“संविधान निर्माता – बाबासाहेब आंबेडकर”
पात्र परिचय –
नरेटर (वाचक) – जो पूरे नाटक को वर्णन करेगा
भीमराव रामजी आंबेडकर (बाबासाहेब) – नायक
रामजी सकपाल – बाबासाहेब के पिता
भीमाबाई – बाबासाहेब की माता
गुरुजी – स्कूल के शिक्षक
सहपाठी – स्कूल के कुछ बच्चे
ब्रिटिश अधिकारी – लंदन में पढ़ाई के दौरान
डॉ. आंबेडकर के समर्थक
समाज के विरोधी लोग
संविधान सभा के सदस्य
प्रस्तावना
यह कहानी है एक ऐसे युग पुरुष की, जिसने समाज में फैली भेदभाव की बेड़ियों को तोड़कर भारत के भविष्य की नींव रखी। यह कहानी है एक बच्चे की, जो प्यासा था, लेकिन उसे पानी नहीं मिला। यह कहानी है एक ऐसे लघुमानव की जो अपने प्रयत्नों के आधार पर महामानव बन पाया। यह कहानी है उस महापुरुष की, जिसने भारत को उसका सबसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज – संविधान – दिया। यह लघु नाटक डॉ. भीमराव आंबेडकर के संघर्षमयी जीवन पर आधारित है।
प्रथम दृश्य – बचपन का संघर्ष
(स्थान – एक गाँव का स्कूल, वर्ष 1895, बच्चे बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन भीमराव अलग कोने में बैठे हैं।)
गुरुजी – “बच्चों, आज हम गणित का नया पाठ पढ़ेंगे।
बच्चे – एक साथ कौन-सा पाठ पढ़ेंगे गुरुजी?
गुरुजी – समीकरण
बच्चे – एक साथ ठीक है गुरुजी
गुरुजी – दिनेश चौबे, तुम इस प्रश्न का उत्तर दो।
दिनेश चौबे – उत्तर नहीं निकाल पाया हूँ गुरुजी
गुरुजी – श्रीधर, तुमने इस प्रश्न का उत्तर निकाल लिया क्या?
श्रीधर – नहीं निकला है गुरुजी जी।
गुरुजी – रवि, तुम बताओ?
रवि – नहीं मालूम है गुरुजी।
गुरुजी – ठीक है भीमराव, तुम ही इस प्रश्न का उत्तर दो।
भीमराव – “जी गुरुजी, उत्तर है 24।”
गुरुजी – तुम्हारा उत्तर तो सही है! उत्तर दिखाओ तूने कैसे निकाला है, सावधानी से … कोई ऊँची जाति का बच्चा तुम्हारा स्पर्श न कर ले!”
(बच्चे हँसने लगते हैं। भीमराव चुप हो जाते हैं।)
भीमराव – ये लीजिए गुरुजी
गुरुजी – स्लेट तू ही पकड़े रह। ठीक है जा बैठ जा।
भीमराव – धन्यवाद गुरुजी!
गुरुजी – तो बच्चों आज हमने पढ़ा समीकरण आज घर जाकर सब इसका अभ्यास करेंगे।
(सब बच्चे एक साथ ठीक है गुरुजी)
(स्कूल की घंटी बजती हैं मध्याह्न अवकाश होता है, सब बच्चे खेलने लगते हैं।, एक कोने में बैठा भीमराव थोड़ी देर बाद वे पानी पीने के लिए उठते हैं।)
भीमराव – गुरुजी, मुझे बहुत प्यास लगी है, क्या मैं पानी पी सकता हूँ?
गुरुजी – थोड़ा ठहर जाओ, कोई ऊँची जाति का लड़का आएगा, तो वही तुम्हें पानी देगा। तुम स्वयं पानी नहीं छू सकते।
गुरुजी – श्रीधर, जरा इसे पानी पिला दो।
श्रीधर – इस अछूत को मैं नहीं पानी पिला सकता गुरुजी।
गुरुजी – रवि, भीमराव को जरा पानी पिला दो।
रवि – ये क्या कह रहे हैं गुरुजी इसकी छाया पड़ने से मेरा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। क्षमा करे गुरुजी।
गुरुजी – दिनेश, इसे जरा पानी पिला दो।
दिनेश – गुरुजी मुझे मेरे घरवाले घर में घुसने नहीं देंगे। ऐसा पाप मुझसे न करवाएँ।
(गुरुजी भी चले जाते हैं)
भीमराव – गुरुजी पानी
भीमराव दुखी होकर बैठ जाते हैं। उनके चेहरे पर निराशा दिखती है।)
यहाँ जानवरो को भी पानी पीने के अधिकार है पर मुझ इंसान को पानी पीने तक का अधिकार नहीं। मुझे दुख होता है कि मनुस्मृति पुस्तक में आखिर जातिगत भेदभाव को किसने इतनी कठोरता से लिख दिया कि मुझे ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं। लेकिन मैं शपथ लेता हूँ कि मैं एक ऐसी पुस्तक लिखूँगा जिसमें सब समान होंगे।
द्वितीय दृश्य – उच्च शिक्षा का सफर
नरेटर – “बचपन से ही भीमराव ने समाज में भेदभाव देखा था। यही भेदभाव देखते-देखते वे बड़े हो गए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी बल्कि हर संघर्ष के साथ उनके हौसले और भी बुलंद होते गए। शिक्षा ही उनका सबसे बड़ा हथियार बनी।”
(स्थान – बंबई विश्वविद्यालय, वर्ष 1913, भीमराव उच्च शिक्षा के लिए तैयार हैं।)
रामजी सकपाल – “बेटा, हमें गर्व है कि तुम विदेश जाकर पढ़ाई करोगे। लेकिन याद रखना, अपनी भारतीयता और अपनी संस्कृति को कभी भी नहीं भूलना और न ही हमारे लोगों को, सबको तुमसे बहुत आशाएँ हैं।”
भीमराव – “जी पिताजी, मैं अपने समाज के लिए कुछ बड़ा करना चाहता हूँ।”
भीमाबाई – देखो बेटा हम सबको तुम्हारी बहुत चिंता है। अपना ख्याल रखना, बेटा (रोते हुए)
भीमराव – हाँ माँ और तुम भी अपना ख्याल रखना।
नरेटर – “इस तरह से भीमराव अपने माता-पिता से विदा लेते हैं और शुरू होता है भारत में एक नए युग की शुरुआत अपने लोगों की भलाई के लिए और उन्हें सामाजिक अधिकार दिलाने के लिए जीजान से पढ़ाई करते हैं भीमराव जी” (लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में वे अपने शोध में व्यस्त हैं।)
डे वन
ब्रिटिश अधिकारी – who is he? Always reading
डे टू
ब्रिटिश अधिकारी – really Impressive laborious student।
डे – थर्टीन
ब्रिटिश अधिकारी – भीमराव, You are an industrious student तुम एक होनहार छात्र हो। तुम्हें भारत लौटकर अपने लोगों के लिए काम करना चाहिए।”
भीमराव – यही मेरा सपना है। This is my only Aim Sir. मैं अपने समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष करूँगा। भारत में फैले जात-पाँत के विषैले जड़ों को उखाड़ फेंकूँगा।
ब्रिटिश अधिकारी – All the best
तृतीय दृश्य –
नरेटर – “भारत के पहले Ph. D. प्राप्त छात्र के रूप में अपनी शिक्षा पूरी करके भीमराव भारत लौटे और समाज में परिवर्तन लाने के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया।” छुआछूत के खिलाफ संघर्ष कर रहे भीमराव जी महाड़ सत्याग्रह, वर्ष 1927 में एक विशाल सभा को संबोधित कर रहे हैं।
भीमराव – साथियो, जब तक हम अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़ेंगे, तब तक हमें समानता नहीं मिलेगी! हमें छुआछूत के इस अभिशाप को मिटाना होगा
(लोग ‘जय भीम’ ‘जय भीम’ ‘जय भीम’ के नारे लगाने लगते हैं।)
भीमराव – चलो इस तालाब का पानी पीकर इस आंदोलन की शुरुआत करें।
(लोग ‘जय भीम’ ‘जय भीम’ ‘जय भीम’ के नारे लगाने लगते हैं।)
एक विरोधी – “तुम नीची जाति के लोग हो! तुम्हें कोई अधिकार नहीं!” तुम इस तालाब के पानी को पीकर इसे अपवित्र नहीं कर सकते।
भीमराव – अगर हमारे पानी पीने से यह अपवित्र हो जाएगा तो आप ऊँची जाति के लोग इसे फिर से पवित्र कर लीजिएगा।
(लोग ‘जय भीम’ ‘जय भीम’ ‘जय भीम’ के नारे लगाने लगते हैं।)
एक विरोधी – याद रखों सामाजिक प्रथा को तुम तोड़ नहीं सकते यह तुम्हारा अधिकार है ही नहीं।
भीमराव – यह हमारा अधिकार है और यह अधिकार हमें संविधान देगा! हमें यह अधिकार कानून देगा! और हम इसे लेकर ही रहेंगे!
(लोग ‘जय भीम’ ‘जय भीम’ ‘जय भीम’ के नारे लगाने लगते हैं और तालियाँ बजाने लगते हैं।)
चतुर्थ दृश्य –
नरेटर – “जिनके इरादे बुलंद होते हैं उनके सामने तो हिमालय भी बौना नज़र आता है। भीमराव आंबेडकर दृढ़ प्रतिज्ञ थे। उन्होंने सामाजिक भेद-भाव दूर करने का जो संकल्प लिया था वह संकल्प पूरा न होने तक किसी भी कीमत पर खंडित होने वाला नहीं था। इसी पुनीत उद्देश्य के साथ उन्होने आंदोलनों का नेतृत्व करना जारी रखा। और इसी क्रम में संविधान निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई।
(स्थान – संविधान सभा, वर्ष 1949।)
संविधान सभा अध्यक्ष – “डॉ. आंबेडकर, कृपया संविधान का अंतिम मसौदा प्रस्तुत करें।”
भीमराव – “यह संविधान भारत के हर नागरिक को समान अधिकार देता है। यह जाति, धर्म, लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करेगा।” साथ ही साथ अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का भी प्रावधान है। इस तरह से समाज के पिछड़े वर्गों को भी मुख्य कतार में लाया जा सकेगा।
एक सांसद – आज से आप आंबेडकर के साथ-साथ बाबा साहेब आंबेडकर के नाम से जाने जाएँगे क्योंकि एक दूरदर्शी बाबा की तरह ही आपने देश के विकास हेतु इतना सुंदर मसौदा तैयार किया है।
भीमराव नेहरू जी को संविधान सौंपते हुए।
(सभा में तालियाँ गूँजने लगती हैं।)
नरेटर – और इस तरह 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ और भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य बना। अब यहाँ संवैधानिक दृष्टि से कानून की नज़र में सब एक समान हैं। किसी ने सच ही कहा है व्यक्ति की मौत होती है पर व्यक्तित्व की नहीं, 6 दिसंबर 1956 को डॉ. भीमराव आंबेडकर का निधन हो गया। लेकिन उनके विचार, उनके संघर्ष और उनका योगदान सदा अमर रहेगा। आज हम जिस लोकतंत्र में जी रहे हैं, वह उन्हीं की देन है। इसलिए “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो!”
व्यक्ति की मौत हो सकती है पर व्यक्तित्व की नहीं
जीवन का अंत हो सकता है पर जीवनी का नहीं।