाता है, प्रस्तुत निबंध में भारतीय लोकगीत का वर्णन बड़े ही सुंदर ढंग से किया गया है।
लोकगीत
लोकगीत अपनी लोच, ताज़गी और लोकप्रियता में शास्त्रीय संगीत से भिन्न हैं। लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं। घर, गाँव और नगर की जनता के गीत हैं ये। इनके लिए साधना की ज़रूरत नहीं होती। त्यौहारों और विशेष अवसरों पर ये गाए जाते हैं। सदा से ये गाए जाते रहे हैं और इनके रचनेवाले भी अधिकतर गाँव के लोग ही हैं। स्त्रियों ने भी इनकी रचना में विशेष भाग लिया है। ये गीत बाजों की मदद के बिना ही या साधारण ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाए जाते हैं।
एक समय था जब शास्त्रीय संगीत के सामने इनको हेय समझा जाता था। अभी हाल तक इनकी बड़ी उपेक्षा की जाती थी। पर इधर साधारण जनता की ओर जो लोगों की नज़र फिरी है तो साहित्य और कला के क्षेत्र में भी परिवर्तन हुआ है। अनेक लोगों ने विविध बोलियों के लोक-साहित्य और लोकगीतों के संग्रह पर कमर बाँधी है और इस प्रकार के अनेक संग्रह अब तक प्रकाशित हो गए हैं।
लोकगीतों के कई प्रकार हैं। इनका एक प्रकार तो बड़ा ही ओजस्वी और सजीव है। यह इस देश के आदिवासियों का संगीत है। मध्य प्रदेश, दक्कन, छोटा नागपुर में गोंड-खांड, भील- संथाल आदि फैले हुए हैं। इनके गीत और नाच अधिकतर साथ-साथ और बड़े-बड़े दलों में गाये और नाचे जाते हैं। बीस-बीस, तीस-तीस आदमियों और औरतों के दल एक साथ या एक-दूसरे के ज़वाब में गाते हैं, दिशाएँ गूँज उठती हैं।
इनकी भाषा के संबंध में कहा जा चुका है कि ये सभी लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाये जाते हैं। इसी कारण ये बड़े आह्लादकर और आनंददायक होते हैं। राग तो इन गीतों के आकर्षक होते ही हैं, इनकी समझी जा सकने वाली भाषा भी इनकी सफलता का कारण है।
अनंत संख्या अपने देश में स्त्रियों के गीतों की है। हैं तो ये गीत भी लोकगीत ही, पर अधिकतर इन्हें औरतें ही गाती हैं। इन्हें सिरजती भी अधिकतर वही हैं। वैसे मर्द रचने वालों या गाने वालों की भी कमी नहीं है पर इन गीतों का संबंध विशेषतः स्त्री से हैं। इस दृष्टि से भारत इस दिशा में सभी देशों से भिन्न है क्योंकि संसार के अन्य देशों में स्त्रियों के अपने गीत मर्दों या जनगीतों से अलग और भिन्न नहीं हैं, मिले-जुले ही हैं।
एक विशेष बात यह है कि नारियों के गाने साधारणतः अकेले नहीं गाए जाते हैं, दल बाँधकर गाए जाते हैं। अनेक कंठ एक साथ फूटते हैं यद्यपि अधिकतर उनमें मेल नहीं होता, फिर भी त्यौहारों और शुभ अवसरों पर वे बहुत ही भले गाते लगते हैं। गाँवों और नगरों में गायिकाएँ भी होती हैं जो विवाह, जन्म आदि के अवसरों पर गाने के लिए बुला ली जाती हैं। सभी ऋतुओं में स्त्रियाँ उल्लासित होकर दल बाँधकर गाती हैं। पर होली, बरसात की कजरी आदि तो उनकी अपनी चीज़ है, जो सुनते ही बनती है। पूरब की बोलियों में अधिकतर मैथिल – कोकिल विद्यापति के गीत गाए जाते हैं। पर सारे देश के कश्मीर से कन्याकुमारी तक और काठियावाड़ – गुजरात – राजस्थान से उड़ीसा – आंध्र तक अपने-अपने विद्यापति हैं।
स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं। अधिकतर उनके गाने के साथ नाच का भी पुट होता है। गुजरात का एक प्रकार का दलीय गायन ‘गरबा’ है जिसे विशेष विधि से घेरे में घूम-घूमकर औरतें गाती हैं। साथ ही लकड़ियाँ भी बजाती जाती हैं जो बाजे का काम करती हैं। इसमें नाच-गान साथ-साथ चलते हैं। वस्तुतः यह नाच ही है। सभी प्रांतों में यह लोकप्रिय हो चला है। इसी प्रकार होली के अवसर पर ब्रज में रसिया चलता है जिसे दल के दल लोग गाते हैं, स्त्रियाँ विशेष तौर पर।
गाँव के गीतों के वास्तव में अनंत प्रकार हैं। जीवन जहाँ इठला-इठलाकर लहराता है, वहाँ भला आनंद के स्रोतों की कमी हो सकती है? उद्दाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने प्रतीक हैं।
– भगवतशरण उपाध्याय के निबंध पर आधारित
हिंदी शब्द | हिंदी अर्थ | तेलुगु अर्थ | अंग्रेज़ी अर्थ |
लोकगीत | जनसंगीत, ग्रामीण गीत | జనసంగీతం, గ్రామీణ పాటలు | Folk song |
लोच | लचक, कोमलता | సాగు, మృదుత్వం | Flexibility |
ताज़गी | नई उमंग, स्फूर्ति | తాజాదనం, ఉల్లాసం | Freshness |
लोकप्रियता | जनप्रियता, प्रसिद्धि | ప్రజాదరణ, ఖ్యాతి | Popularity |
शास्त्रीय | पारंपरिक, शास्त्र आधारित | శాస్త్రీయ, సంప్రదాయ | Classical |
साधना | अभ्यास, तपस्या | సాధన, సాధన | Practice |
त्यौहार | पर्व, उत्सव | పండుగ, ఉత్సవం | Festival |
अवसर | मौका, स्थिति | అవకాశం, సందర్భం | Occasion |
रचना | निर्माण, सृजन | నిర్మాణం, సృష్టి | Creation |
बाजा | वाद्ययंत्र | వాయిద్యం | Musical Instrument |
मदद | सहायता, सहयोग | సహాయం, సహకారం | Help |
हेय | तुच्छ, छोटा | తక్కువ, అణచివేయబడిన | Inferior |
उपेक्षा | अनदेखी, अवहेलना | నిర్లక్ష్యం, తక్కువగా చూడడం | Neglect |
संग्रह | संकलन, एकत्रीकरण | సేకరణ, సంగ్రహం | Collection |
बोलियाँ | भाषाएँ, उपभाषाएँ | భాషలు, ఉపభాషలు | Dialects |
आनंददायक | सुखद, हर्षदायक | ఆనందకరమైన, సంతోషదాయకం | Pleasurable |
आकर्षक | मनमोहक, सुंदर | ఆకర్షణీయమైన, అందమైన | Attractive |
संख्या | गिनती, मात्रा | సంఖ్య, పరిమాణం | Number |
उल्लास | खुशी, उमंग | ఆనందం, ఉల్లాసం | Joy |
विशेष | खास, विशिष्ट | ప్రత్యేక, విశిష్ట | Special |
उल्लासित | आनंदित, प्रसन्न | ఆనందంగా, సంతోషంగా | Cheerful |
लोकप्रिय | प्रसिद्ध, जनप्रिय | ప్రజాదరణ పొందిన, ప్రసిద్ధ | Popular |
परंपरा | रिवाज, रीति | సంప్రదాయం, ఆచారం | Tradition |
घेरे | वृत, चक्र | వలయం, చక్రం | Circle |
प्रतीक | चिह्न, संकेत | ప్రతీక, సూచిక | Symbol |
पाठ का सार –
लोकगीत अपनी सरलता, ताजगी और लोकप्रियता के कारण शास्त्रीय संगीत से अलग होते हैं। ये सीधे जनता के गीत होते हैं, जिन्हें किसी विशेष साधना की आवश्यकता नहीं होती। मुख्य रूप से त्योहारों और विशेष अवसरों पर गाए जाने वाले ये गीत प्राचीन काल से प्रचलित हैं और अधिकतर ग्रामीण लोगों द्वारा रचे गए हैं। स्त्रियों ने भी लोकगीतों के सृजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पहले लोकगीतों को शास्त्रीय संगीत की तुलना में निम्न दर्जा दिया जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में इनका महत्त्व बढ़ा है। विभिन्न बोलियों में लोकगीतों का संग्रह कर उन्हें संरक्षित किया जा रहा है। लोकगीतों के कई प्रकार होते हैं, जिनमें आदिवासी गीत विशेष रूप से प्रभावशाली होते हैं। गोंड, भील, संथाल आदि जनजातियों के गीत बड़े समूहों में गाए जाते हैं, जिससे पूरा वातावरण संगीतमय हो उठता है।
इन गीतों की भाषा सरल और सहज होती है, जिससे ये लोगों के हृदय को छूते हैं। भारत में स्त्रियों के गीतों की भी अनगिनत श्रेणियाँ हैं, जिन्हें मुख्यतः महिलाएँ ही गाती और रचती हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत में स्त्रियों के गीत विशिष्ट रूप से अलग होते हैं। ये गीत समूह में गाए जाते हैं और इनमें ढोलक, करताल आदि वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है। विभिन्न प्रदेशों में लोकगीतों की अलग-अलग परंपराएँ हैं, जैसे गुजरात का गरबा, ब्रज का रसिया, और पूरब में कजरी। इन गीतों में नृत्य और संगीत का अद्भुत समावेश होता है, जो इन्हें और भी मनोरंजक बनाता है। लोकगीत केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं, बल्कि ये जनजीवन की संस्कृति, उत्साह और उत्सवधर्मिता के प्रतीक हैं।
प्रश्न
- लोकगीत के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – लोकगीत जनमानस के संगीत हैं, जो सरल, सहज और हृदयस्पर्शी होते हैं। ये गाँवों और लोकसंस्कृति से जुड़े होते हैं और त्योहारों, विवाह व विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं। अधिकतर लोकगीत स्त्रियों द्वारा रचे और गाए जाते हैं। ये बिना साधना के गाए जाते हैं और ढोलक, करताल, बाँसुरी आदि वाद्ययंत्रों के साथ गूंजते हैं।
- लोकगीत और संगीत का क्या संबंध है?
उत्तर – लोकगीत और संगीत का घनिष्ठ संबंध है क्योंकि लोकगीत संगीत का ही एक सहज और प्राकृतिक रूप हैं। ये किसी विशेष साधना के बिना, जनमानस द्वारा गाए जाते हैं और समाज की भावनाओं, परंपराओं व संस्कृति को अभिव्यक्त करते हैं। लोकगीतों में संगीत की मधुरता होती है, जो ढोलक, करताल, बाँसुरी जैसे साधारण वाद्ययंत्रों के साथ गाए जाते हैं, जिससे वे अधिक आकर्षक और लोकप्रिय बनते हैं।
- स्त्रियों के लोकगीत कैसे होते हैं?
उत्तर – स्त्रियों के लोकगीत भावनात्मक, सरल और सामाजिक मान्यताओं से जुड़े होते हैं। वे विवाह, जन्म, त्योहारों और ऋतु परिवर्तन के अवसरों पर गाए जाते हैं। अधिकतर ये समूह में ढोलक, करताल आदि के साथ गाए जाते हैं। गरबा, कजरी, सोहर, बिहाग आदि स्त्रियों के प्रमुख लोकगीत हैं, जो उनकी भावनाओं, खुशियों और दुखों को अभिव्यक्त करते हैं।
- लोकगीत किसके प्रतीक हैं?
उत्तर – लोकगीत जनजीवन, संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक भावनाओं के प्रतीक हैं। ये आनंद, उल्लास, प्रेम, विरह, संघर्ष और लोक आस्थाओं को व्यक्त करते हैं। विभिन्न अवसरों, त्योहारों और जीवन के महत्त्वपूर्ण क्षणों में गाए जाने वाले ये गीत समाज की सामूहिक अभिव्यक्ति और लोकसंस्कृति की पहचान होते हैं।
अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया
(अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
- लोकगीत ग्रामीण जनता का मनोरंजक साधन है। कैसे?
उत्तर – लोकगीत ग्रामीण जनता के लिए प्रमुख मनोरंजन का साधन हैं क्योंकि वे उनके जीवन, संस्कृति और परंपराओं से सीधे जुड़े होते हैं। ये गीत त्यौहारों, विवाह, जन्म, फसल कटाई और अन्य अवसरों पर सामूहिक रूप से गाए जाते हैं, जिससे सामूहिक आनंद और उत्साह बढ़ता है। बिना किसी विशेष प्रशिक्षण के, लोग इन्हें आसानी से गा सकते हैं। ढोलक, करताल, मंजीरा जैसे साधारण वाद्ययंत्र इनके आकर्षण को बढ़ाते हैं। नृत्य और संगीत के संग लोकगीत ग्रामीण समाज में उल्लास और मेल-जोल का माध्यम बनते हैं।
- हिंदी या अपनी मातृभाषा का कोई लोकगीत सुनाइए।
उत्तर – मैं आपको भोजपुरी का एक प्रसिद्ध हिंदी लोकगीत “चलत मुसाफिर मोह लियो रे पिंजरे वाली मुनिया” के बोल सुनाता हूँ, जो उत्तर भारतीय लोकसंस्कृति में बहुत लोकप्रिय है। यह गाँवों में विशेष रूप से शादी-ब्याह और मेलों में गाया जाता है।
चलत मुसाफिर मोह लियो रे, पिंजरे वाली मुनिया,
अमरैया के डारों में, झूलेली झूलनिया…
(आ) वाक्य उचित क्रम में लिखिए।
- लोकगीत हैं संगीत सीधे जनता के।
उत्तर – लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं।
- मदद ढोलक की से स्त्रियाँ हैं गाती।
उत्तर – स्त्रियाँ ढोलक की मदद से गाती हैं।
(इ) दिया गया गद्यांश पढ़िए और दो प्रश्न बनाइए।
गाँव के गीतों के वास्तव में अनंत प्रकार हैं। जीवन जहाँ इठला-इठलाकर लहराता है, वहाँ भला आनंद के स्रोतों की कमी हो सकती है? उद्दाम जीवन के ही वहाँ के अनंत संख्यक गाने प्रतीक हैं।
प्रश्न 01- गाँव के गीतों के कितने प्रकार हैं?
प्रश्न 02- कहाँ आनंद के स्रोतों की कमी नहीं हो सकती है?
(ई) पंक्तियाँ पढ़िये और प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
अब आया है तेलंगाणा हमारा,
गाँव-गाँव विकास करेगा हमारा।
यहाँ के तालाब भरेंगे अब पानी से,
किसान करेंगे खेती खुशी से।
- यहाँ किस के विकास की बात है?
उत्तर – यहाँ तेलंगाणा के गाँव-गाँव के विकास की बात की गई है।
- किसानों की खुशी का कारण क्या है?
उत्तर – किसानों की खुशी का कारण है कि अब उन्हें सिंचाई करने के लिए उत्तम जल-व्यवस्था प्राप्त होगी।
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता
(अ) लोकगीतों की क्या विशेषता होती हैं?
उत्तर – लोकगीतों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं, जैसे –
जनता के गीत – ये सीधे जनता के संगीत होते हैं और गाँव, नगर तथा आम लोगों द्वारा गाए जाते हैं।
सरल और सहज – लोकगीतों की भाषा सरल, बोलचाल की होती है, जिससे आम लोग आसानी से समझ सकते हैं।
वाद्ययंत्रों की आवश्यकता नहीं – इन्हें बिना किसी विशेष वाद्ययंत्र के या ढोलक, झाँझ, करताल, बाँसुरी आदि की मदद से गाया जाता है।
विशेष अवसरों पर गायन – ये त्योहारों, विवाह, जन्म और अन्य शुभ अवसरों पर गाए जाते हैं।
स्त्रियों की भागीदारी – इन गीतों की रचना और गायन में स्त्रियों का विशेष योगदान होता है।
सामूहिकता का भाव – लोकगीत अधिकतर समूह में गाए जाते हैं, जिससे उल्लास और सामूहिकता की भावना बढ़ती है।
आनंददायक और भावपूर्ण – लोकगीतों की भाषा और धुनें आकर्षक होती हैं, जिससे वे हृदय को आनंदित कर देते हैं।
संस्कृति का प्रतीक – ये विभिन्न प्रदेशों की संस्कृति, परंपराओं और लोकजीवन को दर्शाते हैं।
विविधता – लोकगीतों के कई प्रकार होते हैं, जैसे आदिवासी गीत, विवाह गीत, कजरी, गरबा, रसिया आदि।
(आ) ‘लोकगीत’ पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – लोकगीत जनता के संगीत होते हैं, जो गाँवों और नगरों में विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं। ये सरल भाषा में होते हैं और इन्हें बिना किसी कठिन साधना के गाया जा सकता है। पहले लोकगीतों को शास्त्रीय संगीत से कमतर समझा जाता था, लेकिन अब इनका महत्त्व बढ़ा है। लोकगीतों के कई प्रकार होते हैं, जैसे आदिवासी गीत, विवाह गीत, कजरी, गरबा आदि। स्त्रियाँ लोकगीतों की रचना और गायन में विशेष भूमिका निभाती हैं। अधिकतर ये गीत समूह में गाए जाते हैं, जिससे उल्लास और सामूहिकता की भावना बढ़ती है। ये गीत लोकसंस्कृति, परंपराओं और भावनाओं को अभिव्यक्त करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम हैं।
(इ) अपने मनपसंद विषय पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर – नारी समानता का तात्पर्य महिलाओं को समाज में पुरुषों के समान अधिकार, अवसर और सम्मान देना है। यह विषय आज के युग में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि समाज की प्रगति तभी संभव है जब स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से विकास में योगदान दें। प्राचीन काल में महिलाओं को देवी का स्थान दिया जाता था, लेकिन समय के साथ उनके अधिकारों का ह्रास हुआ और वे कई सामाजिक बंधनों में जकड़ गईं। शिक्षा, रोजगार और निर्णय लेने की स्वतंत्रता से वे वंचित रहीं। परंतु आधुनिक युग में नारी सशक्तिकरण की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। शिक्षा के प्रसार और कानूनी सुधारों ने महिलाओं को अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया है। आज महिलाएँ विज्ञान, राजनीति, खेल, व्यवसाय, सेना और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर रही हैं।
हालाँकि, अभी भी लैंगिक भेदभाव, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा और कार्यस्थल पर असमानता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इसलिए, हमें महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और कानूनी अधिकारों को बढ़ावा देना होगा। नारी समानता सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि समाज की समृद्धि और विकास के लिए भी आवश्यक है। जब नारी सशक्त होगी, तभी परिवार, समाज और राष्ट्र प्रगति कर सकेगा। अतः हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम नारी समानता की दिशा में सदैव प्रयासरत रहेंगे।
(ई) लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की भावनाएँ हैं। अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – लोकगीतों में मुख्यतः ग्रामीण जनता की भावनाएँ व्यक्त होती हैं। ये गीत उनके जीवन, त्योहारों, परंपराओं, रीति-रिवाजों, प्रेम, विरह, सुख-दुख और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। लोकगीत सहज, सरल और क्षेत्रीय बोली या सामान्य जनभाषा में होते हैं, जिससे आम लोग इन्हें आसानी से समझ और गा सकते हैं। अधिकतर ये समूह में गाए जाते हैं, जिससे सामूहिकता और उल्लास की भावना उत्पन्न होती है। लोकगीत बिना किसी कठिन साधना के गाए जाते हैं और इनमें लोकजीवन की सजीव झलक मिलती है।
भाषा की बात
(अ) कोष्ठक में दी गई सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए।
- साधना, त्यौहार, देहात (पर्याय शब्द लिखिए।)
साधना – अभ्यास, तपस्या, प्रयास, रियाज़
त्यौहार – पर्व, उत्सव, समारोह
देहात – गाँव, ग्रामीण क्षेत्र, ग्राम्य क्षेत्र
- सजीव, परदेशी, शास्त्रीय (विलोम शब्द लिखिए।)
सजीव – निर्जीव
परदेशी – स्वदेशी
शास्त्रीय – लौकिक
(आ) सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए।
- गायक, कवि, लेखक (लिंग बदलिए।)
गायक – गायिका
कवि – कवयित्री
लेखक – लेखिका
- धर्म, मास, दिन, उत्साह (‘इक’ प्रत्यय जोड़कर लिखिए।)
धर्म + इक = धार्मिक
मास + इक = मासिक
दिन + इक = दैनिक
उत्साह + इक = औत्सहिक
(इ) इन्हें समझिए और अंतर स्पष्ट कीजिए।
- उपेक्षा- अपेक्षा 2. कृतज्ञ – कृतघ्न 3. बहार – बाहर 4. दावत-दवात
- उपेक्षा – (नजरअंदाज करना) – किसी चीज़ या व्यक्ति को महत्त्व न देना या अनदेखा करना।
अपेक्षा – (आशा/उम्मीद) – किसी चीज़ की चाह या उम्मीद रखना।
- कृतज्ञ – (आभारी) – जिसने उपकार को माना और उसका धन्यवाद किया।
कृतघ्न – (अहसान फरामोश) – जो उपकार को भूल जाए और धन्यवाद न करे।
- बहार – (ऋतु/सुंदरता) – प्राकृतिक सौंदर्य, वसंत ऋतु या आकर्षण।
बाहर – (बाहरी स्थान) – किसी स्थान के बाहर का क्षेत्र।
- दावत – (भोज/आमंत्रण) – किसी विशेष अवसर पर भोजन के लिए निमंत्रण।
दवात – (स्याही रखने का पात्र) – पुराने समय में लिखने के लिए स्याही रखने का बर्तन।
(ई) नीचे दिया गया उदाहरण समझिए। उसके अनुसार दिए गए वाक्य बदलिए।
स्त्रियों के द्वारा गीत- गाए जाते हैं। गाए जा रहे हैं। गाए जा रहे होंगे।
- गायक के द्वारा लोकगीत गाया जाता है।
गायक के द्वारा लोकगीत गाया जा रहा है।
गायक के द्वारा लोकगीत गाया जा रहा होगा।
- अध्यापक के द्वारा पाठ पढ़ाया जाता है।
अध्यापक के द्वारा पाठ पढ़ाया जा रहा है।
अध्यापक के द्वारा पाठ पढ़ाया जा रहा होगा।
ऊपर के उदाहरणों में कर्मवाच्य वाक्य हैं। इनके आधार पर पाठ में आए कर्त्तवाच्य, कर्मवाच्य वाक्य पहचानिए और उन्हें ऊपर तालिका में दिए गए उदाहरणों के अनुसार बदलिए-
- कर्तृवाच्य वाक्य: (जिसमें कर्ता प्रधान होता है)
लोकगीत सीधे जनता के संगीत हैं।
स्त्रियों ने इनकी रचना में विशेष भाग लिया है।
अनेक लोगों ने लोकगीतों के संग्रह पर कमर बाँधी है।
लोकगीत गाँवों और इलाकों की बोलियों में गाए जाते हैं।
महिलाएँ दल बाँधकर गाती हैं।
- कर्मवाच्य वाक्य: (जिसमें कर्म प्रधान होता है)
लोकगीतों को पहले शास्त्रीय संगीत से निम्न समझा जाता था।
लोकगीतों के कई प्रकारों को देखा जा सकता है।
विभिन्न बोलियों में लोकगीतों का संग्रह किया जा रहा है।
गरबा को सभी प्रांतों में लोकप्रिय बना दिया गया है।
विवाह, जन्म आदि अवसरों पर गायिकाओं को बुलाया जाता है।
परियोजना कार्य
किसी एक लोकगीत का संकलन कीजिए।
उत्तर – कजरी लोकगीत –
“काहे को ब्याही विदेश, ललना…”
काहे को ब्याही विदेश, ललना,
काहे को ब्याही विदेश?
असाड़ मास घर आ जइयो,
भीगें मोरी साड़ी, ललना,
काहे को ब्याही विदेश?
कजरवा बरसे सरसइयाँ,
नदिया किनारे मोरी ससुरारी,
बाबुल भेजो सजनवा के संदेसवा,
हम ना रहें अइसे अकेलवा…
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर –
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए-
प्रश्न 1 – लोकगीत क्या होते हैं?
उत्तर – लोकगीत वे गीत होते हैं जो ग्रामीण और आम जनता द्वारा गाए जाते हैं और किसी विशेष साधना की आवश्यकता नहीं होती।
प्रश्न 2 – लोकगीतों में मुख्य रूप से कौन से वाद्ययंत्र प्रयोग किए जाते हैं?
उत्तर – लोकगीतों में ढोलक, झांझ, करताल, बांसुरी आदि साधारण वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 3 – स्त्रियाँ लोकगीतों में क्या भूमिका निभाती हैं?
उत्तर – स्त्रियाँ लोकगीतों की रचना और गायन दोनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
प्रश्न 4 – लोकगीतों की भाषा कैसी होती है?
उत्तर – लोकगीतों की भाषा सरल, सहज और स्थानीय बोलियों में होती है।
प्रश्न 5 – गरबा क्या है?
उत्तर – गरबा गुजरात का एक पारंपरिक लोकनृत्य और गायन है, जिसमें महिलाएँ घेरा बनाकर गाती और नृत्य करती हैं।
प्रश्न 6 – लोकगीत किन अवसरों पर गाए जाते हैं?
उत्तर – लोकगीत त्योहारों, विवाह, जन्म, और अन्य विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं।
प्रश्न 7 – लोकगीतों का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर – लोकगीत मन को आनंदित करते हैं और सांस्कृतिक परंपराओं को सहेजने का कार्य करते हैं।
प्रश्न 8 – लोकगीतों को संरक्षित करने के लिए क्या किया जा रहा है?
उत्तर – लोकगीतों के संग्रह और प्रकाशन के माध्यम से इन्हें संरक्षित किया जा रहा है।
प्रश्न 9 – लोकगीतों में कौन-कौन सी बोलियाँ प्रयुक्त होती हैं?
उत्तर – लोकगीत विभिन्न क्षेत्रीय बोलियों, जैसे भोजपुरी, मैथिली, राजस्थानी, अवधी आदि में गाए जाते हैं।
प्रश्न 10 – ब्रज का प्रसिद्ध लोकगीत कौन सा है?
उत्तर – ब्रज में होली के अवसर पर “रसिया” लोकगीत विशेष रूप से गाया जाता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन पंक्तियों में में दीजिए-
प्रश्न 1 – पहले लोकगीतों को शास्त्रीय संगीत की तुलना में क्यों हेय माना जाता था?
उत्तर – पहले लोकगीतों को शास्त्रीय संगीत की तुलना में कम प्रतिष्ठित माना जाता था क्योंकि इन्हें साधना और तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती थी, लेकिन अब इनका महत्त्व बढ़ गया है।
प्रश्न 2 – आदिवासी लोकगीतों की विशेषता क्या होती है?
उत्तर – आदिवासी लोकगीतों की विशेषता यह होती है कि ये जोशपूर्ण, सजीव और बड़े समूहों में गाए जाते हैं, जिससे पूरा वातावरण संगीतमय हो उठता है।
प्रश्न 3 – भारत में स्त्रियों के लोकगीतों की क्या विशेषता है?
उत्तर – भारत में स्त्रियों के लोकगीत अधिकतर समूह में गाए जाते हैं, इनमें ढोलक आदि वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है, और ये विवाह, जन्म तथा त्योहारों पर गाए जाते हैं।
प्रश्न 4 – लोकगीतों और शास्त्रीय संगीत में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर – लोकगीत सहज और सरल होते हैं, जिन्हें किसी विशेष साधना की आवश्यकता नहीं होती, जबकि शास्त्रीय संगीत में गहराई, तकनीकी ज्ञान और रियाज़ की जरूरत होती है।
प्रश्न 5 – गुजरात के गरबा की खासियत क्या है?
उत्तर – गरबा एक पारंपरिक समूह नृत्य और गायन है, जिसमें महिलाएँ घेरा बनाकर घूमती हैं और ताल से ताल मिलाकर गाती हैं, साथ ही लकड़ियों का प्रयोग भी किया जाता है।
प्रश्न 6 – भारत में स्त्रियों के लोकगीत अन्य देशों से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर – भारत में स्त्रियों के अपने विशेष लोकगीत होते हैं, जो वे समूह में गाती हैं, जबकि अन्य देशों में स्त्री और पुरुषों के लोकगीतों में अधिक भिन्नता नहीं होती।
प्रश्न 7 – आदिवासी लोकगीतों की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर – आदिवासी लोकगीत सामूहिक रूप से गाए जाते हैं, इनमें जोश और ऊर्जा होती है, तथा ये अधिकतर पारंपरिक अनुष्ठानों और त्योहारों पर गाए जाते हैं।
प्रश्न 8 – लोकगीतों के लोकप्रिय होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर – लोकगीतों की सरल भाषा, सुरीले राग, स्थानीय बोलियाँ और सामाजिक-सांस्कृतिक जुड़ाव इन्हें अत्यंत लोकप्रिय बनाते हैं।